जैव विविधता और पर्यावरण
WMO का ग्रीनहाउस गैस बुलेटिन 2023
प्रिलिम्स के लिये :विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO), ग्रीनहाउस गैस (GHG) बुलेटिन, WMO ग्लोबल एटमॉस्फियर वॉच (GAW), मीथेन (CH₄), नाइट्रस ऑक्साइड (N₂O), अल नीनो, कार्बन सिंक, ला नीना, राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान, UNFCCC, पेरिस समझौता, ओज़ोन, यूवी विकिरण, ग्रीनहाउस गैसें, एरोसोल, विश्व मौसम विज्ञान कॉन्ग्रेस। मेन्स के लिये :ग्लोबल वार्मिंग में ग्रीनहाउस गैसों की भूमिका, ग्लोबल वार्मिंग से निपटने में विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) की भूमिका। |
स्रोत: IE
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने वर्ष 2023 के लिये अपना वार्षिक ग्रीनहाउस गैस (GHG) बुलेटिन जारी किया।
GHG बुलेटिन, वायुमंडलीय सांद्रता पर WMO ग्लोबल एटमॉस्फियर वॉच (GAW) का नवीनतम विश्लेषण प्रदान करता है।
ग्रीनहाउस गैस (GHG)
- ग्रीनहाउस गैसें वायुमंडलीय गैसें हैं जो सूर्य से आने वाली ऊष्मा को रोकती हैं और पृथ्वी की सतह को गर्म रखती हैं।
- हालाँकि जीवाश्म ईंधन जलाने, निर्वनीकरण तथा औद्योगिक प्रक्रियाओं जैसी मानवीय गतिविधियों ने इन गैसों की सांद्रता में उल्लेखनीय वृद्धि की है, जिससे ग्रीनहाउस प्रभाव बढ़ रहा है और ग्लोबल वार्मिंग व उसके बाद जलवायु में परिवर्तन हो रहा है।
- प्रमुख GHG:
- कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂): यह जीवाश्म ईंधन (कोयला, प्राकृतिक गैस और तेल), ठोस अपशिष्ट आदि के जलने से वायुमंडल में प्रवेश करती है।
- मीथेन (CH₄): मवेशी पालन, लैंडफिल अपशिष्ट, चावल की कृषि और जीवाश्म ईंधन निष्कर्षण जैसी मानवीय गतिविधियों ने वायुमंडल में मीथेन के स्तर को बढ़ा दिया है।
- नाइट्रस ऑक्साइड (N2O): यह कृषि, भूमि उपयोग और औद्योगिक गतिविधियों, जीवाश्म ईंधन तथा ठोस अपशिष्ट के दहन के दौरान उत्सर्जित होता है।
- जल वाष्प (H₂O): यह सबसे प्रचुर मात्रा में पाई जाने वाली ग्रीनहाउस गैस है। यह वायुमंडल में केवल कुछ दिनों के लिये मौजूद रहती है।
- औद्योगिक फ्लोरीनेटेड गैसें: इनमें हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFC), परफ्लोरोकार्बन (PFC) और सल्फर हेक्साफ्लोराइड (SF₆) शामिल हैं, जिनमें उच्च ग्लोबल वार्मिंग क्षमता (GWP) होती है।
- उदाहरण के लिये , SF₆ का GWP CO₂ से 23,000 गुना ज़्यादा है, जिससे ये गैसें ग्लोबल वार्मिंग में बेहद शक्तिशाली योगदानकर्त्ता बन जाती हैं।
- GWP यह बताता है कि CO₂ के सापेक्ष एक विशिष्ट अवधि में GHG वायुमंडल में कितनी ऊष्मा को रोकता है।
GHG बुलेटिन के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?
