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Sambhav-2023

  • 17 Nov 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    दिवस 8

    प्रश्न- 1. भारतीय मंत्रिपरिषद की संरचना और इसकी भूमिका पर चर्चा कीजिये।

    प्रश्न- 2. मंत्रिमंडलीय समितियों और मंत्रिमंडल के कार्य संचालन में इनकी भूमिका पर चर्चा कीजिये।

    उत्तर

    उत्तर: 1

    दृष्टिकोण:

    • भारत में मंत्रिपरिषद के बारे में संक्षिप्त जानकारी देते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • भारत में मंत्रिपरिषद की संरचना के बारे में बताइए।
    • भारत में मंत्रिपरिषद की भूमिका की विवेचना कीजिये।
    • उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय

    भारत का संविधान ब्रिटिश प्रणाली पर आधारित सरकार की संसदीय प्रणाली का प्रावधान करता है। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्रिपरिषद राजनीतिक-प्रशासनिक प्रणाली में वास्तविक कार्यकारी प्राधिकरण होती है।

    सरकार की संसदीय प्रणाली के सिद्धांत का संविधान में विस्तृत वर्णन नहीं है, लेकिन अनुच्छेद 74 और 75 इसकी रूपरेखा से संबंधित हैं। अनुच्छेद 74 मंत्रिपरिषद की स्थिति से संबंधित है जबकि अनुच्छेद 75 में मंत्रियों की नियुक्ति, कार्यकाल, उत्तरदायित्व , योग्यता, शपथ, वेतन और भत्ते से संबंधित प्रावधान हैं।

    मुख्य भाग

    भारतीय मंत्रिपरिषद की संरचना:

    • मंत्रिपरिषद में मंत्रियों की तीन श्रेणियाँ होती हैं- कैबिनेट मंत्री, राज्य मंत्री और उप मंत्री। इनके बीच का अंतर पदक्रम, वेतन और राजनीतिक महत्त्व होता है।
    • इन सभी मंत्रियों का प्रमुख प्रधानमंत्री (देश के सर्वोच्च प्राधिकारी) होता है।
    • कैबिनेट मंत्री केंद्र सरकार के महत्त्वपूर्ण मंत्रालयों जैसे गृह, रक्षा, वित्त, विदेश मामलों आदि के प्रमुख होते हैं। ये कैबिनेट के सदस्य होने के साथ इसकी बैठकों में भाग लेते हैं और नीति निर्धारण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस प्रकार इनकी ज़िम्मेदारियाँ केंद्र सरकार के संपूर्ण क्षेत्राधिकार तक विस्तृत होती हैं।

    भारतीय मंत्रिपरिषद की भूमिका:

    • अनुच्छेद 74: अनुच्छेद 74 के अनुसार, राष्ट्रपति को सहायता और सलाह देने के लिये प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली एक मंत्रिपरिषद होगी जिसकी सलाह पर राष्ट्रपति अपने कार्यों का निर्वहन करेंगे।
      • हालाँकि राष्ट्रपति ऐसी सलाह को मंत्रिपरिषद के लिये पुनर्विचार हेतु भेज सकता है लेकिन राष्ट्रपति, इस तरह के पुनर्विचार के बाद दी गई सलाह के अनुसार ही कार्य करेगा।
      • मंत्रियों द्वारा राष्ट्रपति को दी गई सलाह, किसी न्यायालय में वाद योग्य नहीं होगी।
    • सामूहिक उत्तरदायित्व का सिद्धांत: अनुच्छेद 75 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि मंत्रिपरिषद, सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती है। इसका तात्पर्य यह है कि सभी मंत्री अपने कृत्यों हेतु लोकसभा के प्रति सामूहिक रुप से ज़िम्मेदार होते हैं। वे एक दल की तरह करते हैं और समान रूप से उत्तरदायी होते हैं।
    • सामूहिक कार्य: यह सरकारी कार्यों हेतु एक साथ बैठक नहीं करती है। इासका कोई सामूहिक कार्य नहीं है। एक निकाय के रूप में यह कभी-कभी और आमतौर पर सप्ताह में एक बार सरकारी कार्यों के आवंटन के संबंध में विचार-विमर्श करने और निर्णय लेने हेतु बैठक करती है।
    • निर्णय का कार्यान्वयन: यह मंत्रिमंडल द्वारा लिये गए निर्णयों को लागू करती है।

