जैव विविधता और पर्यावरण
सतत् नाइट्रोजन प्रबंधन: FAO
प्रिलिम्स के लिये:खाद्य और कृषि संगठन, नाइट्रोजन प्रदूषण, नाइट्रोजन, पशुधन, हैबर-बॉश प्रक्रम, अमोनियम, वायु प्रदूषण, ग्रीनहाउस गैस, यूट्रोफिकेशन, ओज़ोन परत, मृदा स्वास्थ्य, अक्रिय क्षेत्र, शैवाल प्रस्फुटन, भूतल ओज़ोन, हरित क्रांति, ग्रहीय परिसीमा, पेरिस समझौता, जैव अर्थव्यवस्था, खाद्य सुरक्षा, सतत् विकास लक्ष्य मेन्स के लिये:नाइट्रोजन प्रदूषण की स्थिति और प्रबंधन की विधियाँ, नाइट्रोजन उपयोग दक्षता |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
खाद्य एवं कृषि संगठन ने कृषि खाद्य प्रणालियों में सतत् नाइट्रोजन प्रबंधन शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें नाइट्रोजन प्रदूषण की स्थिति पर प्रकाश डाला गया।
- यह रिपोर्ट कृषि-खाद्य प्रणालियों में नाइट्रोजन के उपयोग की भूमिका और उसके फलस्वरूप उत्पन्न चुनौतियों का व्यापक अवलोकन प्रस्तुत करती है।
रिपोर्ट से संबंधित प्रमुख तथ्य क्या हैं?
- वर्तमान नाइट्रोजन उत्सर्जन: मनुष्य कृषि और उद्योग के माध्यम से प्रतिवर्ष पृथ्वी की भूमि की सतह पर लगभग 150 टेराग्राम (Tg) (1 Tg = 1 मिलियन टन) प्रतिघातक नाइट्रोजन उत्सर्जित करता है तथा जलवायु परिवर्तन के कारण वर्ष 2100 तक यह उत्सर्जन संभावित रूप से 600 Tg प्रति वर्ष तक बढ़ सकता है।
- यह पूर्व-औद्योगिक नाइट्रोजन दर से दोगुने से भी अधिक है, जो पर्यावरण में नाइट्रोजन प्रदूषण को बढ़ाता है।
- नाइट्रोजन हानि के प्रमुख स्रोत: पशुधन से सर्वाधिक नाइट्रोजन उत्सर्जित होता है, जिसका मानवीय गतिविधियों से होने वाले कुल नाइट्रोजन उत्सर्जन में लगभग एक-तिहाई का योगदान है।
- प्रदूषण के अन्य प्रमुख स्रोतों में सिंथेटिक उर्वरक, भूमि उपयोग परिवर्तन और खाद उत्सर्जन शामिल हैं।
- नाइट्रोजन सीमा का अतिक्रमण: वैश्विक नाइट्रोजन प्रवाह ग्रहीय परिसीमाओं से बढ़ गया है (नाइट्रोजन का उपयोग उन पर्यावरणीय सीमाओं से बढ़ गया है जिसके भीतर मानव सुरक्षित रूप से कार्य कर सकता है)।
- वर्ष 2015 के बाद से नाइट्रोजन की अधिकता की मात्रा में एकाएक वृद्धि हुई है।
- वैश्विक फसल उपज रुझान: वैश्विक फसल उपज में लगातार वृद्धि हुई है, जो वर्ष 1961 में प्रति वर्ष प्रति हेक्टेयर 19 किलोग्राम नाइट्रोजन से बढ़कर वर्ष 2022 में 65 किलोग्राम N//हेक्टेयर/वर्ष हो गई है।
- फसल की उपज में वृद्धि के बावजूद, NUE में उतार-चढ़ाव रहा, जो 1961 में 56% से गिरकर 1980 के दशक में 40% हो गया तथा वर्ष 2022 में इसमें सुधार होकर यह 56% हो गया।
- क्षेत्रीय अंतराल:
- एशिया: हरित क्रांति के दौरान प्रदत्त उर्वरक सब्सिडी से उपज में वृद्धि हुई लेकिन इससे नाइट्रोजन प्रदूषण काफी बढ़ गया।
- दक्षिण पूर्व एशिया में NUE में उल्लेखनीय गिरावट देखी गई, जो वर्ष 1961 में 65% थी और 1990 के दशक में 45% हो गई तथा वर्ष 2022 में यह पुनः बढ़कर 54% हो गई।
- अफ्रीका: अपर्याप्त नीतियों और उर्वरकों तक सीमित पहुँच के कारण अफ्रीका कम फसल उपज और पोषक तत्त्वों के अवक्षय का सामना कर रहा है।
- यूरोप और उत्तरी अमेरिका: यहाँ पोषक तत्त्व प्रबंधन दिशा-निर्देशों और विनियमों के माध्यम से उच्च NUE प्राप्त किया गया।
- उत्तरी अमेरिका में NUE में वर्ष 1961 में 65% से वर्ष 1980 के दशक में 50% से नीचे की गिरावट देखी गई किंतु वर्ष 2022 में इसमें 69% की वृद्धि दर्ज की गई।
- लैटिन अमेरिका: आयातित उर्वरकों पर निर्भरता और आपूर्ति शृंखला में व्यवधान के कारण नाइट्रोजन प्रबंधन पर प्रभाव पड़ने जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
- एशिया: हरित क्रांति के दौरान प्रदत्त उर्वरक सब्सिडी से उपज में वृद्धि हुई लेकिन इससे नाइट्रोजन प्रदूषण काफी बढ़ गया।
- फसल स्तर पर NUE में भिन्नता: फसल के प्रकार के अनुसार NUE में काफी भिन्न होती है:
- वर्ष 2010 में सोयाबीन का NUE 80% था, जो उच्च नाइट्रोजन उपयोग दक्षता को दर्शाता है।
- फलों और सब्जियों में NUE बहुत कम था, वर्ष 2010 में लगभग 14%, जो उत्पादन के दौरान नाइट्रोजन के व्यापक ह्रास को दर्शाता है।
- विकासशील देशों में चुनौतियाँ: निम्न और मध्यम आय वाले देशों को नाइट्रोजन उर्वरकों तक सीमित पहुँच और मृदा स्वास्थ्य क्षरण जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
- नाइट्रोजन के ह्रास को दूर किये बिना, फसल की उपज कम रहती है तथा खराब खाद प्रबंधन से नाइट्रोजन उत्सर्जन बढ़ जाता है।
नोट:
- ग्रहीय परिसीमाएँ: ग्रहीय परिसीमा रूपरेखा, जोहान रॉकस्ट्रॉम और 28 वैज्ञानिकों द्वारा वर्ष 2009 में प्रस्तुत की गई थी जो मानवता के सुरक्षित अस्तित्व के लिये स्थिरता और जैवविविधता को संरक्षित रखने के लिये पृथ्वी की पर्यावरणीय सीमाओं को परिभाषित करती है।
- ग्रहों की सीमाओं का उल्लंघन करने से अपरिवर्तनीय पर्यावरणीय परिवर्तनों का खतरा बढ़ जाता है, जिससे पृथ्वी की जीवन-क्षमता को खतरा हो सकता है।
नाइट्रोजन उपयोग दक्षता (NUE) क्या है?