- GHG स्तर और रुझान:
- ऐतिहासिक वार्मिंग: वर्ष 1990 के बाद से ग्रीनहाउस गैसों से होने वाले वार्मिंग प्रभाव में 51.5% की वृद्धि हुई है, जिसमें CO2 का योगदान लगभग 81% है।
- वर्ष 2023 में उच्च रिकॉर्ड: कार्बन डाइऑक्साइड (CO2), मीथेन (CH₄) और नाइट्रस ऑक्साइड (N₂O) सहित ग्रीनहाउस गैसों का स्तर वर्ष 2023 में वैश्विक स्तर पर रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गया।
- वर्ष 2022 से CO₂ 2.3 भाग प्रति मिलियन (ppm) बढ़कर 420 ppm तक पहुँच गया।
- उच्चतम विकिरणी प्रणोदन: वर्ष 2023 को सबसे गर्म वर्ष के रूप में दर्ज किया गया, जो वर्ष 2016 में स्थापित पिछले रिकॉर्ड को पार कर गया। वैश्विक तापमान 1850-1900 पूर्व-औद्योगिक औसत से 1.48°C अधिक था।
- विकिरणी प्रणोदन, ग्रीनहाउस गैसों के कारण जलवायु पर पड़ने वाला गर्म प्रभाव है।
- वर्तमान CO₂ सांद्रता 3-5 मिलियन वर्ष पूर्व के स्तर के बराबर है, जब वैश्विक तापमान 2-3°C अधिक था और समुद्र का स्तर आज की तुलना में 10-20 मीटर अधिक था।
- यह क्रमागत 12वाँ वर्ष है जब वार्षिक CO2 वृद्धि 2 ppm से अधिक रही है।
- CO₂ के स्तर में वृद्धि के कारण:
- मानवीय गतिविधियाँ: औद्योगिक गतिविधियों के साथ-साथ जीवाश्म ईंधन के उपयोग से लगातार उच्च CO₂ उत्सर्जन वृद्धि में प्रमुख योगदानकर्त्ता हैं।
- अल नीनो प्रभाव: अल नीनो घटना जो विशेष रूप से दक्षिण एशिया में गर्म मौसम और शुष्क परिस्थितियाँ लाती है, शुष्क वनस्पति तथा वनाग्नि का कारण बनती है, जिससे वायुमंडल में अधिक ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है और भूमि कार्बन सिंक की दक्षता प्रभावित होती है।
- जलवायु संबंधी चिंताएँ:
- दुष्चक्र चेतावनी: बढ़ते CO2 स्तर और जलवायु परिवर्तन के कारण प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र GHG स्रोतों में बदल सकते हैं क्योंकि गर्मी के कारण वनाग्नि से कार्बन उत्सर्जन बढ़ सकता है तथा महासागरों द्वारा CO2 अवशोषण कम हो सकता है।
- मीथेन में वृद्धि: मीथेन में वर्ष 2020 से 2022 तक तीन वर्ष की सबसे बड़ी वृद्धि देखी गई, विशेष रूप से गर्म और आर्द्र ला नीना स्थितियों के कारण प्राकृतिक आर्द्रभूमि से।
- कार्बन सिंक में कमी: इसमें इस बात पर प्रकाश डाला गया कि गर्म होते महासागर और लगातार वनाग्नि प्राकृतिक ग्रीनहाउस गैस अवशोषण को कम कर सकती है।
- नीतिगत प्रतिक्रियाएँ:
- राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC): UNFCCC के वर्ष 2023 के आकलन के अनुसार NDC वर्ष 2019 से 2030 तक वैश्विक उत्सर्जन में 2.6% की कमी ला सकते हैं, जो पेरिस समझौते के अनुसार तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिये आवश्यक 43% की कमी से काफी कम है।
- मज़बूत NDC के लिये UNFCCC का आह्वान: देशों को फरवरी 2024 तक अद्यतन NDC प्रस्तुत करने की आवश्यकता है, UNFCCC ने वैश्विक उत्सर्जन में कमी के प्रयासों में अंतर को पाटने के लिये इसे एक महत्त्वपूर्ण क्षण बताया है।
ग्लोबल एटमॉस्फियर वॉच क्या है?
- परिचय: GAW 100 देशों का एक सहयोगात्मक कार्यक्रम है जो वायुमंडलीय संरचना और प्राकृतिक तथा मानवीय प्रभावों के कारण होने वाले परिवर्तनों पर महत्त्वपूर्ण वैज्ञानिक डेटा प्रदान करता है।
- उद्देश्य: इसका उद्देश्य वायुमंडल, महासागरों और जीवमंडल के बीच अंतःक्रियाओं की समझ को बढ़ाना तथा वायु प्रदूषण एवं जलवायु परिवर्तन अनुसंधान के लिये डेटा संग्रह को समर्थन प्रदान करना है।
- मुख्य निगरानी लक्ष्य: GAW कार्यक्रम छह प्रमुख वायुमंडलीय चरों पर ध्यान केंद्रित करता है, अर्थात् ओज़ोन, यूवी विकिरण, ग्रीनहाउस गैसें, एरोसोल, चयनित प्रतिक्रियाशील गैसें और वर्षण रसायन आदि।
- शासन व्यवस्था: GAW विशेषज्ञ समूह GAW कार्यक्रम में नेतृत्व प्रदान करते हैं और प्रमुख गतिविधियों का समन्वय करते हैं।
- GAW विशेषज्ञ समूहों की देख-रेख WMO अनुसंधान बोर्ड और इसकी पर्यावरण प्रदूषण एवं वायुमंडलीय रसायन विज्ञान वैज्ञानिक संचालन समिति (EPAC SSC) द्वारा की जाती है।
- प्रकाशन: स्टेट ऑफ द ग्लोबल क्लाइमेट, ग्रीनहाउस गैस बुलेटिन, GAW रिपोर्ट, ओज़ोन बुलेटिन।
विश्व मौसम विज्ञान संगठन
- परिचय: विश्व मौसम संगठन वायुमंडलीय विज्ञान पर संयुक्त राष्ट्र का अग्रणी प्राधिकरण है, जो पृथ्वी के वायुमंडल, मौसम, जलवायु, जल संसाधनों तथा भूमि एवं महासागरों के साथ उनकी अन्योन्यक्रिया पर कार्य करता है।
- WMO संयुक्त राष्ट्र की विशेष एजेंसी है।
- वैश्विक सहयोग: इसमें 193 सदस्य देश और प्रदेश शामिल हैं। भारत WMO का सदस्य है।
- संरचना: WMO विश्व मौसम विज्ञान कॉन्ग्रेस, कार्य परिषद, क्षेत्रीय संघों, तकनीकी आयोगों एवं सचिवालय से मिलकर बना है।
- विश्व मौसम विज्ञान कॉन्ग्रेस: यह सर्वोच्च निर्णय लेने वाली संस्था है तथा समग्र नीतियों एवं उनके निर्देशन का कार्य करती है।
- कार्य परिषद: यह कॉन्ग्रेस के निर्णयों को क्रियान्वित करती है।
- क्षेत्रीय संघ: इसमें 6 क्षेत्रीय संघ शामिल हैं जो अपने विशिष्ट क्षेत्रों में मौसम विज्ञान, जल विज्ञान और संबंधित गतिविधियों का समन्वय करते हैं।
- जलवायु कार्य: WMO UNFCCC और अन्य पर्यावरण सम्मेलनों का समर्थन करता है। यह सतत् विकास को बढ़ावा देने के लिये जलवायु से संबंधित मुद्दों पर सरकारों को परामर्श प्रदान करता है।
- मुख्यालय: WMO का सचिवालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में स्थित है जिसकी देख-रेख महासचिव करता है।
ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को नियंत्रित करने हेतु प्रमुख पहलें क्या हैं?
