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जैव विविधता और पर्यावरण

मीथेन उत्सर्जन और ग्लोबल वार्मिंग

  • 25 Sep 2024
  • 15 min read

प्रिलिम्स के लिये:

मीथेन (CH4 ) उत्सर्जनपेरिस समझौता, कार्बन डाइऑक्साइड, ग्रीनहाउस गैस, जीवाश्म ईंधन, वायु गुणवत्ता, ओज़ोन, ग्लासगो जलवायु संधि, ग्लोबल मीथेन ट्रैकर, राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान

मेन्स के लिये:

मीथेन उत्सर्जन से निपटने हेतु भारत की पहल, वैश्विक मीथेन प्रतिज्ञा, ग्रीनहाउस गैस के रूप में मीथेन का महत्त्व तथा जलवायु परिवर्तन पर इसका प्रभाव।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों?

मीथेन (CH₄) उत्सर्जन के बढ़ने के आलोक में पेरिस समझौते द्वारा निर्धारित वैश्विक जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में चुनौतियाँ उत्पन्न हो रही हैं। कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) जलवायु संबंधी चर्चाओं में मुख्य केंद्र रही है लेकिन मीथेन (जो कहीं अधिक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस (GHG) है) की ओर इस दिशा में ध्यान आकर्षित हो रहा है। 

  • ग्लोबल वार्मिंग में मीथेन की भूमिका पर विचार करने से जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में और भी क्षमता हासिल होगी

मीथेन उत्सर्जन का जलवायु पर क्या प्रभाव होता है?

  • जलवायु प्रभाव: मीथेन ग्रीनहाउस गैस के रूप में CO2 से लगभग 80 गुना अधिक शक्तिशाली है और औद्योगिक क्रांति के बाद से वैश्विक तापन में इसका लगभग 30% का योगदान रहा है। 
    • हालाँकि यह गैस वायुमंडल में केवल 7 से 12 वर्षों तक ही रहती है। इसलिये मीथेन उत्सर्जन को कम करने या इसके सिंक को बढ़ाने से अल्पावधि में जलवायु परिवर्तन पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है, जिससे जीवाश्म ईंधन और संबंधित CO2 उत्सर्जन पर निर्भरता को कम करने की अधिक जटिल चुनौती से निपटने में सहायता मिल सकती है।
    • वर्ष 2030 तक मीथेन उत्सर्जन में 45% की कमी लाने से वैश्विक तापन में वृद्धि को 1.5°C तक सीमित रखने के पेरिस समझौते के लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद मिल सकती है।
      • मीथेन उत्सर्जन में कमी लाने तथा वायुमंडल से इसके निष्कासन को बढ़ाने से तापमान वृद्धि को कम किया जा सकता है।
  • वायु गुणवत्ता संबंधी मुद्दे: वायु गुणवत्ता में सुधार के लिये मीथेन उत्सर्जन को नियंत्रित करना महत्त्वपूर्ण है क्योंकि मीथेन क्षोभमंडलीय ओज़ोन के निर्माण में योगदान देती है, जो एक हानिकारक वायु प्रदूषक है, जिससे श्वसन स्वास्थ्य प्रभावित होता है।
  • उत्सर्जन स्रोत: मीथेन उत्सर्जन के लिये ज़िम्मेदार प्रमुख क्षेत्रों में ऊर्जा (विशेष रूप से तेल, गैस और कोयला), कृषि (मुख्य रूप से पशुधन और धान की खेती) और अपशिष्ट प्रबंधन (लैंडफिल) शामिल हैं। 
  • वैश्विक मीथेन उत्सर्जन का अनुमान प्रतिवर्ष लगभग 580 मिलियन टन है जिसमें से लगभग 40% प्राकृतिक स्रोतों से और 60% मानवीय गतिविधियों (मानवजनित उत्सर्जन) से उत्सर्जित होती है
    • इसका सबसे बड़ा मानवजनित स्रोत कृषि है, जो लगभग 25% उत्सर्जन के लिये ज़िम्मेदार है, इसके बाद ऊर्जा क्षेत्र (कोयला, तेल, प्राकृतिक गैस और जैव ईंधन) का स्थान आता है।

मीथेन उत्सर्जन को कम करने के लिये कौन से वैश्विक प्रयास चल रहे हैं?

