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पेपर 3


जैव विविधता और पर्यावरण

मरुस्थलीकरण (Desertification)

  • 24 Sep 2019
  • 11 min read

चर्चा में क्यों?

भारत में मरुस्थलीकरण से निपटने के लिये संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के पार्टियों के सम्मेलन (COP14) की 14 वीं बैठक का आयोजन किया गया।

हाल ही में, 17 जून को “वर्ल्ड डे टू कॉम्बैट डेजर्टिफिकेशन एंड ड्रॉट” ( World Day to Combat Desertification and Drought) मनाया गया। इसकी 2019 की थीम “लेटस ग्रो द फ्यूचर टुगेदर” है।

मरुस्थलीकरण क्या है?

मरुस्थलीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा प्राकृतिक या मानव निर्मित कारकों के कारण शुष्क भूमि (शुष्क और अर्द्ध शुष्क भूमि) की जैविक उत्पादकता कम हो जाती है लेकिन इसका मतलब मौजूदा रेगिस्तानों का विस्तार नहीं है।

मरुस्थलीकरण के कारण

मानव निर्मित कारण:

अधिक चराई

  • यह भूमि की उपयोगिता, उत्पादकता और जैव-विविधता को कम करता है।
  • 2005 और 2015 के बीच भारत ने 31% घास के मैदान खो दिये।

वनों की कटाई

  • वन कार्बन सिंक के रूप में कार्य करते हैं।
  • वनों की कटाई से ग्रीनहाउस गैसों के प्रभाव में वृद्धि होती है।

खेती के तरीके

  • ‘काटो और जलाओ’ कृषि पद्धति मिट्टी के कटाव के खतरे को बढ़ाती है।
  • उर्वरकों का अतिप्रयोग और अतिवृष्टि मिट्टी की खनिज संरचना को असंतुलित करते हैं।

जलवायु परिवर्तन

  • यह तापमान, वर्षा, सौर विकिरण और हवाओं में स्थानिक और अस्थायी पैटर्न के परिवर्तन के माध्यम से मरुस्थलीकरण को बढ़ा सकता है।

प्राकृतिक कारण:

  • प्राकृतिक आपदाएँ जैसे- बाढ़, सूखा, भूस्खलन
  • पानी का क्षरण
  • उपजाऊ मिट्टी का विस्थापन
  • पानी का कटाव
  • यह बैडलैंड स्थलाकृति में परिणत होता है जो अपने आप में मरुस्थलीकरण का प्रारंभिक चरण है।
  • हवा का कटाव
  • हवा द्वारा रेत का अतिक्रमण भूमि की उर्वरता को कम करता है जिससे भूमि मरुस्थलीकरण के लिये अतिसंवेदनशील हो जाती है।

मरुस्थलीकरण के प्रभाव

पर्यावरणीय प्रभाव:

  • वनस्पति का विनाश
  • ज़मीन का बंजर होना
  • मिट्टी का क्षरण
  • प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि
  • भूमि निम्नीकरण
  • जल प्रदूषण
  • जैव विविधता को नुकसान और प्रजातियों का विलुप्त होना

आर्थिक प्रभाव:

  • प्राकृतिक जोखिम की घटनाओं में वृद्धि होती है,जैसे-
    • बाढ़
    • भूस्खलन
  • कृषि उत्पादकता को खतरा है।
  • पुनरावर्ती प्रभाव गरीबी को बढ़ाते हैं।
  • अर्थव्यवस्था की कुल उत्पादकता घट जाती है

सामाजिक प्रभाव:

  • अकाल, गरीबी, सामाजिक संघर्षों की स्थिति
  • सामूहिक पलायन यानी पर्यावरण प्रवासन।
  • खाद्य सुरक्षा के मुद्दे

राजनीतिक प्रभाव:

  • अपरिपक्व प्रभावों से राजनीतिक अस्थिरता भी पैदा होती है

भारत में मरुस्थलीकरण की स्थिति

  • भारत का करीब 96 मिलियन हेक्टेयर या 29% क्षेत्र मरुस्थल में परिवर्तित हो रहा है।
  • हाल ही में संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन टू कॉम्बैट डेजर्टिफिकेशन (UNCCD) में प्रस्तुत सरकार के आँकड़ों के अनुसार, भारत ने एक दशक में घास के क्षेत्र का 31% या 5.65 मिलियन हेक्टेयर हिस्सा खो दिया है।
  • भारत में 2003-05 और 2011-13 के बीच 29 में से 26 राज्यों में मरुस्थलीकरण के स्तर में वृद्धि देखी गई है।
  • देश में 80% से अधिक क्षरण की स्थिति सिर्फ नौ राज्यों में है।

भारत द्वारा मरुस्थलीकरण पर अंकुश लगाने के उपाय

कमांड एरिया डेवलपमेंट (Command Area Development)

  • सिंचाई में सुधार और कुशल जल प्रबंधन के माध्यम से कृषि उत्पादन के अनुकूलन के लिये इसे 1974 में लॉन्च किया गया था।
  • जल संसाधन मंत्रालय द्वारा संबंधित राज्य सरकारों के साथ कार्यक्रम का कार्यान्वयन किया जाता है।

एकीकृत जलग्रहण प्रबंधन कार्यक्रम

(Integrated Watershed Management Programme)

