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भारत की ऊर्जा संक्रमण रणनीति

  • 08 Feb 2023
  • 16 min read

यह एडिटोरियल 06/02/2023 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “India’s just energy transition is more than a coal story” लेख पर आधारित है। इसमें ‘जस्ट एनर्जी ट्रांज़िशन’ से संबंधित मुद्दों और इसे संबोधित करने के तरीकों के बारे में चर्चा की गई है।

जस्ट एनर्जी ट्रांज़िशन पार्टनरशिप (Just Energy Transition Partnership- JET-P) विकासशील देशों में ऊर्जा संक्रमण (energy transition) का समर्थन करने के लिये विकसित देशों द्वारा बहुपक्षीय वित्तपोषण के लिये एक प्रमुख तंत्र के रूप में उभर रही है।

ग्लासगो समझौते में कोयले की चरणबद्ध समाप्ति (‘phase-down’ of coal) वाक्यांश को सम्मिलित करने के बाद इसका विशेष महत्त्व हो गया है। दक्षिण अफ्रीका, इंडोनेशिया और वियतनाम के बाद भारत को JET-P के लिये अगला उम्मीदवार माना जा रहा है और भारत की G-20 अध्यक्षता इस संबंध में एक सौदा तय करने का उपयुक्त क्षण बन सकती है।

हालाँकि, भारत को एक वित्तीय सौदे पर वार्ता करने के लिये एक सुसंगत घरेलू जस्ट एनर्जी ट्रांज़िशन (JET) रणनीति विकसित करनी होगी जो इसकी अपनी विशिष्ट सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों को संबोधित करे।

पिछले वर्ष भारत की आरंभिक JET-P वार्ता कथित रूप से कोयला ‘फेज-डाउन’ और भारत के उपयुक्त या न्यायपूर्ण संक्रमण (just transition) को कार्यान्वित किये जाने के तरीके के प्रश्न पर बाधित हो गई थी। देश विशेष के संदर्भ पर पर्याप्त ध्यान दिये बिना विकसित देशों द्वारा कोयले की चरणबद्ध समाप्ति पर ज़ोर दिया जाना औद्योगीकृत और उभरती अर्थव्यवस्थाओं के बीच ऊर्जा संक्रमण में महत्त्वपूर्ण अंतर होने की वस्तुस्थिति की अवहेलना करता है।

‘जस्ट एनर्जी ट्रांजिशन’ क्या है?

  • ‘जस्ट एनर्जी ट्रांजिशन’ या न्यायपूर्ण ऊर्जा संक्रमण जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने और संवहनीयता को बढ़ावा देने के लिये गैर-नवीकरणीय, जीवाश्म ईंधन-आधारित ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता से नवीकरणीय, स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों की ओर बदलाव या संक्रमण को संदर्भित करता है।
  • एक न्यायपूर्ण ऊर्जा प्रणाली की ओर संक्रमण यह सुनिश्चित करने का उद्देश्य रखता है कि ऊर्जा तक पहुँच एक समान या न्यायसंगत हो और यह मुख्यतः निगमों एवं धनी लोगों को लाभ पहुँचाने के बजाय समाज के सभी सदस्यों को लाभ पहुँचाए।
  • इसमें पवन और सौर जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के साथ ही ऊर्जा दक्षता उपायों और ऊर्जा भंडारण समाधानों के विकास को बढ़ावा देना शामिल है।
  • अब तक हस्ताक्षरित तीन JET-P सौदों में से केवल दक्षिण अफ्रीका के सौदे में कोयला खनन क्षेत्रों में पुनर्कौशल और वैकल्पिक रोज़गार के अवसरों के लिये एक 'न्यायसंगत' घटक वित्त पोषण का उल्लेख है।
    • अन्य दो JET-Ps (इंडोनेशिया और वियतनाम) क्षेत्र-विशिष्ट संक्रमणों के लिये न्यूनीकरण वित्त (mitigation finance) पर केंद्रित है।

जस्ट एनर्जी ट्रांज़िशन से संबद्ध मुद्दे:

