डेली न्यूज़ (17 May, 2024)



सुशासन

Good Governance

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रीजनल इकॉनमिक आउटलुक फॉर एशिया एंड पैसिफिक रिपोर्ट: IMF

प्रिलिम्स के लिये:

IMF, विशेष आहरण अधिकार, विश्व इकॉनमिक आउटलुक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, मुद्रास्फीति, विश्व बैंक

मेन्स के लिये:

महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ, रिपोर्टें, एजेंसियाँ एवं आगे की संरचना, शासनादेश आदि।

स्रोत: आई.एम.एफ.

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने एशिया-प्रशांत क्षेत्र के लिये अपनी रिपोर्ट ‘रीजनल इकॉनमिक आउटलुक फॉर एशिया एंड पैसिफिक, अप्रैल 2024’ जारी की है, जिसमें कहा गया है कि भारत, अप्रत्याशित रूप से मज़बूत वृद्धि का स्रोत था। इसके अतिरिक्त, सार्वजनिक निवेश भारत की अर्थव्यवस्था को संचालित करने में एक महत्त्वपूर्ण कारक रहा है।

रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • एशिया-प्रशांत क्षेत्र में विकास: वर्ष 2023 के अंत में एशिया-प्रशांत क्षेत्र में की वृद्धि 5.0% से अपेक्षाकृत अधिक रही, जिसमें सभी अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति की दर भिन्न-भिन्न थी।
    • वर्ष 2024 के अनुमानों से निकट अवधि के जोखिमों को संतुलित करते हुए वृद्धि में 4.5% की गिरावट होने की आशा व्यक्त की गई है।
    • उभरते बाज़ारों में वृद्धि मुख्य रूप से निजी मांग द्वारा समर्थित थी। 

Economic_Forcast_Asia_Pacific

  • भारत में वृद्धि का पूर्वानुमान: IMF ने वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिये भारत के वृद्धि पूर्वानुमान को 6.5% से बढ़ाकर 6.8% कर दिया है और साथ ही वर्ष 2025-26 के लिये वृद्धि पूर्वानुमान 6.5% रहने का अनुमान व्यक्त किया है।
    • इस रिपोर्ट में यह भी स्पष्ट किया गया कि भारत तथा फिलीपींस लचीली घरेलू मांग द्वारा समर्थित सकारात्मक वृद्धि का स्रोत रहे हैं।
    • चीन तथा विशेष रूप से भारत में सार्वजनिक निवेश का महत्त्वपूर्ण प्रभाव है।

Contribution_to_Growth

  • चीन के लिये पूर्वानुमान: चीन की अर्थव्यवस्था वर्ष 2024 में 4.6% की दर से बढ़ने का अनुमान व्यक्त किया गया है, जो वर्ष 2023 के 5.2% की वृद्धि दर की तुलना में कम है, साथ ही वर्ष 2025 में इसके 4.1% पर रहने का अनुमान है।
    • IMF, चीन को वृद्धि और कमी दोनों जोखिमों के स्रोत के रूप में देखता है।
      • संभावित आवास कीमतों में वृद्धि एवं ऋण के अत्यधिक स्तर के बारे में चिंताओं के कारण परिसंपत्ति क्षेत्र तनाव की स्थिति में है। इन तनावों को कम करने वाली नीतियों तथा घरेलू मांग में वृद्धि के परिणामस्वरूप चीन तथा यह क्षेत्र (एशिया-प्रशांत) लाभान्वित होंगे
      • हालाँकि, स्टील और एल्युमीनियम जैसे कुछ उद्योगों में अतिरिक्त क्षमता को बढ़ावा देने वाली क्षेत्रीय नीतियों से चीन तथा इस क्षेत्र को हानि होगी।
  • मुद्रास्फीति का पूर्वानुमान: IMF ने स्पष्ट किया कि उभरते बाज़ारों में मुद्रास्फीति वर्तमान में वांछित स्तर पर है, लेकिन कई ऐसे कारक हैं जो भविष्य में मुद्रास्फीति में योगदान देंगे।
    • कोर मुद्रास्फीति कम रहने का अनुमान है, लेकिन कुछ अर्थव्यवस्थाओं में ऊर्जा की कम कीमतों के कारण हेडलाइन मुद्रास्फीति में कमी देखी जा सकती है।
    • तथापि, भारत जैसे देशों में खाद्य कीमतें, विशेष रूप से चावल की कीमतें, हेडलाइन मुद्रास्फीति में वृद्धि कर सकती हैं।
      • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा परिभाषित मुद्रास्फीति, एक निश्चित अवधि के अंतर्गत  कीमतों में वृद्धि की दर है, जिसमें समग्र मूल्य वृद्धि या विशिष्ट वस्तुओं और सेवाओं के व्यापक उपाय शामिल हैं।
        • हेडलाइन मुद्रास्फीति: इसमें सभी वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य परिवर्तन शामिल होते हैं। इसके अंतर्गत खाद्य पदार्थों और ऊर्जा से लेकर कपड़े, किराया तथा मनोरंजन तक सब कुछ शामिल है।
        • मूल मुद्रास्फीति: यह खाद्य एवं ऊर्जा क्षेत्रों को छोड़कर वस्तुओं एवं सेवाओं की कीमत में होने वाला परिवर्तन है (क्योंकि ये अस्थिर हैं)।
        • मूल मुद्रास्फीति= हेडलाइन मुद्रास्फीति- खाद्य एवं ईंधन वस्तुएँ
  • भू-आर्थिक विखंडन: IMF ने भू-आर्थिक विखंडन को एक महत्त्वपूर्ण जोखिम के रूप में दर्शाया किया है।
    • भू-आर्थिक विखंडन का तात्पर्य देशों के मध्य बढ़ते आर्थिक और व्यापारिक तनाव रूपी संकट से है, जो वैश्विक आर्थिक विकास एवं स्थिरता पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
    • वैश्विक विवादों ने व्यापार से जुड़े जोखिमों को बढ़ा दिया है, जैसे कि लाल सागर क्षेत्र में उत्पन्न विवाद से बचने के लिये जहाज़ो को अफ्रीका के आस-पास के क्षेत्रों में पथांतर से ज्ञात होता है, इसके परिणामस्वरूप शिपिंग लागत में वृद्धि हुई है।
      • IMF ने यह सुझाव दिया है कि नीति निर्माताओं को सतर्क रहना चाहिये कि वे स्वयं व्यापार संबंधी चुनौतियों को न बढ़ाएँ।

भारत के विकास हेतु सार्वजनिक निवेश किस प्रकार महत्त्वपूर्ण है?