  • वैश्विक मीथेन प्रतिज्ञा (GMP): इसे CoP26 2021 (ग्लासगो जलवायु संधि) में शुरू किया गया था और इसका उद्देश्य वर्ष 2030 तक मीथेन उत्सर्जन को वर्ष 2020 के स्तर से कम से कम 30% तक कम करना है। 
    • अमेरिका और यूरोपीय संघ के नेतृत्व में GMP में अब 158 देश भागीदार हैं, जो वैश्विक मानवजनित मीथेन उत्सर्जन के 50% से अधिक की हिस्सेदारी रखते हैं।
    • भारत ने वैश्विक मीथेन प्रतिज्ञा पर हस्ताक्षर न करने का विकल्प चुना है।
  • संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP): UNEP ऊर्जा, कृषि और अपशिष्ट क्षेत्रों से मीथेन की निगरानी और उसे कम करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय मीथेन उत्सर्जन ऑब्जर्वेटरी (IMEO) और तेल एवं गैस मीथेन साझेदारी जैसी पहलों का नेतृत्व करता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी: IEA का ग्लोबल मीथेन ट्रैकर ऊर्जा क्षेत्र में उत्सर्जन को कम करने का एक अपरिहार्य उपकरण है।
  • जलवायु और स्वच्छ वायु गठबंधन (CCAC): इसके द्वारा मीथेन कटौती उपायों को लागू करने में देशों का समर्थन किया जाता है।
  • जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) की रिपोर्ट: IPCC ने वैश्विक जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिये मीथेन को कम करने के महत्त्व पर बल दिया है और देशों को अपनी जलवायु रणनीतियों में मीथेन उत्सर्जन को शामिल करने के लिये दिशानिर्देश प्रदान किये हैं।

भारत ने वैश्विक मीथेन प्रतिज्ञा को क्यों अस्वीकार कर दिया?

  • कृषि आजीविका पर प्रभाव: भारत में मीथेन उत्सर्जन के प्राथमिक स्रोत पशुधन और धान की खेती हैं। ये क्षेत्र छोटे और सीमांत किसानों के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, जो भारत के कृषि क्षेत्र का आधार हैं।
    • इन कृषि गतिविधियों से उत्पन्न मीथेन उत्सर्जन को "सर्वाइवल" उत्सर्जन माना जाता है, क्योंकि ये विलासितापूर्ण उपभोग से संबंधित होने के बजाय सीधे खाद्य उत्पादन एवं किसानों की आजीविका को प्रभावित करते हैं।
  • खाद्य सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: भारत चावल के सबसे बड़े उत्पादकों और निर्यातकों में से एक है। मीथेन उत्सर्जन में कमी (विशेष रूप से चावल की खेती से) से खाद्य सुरक्षा को खतरा हो सकता है, जिससे घरेलू आपूर्ति एवं निर्यात क्षमता दोनों ही प्रभावित हो सकती हैं।
    • कृषि उत्पादन पर संभावित नकारात्मक प्रभाव से किसानों की आय और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को खतरा हो सकता है।
  • CO2 पर ध्यान न देना: भारत का मानना ​​है कि CO2 (जिसकी समाप्ति अवधि 100-1000 वर्ष है) जलवायु परिवर्तन में प्राथमिक योगदानकर्त्ता है जबकि इस प्रतिज्ञा में मीथेन में कमी लाने पर ध्यान केंद्रित किया गया है जिसकी समाप्ति अवधि कम है, जिससे CO2 में कमी लाने के भार में बदलाव आता है।
  • जलवायु संबंधी कार्यवाही निर्धारित करने का संप्रभु अधिकार: पेरिस समझौते के तहत भारत के राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) के तहत क्षेत्र-विशिष्ट उत्सर्जन कटौती लक्ष्य निर्धारित नहीं किये गए हैं, जिससे देश को राष्ट्रीय परिस्थितियों एवं प्राथमिकताओं के आधार पर अपनी जलवायु संबंधी कार्यवाही निर्धारित करने की अनुमति मिलती है।
  • भारत सरकार ने अपने आकलन के माध्यम से यह निर्धारित किया कि शपथ-पत्र पर हस्ताक्षर करना उसके राष्ट्रीय हितों के अनुरूप नहीं होगा।

भारत मीथेन उत्सर्जन किस प्रकार कम कर रहा है?

