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भारतीय अर्थव्यवस्था

सरकारी प्रतिभूतियाँ

  • 29 Feb 2024
  • 13 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सरकारी प्रतिभूतियाँ ,भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ,राजकोषीय घाटा, ट्रेज़री बिल (टी-बिल), ओपन मार्केट ऑपरेशंस (खुले बाज़ार संचालन)

मेन्स के लिये:

सरकारी प्रतिभूतियाँ, भारतीय अर्थव्यवस्था एवं योजना, संसाधन जुटाने, वृद्धि, विकास एवं रोज़गार से संबंधित मुद्दे।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

सरकार ने चालू वित्त वर्ष 2023-24 के लिये सरकारी प्रतिभूति उधार पूरा कर लिया है और उसे वित्तीय वर्ष 25 (FR 25) में भारतीय रिज़र्व बैंक से वित्त वर्ष 24 के समान ही लाभांश की आशा है।

  • उधार लेने के प्रति सरकार का दृष्टिकोण सतर्क रहता है, वह विवेकपूर्ण राजकोषीय प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करती है साथ ही यह सुनिश्चित करती है कि उधार वास्तविक ज़रूरतों के अनुरूप हो।
  • G-Sec उधार का पूरा होना, RBI से लाभांश आय की अपेक्षाओं के साथ मिलकर, राजकोषीय स्थिरता बनाए रखने के साथ-साथ व्यय लक्ष्यों को पूरा करने के प्रयासों को दर्शाता है।

RBI द्वारा सरकार को अधिशेष हस्तांतरित करने को कौन-से नियम नियंत्रित करते हैं?

  • RBI भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 47 (अधिशेष लाभ का आवंटन) के अनुसार अपना अधिशेष सरकार को हस्तांतरित करता है।
    • वाई.एच.मालेगाम (2013) की अध्यक्षता में RBI बोर्ड की एक तकनीकी समिति, जिसने भंडार की पर्याप्तता एवं अधिशेष वितरण नीति की समीक्षा के अनुरूप सरकार को उच्च हस्तांतरण की सिफारिश की।
  • इस खंड में कहा गया है कि RBI, आरक्षित एवं बनाए रखे गए राजस्व की अनुमति देने के बाद अतिरिक्त राशि सरकार को हस्तांतरित करता है।
  • हस्तांतरित राशि विभिन्न कारकों के आधार पर निर्धारित की जाती है, जिसमें घरेलू एवं विदेशी प्रतिभूतियों की होल्डिंग्स पर ब्याज, इसकी सेवाओं से शुल्क तथा कमीशन, विदेशी मुद्रा लेन-देन से लाभ के साथ-साथ सहायक कंपनियों एवं सहयोगियों से रिटर्न जैसे स्रोतों से RBI की आय शामिल है।
    • व्यय में, RBI मुद्रा नोटों की छपाई, जमा तथा उधार पर ब्याज का भुगतान, कर्मचारियों के वेतन एवं पेंशन, कार्यालयों तथा शाखाओं के परिचालन व्यय साथ ही आकस्मिकताओं व मूल्यह्रास के प्रावधान जैसी लागतें वहन करता है।

सरकारी प्रतिभूतियाँ (G-Sec) क्या हैं?