  • परिचय: सार्वजनिक निवेश का तात्पर्य बुनियादी ढाँचे, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और प्रौद्योगिकी जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों के लिये सरकारी धन के आवंटन से है।
    • यह किसी देश के आर्थिक विकास पथ को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • भारत के विकास की कुंजी के रूप में सार्वजनिक क्षेत्र: 
    • बुनियादी ढाँचे का विकास: सड़कों, राजमार्गों, रेलवे, बंदरगाहों, हवाई अड्डों तथा ऊर्जा संयंत्रों जैसे महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे के निर्माण एवं प्रबंधन हेतु सार्वजनिक निवेश महत्त्वपूर्ण है, जो आर्थिक विकास और उत्पादकता के लिये भी आवश्यक हैं।
      • इस क्षेत्र को वर्ष 2030 तक 4.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के अनुमानित निवेश की आवश्यकता होगी, जो इस क्षेत्र में सार्वजनिक निवेश में वृद्धि की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
    • रोज़गार सृजन और निर्धनता उन्मूलन: बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं, सामाजिक कल्याण योजनाओं और ग्रामीण विकास पहलों में सार्वजनिक निवेश, रोज़गार के अवसर सृजित कर सकता है तथा निर्धनता उन्मूलन में योगदान दे सकता है।
    • मानव पूंजी विकास: कुशल व उत्पादक कार्यबल के निर्माण के लिये शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल एवं कौशल विकास में सार्वजनिक निवेश महत्त्वपूर्ण है, जो निरंतर आर्थिक विकास हेतु आवश्यक है।
      • साथ ही, सार्वजनिक निवेश सभी क्षेत्रों में संतुलित विकास सुनिश्चित करता है, यह असमानताओं को कम करता है तथा समावेशी विकास को बढ़ावा देता है।
    • निजी निवेश में वृद्धि: बुनियादी ढाँचे और अन्य उत्पादक क्षेत्रों में सार्वजनिक निवेश व्यवसाय लागत में कमी और समग्र उत्पादकता में वृद्धि करके निजी निवेश के लिये अनुकूल वातावरण तैयार कर सकता है।

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund- IMF) क्या है?

  • परिचय: अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जो सदस्य देशों को वित्तीय सहायता और सलाह प्रदान करता है।
    • इसकी परिकल्पना जुलाई, वर्ष 1944 में ब्रेटन वुड्स सम्मेलन के दौरान की गई थी।

  • उद्देश्य:
    • वैश्विक मौद्रिक सहयोग एवं स्थिरता को बढ़ावा देना।
    • वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करना तथा संकट की स्थिति में सहायता उपलब्ध कराना।
    • स्थिर मुद्राओं के साथ अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को सुगम बनाना।
    • प्रभावी नीतियों के माध्यम से सतत् विकास एवं रोज़गार को बढ़ावा देना।
  • बोर्ड ऑफ गवर्नर्स: IMF के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स में प्रत्येक सदस्य देश से एक गवर्नर और एक कार्यकारी गवर्नर शामिल होते हैं।
    • भारत के मामले में भारत के वित्तमंत्री, बोर्ड ऑफ गवर्नर्स में पदेन गवर्नर के रूप में कार्य करता है तथा भारतीय रिज़र्व बैंक का गवर्नर भारत के अल्टरनेट गवर्नर के रूप में कार्य करता है।
  • विशेष आहरण अधिकार: IMF एक अंतर्राष्ट्रीय आरक्षित परिसंपत्ति जारी करता है जिसे विशेष आहरण अधिकार के रूप में जाना जाता है, यह सदस्य देशों के आधिकारिक रिज़र्व में पूरक के रूप में कार्य कर सकता है।
    • वर्तमान में कुल वैश्विक आवंटन लगभग 293 बिलियन अमेरिकी डॉलर है। IMF सदस्य स्वेच्छा से आपस में मुद्राओं के लिये SDR का आदान-प्रदान कर सकते हैं।
  • IMF द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट:

भारत के लिये IMF का क्या महत्त्व है? 

  • परिचय:  भारत स्वतंत्रता प्राप्त करने से पूर्व दिसंबर 1945 में ही एक संस्थापक सदस्य के रूप में IMF में शामिल हो गया था।
    • वर्तमान में भारत के पास IMF में 2.75% विशेष आहरण अधिकार आरक्षण तथा 2.63% वोट हैं।
      • SDR भारत के विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Currency Reserve) के घटकों में से एक है।
        • IMF ने भारत को 12.57 बिलियन (लगभग 17.86 बिलियन अमेरिकी डॉलर) विशेष आहरण अधिकार का आवंटन किया है।
  • महत्त्व: 
    • भारतीय रुपए की स्वतंत्रता: IMF की स्थापना से पहले, भारतीय रुपया ब्रिटिश पाउंड स्टर्लिंग से संबद्ध था।  
      • परंतु IMF की स्थापना के उपरांत भारतीय रुपया स्वतंत्र हो गया है। अब इसका मूल्य स्वर्ण के रूप में व्यक्त किया जाता है।
      • इसका अर्थ यह है कि भारतीय रुपए को किसी भी अन्य देश की मुद्रा में सुगमता से परिवर्तित किया जा सकता है।
    • विदेशी मुद्राओं की उपलब्धता: भारत सरकार विकास गतिविधियों से जुड़ी आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिये समय-समय पर IMF फंड से विदेशी मुद्रा क्रय करती रही है।
      • IMF की स्थापना से लेकर 31 मार्च, 1971 तक भारत ने IMF से 817.5 करोड़ रुपए के मूल्य की विदेशी मुद्राएँ खरीदीं, हालाँकि वर्तमान समय में उसका पूर्ण भुगतान कर दिया गया है।
      • वर्ष 1970 के बाद से अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के अन्य सदस्य देशों के रूप में भारत को जो सहायता मिल सकती है, उसमें विशेष आहरण अधिकार (1969 में बनाए गए SDR) की स्थापना के माध्यम से वृद्धि की गई है।
    • आपातकाल के दौरान सहायता: भारत को बाढ़, भूकंप, अकाल आदि प्राकृतिक आपदाओं के कारण उत्पन्न आर्थिक संकट को हल करने के लिये इस कोष से बड़ी मात्रा में वित्तीय सहायता प्राप्त हुई है।
      • वर्ष 1981 में भारत ने भुगतान संतुलन की समस्या को दूर करने के लिये IMF से 5000 करोड़ रुपए का ऋण प्राप्त किया था। 

भारत में कौन-से सनराइज़ सेक्टर (उभरते हुए क्षेत्र) पर्याप्त सार्वजनिक निवेश की मांग कर रहे हैं?

