इंदौर शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 11 नवंबर से शुरू   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


सामाजिक न्याय

सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की अपर्याप्तता पर लैंसेट का अध्ययन

  • 06 Sep 2024
  • 20 min read

प्रिलिम्स के लिये:

कुपोषण, विटामिन, एंजाइम, एनीमिया, विश्व में खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति (SOFI), राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) 2019-21, मिशन पोषण 2.0, यूनिसेफ। 

मेन्स के लिये:

पोषक तत्त्वों की कमी की व्यापकता, पोषक तत्त्वों की कमी और कुपोषण से निपटने के लिये आवश्यक उपाय।

स्रोत : डाउन टू अर्थ 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में लैंसेट ग्लोबल हेल्थ में प्रकाशित एक अध्ययन ने विभिन्न क्षेत्रों और आयु समूहों में सूक्ष्म पोषक तत्त्वों के सेवन की वैश्विक अपर्याप्तता विशेष रूप से आयोडीन, विटामिन ई (टोकोफेरोल), कैल्शियम, आयरन, राइबोफ्लेविन (विटामिन B2) और फोलेट (विटामिन B9) पर प्रकाश डाला।

  • आहार सेवन डेटा पर आधारित पहले वैश्विक अनुमान के रूप में यह आहार संशोधन, बायोफोर्टिफिकेशन, फोर्टिफिकेशन और पूरकता जैसे पोषण हस्तक्षेप की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?

श्रेणी

पोषक तत्त्व

मुख्य निष्कर्ष


वैश्विक निष्कर्ष


  • आयोडीन, विटामिन ई, कैल्शियम
  • विश्व भर में 5 बिलियन से ज़्यादा लोग अपर्याप्त मात्रा में भोजन करते हैं।
  • आयरन, राइबोफ्लेविन, फोलेट, विटामिन सी
  • 4 बिलियन से ज़्यादा लोग अपर्याप्त मात्रा में भोजन करते हैं।

लिंग भेद

  • आयोडीन, विटामिन बी12, आयरन, सेलेनियम, कैल्शियम, राइबोफ्लेविन, फोलेट
  • महिलाओं में अपर्याप्तता ज़्यादा है
  • मैग्नीशियम, विटामिन बी6, जिंक, विटामिन सी, विटामिन ए, थायमिन, नियासिन
  • पुरुषों में इन पोषक तत्त्वों की कमी अधिक होती है।

भारत-विशिष्ट निष्कर्ष

  • राइबोफ्लेविन, फोलेट, विटामिन बी6, विटामिन बी12

  • भारत में इन पोषक तत्त्वों की कमी का स्तर बहुत अधिक है

सूक्ष्म पोषक तत्त्व क्या हैं?