  • परिचय:
    • सरकारी प्रतिभूति (G-Sec) केंद्र सरकार अथवा राज्य सरकारों द्वारा जारी एक व्यापार योग्य लिखत (Instrument) है। 
    • G-Sec एक प्रकार का ऋण साधन है जो सरकार द्वारा अपने राजकोषीय घाटे के वित्तपोषण हेतु जनता से धन उधार लेने के लिये जारी किया जाता है।  
      • ऋण लेख एक वित्तीय साधन है जो जारीकर्त्ता द्वारा निर्दिष्ट तिथि पर धारक को एक निश्चित राशि, जिसे मूलधन अथवा अंकित मूल्य के रूप में जाना जाता है, का भुगतान करने के लिये संविदात्मक दायित्व का प्रतिनिधित्व करता है। 
    • यह सरकार के ऋण दायित्व को स्वीकार करता है।
      • ऐसी प्रतिभूतियाँ अल्पावधि (आमतौर पर राजकोष/खजाना बिल कहलाती हैं, एक वर्ष से कम की मूल परिपक्वता के साथ- वर्तमान में तीन अवधियों में जारी की जाती हैं अर्थात् 91-दिन, 182 दिन और 364 दिन) अथवा दीर्घावधि (जिसे आमतौर पर सरकारी बॉण्ड या दिनांकित कहा जाता है, एक वर्ष अथवा उससे अधिक की मूल परिपक्वता वाली प्रतिभूतियाँ) की होती हैं।
    • भारत में केंद्र सरकार राजकोष बिल (Treasury Bill) और बॉण्ड अथवा दिनांकित प्रतिभूतियाँ दोनों जारी करती है, जबकि राज्य सरकारें केवल बॉण्ड या दिनांकित प्रतिभूतियाँ जारी करती हैं, जिन्हें राज्य विकास ऋण कहा जाता है।
    • G-Sec में व्यावहारिक रूप से डिफॉल्ट का कोई जोखिम नहीं होता है और इसलिये ये जोखिम मुक्त श्रेष्ठ प्रतिभूति लिखत (Risk-Free Gilt-Edged Instruments) कहलाते हैं।
      • श्रेष्ठ प्रतिभूति, उच्च-श्रेणी के निवेश बॉण्ड हैं जो सरकारों और बड़े निगमों द्वारा ऋण ग्रहण करने के साधन के रूप में प्रस्तुत किये जाते हैं।
  • सरकारी प्रतिभूतियों के प्रकार:
    • राजकोष बिल (T-बिल):
      • राजकोष/ट्रेज़री बिल शून्य कूपन प्रतिभूतियाँ हैं और उन पर कोई ब्याज प्रदान नहीं किया जाता है। इसके अतिरिक्त उन्हें छूट पर जारी किया जाता है और परिपक्वव होने पर इनका मोचन (Redeem) अंकित मूल्य पर किया जाता है।
    • नकद प्रबंधन बिल (CMBs):
      • वर्ष 2010 में भारत सरकार ने RBI के परामर्श से भारत सरकार के नकदी प्रवाह में अस्थायी विसंगतियों का समाधान करने के लिये एक नया अल्पकालिक साधन पेश किया जिसे CMB के रूप में जाना जाता है।
        • CMBs में सामान्यतः T-बिल के समान विशेषताएँ होती हैं किंतु यह 91 दिनों से कम की परिपक्वता अवधि के लिये जारी किया जाता है।
    • दिनाँकित G-Sec: 
      • दिनांकित G-Sec ऐसी प्रतिभूतियाँ हैं जिनमें एक निश्चित अथवा अस्थिर (Floating) कूपन दर (ब्याज दर) होती है जिसका भुगतान अंकित मूल्य पर अर्द्ध-वार्षिक आधार पर किया जाता है। दिनांकित प्रतिभूतियों की अवधि सामान्यतः 5 वर्ष से 40 वर्ष तक होती है।
    • राज्य विकास ऋण (SDL):
      • राज्य सरकारें भी बाज़ार से ऋण लेती हैं जिन्हें SDL कहा जाता है। SDL, केंद्र सरकार द्वारा जारी दिनांकित प्रतिभूतियों के लिये आयोजित नीलामी के समान सामान्य नीलामी के  माध्यम से जारी दिनांकित प्रतिभूतियाँ हैं।
  • जारी करने का तंत्र:
    • RBI धन की आपूर्ति की स्थिति को समायोजित करने के हेतु G-secs की बिक्री या खरीद के लिये खुला बाज़ार परिचालनयोजित करता है।
      • RBI द्वारा सिस्टम से तरलता को हटाने हेतु जी-सेक की बिक्री की जाती है और सिस्टम में तरलता बढ़ाने के लिये जी-सेक को वापस खरीदा जाता है।
    • बैंकों को उधार देना जारी रखने की अनुमति देते हुए मुद्रास्फीति को संतुलित करने हेतु इन कार्यों को अक्सर दैनिक आधार पर किया जाता है।
    • RBI वाणिज्यिक बैंकों के माध्यम से खुला बाज़ार परिचालन (OMO) आयोजित करता है और जनता के साथ सीधे व्यवहार नहीं करता है।
    • RBI सिस्टम में रुपए की मात्रा और कीमत को समायोजित करने हेतु रेपो दर, नकद आरक्षित अनुपात तथा वैधानिक तरलता अनुपात जैसे अन्य मौद्रिक नीति उपकरणों के साथ OMO का उपयोग करता है।

