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भारतीय राजनीति

निजी सदस्य विधेयक

  • 04 Dec 2021
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राज्यसभा ने संविधान की प्रस्तावना में संशोधन करने के लिये एक निजी सदस्य विधेयक (Private Member’s Bill) पेश करने की अनुमति देने का अपना निर्णय सुरक्षित रखा।

  • विधेयक प्रस्तावना में दिये गए शब्दों "स्थिति और अवसर की समानता" (EQUALITY of status and of opportunity) को "स्थिति और पैदा होने, पोषण प्राप्त करने, शिक्षित होने, नौकरी पाने के अवसर की समानता और सम्मान के साथ व्यवहार..." (EQUALITY of status and of opportunity to be born, to be fed, to be educated, to get a job and to be treated with dignity) से प्रतिस्थापित करने की मांग करता है।

प्रस्तावना की संशोधनीयता

  • संविधान के एक भाग के रूप में संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत प्रस्तावना में तो संशोधन किया जा सकता है, लेकिन प्रस्तावना की मूल संरचना में संशोधन नहीं किया जा सकता है।
  • संविधान की संरचना प्रस्तावना के मूल तत्त्वों पर आधारित है। अभी तक 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 के माध्यम से प्रस्तावना में केवल एक बार संशोधन किया गया है।
    • इसमें तीन नए शब्द जोड़े गए- समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और अखंडता।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • संसद के ऐसे सदस्य जो केंद्रीय मंत्रिमंडल में मंत्री (Member of Parliament-MP) नहीं हैं, को एक निजी सदस्य के रूप में जाना जाता है।
    • इसका प्रारूप तैयार करने की ज़िम्मेदारी संबंधित सदस्य की होती है। सदन में इसे पेश करने के लिये एक महीने के नोटिस की आवश्यकता होती है।
    • सरकारी विधेयक/सार्वजनिक विधेयकों को किसी भी दिन पेश किया जा सकता है और उन पर चर्चा की जा सकती है, निजी सदस्यों के विधेयकों को केवल शुक्रवार को पेश किया जा सकता है और उन पर चर्चा की जा सकती है।
      • कई विधेयकों के मामले में एक मतपत्र प्रणाली का उपयोग विधेयकों को पेश करने के क्रम को तय करने के लिये किया जाता है।
      • निजी सदस्यों के विधेयकों और प्रस्तावों पर संसदीय समिति ऐसे सभी विधेयकों को देखती है और उनकी तात्कालिकता एवं महत्त्व के आधार पर उनका वर्गीकरण करती है।
    • सदन द्वारा इसकी अस्वीकृति का सरकार में संसदीय विश्वास या उसके इस्तीफे पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
    • चर्चा के समापन पर विधेयक का संचालन करने वाला सदस्य या तो संबंधित मंत्री के अनुरोध पर इसे वापस ले सकता है या वह इसके पारित होने के साथ आगे बढ़ने का विकल्प चुन सकता है।
  • पूर्ववर्ती निजी विधेयक:
    • पिछली बार दोनों सदनों द्वारा एक निजी सदस्य विधेयक 1970 में पारित किया गया था।
      • यह ‘सर्वोच्च न्यायालय (आपराधिक अपीलीय क्षेत्राधिकार का विस्तार) विधेयक, 1968’ था।
    • 14 निजी सदस्य विधेयक- जिनमें से पाँच राज्यसभा में पेश किये गए, अब कानून बन गए हैं। कुछ अन्य निजी जो कानून बन गए हैं, उनमें शामिल हैं-
      • लोकसभा कार्यवाही (प्रकाशन संरक्षण) विधेयक, 1956।
      • संसद सदस्यों के वेतन और भत्ते (संशोधन) विधेयक, 1964, लोकसभा में पेश किया गया।
      • भारतीय दंड संहिता (संशोधन) विधेयक, 1967 राज्यसभा में पेश किया गया।
  • महत्त्व:
    • निजी सदस्य विधेयक का उद्देश्य सरकार का ध्यान उस ओर आकर्षित करना है, जो कि सांसदों (मंत्रियों के अतिरिक्त) के मुताबिक, एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा है और जिसे विधायी हस्तक्षेप की आवश्यकता है।
      • इस प्रकार यह सार्वजनिक मामलों पर विपक्षी दल के रुख को दर्शाता है।

सरकारी विधेयक बनाम निजी विधेयक

सरकारी विधेयक निजी विधेयक
इसे संसद में एक मंत्री द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। यह मंत्री के अतिरिक्त किसी अन्य सांसद द्वारा प्रस्तुत किया जाता है।
यह सरकार की नीतियों को प्रदर्शित करता है। यह विपक्ष की नीतियों को प्रदर्शित करता है।
संसद में इसके पारित होने की संभावना अधिक होती है। संसद में इसके पारित होने के संभावना कम होती है।
संसद द्वारा सरकारी विधेयक अस्वीकृत होने पर सरकार को इस्तीफा देना पड़ सकता है। इसके अस्वीकृत होने पर सरकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
सरकारी विधेयक को संसद में पेश होने के लिये सात दिनों का नोटिस होना चाहिये। इस विधेयक को संसद में पेश करने के लिये एक महीने का नोटिस होना चाहिये
इसे संबंधित विभाग द्वारा विधि विभाग के परामर्श से तैयार किया जाता है। इसे संबंधित सदस्य द्वारा तैयार किया जाता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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