निष्कर्ष
WMO के वर्ष 2023 ग्रीनहाउस गैस बुलेटिन के अनुसार ग्रीनहाउस गैसों के स्तर में अत्यंत चिंताजनक वृद्धि हुई है जिसके शमन हेतु इसमें सुदृढ़ नीतिगत उपायों की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया गया है। जलवायु में परिवर्तन की तीव्रता बढ़ने के साथ पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने और वैश्विक संधारणीयता की रक्षा के लिये ग्लोबल एटमॉस्फियर वॉच के माध्यम से सहयोग एवं राष्ट्रीय योगदान में वृद्धि आवश्यक है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: ग्रीनहाउस गैस क्या हैं? मानवीय गतिविधियों ने ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता को किस प्रकार प्रभावित किया है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रिलिम्स:प्रश्न: “मोमेंटम फॉर चेंज: क्लाइमेट न्यूट्रल नाउ” यह पहल किसके द्वारा प्रवर्तित की गई है? (2018) (a) जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल उत्तर: (c) प्रश्न: 'ग्रीनहाउस गैस प्रोटोकॉल (Greenhouse Gas Protocol)' क्या है? (2016) (a) यह सरकार एवं व्यवसाय को नेतृत्त्व देने वाले व्यक्तियों के लिये ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को समझने, परिणाम निर्धारित करने एवं प्रबंधन हेतु एक अंतर्राष्ट्रीय लेखाकरण साधन है उत्तर: (a) प्रश्न: 'अभीष्ट राष्ट्रीय निर्धारित अंशदान (Intended Nationally Determined Contributions)' पद को कभी-कभी समाचारों में किस संदर्भ में देखा जाता है? (2016) (a) युद्ध प्रभावित मध्य-पूर्व शरणार्थियों के पुनर्वास के लिये यूरोपीय देशों द्वारा दिये गए वचन उत्तर: (b) मेन्सQ. आर्कटिक की बर्फ और अंटार्कटिका के ग्लेशियरों का पिघलना किस तरह अलग-अलग ढंग से पृथ्वी पर मौसम के स्वरूप तथा मनुष्य की गतिविधियों पर प्रभाव डालते है? स्पष्ट कीजिये। (2021) Q. 'जलवायु परिवर्तन' एक वैश्विक समस्या है। भारत जलवायु परिवर्तन से किस प्रकार प्रभावित होगा? जलवायु परिवर्तन के द्वारा भारत के हिमालयी और समुद्रतटीय राज्य किस प्रकार प्रभावित होंगे? (2017) |
भारतीय अर्थव्यवस्था
RBI द्वारा स्वर्ण का प्रत्यावर्तन
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय रिज़र्व बैंक, बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट्स, विदेशी मुद्रा भंडार, सॉवरेन गोल्ड बॉण्ड, आयात कवर, बाह्य ऋण, वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल, ट्रेजरी बिल, सरकारी प्रतिभूतियाँ, विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियाँ, आरक्षित स्वर्ण निधि, विशेष आहरण अधिकार, रिज़र्व ट्रैन्च स्थिति मेन्स के लिये:अर्थव्यवस्था में स्वर्ण और विदेशी मुद्रा भंडार की भूमिका। |
स्रोत: बीएस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने बैंक ऑफ इंग्लैंड (BoE) और बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट्स (BIS) से 102 टन स्वर्ण का प्रत्यावर्तन (वापस लाना) किया।
- RBI की "विदेशी मुद्रा भंडार प्रबंधन पर अर्धवार्षिक रिपोर्ट" के अनुसार, सितंबर 2024 में घरेलू स्तर पर रखे गए स्वर्ण की मात्रा 510.46 मीट्रिक टन है।
- भारतीय रिज़र्व बैंक के पास भारत की कुल आरक्षित स्वर्ण निधि 854.73 मीट्रिक टन है।
नोट:
- वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल (जून 2024) के अनुसार भारत सॉवरेन गोल्ड होल्डिंग्स के मामले में 8वें स्थान पर है, जबकि अमेरिका इस सूची में शीर्ष पर है।
- भारत की गोल्ड होल्डिंग्स 840.76 मीट्रिक टन है, जो इसके विदेशी मुद्रा भंडार का 9.57% है।
- गोल्ड होल्डिंग्स के मामले में भारत से आगे अन्य देश जर्मनी, इटली, फ्राँस, रूस, चीन और जापान हैं।
भारत स्वर्ण का प्रत्यावर्तन क्यों कर रहा है?
