भूगोल
चिनाब घाटी में भूमि अवतलन
- 10 May 2024
- 13 min read
प्रिलिम्स के लिये:भूमि अवतलन, हिमालय, भूकंप, भू-स्खलन, जोशीमठ मेन्स के लिये:भूमि अवतलन के कारण और उपाय एवं सिफारिशें। |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
हाल ही में चिनाब घाटी के विभिन्न हिस्सों, विशेषकर रामबन, किश्तवाड़ और डोडा ज़िलों में भूमि अवतलन की खबरें आईं जिसमें कई घर नष्ट हो गए हैं।
- पहले इस क्षेत्र में वर्षा और बर्फबारी के दौरान भू-स्खलन सामान्य बात थी। हालाँकि, पिछले 10 से 15 वर्षों में भूमि अवतलन की घटनाएँ लगातार हुई हैं।
भूमि अवतलन क्या है?
- परिचय:
- नेशनल ओशनिक एंड एटमोस्फेयरिक एडमिनिस्ट्रेशन (NOAA) के अनुसार, भूमिगत हलचल के कारण भूमि अवतलन हो रहा है।
- यह कई मानव निर्मित या प्राकृतिक कारकों, जैसे खनन गतिविधियों के साथ-साथ पानी, तेल या प्राकृतिक संसाधनों को हटाए जाने के कारणों से हो सकता है। भूकंप, मृदा अपरदन और मृदा संघनन भी अवतलन के कुछ प्रसिद्ध कारण हैं।
- यह बहुत बड़े क्षेत्रों जैसे पूरे राज्यों या प्रांतों, या बहुत छोटे क्षेत्रों में हो सकता है।
- नेशनल ओशनिक एंड एटमोस्फेयरिक एडमिनिस्ट्रेशन (NOAA) के अनुसार, भूमिगत हलचल के कारण भूमि अवतलन हो रहा है।
- कारण:
- भूमिगत संसाधनों का अत्यधिक दोहन: पानी, प्राकृतिक गैस और तेल जैसे संसाधनों के निष्कर्षण से छिद्रों का दबाव कम हो जाता है और प्रभावी तनाव बढ़ जाता है, जिससे भूमि अवतलन होता है।
- विश्व में निकाले गए पानी का 80% से अधिक उपयोग सिंचाई और कृषि उद्देश्यों के लिये किया जाता है, जो भूमि अवतलन में योगदान देता है।
- ठोस खनिजों का निष्कर्षण: भूमिगत ठोस खनिज संसाधनों के दोहन से भूमिगत बड़े खाली स्थान (goaf) का निर्माण होता है, जिससे भूमि अवतलन हो सकता है।
- खनन गतिविधियाँ, जैसे कि कोयला खनन, गोफ क्षेत्रों के निर्माण का कारण बन सकती हैं, जो भूमि अवतलन में योगदान करती हैं।
- भूमि पर पड़ा बल:
- ऊँची इमारतों और भारी बुनियादी ढाँचे के निर्माण से भूमि पर बहुत बल पड़ सकता है, जिससे समय के साथ मृदा की विकृति एवं अवतलन हो सकता है।
- मृदा अपरदन गुरुत्वाकर्षण के कारण मृदा के नीचे की ओर धीमी, क्रमिक गति है और समय के साथ भूमि के अवतलन में योगदान दे सकता है।
- मृदा अपरदन: लगातार कम भार और मृदा अपरदन से नींव की धीमी गति से विकृति हो सकती है, जो भूमि अवतलन में योगदान करती है।
- ऊँची इमारतों और भारी बुनियादी ढाँचे के निर्माण से भूमि पर बहुत बल पड़ सकता है, जिससे समय के साथ मृदा की विकृति एवं अवतलन हो सकता है।
- भूमिगत संसाधनों का अत्यधिक दोहन: पानी, प्राकृतिक गैस और तेल जैसे संसाधनों के निष्कर्षण से छिद्रों का दबाव कम हो जाता है और प्रभावी तनाव बढ़ जाता है, जिससे भूमि अवतलन होता है।
- उदाहरण:
- जकार्ता, इंडोनेशिया: अत्यधिक भूजल दोहन के कारण यहाँ अत्यधिक भूमि अवतलन (25 से.मी/वर्ष) का सामना करना पड़ रहा है।
- नीदरलैंड: भूमिगत जलाशयों से प्राकृतिक गैस के निष्कर्षण के कारण भूमि अवतलन एक बड़ी समस्या रही है।
चिनाब क्षेत्र में भूमि अवतलन के कारण क्या हैं?
