भूगोल
मानसून, अल नीनो का कृषि पर प्रभाव
- 03 Aug 2023
- 11 min read
प्रिलिम्स के लिये:मानसून, खरीफ फसल, अल नीनो, भू-जल, शुष्कता, खाद्य मुद्रास्फीति, महासागरीय नीनो सूचकांक मेन्स के लिये:भारतीय कृषि पर मानसून और अल नीनो का प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
वर्ष 2023 में भारत में दक्षिण-पश्चिम मानसून का आगमन देरी से हुआ, जिससे प्रारंभिक दो सप्ताह में होने वाली वर्षा दीर्घावधि औसत (Long Period Average-LPA) से 52.6% कम हुई।
- हालाँकि 30 जुलाई, 2023 तक कुल मिलाकर सामान्य से 6% अतिरिक्त वर्षा हुई थी। इस परिवर्तन का खरीफ़ फसल की बुवाई पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है, जबकि रबी फसलों पर आने वाली अल नीनो परिघटना के संभावित प्रभाव के बारे में चिंता बनी हुई है।
वर्षा का दीर्घावधि औसत (LPA):
- IMD के अनुसार, वर्षा का LPA एक विशेष क्षेत्र में निश्चित अंतराल (जैसे- महीने या मौसम) के लिये दर्ज की गई वर्षा है, जिसकी गणना 30 वर्ष, 50 वर्ष की औसत अवधि के दौरान की जाती है। भारत मौसम विज्ञान विभाग द्वारा अखिल भारतीय स्तर पर वर्षा की मात्रा के आधार पर वर्षा वितरण की पाँच श्रेणियाँ (Rainfall Distribution Categories) निर्धारित की गई हैं जो इस प्रकार हैं-
- सामान्य/सामान्य के लगभग (Normal or Near Normal): LPA के 96-104% के मध्य वर्षा।
- सामान्य से कम (Below Normal): LPA के 90-96% के मध्य वर्षा।
- सामान्य से अधिक (Above Normal): LPA के 104-110% के मध्य वर्षा।
- कमी (Deficient): LPA के 90% से कम वर्षा।
- आधिक्य (Excess): LPA के 110% से अधिक वर्षा।
खरीफ और रबी फसलें:
- खरीफ फसलें:
- खरीफ फसलों की बुवाई मानसून के दौरान जून से अक्तूबर तक की जाती है और देर से गर्मियों या शरद ऋतु की शुरुआत में काटा जाता है।
- वे सिंचाई और विकास के लिये दक्षिण-पश्चिम मानसून पर निर्भर हैं।
- प्रमुख खरीफ फसलों में चावल, मक्का, ज्वार, बाजरा, रागी, मूँगफली और दालें जैसे- अरहर और हरा चना शामिल हैं।
- वे भारत में कुल खाद्यान्न उत्पादन का लगभग 55% हिस्सा हैं।
- रबी फसलें:
- इन फसलों को मानसून के पुनरागमन और पूर्वोत्तर मानसून के मौसम के आसपास बोया जाता है, जिनकी बुवाई अक्तूबर में शुरू होती है तथा इन्हें रबी या सर्दियों की फसलें कहा जाता है।
- इन फसलों की कटाई आमतौर पर गर्मियों के मौसम में अप्रैल और मई के दौरान होती है।
- प्रमुख रबी फसलें गेहूँ, चना, मटर, जौ आदि हैं।
- बीज के अंकुरण के लिये गर्म जलवायु और फसलों की वृद्धि के लिये ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है।
भारतीय कृषि पर मानसून का प्रभाव:
- सकारात्मक प्रभाव:
- फसल उत्पादन में वृद्धि: देश के फसल क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा पूरी तरह से मानसूनी वर्षा पर निर्भर है क्योंकि वे मैन्युअल सिंचाई के तरीकों से सुसज्जित नहीं हैं।
- मानसून के दौरान पर्याप्त वर्षा से मृदा की नमी बढ़ती है और फसलों को बढ़ावा मिलता है, जिसके परिणामस्वरूप कृषि उत्पादन अधिक होता है।
- जल की उपलब्धता चावल, गेहूँ, कदन्न और दालों सहित विभिन्न प्रकार की फसलों की खेती का समर्थन करती है।
- मानसून के दौरान पर्याप्त वर्षा से मृदा की नमी बढ़ती है और फसलों को बढ़ावा मिलता है, जिसके परिणामस्वरूप कृषि उत्पादन अधिक होता है।
- आर्थिक प्रोत्साहन: सफल मानसूनी मौसम किसानों तथा मज़दूरों को आय प्रदान करके ग्रामीण समृद्धि में योगदान देता है, जो बदले में ग्रामीण अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं की मांग को बढ़ाता है।
- इस बढ़ी हुई आर्थिक गतिविधि का समग्र राष्ट्रीय विकास पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- भूजल का पुनर्भरण: मानसून भू-जल संसाधनों को पुनर्भरण करने में सहायता करता है जो उन क्षेत्रों में टिकाऊ कृषि पद्धतियों के लिये महत्त्वपूर्ण है जहाँ जल का अभाव एक मुख्य चुनौती है।
- फसल उत्पादन में वृद्धि: देश के फसल क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा पूरी तरह से मानसूनी वर्षा पर निर्भर है क्योंकि वे मैन्युअल सिंचाई के तरीकों से सुसज्जित नहीं हैं।
- नकारात्मक प्रभाव:
- अनियमित मानसून पैटर्न: मानसून का समय, तीव्रता और वितरण अप्रत्याशित है जिससे कृषि योजना और फसल प्रबंधन में अनिश्चितताएँ उत्पन्न होती हैं।