  • कार्बन कैप्चर, यूटिलाइज़ेशन एंड स्टोरेज (CCUS): CCUS प्रौद्योगिकियाँ विशेष रूप से स्टील, सीमेंट और विद्युत उत्पादन जैसे उद्योगों में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।
    • हालाँकि, भारत में CCUS परियोजनाओं के अनुसंधान, विकास एवं परिनियोजन में सार्वजनिक निवेश वर्तमान में सीमित है।
  • साइबर सुरक्षा और डेटा सुरक्षा: अर्थव्यवस्था के बढ़ते डिजिटलीकरण और साइबर खतरों में वृद्धि के साथ, भारत के साइबर सुरक्षा बुनियादी ढाँचे को बढ़ाने, मज़बूत डेटा सुरक्षा ढाँचे को विकसित करने तथा इस क्षेत्र में एक कुशल कार्यबल तैयार करने के लिये सार्वजनिक निवेश आवश्यक है।
  • जैव प्रौद्योगिकी और परिशुद्ध चिकित्सा (Precision Medicine): जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान में सार्वजनिक निवेश, विशेष रूप से जीनोमिक्स, सिंथेटिक बायोलॉजी तथा परिशुद्ध चिकित्सा (Precision Medicine) जैसे क्षेत्रों में भारत को अत्याधुनिक स्वास्थ्य देखभाल समाधान विकसित करने और इस क्षेत्र में अग्रणी के रूप में स्वयं को स्थापित करने में सहायता मिल सकती है।
  • चक्रीय अर्थव्यवस्था और अपशिष्ट प्रबंधन: हालाँकि कुछ पहलें की गई हैं, लेकिन एक व्यापक चक्रीय अर्थव्यवस्था ढाँचे को विकसित करने हेतु अधिक सार्वजनिक निवेश की आवश्यकता है, जिसमें अपशिष्ट संग्रह, पुनर्चक्रण और संसाधन पुनर्प्राप्ति के लिये बुनियादी ढाँचा शामिल है।
  • नीली अर्थव्यवस्था और समुद्री अनुसंधान: विशाल तटरेखा वाले भारत में समुद्री अनुसंधान में सार्वजनिक निवेश, सतत् महासागरीय अन्वेषण और अपतटीय पवन ऊर्जा, समुद्री जैवप्रौद्योगिकी एवं तटीय पर्यटन जैसे क्षेत्रों पर केंद्रित नीली अर्थव्यवस्था के विकास द्वारा महत्त्वपूर्ण आर्थिक अवसरों का सृजन किया जा सकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

वैश्विक रूप से आर्थिक स्थिरता को बढ़ावा देने में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की भूमिका और विकासशील देशों पर इसके प्रभाव की विवेचना कीजिये। IMF की नीतियों के विरुद्ध आलोचनाओं का मूल्यांकन कीजिये और इन चिंताओं को दूर करने के लिये संभावित सुधारों का सुझाव दीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. "त्वरित वित्तीयन प्रपत्र (Rapid Financing Instrument)" और "त्वरित ऋण सुविधा (Rapid Credit Facility)", निम्नलिखित में किस एक के द्वारा उधार दिये जाने के उपबंधों से संबंधित हैं ? (2022)

(a) एशियाई विकास बैंक
(b) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष
(c) संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम वित्त पहल
(d) विश्व बैंक

उत्तर: (b)


प्रश्न."स्वर्ण-ट्रान्श" (रिज़र्व ट्रान्श) निर्दिष्ट करता है (2020)

(a) विश्व बैंक की ऋण व्यवस्था
(b) केंद्रीय बैंक की किसी एक क्रिया को
(c) WTO द्वारा इसके सदस्यों को प्रदत्त एक साख प्रणाली को
(d) IMF द्वारा इसके सदस्यों को प्रदत्त एक साख प्रणाली को

उत्तर: (d)


प्रश्न. 'वैश्विक वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (Global Financial Stability Report)' किसके द्वारा तैयार की जाती है? (2016)

(a) यूरोपीय केंद्रीय बैंक
(b) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष
(c) अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक
(d) आर्थिक सहयोग तथा विकास संगठन

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. विश्व बैंक व अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, संयुक्त रूप से ब्रेटन वुड्स नाम से जानी जाने वाली संस्थाएँ, विश्व की आर्थिक व वित्तीय व्यवस्था की संरचना का संभरण करने वाले दो अन्तःसरकारी स्तंभ हैं। पृष्ठीय रूप में विश्व बैंक व अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष दोनों की अनेक समान विशिष्टताएँ हैं, तथापि उनकी भूमिका, कार्य तथा अधिदेश स्पष्ट रूप से भिन्न हैं। व्याख्या कीजिये। (2013)


एम्प्लिफायिंग द ग्लोबल वैल्यू ऑफ अर्थ ऑब्ज़रवेशन

प्रिलिम्स के लिये:

पृथ्वी अवलोकन डेटा, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, VEDAS, पृथ्वी अवलोकन उपग्रह, प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली

मेन्स के लिये:

पृथ्वी अवलोकन डेटा का आर्थिक प्रभाव, EO के पर्यावरणीय लाभ, प्राकृतिक संसाधनों और जोखिम प्रबंधन।

स्रोत: इकॉनोमिक्स टाइम्स

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में विश्व आर्थिक मंच द्वारा "एम्प्लिफायिंग द ग्लोबल वैल्यू ऑफ अर्थ ऑब्ज़रवेशन" नामक एक नई रिपोर्ट ने वैश्विक रूप से आर्थिक विकास और स्थिरता में वृद्धि लाने हेतु पृथ्वी अवलोकन (Earth Observation-EO) डेटा की विशाल क्षमता पर प्रकाश डाला है।

नोट: पृथ्वी अवलोकन डेटा में रिमोट सेंसिंग प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके पृथ्वी की भौतिक, रासायनिक और जैविक प्रणालियों के संबंध में जानकारी एकत्र करना, उनका विश्लेषण करना तथा प्रस्तुत करना शामिल है।

  • इसमें ऊर्जा उत्सर्जन व परावर्तित छवियों के प्रसंस्करण के माध्यम से पृथ्वी की सतह, जैसे भूमि आवरण, महासागर, कृषि और वानिकी के संबंध में जानकारी प्राप्त करना शामिल है।
  • इसे रिमोट सेंसिंग के माध्यम से प्राप्त किया जाता है, जो एक भू-स्थानिक तकनीक है जो किसी वस्तु, स्थान या घटना के साथ भौतिक संपर्क किये बिना उसके संबंध में डेटा एकत्र करती है।

रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • EO डेटा का संभावित आर्थिक प्रभाव: EO डेटा वर्ष 2030 तक वैश्विक स्तर पर 3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से भी अधिक आर्थिक लाभ उत्पन्न कर सकता है।
    • EO डेटा का वैश्विक मूल्य वर्तमान में 266 बिलियन अमरीकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2030 तक 700 बिलियन अमरीकी डॉलर से अधिक होने की संभावना है।
    • यह वर्ष 2030 तक वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (Global Gross Domestic Product- GDP) में संचयी रूप से 3.8 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का योगदान दे सकता है।
  • पर्यावरणीय लाभ: EO डेटा वर्ष 2030 तक प्रतिवर्ष 2 गीगाटन ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को समाप्त करने में सहायता कर सकता है।
    • यह 476 मिलियन गैसोलीन-चालित कारों के अनुमानित संयुक्त वार्षिक उत्सर्जन के बराबर है।
    • जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने और प्राकृतिक आवासों की सुरक्षा करने के उद्देश्य से उपायों के लिये मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु, EO जलवायु परिवर्तन, उत्सर्जन, पारिस्थितिकी तंत्र एवं जैवविविधता की व्यापक तौर पर निगरानी कर सकता है।
  • क्षेत्रीय अवसर: एशिया प्रशांत क्षेत्र वर्ष 2030 तक EO के मूल्य का सबसे बड़ा भाग प्राप्त करने के लिये तैयार है, जो 315 बिलियन अमेरिकी डॉलर के संभावित मूल्य तक पहुँच जाएगा।
    • अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका महाद्वीप के देश EO डेटा मूल्य में वृद्धि का सबसे बड़ा भाग प्राप्त करने की स्थिति में हैं।
  • EO का सक्षम प्रौद्योगिकियों के साथ मिश्रण: कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial intelligence- AI) और डिजिटल ट्विन्स (Digital twins) जैसी सक्षम तकनीकों का मिश्रण करने से EO डेटा के संरक्षण को गति मिल सकती है।
    • डिजिटल ट्विन, किसी वस्तु या सिस्टम का आभासी प्रतिनिधित्व है जो किसी भौतिक वस्तु को सटीक रूप से प्रतिबिंबित करता है। यह वस्तु के पूरे जीवनचक्र को समाहित करता है, जिसे रियल टाइम डेटा के साथ अपडेट किया जाता है तथा यह निर्णय लेने में सहायता के लिये सिमुलेशन, मशीन लर्निंग एवं लॉजिक्स का उपयोग करता है।

पृथ्वी अवलोकन डेटा के अनुप्रयोग के प्रमुख क्षेत्र क्या हैं?

  • पर्यावरण निगरानी एवं प्रबंधन: सैटेलाईट इमेजरी का उपयोग करके अमेज़न वर्षावन जैसे जंगलों में वनों की कटाई (जिसमें रूप से अवैध कटाई करना भी शामिल है) संबंधी गतिविधियों की निगरानी करना।
  • कृषि एवं परिशुद्ध कृषि पद्धतियाँ: फसलों की निगरानी के लिये मल्टीस्पेक्ट्रल सैटेलाईट इमेजरी का उपयोग करना। कृषि पैदावार का अनुमान लगाना तथा गेहूँ, चावल और मक्का जैसी फसलों के लिये परिशुद्ध कृषि पद्धतियों का अनुकूलन करना।
    • कृषि क्षेत्रों में मृदा की नमी के स्तर का आकलन करना और सूखे की आशंका वाले क्षेत्रों में सिंचाई की आवश्यकता वाले क्षेत्रों की पहचान करना।
    • फसलों को प्रभावित करने वाले कीटों और रोगों के प्रसार का पता लगाना तथा उनका मानचित्रण करना।
  • शहरी नियोजन एवं विकास: शंघाई (चीन) और मुंबई (भारत) जैसे तेज़ी  से बढ़ते नगरों में नगरीय क्षेत्रों के मानचित्रण एवं नगरीय प्रसार की निगरानी करना।
    • नई सड़कों, हवाई अड्डों और आवास परियोजनाओं जैसे बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये उपयुक्त स्थानों की पहचान करना।
    • टोक्यो (जापान) जैसे बड़े नगरों में भूमि उपयोग पैटर्न तथा नगरीय विकास में परिवर्तन की निगरानी करना।
  • प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन: अमेरिका में पर्मियन बेसिन (अमेरिका में दूसरा सबसे बड़ा प्राकृतिक गैस उत्पादक क्षेत्र) जैसे क्षेत्रों में खनिज संसाधनों एवं खनन गतिविधियों का मानचित्रण तथा निगरानी करना।
    • अफ्रीका और मध्य पूर्व जैसे कुछ भूजल की कमी वाले क्षेत्रों में झीलों, नदियों और भूजल स्तर तथा जल संसाधनों की निगरानी करना।
  • जलवायु परिवर्तन अध्ययन: ग्लेशियरों, समुद्री बर्फ तथा आर्कटिक और अंटार्कटिक जैसे ध्रुवीय क्षेत्रों में परिवर्तन की निगरानी करना।
    • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन एवं जलवायु पर इस उत्सर्जन के प्रभाव सहित वैश्विक तापमान और वायुमंडलीय स्थितियों पर नज़र रखना।
  • आपदा प्रबंधन और आपातकालीन प्रतिक्रिया: तूफान, भूकंप तथा वनाग्नि जैसी प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान की सीमा का आकलन करना।
    • राहत प्रयासों के लिये आपदाओं से प्रभावित क्षेत्रों की पहचान करना, जैसे; वर्ष 2004 में हिंद महासागर की सुनामी।
  • रक्षा एवं सुरक्षा: सीमा निगरानी एवं तस्करी तथा गैरकानूनी सीमा पारगमन सहित अनाधिकृत गतिविधियों की पहचान करना।
  • पुरातत्व एवं सांस्कृतिक विरासत: प्राचीन माया सभ्यता जैसे पुरातात्विक स्थलों और प्राचीन संरचनाओं की पहचान एवं उनका मानचित्रण करना।
    • ऐतिहासिक स्थलों और सांस्कृतिक विरासत स्थलों के संरक्षण की निगरानी करना।

भारत पृथ्वी अवलोकन डेटा को कैसे संभालता है? 

  • परिचय: भारत में पृथ्वी अवलोकन (Earth Observation- EO) डेटा आपदा प्रबंधन से लेकर पर्यावरण निगरानी तक विभिन्न अनुप्रयोगों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • उपग्रह: 
    • ISRO पृथ्वी अवलोकन उपग्रहों की एक शृंखला संचालित करता है, जिसमें हाल ही में फरवरी 2023 में लॉन्च किया गया EOS-07 और नवंबर 2022 में लॉन्च किया गया EOS-06 शामिल है।
    • ये उपग्रह भूमि अवलोकन के लिये रिसोर्ससैट शृंखला (ResourceSat Series) और समुद्र की निगरानी के लिये ओशनसैट शृंखला (OCEANSAT series) के सुस्थापित बेड़े में शामिल हो गए हैं, जो हमारे ग्रह के अध्ययन एवं प्रबंधन के लिये अंतरिक्ष-आधारित उपकरणों को एक व्यापक आधार प्रदान करते हैं।
  • EO प्लेटफॉर्म: 
    • VEDAS (पृथ्वी अवलोकन डेटा और अभिलेखीय प्रणाली का दृश्य- Visualisation of Earth Observation Data and Archival System): VEDAS ISRO के अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र (Space Applications Centre- SAC) की एक पहल है। यह सैटेलाइट इमेजरी से प्राप्त विषयगत स्थानिक डेटा के विशाल भंडार तक पहुँच प्रदान करता है।
    • भुवन: यह ISRO का जियो-प्लेटफॉर्म है जो भारत के लिये  सैटेलाइट इमेजरी और विषयगत डेटासेट प्रदान करता है।
    • मौसम विज्ञान और समुद्र विज्ञान उपग्रह डेटा अभिलेखीय केंद्र (Meteorological and Oceanographic Satellite Data Archival Centre-MOSDAC): यह ISRO के सभी मौसम संबंधी मिशनों के लिये एक डेटा भंडार है।
  • भविष्य की परियोजनाएँ:
    • नासा-ISRO सिंथेटिक एपर्चर रडार (NISAR): यह नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) और ISRO के बीच दोहरी-आवृत्ति वाली सिंथेटिक एपर्चर रडार के साथ पृथ्वी-अवलोकन उपग्रह विकसित करने तथा लॉन्च करने के लिये एक संयुक्त परियोजना है।
      • यह उपग्रह दोहरी आवृत्तियों का उपयोग करने वाला पहला रडार इमेजिंग सैटेलाइट होगा।
        • सिंथेटिक एपर्चर रडार (Synthetic aperture radar- SAR) एक रिज़ॉल्यूशन-सीमित रडार प्रणाली से बेहतर-रिज़ॉल्यूशन वाली छवियाँ बनाने की एक तकनीक को संदर्भित करता है।
      • NISAR का डेटा वैश्विक स्तर पर लोगों को प्राकृतिक संसाधनों और खतरों को बेहतर ढंग से प्रबंधित करने में सहायता कर सकता है, साथ ही वैज्ञानिकों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों तथा गति को बेहतर ढंग से समझने के लिये आवश्यक जानकारी प्रदान कर सकता है।

विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum-WEF) के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • परिचय: विश्व आर्थिक मंच जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में स्थित एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है, जिसकी स्थापना वर्ष 1971 में क्लॉस श्वाब ने की थी।
  • इतिहास: यह मूल रूप से प्रबंधन पर केंद्रित था, लेकिन वर्ष 1973 में इसका विस्तार आर्थिक और सामाजिक मुद्दों तक हो गया।
  • वर्ष 1973 में यूरोपियन मैनेजमेंट फोरम की वार्षिक बैठक में ब्रेटन वुड्स में निर्धारित किये गए निश्चित विनिमय दर प्रणाली के पतन और अरब-इज़रायल युद्ध जैसी घटनाओं के कारण आर्थिक एवं सामाजिक मुद्दों को शामिल करने पर ध्यान केंद्रित किया गया।
  • वर्ष 1987 में यूरोपियन मैनेजमेंट फोरम आधिकारिक तौर पर विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum) बन गया और इसका वैश्विक उद्देश्य संवाद हेतु एक मंच प्रदान करना था। वर्ष 2015 में फोरम को औपचारिक रूप से एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन के रूप में मान्यता दी गई।
  • वार्षिक बैठक: WEF हितधारक पूंजीवाद को प्रोत्साहित करता है तथा दावोस में वार्षिक बैठक आयोजित करता है। इस बैठक में लगभग 3,000 प्रतिभागी (निवेशक, व्यापार जगत के दिग्गज, राजनेता, अर्थशास्त्री, विभिन्न क्षेत्रों की मशहूर हस्तियाँ आदि) अलग-अलग क्षेत्रों से संबंधित वैश्विक मुद्दों पर चर्चा करते हैं। 
  • WEF को बड़े पैमाने पर इसके भागीदार निगमों- जो आमतौर पर 5 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक वार्षिक कारोबार वाले वैश्विक उद्यम होते हैं, द्वारा वित्तपोषित किया जाता है।
  • प्रमुख रिपोर्ट: ग्लोबल कॉम्पेटिटिवनेस रिपोर्ट, ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट, एनर्जी ट्रांज़िशन इंडेक्स, ग्लोबल रिस्क रिपोर्ट तथा ग्लोबल ट्रेवल एंड टूरिज़्म रिपोर्ट

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न. ISRO के योगदान और भविष्य की परियोजनाओं पर विचार करते हुए, आपदा प्रबंधन एवं पर्यावरण निगरानी के लिये पृथ्वी अवलोकन डेटा का उपयोग करने में भारत की भूमिका का मूल्यांकन कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन विश्व के देशों को 'ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स' रैंकिंग जारी करता है? (2017)

(a) विश्व आर्थिक मंच
(b) संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद
(c) यू. एन. वुमन
(d) विश्व स्वास्थ्य संगठन

उत्तर: (a)


प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन विश्व आर्थिक मंच का संस्थापक है? (2009) 

(a) क्लॉस श्वाब
(b) जॉन केनेथ गाॅलब्रैथ
(c) रॉबर्ट ज़ूलिक
(d) पॉल क्रुगमैन 

उत्तर: (a) 


प्रश्न. वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता रिपोर्ट किसके द्वारा प्रकाशित की जाती है? (2019)

(a) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष
(b) व्यापार एवं विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन
(c) विश्व आर्थिक मंच
(d) विश्व बैंक 

उत्तर: (c)


अरावली रेंज में खनन

प्रिलिम्स के लिये:

अरावली पारिस्थितिकी तंत्र, भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI), ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, सर्वोच्च न्यायालय, थार रेगिस्तान

मेन्स के लिये:

अरावली रेंज से संबंधित प्रमुख तथ्य, अरावली रेंज में खनन से संबंधित प्रमुख चिंताएँ।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय वन सर्वेक्षण (Forest Survey of India-FSI) की एक रिपोर्ट के आधार पर अरावली रेंज में नए खनन लाइसेंस जारी करने और मौजूदा खनन लाइसेंसों के नवीनीकरण पर रोक लगा दी है।

  • पिछले एक दशक में वैध खनन से हरियाणा के राजस्व में महत्त्वपूर्ण वृद्धि (वर्ष 2013-14 में 5.15 करोड़ रुपए से वर्ष 2023-24 में 363.5 करोड़ रुपए) हुई है।

