प्रयागराज शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 29 जुलाई से शुरू
  संपर्क करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


प्रारंभिक परीक्षा

ग्रीनहाउस गैसें, वर्षा एवं जलवायु परिवर्तन

  • 15 Jul 2024
  • 7 min read

स्रोत: पी.आई.बी.

एक हालिया अध्ययन से पता चला है कि ग्रीनहाउस गैसों में अभूतपूर्व वृद्धि से भूमध्यरेखीय क्षेत्र में वर्षा कम हो सकती है।

हालिया अध्ययन से क्या पता चला?

  • परिचय:
    • अध्ययन में भूमध्यरेखीय क्षेत्रों में वर्षा पैटर्न और वनस्पति पर ग्रीनहाउस गैसों, विशेष रूप से वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड के उच्च स्तर में वृद्धि के प्रभावों की ओर इशारा किया गया।
    • अध्ययन में जीवाश्म पराग (कच्छ की लिग्नाइट खदान से) और इओसीन युग (54 मिलियन वर्ष पूर्व, वैश्विक तापमान वृद्धि का काल) से प्राप्त कार्बन समस्थानिक डेटा का उपयोग किया गया।
    • अध्ययन में गहन समय की अतितापीय घटनाओं से प्राप्त आँकड़ों का उपयोग किया गया, जिन्हें भविष्य की जलवायु पूर्वानुमान के लिये संभावित अनुरूप माना जाता है।
      • गहन-समय (भूवैज्ञानिक समय) के दौरान चरम जलवायु गर्मी (हाइपरथर्मल) की घटनाएँ इस बात की अंतर्दृष्टि प्रदान करती हैं कि पृथ्वी ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन से संबंधित वर्तमान गर्मी के प्रति किस प्रकार प्रतिक्रिया कर सकती है।
  • वर्षा एवं वनस्पति पर प्रभाव:
    • इओसीन युग के दौरान, जब भूमध्य रेखा के पास वायुमंडलीय CO2 सांद्रता 1000 भाग प्रति मिलियन (ppmv) से अधिक हो गई, तो वर्षा में उल्लेखनीय कमी आने के कारण पर्णपाती वनों में वृद्धि हुई। 
  • वर्तमान जलवायु परिवर्तन से प्रासंगिकता:
    • अध्ययन में पिछली जलवायु परिस्थितियों (इओसीन युग) एवं ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में वृद्धि के तहत संभावित भविष्य के परिदृश्यों के बीच समानताओं पर विचार किया गया है। इस अध्ययन से प्राप्त अंतर्दृष्टि द्वारा वर्षावनों एवं अन्य संवेदनशील पारिस्थितिकी प्रणालियों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने की रणनीतियों को बनाने में सहायता मिल सकती है।

जलवायु परिवर्तन के पूर्व साक्ष्य क्या हैं?

  • भू-वैज्ञानिक अभिलेखों में हिमयुग और ऊष्ण अंतर-हिमयुग चरणों की क्रमिक अवधियों का वर्णन है।
  • अतीत में (लगभग 500-300 मिलियन वर्ष पूर्व-कैम्ब्रियन, ऑर्डोविशियन एवं सिलुरियन काल के दौरान) पृथ्वी की जलवायु उल्लेखनीय रूप से गर्म/ऊष्ण थी। 
  • प्लीस्टोसीन युग के दौरान, पृथ्वी हिमयुग तथा अंतर-हिमयुग काल से गुजरी, जिसमें अंतिम प्रमुख हिमयुग लगभग 18,000 वर्ष पूर्व था। वर्तमान अंतर-हिमयुग काल लगभग 10,000 वर्ष पूर्व शुरू हुआ था। 
  • सबसे हालिया हिमयुग लगभग 120,000 से 11,500 वर्ष पूर्व तक था। 
  • उच्च ऊँचाई और अक्षांश वाले क्षेत्रों में भू-वैज्ञानिक विशेषताओं, तलछट का जमाव एवं ग्लेशियरों के विस्तार व संकुचन के प्रमाण मिलते हैं जिससे शीत तथा ऊष्ण अवधियों के बीच उतार-चढ़ाव के संकेत मिलते हैं। 
  • हिमयुग को अंतर हिमयुग की तुलना में अधिक ठंडा, धूल भरा तथा आमतौर पर शुष्क माना जाता है। हिमयुग और अंतर हिमयुग के इन चरणों के प्रमाण विश्व भर में समुद्री तथा स्थलीय दोनों ही वातावरणों से संबंधित कई पुराजलवायु अभिलेखों में देखे जा सकते हैं।
  • अंतर-हिमयुग काल, आमतौर पर उत्तरी गोलार्द्ध में (गर्मियों के दौरान) चरम सौर विकिरण की अवधि से संबंधित होते हैं।
  • भारत का संदर्भ: 
    • भारत में क्रमिक रूप से आद्र और शुष्क स्थितियाँ उत्पन्न हुईं।
    • पुरातात्त्विक खोजों के अनुसार 8,000 ईसा पूर्व राजस्थान के मरुस्थल की जलवायु आद्र और ठंडी थी।
    • 3,000-1,700 ईसा पूर्व की अवधि में इस क्षेत्र में अधिक वर्षा हुई जिसके बाद शुष्क परिस्थितियाँ बनी रहीं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. हाल के दिनों में मानवीय गतिविधियों ने वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता में वृद्धि की है लेकिन इसका अधिकांश भाग निम्न वातावरण में नहीं रहता है क्योंकि- (2011)

  1. बाहरी समताप मंडल में इसका निष्कर्षण।
  2. महासागरों में पादप्लावक द्वारा प्रकाश संश्लेषण।
  3. ध्रुवीय बर्फ के आवरण में वायु का अधिग्रहण।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) 1 और 2
(b) केवल 2
(c) 2 और 3
(d) केवल 3

उत्तर: (b)


प्रश्न. निम्नलिखित में से किस घटना ने जीवों के विकास को प्रभावित किया होगा? (2014)

  1. महाद्वीपीय विस्थापन 
  2. हिमनद चक्र

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. आर्कटिक की बर्फ और अंटार्कटिक के ग्लेशियरों का पिघलना किस तरह से अलग-अलग ढंग से पृथ्वी पर मौसम के स्वरूप तथा मनुष्य की गतिविधियों पर प्रभाव डालते हैं? स्पष्ट कीजिये। (2021)

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2