- भू-राजनीतिक जोखिम को कम करना: भारत अपने आरक्षित स्वर्ण निधि को घरेलू स्तर पर बनाए रखना चाहता है, ताकि उसे संभावित विदेशी प्रतिबंधों से बचाया जा सके, जो विदेशों में रखी परिसंपत्तियों तक पहुँच को प्रतिबंधित कर सकते हैं।
- यूक्रेन संघर्ष के दौरान अमेरिका और सहयोगियों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के कारण रूस की 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर के स्वर्ण तथा विदेशी मुद्रा भंडार तक पहुँच अवरुद्ध हो गई है।
- बाज़ार में विश्वास में वृद्धि: स्वर्ण को विशेष रूप से उभरते बाज़ारों में एक "सुरक्षित आश्रय" परिसंपत्ति के रूप में देखा जाता है और इसे राष्ट्रीय सीमाओं के भीतर रखने से वित्तीय प्रणाली में जनता का विश्वास बढ़ जाता है।
- आर्थिक संप्रभुता: भारत की आरक्षित स्वर्ण निधि अब भारत के विदेशी ऋण के 101% से अधिक है, जो भारत की ऋण चुकौती क्षमता में वृद्धि करती है।
- घरेलू वित्तीय बाज़ारों को समर्थन: भारत में स्वर्ण की भौतिक उपस्थिति के कारण RBI के पास घरेलू बाज़ारों में स्वर्ण-समर्थित वित्तीय उत्पादों को समर्थन देने के लिये अधिक लचीलापन है।
- भारत सरकार ने भौतिक स्वर्ण के आयात पर निर्भरता कम करने के लिये सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड (SGB) जैसी पहल को बढ़ावा दिया है।
- स्वर्ण प्रत्यावर्तन की वैश्विक प्रवृत्ति: पिछले दशक में केंद्रीय बैंकों द्वारा स्वर्ण प्रत्यावर्तन की व्यापक प्रवृत्ति देखी गई है।
- उदाहरण के लिये वेनेज़ुएला ने वर्ष 2011 में अमेरिका और यूरोपीय भंडारों से तथा ऑस्ट्रिया ने वर्ष 2015 में स्वर्ण का प्रत्यावर्तन किया।
- लागत बचत: RBI सामान्यतः बैंक ऑफ इंग्लैंड या फेडरल रिज़र्व जैसी संस्थाओं को उनके स्वर्ण को रखने के लिये बीमा, परिवहन शुल्क, संरक्षक शुल्क और वॉल्ट शुल्क का भुगतान करता है।
- इस स्वर्ण में से कुछ का प्रत्यावर्तन करके RBI इन आवर्ती लागतों को कम कर सकता है।
- आयात कवर में वृद्धि: आयात कवर एक महत्त्वपूर्ण व्यापार संकेतक है, जो विदेशी मुद्रा भंडार की पर्याप्तता को दर्शाता है और विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि के साथ-साथ मज़बूत हुआ है।
- वर्तमान विदेशी भंडार 11.8 महीने के आयात को कवर करने के लिये पर्याप्त है।
भारत का विदेशी मुद्रा भंडार
- विदेशी मुद्रा भंडार एक केंद्रीय बैंक द्वारा विदेशी मुद्राओं में आरक्षित रखी गई परिसंपत्तियाँ हैं, जिनमें बॉण्ड, ट्रेजरी बिल और अन्य सरकारी प्रतिभूतियाँ शामिल हो सकती हैं।
- भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियाँ, आरक्षित स्वर्ण निधि, विशेष आहरण अधिकार और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के साथ रिज़र्व ट्रैन्च स्थिति शामिल हैं।
- अक्तूबर, 2024 में भारत के विदेशी मुद्रा भंडार की स्थिति 688.27 बिलियन अमेरिकी डॉलर होने का अनुमान लगाया गया है।
- इसमें शामिल है:
- 598.24 बिलियन अमरीकी डॉलर की विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियाँ (FCA)
- 67.44 बिलियन अमरीकी डॉलर का स्वर्ण
- 18.27 बिलियन अमरीकी डॉलर के विशेष आहरण अधिकार (SDR)
- 4.32 बिलियन अमरीकी डॉलर की रिज़र्व ट्रेंच स्थिति (RTP)।
