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भारतीय अर्थव्यवस्था

G-secs यानी सरकारी प्रतिभूतियों को ऋण देने और लेने का मसौदा मानदंड

  • 20 Feb 2023
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सरकारी प्रतिभूति ऋण दिशा-निर्देश- 2023, रेपो लेन-देन, राजकोषीय घाटा, खुला बाज़ार संचालन।

मेन्स के लिये:

G-secs यानी सरकारी प्रतिभूतियों को ऋण देने और लेने का मसौदा मानदंड।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक ने भारतीय रिज़र्व बैंक (सरकारी प्रतिभूति ऋण) निर्देश- 2023 का मसौदा जारी किया।

  • भारतीय रिज़र्व बैंक ने सरकारी प्रतिभूतियों (G-sec) में प्रतिभूति ऋण  देने और लेने की शुरुआत का प्रस्ताव किया है, जिसका उद्देश्य निवेशकों को निष्क्रिय प्रतिभूतियों को सक्रिय करने तथा पोर्टफोलियो रिटर्न बढ़ाने के लिये एक अवसर प्रदान करके प्रतिभूति ऋण बाज़ार में व्यापक भागीदारी की सुविधा प्रदान करना है। 

मसौदा मानदंड:

  • सरकारी प्रतिभूति ऋण (GSL) लेन-देन न्यूनतम एक दिन और अधिकतम 90 दिनों की अवधि के लिये किये जाएंगे।
  • ट्रेज़री बिलों को छोड़कर केंद्र सरकार द्वारा जारी सरकारी प्रतिभूतियाँ GSL लेन-देन के तहत ऋण देने/लेने के लिये पात्र होंगी। 
  • केंद्र सरकार (ट्रेज़री बिल सहित) और राज्य सरकारों द्वारा जारी सरकारी प्रतिभूतियाँ GSL लेन-देन के तहत संपार्श्विक के रूप में पात्र होंगी। 
  • सरकारी प्रतिभूतियों और रिज़र्व बैंक द्वारा अनुमोदित किसी भी अन्य इकाई में रेपो लेन-देन करने के लिये पात्र इकाई प्रतिभूतियों के ऋणदाता के रूप में GSL लेन-देन में भाग ले सकेगी।

सरकारी प्रतिभूतियाँ: 

  • परिचय: 
    • सरकारी प्रतिभूति (G-Sec) केंद्र सरकार या राज्य सरकारों द्वारा जारी एक व्यापार योग्य लिखत (Instrument) है। 
    • G-Sec एक प्रकार का ऋण साधन है जो सरकार द्वारा अपने राजकोषीय घाटे के वित्तपोषण हेतु जनता से पैसा उधार लेने के लिये जारी किया जाता है।  
      • ऋण लेख एक वित्तीय साधन है जो जारीकर्त्ता द्वारा निर्दिष्ट तिथि पर धारक को एक निश्चित राशि, जिसे मूलधन या अंकित मूल्य के रूप में जाना जाता है, का भुगतान करने के लिये संविदात्मक दायित्त्व का प्रतिनिधित्त्व करता है। 
    • यह सरकार के ऋण दायित्त्व को स्वीकार करता है। ऐसी प्रतिभूतियाँ अल्पावधि (आमतौर पर एक वर्ष से कम की मूल परिपक्वता अवधि के साथ वर्तमान में तीन अवधियों में जारी की जाती हैं, अर्थात् 91 दिन, 182 दिन और 364 दिन) या दीर्घ अवधि (आमतौर पर सरकारी बॉण्ड या दिनांकित प्रतिभूतियाँ) एक वर्ष या उससे अधिक की मूल परिपक्वता अवधि वाली ट्रेज़री बिल कहलाती हैं।
    • भारत में केंद्र सरकार ट्रेज़री बिल और बॉण्ड या दिनांकित प्रतिभूतियाँ दोनों जारी करती है, जबकि राज्य सरकारें केवल बॉण्ड या दिनांकित प्रतिभूतियाँ जारी करती हैं, जिन्हें राज्य विकास ऋण (SDLs) कहा जाता है।
    • G-Secs में व्यावहारिक रूप से डिफॉल्ट का कोई जोखिम नहीं होता है, इसलिये जोखिम मुक्त गिल्ट-एज इंस्ट्रूमेंट कहलाते हैं।
      • गिल्ट-एज सिक्योरिटीज़ उच्च-श्रेणी के निवेश बॉण्ड हैं जो सरकारों और बड़े निगमों द्वारा धन उधार लेने के साधन के रूप में पेश किये जाते हैं।

G-Secs के प्रकार: 