    निष्कर्ष

    प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्रिपरिषद का भारत की राजनीतिक-प्रशासनिक प्रणाली में बहुत महत्त्व है, जिसके बिना सरकार के कार्यों का संचालन लगभग असंभव है।


    उत्तर: 2

    दृष्टिकोण:

    • कैबिनेट समितियों के बारे में संक्षेप में बताते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • मंत्रिमंडल समिति की विशेषताओं और मंत्रिमंडल के कार्य संचालन में इनकी भूमिका पर चर्चा कीजिये।
    • उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय

    वर्तमान में (वर्ष 2019) में कुल 8 मंत्रिमंडलीय समितियाँ कार्यरत हैं जैसे राजनीतिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति, आर्थिक मामलों के लिये मंत्रिमंडलीय समिति, मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति, सुरक्षा के लिये मंत्रिमंडल समिति, आदि। इन्हें मंत्रिमंडल के कार्य में सहायता हेतु स्थापित किया गया है।

    मुख्य भाग

    मंत्रिमंडलीय समितियों की विशेषताएँ और मंत्रिमंडल के कार्य संचालन में इनकी भूमिका:

    • अपने प्रादुर्भाव में यह समितियाँ गैर -संवैधानिक अथवा संविधानेत्तर होती हैं। दूसरे शब्दों में इनका उल्लेख संविधान में नहीं है। हालाँकि कार्य नियमों में इनकी स्थापना का प्रावधान है।
    • मंत्रिमंडलीय समितियाँ दो प्रकार की होती हैं- स्थायी समिति और तदर्थ समिति। स्थायी समिति अपने नाम के अनुरूप स्थायी होती है तथा तदर्थ समिति अस्थायी प्रकृति की होती है। कुछ विशेष समस्याओं से निपटने के लिये समय-समय पर तदर्थ समितियाँ गठित की जाती हैं तथा कार्य समाप्त होने के बाद इनका अस्तित्व नहीं रहता है।
    • मंत्रिमंडलीय समितियों का गठन प्रधानमंत्री द्वारा समय और परिस्थिति के अनुसार किया जाता है, इसलिये इनकी संख्या, इनके नाम और संरचना में समय-समय पर भिन्नता होती है।
    • इनकी सदस्य संख्या तीन से आठ तक हो सकती है। आमतौर पर इनमें केवल कैबिनेट मंत्री शामिल होते हैं। हालाँकि गैर-कैबिनेट मंत्रियों को इनकी सदस्यता से प्रतिबंधित नहीं किया गया है।
    • केवल संबद्ध विषय से संबंधित प्रभारी मंत्री ही नहीं, बल्कि अन्य वरिष्ठ मंत्री भी इनमें शामिल होते हैं।
    • इन समितियों की अध्यक्षता प्रायः प्रधानमंत्री द्वारा की जाती है लेकिन कभी-कभी गृह मंत्री तथा वित्त मंत्री भी इन समितियों की अध्यक्षता करते हैं, किंतु प्रधानमंत्री यदि समिति का सदस्य है तो उसकी अध्यक्षता वही करता है।
    • ये समितियाँ न केवल मुद्दों का निपटान करतीं हैं, बल्कि मंत्रिमंडल के विचारार्थ प्रस्ताव भी तैयार करती हैं और निर्णय भी लेती हैं। मंत्रिमंडल इन समितियों द्वारा लिये गए निर्णय की समीक्षा कर सकता है।
    • ये समितियाँ मंत्रिमंडल के कार्य की अधिकता को कम करने के लिये एक सांगठनिक युक्ति की तरह हैं। यह नीतिगत मुद्दों का गहन अध्ययन करती हैं तथा प्रभावी समन्वय स्थापित करती हैं।

    निष्कर्ष

    इस प्रकार मंत्रिमंडलीय समितियाँ सरकार के दिन-प्रतिदिन के कामकाज में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं और ये मंत्रिमंडल तथा मंत्रिपरिषद के कार्यभार को कम करने में सहायक हैं।

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