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क्लाइमेट फाइनेंस एंड USD 100 बिलियन गोल: OECD

  • 24 Nov 2023
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

क्लाइमेट फाइनेंस एंड USD 100 बिलियन गोल: OECD, COP (कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़) 28, OECD (आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन), जलवायु वित्त, UNFCCC (जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क अभिसमय)

मेन्स के लिये:

क्लाइमेट फाइनेंस एंड USD 100 बिलियन गोल: OECD, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

दुबई में COP (कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़) 28 के एकत्र होने से पूर्व आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD) ने एक रिपोर्ट जारी की है जिसका शीर्षक ‘क्लाइमेट फाइनेंस एंड USD 100 बिलियन गोल’ (Climate Finance and the USD 100 Billion Goal) है, जिसमें दर्शाया गया है कि विकसित देश जलवायु शमन हेतु  प्रतिवर्ष 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर जुटाने के अपने वादे में विफल रहे हैं। 

  • यह रिपोर्ट 2013-21 की अवधि के आधार पर विकासशील देशों के लिये विकसित देशों द्वारा प्रदत्त तथा जुटाए गए वार्षिक जलवायु वित्त के समग्र रुझान प्रस्तुत करती है।

आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD) क्या है?

  • परिचय:
    • OECD एक अंतर-सरकारी आर्थिक संगठन है जिसकी स्थापना आर्थिक प्रगति व विश्व व्यापार को प्रोत्साहित करने के लिये की गई है।
    • अधिकांश OECD सदस्य राष्ट्र उच्च आय वाली अर्थव्यवस्थाएँ हैं जिनका मानव विकास सूचकांक (HDI) बहुत उच्च है एवं उन्हें विकसित देश माना जाता है।
  • स्थापना:
    • इसके मुख्यालय की स्थापना वर्ष 1961 में पेरिस, फ्राँस में की गई थी तथा इसमें कुल 38 सदस्य देश हैं।
    • OECD में शामिल होने वाले सबसे हालिया देश थे- अप्रैल 2020 में कोलंबिया तथा मई 2021 में कोस्टा रिका।
    • भारत इसका सदस्य नहीं है अपितु एक प्रमुख आर्थिक भागीदार है।
  • OECD द्वारा जारी रिपोर्ट और सूचकांक:
    • गवर्नमेंट एट अ ग्लांस
    • OECD बेटर लाइफ इंडेक्स 

पृष्ठभूमि क्या है?

  • वर्ष 2009 में कोपेनहेगन में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क अभिसमय (UNFCCC)  के 15वें सम्मेलन (COP 15) में विकसित देश वर्ष 2020 तक विकासशील देशों में जलवायु कार्रवाई के लिये प्रतिवर्ष 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर जुटाने के सामूहिक लक्ष्य के लिये प्रतिबद्ध हैं।
  • लक्ष्य को कैनकन में COP16 में औपचारिक रूप दिया गया था और पेरिस COP21 में इसे दोहराया गया तथा वर्ष 2025 तक इसे बढ़ा दिया गया।
  • दान दाता देशों के अनुरोध पर OECD वर्ष 2015 से इस लक्ष्य की दिशा में प्रगति पर नज़र रख रहा है। यह एक मज़बूत लेखांकन ढाँचे के आधार पर की गई प्रगति का नियमित विश्लेषण करता है, जो कि स्रोत और वित्तीय साधन की फंडिंग पर पेरिस समझौते के सभी पक्षों द्वारा सहमत COP24 परिणाम के अनुरूप है। 

रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?