- परिचय: इसका उपयोग बायोमास उत्पादन के लिये अनुप्रयुक्त या स्थिर नाइट्रोजन का उपयोग करने में संयंत्र की दक्षता का वर्णन करने के लिये किया जाता है।
- यह फसल की उपज और मृदा से अवशोषित या बैक्टीरिया द्वारा स्थिर किये गये नाइट्रोजन का अनुपात है।
- खराब NUE: खराब NUE से तात्पर्य कृषि में नाइट्रोजन के अकुशल उपयोग से है, जहाँ इसका अधिकांश भाग पर्यावरण में नष्ट हो जाता है, जिससे प्रदूषण होता है और उत्पादकता कम हो जाती है।
- खराब NUE से संबंधित चिंताएँ: खराब NUE के कारण भारत में प्रति वर्ष 1 ट्रिलियन रुपए तथा विश्व स्तर पर प्रति वर्ष 170 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक मूल्य का नाइट्रोजन उर्वरक व्यर्थ जाता है।
- भारत नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत है, जो एक प्रबल ग्रीनहाउस गैस है जो कार्बन डाइऑक्साइड से भी अधिक वायुमंडल को ऊष्मित करती है।
- वर्ष 2020 में, वैश्विक मानवजनित N2O उत्सर्जन में भारत का लगभग 11% का योगदान था, जो चीन के 16% के बाद दूसरे स्थान पर था।
नाइट्रोजन प्रदूषण क्या है?
- परिचय: नाइट्रोजन (N) अमीनो एसिड और प्रोटीन का मुख्य निर्माण खंड है, जो पौधों की वृद्धि और कृषि खाद्य प्रणालियों के लिये आवश्यक है।
- नाइट्रोजन फसल और पशुधन उत्पादन के लिये आवश्यक है। जबकि फलियाँ वायुमंडलीय नाइट्रोजन को स्थिर करती हैं किंतु अधिकांश पौधे मृदा के नाइट्रोजन पर निर्भर होते हैं।
- हैबर-बॉश प्रक्रम से निष्क्रिय नाइट्रोजन अभिक्रियाशील नाइट्रोजन (जैसे अमोनियम) में परिवर्तित होता है, जिससे सिंथेटिक उर्वरकों का उपयोग संभव हो जाता है, जिससे फसल उत्पादन बढ़ता है।
- नाइट्रोजन प्रदूषण: नाइट्रोजन प्रदूषण से तात्पर्य पर्यावरण में नाइट्रोजन यौगिकों, विशेष रूप से नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) और नाइट्रेट्स (NO 3) के रूप में अत्यधिक उपस्थिति से है।
- पर्यावरण में नाइट्रोजन की हानि (उत्सर्जन) वायु और जल की गुणवत्ता, मानव स्वास्थ्य और जैव विविधता को नुकसान पहुँचती है, तथा स्थलीय और जलीय दोनों पारिस्थितिकी तंत्रों पर प्रभाव डालती है।
- नाइट्रोजन हानि के रूप:
- वायु प्रदूषण: अमोनिया (NH3) और नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) का उत्सर्जन वायु प्रदूषण में योगदान देता है।
- ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन: नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस (GHG) है, जो जलवायु परिवर्तन में योगदान देती है।
- जल प्रदूषण: नाइट्रेट निक्षालन से जल निकायों में सुपोषण और अम्लीकरण होता है, जिससे जलीय पारिस्थितिकी तंत्र और जल की गुणवत्ता को नुकसान पहुँचता है।
- नाइट्रोजन प्रदूषण से संबंधित चिंताएँ: पिछले 150 वर्षों में, मानव-चालित प्रतिक्रियाशील नाइट्रोजन प्रवाह में दस गुना वृद्धि हुई है।
- प्रत्येक वर्ष 200 मिलियन टन प्रतिक्रियाशील नाइट्रोजन (80%) पर्यावरण में नष्ट हो जाती है, जिससे मिट्टी, नदियाँ, झीलें और वायु प्रदूषित हो जाती है।
- प्रभाव:
- ग्लोबल वार्मिंग और ओज़ोन परत: नाइट्रस ऑक्साइड ग्रीनहाउस गैस के रूप में मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड से 300 गुना अधिक शक्तिशाली है और ओज़ोन परत के लिये सबसे बड़ा मानव निर्मित खतरा है।
- जैव विविधता: नाइट्रोजन प्रदूषण, कृत्रिम उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग के कारण मृदा को अम्लीय बनाकर उसे खराब कर सकता है, जिससे मृदा स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचता है तथा उत्पादकता में कमी आती है।
- समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र में, नाइट्रोजन प्रदूषण के कारण समुद्र में हानिकारक शैवाल प्रस्फुटन और मृत क्षेत्रों का विकास हो सकता है।
- वायु: कोयला संयंत्रों, कारखानों और वाहनों से निकलने वाले नाइट्रोजन ऑक्साइड से धुंध और जमीनी स्तर पर ओज़ोन परत का निर्माण हो सकता है।
- कृषि से निकलने वाले अमोनिया और वाहनों से निकलने वाले धुएँ से हानिकारक कण उत्पन्न होते हैं, जो श्वसन संबंधी बीमारियों को बढ़ाते हैं।
रिपोर्ट के अनुसार नाइट्रोजन प्रदूषण से निपटने के लिये प्रमुख प्रस्ताव क्या हैं?
