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बेमौसम बारिश और प्रभाव

  • 05 May 2023
  • 15 min read

यह एडिटोरियल 04/05/2023 को ‘हिंदू बिजनेसलाइन’ में प्रकाशित ‘‘Tackling unseasonal rain’’ लेख पर आधारित है। इसमें बेमौसम बारिश के प्रभाव और भारत में बेमौसम बारिश के प्रभाव को कम करने के उपायों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

भारत में अवकाल वृष्टि या बेमौसम बारिश (Unseasonal Rains) ने एक बार फिर हमारे कृषि क्षेत्र की भेद्यताओं को उजागर किया है। जहाँ वर्षा को आम तौर पर एक वरदान के रूप में देखा जाता है, बेमौसम बारिश पहले से ही फसल की कम कीमतों, बढ़ती लागत और मौसम पैटर्न के प्रभाव से जूझ रहे किसानों के लिये अभिशाप भी सिद्ध हो सकती है।

  • बेमौसम बारिश का समग्र मुद्रास्फीति की प्रवृत्ति पर सोपानी प्रभाव पड़ सकता है। बेमौसम बारिश का असर केवल कृषि क्षेत्र तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों को भी प्रभावित करती है।

बेमौसम बारिश के क्या कारण हैं?

  • जलवायु परिवर्तन (Climate Change):
    • जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप अप्रत्याशित मौसम पैटर्न की उत्पत्ति हो सकती है जिसमें बेमौसम बारिश का होना भी शामिल है।
    • ग्लोबल वार्मिंग, दुर्बल पश्चिमी विक्षोभ और प्रबल उपोष्णकटिबंधीय जेट स्ट्रीम हाल में हुई बेमौसम बारिश के प्रमुख कारण हैं।
  • अल नीनो (El Nino):
    • अल नीनो एक मौसमी परिघटना है जो तब होती है जब पश्चिमी प्रशांत महासागर का गर्म जल पूर्व की ओर प्रवाहित होता है।
    • इसके परिणामस्वरूप कुछ क्षेत्रों में सूखे की स्थिति, जबकि कुछ अन्य क्षेत्रों में बेमौसम बारिश की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
  • ला नीना (La Nina):
    • ला नीना एक मौसमी परिघटना है जो तब होती है जब पूर्वी प्रशांत महासागर का ठंडा जल पश्चिम की ओर प्रवाहित होता है।
    • इसके परिणामस्वरूप कुछ क्षेत्रों में बेमौसम बारिश के साथ ही अतिवृष्टि की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
  • वायुमंडलीय अस्थिरता (Atmospheric instability):
    • वायुमंडलीय अस्थिरता के कारण भी बेमौसम बारिश हो सकती है। जब वायुमंडलीय दाब में अचानक परिवर्तन होता है तो इसके परिणामस्वरूप गैर-मानसून मौसम में भी वर्षा हो सकती है।
  • मानवीय गतिविधियाँ (Human Activities):
    • वनों की कटाई, शहरीकरण और प्रदूषण जैसी मानवीय गतिविधियाँ भी बेमौसम बारिश में योगदान कर सकती हैं।
    • वनों की कटाई जल चक्र को बाधित कर सकती है, जबकि शहरीकरण और प्रदूषण सूक्ष्म-जलवायु (microclimate) को प्रभावित कर सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप बेमौसम बारिश हो सकती है।

बेमौसम बारिश के प्रभाव

  • कृषि क्षेत्र:
    • बेमौसम बारिश से फसल को हानि हो सकती है और पोस्ट-हार्वेस्ट गतिविधियों पर असर पड़ सकता है, जिससे सब्जियों और फलों जैसी जल्द खराब होने वाले पण्यों की कीमतों में वृद्धि हो सकती है।
    • पहले से ही फसल की कम कीमतों, बढ़ती इनपुट लागत और बदलते मौसम पैटर्न के प्रभाव से जूझ रहे किसान बेमौसम बारिश से प्रतिकूल रूप से प्रभावित हो रहे हैं।
  • निर्माण क्षेत्र:
    • बेमौसम बारिश के कारण होने वाले व्यवधान से सीमेंट और इस्पात जैसे प्रमुख कच्चे माल के मूल्यों में वृद्धि हो सकती है।
  • उपभोग पैटर्न:
    • आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि से गैर-आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं की समग्र मांग में गिरावट आ सकती है।
  • सामाजिक प्रभाव:
    • बेमौसम बारिश का सामाजिक प्रभाव भी उत्पन्न हो सकता है, विशेष रूप से समाज के कमज़ोर वर्गों (जैसे छोटे किसानों, दिहाड़ी मज़दूरों और प्रवासी श्रमिकों) पर।
  • राजनीतिक प्रभाव:
    • बेमौसम बारिश का महत्त्वपूर्ण राजनीतिक प्रभाव भी उत्पन्न होता है, विशेषकर आगामी राज्य और राष्ट्रीय चुनावों के संदर्भ में।
    • सत्तारूढ़ राजनीतिक दल को प्रायः विपक्ष की इस आलोचना का सामना करना पड़ता है कि किसानों की चिंताओं को संबोधित करने के लिये वे पर्याप्त उपाय नहीं कर रहे हैं।
    • यह राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का कारण बनता है, जहाँ प्रत्येक दल दूसरे पर बढ़त हासिल करने का प्रयास करता है।