विदेशी मुद्रा दर प्रबंधन की पृष्ठभूमि
- स्वर्ण मानक (1870-1914): मुद्राएँ सीधे स्वर्ण के मूल्य से जुड़ी हुई थीं। प्रत्येक देश अपनी मुद्रा को सहारा देने के लिये आरक्षित स्वर्ण निधि रखता था। स्थिर विनिमय दरों ने अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को आसान और पूर्वानुमानित बना दिया।
- ब्रेटन वुड्स प्रणाली (1944-1971): इसकी स्थापना द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की गई थी और इसकी प्रमुख विशेषताएँ थीं:
- आरक्षित मुद्रा के रूप में अमेरिकी डॉलर के साथ नियत विनिमय दरें।
- अन्य मुद्राएँ नियत दर पर डॉलर से जुड़ी हुई थीं।
- इसके बदले में अमेरिकी डॉलर 35 अमेरिकी डॉलर प्रति औंस की निश्चित कीमत पर स्वर्ण में परिवर्तित हो सकता था।
- वर्तमान परिदृश्य (विभिन्न व्यवस्थाएँ - वर्ष 1971 के बाद): आपूर्ति और मांग की बाज़ार शक्तियाँ विभिन्न व्यवस्थाओं के साथ विनिमय दरों को निर्धारित करती हैं।
- अस्थायी विनिमय दर: किसी मुद्रा का मूल्य विदेशी मुद्रा बाज़ार में आपूर्ति और मांग द्वारा निर्धारित होता है। विनिमय दरें निरंतर उतार-चढ़ाव करती रहती हैं एवं आधिकारिक तौर पर किसी अन्य मुद्रा या वस्तु से अधिकीलित या तय नहीं होती हैं।
- अधिकीलित दरें: कोई देश अपनी मुद्रा को किसी एक मज़बूत मुद्रा (जैसे, USD) या विविध मुद्रा समूह से जोड़ता है।
- डॉलरीकरण: कुछ देश अपनी मुद्रा को पूरी तरह से त्याग देते हैं और अमेरिकी डॉलर को अपना लेते हैं (जैसे, इक्वाडोर)।
RBI विदेशों में आरक्षित स्वर्ण निधि का संचय क्यों करता है?
- भू-राजनीतिक जोखिमों को कम करना: कई अंतर्राष्ट्रीय स्थानों पर स्वर्ण रखने से RBI भारत में अपने भंडार के केंद्रित होने के जोखिम को कम करता है।
- लंदन और न्यूयॉर्क जैसे प्रमुख वैश्विक वित्तीय केंद्रों में भंडार जमा करने से यह सुनिश्चित होता है कि किसी भी घरेलू या क्षेत्रीय व्यवधान की स्थिति में परिसंपत्तियाँ सुलभ तथा सुरक्षित रहे।
- अंतर्राष्ट्रीय चलनिधि: लंदन, न्यूयॉर्क और ज्यूरिख जैसे वित्तीय केंद्रों में रखा गया स्वर्ण RBI को वैश्विक बाज़ारों तक तत्काल पहुँच प्रदान करता है।
- ये शहर स्वर्ण व्यापार के लिये प्राथमिक केंद्र हैं, जिससे आवश्यकता पड़ने पर स्वर्ण को तुरंत नकदी में बदलना आसान हो जाता है।
- आर्थिक लचीलापन: अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में आरक्षित स्वर्ण निधि की उपलब्धता भारत को ऋण या अन्य वित्तीय साधनों के लिए संपार्श्विक के रूप में उपयोग करने की अनुमति देती है, जिससे आर्थिक लचीलापन को समर्थन मिलता है तथा अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय दायित्वों को पूरा करने की भारत की क्षमता बढ़ती है।
- विश्वसनीय अभिरक्षक: बैंक ऑफ इंग्लैंड को एक विश्वसनीय अभिरक्षक माना जाता है, जो राष्ट्रीय परिसंपत्तियों की सुरक्षा के लिये जाना जाता है।
- अंतर्राष्ट्रीय निपटान बैंक (BIS) केंद्रीय बैंकों को अपनी आरक्षित स्वर्ण निधि का प्रबंधन और भंडारण करने के लिये एक स्थापित अंतर्राष्ट्रीय ढाँचा प्रदान करता है।
प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय स्वर्ण तिजोरियों/गोल्ड वॉल्ट में सुरक्षा उपाय क्या हैं?