  • निकट भविष्य के जीवाश्म-निर्भर रोज़गार पर प्रभाव:
    • अधिक संवहनीय ऊर्जा मिश्रण की ओर संक्रमण उन कामगारों को प्रभावित कर सकता है जो वर्तमान में जीवाश्म ईंधन उद्योग में कार्यरत हैं।
    • जीवाश्म ईंधन से दूर जाने से रोज़गार अवसरों का नुकसान हो सकता है, जो प्रभावित समुदायों और कामगारों के लिये विघटनकारी हो सकता है।
  • भविष्य की ऊर्जा अभिगम्यता के बाधित रूप:
    • स्वच्छ ऊर्जा मिश्रण की ओर संक्रमण, विशेष रूप से विकासशील देशों में जहाँ विश्वसनीय बिजली तक पहुँच सीमित रही है, ऊर्जा तक पहुँच के पारंपरिक रूपों को बाधित कर सकता है।
    • पवन एवं सौर ऊर्जा जैसे नए ऊर्जा स्रोतों की लागत और अवसंरचनागत आवश्यकताएँ सीमित संसाधनों वाले क्षेत्रों में कार्यान्वित करना चुनौतीपूर्ण हो सकती हैं।
  • कल्याणकारी कार्यक्रमों पर खर्च करने की राज्य की क्षमता का सीमित होना:
    • नई ऊर्जा अवसंरचना और प्रौद्योगिकी में सरकार द्वारा निवेश की वृद्धि से स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और आवास सहायता जैसे कार्यक्रमों के लिये धन की उपलब्धता में कमी आ सकती है।
    • इसके परिणामस्वरूप कमज़ोर आबादी के लिये समर्थन में कमी आ सकती है तथा मौजूदा सामाजिक-आर्थिक विषमताओं की स्थिति और बिगड़ सकती है।
  • लागत:
    • दीर्घकालिक लाभों के बावजूद, नवीकरणीय ऊर्जा की ओर संक्रमण की आरंभिक लागत अधिक हो सकती है, जिससे यह कुछ समुदायों के लिये (विशेष रूप से सीमित वित्तीय संसाधनों वाले लोगों के लिये) चुनौतीपूर्ण बन जाती है।
  • ऊर्जा भंडारण:
    • पवन एवं सौर जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत हमेशा उपलब्ध नहीं होते हैं और इसलिये उनका भंडारण किया जाना आवश्यक है ताकि उन्हें तब उपयोग किया जा सके जब सूरज चमक नहीं रहा हो या पवन की गति मंद हो।
  • ऊर्जा अवसंरचना:
    • नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की ओर संक्रमण का समर्थन करने के लिये ऊर्जा अवसंरचना में महत्त्वपूर्ण निवेश की आवश्यकता होती है।

भारत द्वारा उठाये गए संबंधित कदम:

  • भारत ने वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म स्रोतों से 500 GW ऊर्जा प्राप्त करने के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य के साथ स्वच्छ ऊर्जा की ओर प्रतिबद्धता के संकेत दिये हैं। इसमें 450 GW नवीकरणीय ऊर्जा (RE) क्षमता वृद्धि और 43% RE खरीद दायित्व शामिल है।
    • इन लक्ष्यों को पूरक नीति और विधायी शासनादेश (ऊर्जा संरक्षण संशोधन अधिनियम), मिशन (राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन), वित्तीय प्रोत्साहन (उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन) और बाज़ार तंत्र (एक राष्ट्रीय कार्बन बाज़ार के निर्माण) के माध्यम से समर्थन दिया जा रहा है।
  • शुद्ध शून्य का लक्ष्य:
    • भारत ने वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य (Net Zero) उत्सर्जन तक पहुँचने का महत्त्वाकांक्षी दीर्घकालिक लक्ष्य निर्धारित किया है ।
    • अगस्त 2022 में भारत ने पेरिस समझौते के तहत जताए गए अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (Nationally Determined Contributions- INDC) को अद्यतन किया। वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा स्रोतों से 50% संचयी विद्युत ऊर्जा स्थापित क्षमता प्राप्त करने के अपने लक्ष्य को प्रतिबिंबित करते हुए भारत द्वारा यह कदम उठाया गया है।
  • ऊर्जा संरक्षण संशोधन विधेयक, 2022:
    • अगस्त 2022 में लोकसभा ने ऊर्जा संरक्षण संशोधन विधेयक, 2022 पारित किया, जिसका उद्देश्य उद्योगों में ऊर्जा और फीडस्टॉक के लिये हरित हाइड्रोजन, हरित अमोनिया, बायोमास एवं इथेनॉल सहित विभिन्न गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों के उपयोग को अनिवार्य करना है।
    • यह विधेयक केंद्र सरकार को कार्बन बाज़ारों की स्थापना करने की शक्ति भी देता है।

न्यायपूर्ण ऊर्जा संक्रमण के लिये भारत की रणनीति क्या होनी चाहिये?