- उर्वरक उद्योग हस्तक्षेप: नाइट्रोजन उर्वरक उत्पादन में GHG उत्सर्जन को कम करना और भंडारण, परिवहन और अनुप्रयोग के दौरान नुकसान को न्यूनतम करना।
- वायुमंडलीय नाइट्रोजन को प्राकृतिक रूप से स्थिर करने के लिये सोयाबीन और अल्फाल्फा जैसी फलीदार फसलों की खेती को बढ़ावा देना।
- नाइट्रोजन हॉटस्पॉट से बचने के लिये पशुधन को पुनर्वितरित करने और विशिष्ट क्षेत्रों में पशुधन की सांद्रता को कम करने के लिये स्थानिक योजना को लागू करना।
- जलवायु लक्ष्यों के साथ एकीकरण: राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) में सतत् नाइट्रोजन प्रबंधन को एकीकृत करना, पेरिस समझौते के 1.5 डिग्री सेल्सियस लक्ष्य के अनुरूप कृषि खाद्य प्रणालियों से नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन को कम करने के लिये लक्ष्य निर्धारित करना।
- वैश्विक जैव विविधता लक्ष्यों को पूरा करने के लिये नाइट्रोजन प्रदूषण, विशेष रूप से अमोनिया और नाइट्रेट्स को कम करने के लिये राष्ट्रीय प्रतिबद्धताएँ स्थापित करना।
- परिपत्र जैव अर्थव्यवस्था सिद्धांत: परिपत्र जैव अर्थव्यवस्था खाद्य हानियों को कम करने, अपशिष्ट को पुनर्चक्रित करने और पशुधन का उपयोग करके बायोमास और अपशिष्ट धाराओं को उपयोगी संसाधनों में परिवर्तित करके संसाधन उपयोग दक्षता और NUE में सुधार कर सकती है।
- मानव उपभोग के लिये अनुपयुक्त खाद्य अपशिष्ट को पशुओं के चारे के रूप में उपयोग करने तथा पुनर्चक्रण को बढ़ावा देना।
- सतत् नाइट्रोजन प्रबंधन: उच्च दक्षता, कम उत्सर्जन वाले खनिज उर्वरकों में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के निवेश को प्रोत्साहित करना।
- प्रणाली की दक्षता बढ़ाने और संसाधन की बर्बादी को कम करने के लिये जैविक अवशेषों के पुनर्चक्रण को बढ़ावा देना।
- NUE में सुधार की तकनीकों में बेहतर उर्वरक रणनीतियाँ, खाद प्रबंधन और फसल प्रणालियों में पशुधन को एकीकृत करना शामिल है।
- नाइट्रोजन की दोहरी भूमिका में संतुलन: प्रभावी नीतियों में पोषक तत्व और प्रदूषक के रूप में नाइट्रोजन की भूमिका के बीच सामंजस्य स्थापित करना होगा, ताकि खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए इसके पर्यावरणीय प्रभाव को कम किया जा सके।
निष्कर्ष:
वर्ष 2030 तक सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये, विशेष रूप से स्वास्थ्य, स्वच्छ जल, भूख, सतत् उत्पादन और उपभोग, जलवायु परिवर्तन से निपटने और भूमि तथा जल के नीचे जीवन की रक्षा से संबंधित- सतत् नाइट्रोजन प्रबंधन की आवश्यकता है। नाइट्रोजन के नुकसान को कम करने और कृषि-खाद्य शृंखला में नाइट्रोजन के उपयोग की दक्षता बढ़ाने से निम्न और मध्यम आय वाले देशों में खाद्य उत्पादन को बढ़ावा देने में मदद मिल सकती है, जिससे अधिक नाइट्रोजन संसाधनों को उनके इच्छित कार्य को पूरा करने, हानिकारक उत्सर्जन को कम करके स्वास्थ्य को बढ़ाने एवं जल निकायों को प्रदूषण से बचाने में मदद मिल सकती है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन का विश्व का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत भारत है। कारणों का विश्लेषण कीजिये तथा भारत के स्थायी नाइट्रोजन नियंत्रण के लिये विधायी समाधान सुझाएँ। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2019) 1. कार्बन मोनोऑक्साइड फसल/बायोमास अवशेषों के जलने से उपर्युक्त में से कौन-से वातावरण में उत्सर्जित होते है? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (a) केवल 1 और 3 उत्तर: (d) मेन्सप्रश्न. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) द्वारा हाल ही में जारी किये गए संशोधित वैश्विक वायु गुणवत्ता दिशा-निर्देशों (ए.क्यू.जी.) के मुख्य बिंदुओं का वर्णन कीजिये। विगत वर्ष 2005 के अद्यतन से, ये किस प्रकार भिन्न हैं? इन संशोधित मानकों को प्राप्त करने के लिये, भारत के राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम में किन परिवर्तनों की आवश्यकता है? (2021) प्रश्न. 2 सिक्किम भारत में प्रथम ‘जैविक राज्य’ है। जैविक राज्य के पारिस्थितिक एवं आर्थिक लाभ क्या-क्या होते हैं? (2018) |
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
सिंधु जल संधि से संबंधित विवाद
प्रिलिम्स:सिंधु जल संधि (IWT), सिंधु और उसकी सहायक नदियाँ, किशनगंगा और रतले जलविद्युत परियोजनाएँ, विश्व बैंक। मेन्स:सिंधु जल संधि और संबंधित मुद्दा |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
विश्व बैंक द्वारा नियुक्त तटस्थ विशेषज्ञ ने हाल ही में कहा है कि वह सिंधु और उसकी सहायक नदियों पर किशनगंगा तथा रतले जलविद्युत परियोजना के डिज़ाइन के संबंध में पाकिस्तान द्वारा उठाए गए मुद्दे को हल करने में सक्षम है।
सिंधु जल संधि (IWT) से संबंधित प्रमुख विवाद क्या हैं?
- जल विभाजन संबंधी विवाद:
- किशनगंगा जलविद्युत परियोजना: किशनगंगा जलविद्युत परियोजना (HEP) जम्मू-कश्मीर में किशनगंगा नदी (झेलम की सहायक नदी) से संबंधित है। पाकिस्तान ने इस पर दावा किया है कि विद्युत उत्पादन के लिये जल के बहाव पर नियंत्रण, IWT का उल्लंघन है।
- रतले जलविद्युत परियोजना: यह जम्मू-कश्मीर में चेनाब नदी पर एक रन-ऑफ-द-रिवर परियोजना है। इसके संदर्भ में पाकिस्तान ने चिंता जताई थी कि तटबंध का डिज़ाइन, भारत को नदी के प्रवाह पर काफी अधिक नियंत्रण प्रदान करता है।
- विवाद समाधान प्रक्रिया:
- पाकिस्तान ने किशनगंगा और रतले परियोजनाओं पर आपत्ति जताई थी, तथा शुरू में वर्ष 2015 में सिंधु जल संधि के तहत एक तटस्थ विशेषज्ञ की मांग की थी, लेकिन बाद में उसने PCA द्वारा निर्णय की मांग की थी।
- भारत ने इसका विरोध किया और IWT के विवाद समाधान पदानुक्रम पर ज़ोर दिया, जो PCA पर तटस्थ विशेषज्ञ को प्राथमिकता देता है। वर्ष 2022 में, विश्व बैंक ने तटस्थ विशेषज्ञ और PCA दोनों प्रक्रियाओं की शुरुआत की।
- भारत ने तटस्थ विशेषज्ञ के साथ वार्ता करते हुए PCA का बहिष्कार किया तथा इस बात पर ज़ोर दिया कि केवल तटस्थ विशेषज्ञ को ही सिंधु जल संधि के अंतर्गत विवादों को सुलझाने का अधिकार है।
सिंधु जल संधि क्या है?