  • सूक्ष्म पोषक तत्त्वों का परिचय: सूक्ष्म पोषक तत्त्वों  में शरीर के लिये बहुत कम मात्रा में आवश्यक विटामिन और खनिज शामिल होते हैं। उदाहरण के लिये, आयरन, विटामिन ए, आयोडीन आदि।
    • वे सामान्य वृद्धि और विकास के लिये आवश्यक एंजाइम, हार्मोन तथा अन्य पदार्थों के उत्पादन हेतु महत्त्वपूर्ण होते हैं।
  • सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी का प्रभाव:
    • गंभीर स्थितियाँ: सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी से गंभीर स्वास्थ्य समस्याएँ हो सकती हैं, खासकर बच्चों और गर्भवती महिलाओं में। उदाहरण के लिये एनीमिया।
    • सामान्य स्वास्थ्य: सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी से कम दिखाई देने वाली लेकिन महत्त्वपूर्ण स्वास्थ्य समस्याएँ हो सकती हैं जैसे कि ऊर्जा का स्तर कम होना, मानसिक स्पष्टता और समग्र क्षमता में कमी।
    • दीर्घकालिक प्रभाव: ये कमियाँ शैक्षिक परिणामों, कार्य उत्पादकता को प्रभावित कर सकती हैं और अन्य बीमारियों तथा स्वास्थ्य स्थितियों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ा सकती हैं।
  • प्रकार:
    • अल्पपोषण:
      • वेस्टिंग: लंबाई के हिसाब से कम वज़न को वेस्टिंग कहते हैं। यह तब होता है जब किसी व्यक्ति को खाने के लिये पर्याप्त भोजन नहीं मिला हो और/या उसे कोई संक्रामक रोग हो।
      • स्टंटिंग: आयु के हिसाब से कम लंबाई को स्टंटिंग कहते हैं। यह अक्सर अपर्याप्त कैलोरी सेवन के कारण होता है, जिससे लंबाई के हिसाब से वज़न कम हो जाता है।
      • अंडरवेट: आयु के हिसाब से कम वज़न वाले बच्चों को अंडरवेट कहते हैं। कम वज़न वाला बच्चा स्टंटेड, वेस्टेड या दोनों हो सकता है।
    • सूक्ष्म पोषक तत्त्वों से संबंधित कुपोषण:
      • विटामिन ए की कमी: विटामिन ए के अपर्याप्त सेवन से दृष्टि दोष, कमज़ोर प्रतिरक्षा और अन्य स्वास्थ्य समस्याएँ हो सकती हैं।
      • आयरन की कमी: एनीमिया का कारण बनता है, जिससे शरीर की ऑक्सीजन ले जाने की क्षमता प्रभावित होती है, जिससे थकान और कमज़ोरी होती है।
      • आयोडीन की कमी: थायरॉयड से संबंधित विकार होते हैं, जिससे विकास और संज्ञानात्मक विकास प्रभावित होता है।
    • मोटापा: अत्यधिक कैलोरी का सेवन, अक्सर एक गतिहीन जीवन शैली के साथ मिलकर मोटापे का कारण बन सकता है। यह शरीर में अतिरिक्त वसा के संचय के कारण होता है , जो हृदय संबंधी बीमारियों और मधुमेह जैसे स्वास्थ्य जोखिम उत्पन्न करता है।
      • वयस्कों में अधिक वज़न को 25 या उससे अधिक के बॉडी मास इंडेक्स (BMI) के रूप में परिभाषित किया जाता है, जबकि मोटापा 30 या उससे अधिक के BMI को दर्शाता है।
    • आहार संबंधी गैर-संचारी रोग (NCD): इसमें हृदय संबंधी रोग, जैसे दिल का दौरा और स्ट्रोक शामिल हैं, जो अक्सर उच्च रक्तचाप से जुड़े होते हैं, जो मुख्य रूप से अस्वास्थ्यकर आहार एवं अपर्याप्त पोषण से उत्पन्न होते हैं।

सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी को रोकने में WHO की भूमिका

  • मुख्य कार्यक्रम और हस्तक्षेप:
    • पोषण में महत्वाकांक्षा और कार्रवाई: WHO विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी को रोकने के लिये सदस्य राज्यों और भागीदारों के साथ कार्य करता है।
      • यह दृष्टिकोण विश्व स्वास्थ्य संगठन की पोषण महत्त्वाकांक्षा और कार्रवाई 2016-2025 द्वारा निर्देशित है, जिसका लक्ष्य 'सभी प्रकार के कुपोषण से मुक्त विश्व बनाना है, जहाँ सभी लोग स्वास्थ्य और कल्याण प्राप्त कर सकें’।
    • आयरन और फोलिक एसिड अनुपूरण: यह कमियों और संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं को रोकने के लिये आवश्यक पोषक तत्त्व प्रदान करता है, विशेष रूप से गर्भवती महिलाओं जैसी संवेदनशील समूहों में। 
    • अधिक खुराक विटामिन A अनुपूरण: इसका उद्देश्य विटामिन A की कमी को रोकना है जो विशेष रूप से बच्चों में दृष्टि और प्रतिरक्षा कार्य के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • खाद्य पदार्थों का सुदृढ़ीकरण:
      • नमक आयोडीनीकरण: विश्व स्तर पर आयोडीन की कमी को कम करने में प्रभावी।
      • गेहूँ के आटे का सुदृढ़ीकरण: आयरन और फोलिक एसिड का उपयोग एनीमिया को रोकने में सहायता के लिये किया जाता है।

भारत में कुपोषण की स्थिति क्या है?