- भूवैज्ञानिक कारक: क्षेत्र में नरम तलछटी निक्षेप और जलोढ़ मृदा की उपस्थिति है, जो भूमि अवतलन में योगदान करती है।
- ये सामग्रियाँ ऊपरी संरचनाओं के भार और भूजल निष्कर्षण जैसी बाह्य शक्तियों के प्रभाव के तहत संघनन की संभावना रखती हैं।
- अनियोजित निर्माण एवं शहरीकरण:
- जलविद्युत परियोजनाएँ:
- जलविद्युत स्टेशनों का निर्माण पानी के प्राकृतिक प्रवाह को परिवर्तित कर सकता है तथा भूमि की स्थिरता को प्रभावित कर सकता है।
- उदाहरण के लिये: जोशीमठ, जोकि पर्यटकों के लिये एक लोकप्रिय शहर है, एक जलविद्युत स्टेशन के निकट होने के कारण भूस्खलन का सामना कर रहा है।
- जलविद्युत स्टेशनों का निर्माण पानी के प्राकृतिक प्रवाह को परिवर्तित कर सकता है तथा भूमि की स्थिरता को प्रभावित कर सकता है।
- खराब जल निकासी प्रणालियाँ:
- चिनाब क्षेत्र में अपर्याप्त जल निकासी प्रणालियाँ जलभराव, भू-जल स्तर में वृद्धि, मृदा अपरदन, खारे पानी की उपस्थिति और बुनियादी ढाँचे की क्षति के कारण भूमि अवतलन में वृद्धि कर सकती हैं।
- भूवैज्ञानिक सुभेद्यता:
- क्षेत्र में बिखरी हुई चट्टानें(Shattered rocks) पुराने भूस्खलन के मलबे से ढकी हुई हैं, जिनमें बोल्डर, नीस चट्टानें और अल्प सहन क्षमता वाली भुरभुरी मृदा शामिल है।
- ये नीस चट्टानें अत्यधिक अपक्षयित होती हैं और विशेष रूप से मानसून के समय जल से भर जाने पर उच्च छिद्र दबाव के कारण इनकी संसंजकता (जुड़ाव क्षमता) कम हो जाती है।
जोशीमठ भूमि अवतलन:
- इससे पूर्व, उत्तराखंड में चमोली ज़िले के जोशीमठ को भूस्खलन और बाढ़ की एक शृंखला का सामना करना पड़ा।
- जोशीमठ के कुछ क्षेत्रों का मानवीय गतिविधियों और प्राकृतिक कारणों के संयोजन के कारण धीरे-धीरे अवतलन हो रहा था।
- विशेषज्ञ भूमि अवतलन का कारण अनियमित निर्माण, उच्च जनसंख्या घनत्व, प्राकृतिक जल प्रवाह में व्यवधान और जल विद्युत से संबंधित गतिविधियों को मानते हैं।
आगे की राह
- सतत् एवं क्षेत्रीय विकास योजना:
- हिमालय क्षेत्र में विकास कार्य करते समय पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता देना आवश्यक है।
- इस रणनीति को वनों, जल, जैवविविधता और पारिस्थितिक पर्यटन सहित क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों का उत्तरदायी तथा सतत् उपयोग करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
- वर्षा जल संचयन एवं जल पुनर्चक्रण जैसी कुशल जल प्रबंधन पद्धतियों को लागू करने से अत्यधिक भूजल दोहन तथा भूस्खलन को कम करने में सहायता मिल सकती है।
- सतत् भूकंपीय निगरानी और पूर्व चेतावनी प्रणाली:
- ज़मीनी गतिविधियों एवं भूकंपीय गतिविधि पर नज़र रखने के लिये निगरानी नेटवर्क स्थापित करने से संभावित भूस्खलन तथा भूकंप से संबंधित खतरों की पूर्व चेतावनी प्राप्त हो सकती है।
- उपग्रह प्रौद्योगिकी एवं ज़मीनी स्तर के वैज्ञानिक अध्ययनों का उपयोग करके क्षेत्र की निरंतर निगरानी की जानी चाहिये।
- खनन और संसाधन निष्कर्षण का विनियमन:
