आपात उपबंध
- भारतीय संविधान में आपात उपबंधों को तीन भागों में बाँटा गया है- राष्ट्रीय आपात (अनुच्छेद-352), राज्यों में संवैधानिक तंत्र की विफलता/राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद-356) और वित्तीय आपात (अनुच्छेद-360)।
- हम यहाँ पर केवल राष्ट्रीय आपात की विस्तार से चर्चा करेंगे।
भारतीय संविधान में आपात उपबंध
- आपात उपबंध भारत शासन अधिनियम-1935 से लिये गए हैं।
- भारतीय संविधान के भाग XVIII में अनुच्छेद 352 से 360 तक आपातकाल से संबंधित उपबंध उल्लिखित हैं।
- ये प्रावधान केंद्र को किसी भी असामान्य स्थिति से प्रभावी रूप से निपटने में सक्षम बनाते हैं।
- संविधान में इन प्रावधानों को जोड़ने का उद्देश्य देश की संप्रभुता, एकता, अखंडता, लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था तथा संविधान की सुरक्षा करना है।
उद्घोषणा- अनुच्छेद 352 में निहित है कि ‘युद्ध’ - ‘बाह्य आक्रमण’ या ‘सशस्त्र विद्रोह’ के कारण संपूर्ण भारत या इसके किसी हिस्से की सुरक्षा खतरें में हो तो राष्ट्रपति राष्ट्रीय आपात की घोषणा कर सकता है।
- मूल संविधान में ‘सशस्त्र विद्रोह’ की जगह ‘आंतरिक अशांति’ शब्द का उल्लेख था।
- 44वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1972 द्वारा ‘आंतरिक अशांति’ को हटाकर उसके स्थान पर ‘सशस्त्र विद्रोह’ शब्द किया गया।
- जब आपातकाल की घोषणा युद्ध अथवा बाह्य आक्रमण के आधार पर की जाती है, तब इसे बाह्य आपातकाल के नाम से जाना जाता है।
- दूसरी ओर, जब इसकी घोषणा सशस्त्र विद्रोह के आधार पर की जाती है तब इसे ‘आंतरिक आपातकाल’ के नाम से जाना जाता है।
- राष्ट्रीय आपात की उद्घोषणा संपूर्ण देश अथवा केवल इसके किसी एक भाग पर लागू हो सकती है।
- मिनर्वा मिल्स मामले (1980) में उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि राष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषणा को अदालत में चुनौती दी जा सकती है।
उद्घोषणा की प्रक्रिया एवं अवधि
- अनुच्छेद 352 के आधार पर राष्ट्रपति तब तक राष्ट्रीय आपात की उद्घोषणा नहीं कर सकता जब तक संघ का मंत्रिमंडल लिखित रूप से ऐसा प्रस्ताव उसे न भेज दे।
- यह प्रावधान 44वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1978 द्वारा जोड़ा गया।
- ऐसी उद्घोषणा का संकल्प संसद के प्रत्येक सदन की कुल सदस्य संख्या के बहुमत तथा उपस्थिति व मतदान करने वाले सदस्यों को 2/3 बहुमत द्वारा पारित किया जाना आवश्यक होगा।
- राष्ट्रीय आपात की घोषणा को संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखा जाता है तथा एक महीने के अंदर अनुमोदन न मिलने पर यह प्रवर्तन में नहीं रहती, किंतु एक बार अनुमोदन मिलने पर छह माह के लिये प्रवर्तन में बनी रह सकती है।
उद्घोषणा की समाप्ति
- राष्ट्रपति द्वारा आपातकाल की उद्घोषणा को किसी भी समय एक दूसरी उद्घोषणा से समाप्त किया जा सकता है।
- ऐसी उद्घोषणा के लिये संसदीय अनुमोदन की आवश्यकता नहीं होगी।
- इसके अतिरिक्त राष्ट्रपति के लिये ऐसी उद्घोषणा को समाप्त कर देना आवश्यक होता है जिसे जारी रखने के अनुमोदन प्रस्ताव को लोकसभा निरस्त कर दे।
प्रभाव