  • इसे 1989-90 में लॉन्च किया गया था।
  • इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार सृजन के द्वारा प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण और विकास करके पारिस्थितिक संतुलन को बहाल करना है।
  • इसे 2003 में "हरियाली दिशा-निर्देश" के रूप में नामित किया गया था।
  • अब इसे प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (2015-16 से 2019-20) के अधीन रखा गया है जिसे नीति अयोग द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।

डेजर्ट डेवलपमेंट प्रोग्राम

(Desert Development Programme)

  • यह 1995 में सूखे के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने और चिन्हित किये गए रेगिस्तानी क्षेत्रों के प्राकृतिक संसाधन आधार को फिर से जीवंत करने के लिये शुरू किया गया था।
  • यह राजस्थान, गुजरात, हरियाणा के गर्म रेगिस्तानी क्षेत्रों और जम्मू- कश्मीर तथा हिमाचल प्रदेश के ठंडे रेगिस्तान क्षेत्रों के लिये शुरू किया गया था।
  • इसे ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित किया जाता है।
    • भारत 1994 में संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन टू कॉम्बैट डेजर्टिफिकेशन (UNCCD) का हस्ताक्षरकर्ता बन गया और 1996 में इसकी पुष्टि की गई।

नदी घाटी परियोजनाओं और बाढ़ प्रवण नदियों से मिट्टी का संरक्षण

  • दोनों परियोजनाओं को वर्ष 2000 में जोड़ा गया तथा लागू किया गया।
  • इस योजना का उद्देश्य क्षारीय मिट्टी की भौतिक स्थितियों और उत्पादकता की स्थिति में सुधार करना है ताकि अधिकतम फसल उत्पादन किया जा सके।
  • इसे कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।

राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम (National Afforestation Programme)

  • यह निम्नीकृत वन भूमि के वनीकरण के लिये वर्ष 2000 से लागू किया गया है।
  • इसे पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।

नेशनल एक्शन प्रोग्राम टू कॉम्बैट डेजर्टिफिकेशन

(National Action Programme to Combat Desertification)

  • इसे 2001 में मरुस्थलीकरण से संबंधित मुद्दों को संबोधित करने के लिये तैयार किया गया था।

चारा और चारा विकास योजना

(Fodder and Feed Development Scheme)

  • इसे 2010 में लॉन्च किया गया था।
  • इसका उद्देश्य निम्नीकृत घास के मैदानों में सुधार करना है।
  • इसे मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।

ग्रीन इंडिया पर राष्ट्रीय मिशन

(National Mission on Green India)

  • यह जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC) का एक हिस्सा है।
  • इसे 2014 में 10 वर्षों की समय सीमा के साथ भारत के घटते जंगलों के संरक्षण, पुनर्स्थापन और वृद्धि के उद्देश्य से अनुमोदित किया गया था।
  • इसे पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है

भारत का मरुस्थलीकरण और भूमि उन्नयन एटलस

(Desertification and Land Degradation Atlas of India)

  • इसे ISRO ने 2016 में जारी किया था।
  • इसका उद्देश्य मरुस्थलीकरण और भूमि क्षरण का मुकाबला करना है।

मरुस्थलीकरण को रोकने के लिये वैश्विक प्रयास

  • बॉन चैलेंज: बॉन चुनौती एक वैश्विक प्रयास है। इसके तहत दुनिया के 150 मिलियन हेक्टेयर गैर-वनीकृत एवं बंजर भूमि पर वर्ष 2020 तक और 350 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर वर्ष 2030 तक वनस्पतियाँ उगाई जाएंगी।
  • सतत विकास लक्ष्य 15: यह घोषणा करता है कि "हम टिकाऊ खपत और उत्पादन के माध्यम से ग्रह को निम्नीकरण से बचाने के लिये दृढ़ हैं।"
  • संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन टू कॉम्बैट डेजर्टिफिकेशन (UNCCD): इसे 1994 में स्थापित किया गया था, जो पर्यावरण और विकास को स्थायी भूमि प्रबंधन से जोड़ने वाला एकमात्र कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय समझौता है।

निवारण के उपाय

  • वनीकरण को प्रोत्साहन
  • कृषि में रासायनिक उर्वरकों के स्थान पर जैविक उर्वरकों का प्रयोग।
  • फसल चक्र को प्रभावी रूप से अपनाना।
  • सिंचाई के नवीन और वैज्ञानिक तरीकों को अपनाना। जैसे बूँद-बूँद सिंचाई, स्प्रिंकलर सिंचाई आदि।
  • मरुस्थलीकरण के बारे में जागरूकता बढ़ाएँ
  • अवैध खनन गतिविधियों पर रोक एवं कॉर्पोरेट कंपनियों को ‘कॉर्पोरेट सोशल रेस्पाॅन्सिबिलिटी के तहत वृक्षारोपण का कार्य सौंपा जाना चाहिये।

आगे की राह

जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को स्थिर करने, वन्यजीव प्रजातियों को बचाने और समस्त मानव जाति की रक्षा के लिये मरुस्थलीकरण को समाप्त करना होगा। जंगल की रक्षा करना हम सबकी ज़िम्मेदारी है और दुनिया भर के लोगों और सरकारों को इसे निभाना चाहिये।

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