- परिचय: यह भारत और पाकिस्तान के बीच वर्ष 1960 में विश्व बैंक के तत्वावधान में हस्ताक्षरित एक जल-बंटवारा समझौता है, जिसके तहत सिंधु नदी और इसकी 5 सहायक नदियों (सतलुज, ब्यास, रावी, झेलम और चिनाब) के जल को दोनों देशों के बीच विभाजित किया गया है।
- प्रमुख प्रावधान:
- जल बंटवारे की व्यवस्था:
- यह संधि भारत को तीन पूर्वी नदियों (व्यास, रावी, सतलुज) के अप्रतिबंधित उपयोग की अनुमति देती है तथा तीन पश्चिमी नदियों (चिनाब, सिंधु, झेलम) को पाकिस्तान को आवंटित करती है, साथ ही भारत को विशिष्ट परिस्थितियों में घरेलू, गैर-उपभोग्य, कृषि और जलविद्युत प्रयोजनों के लिये इन नदियों के जल का उपयोग करने की कुछ छूट भी देती है।
- इस व्यवस्था के अनुसार, पाकिस्तान को सिंधु नदी प्रणाली से लगभग 80% जल आवंटित किया जाता है, जबकि भारत को लगभग 20% जल मिलता है।
- स्थायी सिंधु आयोग: संधि ने दोनों देशों के प्रतिनिधियों के साथ एक स्थायी सिंधु आयोग (PIC) की स्थापना को अनिवार्य किया, जिसे संधि के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये वार्षिक बैठक करनी होती है।
- जल बंटवारे की व्यवस्था:
- विवाद समाधान तंत्र: IWT का अनुच्छेद IX 3-स्तरीय विवाद समाधान प्रक्रिया की रूपरेखा प्रस्तुत करता है:
- PIC द्वारा समाधान: संधि की व्याख्या या उल्लंघन से संबंधित प्रारंभिक विवादों या प्रश्नों का समाधान PIC द्वारा किया जाता है, जो भारत और पाकिस्तान के अधिकारियों का एक द्विपक्षीय निकाय है।
- निष्पक्ष विशेषज्ञ: यदि PIC समस्या का समाधान करने में विफल रहती है, तो इसे किसी भी आयुक्त के अनुरोध पर विश्व बैंक द्वारा नियुक्त तटस्थ विशेषज्ञ के पास भेजा जाता है।
- मध्यस्थता न्यायालय: यदि मामला विवाद के रूप में वर्गीकृत है या निष्पक्ष विशेषज्ञ के अधिकार क्षेत्र से बाहर है, तथा यदि द्विपक्षीय वार्ता विफल हो जाती है, तो कोई भी पक्ष विश्व बैंक द्वारा स्थापित मध्यस्थता न्यायालय का सहारा ले सकता है।
नोट: PCA की स्थापना वर्ष 1899 में हुई थी। यह हेग (नीदरलैंड) में स्थित है, यह राज्यों के बीच विवादों को का समाधान करता है, मध्यस्थता और अन्य तंत्र प्रदान करता है। यह विकासशील देशों को मध्यस्थता लागतों को कवर करने में मदद करने के लिये एक वित्तीय सहायता कोष भी प्रदान करता है।
IWT से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?
- पुराने प्रावधान: IWT जलवायु परिवर्तन जैसी आधुनिक चुनौतियों का समाधान नहीं करता है, जिसने सिंधु बेसिन में जल विज्ञान प्रारूप को बदल दिया है, जिससे पानी की उपलब्धता प्रभावित हुई है।
- ऐतिहासिक जल विज्ञान प्रवृत्तियों के आधार पर स्थापित IWT, जल आपूर्ति पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से खतरे में है, जिसमें उच्च वाष्पीकरण, अप्रत्याशित वर्षा और हिमनदों का तेज़ी से पिघलना शामिल है।
- अनुकूलता का अभाव: संधि के तहत जल संसाधनों का असंगत आवंटन बदलती परिस्थितियों के अनुरूप अनुकूल जल प्रबंधन रणनीतियों को लागू करने की क्षमता को सीमित करता है।
- PCA की अनियमितताएँ: विश्व बैंक द्वारा शुरू की गई समानांतर कार्यवाही संधि के विवाद समाधान ढाँचे में अस्पष्टता को उजागर करती है, तथा सुधार और स्पष्टीकरण की आवश्यकता का संकेत देती है।
- भू-राजनीतिक तनाव: भारत और पाकिस्तान के बीच व्यापक अविश्वास और शत्रुता संधि की प्रभावशीलता में बाधा डालती है, जिससे जल-आवंटन और प्रबंधन पर सहयोग बाधित हो जाता है।
आगे की राह
- संधि पर पुनः वार्ता: इसकी सीमाओं का निवारण करने तथा जलवायु लचीलेपन और सतत् जल प्रबंधन के प्रावधानों को इसमें शामिल करने के लिये IWT पर पुनः विचार किये जाने की तत्काल आवश्यकता है।
- बेहतर संवाद: भारत और पाकिस्तान को विवादों को सौहार्दपूर्ण रूप से निवारण करने हेतु संवाद और विश्वास-निर्माण उपायों को प्राथमिकता देनी चाहिये। इसके संदर्भ में स्थायी सिंधु आयोग का पुनरुद्धार एक शुरुआती बिंदु के रूप में काम कर सकता है।
- तृतीय-पक्ष मध्यस्थता: विश्व बैंक और अन्य तटस्थ पक्ष वार्ता को सुविधाजनक बनाने और संधि का अनुपालन सुनिश्चित करने में रचनात्मक भूमिका निभा सकते हैं।
- तकनीकी समाधान का विकल्प: दोनों देशों को जलविद्युत परियोजनाओं से संबंधित विवादों का समाधान करने हेतु तकनीकी और वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाना चाहिये तथा डेटा साझाकरण एवं संयुक्त अध्ययन पर ज़ोर देना चाहिये।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. सिंधु जल संधि (IWT) क्या है? चर्चा कीजिये कि भारत किन कारणों से IWT पर पुनः वार्ता करना चाहता है। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. सिंधु नदी प्रणाली के संदर्भ में निम्नलिखित चार नदियों में से तीन उनमें से एक में मिलती हैं, जो अंततः सीधे सिंधु में मिलती हैं। निम्नलिखित में से कौन-सी ऐसी नदी है जो सीधे सिंधु से मिलती है? (2021) (a) चिनाब उत्तर: (d) प्रश्न. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2019)
उपर्युक्त युग्मों में से कौन-से युग्म सही सुमेलित हैं? (a) 1, 2 और 4 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. नदियों को आपस में जोड़ना सूखा, बाढ़ और बाधित जल-परिवहन जैसी बहु-आयामी अंतर्संबंधित समस्याओं का व्यवहार्य समाधान दे सकता है। आलोचनात्मक परिक्षण कीजिये। (2020) |
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
अमेरिका की नीतियों में परिवर्तन का भारत पर प्रभाव
प्रिलिम्स के लिये:पेरिस समझौता, विश्व स्वास्थ्य संगठन, वैश्विक न्यूनतम कर, H-1B वीज़ा, ग्रीनहाउस गैसें, जीवाश्म ईंधन, वैश्विक दक्षिण, आर्थिक सहयोग और विकास संगठन, टैक्स हेवेन, क्वाड गठबंधन, BRICS मेन्स के लिये:अमेरिकी नीति में परिवर्तन और भारत पर इसका प्रभाव, जन्मसिद्ध नागरिकता, नीतिगत परिवर्तन के पश्चात् वैश्विक जलवायु कार्यवाही, कराधान और वैश्विक अर्थव्यवस्था |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कई कार्यपालक आदेशों पर हस्ताक्षर किये हैं, जिनमें जन्मसिद्ध नागरिकता समाप्त करना, पेरिस समझौते से हटना, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) से बाहर निकलना और वैश्विक कॉर्पोरेट न्यूनतम कर (GCMT) समझौते को खारिज़ करना शामिल है।
- इन निर्णयों का भारत, जलवायु नीति और अमेरिका में भारतीय पेशेवरों के जीवन पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा।
जन्मसिद्ध नागरिकता के निरसन का क्या प्रभाव है?