T-बिलों की खुदरा बिक्री और खरीद:

  • खरीद की विधि: खुदरा निवेशक सीधे टी-बिल खरीदने के लिये भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के साथ एक ऑनलाइन रिटेल डायरेक्ट गिल्ट (RDG) खाता खोल सकते हैं। इसके अतिरिक्त वे चुनिंदा बैंकों और पंजीकृत प्राथमिक एजेंटों के माध्यम से बोली लगा सकते हैं।
  • खरीद के लिये पोर्टल: RBI द्वारा प्रदान किया गया रिटेल डायरेक्ट गिल्ट (RDG) प्लेटफॉर्म खुदरा निवेशकों हेतु टी-बिल की खरीद की सुविधा प्रदान करता है।
  • खरीद और बिक्री के संबंध में नियम: खुदरा निवेशकों को टी-बिल खरीदते और बेचते समय कुछ नियमों तथा विनियमों का पालन करना चाहिये। इसमें न्यूनतम निवेश राशि की आवश्यकता (विभिन्न अवधियों के लिये प्रति लॉट 10,000 रुपए) को पूरा करना और RBI दिशा-निर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित करना शामिल है।
  • प्राथमिक बाज़ार में भागीदारी: खुदरा निवेशक पहले उल्लिखित निर्दिष्ट चैनलों के माध्यम से टी-बिल के लिये बोली लगाकर प्राथमिक बाज़ार में भाग ले सकते हैं। इससे उन्हें भारत सरकार की ओर से सीधे RBI से नए जारी किये गए टी-बिल खरीदने की अनुमति मिलती है।
  • द्वितीयक बाज़ार में भागीदारी: खुदरा निवेशक अपने डीमैट खातों के माध्यम से T-बिल के लिये द्वितीयक बाज़ार में भी भाग ले सकते हैं। द्वितीयक बाज़ार में, निवेशक अपनी परिपक्वता तिथि से पहले T-बिल खरीद और बेच सकते हैं, जिससे चल निधि तथा व्यापार के अवसर मिलते हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में, 'खुला बाज़ार प्रचालन' किसे निर्दिष्ट करता है? (2013) 

(a)  अनुसूचित बैंकों द्वारा RBI से ऋण लेना
(b) वाणिज्यिक बैंकों द्वारा उद्योग और व्यापार क्षेत्रों को ऋण देना
(c) RBI द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों का क्रय और विक्रय 
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं

उत्तर: (c)


प्रश्न. भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा/से गैर-वित्तीय ऋण में सम्मिलित है? (2020)

  1. परिवारों का बकाया गृह ऋण
  2. क्रेडिट कार्डों पर बकाया राशि 
  3. राजकोष बिल

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)

  • ब्याज के साथ ऋण यानी मौद्रिक कर्ज़/उधार चुकाना संविदात्मक दायित्व है।
  • गैर-वित्तीय ऋण
    • इसमें सरकारी संस्थाओं, परिवारों और व्यवसायों द्वारा जारी क्रेडिट उपकरण शामिल हैं जो कि वित्तीय क्षेत्र में शामिल नहीं हैं।
    • इसमें औद्योगिक अथवा वाणिज्यिक कर्ज़, राजकोषीय बिल (ट्रेज़री बिल) और क्रेडिट कार्ड शेष (Balance) शामिल हैं।
    • वे बड़े पैमाने पर वित्तीय ऋण के समान हैं, इस अपवाद के साथ कि गैर-वित्तीय संस्थाएँ उन्हें जारी करती हैं। अतः कथन 1, 2 और 3 सही हैं।
  • अतः विकल्प (d) सही उत्तर है।

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. भारतीय रिज़र्व बैंक भारत सरकार की प्रतिभूतियों का प्रबंधन और सेवाएँ प्रदान करता है, लेकिन किसी राज्य सरकार की प्रतिभूतियों का नहीं। 
  2. भारत सरकार कोष-पत्र (ट्रेज़री बिल) जारी करती है और राज्य सरकारें कोई कोष-पत्र जारी नहीं करतीं। 
  3. कोष-पत्र ऑफर अपने समतुल्य मूल्य से बट्टे पर जारी किये जाते हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)

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