  • RE परिनियोजन दरों में गति लाना:
    • RE परिनियोजन में तेज़ी लाने के लिये (जिसके महत्त्वपूर्ण विकास सह-लाभ प्राप्त हो सकते हैं) एक आसानी से प्राप्ति योग्य विकल्प यह होगा कि ऊर्जा मांग पैटर्न को उन तरीकों से परिवर्तित किया जाए जो तीव्र गति से RE क्षमता वृद्धि को सक्षम करते हैं, जैसे कृषि बिजली की मांग का सोलराइज़ेशन; डीज़ल-संचालित सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSMEs) का विद्युतीकरण; और आवासीय रसोई ईंधन एवं हीटिंग के लिये विकेंद्रीकृत RE।
    • ग्रामीण उत्पादकता वृद्धि के माध्यम से ऊर्जा की मांग को बढ़ावा देने से RE त्वरण में मदद मिलेगी और इसके साथ ही ग्रामीण-शहरी आर्थिक विभाजन को दूर करने में मदद मिलेगी, ग्रामीण रोज़गार अवसर सृजित होंगे और इस प्रकार अंतर-पीढ़ीगत एवं स्थानिक असमानताओं को दूर किया जा सकेगा।
  • स्वच्छ ऊर्जा घटकों का घरेलू विनिर्माण:
    • स्वच्छ ऊर्जा घटकों का घरेलू विनिर्माण एक JET को बनाए रखने, ऊर्जा आत्मनिर्भरता का निर्माण करने और 21वीं सदी की ऊर्जा के हरित रोज़गार के वादे को पूरा करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
      • लागत प्रतिस्पर्द्धात्मकता प्राप्त करना एक चुनौती है (जहाँ भारतीय घटक चीनी घटकों की तुलना में 20% महँगे हैं) और लागत प्रतिस्पर्द्धा को संबोधित किये बिना घरेलू घटकों को वरीयता देने से इनके परिनियोजन की गति धीमी हो सकती है।
    • इसका समाधान यह है कि JET-P के एक भाग के रूप में भारत के बाहर के बाज़ारों तक पहुँच के लिये बातचीत की जाए ताकि आकारिक मितव्ययिता (economies of scale) के माध्यम से लागत के अंतर को कम किया जा सके।
  • कोयला संसाधनों के वर्तमान उपयोग को पुनःसंरेखित करना:
    • फेज-डाउन अवधि तक दक्षता बढ़ाने के लिये कोयला संसाधनों के वर्तमान उपयोग को पुनः संरेखित करने की आवश्यकता है।
    • एक वैकल्पिक समाधान यह होगा कि कोयला-संचालित बिजली संयंत्रों को कोयला खदान के निकट स्थापित किया जाए, न कि विभिन्न राज्यों में ऊर्जा की मांग के आधार पर।
      • इससे कोयले का अधिक कुशलता से उपयोग किया जा सकेगा क्योंकि कोयले का परिवहन इलेक्ट्रॉनों (बिजली) के संचरण की तुलना में अधिक ऊर्जा-गहन है और इससे उत्सर्जन भी कम होता है।
      • इससे सस्ती बिजली भी प्राप्त हो सकेगी, क्योंकि बिजली संयंत्रों के लिये कोयले की लागत का एक-तिहाई परिवहन पर व्यय होता है। इससे उत्पन्न परिणामी बचत अत्यंत आवश्यक उत्सर्जन नियंत्रण उपायों को वित्तपोषित करने में काम आ सकती है।
      • यह कोयले के अधिक कुशल उपयोग के कारण अप्रत्यक्ष रूप से उत्सर्जन को कम करेगा।

अभ्यास प्रश्न: एक संवहनीय और न्यायसंगत अर्थव्यवस्था के लिये ऊर्जा संक्रमण सुनिश्चित करने हेतु भारत द्वारा क्या उपाय किये जा रहे हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. 'इच्छित राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान' शब्द को कभी-कभी समाचारों में किस संदर्भ में देखा जाता है? (2016)

(a) युद्ध प्रभावित मध्य पूर्व से शरणार्थियों के पुनर्वास के लिये यूरोपीय देशों द्वारा की गई प्रतिज्ञा
(b) जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिये विश्व के देशों द्वारा उल्लिखित कार्य योजना
(c) एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक की स्थापना में सदस्य देशों द्वारा योगदान की गई पूंजी
(d) सतत् विकास लक्ष्यों के संबंध में दुनिया के देशों द्वारा उल्लिखित कार्य योजना

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • ‘इच्छित राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान’, UNFCCC के तहत पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले सभी देशों में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी लाने के लिये व्यक्त की गई प्रतिबद्धता को बताता है।
  • CoP 21 में दुनिया भर के देशों ने सार्वजनिक रूप से उन कार्रवाइयों की रूपरेखा तैयार की, जिन्हें वे अंतर्राष्ट्रीय समझौते अंतर्गत क्रियान्वयित करना चाहते थे। राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान पेरिस समझौते के दीर्घकालिक लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर है जो "वैश्विक औसत तापमान में वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के लिये तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के प्रयासों को बढ़ावा देता हैऔर इस शताब्दी के उत्तरार्ध में नेट ज़ीरो उत्सर्जन लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयास करता है।" अतः विकल्प (b) सही है।

मेन्स:

प्रश्न. जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) के पार्टियों के सम्मेलन (CoP) के 26वें सत्र के प्रमुख परिणामों का वर्णन करें। इस सम्मेलन में भारत द्वारा व्यक्त की गई प्रतिबद्धताएँ क्या हैं? (2021)

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