किसानों की सुरक्षा के लिये किये गए सरकार के उपाय

  • सरकार ने किसानों की चिंताओं को संबोधित करने के लिये प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY), प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) और मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना (SHC) जैसी कई पहलें की है।
    • PMFBY:
      • यह वर्ष 2016 में भारत सरकार द्वारा शुरू की गई फसल बीमा योजना है, जो प्राकृतिक आपदाओं, कीटों या बीमारियों के कारण फसल खराब होने या नुकसान होने की स्थिति में किसानों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है। इस योजना के तहत किसानों को नॉमिनल प्रीमियम देना होता है और शेष राशि का भुगतान सरकार द्वारा किया जाता है। प्रीमियम की दरें फसल के प्रकार, अवस्थिति और किसान द्वारा चुने गए कवरेज के स्तर के आधार पर तय की जाती हैं। यह योजना सभी खाद्य एवं तिलहन फसलों और वाणिज्यिक एवं बागवानी फसलों को दायरे में लेती है।
    • PMKSY:
      • यह भारत सरकार की एक प्रमुख योजना है जिसका उद्देश्य प्रत्येक खेत में जल उपलब्ध कराना और देश में जल उपयोग दक्षता में सुधार लाना है।
      • प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना का उद्देश्य सिंचाई अवसंरचना को प्रोत्साहित करना और जल उपयोग दक्षता को बढ़ावा देना है।
      • इस योजना के चार घटक हैं:
        • त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (Accelerated Irrigation Benefit Programme): इस घटक का उद्देश्य राज्यों को उनकी अधूरी सिंचाई परियोजनाओं को पूरा करने के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करना है
        • ‘हर खेत को पानी’: इस घटक का उद्देश्य सूक्ष्म सिंचाई, जल संचयन और ऐसी अन्य तकनीकों के माध्यम से जल संरक्षण एवं कुशल उपयोग सुनिश्चित करते हुए हर खेत को पानी उपलब्ध कराना है।
        • ‘प्रति बूँद अधिक फसल’ (Per Drop More Crop): इस घटक का उद्देश्य ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई जैसी सूक्ष्म सिंचाई तकनीकों को बढ़ावा देकर जल उपयोग दक्षता को बढ़ाना है।
        • वाटरशेड विकास: इस घटक का उद्देश्य वनीकरण, बागवानी और चरागाह विकास जैसी वाटरशेड विकास गतिविधियों को बढ़ावा देकर वर्षा जल का संरक्षण करना है।
    • SHC:
      • मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना (Soil Health Card scheme- SHC) के तहत मृदा के पोषक तत्वों की स्थिति का आकलन करने के लिये किसानों के खेतों से मृदा के नमूने एकत्र किये जाते हैं और प्रयोगशालाओं में उनका विश्लेषण किया जाता है।
      • विश्लेषण के आधार पर प्रत्येक किसान के लिये एक मृदा स्वास्थ्य कार्ड बनाया जाता है, जो मृदा की पोषण स्थिति के बारे में जानकारी प्रदान करता है, साथ ही उर्वरकों और अन्य मृदा संशोधनों के संबंध में अनुशंसाएँ की जाती हैं।

समस्या के समाधान के लिये बहु-आयामी दृष्टिकोण क्या है?