  • ट्रेज़री बिल (T-बिल): 
    • ट्रेज़री बिल ज़ीरो कूपन सिक्योरिटीज़ हैं और कोई ब्याज नहीं देते हैं। उन्हें छूट पर जारी किया जाता है और परिपक्वता पर अंकित मूल्य पर भुनाया जाता है।
  • नकद प्रबंधन बिल (CMBs):
    • वर्ष 2010 में भारत सरकार ने RBI के परामर्श से भारत सरकार के नकदी प्रवाह में अस्थायी असंतुलन के समाधान के लिये CMBs के रूप में जाना जाने वाला एक नया अल्पकालिक साधन पेश किया। CMBs में सामान्यतः T-बिल के समान विशेषताएँ होती हैं किंतु यह 91 दिनों से कम की परिपक्वता अवधि के लिये जारी किया जाता है।
  • डेटेड जी-सेक: 
    • डेटेड जी-सेक वे प्रतिभूतियाँ हैं जिनका एक निश्चित या फ्लोटिंग कूपन (ब्याज दर) होता है, जिसका भुगतान अंकित मूल्य के साथ अर्द्धवार्षिक आधार पर किया जाता है। डेटेड/ दिनांकित प्रतिभूतियों की अवधि सामान्यतः 5 वर्ष से 40 वर्ष तक होती है।
  • राज्य विकास ऋण (State Development Loans- SDL):
    • राज्य सरकारें बाज़ार से भी ऋण प्राप्त कर सकती हैं, जिन्हें SDL कहा जाता है। SDLदिनांकित प्रतिभूतियाँ हैं जो केंद्र सरकार द्वारा जारी दिनांकित प्रतिभूतियों हेतु आयोजित नीलामी के समान एक नियमित नीलामी के माध्यम से जारी की जाती हैं।
  • जारी करने का तंत्र:
    • RBI धन की आपूर्ति की स्थिति को समायोजित करने के हेतु जी-सेक की बिक्री या खरीद के लिये खुला बाज़ार परिचालन (Open Market Operations- OMO) आयोजित करता है।
      • RBI द्वारा सिस्टम से तरलता को हटाने हेतु जी-सेक की बिक्री की जाती है और सिस्टम में तरलता बढ़ाने के लिये जी-सेक को वापस खरीदा जाता है।
    • बैंकों को उधार देना जारी रखने की अनुमति देते हुए मुद्रास्फीति को संतुलित करने हेतु इन कार्यों को अक्सर दैनिक आधार पर किया जाता है।
    • RBI वाणिज्यिक बैंकों के माध्यम से खुला बाज़ार परिचालन (OMO) आयोजित करता है और जनता के साथ सीधे व्यवहार नहीं करता है।
    • RBI सिस्टम में रुपए की मात्रा और कीमत को समायोजित करने हेतु रेपो दर, नकद आरक्षित अनुपात तथा वैधानिक तरलता अनुपात जैसे अन्य मौद्रिक नीति उपकरणों के साथ OMO का उपयोग करता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में 'खुला बाज़ार प्रचालन’ किसे निर्दिष्ट करता है?  (2013) 

(a) अनुसूचित बैंकों द्वारा RBI से ऋण लेना
(b) वाणिज्यिक बैंकों द्वारा उद्योग और व्यापार क्षेत्रों को ऋण देना
(c) RBI द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों का क्रय और विक्रय
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं

उत्तर: (c)


प्रश्न. भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा/से गैर-वित्तीय ऋण में शामिल है/हैं? (2020)

  1. परिवारों का बकाया गृह ऋण
  2. क्रेडिट कार्ड पर बकाया राशि
  3. राजकोष बिल (Treasury bills )

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 3 
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d) 

  • ब्याज के साथ ऋण यानी मौद्रिक कर्ज़/उधार चुकाना संविदात्मक दायित्त्व है।
  • गैर-वित्तीय ऋण:
    • इसमें सरकारी संस्थाओं, परिवारों और व्यवसायों द्वारा जारी क्रेडिट उपकरण शामिल हैं जो कि वित्तीय क्षेत्र में शामिल नहीं हैं।
    • इसमें औद्योगिक अथवा वाणिज्यिक कर्ज़, राजकोषीय बिल (ट्रेज़री बिल) और क्रेडिट कार्ड शेष (Balance) शामिल हैं।
    • वे बड़े पैमाने पर वित्तीय ऋण के समान हैं, इस अपवाद के साथ कि गैर-वित्तीय संस्थाएँ उन्हें जारी करती हैं। अतः कथन 1, 2 और 3 सही हैं।
  • अतः विकल्प (d) सही उत्तर है।

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. भारतीय रिज़र्व बैंक भारत सरकार की प्रतिभूतियों का प्रबंधन और सेवाएँ प्रदान करता है, लेकिन किसी राज्य सरकार की प्रतिभूतियों का नहीं।
  2. भारत सरकार कोष-पत्र (ट्रेज़री बिल) जारी करती है और राज्य सरकारें कोई कोष-पत्र जारी नहीं करतीं।
  3. कोष-पत्र ऑफर अपने समतुल्य मूल्य से बट्टे पर जारी किये जाते हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2 
(b) केवल 3
(c) केवल 2 और 3 
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c) 

स्रोत: इकोनाॅमिक टाइम्स

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