- भूमिगत गहरे गड्डे बनने से रोकने के लिये खनन गतिविधियों एवं संसाधन निष्कर्षण पर सख्त नियम लागू करने से भूमि अवतलन के संकट को कम किया जा सकता है।
- जलवायु परिवर्तन शमन:
- जलवायु परिवर्तन प्रभाव को कम करने के लिये आवश्यक उपाय सुनिश्चित करना, जैसे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कम करना तथा सतत् पद्धतियों को बढ़ावा देना, हिमनदों के पिघलने की गति को धीमा कर सकता है तथा भूमि अवतलन को कम कर सकता है।
जोशीमठ संकट के संबंध में 1976 की मिश्रा समिति की रिपोर्ट:
- वर्ष 1976 में जोशीमठ में डूबने की घटना के कारणों की जाँच के लिये एक समिति गठित की गई थी। इस समिति ने संकट से बचने के लिये कई सिफारिशें पेश कीं।
- अत्यधिक निर्माण पर प्रतिबंध लगाना:
- मृदा की भार वहन क्षमता और स्थल की स्थिरता की जाँच के बाद ही निर्माण की अनुमति दी जानी चाहिये और ढलानों की खुदाई पर भी प्रतिबंध लगाया जाना चाहिये।
- पत्थरों एवं चट्टानों का सरंक्षण:
- भूस्खलन क्षेत्रों में पहाड़ियों के निचले भाग से पत्थरों एवं चट्टानों को नहीं हटाया जाना चाहिये क्योंकि ये अधोपर्वतीय क्षेत्रों से पत्थरों को हटा देते हैं जिसके परिणामस्वरूप भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है।
- वृक्षों का संरक्षण:
- समिति ने भूस्खलन क्षेत्र में वृक्षों को न काटने की भी सलाह दी है। मृदा और जल संसाधनों के संरक्षण के लिये क्षेत्र में व्यापक वृक्षारोपण कार्य भी किये जाने चाहिये।
- जल रिसाव को रोकना:
- भविष्य में भूस्खलन को रोकने के लिये पक्की जल निकासी प्रणाली का निर्माण करके खुले वर्षा जल के रिसाव को रोकना होगा।
- नदी प्रशिक्षण:
- नदी के प्रवाह को निर्देशित करने के लिये संरचनाओं का निर्माण किया जाना चाहिये। पहाड़ियों पर बने हैंगिंग बोल्डर्स को भी सहारा दिया जाना चाहिये।
और पढ़े: जोशीमठ भूस्खलन
दृष्टि मेन्स प्रश्न: हिमालय क्षेत्र में भूस्खलन के कारणों और परिणामों पर चर्चा करें। प्रभावी भूमि-उपयोग योजना और सतत् जल प्रबंधन प्रथाएँ इस घटना से जुड़े जोखिमों को कैसे कम कर सकती हैं? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा प्राचीन नगर अपने उन्नत जल संचयन और प्रबंधन प्रणाली के लिये सुप्रसिद्ध है, जहाँ बाँधों की शृंखला का निर्माण किया गया था तथा संबद्ध जलाशयों में नहर के माध्यम से जल को प्रवाहित किया जाता था? (2021) (a) धौलावीरा उत्तर: (a) प्रश्न. ‘वाटरक्रेडिट’ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये- (2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सेे सही हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न. भूस्खलन के विभिन्न कारणों एवं प्रभावों का वर्णन कीजिये। राष्ट्रीय भू-स्खलन जोखिम प्रबंधन रणनीति के महत्त्वपूर्ण घटकों का उल्लेख कीजिये। (2021) प्रश्न. पश्चिमी घाट की तुलना में हिमालय में भूस्खलन की घटनाओं के प्रायः होते रहने के कारण बताइए। (2013) |