- अमेरिका में जन्मसिद्ध नागरिकता: अमेरिका में दो प्रकार की जन्मसिद्ध नागरिकता है- वंश-आधारित और जन्मस्थान-आधारित (jus soli) (मातृभूमि का अधिकार), जिसके अंतर्गत माता-पिता की राष्ट्रीयता को दृष्टिगत न रखते हुए अमेरिका की धरती पर जन्म लेने वाले व्यक्तियों को नागरिकता प्रदान की जाती है।
- कार्यपालक आदेश: आदेश के अनुसार गैर-नागरिक (अन्यदेशीय) माता-पिता से जन्म लेने वाले बच्चे अमेरिकी अधिकैर्ता के अध्यधीन नहीं हैं और इसलिये वे स्वतः नागरिकता के योग्य नहीं हैं।
- कार्यपालक आदेश का एक मुख्य उद्देश्य "बर्थ टूरिज़्म" को कम करना है, जहाँ महिलाएँ अपने बच्चों के लिये स्वतः नागरिकता प्राप्त करने के उद्देश्य से उन्हें जन्म देने हेतु अमेरिका की यात्रा करती हैं।
- यह नीति विशेष रूप से भारत और मैक्सिको जैसे देशों के परिवारों को प्रभावित करेगी, जहाँ बर्थ टूरिज़्म प्रचलित है।
- प्रभाव:
- H-1B वीज़ा धारकों पर प्रभाव: भारतीय H-1B वीज़ा धारकों और ग्रीन कार्ड आवेदकों के अमेरिका में जन्मे बच्चों की नागरिकता स्वतः समाप्त हो सकती है, जिससे परिवारों के लिये अनिश्चितता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
- मिश्रित नागरिकता वाले परिवारों को स्वजन से अलगाव का सामना करना पड़ सकता है या उन्हें अमेरिका में अपने भविष्य पर पुनर्विचार करने के लिये विवश होना पड़ सकता है।
- इस नीतिगत बदलाव से कुशल श्रमिकों द्वारा दीर्घावधि का प्रवासन करने और परिवार नियोजन किये जाने को लेकर हतोत्साहित हो सकते हैं
- भारतीय नागरिक कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड जैसे देशों में प्रवास का विकल्प चुन सकते हैं, जहाँ आव्रजन नीतियाँ अधिक अनुकूल हैं।
- निर्वासन में वृद्धि: अमेरिका में लगभग 7.25 लाख अवैध भारतीय नागरिकों को निर्वासन का खतरा बढ़ गया है।
- कानूनी चुनौतियाँ: जन्मसिद्ध नागरिकता का निरसन अमेरिकी संविधान के 14वें संशोधन के विपरीत है, जो अमेरिकी धरती पर जन्मे सभी लोगों को नागरिकता की गारंटी प्रदान करता है। न्यायालय में चुनौती दिये जाने की संभावना है।
- अमेरिका पर आर्थिक प्रभाव: कुशल प्रवासी नवाचार, स्वास्थ्य सेवा और सूचना प्रौद्योगिकी (IT) क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।
- ऐसी नीतियों से अमेरिका में प्रतिभाओं की कमी हो सकती है तथा भारतीय पेशेवरों पर निर्भर व्यवसायों में व्यवधान उत्पन्न हो सकता है।
- H-1B वीज़ा धारकों पर प्रभाव: भारतीय H-1B वीज़ा धारकों और ग्रीन कार्ड आवेदकों के अमेरिका में जन्मे बच्चों की नागरिकता स्वतः समाप्त हो सकती है, जिससे परिवारों के लिये अनिश्चितता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
पेरिस समझौते से अमेरिका के अलग होने के क्या निहितार्थ हैं?
- पेरिस समझौता: वर्ष 2015 में पेरिस में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP21) में 196 देशों (भारत सहित) द्वारा अपनाया गया, यह जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) के तहत कानूनी रूप से बाध्यकारी वैश्विक समझौता है।
- इसका उद्देश्य वैश्विक तापमान को पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5°C तक सीमित रखना है, तथा इसे 3.6°F (2°C) से नीचे रखने का लक्ष्य है।
- राष्ट्रों को अधिकाधिक महत्त्वाकांक्षी उत्सर्जन न्यूनीकरण लक्ष्य निर्धारित करने के लिये प्रोत्साहित करना।
- इसमें अमेरिका सहित विकसित देशों से यह अपेक्षा की गई है कि वे विकासशील देशों में जलवायु अनुकूलन और शमन प्रयासों के लिये वित्त मुहैया कराने के लिये प्रतिबद्ध हों।
- अमेरिकी वापसी के कारण: ट्रंप ने कहा कि पेरिस समझौता अमेरिकी मूल्यों को प्रतिबिंबित नहीं करता है और करदाताओं के वित्त को उन देशों की ओर पुनर्निर्देशित करता है जिन्हें वित्तीय सहायता की "आवश्यकता नहीं है या वे इसके पात्र नहीं हैं।"
- निहितार्थ: ग्रीनहाउस गैसों के दूसरे सबसे बड़े उत्सर्जक के रूप में अमेरिका, उत्सर्जन को कम करने के वैश्विक प्रयासों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- पेरिस समझौते से अलग होने से अंतर्राष्ट्रीय जलवायु वित्त पर प्रभाव पड़ेगा, तथा भारत सहित विकासशील देशों में शमन और अनुकूलन प्रयासों के लिये धन में कटौती होगी।
- निजी जलवायु वित्तपोषण में कटौती, जो कि अमेरिका से अत्यधिक प्रभावित है, नवीकरणीय ऊर्जा और हरित परियोजनाओं के लिये संसाधनों को सीमित कर सकती है।
- इसके अतिरिक्त, जीवाश्म ईंधन पर अमेरिका के ध्यान और ऊर्जा विनियमनों को वापस लेने से चार वर्षों में 4 बिलियन टन अतिरिक्त उत्सर्जन हो सकता है, जिससे वैश्विक जलवायु के समक्ष चुनौतियाँ और भी बढ़ जाएंगी।
WHO से अमेरिका के अलग होने का क्या प्रभाव होगा?