अरावली रेंज के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • परिचय:
    • अरावली विश्व के सबसे प्राचीनतम वलित अवशिष्ट पर्वतों में से एक है, जो मुख्य रूप से वलित चट्टानों से बना है। यह गठन प्रोटेरोज़ोइक युग (2500-541 मिलियन वर्ष पूर्व) के दौरान टेक्टोनिक प्लेटों के अभिसरण के परिणामस्वरूप हुआ।
    • भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI) की रिपोर्ट में अरावली रेंज की पहाड़ियों को और उनके निचले भागों के नज़दीक एक समान 100 मीटर चौड़ा बफर ज़ोन शामिल करने के रूप में परिभाषित किया गया है।
    • इसकी ऊँचाई 300 से 900 मीटर है। राजस्थान में सांभर सिरोही रेंज और सांभर खेतड़ी रेंज दो प्राथमिक श्रेणियाँ हैं जो पर्वतों का निर्माण करती हैं।
    • माउंट आबू पर गुरु शिखर, अरावली रेंज (1,722 मीटर) की सबसे ऊँची चोटी है।
    • इसके आस-पास के प्रमुख जनजातीय समुदायों में भील, भील-मीणा, मीना, गरासिया और अन्य शामिल हैं।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2009 में हरियाणा के फरीदाबाद, गुणगाँव (अब गुरुग्राम) और नूँह ज़िलों की अरावली रेंज में खनन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया।
  • महत्त्व: 
    • जैवविविधता से समृद्ध:
      • यह रेंज पौधों की 300 स्थानिक प्रजातियों, 120 पक्षी प्रजातियों तथा सियार और नेवले जैसे कई विशिष्ट जीवों को आवास प्रदान करती है।
    • मरुस्थलीकरण पर अंकुश लगाता है:
      • अरावली रेंज पूर्व में उपजाऊ मैदानों और पश्चिम में थार रेगिस्तान के मध्य एक अवरोध के रूप में कार्य करती है।
      • अरावली रेंज में अत्यधिक खनन थार रेगिस्तान के विस्तार से जुड़ा हुआ है। 
        • मथुरा और आगरा में लोएस (मरुस्थलीय पवनों द्वारा उड़ा कर लाई तलछट का जमाव) की उपस्थिति इस बात का संकेत है कि अरावली पहाड़ियों द्वारा निर्मित पारिस्थितिक अवरोध के कमज़ोर पड़ने से मरुस्थल का विस्तार हो रहा है।
    • जलवायु पर प्रभावः
      • अरावली रेंज उत्तर पश्चिम भारत की जलवायु को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। मानसून ऋतु के दौरान, यह रेंज जलवायु अवरोधक के रूप में कार्य करती है, जो नमीयुक्त दक्षिण-पश्चिमी पवनों को शिमला और नैनीताल की ओर निर्देशित करते हैं।
        • परिणामस्वरूप,यह रेंज उप-हिमालयी नदियों के पोषण में सहायक है और उत्तरी भारत के विशाल मैदानों में वर्षा को बढ़ावा देती है। 
      • शीतकाल में यह उपजाऊ जलोढ़ नदी घाटियों को मध्य एशिया से आने वाली शीत पश्चिमी पवनों से सुरक्षित रखने में सहायक है

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अरावली पर्वत रेंज में खनन से संबंधित प्रमुख चिंताएँ क्या हैं?

  • पर्यावास का विनाश और जैवविविधता हानि:
    • खनन गतिविधियाँ अरावली पारिस्थितिकी तंत्र को नष्ट करती हैं, जिससे तेंदुए, लकड़बग्घे और विभिन्न पक्षी प्रजातियों जैसे वन्यजीव विस्थापित हो जाते हैं। 
    • इससे खाद्य शृंखला और पारिस्थितिक संतुलन बाधित होता है।
    • राजस्थान के पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में खनन के कारण गंभीर रूप से लुप्तप्राय पक्षी प्रजाति ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के वास-स्थानों के लिये जोखिम उत्पन्न हो गया हैI 
  • जल की कमी और वायु प्रदूषण:
    • अरावली रेंज एक प्राकृतिक जल भंडार के रूप में कार्य करती है। खनन से प्राकृतिक जल प्रवाह और टेबल रिचार्ज बाधित होता है, जिसके परिणामस्वरूप नीचे की ओर जल प्रवाह कम हो जाता है और यह कृषि तथा मानव आबादी को प्रभावित करता है।
    • वर्ष 2018 के एक शोध-पत्र में हरियाणा में खनन के कारण स्प्रिंग रिचार्ज में गिरावट का उल्लेख किया गया है।
    • खनन गतिविधियों के कारण धूल में वृद्धि होती है और सिलिका जैसे हानिकारक प्रदूषक मुक्त होते हैं, जिससे वायु की गुणवत्ता प्रभावित होती है तथा आस-पास के समुदायों में श्वसन संबंधी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
  • भूमि क्षरण और मरुस्थलीकरण: 
    • खनन से वनस्पति आवरण नष्ट हो जाता है, जिससे भूमि का क्षरण होता है।
    • हवा और वर्षा उपजाऊ ऊपरी मृदा को बहा ले जाती है, जिससे मरुस्थलीकरण होता है। 
    • सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) के एक अध्ययन से पता चला है कि 2001 और 2016 के बीच हरियाणा के अरावली वन क्षेत्र में 37% की कमी आई है, जिसका मुख्य कारण संभवतः खनन गतिविधियाँ हैं।

आगे की राह 

  • सख्त नियम बनाने तथा उन्हें प्रभावी ढंग से लागू करने से पर्यावरणीय क्षति को कम करने में सहायता मिल सकती है।
    • राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (National Clean Air Programme) उद्योगों से धूल के उत्सर्जन पर सख्त नियमों को प्रोत्साहित करता है।
    • इसे खनन कार्यों पर भी लागू किया जा सकता है ताकि उनके लिये भी धूल कम करने वाली तकनीकों (जैसे- जल छिड़काव करना तथा संचयों/भंडारों को कवर करना) को लागू करना अनिवार्य हो जाए।
  • आस-पास के क्षेत्रों में खनन के कारण पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने के लिये ग्रीन वॉल और ग्रीन मफलर (हरित क्षेत्रों ) जैसे अभिनव समाधानों का उपयोग किया जा सकता है।
    • ग्रीन वॉल ऊर्ध्वाधर संरचनाएँ होती हैं जिनमें विभिन्न प्रकार के पौधे या अन्य प्रकार की संबद्ध हरियाली होती है। ये मरुस्थलीकृत भूमि क्षेत्रों को पृथक करने में सहायता कर सकती हैं।
    • ग्रीन मफलर, हरे पौधे लगाकर ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने का एक उपाय है।
  • दीर्घकालिक पारिस्थितिक क्षति को कम करने के लिये खनन क्षेत्रों का पुनरुत्थान किया जाना चाहिये।
  • पर्यावरण-अनुकूल खनन तकनीकों और प्रौद्योगिकियों को अपनाने से खनन गतिविधियों के पर्यावरणीय प्रभाव को कम किया जा सकता है।
    • खनन से जुड़े पर्यावरणीय क्षरण को कम करने के लिये एम-सैंड जैसी पर्यावरण-अनुकूल तकनीकों का उपयोग किया जा सकता है।
  • सरकार को स्थायी क्षेत्रों में वैकल्पिक आजीविका के अवसर उत्पन्न कर खनन पर निर्भर समुदायों की सहायता करनी चाहिये।

निष्कर्ष:

  • अरावली रेंज, एक महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिक क्षेत्र है जिसे व्यापक संरक्षण की आवश्यकता है। पर्यावरणीय स्थिरता के साथ आर्थिक विकास को संतुलित करने के लिये एक बहु-आयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है जिसमें कठोर नियम, उत्तरदायित्त्व खनन प्रथाएँ तथा प्रभावित समुदायों के लिये आय के वैकल्पिक स्रोतों की खोज शामिल है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न. अरावली पर्वत रेंज की प्रमुख विशेषताएँ लिखिये। अरावली पर्वत रेंज में खनन से संबंधित प्रमुख चिंताओं पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत में गौण खनिज के प्रबंधन के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)

