भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत के निर्यात में कमी
- 16 Dec 2022
- 12 min read
प्रिलिम्स के लिये:भारत के निर्यात की स्थिति, निर्यात प्रोत्साहन से संबंधित पहल। मेन्स के लिये:भारत के निर्यात में कमी संबंधी चिंताएँ। |
चर्चा में क्यों?
अक्तूबर 2022 में वर्ष 2021 की इसी अवधि की तुलना में भारत के निर्यात में लगभग 16.7% की गिरावट आई है जिससे निर्यात में धीमापन चिंता का विषय बन गया है।
- अक्तूबर में स्टील और संबद्ध उत्पादों के निर्यात में 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर की गिरावट दर्ज की गई है।
- इलेक्ट्रॉनिक सामानों के निर्यात में लगभग 38% की वृद्धि हुई जो 1.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर की रही।
धीमी निर्यात मांग के कारक:
- कम वैश्विक मांग:
- विकसित देशों में लगातार उच्च मुद्रास्फीति के मद्देनज़र वैश्विक आर्थिक विकास में तेज़ी से गिरावट देखी जा रही है और इसके परिणामस्वरूप मौद्रिक नीति को कड़ा किया जा रहा है।
- निर्यात में कमी के कुछ कारक: विकास में वैश्विक मंदी के परिणामस्वरूप भारतीय वस्तुओं की मांग में गिरावट आई है, ऐसे में ब्रिटेन और अमेरिका के मंदी की ओर बढ़ने की आशंका है, चीन द्वारा विकास हेतु संघर्ष जारी रखने के बावजूद यूरोपीय क्षेत्र के स्थिर होने की सबसे अधिक संभावना है।
- मुद्रास्फीति:
- बाह्य कारकों की तुलना में स्थानीय कारकों ने मुद्रास्फीति में अधिक योगदान दिया है, विशेष रूप से बढ़ती खाद्य लागत और वैश्विक वस्तुओं की कीमतों में गिरावट तथा खरीफ फसल की शुरुआत के परिणामस्वरूप इन दबावों में कमी आने की उम्मीद है।
- विगत कुछ महीनों में खुदरा मुद्रास्फीति लगातार 7% से ऊपर रही है, लेकिन अक्तूबर 2022 में यह 6.8% रही।
- तेल और अन्य निर्यात में गिरावट:
- तेल निर्यात सितंबर 2022 के 43.0% से घटकर -11.4% पर पहुँच गया है जिसका आंशिक कारण वैश्विक कच्चे तेल की कम कीमतें हैं, जबकि गैर-तेल निर्यात वर्ष-दर-वर्ष गिरावट के साथ -16.9% तक पहुँच गया है जिसमें लौह अयस्क, हस्तशिल्प, वस्त्र में व्यापक गिरावट के साथ कृषि सामान, प्लास्टिक, रत्न और आभूषण, इंजीनियरिंग सामान, रसायन, फार्मास्यूटिकल्स तथा चमड़े के सामान आदि आते हैं।
- इंजीनियरिंग सामान, जिसमें हाल के वर्षों में भारत की अच्छी स्थिति थी, में भी 21% की गिरावट आई है।
- विश्व-व्यापार संबंधी तनाव:
- अमेरिका और चीन के बीच हालिया व्यापार युद्ध और अन्य वैश्विक व्यापार युद्धों से पूरे विश्व का विकास प्रभावित हुआ है।
- इसने भारतीय अर्थव्यवस्था सहित दुनिया के विभिन्न हिस्सों में विनिर्माण और निर्यात को प्रभावित किया है।
अर्थव्यवस्था के लिये सकारात्मक संकेत:
- निर्यात परिदृश्य के धीमे होने के बावजूद घरेलू मांग बनी रहने की संभावना है।
- निवेश चक्र फिर से मज़बूत होगा जो आने वाले समय में विकास और रोज़गार सृजन को बढ़ावा देगा।
- वित्त वर्ष 2022-23 में निजी क्षेत्र का पूंजीगत व्यय छह लाख करोड़ को छूने को है, जो विगत छह वर्षों में सबसे अधिक होगा।
- निजी कैपेक्स आमतौर पर बैंकिंग प्रणाली से क्रेडिट या ऋण पर निर्भर करता है।
- इसमें सितंबर 2022 में 18% की उच्च स्तर की वृद्धि देखी गई है।
अन्य निर्यातक देशों के संदर्भ में:
- निर्यात प्रधान देश वियतनाम ने सतत् विदेशी मांग' के बीच निर्यात में एक वर्ष पहले की तुलना में 4.5% की वृद्धि दर्ज की और यह 29.18 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गई।
- इसी तरह फिलीपींस द्वारा किया जाने वाला निर्यात अक्तूबर, 2022 में 20% बढ़ा।
- वहाँ की सरकार का कहना था कि सितंबर में तीन महीने में पहली बार निर्यात बढ़ा, जिसे वह 'विदेशी मांग को पुनर्जीवित करने का संकेत' मानती है।
- सख्त लॉकडाउन के कारण 2022 में चीन एक मात्र देश है, जो विनिर्माण उत्पादन को प्रभावित कर रहा है, हालाँकि वर्तमान में प्रतिबंधों के खिलाफ विरोध के बाद लॉकडाउन में ढील दी जा रही है।
भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार:
- 2 दिसंबर को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार लगभग 561 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
- अक्तूबर का आयात, बेंचमार्क के रूप में 56.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर (आठ महीने का निचला स्तर) का था।
- हालाँकि अर्थशास्त्रियों का मानना है कि यह वर्ष 2013 जितना खराब नहीं था, जब विदेशी निवेशकों ने भारत के वित्तीय बाज़ारों से हाथ खींचना शुरू कर दिया था।