- अमेरिका के पीछे हटने के कारण: ट्रंप ने कोविड-19 महामारी से निपटने में WHO की लापरवाही, त्वरित सुधारों को लागू करने में विफलता और राजनीतिक प्रभाव, विशेष रूप से चीन के प्रति संवेदनशीलता को अमेरिका के पीछे हटने के कारणों के रूप में उद्धृत किया।
- चीन की बड़ी जनसंख्या के बावजूद, अमेरिका द्वारा चीन की तुलना में दिये जाने वाले असंगत वित्तीय योगदान पर चिंता व्यक्त की गई।
- अमेरिका ने WHO के कुल वित्तपोषण में लगभग 20% का योगदान दिया, जो कि निर्धारित एवं स्वैच्छिक दोनों प्रकार से था।
- प्रभाव:
- WHO पर प्रभाव: अमेरिका के हटने से वित्तपोषण में कमी आएगी, जो पोलियो उन्मूलन और महामारी की तैयारी सहित वैश्विक स्वास्थ्य कार्यक्रमों को बाधित कर सकती है।
- कार्यकारी आदेश में सभी अमेरिकी कर्मियों और ठेकेदारों को वापस बुलाने का आदेश दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप वैक्सीन अनुसंधान, रोग नियंत्रण और स्वास्थ्य नीति जैसे प्रमुख क्षेत्रों में विशेषज्ञता का नुकसान हुआ, जिससे विश्व स्तर पर WHO की सलाहकार भूमिका कमज़ोर हो गई।
- अमेरिका के लिये घरेलू निहितार्थ: WHO से हटने से अमेरिकियों की वैश्विक स्वास्थ्य खुफिया जानकारी तक पहुँच सीमित हो सकती है और अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीतियों पर अमेरिका का प्रभाव कम हो सकता है।
- भारत पर प्रभाव: विश्व स्वास्थ्य संगठन से अमेरिका के बाहर निकलने से भारत के स्वास्थ्य कार्यक्रम धीमे हो सकते है, जिसमें ह्यूमन इम्यूनोडिफिसिएंसी वायरस (HIV) और तपेदिक जैसी बीमारियों पर किये जाने वाले प्रयास भी शामिल हैं।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन के वित्त पोषण और विशेषज्ञता में कमी के कारण, भारत और अन्य ग्लोबल साउथ देशों से वैश्विक स्वास्थ्य में बड़ी भूमिका निभाने की उम्मीद की जा रही है, तथा भारत विकासशील देशों के बीच अधिक सहयोग की वकालत करने वाले एक नेता के रूप में उभर रहा है।
- WHO पर प्रभाव: अमेरिका के हटने से वित्तपोषण में कमी आएगी, जो पोलियो उन्मूलन और महामारी की तैयारी सहित वैश्विक स्वास्थ्य कार्यक्रमों को बाधित कर सकती है।
वैश्विक कॉर्पोरेट न्यूनतम कर समझौते को अमेरिका द्वारा अस्वीकार किये जाने का क्या प्रभाव होगा?
- GCMT समझौता: आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD) के ढाँचे के तहत किये गए इस समझौते में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिये ग्लोबई मॉडल नियमों के तहत वैश्विक न्यूनतम कर (GMT) दर निर्धारित की गई।
- यह सुनिश्चित करता है कि वे प्रत्येक क्षेत्राधिकार में न्यूनतम कर का भुगतान करें, लाभ स्थानांतरण को कम करें और कॉर्पोरेट कर दरों में "रेस टू द बॉटम" को समाप्त करें, जिसका उद्देश्य देशों को व्यापार को आकर्षित करने के लिये कर दरों में कटौती करने से रोकना है, जिसके परिणामस्वरूप प्रायः न्यूनतम कर राजस्व प्राप्त होता है।
- अपने दो-स्तंभीय समाधान के साथ इस समझौते का उद्देश्य कर चोरी, टैक्स हेवेन पर अंकुश लगाना और वैश्विक कर प्रतिस्पर्द्धा को स्थिर करना है।
- स्तंभ 1: यह घटक बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लाभांश को उन क्षेत्रों में पुनः आवंटित करने पर केंद्रित है जहाँ से वे राजस्व सृजित करती हैं।
- स्तंभ 2: इसमें 15% GMT दर निर्धारित की गई है, जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कंपनियाँ करों का उचित भुगतान करें, चाहे वे कहीं भी परिचालन करती हों।
- अमेरिकी अस्वीकृति के कारण: राष्ट्रपति ट्रंप ने तर्क दिया कि 15% की GMT दर अमेरिकी संप्रभुता और प्रतिस्पर्द्धात्मकता का उल्लंघन करती है, और दावा किया कि इससे अमेरिकी प्रणाली की तुलना में अधिक करों के कारण अमेरिकी व्यवसायों को नुकसान होगा।
- वर्ष 2017 के टैक्स कट्स एंड जॉब्स एक्ट के तहत, अमेरिका में 10% वैश्विक न्यूनतम कर था।
- प्रभाव:
- वैश्विक सहमति पर प्रभाव: समझौते से अमेरिका के हटने से वैश्विक कर नियमों पर आम सहमति तक पहुँचने के अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों में बाधा आ सकती है।
- भारत पर प्रभाव: विशेषज्ञों का सुझाव है कि वैश्विक कर समझौते से अमेरिका के बाहर होने से भारत की कर नीतियों एवं कर संग्रहण प्रणालियों पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ेगा।
- भारत ने "प्रतीक्षा करो और देखो" का दृष्टिकोण अपनाया है तथा GloBE नियमों से संबंधित विशिष्ट कानून बनाने से परहेज किया है।
- परिणामस्वरूप, देश का कर परिदृश्य फिलहाल अप्रभावित बना हुआ है।
भारत किस प्रकार उभरती अमेरिकी नीतियों के आलोक में सामंजस्य स्थापित कर सकता है?