  • कुल जलवायु वित्त:
    • वर्ष 2021 में विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों के लिये प्रदान किया गया और जुटाया गया कुल जलवायु वित्त 89.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जो पिछले वर्ष की तुलना में 7.6% की महत्त्वपूर्ण वृद्धि दर्शाता है।
    • सार्वजनिक जलवायु वित्त (द्विपक्षीय और बहुपक्षीय) 2013-21 की अवधि में लगभग दोगुना हो गया, यह 38 बिलियन अमेरिकी डॉलर से 73.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जो वर्ष 2021 में कुल 89.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर के भारी योगदान  के लिये ज़िम्मेदार है।
    • जुटाया गया निजी जलवायु वित्त, जिसके लिये तुलनीय डेटा केवल 2016 से उपलब्ध है, 2021 में 14.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर या कुल का 16% था।
  • अनुकूलन वित्त में गिरावट:
    • वर्ष 2021 में अनुकूलन वित्त में 4 बिलियन अमेरिकी डॉलर (-14%) की गिरावट आई, जिसके परिणामस्वरूप कुल जलवायु वित्त में इसकी हिस्सेदारी 34% से घटकर 27% हो गई।
    • अनुकूलन के लिये वित्त में कमी से विकासशील देशों की शमन और अनुकूलन दोनों आवश्यकताओं को पूरा करने की क्षमता के विषय में चिंताएँ बढ़ रही हैं।
  • जलवायु वित्तपोषण में ऋण का प्रभुत्व:
    • वर्ष 2021 में सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा द्विपक्षीय और बहुपक्षीय चैनलों के माध्यम से 73.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर का वित्त जुटाया गया तथा 49.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर ऋण के रूप में प्रदान किये गए।
    • अनुदान के बजाय ऋण पर निर्भरता, गरीब देशों में ऋण तनाव को बढ़ा सकती है, जिससे जलवायु चुनौतियों से प्रभावी ढंग से निपटने की उनकी क्षमता प्रभावित हो सकती है।
  • सिफारिशें:
    • अनुकूलन वित्त को बढ़ाने की आवश्यकता: अंतर्राष्ट्रीय प्रदाताओं को दो आवश्यक क्षेत्रों में अपने प्रयासों को महत्त्वपूर्ण रूप से बढ़ाने की आवश्यकता है: अनुकूलन वित्त और निजी वित्त जुटाना।
    • क्षमता निर्माण: परियोजना विकास, वित्तीय साक्षरता और परिचालन दक्षता के संदर्भ में क्षमता निर्माण का समर्थन करने की आवश्यकता है, जो विकासशील देशों की जलवायु वित्त तक पहुँच, अवशोषण तथा प्रभावी ढंग से उपयोग करने की क्षमताओं को मज़बूत कर सकता है।
    • वित्तीय उत्पादों को अनुकूलित और विकसित करना: जलवायु वित्त की पहुँच और प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिये अंतर्राष्ट्रीय प्रदाताओं को उन वित्तीय उत्पादों तथा तंत्रों को अनुकूलित व विकसित करने की आवश्यकता है जो वे पेश करते हैं।

OECD रिपोर्ट के मुद्दे क्या हैं?

  • परिभाषाओं में स्पष्टता का अभाव:
    • 'जलवायु वित्त' की सार्वभौमिक रूप से सहमत परिभाषा का अभाव है, जो विकसित देशों को आधिकारिक विकास सहायता (ODA) और उच्च लागत वाले ऋणों सहित विभिन्न प्रकार के वित्तपोषण को जलवायु वित्त के रूप में वर्गीकृत करने की अनुमति देता है।
    • यह अस्पष्टता दोहरी गणना को सक्षम कर सकती है और जाँच से बच सकती है।
  • अतिरिक्तता के साथ चुनौतियाँ: 
    • UNFCCC द्वारा निर्धारित "नए और अतिरिक्त वित्त" के सिद्धांत, जिसका उद्देश्य जलवायु उद्देश्यों हेतु मौजूदा सहायता को रोकने के लिये है, पर सवाल उठाया गया है।
    • कुछ देशों ने "नए और अतिरिक्त" मानदंड को कमज़ोर करते हुए सहायता की दोहरी गणना करना स्वीकार किया है।
  • अंकित मूल्य पर ऋण समतुल्य अनुदान नहीं:
    • कुल जलवायु वित्त आँकड़े निकालते समय ऋणों को अंकित मूल्य के आधार पर माना जाता है, न कि अनुदान के बराबर।
      • इसलिये जबकि गरीब देश पुनर्भुगतान और ब्याज के लिये पैसा खर्च करते हैं, फिर भी ऋण को विकसित दुनिया द्वारा प्रदान किये गए जलवायु वित्त के रूप में गिना जाता है।

आगे की राह

  • जलवायु वित्त योगदान के लिये पारदर्शी और मानकीकृत रिपोर्टिंग तंत्र स्थापित करना महत्त्वपूर्ण है। इसमें फंडिंग की ट्रैकिंग और रिपोर्टिंग हेतु स्पष्ट मानदंड और कार्यप्रणाली को परिभाषित करना, सटीकता सुनिश्चित करना तथा फंड की दोहरी गणना या गलत वर्गीकरण को रोकना शामिल है।
  • जलवायु वित्त के गठन के लिये सार्वभौमिक रूप से सहमत परिभाषाएँ और मानदंड विकसित करना आवश्यक है। इससे अस्पष्टता को रोका जा सकेगा, सटीक माप संभव हो सकेगी तथा यह सुनिश्चित होगा कि वास्तव में अतिरिक्त धनराशि का उपयोग जलवायु शमन व अनुकूलन हेतु किया जा सके।
  • वाणिज्यिक ऋणों पर अनुदान या रियायती ऋण के प्रावधान को प्रोत्साहित करने से विकासशील देशों पर ऋण का बोझ कम हो सकता है। जलवायु संबंधी कार्रवाइयों का समर्थन करते समय ऐसे वित्तपोषण तंत्र को प्राथमिकता देना महत्त्वपूर्ण है जो ऋण तनाव न बढ़ाते हों।
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