लिंगायतों द्वारा अलग धार्मिक पहचान की माँग
संदर्भ
कर्नाटक में विश्व लिंगायत महासभा ने लिंगायत परंपरा को अलग धर्म घोषित करने की माँग की है।
महासभा के अध्यक्ष शमनुरू शिवशंकरप्पा के अनुसार इस स्वतंत्र धर्म की स्थिति की माँग में कोई भ्रम नहीं था। वीरशैव/लिंगायत धर्म एक स्वतंत्र धर्म है। यह हिंदू धर्म से अलग है और वह इसके लिये स्वतंत्र धर्म की सामाजिक स्थिति चाहते हैं।
प्रमुख बिंदु
- हालाँकि, भाजपा और कुछ संतों का कहना है कि वे हिंदू धर्म का हिस्सा हैं। अलग-अलग राजनीतिक दलों से 'लिंगायत धर्म' के स्वतंत्र धर्म के दावे के बारे में अलग-अलग विचार उभर रहे हैं।
- कर्नाटक के उत्तरी ज़िले में लिंगायत समुदाय की आबादी अधिक है।
क्या है लिंगायत/वीरशैव परंपरा
- लिंगायत अर्थात् भगवान शिव का लिंग धारण करने वाले।
- वीरशैव का अर्थ है भगवान शिव के वीर।
- बारहवीं शताब्दी में कर्नाटक में एक नवीन आंदोलन का उदय हुआ, जिसका नेतृत्त्व बासवन्ना (1106-68 ) नामक एक ब्राह्मण ने किया।
- बासवन्ना कलाचूरी राजा के दरबार में मंत्री थे। इनके अनुयायी वीरशैव व लिंगायत कहलाये।
- आज भी लिंगायत समुदाय का इस क्षेत्र में महत्त्व है। वे शिव की आराधना लिंग के रूप में करते हैं। इस समुदाय के पुरुष अपने वाम स्कंध पर चाँदी के एक पिटारे में एक लघु लिंग को धारण करते हैं।
विश्वास
- लिंगायतों का विश्वास है कि मृत्यु के बाद भक्त शिव में लीन हो जाएँगे तथा इस संसार में पुनः नही लौटेंगे। वे धर्मशास्त्र में बताए गए श्राद्ध संस्कार का पालन नहीं करते और अपने मृतकों को विधिपूर्वक दफनाते हैं।
विरोध
- लिंगायतों ने जाति की अवधारणा और कुछ समुदायों के “दूषित” होने की ब्राह्मणीय अवधारणा का भी विरोध किया। पुनर्जन्म के सिद्धांतों पर भी उन्होंने प्रश्नवाचक चिन्ह लगाया। इन सब कारणों से ब्राह्मणीय सामाजिक व्यवस्था में जिन समुदायों को निम्न स्थान मिला था, वे सभी लिंगायतों के अनुयायी हो गए।