भारतीय राजनीति
राज्य विधानसभा की बैठकें
- 30 Jul 2022
- 9 min read
प्रिलिम्स के लिये:राज्य विधानमंडल, संसद, अध्यादेश, गैर-सरकारी सदस्य विधेयक, संविधान के कामकाज़ की समीक्षा करने के लिये राष्ट्रीय आयोग मेन्स के लिये:सदन की बैठकों का महत्त्व, निष्क्रिय बैठकों पर सुझाव, बैठकों में वृद्धि से संबंधित लाभ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च द्वारा "राज्य कानूनों की वार्षिक समीक्षा, 2021" नामक शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की गई थी।
- रिपोर्ट के अनुसार केरल को वर्ष 2021 में पहला स्थान प्राप्त हुआ, जिसमें इसकी विधानसभा की बैठक 61 दिनों तक चली, जो किसी भी राज्य में सबसे अधिक है।
- केरल में 144 अध्यादेश भी जारी किये गए, जो पिछले साल देश में सबसे अधिक थे।
रिपोर्ट के मुख्य बिंदु:
- बैठकें:
- मणिपुर, ओडिशा, पंजाब और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों ने प्रक्रिया नियमों के माध्यम से बैठक के दिनों की न्यूनतम संख्या निर्धारित की है, जो पंजाब में 40 दिनों से लेकर उत्तर प्रदेश में 90 दिनों तक भिन्न-भिन्न है।
- वर्ष 2005 में कर्नाटक सरकार ने कम-से-कम 60 दिनों तक की बैठक की शर्त के साथ कर्नाटक राज्य विधानमंडल में सरकारी कामकाज का संचालन अधिनियम भी प्रस्तुत किया था।
- अध्यादेश:
- इस मामले में केरल के बाद 20 अध्यादेशों के साथ आंध्र प्रदेश और 15 के साथ महाराष्ट्र का स्थान रहा, जिनमें से 33 अध्यादेशों को प्रतिस्थापित करने के लिये लाए गए विधेयकों ने अधिनियम का रूप लिया।
- आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश ने भी बजट प्रस्तावों को प्रभावी बनाने के लिये अध्यादेश जारी किये।
- विधेयकों के पारित होने की स्थिति:
- 28 राज्य विधानसभाओं द्वारा अपनाए गए विधेयकों में से 44% विधेयकों को पेश किये जाने के एक दिन के भीतर ही पारित कर दिया गया।
- गुजरात, पश्चिम बंगाल, पंजाब और बिहार उन आठ राज्यों में शामिल थे, जिन्होंने पुरःस्थापन के दिन सभी विधेयकों को पारित किया।
- कर्नाटक, केरल, मेघालय, ओडिशा और राजस्थान ने अपने अधिकांश विधेयकों को पारित करने में पाँच दिन से अधिक का समय लिया।
- केरल में 94% विधेयकों को विधायिका में पेश किये जाने के कम-से-कम पाँच दिनों के बाद पारित किया गया।
- मेघालय के संबंध में यह दर 80% और कर्नाटक के मामले में 70% रही।
- 28 राज्य विधानसभाओं द्वारा अपनाए गए विधेयकों में से 44% विधेयकों को पेश किये जाने के एक दिन के भीतर ही पारित कर दिया गया।
- बैठकों के फोकस क्षेत्र:
- इस विषय से संबंधित वर्ष 2021 में पारित सभी कानूनों में से 21% के साथ शिक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता थी।
- शिक्षा, कराधान और शहरी शासन के बाद वर्ष 2021 में पारित राज्य कानूनों का सबसे बड़ा हिस्सा था।
- ऑनलाइन गेमिंग, राज्य के स्थानीय उम्मीदवारों के लिये नौकरियों में आरक्षण तथा महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा से संबंधित कई अन्य क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण कानून शामिल हैं।
एक निष्क्रिय राज्यसभा:
- संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिये राष्ट्रीय आयोग:
- संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिये राष्ट्रीय आयोग (2000-02), जिसकी अध्यक्षता भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एम.एन. वेंकटचलैया ने की थी:
- विधायिका वाले राज्य/केंद्रशासित प्रदेश के सदन:
- 70 से कम सदस्यों (उदाहरण: पुद्दुचेरी) वाली विधायिका को वर्ष में कम-से-कम 50 दिन की बैठक करनी चाहिये।
- अन्य राज्यों के सदनों (जैसे-तमिलनाडु) के लिये वर्ष में कम-से-कम 90 दिन की बैठक करना अनिवार्य है।
- विधायिका वाले राज्य/केंद्रशासित प्रदेश के सदन:
- संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिये राष्ट्रीय आयोग (2000-02), जिसकी अध्यक्षता भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एम.एन. वेंकटचलैया ने की थी:
- पीठासीन अधिकारियों का सम्मेलन:
- जनवरी 2016 के दौरान गांधीनगर में आयोजित पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन ने सुझाव दिया:
- राज्य विधानसभाओं में एक वर्ष में कम-से-कम 60 दिन की बैठक हो।
- PRS के अनुसार, वर्ष 2016 और 2021 के बीच 23 राज्य विधानसभाओं में औसतन 25 दिनों की बैठक हुई थी।
- PRS के अनुसार, वर्ष 2016 और 2021 के बीच 23 राज्य विधानसभाओं में औसतन 25 दिनों की बैठक हुई थी।
- राज्य विधानसभाओं में एक वर्ष में कम-से-कम 60 दिन की बैठक हो।
- जनवरी 2016 के दौरान गांधीनगर में आयोजित पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन ने सुझाव दिया:
सदन की बैठकों में वृद्धि से लाभ:
- यथेष्ठ/पर्याप्त चर्चा:
- सदनों (राज्य या संसद) में बैठक के दिनों में वृद्धि कर सदस्यों को विधेयकों पर चर्चा के लिये अधिक समय मिलेगा, साथ ही तथ्य और तर्क के आधार पर स्वस्थ बहस होगी जो अंततः सदन के स्वस्थ कामकाज को सुनिश्चित करेगी।
- विधेयकों को पारित करने में सुगमता:
- जैसे-जैसे सदन में बैठकों की संख्या बढ़ती है, किसी विशेष सत्र के दौरान सदन के समक्ष प्रस्तुत किये जाने वाले विधेयकों की संख्या में वृद्धि होती है, इसके साथ ही पारित होने वाले विधेयकों की संख्या में भी वृद्धि होती है।
- विभिन्न क्षेत्रों में पारित विधेयकों की संख्या में वृद्धि सरकार को कुशल एवं प्रभावी शासन लाने में सक्षम बनाएगी।
- जैसे-जैसे सदन में बैठकों की संख्या बढ़ती है, किसी विशेष सत्र के दौरान सदन के समक्ष प्रस्तुत किये जाने वाले विधेयकों की संख्या में वृद्धि होती है, इसके साथ ही पारित होने वाले विधेयकों की संख्या में भी वृद्धि होती है।
- गिलोटिन समापन:
- यह तब होता है जब समय की कमी के कारण एक विधेयक (जिस पर चर्चा हो चुकी है) के साथ किसी अन्य विधेयक या प्रस्ताव के ऐसे खंडों को भी मतदान के लिये रखा जाता है जिस पर चर्चा नहीं की गई है (क्योंकि चर्चा के लिये आवंटित समय समाप्त हो चुका होता है)।
- बैठकों में वृद्धि से चर्चा के लिये अधिक समय मिलेगा और गिलोटिन समापन के मामलों में कमी आएगी।
- यह तब होता है जब समय की कमी के कारण एक विधेयक (जिस पर चर्चा हो चुकी है) के साथ किसी अन्य विधेयक या प्रस्ताव के ऐसे खंडों को भी मतदान के लिये रखा जाता है जिस पर चर्चा नहीं की गई है (क्योंकि चर्चा के लिये आवंटित समय समाप्त हो चुका होता है)।
- निजी सदस्य विधेयक:
- वर्ष 1952 के बाद से हज़ारों में से केवल 14 निजी सदस्य विधेयक ही कानून बने।
- बैठकों में वृद्धि से निजी सदस्यों को न केवल विधेयक तैयार करने और सदन में पेश करने के लिये अधिक समय मिलेगा, बल्कि इसके पारित होने हेतु विस्तृत एवं स्वस्थ चर्चा भी होगी।
- बैठकों में वृद्धि से निजी सदस्यों को न केवल विधेयक तैयार करने और सदन में पेश करने के लिये अधिक समय मिलेगा, बल्कि इसके पारित होने हेतु विस्तृत एवं स्वस्थ चर्चा भी होगी।
- वर्ष 1952 के बाद से हज़ारों में से केवल 14 निजी सदस्य विधेयक ही कानून बने।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs):प्रारंभिक परीक्षाप्रश्न. जब कोई विधेयक संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में भेजा जाता है, तो उसे किसके द्वारा पारित किया जाता है: (2015) (a) उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के साधारण बहुमत से उत्तर: (a) व्याख्या:
मुख्य परीक्षा:प्रश्न. भारतीय संविधान में संसद के दोनों सदनों के संयुक्त सत्र बुलाने का प्रावधान है। उन अवसरों को गिनाइये, जब सामान्यत: ऐसा होता है और उन अवसरों को भी जब ऐसा नहीं किया जा सकता है, इसके कारण भी बताइये? (2017) |