  1. इस देश में विद्यमान विधि के अनुसार रेत एक ‘गौण खनिज’ है।
  2. गौण खनिजों के खनन पट्टे प्रदान करने की शक्ति राज्य सरकारों के पास है, किंतु गौण खनिजों को प्रदान करने से संबंधित नियमों को बनाने के बारे में शक्तियाँ केंद्र सरकार के पास हैं।
  3. गौण खनिजों के अवैध खनन को रोकने के लिये नियम बनाने की शक्ति राज्य सरकारों के पास है।

उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a)


प्रश्न. भारत में ज़िला खनिज फाउंडेशन का/के क्या उद्देश्य है/हैं? (2016)

  1. खनिज समृद्ध ज़िलों में खनिज अन्वेषण गतिविधियों को बढ़ावा देना,  
  2. खनन कार्यों से प्रभावित व्यक्तियों के हितों की रक्षा करना,  
  3. राज्य सरकारों को खनिज अन्वेषण के लिये लाइसेंस जारी करने हेतु अधिकृत करना,

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न: गोंडवानालैंड के देशों में से एक होने के बावजूद भारत के खनन उद्योग का देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में बहुत कम प्रतिशत योगदान है। चर्चा कीजिये। (2021)


चाबहार बंदरगाह समझौता

प्रिलिम्स के लिये:

चाबहार बंदरगाह, अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा, बेल्ट और रोड इनिशिएटिव

मेन्स के लिये:

भारत के लिये चाबहार बंदरगाह का महत्त्व, भारत और ईरान के मध्य विवादित क्षेत्र।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत और ईरान ने ईरान के चाबहार बंदरगाह के संचालन के लिये 10 वर्ष के अनुबंध पर हस्ताक्षर किये।

  • इस दीर्घकालिक समझौते पर इंडियन पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड (IPGL) और ईरान के पोर्ट एंड मैरीटाइम ऑर्गनाइज़ेशन (PMO) के बीच शाहिद-बेहिश्ती टर्मिनल के संचालन करने हेतु हस्ताक्षर किये गए।
  • ईरान के साथ दीर्घकालिक अनुबंध पर हस्ताक्षर करना मध्य एशिया के लिये भारत की रणनीतिक एवं आर्थिक दृष्टि का हिस्सा है।

चाबहार बंदरगाह भारत के लिये महत्त्वपूर्ण क्यों है?

  • परिचय:
    • चाबहार, ईरान का एकमात्र समुद्री बंदरगाह है। यह मकरान तट पर सिस्तान एवं बलूचिस्तान प्रांत में ओमान की खाड़ी में स्थित है।
    • चाबहार में दो मुख्य बंदरगाह हैं, शाहिद कलंतरी एवं शाहिद बेहिश्ती बंदरगाह
      • ईरान ने भारत को शाहिद बेहिश्ती बंदरगाह के निर्माण का प्रस्ताव दिया और भारत ने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।
  • चाबहार बंदरगाह समझौते के संबंध में प्रगति:
    • भारत ने मई 2015 में चाबहार बंदरगाह के विकास के लिये एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किये।
    • मई 2016 में भारत, ईरान एवं अफगानिस्तान द्वारा अंतर्राष्ट्रीय परिवहन और पारगमन गलियारे की स्थापना के लिये एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किये, जिसे चाबहार समझौते के रूप में भी जाना जाता है।
      • इस समझौते का उद्देश्य ईरान में चाबहार बंदरगाह को एक प्रमुख पारगमन बिंदु के रूप में उपयोग करके उक्त तीनों देशों के बीच परिवहन और व्यापार संपर्क में सुधार करना है।
    • हालाँकि, दीर्घकालिक समझौते को अंतिम रूप देने में समझौते के कुछ खंडों पर मतभेद सहित कई कारकों के कारण बाधा उत्पन्न हुई।
      • भारत एक तटस्थ देश में मध्यस्थता चाहता था, जबकि ईरान अपने देश के न्यायालयों या किसी अनुकूल देश में यह प्रक्रिया करना चाहता था।
      • विवाद का मुख्य बिंदु यह था कि विवादों के समाधान के लिये मध्यस्थता कहाँ की जाए। अब, दोनों पक्ष एक ऐसे समझौते पर सहमत हुए हैं जो उनसे संबंधित हितों को संतुष्ट करता है। अनुबंध में कहा गया है कि किसी भी असहमति को दोनों देशों के नेताओं के बीच खुले संचार और सहयोग के माध्यम से सुलझाया जाना चाहिये।
    • इस नवीनतम दीर्घकालिक समझौते का उद्देश्य स्वचालित नवीनीकरण प्रावधानों के साथ 10 वर्षों की अवधि वाले प्रारंभिक अनुबंध को प्रतिस्थापित करना है।
  • चाबहार बंदरगाह का महत्त्व:
    • वैकल्पिक व्यापार मार्ग: ऐतिहासिक रूप से अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक भारत की पहुँच काफी हद तक पाकिस्तान के माध्यम से पारगमन मार्गों पर निर्भर रही है।
      • चाबहार बंदरगाह भारत को अफगानिस्तान और मध्य एशिया में व्यापार के लिये एक वैकल्पिक मार्ग प्रदान करता है, जिसके लिये भारत पहले पाकिस्तान पर निर्भर करता था।
      • इसके अतिरिक्त, चाबहार बंदरगाह भारत की ईरान तक पहुँच को सुविधाजनक बनाएगा, जो अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (International North-South Transport Corridor-INSTC) का मुख्य प्रवेश बिंदु है, जो भारत, ईरान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप को सड़क, रेल और समुद्र के माध्यम से जोड़ता है। 
    • आर्थिक लाभ: संसाधन संपन्न मध्य एशियाई देशों और अफगानिस्तान के साथ संबंध बढ़ाने के भारत के प्रयासों में चाबहार महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
      • यह भारत को अपने व्यापारिक मार्गों में विविधता लाने तथा ईरान व अफगानिस्तान के अतिरिक्त रूस, यूरेशिया और यूरोप के बाज़ारों तक पहुँच बढ़ाने में सहायता करेगा। 
        • INSTC मार्ग के माध्यम से कार्गो आवाजाही से लागत में 30% और परिवहन में लगने वाले समय में 40% की बचत होने का अनुमान है, जिससे प्रतिस्पर्धी लागत में त्वरित बदलाव सुनिश्चित हो सकेगा।
      • मध्य एशियाई देश, जो संसाधनों से समृद्ध हैं, लेकिन कज़ाखस्तान और उज़्बेकिस्तान जैसे देशों, जो समुद्र तक सीधी पहुँच नहीं रखते हैं, ने हिंद महासागर क्षेत्र से जुड़ने तथा भारतीय बाज़ार में प्रवेश करने के लिये चाबहार का उपयोग करने में रुचि दिखाई है।
    • मानवीय सहायता: चाबहार बंदरगाह अफगानिस्तान में मानवीय सहायता और पुनर्निर्माण प्रयासों के लिये एक महत्त्वपूर्ण प्रवेश बिंदु के रूप में कार्य कर सकता है।
      • कोविड-19 महामारी के दौरान चाबहार बंदरगाह ने मानवीय सहायता की आपूर्ति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
      • चाबहार बंदरगाह के माध्यम से भारत से अफगानिस्तान तक 2.5 मिलियन टन गेहूँ और 2,000 टन दालों का निर्यात किया है।
      • वर्ष 2021 में भारत ने टिड्डियों के हमलों से निपटने के लिये बंदरगाह के माध्यम से ईरान को 40,000 लीटर पर्यावरण-अनुकूल कीटनाशक मैलाथियान भेजा।
    • रणनीतिक प्रभाव और क्षेत्रीय स्थिरता: चाबहार बंदरगाह को विकसित और संचालित करके, भारत हिंद महासागर क्षेत्र में अपने रणनीतिक प्रभाव को बढ़ा सकता है, जिससे भारत की भू-राजनीतिक स्थिति मज़बूत हो सकती है।
      • चाबहार बंदरगाह चीन द्वारा पाकिस्तान में ग्वादर बंदरगाह के विकास के प्रतिकार के रूप में कार्य करेगा।
      • इसके अतिरिक्त, चाबहार में उपलब्ध डॉकिंग सुविधाओं के कारण भारत समुद्री डकैती के मामलों पर प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया दे सकता है और अरब सागर में रक्षा की पहली पंक्ति के रूप में काम कर सकता है।