  • अल्पपोषण: वर्ष 2024 में जारी ‘स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रीशन इन द वर्ल्ड’ (SOFI) रिपोर्ट के अनुसार भारत में 194.6 मिलियन (19.5 करोड़) अल्पपोषित लोग हैं जो विश्व के किसी भी देश में सबसे अधिक है।
  • बाल कुपोषण: विश्व के एक तिहाई कुपोषित बच्चे भारत में रहते हैं।
  • ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2023: वर्ष 2023 में भारत का GHI स्कोर 28.7 है, जिसे GHI भुखमरी की गंभीरता के मापदंड के अनुसार "गंभीर" के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
    • भारत में बाल दुर्बलता दर 18.7 है, जो रिपोर्ट में सबसे अधिक है।
  • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 5: विभिन्न समूहों में कुपोषण की व्यापकता काफी भिन्न है:
    • 15-49 वर्ष की आयु के पुरुषों में 25.0%, 15-49 वर्ष की आयु की महिलाओं में 57.0%, 15-19 वर्ष की आयु के किशोर लड़कों में 31.1%, किशोर लड़कियों में 59.1%, 15-49 वर्ष की आयु की गर्भवती महिलाओं में 52.2% तथा 6-59 माह की आयु के बच्चों में 67.1% है।
  • क्षेत्रीय असमानताएँ: बिहार, गुजरात, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश और झारखंड में कुपोषण की दर अधिक है।
    • मिज़ोरम, सिक्किम और मणिपुर की स्थिति अन्य भारतीय राज्यों की तुलना में अपेक्षाकृत बेहतर है।

कुपोषण के परिणाम क्या हैं?

  • स्वास्थ्य पर प्रभाव:
    • बाधित विकास: बच्चों में कुपोषण के कारण अपर्याप्त विकास हो सकता है, जिससे उनका शारीरिक विकास और संज्ञानात्मक क्षमता दोनों प्रभावित हो सकते हैं।
    • कमज़ोर प्रतिरक्षा: कुपोषण से पीड़ित लोगों की प्रतिरक्षा प्रणाली प्रायः कमज़ोर होती है, जिससे वे बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं तथा रुग्णता और मृत्यु दर बढ़ जाती है।
    • पोषक तत्त्वों की कमी: आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्त्वों के अपर्याप्त सेवन से आयरन, विटामिन A और जिंक की कमी हो सकती है, जिससे समग्र स्वास्थ्य एवं प्रतिरक्षा कमज़ोर हो सकती है।
  • शैक्षिक प्रभाव:
    • संज्ञानात्मक देरी: बचपन में खराब पोषण के कारण संज्ञानात्मक देरी हो सकती है, जिससे अधिगम क्षमता और शैक्षणिक प्रदर्शन प्रभावित हो सकता है।
    • उच्च ड्रॉपआउट दर: कुपोषण की समस्या वाले बच्चों को नियमित स्कूल में उपस्थित होने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है और उनके स्कूल छोड़ने की संभावना अधिक होती है, जिसका असर उनकी शैक्षिक उपलब्धियों पर पड़ता है।
  • आर्थिक परिणाम:
    • उत्पादकता में कमी: कुपोषण के कारण जीवन भर उत्पादकता में कमी आ सकती है, जिससे राष्ट्रीय आर्थिक उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
    • स्वास्थ्य सेवा व्यय में वृद्धि: कुपोषण की उच्च आवृत्ति स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों पर दबाव डालती है, जिससे व्यक्तियों और सरकार दोनों के लिये चिकित्सा लागत बढ़ जाती है।
  • अंतर-पीढ़ीगत प्रभाव:
    • मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य: एनीमिया से पीड़ित माताओं के बच्चे एनीमिया से पीड़ित होने की अधिक संभावना होती है, जिससे पीढ़ियों तक कम पोषण का चक्र चलता रहता है।
    • दीर्घकालिक स्वास्थ्य चुनौतियाँ: कुपोषित बच्चों को वयस्कता में स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करने का अधिक जोखिम होता है, जो उनके समग्र स्वास्थ्य को प्रभावित करता है और दीर्घकालिक सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्याओं में योगदान देता है।
  • सामाजिक परिणाम:
    • बढ़ती असमानता: कुपोषण मुख्य रूप से हाशिये पर पड़े और आर्थिक रूप से वंचित समूहों को प्रभावित करता है, जिससे सामाजिक असमानताएँ बढ़ती हैं।
    • सामाजिक कलंक: कुपोषण का सामना करने वाले व्यक्तियों को कलंक और भेदभाव का सामना करना पड़ सकता है जो उनके मानसिक स्वास्थ्य तथा जीवन की समग्र गुणवत्ता को प्रभावित कर सकता है।
  • राष्ट्रीय प्रगति पर प्रभाव:
    • मानव पूंजी विकास में बाधा: कुपोषण मानव पूंजी के विकास में बाधा डालता है, जिससे आर्थिक और सामाजिक उन्नति के अवसर सीमित हो जाते हैं।
    • स्वास्थ्य सेवा पर बढ़ता दबाव: कुपोषण की व्यापकता स्वास्थ्य सेवा संसाधनों पर अधिक दबाव डालती है, जिससे अन्य महत्त्वपूर्ण स्वास्थ्य पहलों पर ध्यान और धन का विचलन होता है।

भारत में पोषक तत्त्वों की कमी को किस प्रकार दूर किया जा सकता है?