- बैंक ऑफ इंग्लैंड, UK: यह उन्नत निगरानी प्रणाली, स्थायी वॉल्ट डोर और कड़े प्रवेश नियंत्रण प्रदान करता है।
- BIS, स्विटज़रलैंड: वॉल्ट में अत्याधुनिक सुरक्षा उपाय हैं, जिसमें सशक्त संरचनाएँ, बायोमेट्रिक प्रवेश नियंत्रण और निरंतर निगरानी शामिल है।
- फेडरल रिज़र्व बैंक ऑफ न्यूयॉर्क, USA: सड़क के स्तर से 80 फीट नीचे स्थित वॉल्ट 90 टन के स्टील सिलेंडर में संलग्न है, जो इसे असाधारण रूप से सुरक्षित और संभावित सुरक्षा उल्लंघनों के प्रति सशक्त बनाता है।
निष्कर्ष
भारत द्वारा सोना वापस लाने का निर्णय आर्थिक लचीलेपन और जोखिम न्यूनीकरण की दिशा में बदलाव को दर्शाता है। घरेलू स्तर पर अधिक सोना रखने से भारत भू-राजनीतिक और कस्टोडियल जोखिमों को कम करता है, बाज़ार में विश्वास बढ़ाता है तथा वित्तीय उत्पादों का समर्थन करता है, साथ ही केंद्रीय बैंकों द्वारा स्वर्ण भंडार पर राष्ट्रीय नियंत्रण को मज़बूत करने की वैश्विक प्रवृत्ति के साथ तालमेल बिठाता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: विदेशों में भारत का आरक्षित स्वर्ण निधि रखना उसकी अंतर्राष्ट्रीय तरलता और आर्थिक लचीलेपन में किस प्रकार योगदान देता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रिलिम्सप्रश्न: सरकार की 'संप्रभु स्वर्ण बॉन्ड योजना (Sovereign Gold Bond Scheme)' और 'स्वर्ण मुद्रीकरण योजना (Gold Monetization Scheme)' का/के उद्देश्य क्या है/हैं? (2016)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग करके सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (c) प्रश्न: भारत की विदेशी मुद्रा आरक्षित निधि में निम्नलिखित में से कौन-सा एक मदसमूह सम्मिलित है? (2013) (a) विदेशी मुद्रा परिसंपत्ति, विशेष आहरण अधिकार (एस.डी.आर.) तथा विदेशों से ऋण उत्तर: (b) मेन्सप्रश्न: सोने के लिये भारतीयों के उन्माद ने हाल के वर्षों में सोने के आयात में प्रोत्कर्ष (उछाल) उत्पन्न कर दिया है और भुगतान-संतुलन और रुपए के बाह्य मूल्य पर दबाव डाला है। इसको देखते हुए, स्वर्ण मुद्रीकरण योजना के गुणों का परीक्षण कीजिये। (2015) |
भारतीय राजनीति
भारतीय और अमेरिकी राष्ट्रपतियों का तुलनात्मक विश्लेषण
प्रारंभिक परीक्षा के लिये:आम चुनाव, निर्वाचन आयोग, राजनीतिक दल, गुप्त मतदान, निर्वाचक मंडल , राष्ट्रपति , उपराष्ट्रपति, लोकसभा, राज्यसभा, राज्य विधानसभाएँ , प्रस्तावक, समर्थक, वीटो , आपातकाल, मंत्रिपरिषद, महाभियोग मुख्य परीक्षा के लिये:भारतीय और अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में समानताएँ और अंतर। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
संयुक्त राज्य अमेरिका वर्ष 2024 के आम चुनाव में देश के राष्ट्रपति का चुनाव करने के लिये पूरी तरह तैयार है, जिसके लिये 5 नवंबर, 2024 को निर्वाचक मंडल के माध्यम से मतदान होना है।
- इस चुनाव ने अमेरिका और भारत के राष्ट्रपतियों की शक्तियों तथा भूमिकाओं में समानताओं एवं भिन्नताओं की ओर ध्यान आकर्षित किया।
अमेरिका में इलेक्टोरल कॉलेज प्रणाली क्या है?
- परिचय: यह अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति को औपचारिक रूप से चुनने के लिये प्रयोग की जाने वाली प्रणाली है।
- नागरिक अपना मत सीधे राष्ट्रपति के लिये नहीं, बल्कि प्रत्येक राज्य में प्रत्येक उम्मीदवार के राजनीतिक दल द्वारा चुने गए निर्वाचकों के एक समूह को देते हैं।
- इसके बाद ये निर्वाचकगण राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के लिये औपचारिक रूप से मत देने हेतु एकत्रित होते हैं, जिसे निर्वाचक मंडल के नाम से जाना जाता है।
- उद्भव: यह अमेरिकी संविधान में एक समझौता था, जो राष्ट्रपति के चुनाव के लिये प्रत्यक्ष लोकप्रिय मत और कॉन्ग्रेस द्वारा चयन के बीच संतुलन स्थापित करता था।
- यह राष्ट्रपति को जनता से सीधे अपील करने से रोकने तथा मध्यस्थ निकाय के माध्यम से कार्यकारी शक्ति पर अंकुश लगाने के लिये एक सुरक्षा उपाय के रूप में कार्य करता था।
- संरचना: इसमें कुल 538 निर्वाचक हैं। राष्ट्रपति पद जीतने के लिये किसी उम्मीदवार को 270 निर्वाचक मतों के बहुमत की आवश्यकता होती है।
- निर्वाचन मंडल का प्रभाव: राष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय मत जीतने वाला उम्मीदवार भी राष्ट्रपति के पद से वंचित रह सकता है, यदि निर्वाचक मंडल में नागरिकों की पसंद के विरुद्ध मतदान करते हैं।
- अमेरिकी इतिहास में ऐसा पाँच बार हुआ है, जिसमें वर्ष 2000 और 2016 के चुनाव भी शामिल हैं, जहाँ लोकप्रिय मत का विजेता इलेक्टोरल कॉलेज हार गया था।
भारतीय राष्ट्रपति चुनाव अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव से किस प्रकार भिन्न है?