- वकालत और कूटनीति: भारत को अपने आप्रवासी समुदाय के अधिकारों की रक्षा के लिये सक्रिय रूप से कूटनीतिक उपायों को अपनाना चाहिये तथा यह सुनिश्चित करना चाहिये कि भारतीयों को विकसित होती अमेरिकी नीतियों के तहत संरक्षित किया जाए।
- अमेरिका के साथ द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करने से ऐसी नीतियों की वकालत करने में मदद मिल सकती है जो भारतीय प्रवासियों के लिये अधिक समावेशी और सहायक हों जिससे अधिक निष्पक्ष वातावरण सुनिश्चित हो सके।
- अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ क्वाड गठबंधन को मज़बूत करने से क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ाने के साथ-साथ चीन के प्रभाव को संतुलित किया जा सकता है।
- जलवायु कार्यवाही में तेज़ी लाना: भारत को जलवायु नेतृत्व प्रदर्शित करने के लिये राष्ट्रीय सौर मिशन और राष्ट्रीय पवन-सौर हाइब्रिड नीति, 2018 के तहत अपने नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों में तेज़ी लानी चाहिये।
- यूरोपियन यूनियन, जापान और पेरिस समझौते के अन्य हस्ताक्षरकर्त्ताओं के साथ सहयोग करने से नवीकरणीय ऊर्जा विकास को बढ़ावा देने के लिये हरित परियोजनाओं के लिये वैकल्पिक वित्तपोषण सुरक्षित करने में मदद मिल सकती है।
- वैश्विक स्वास्थ्य क्षेत्र में भूमिका: भारत अपनी फार्मास्युटिकल एवं स्वास्थ्य सेवा विशेषज्ञता का लाभ (जैसा कि कोविड-19 वैक्सीन कूटनीति के दौरान प्रदर्शित किया गया है) उठा सकता है, ताकि विश्व स्वास्थ्य संगठन में अमेरिका की कम भागीदारी से उत्पन्न अंतराल को भरा जा सके।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन में प्रमुख पदों पर अधिक भारतीय पेशेवरों की नियुक्ति पर बल देकर, भारत वैश्विक स्वास्थ्य प्रशासन में अपना नेतृत्व बढ़ा सकता है तथा अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीतियों को आकार देने में अपनी स्थिति मजबूत कर सकता है।
- बहुपक्षीय मंचों पर कार्य करना: अमेरिकी नीतिगत बदलावों से प्रभावित देशों (जैसे यूरोपीय संघ और BRICS सदस्यों) के साथ साझेदारी करके, सामूहिक कार्यवाही हेतु गठबंधन बनाया जा सकता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: वैश्विक शासन एवं भारत के हितों के संबंध में अमेरिकी नीतिगत बदलावों के व्यापक निहितार्थ हैं। इनके प्रभाव का समालोचनात्मक परीक्षण करते हुए सुझाव दीजिये कि भारत इस संदर्भ में रणनीतिक रूप से किस प्रकार प्रतिक्रिया दे सकता है। |
और पढ़ें: भारत-अमेरिका संबंध
UPSC सिविल सेवा परीक्षा , विगत वर्ष प्रश्नमेन्स:प्रश्न. 'भारत और यूनाइटेड स्टेट्स के बीच संबंधों में खटास के प्रवेश का कारण वाशिंगटन का अपनी वैश्विक रणनीति में अभी तक भी भारत के लिये किसी ऐसे स्थान की खोज़ करने में विफलता है, जो भारत के आत्म-समादर और महत्त्वाकांक्षा को संतुष्ट कर सके।' उपयुक्त उदाहरणों के साथ स्पष्ट कीजिये। (2019) |
सामाजिक न्याय
भारत में सुगम्यता उपायों को सुदृढ़ बनाना
प्रिलिम्स के लिये:दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016, सुगम्य भारत अभियान, भारत का सर्वोच्च न्यायालय मेन्स के लिये:दिव्यांगजनों के लिये समावेशिता और समान अधिकारों को बढ़ावा देने में महत्व, सरकारी नीतियां और हस्तक्षेप |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
राजीव रतूड़ी बनाम भारत संघ, 2024 मामले में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि दिव्यांगजन अधिकार नियम 2017 का उपनियम 15, दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम 2016 के साथ असंगत/उल्लंघनकारी है।
- न्यायालय ने कहा कि इस अधिनियम द्वारा सरकार को सुगम्यता सुनिश्चित करने का आदेश दिया गया है लेकिन उपनियम 15 द्वारा इसमें विवेकाधीन दृष्टिकोण पर बल दिया गया है, जिससे वैधानिक प्रावधानों के बीच टकराव देखने को मिलता है।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने RPwD नियम, 2017 के उपनियम 15 को अमान्य क्यों माना?
- RPWD नियम, 2017 का उपनियम 15: RPWD नियम, 2017 का उपनियम 15, सरकारी विभागों में सुगम्यता संबंधी दिशा-निर्देशों के लिये एक रूपरेखा प्रदान करता है, जिससे मंत्रालयों द्वारा जारी दिशा-निर्देशों को वैधानिक प्राधिकार मिलता है।
- सर्वोच्च न्यायालय का अवलोकन:
- विवेकाधीन प्रकृति: सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि उपनियम 15 से RPWD अधिनियम (धारा 40, 44, 45, 46 और 89) के अनिवार्य प्रावधानों का उल्लंघन होता है क्योंकि यह मंत्रालयों को बाध्यकारी दायित्व के बिना सुगम्यता संबंधी दिशा-निर्देश जारी करने की अनुमति देता है।
- अनुपालन और सामाजिक लेखा परीक्षा: दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम में नियमित सामाजिक लेखा परीक्षा की आवश्यकता का प्रावधान है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सरकारी योजनाएँ दिव्यांगजनों पर प्रतिकूल प्रभाव न डालें।
- हालाँकि, RPWD नियमों के तहत मानकीकृत दिशा-निर्देशों की कमी के कारण, इन ऑडिटों के संचालन में असंगतता रही है।
- सुगम्यता बनाम उचित समायोजन: सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय में सुगम्यता (जिससे सार्वजनिक अवसंरचना सुनिश्चित होती है) और उचित समायोजन (जो विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने पर केंद्रित है) के बीच अंतर किया गया है।
- संवैधानिक सिद्धांतों के तहत मौलिक समानता प्राप्त करने के लिये दोनों ही महत्त्वपूर्ण हैं।
- नए दिशा-निर्देशों की आवश्यकता: सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को 3 महीने के भीतर नए अनिवार्य सुगम्यता दिशा-निर्देश बनाने का निर्देश दिया, जिसमें 4 सिद्धांतों पर ध्यान केंद्रित किया गया है, जिसमे सभी के लिये सार्वभौमिक डिज़ाइन, विभिन्न दिव्यांगताओं का व्यापक समावेश, स्क्रीन रीडर और सुलभ डिजिटल प्लेटफॉर्म जैसी सहायक प्रौद्योगिकियों का एकीकरण, और दिव्यांग व्यक्तियों के साथ निरंतर परामर्श शामिल हैं।
दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 (RPWD अधिनियम) क्या है?