चाबहार बंदरगाह की क्षमता को साकार करने में क्या चुनौतियाँ हैं?

  • ईरान को लेकर अमेरिका की चिंता:
    • ईरान के चाबहार बंदरगाह के विकास के लिये दीर्घकालिक मुख्य अनुबंध पर हस्ताक्षर करने के पश्चात संयुक्त राज्य अमेरिका ने भारत को "प्रतिबंधों के संभावित जोखिम" की चेतावनी दी है।
      • तेहरान में अमेरिकी दूतावास पर कब्ज़ा करने के बाद, वर्ष 1979 से अमेरिका ने विभिन्न कानूनी प्राधिकरणों के तहत ईरान के साथ की जाने वाली आर्थिक गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया है।
      • इससे पहले वर्ष 2018 में अमेरिका ने चाबहार बंदरगाह की प्रगति और इसे अफगानिस्तान से जोड़ने हेतु रेलवे लिंक के निर्माण में सहायता के लिये भारत को विशिष्ट प्रतिबंधों से छूट दी थी
  • हाउथी-लाल सागर संकट:
    • हाउथी विद्रोही संचार के समुद्री मार्गों को बाधित कर सकते हैं, जिससे चाबहार बंदरगाह पर यातायात भी प्रभावित होगा।
  • सुरक्षा संबंधी चिंताएँ, क्षेत्रीय तनाव:
    • अफगानिस्तान से अमेरिका सेना की वापसी और तालिबान के पुनः वापसी के कारण वहाँ अस्थिरता उत्पन्न हो गई है, जिसका भारत के साथ व्यापार संबंधों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
    • ईरान व उसके कुछ पड़ोसी देशों, जैसे कि इज़रायल के मध्य अस्थिर संबंधों के साथ-साथ अफगानिस्तान तथा पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों में अस्थिर राजनीतिक स्थितियाँ भी चाबहार बंदरगाह और भारत के आर्थिक हितों को प्रभावित कर रही हैं।
  • समान परियोजनाओं से प्रतिस्पर्धा:

IMEC

  • चीन से प्रतिस्पर्द्धा:
    • चाबहार में चीन जैसे मज़बूत प्रतिस्पर्द्धियों के द्वारा किया गया निवेश, ईरान में भारत के हितों को प्रभावित कर सकता है।
  • अवसंरचना विकास:
    • चाबहार परियोजना का उद्देश्य बंदरगाहों, सड़कों एवं रेलवे जैसे बुनियादी ढाँचे में सुधार करना है, जिसके लिये महत्त्वपूर्ण निवेश, समय तथा विशेषज्ञता की आवश्यकता है। कोई भी देरी या अक्षमता इसकी प्रगति में बाधा बन सकती है।

भारत और ईरान के बीच आर्थिक संबंधों की स्थिति क्या है?

  • वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान भारत-ईरान द्विपक्षीय व्यापार 2.33 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जो वर्ष-दर-वर्ष 21.76% की वृद्धि दर्शाता है।
  • ईरान को भारत का निर्यात 1.66 बिलियन अमेरिकी डॉलर था और ईरान से भारत का आयात 672.12 मिलियन अमेरिकी डॉलर था।
  • पिछले वर्ष के इसी आंकड़े की तुलना में कुल व्यापार में 23.32% की कमी आई।
  • भारत, ईरान को मुख्य रूप से कृषि उत्पाद एवं पशु उत्पाद जैसे-मांस, दुग्ध उत्पाद, प्याज, लहसुन तथा डिब्बाबंद सब्ज़ियाँ  निर्यात करता था।
  • ईरान से आयात में मिथाइल अल्कोहल, पेट्रोलियम बिटुमेन, तरलीकृत ब्यूटेन, तरलीकृत प्रोपेन, सेब,  खजूर और बादाम शामिल थे।
  • अप्रैल 2000 से दिसंबर 2023 तक ईरान से भारत में FDI प्रवाह केवल 1 मिलियन अमेरिकी डॉलर दर्ज़ किया गया।
  • भारत वर्तमान में ईरानी तेल का आयात नहीं करता है क्योंकि ईरान, संयुक्त राज्य अमेरिका (US) के प्रतिबंधों के अधीन है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

रूस और यूरेशिया के साथ भारतीय संपर्क को अनुकूल बनाने के लिये INSTC और चाबहार पोर्ट एक दूसरे के पूरक कैसे सिद्ध होंगे?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

भारत द्वारा चाबहार बंदरगाह विकसित करने का क्या महत्त्व है?(2017)

(a) अफ्रीकी देशों से भारत के व्यापार में अपार वृद्धि होगी।
(b) तेल-उत्पादक अरब देशों से भारत के संबंध सुदृढ़ होंगे।
(c) अफगानिस्तान और मध्य एशिया में पहुँच के लिये भारत को पाकिस्तान पर निर्भर नहीं होना पड़ेगा।
(d) पाकिस्तान, इराक और भारत के बीच गैस पाइपलाइन का संस्थापन सुकर बनाएगा और उसकी सुरक्षा करेगा।

उत्तर: C 


मेन्स: 

प्रश्न. इस समय जारी अमेरिका-ईरान नाभिकीय समझौता विवाद भारत के राष्ट्रीय हितों को किस प्रकार प्रभावित करेगा? भारत को इस स्थिति के प्रति क्या रवैया अपनाना चाहिये? (2018)

प्रश्न. भारत की ऊर्जा सुरक्षा का प्रश्न भारत की आर्थिक प्रगति का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भाग है। पश्चिम एशियाई देशों के साथ भारत के ऊर्जा नीति सहयोग का विश्लेषण कीजिये। (2017)