- निर्वाचक मंडल संरचना: राष्ट्रपति का चुनाव एक निर्वाचक मंडल प्रणाली के माध्यम से होता है, जिसमें निम्नलिखित शामिल होते हैं:
- निर्वाचित संसद सदस्य (MP): इसमें संसद के दोनों सदनों अर्थात् लोकसभा (लोकसभा) और राज्यसभा (राज्य परिषद) के सभी निर्वाचित सदस्य शामिल हैं।
- विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य (MLA): इसमें सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों दिल्ली तथा पुदुचेरी की विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्य शामिल हैं।
- नामांकन प्रक्रिया: एक उम्मीदवार को 50 प्रस्तावकों और 50 समर्थकों की हस्ताक्षरित सूची के साथ नामांकन में दाखिल करना होगा।
- इन प्रस्तावकों और समर्थकों को निर्वाचक मंडल के सदस्यों में से चुना जाना चाहिये।
- मतदान प्रक्रिया: राष्ट्रपति चुनाव में निर्वाचक मंडल के मतदाता किसी पार्टी के उम्मीदवार को मत नहीं देते हैं, बल्कि वरीयता क्रम में उम्मीदवारों के नाम मतपत्र पर लिखते हैं।
- यह प्रणाली मतदाताओं को एकल विकल्प के स्थान पर अपनी प्राथमिकताएँ व्यक्त करने की सुविधा प्रदान करता है।
- वोट के मूल्य का परिकलन: मतदान प्रणाली में सांसदों और विधायकों द्वारा दिये गए वोटों का अलग-अलग मूल्य निर्धारित है:
- किसी सांसद के वोट का मूल्य: प्रत्येक सांसद, चाहे वह लोकसभा से हो या राज्यसभा से, का वोट मूल्य 700 निर्धारित है।
- किसी विधायक के वोट का मूल्य: प्रत्येक विधायक के वोट का मूल्य राज्य की जनसंख्या को उसकी विधानसभा में विधायकों की संख्या से भाग देकर निर्धारित किया जाता है और प्राप्त भागफल को 1000 से विभाजित किया जाता है। उदाहरण के लिये, उत्तर प्रदेश में प्रत्येक विधायक का वोट मूल्य अधिकतम (208) है जबकि अरुणाचल प्रदेश में सबसे कम (8) है।
- जीत का कोटा: उम्मीदवार को जीतने के लिये दिये गए कुल वोटों का 50% + 1 वोट हासिल करना होता है। यह आम चुनावों से अलग है जहाँ साधारण बहुमत ही पर्याप्त होता है।
नोट: जम्मू-कश्मीर में विधानसभा की अनुपस्थिति के कारण वोट का मूल्य 708 से घटकर 700 हो गया।
भारत के राष्ट्रपति के लिये संबंधित सांविधानिक प्रावधान
- अनुच्छेद 54: राष्ट्रपति का निर्वाचन
- अनुच्छेद 55: राष्ट्रपति के निर्वाचन की रीति।
- अनुच्छेद 56: राष्ट्रपति की पदावधि
- अनुच्छेद 57: पुनर्निर्वाचन के लिये पात्रता।
- अनुच्छेद 58: राष्ट्रपति निर्वाचित होने के लिये अर्हताएँ
भारतीय और अमेरिकी राष्ट्रपतियों की कार्यप्रणाली में क्या समानता है?
- राज्य (देश) प्रमुख: दोनों राज्य के औपचारिक प्रमुख के रूप में कार्य करते हैं, आधिकारिक समारोहों और राजनयिक आयोजनों में राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- निर्वाचन प्रक्रिया: दोनों को अपनी-अपनी भूमिकाओं का निर्वाह करने हेतु निर्वाचित किया जाता है, हालाँकि निर्वाचन की प्रक्रिया में भिन्नता होती है (भारत में अप्रत्यक्ष, अमेरिका में प्रत्यक्ष)।
- वीटो शक्ति: दोनों को अपने-अपने विधायी निकायों द्वारा पारित विधान पर वीटो लगाने का प्राधिकार है।
- आपातकाल शक्तियाँ: दोनों ही देश आपातकाल की उद्घोषणा कर सकते हैं और विशेष शक्तियाँ ग्रहण कर सकते हैं, हालाँकि इन शक्तियों की प्रकृति एवं सीमा में भिन्नता होती है।
- राजनयिक भूमिका: दोनों राष्ट्रपतियों के पास संधियों पर वार्ता करने और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में अपने देशों का प्रतिनिधित्व करने की शक्ति है।
- औपचारिक कर्त्तव्य: दोनों विभिन्न औपचारिक कर्त्तव्यों का पालन करते हैं, जिनमें नए अधिनियमों की शुरुआत, सम्मान प्रदान करना और विदेशी गणमान्य व्यक्तियों की मेज़बानी शामिल है।
भारतीय और अमेरिकी राष्ट्रपतियों की कार्यप्रणाली में क्या अंतर है?