- परिचय:
- दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 एक ऐसा कानून है जो दिव्यांगजनों को भेदभाव से बचाता है तथा उनके समान अधिकारों एवं अवसरों को बढ़ावा देता है।
- यह अधिनियम दिव्यांगनों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNCDPD) को प्रभावी बनाने के लिये बनाया गया था, जिसे वर्ष 2007 में भारत द्वारा अनुमोदित किया गया था।
- दिव्यांगजन अधिकार नियम, RPWD अधिनियम, 2016 के कार्यान्वयन के लिये प्रक्रियात्मक स्पष्टता प्रदान करने तथा उसे क्रियान्वित करने के लिये तैयार किये गए थे।
- भारत में दिव्यांगजन: वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, लगभग 26.8 मिलियन व्यक्ति ( भारत की जनसंख्या का 2.21% ) दिव्यांग हैं।
- दिव्यांगजन: अधिनियम में दिव्यांगता को एक विकासशील और गतिशील अवधारणा के रूप में पुनर्परिभाषित किया गया है तथा दिव्यांगता की श्रेणियों को 7 से बढ़ाकर 21 कर दिया, जिससे केंद्र सरकार को इसमें और श्रेणियाँ शामिल करने की अनुमति मिल गई।
- अधिकार:
- सरकारी ज़िम्मेदारी: उपयुक्त सरकारों का यह दायित्व है कि वे प्रभावी उपाय करें ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि दिव्यांगजन (PwD) अन्य लोगों के साथ समान आधार पर अपने अधिकारों का प्रयोग क्र सकें।
- विशेष लाभ: बेंचमार्क दिव्यांगता और उच्च सहायता की आवश्यकता वाले व्यक्तियों के लिये प्रावधान किये गए हैं, जिनमें शामिल हैं:
- निःशुल्क शिक्षा: 6 से 18 वर्ष की आयु के दिव्यांगजन बच्चों को निःशुल्क शिक्षा का अधिकार प्राप्त हैं।
- आरक्षण: बेंचमार्क दिव्यांगजता वाले व्यक्तियों को सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त उच्च शिक्षा में 5% आरक्षण तथा सरकारी नौकरियों में 4% आरक्षण का अधिकार है।
- "बेंचमार्क दिव्यांगजता" वाले व्यक्तियों की पहचान उन लोगों के रूप में की जाती है, जिन्हें निर्दिष्ट दिव्यांगजता का कम-से-कम 40% प्रमाणित किया गया है।
- अभिगम्यता: सरकारी और निजी प्रतिष्ठानों सहित सार्वजनिक भवनों में निर्धारित समय सीमा के भीतर सुगम्यता सुनिश्चित करने पर ज़ोर दिया जाता है।
- विनियामक और शिकायत निवारण तंत्र: मुख्य आयुक्त दिव्यांगजन और राज्य दिव्यांगजन आयुक्तों के कार्यालयों को नियामक प्राधिकरणों और शिकायत निवारण अभिकरणों के रूप में कार्य करने के लिये सुदृढ़ बनाना।
- इन निकायों को अधिनियम के कार्यान्वयन की निगरानी का कार्य सौंपा गया है।
नोट:
- RPWD अधिनियम, 2016 में 21 दिव्यांगताओं में दृष्टिहीनता, अल्प दृष्टि, कुष्ठ रोग उपचारित व्यक्ति, श्रवण दोष (बधिर और अल्प श्रवण क्षमता), संचलन संबंधी अक्षमता, वामनता, बौद्धिक दिव्यांगता, मानसिक रोग, ऑटिज्म स्पेक्ट्रम विकार, सेरेब्रल पाल्सी, मांसपेशीय दुर्विकास, तंत्रिका संबंधी चिरकालिक रोग, विशिष्ट अधिगम संबंधी विशिष्ट दिव्यांगताएँ (डिस्लेक्सिया), मल्टीपल स्केलेरोसिस, भाषण और भाषा संबंधी दिव्यांगता, थैलेसीमिया, हीमोफीलिया, सिकल सेल रोग, बधिर-दृष्टिहीनता सहित बहु दिव्यांगताएँ, एसिड अटैक पीड़ित और पार्किंसंस रोग शामिल हैं।
दिव्यांगजनों के सशक्तीकरण से संबंधित अन्य पहलें कौन-सी हैं?
दिव्यांगजनों को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?
- दुर्गम अवसंरचना: सार्वजनिक प्रतिष्ठानों और सेवाओं तक पहुँचने में अवसंरचना का अभाव।
- दिव्यांगजन सशक्तीकरण विभाग की वर्ष 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में केवल 3% भवन ही पूर्ण रूप से सुलभ थीं।
- शैक्षिक बहिष्कार: दिव्यांगजनों को समावेशी विद्यालयों, प्रशिक्षित शिक्षकों और सहायक प्रौद्योगिकियों के अभाव का सामना करना पड़ता है, जिससे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की प्राप्ति में बाधा उत्पन्न होती है।
- वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, कुल दिव्यांग जनसंख्या की साक्षरता दर लगभग 55% है (पुरुष- 62%, महिला- 45%) तथा केवल 5% दिव्यांगजन स्नातक और उससे आगे की शिक्षा प्राप्त हैं।
- रोजगार संबंधी चुनौतियाँ: दिव्यांगजनों को कार्यस्थल पर भेदभाव, अपर्याप्त सुविधाओं और सामाजिक पूर्वाग्रहों का सामना करना पड़ता है, जिससे उनके आगे बढ़ने के मार्ग बाधित होते हैं।
- यद्यपि 1.3 करोड़ दिव्यांगजन रोज़गार योग्य हैं, परन्तु केवल 34 लाख को ही रोज़गार मिल पाया है।
- अपर्याप्त राजनीतिक प्रतिनिधित्व: विधानमंडल के तीनों स्तरों - लोकसभा, राज्य विधानमंडल और स्थानीय निकायों में दिव्यांगजनों का प्रतिनिधित्व कम है, जिससे उनकी राजनीतिक भागीदारी और प्रतिनिधित्व सीमित हो गया है।
आगे की राह
- सुगम्य अवसंरचना: रैंप, स्पर्शनीय पथ, सार्वजनिक परिवहन और अनुकूली प्रौद्योगिकियों सहित दिव्यांगता-अनुकूल सार्वजनिक अवसंरचना में सुधार करना।
- स्कूलों, अस्पतालों और डिजिटल सेवाओं के लिये सुलभता मानकों को लागू करना।
- कृत्रिम अंगों के अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देना: कृत्रिम अंगों के अनुसंधान के लिये वित्तपोषण बढ़ाना तथा कृत्रिम अंगों में नवाचार के लिये राष्ट्रीय और क्षेत्रीय केंद्र स्थापित करना, जिससे दिव्यांगजनों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो सके।
- पहचान और सत्यापन प्रणाली: सटीक दिव्यांग पहचान और प्रमाणीकरण सुनिश्चित करने के लिये बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण और नियमित ऑडिट के साथ एक केंद्रीकृत डिजिटल डेटाबेस को लागू करना।
- गिग इकोनॉमी समावेशन: दिव्यांगजनों के लिये लचीले, कौशल-समरूप नौकरी के अवसर प्रदान करने के लिये गिग इकॉनमी ऐप्स के भीतर समर्पित प्लेटफॉर्म बनाना।
- सुगम्यता बढ़ाने के लिये सांकेतिक भाषा समर्थन और AI-सहायता प्राप्त कार्य मिलान को शामिल करना।
- राजनीतिक आरक्षण: राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों जैसे विधानमंडलों में दिव्यांगजनों के लिये आरक्षण प्रणाली का प्रावधान होना चाहिये।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. सुगम्यता सुनिश्चित करने में दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 की भूमिका और इसके कार्यान्वयन में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न. भारत लाखों दिव्यांग व्यक्तियों का घर है। कानून के अंतर्गत उन्हें क्या लाभ उपलब्ध हैं? (2011)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न: क्या विकलांग व्यक्तियों का अधिकार अधिनियम, 2016 समाज में इच्छित लाभार्थियों के सशक्तीकरण और समावेशन हेतु प्रभावी तंत्र सुनिश्चित करता है? चर्चा कीजिये। (2017) |