1. केंद्र-राज्य संबंध पर प्रभाव
(अ) कार्यपालक
- केंद्र को किसी राज्य को किसी भी विषय पर कार्यकारी निर्देश देने की शक्ति प्राप्त हो जाती है।
- यद्यपि, राज्य सरकारों को निलंबित नहीं किया जाता।
(ब) विधायी
- संसद को राज्य सूची में वर्णित विषयों पर कानून बनाने का अधिकार प्राप्त हो जाता है।
- यद्यपि, किसी राज्य विधायिका की विधायी शक्तियों को निलंबित नहीं किया जाता।
- उपरोक्त कानून, आपातकाल की समाप्ति के बाद छह माह तक प्रभावी रहते हैं।
- यदि संसद का सत्र नहीं चल रहा हो तो राष्ट्रपति, राज्य सूची के विषयों पर भी अध्यादेश जारी कर सकता है।
(स) वित्तीय
- राष्ट्रपति, केंद्र तथा राज्यों के मध्य करों के संवैधानिक वितरण को संशोधित कर सकता है।
- ऐसे संशोधन उस वित्त वर्ष की समाप्ति तक जारी रहते हैं, जिसमें आपातकाल समाप्त होता है।
2. लोकसभा तथा राज्य विधानसभा के कार्यकाल पर प्रभाव
- लोकसभा के कार्यकाल को इसके सामान्य कार्यकाल (5 वर्ष) से आगे बढ़ाने के लिये संसद द्वारा विधि बनाकर इसे एक समय में एक वर्ष के लिये (कितने भी समय तक) बढ़ाया जा सकता है।
- इसी प्रकार, संसद किसी राज्य विधानसभा का कार्यकाल भी प्रत्येक बार एक वर्ष के लिये (कितने भी समय तक) बढ़ा सकती है।
- उपरोक्त दोनों विस्तार आपातकाल की समाप्ति के बाद अधिकतम छह माह तक के लिये ही लागू रहते हैं।
3. मूल अधिकारों पर प्रभाव
- आपातकाल के समय मूल अधिकारों के स्थगन का प्रावधान जर्मनी के वाइमर संविधान से लिया गया है।
- अनुच्छेद 358 तथा 359 राष्ट्रीय आपातकाल में मूल अधिकार पर पड़ने वाले प्रभाव का वर्णन करते हैं।
- अनुच्छेद 358, अनुच्छेद 19 द्वारा दिये गए मूल अधिकारों के निलंबन से संबंधित है।
- जबकि अनुच्छेद 359 अन्य मूल अधिकारों के निलंबन (अनुच्छेद 20 तथा 21 द्वारा प्रदत्त अधिकारों को छोड़कर) से संबंधित है।
(अ)
- अनुच्छेद 358 के अनुसार, जब राष्ट्रीय आपत की उद्घोषणा की जाती है तब अनुच्छेद 19 द्वारा प्रदत्त छह मूल अधिकार स्वत: ही निलंबित हो जाते हैं।
- जब राष्ट्रीय आपातकाल समाप्त हो जाता है तो अनुच्छेद 19 स्वत: पुनर्जीवित हो जाता है।
- अनुच्छेद 19 द्वारा प्रदत्त 6 मूल अधिकारों को युद्ध अथवा बाह्य आक्रमण के आधार पर घोषित आपातकाल में ही निलंबित किया जा सकता है।
(ब)
- अनुच्छेद 359 के अंतर्गत मूल अधिकार नहीं अपितु उनका लागू होना निलंबित होता है। (अनुच्छेद 20 व 21 को छोड़कर)
- यह निलंबन उन्हीं मूल अधिकारों से संबंधित होता है जो राष्ट्रपति के आदेश में वर्णित होते हैं
- अनुच्छेद 359 के अंतर्गत निलंबन आपातकाल की अवधि अथवा आदेश में वर्णित अल्पावधि हेतु लागू हो सकता है और निलंबन का आदेश पूरे देश अथवा किसी भाग पर लागू किया जा सकता है।
अब तक की गई ऐसी घोषणाएँ
- अब तक तीन बार राष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषणा की जा चुकी है-
- अक्तूबर 1962 से जनवरी 1968 तक-चीन द्वारा 1962 में अरुणाचल प्रदेश के नेफा (North-East Fronfier Agency) क्षेत्र पर हमला करने के कारण।
- दिसंबर 1971 से मार्च 1977 तक पाकिस्तान द्वारा भारत के विरुद्ध अघोषित युद्ध छेड़ने के कारण।
- जून 1975 से मार्च 1977 तक आंतरिक अशांति के आधार पर।