पहलू |
भारतीय राष्ट्रपति |
अमेरिकी राष्ट्रपति |
शक्तियाँ |
सीमित कार्यकारी शक्तियाँ, मुख्य रूप से औपचारिक भूमिका का निर्वहन, जबकि वास्तविक शक्ति प्रधानमंत्री के पास होती है। |
कार्यकारी शाखा का नेतृत्व करने वाले राज्य और सरकार दोनों के प्रमुख के रूप में कार्य करने वाला महत्त्वपूर्ण कार्यकारी प्राधिकारी। |
कार्यप्रणाली |
मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करता है; प्रधानमंत्री के साथ सामूहिक रूप से लिये गए निर्णय। |
कार्यकारी निर्णय लेने, अधिकारियों की नियुक्ति करने और स्वतंत्र रूप से कार्यकारी आदेश जारी करने की स्वायत्तता। |
निर्वाचन प्रक्रिया |
संसद और राज्य विधानसभाओं के सदस्यों के निर्वाचक मंडल द्वारा निर्वाचित। |
प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली के माध्यम से निर्वाचित, जहाँ नागरिक निर्वाचकों के लिये मतदान करते हैं, जो फिर राष्ट्रपति के लिये मतदान करते हैं। |
पदावधि |
पाँच वर्ष का कार्यकाल पूरा करता है , किसी भी संख्या में पुनः निर्वाचित होने के लिये पात्र होता है। |
चार वर्ष का कार्यकाल पूरा करता है, एक अतिरिक्त कार्यकाल (कुल आठ वर्ष) के लिये पुनः निर्वाचित हो सकता है । |
महाभियोग |
संविधान का उल्लंघन करने के लिये महाभियोग लगाया जा सकता है, जिसके लिये संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है। |
राष्ट्रपति पर राजद्रोह, रिश्वतखोरी या अन्य गंभीर अपराध या दुराचार के लिये महाभियोग लगाया जा सकता है।" महाभियोग प्रतिनिधि सभा द्वारा शुरू किया जाता है, जिसके बाद सीनेट द्वारा मुकदमा चलाया जाता है। |
कार्यपालक प्राधिकारी |
सीमित स्वतंत्र प्राधिकार के साथ मुख्य रूप से प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल की सलाह पर शक्तियों का प्रयोग करता है। |
स्वतंत्र रूप से कार्य करने, संघीय अधिकारियों को नियुक्त करने और कॉन्ग्रेस की स्वीकृति के बिना कार्यकारी शाखा को निर्देशित करने का अधिकार है। |
विशेषाधिकार |
आधिकारिक क्षमता में कार्यों के लिये कानूनी कार्यवाही से प्रतिरक्षा के संबंध में कुछ विशेषाधिकार हैं। |
कॉन्ग्रेस और न्यायालयों से जानकारी गुप्त रखने के लिये कार्यकारी विशेषाधिकार सहित व्यापक विशेषाधिकार प्राप्त हैं। |
उन्मुक्ति |
आधिकारिक कार्यों के लिये विधिक कार्यवाही से उन्मुक्ति, लेकिन व्यक्तिगत कार्यों के लिये मुकदमा चलाया जा सकता है। |
कार्यालय में रहते हुए की गई कार्रवाइयों के लिये सिविल मुकदमों से उन्मुक्ति लेकिन अवैध गतिविधियों के लिये आपराधिक आरोपों का सामना कर सकता है। |
राजनीतिक संबद्धता |
सामान्यतः एक राजनीतिक दल से संबद्ध लेकिन कार्यालय में निष्पक्ष रूप से कार्य करने की अपेक्षा की जाती है। |
दल संबद्धता के आधार पर निर्वाचित, एक विशिष्ट राजनीतिक दल का प्रतिनिधित्व करने वाला तथा पक्षपातपूर्ण राजनीति में संलग्न। |
निष्कर्ष
अमेरिका और भारत की निर्वाचन प्रणाली संरचना, नामांकन प्रक्रिया, वोट मूल्य गणना तथा जीतने के मानदंडों में महत्त्वपूर्ण अंतर प्रदर्शित करती है। जबकि अमेरिका निर्वाचक मंडल पर निर्भर करता है, भारत की पद्धति अपने सांसदों और विधायकों के माध्यम से प्रतिनिधित्व पर ज़ोर देती है जो देश के नेता को चुनने के लिये अद्वितीय दृष्टिकोण प्रदर्शित करती है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: राष्ट्रपति चुनावों के लिये अमेरिका और भारत की चुनावी प्रणालियों में अंतर पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न: भारत के राष्ट्रपति के निर्वाचन के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) प्रश्न: भारतीय राष्ट्रपति के निर्वाचन के बारे में निम्निलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2023)
उपर्युक्त कथनों में से कितने सही है? (a) केवल 1 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. भारत एवं यू.एस.ए. दो विशाल लोकतंत्र हैं। उन आधारभूत सिद्धांतों का परीक्षण कीजिये जिन पर ये दो राजनीतिक तंत्र आधारित हैं। (2018) |