  • अल्पकालिक उपाय:
    • केंद्र और राज्य फसल के नुकसान के लिये मुआवजा प्रदान कर सकते हैं और रियायती दरों पर बीज एवं उर्वरक की आपूर्ति कर सकते हैं।
    • न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price- MSP) में वृद्धि की जा सकती है।
  • दीर्घकालिक उपाय:
    • कृषि क्षेत्र में संरचनात्मक सुधार इसे मौसम के बदलते पैटर्न के प्रति अधिक प्रत्यास्थी (resilient) बना सकते हैं।
    • फसल विविधीकरण को बढ़ावा देना, आधुनिक तकनीकों एवं कृषि पद्धतियों के उपयोग को प्रोत्साहित करना और बर्बादी (wastage) एवं पोस्ट-हार्वेस्ट हानियों को कम करने के लिये आपूर्ति शृंखला अवसंरचना को सुदृढ़ करना।
  • जलवायु परिवर्तन का शमन:
    • भारत को जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने की दिशा में एक सक्रिय दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। इसके लिये केंद्र एवं राज्यों, नागरिक समाज संगठनों और निजी क्षेत्र के बीच समन्वित प्रयास की आवश्यकता है।

निष्कर्ष

  • बेमौसम बारिश का असर केवल कृषि क्षेत्र तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों तक भी विस्तृत है। इस समस्या के समाधान के लिये एक बहु-आयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है जिसमें अल्पकालिक और दीर्घकालिक दोनों उपाय शामिल हों। कृषि क्षेत्र की प्रत्यास्थता को सुनिश्चित करने के लिये जलवायु परिवर्तन का शमन महत्त्वपूर्ण है। सरकार ने किसानों की चिंताओं को दूर करने के लिये कई पहलें शुरू की हैं, लेकिन इस क्रम में केंद्र और राज्य सरकारों के बीच वृहत समन्वयन की आवश्यकता बनी हुई है।

अभ्यास प्रश्न: भारत में कृषि क्षेत्र और भारतीय अर्थव्यवस्था पर बेमौसमी बारिश के प्रभाव की चर्चा करें। इस समस्या के समाधान के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?

 यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ) 

प्रश्न. भारतीय मानसून का पूर्वानुमान करते समय कभी-कभी समाचारों में उल्लिखित ‘इंडियन ओशन डाइपोल (IOD)’ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)

  1. IOD परिघटना, उष्णकटिबंधीय पश्चिमी हिंद महासागर एवं उष्णकटिबंधीय पूर्वी प्रशांत महासागर के बीच सागर पृष्ठ तापमान के अंतर से विशेषित होती है।
  2. IOD परिघटना मानसून पर अल-नीनो के असर को प्रभावित कर सकती है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: b

व्याख्या:

  • इंडियन ओशन डाइपोल (IOD) उष्णकटिबंधीय हिंद महासागर (जैसे अल नीनो उष्णकटिबंधीय प्रशांत क्षेत्र में है) में वायुमंडलीय महासागर युग्मित घटना है, जो समुद्र-सतह तापमान (SST) में अंतर की विशेषता है।
  • 'सकारात्मक IOD' पूर्वी भूमध्यरेखीय हिंद महासागर में सामान्य समुद्री सतह के तापमान से कम उष्ण और पश्चिमी उष्णकटिबंधीय हिंद महासागर में सामान्य समुद्री सतह के तापमान से अधिक उष्ण होने से संबंधित है।
  • इसके विपरीत घटना को 'नकारात्मक IOD' कहा जाता है और पूर्वी भूमध्यरेखीय हिंद महासागर में सामान्य SST की तुलना में गर्म तथा पश्चिमी उष्णकटिबंधीय हिंद महासागर में सामान्य SST की तुलना में ठंडा होता है।
  • इसे भारतीय नीना के रूप में भी जाना जाता है, यह हिंद महासागर में समुद्र की सतह के तापमान का अनियमित दोलन है जिसमें पश्चिमी हिंद महासागर हिंद महासागर के पूर्वी हिस्से की तुलना में वैकल्पिक रूप से गर्म और ठंडा हो जाता है। अतः कथन 1 सही नहीं है।

मुख्य परीक्षा

प्रश्न. पिछले कुछ वर्षों से उच्च तीव्रता वाली वर्षा के कारण शहरी बाढ़ की आवृत्ति बढ़ रही है। शहरी बाढ़ के कारणों पर चर्चा करते हुए ऐसी घटनाओं के दौरान जोखिम को कम करने के लिए तैयारियों के तंत्र पर प्रकाश डालें। (वर्ष 2016)

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