  • जलवायु समझौतों में भारत की भागीदारी: भारत जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCC) का पक्षकार है, जिसमें क्योटो प्रोटोकॉल और पेरिस समझौता भी शामिल है, जिसका उद्देश्य ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन को कम करना है।
  • सतत् कृषि पर राष्ट्रीय मिशन (NMSA): कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित, NMSA धान की खेती में मीथेन उत्सर्जन को कम करने की तकनीकों सहित जलवायु-अनुकूल प्रथाओं को बढ़ावा देता है।
  • जलवायु अनुकूल कृषि में राष्ट्रीय नवाचार (NICRA): भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने चावल उत्पादन में मीथेन उत्सर्जन को कम करने के लिये कई प्रौद्योगिकियाँ विकसित की हैं:
    • चावल गहन प्रणाली (SRI): इससे चावल की उपज में 36-49% की वृद्धि होती है तथा परंपरागत तरीकों की तुलना में 22-35% कम जल का उपयोग होता है, जिससे मीथेन उत्सर्जन में कमी आती है।
    • चावल का प्रत्यक्ष बीजारोपण (DSR): DSR प्रणाली मीथेन उत्सर्जन को कम करती है क्योंकि इसमें नर्सरी तैयार करना और रोपाई करना शामिल नहीं होता है।
    • फसल विविधीकरण कार्यक्रम: धान की खेती के स्थान पर अन्य फसलों जैसे दालें, तिलहन, मक्का और कपास की खेती को अपनाने से चावल के खेतों से मीथेन उत्सर्जन में कमी आती है।
  • क्षमता निर्माण कार्यक्रम: भारत भर में कृषि विज्ञान केंद्र किसानों के लिये जलवायु-अनुकूल और मीथेन-कम करने वाली कृषि पद्धतियों पर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करते हैं।
  • राष्ट्रीय पशुधन मिशन: पशुपालन और डेयरी विभाग (DAHD) के तहत यह मिशन निम्नलिखित को बढ़ावा देता है:
    • नस्ल सुधार और संतुलित राशनिंग: पशुओं को संतुलित और बेहतर गुणवत्ता वाला आहार खिलाने से मीथेन उत्सर्जन में कमी आती है।
    • हरा चारा उत्पादन और साइलेज बनाना: पशुधन से उत्सर्जन को कम करने के लिये हरा चारा उत्पादन, भूसा और कुल मिश्रित राशन प्रथाओं को प्रोत्साहित करता है।
  • गोबरधन योजना (जैव-कृषि संसाधनों को समृद्ध करना): इससे स्वच्छ ऊर्जा और जैविक खाद के उत्पादन के लिये मवेशी अपशिष्ट के उपयोग को प्रोत्साहन मिलता है, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में पशुधन अपशिष्ट से मीथेन उत्सर्जन में कमी आती है।
    • नया राष्ट्रीय बायोगैस और जैविक खाद कार्यक्रम गाँवों में मवेशी अपशिष्ट उपयोग और स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन को प्रोत्साहित करता है। 

मीथेन

  • मीथेन सबसे सरल हाइड्रोकार्बन है जिसमें एक कार्बन परमाणु और चार हाइड्रोजन परमाणु (CH4) होते हैं। यह प्राकृतिक गैस का प्राथमिक घटक है, जिसमें मुख्य विशेषताएँ होती हैं: गंधहीन, रंगहीन और स्वादहीन गैस। 
    • यह पूर्ण दहन में नीली लौ के साथ जलती है तथा ऑक्सीजन की उपस्थिति में कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) और जल (H2O) उत्पन्न करती है।
  • ग्लोबल वार्मिंग क्षमता (GWP) एक माप है जिससे पता चलता है कि एक टन गैस का उत्सर्जन एक निश्चित अवधि में एक टन कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन के सापेक्ष कितनी ऊर्जा अवशोषित करेगा। 
    • मीथेन का GWP 28 है, अर्थात यह कार्बन डाइऑक्साइड से 28 गुना अधिक शक्तिशाली है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में मीथेन उत्सर्जन के महत्त्व पर चर्चा कीजिये। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. ‘मीथेन हाइड्रेट’ के निक्षेपों के बारे में निम्नलिखित में से कौन-से कथन सही हैं?  (2019)

1. भूमंडलीय तापन के कारण इन निक्षेपों से मीथेन गैस का निर्मुक्त होना प्रेरित हो सकता है।
2. ‘मीथेन हाइड्रेट’ के विशाल निक्षेप उत्तरी ध्रुवीय टुंड्रा में तथा समुद्र अधस्तल के नीचे पाए जाते हैं।
3. वायुमंडल के अंदर मीथेन एक या दो दशक के बाद कार्बन डाइऑक्साइड में ऑक्सीकृत हो जाती है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


मुख्य:

प्रश्न. 'जलवायु परिवर्तन' एक वैश्विक समस्या है। जलवायु परिवर्तन से भारत कैसे प्रभावित होगा? भारत के हिमालयी और तटीय राज्य जलवायु परिवर्तन से कैसे प्रभावित होंगे? (2017)

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