- उस समय भारत के पास सात महीने से कम का आयात कवर था।
- हाल के हफ्तों में विदेशी मुद्रा भंडार में कुछ वृद्धि हुई है, यह भविष्य के लिये आशा का संकेत है।
नोट:
- आयात कवर इस बात का माप है कि किसी देश के केंद्रीय बैंक द्वारा रखे गए विदेशी मुद्रा भंडार द्वारा कितने महीनों के आयात को कवर किया जा सकता है।
- यह मुद्रा की स्थिरता का एक महत्वपूर्ण संकेतक है।
भारत की निर्यात प्रोत्साहन योजनाएंँ (India’s Export Promotion Schemes):
- भारत से पण्य वस्तु निर्यात योजना:
- MEIS को विदेश व्यापार नीति (FTP) 2015-20 में पेश किया गया था। इसके तहत सरकार उत्पाद और देश के आधार पर शुल्क लाभ प्रदान करती है।
- इस योजना में पुरस्कार के तहत देय फ्री-ऑन-बोर्ड वेल्यू (2%, 3% और 5%) के प्रतिशत के रूप में दी जाती है तथा MEIS ड्यूटी क्रेडिट स्क्रिप को स्थानांतरित किया जा सकता है या मूल सीमा शुल्क सहित कई कार्यों के भुगतान हेतु उपयोग किया जा सकता है।
- भारत योजना से सेवा निर्यात:
- इससे पहले वित्तीय वर्ष 2009-2014 के लिये इस योजना को भारत योजना (SFIS योजना) से सेवा के रूप में नामित किया गया था।
- इसे भारत की विदेश व्यापार नीति 2015-2020 के तहत अप्रैल 2015 में 5 वर्षों के लिये लॉन्च किया गया था।
- इसके तहत वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा भारत में स्थित सेवा निर्यातकों को भारत से सेवाओं के निर्यात को बढ़ावा देने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है।
- इससे पहले वित्तीय वर्ष 2009-2014 के लिये इस योजना को भारत योजना (SFIS योजना) से सेवा के रूप में नामित किया गया था।
- निर्यात उत्पादों पर शुल्क और करों की छूट (RoDTEP):
- ITC कच्चे माल, उपभोग्य सामग्रियों, वस्तुओं या सेवाओं की खरीद पर दिये जाने वाले कर पर प्रदान किया जाता है जिसका उपयोग वस्तुओं या सेवाओं के निर्माण में किया जाता था। यह दोहरे कराधान एवं करों के व्यापक प्रभाव से बचने में मदद करता है।
- यह भारत में निर्यात बढ़ाने में मदद करने हेतु वस्तु और सेवा कर (Goods and Service Tax- GST) में इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) के लिये पूरी तरह से स्वचालित मार्ग है।
- ITC कच्चे माल, उपभोग्य सामग्रियों, वस्तुओं या सेवाओं की खरीद पर दिये जाने वाले कर पर प्रदान किया जाता है जिसका उपयोग वस्तुओं या सेवाओं के निर्माण में किया जाता था। यह दोहरे कराधान एवं करों के व्यापक प्रभाव से बचने में मदद करता है।
- राज्य एवं केंद्रीय करों और लेवी की छूट:
- मार्च 2019 में घोषित RoSCTL को एम्बेडेड स्टेट (Embedded State) और केंद्रीय ज़िम्मेदारियों (Central Duties) तथा उन करों के लिये पेश किया गया था जो माल एवं सेवा कर (GST) के माध्यम से वापस प्राप्त नहीं होते हैं।
- यह केवल कपड़ों और निर्मित वस्तुओं के लिये उपलब्ध था। इसे कपड़ा मंत्रालय द्वारा पेश किया गया था।
- इससे पहले यह राज्य करारोपण से मुक्त (Rebate for State Levies- ROSL) था।
आगे की राह
- भारत के निर्यात में कमी बरकरार रहने की संभावना है क्योंकि वैश्विक विकास मंद रहने की संभावना है। भारत के निर्यात में कमी सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के विकास पर प्रभाव डालेगी।
- सरकार को ऐतिहासिक व्यापार असंतुलन और निर्यात की धीमी गति दोनों को दूर करने के लिये एक संशोधित विदेश नीति लाने की तत्काल आवश्यकता है, बजाय इसके कि वह अगले अप्रैल तक नई नीति जारी करने का इंतज़ार करे।
- सरकार को निवेश और बचत के माध्यम से ऋण चक्र में सुधार के लिये उचित उपाय करने चाहिये एवं विदेशी निवेश को बढ़ावा देने से भविष्य में अर्थव्यवस्था को मंदी से निजात मिलेगी।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)प्रश्न. भारतीय रुपए के अवमूल्यन को रोकने के लिये सरकार/RBI द्वारा निम्नलिखित में से कौन सा सबसे संभावित उपाय नहीं है? (2019) (a) गैर-आवश्यक वस्तुओं के आयात पर अंकुश लगाना और निर्यात को बढ़ावा देना। उत्तर: (d) प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा कभी-कभी समाचारों में आने वाला पद 'आयात आवरण' (इंपोर्ट कवर) का सर्वोत्तम वर्णन करता है? (2016) (a) यह किसी देश के सकल घरेलू उत्पाद के आयात के मूल्य का अनुपात है। उत्तर: (d) प्रश्न. श्रम प्रधान निर्यात के लक्ष्य को प्राप्त करने में विनिर्माण क्षेत्र की विफलता का कारण बताइये। पूंजी-गहन निर्यात के बजाय अधिक श्रम-प्रधान निर्यात के उपाय सुझाइये। (मुख्य परीक्षा, 2017) |