- देर से या जल्दी मानसून आने से रोपण कार्यक्रम बाधित हो सकता है तथा फसल की पैदावार प्रभावित हो सकती है।
- सूखा और बाढ़: मानसून की विफलता या अधिक वर्षा के कारण क्रमशः सूखा या बाढ़ जैसी स्थितियां उत्पन्न हो सकती हैं।
- दोनों ही परिस्थितियाँ कृषि के लिये विनाशकारी हो सकती हैं। सूखे के परिणामस्वरूप जल का अभाव, फसल की विफलता और पैदावार में कमी आती है, जबकि बाढ़ से फसलों को हानि हो सकती है, उपजाऊ ऊपरी मृदा बह सकती है तथा पशुधन की हानि हो सकती है।
- फसल हानि: दीर्घावधि तक अत्यधिक मानसूनी वर्षा फसल के रोगों का कारण बन सकती है, जिससे फसल की गुणवत्ता व उपज कम हो सकती है। ये स्थितियाँ किसानों के कृषि कार्यों को प्रभावी ढंग से संचालित करने की क्षमता में भी बाधा डालती हैं।
- मृदा अपरदन: भारी वर्षा से मृदा अपरदन हो सकता है, जिससे मिट्टी की उर्वरता कम हो जाती है तथा लंबे समय के लिए कृषि की उत्पादकता प्रभावित होती है।
- मृदा अपरदन जल निकायों पर भी प्रभाव डालता है तथा जलाशयों में गाद जमा हो सकता है, जिससे उनकी भंडारण क्षमता कम हो सकती है।
- खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति: असंगत मानसून पैटर्न फसल उत्पादन को प्रभावित कर सकता है और कमी उत्पन्न कर सकता है, जिसके परिणामस्वरूप खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति (Food Price Inflation) हो सकती है।
- इसका अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है, विशेषकर कम आय वाले परिवारों पर, जो अपनी आय का एक बड़ा हिस्सा भोजन पर व्यय करते हैं।
- अनियमित मानसून पैटर्न: मानसून का समय, तीव्रता और वितरण अप्रत्याशित है जिससे कृषि योजना और फसल प्रबंधन में अनिश्चितताएँ उत्पन्न होती हैं।
अल नीनो और कृषि क्षेत्र पर इसका प्रभाव:
- परिचय:
- अल नीनो एक जलवायवीय परिघटना है जो उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में अनियमित रूप से घटित होती है, यह सागर-पृष्ठ के तापमान में वृद्धि से विशेषित होती है।
- इसका भारत सहित विश्व भर के मौसम पर वृहत प्रभाव पड़ सकता है।
- महासागरीय नीनो सूचकांक (Oceanic Nino Index- ONI) जून 2023 में अल नीनो सीमा 0.5 डिग्री को पार करके 0.8 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच गया।
- वैश्विक मौसम एजेंसियों का अनुमान है कि अल नीनो वर्ष 2023-24 की सर्दियों तक मज़बूती से बना रहेगा।
- अल नीनो एक जलवायवीय परिघटना है जो उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में अनियमित रूप से घटित होती है, यह सागर-पृष्ठ के तापमान में वृद्धि से विशेषित होती है।
- प्रभाव:
- चरम तापमान: अल नीनो के दौरान भारत के कुछ क्षेत्रों में अक्सर गर्म तापमान का अनुभव किया जाता है।
- बढ़ा हुआ तापमान फसलों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है, जिससे हीट स्ट्रेस बढ़ सकता है और पैदावार (खासकर फलों एवं सब्जियों जैसी संवेदनशील फसलों की) कम हो सकती है।
- कीटों और रोग का प्रकोप: अल नीनो फसलों को प्रभावित करने वाले कुछ कीटों एवं रोगों के लिये अनुकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न कर सकती है।
- गर्म तापमान और परिवर्तित वर्षा पैटर्न के कारण कीटों की आबादी में वृद्धि हो सकती है, जो किसानों के लिये अतिरिक्त चुनौतियाँ प्रस्तुत कर सकती है।
- पशुधन पर प्रभाव: अल नीनो के दौरान चारे की उपलब्धता में कमी और जल की कमी पशुधन तथा पशुपालन को प्रभावित कर सकती है, जिससे दूध व मांस के उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
- चरम तापमान: अल नीनो के दौरान भारत के कुछ क्षेत्रों में अक्सर गर्म तापमान का अनुभव किया जाता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारतीय मानसून का पूर्वानुमान करते समय कभी-कभी समाचारों में उल्लिखित 'इंडियन ओशन डायपोल (IOD)' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. आप कहाँ तक सहमत हैं कि मानवीकारी दृश्भूमियों के कारण भारतीय मानसून के आचरण में परिवर्तन हो रहा है? चर्चा कीजिये।(2015) प्रश्न. असामान्य जलवायवीय घटनाओं में से अधिकांश अल-नीनो प्रभाव के परिणाम के तौर पर स्पष्ट की जाती हैं। क्या आप सहमत हैं? (2014) |