  • खाद्य सुदृढ़ीकरण/फोर्टीफिकेशन: इसमें चावल, गेहूँ, तेल, दूध और नमक जैसे मुख्य खाद्य पदार्थों में आयरन, आयोडीन, जिंक, विटामिन A तथा D जैसे प्रमुख विटामिन एवं खनिज शामिल किये जाते हैं।
    • कुपोषण से निपटने में यह एक महत्त्वपूर्ण साधन है क्योंकि यह विटामिन और खनिजों को सम्मिलित कर मुख्य खाद्य पदार्थों के पोषण मूल्य को बढ़ाता है।
  • समेकित बाल विकास सेवाओं (ICDS) का सुदृढ़ीकरण: आंगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं को बच्चों के विकास की मॉनिटरिंग, ​​पोषण संबंधी शिक्षा और सामुदायिक सहायता प्राप्त करने में उनके कौशल को बेहतर बनाने के लिये निरंतर एवं व्यापक प्रशिक्षण प्रदान करके।
  • विशेष पोषण कार्यक्रम (SNP): यह सुनिश्चित करके कि SNP सभी क्षेत्रों में, विशेष रूप से जनजातीय और झुग्गी-झोपड़ियों वाले क्षेत्रों में कैलोरी तथा  प्रोटीन सहित पर्याप्त पोषण पूरक प्रदान करता है।
  • कामकाज़ी और बीमार महिलाओं के लिये क्रेच: अधिकतम बच्चों को कवर करने के लिये क्रेच की संख्या बढ़ाकर, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहाँ प्रवासी श्रमिकों और कम आय वाले परिवारों की संख्या अधिक है।
  • गेहूँ आधारित पूरक पोषण कार्यक्रम: लक्षित आबादी को समय पर और पर्याप्त मात्रा में गेहूँ आधारित पूरकों की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये गेहूँ आधारित उत्पादों का प्रयोग करने हेतु अभिनव पद्धतियों की खोज़ द्वारा।
  • यूनिसेफ सहायता: यूनिसेफ का समर्थन स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा और स्वच्छता सहित सेवाओं की एक व्यापक शृंखला को कवर करता है ताकि कुपोषण की बहुमुखी प्रकृति से निपटा जा सके।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. मूल्यांकन कीजिये कि पोषक तत्त्वों की कमी भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य और आर्थिक विकास को किस प्रकार प्रभावित करती है तथा कुपोषण से निपटने के लिये प्रभावी सरकारी रणनीतियों को सुझाइये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-से 'राष्ट्रीय पोषण मिशन (नेशनल न्यूट्रिशन मिशन)' के उद्देश्य हैं?  (2017) 

  1. गर्भवती महिलाओं तथा स्तनपान कराने वाली माताओं में कुपोषण से संबंधी जागरूकता उत्पन्न करना।
  2. छोटे बच्चों, किशोरियों तथा महिलाओं में रक्ताल्पता की घटना को कम करना।
  3. बाजरा, मोटा अनाज तथा अपरिष्कृत चावल के उपभोग को बढ़ाना ।
  4. मुर्गी के अंडों के उपभोग को बढ़ाना ।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1, 2 और 3
(c) केवल 1, 2 और 4
(d) केवल 3 और 4

उत्तर: (a)


प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा/से वह/वे सूचक है/हैं, जिसका/जिनका IFPRI द्वारा वैश्विक भुखमरी सूचकांक (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) रिपोर्ट बनाने में उपयोग किया गया है? (2016)

  1. अल्प-पोषण
  2. शिशु वृद्धिरोधन
  3. शिशु मृत्यु-दर

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) 1, 2 और 3
(d) केवल 1 और 3

उत्तर: (c)


मेन्स

प्रश्न. आप इस मत से कहाँ तक सहमत हैं कि अधिकरण सामान्य न्यायालयों की अधिकारिता को कम करते हैं? उपर्युक्त को दृष्टिगत रखते हुए भारत में अधिकरणों की संवैधानिक वैधता तथा सक्षमता की विवेचना कीजिये। (2018)

प्रश्न. अब तक भी भूख और गरीबी भारत में सुशासन के समक्ष सबसे बड़ी चुनौतियाँ हैं। मूल्यांकन कीजिये कि इन गंभीर समस्याओं से निपटने में क्रमिक सरकारों ने किस सीमा तक प्रगति की है। सुधार के लिये उपाय सुझाइए। (2017)

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2