जैव विविधता और पर्यावरण
भारतीय अंटार्कटिक विधेयक मसौदा 2022
- 02 Apr 2022
- 8 min read
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय अंटार्कटिक विधेयक मसौदा-2022, समुद्री संरक्षित क्षेत्र (MPAs), अंटार्कटिका संधि, अंटार्कटिक समुद्री जीवित संसाधनों के संरक्षण पर कन्वेंशन और अंटार्कटिक समुद्री जीवित संसाधनों के संरक्षण हेतु आयोग। मेन्स के लिये:अंटार्कटिक क्षेत्र में भारत के हित, पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सरकार ने लोकसभा में 'अंटार्कटिक विधेयक' पेश किया, जिसमें अंटार्कटिक की यात्राओं एवं गतिविधियों के साथ-साथ महाद्वीप पर मौजूद लोगों के बीच उत्पन्न होने वाले संभावित विवादों को विनियमित करने हेतु प्रावधानों की परिकल्पना की गई है।
- यह विधेयक भारतीय नागरिकों के साथ-साथ विदेशी नागरिकों पर भी लागू होता है।
- अक्तूबर 2021 में भारत ने अंटार्कटिक पर्यावरण की रक्षा और पूर्वी अंटार्कटिक एवं वेडेल सागर को समुद्री संरक्षित क्षेत्रों (MPAs) के रूप में नामित करने हेतु यूरोपीय संघ द्वारा सह-प्रायोजित प्रस्ताव को अपना समर्थन दिया था।
- इससे पहले अंटार्कटिक में 100 किलोमीटर लंबे हिमशैल, जो तीव्रता से पिघल रहा है, को औपचारिक रूप से ग्लासगो जलवायु शिखर सम्मेलन के बाद ‘ग्लासगो’ नाम दिया गया था।
विधेयक के तहत प्रावधान:
- यात्राओं का विनियमन:
- इस विधेयक के तहत सख्त दिशा-निर्देश और परमिट की एक प्रणाली सूचीबद्ध है, जो सरकार द्वारा नियुक्त समिति के माध्यम से जारी की जाएगी, जिसके बिना किसी भी अभियान या व्यक्ति को अंटार्कटिका में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
- विधेयक के तहत प्रासंगिक अंतर्राष्ट्रीय कानूनों, उत्सर्जन मानकों एवं सुरक्षा नियमों की निगरानी, कार्यान्वयन तथा अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये ‘अंटार्कटिक शासन एवं पर्यावरण संरक्षण समिति’ स्थापित करने का प्रावधान है।
- इस विधेयक के तहत सख्त दिशा-निर्देश और परमिट की एक प्रणाली सूचीबद्ध है, जो सरकार द्वारा नियुक्त समिति के माध्यम से जारी की जाएगी, जिसके बिना किसी भी अभियान या व्यक्ति को अंटार्कटिका में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
- खनिज संसाधनों की रक्षा करना:
- यह विधेयक ड्रिलिंग, ड्रेजिंग, उत्खनन या खनिज संसाधनों के संग्रह या यहाँ तक कि खनिज भंडार की पहचान करने संबंधी गतिविधियों पर भी रोक लगाता है।
- यहाँ केवल परमिट के साथ ही वैज्ञानिक अनुसंधान की अनुमति दी जाएगी।
- यह विधेयक ड्रिलिंग, ड्रेजिंग, उत्खनन या खनिज संसाधनों के संग्रह या यहाँ तक कि खनिज भंडार की पहचान करने संबंधी गतिविधियों पर भी रोक लगाता है।
- स्थानिक पौधों की रक्षा करना:
- इसे तहत स्थानिक पौधों को नुकसान पहुँचाने वाली गतिविधियों पर सख्त रोक रहेगी, जिसमें हेलीकॉप्टर उड़ना या उतारना; पक्षियों को परेशान करने वाले आग्नेयास्त्रों का उपयोग करना; अंटार्कटिक की स्थानिक मृदा या किसी भी जैविक सामग्री को हटाना और ऐसी किसी अन्य गतिविधि में संलग्न होना शामिल है, जो कि पक्षियों एवं जानवरों के आवास को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकता है।
- अंटार्कटिक के स्थानिक पक्षियों के अलावा अन्य किसी भी प्रजाति को पेश करने पर प्रतिबंध:
- ऐसे जानवर, पक्षी, पौधे या सूक्ष्म जीव, जो अंटार्कटिका के स्थानिक नहीं हैं, को पेश करना भी प्रतिबंधित है।
- नियमों का उल्लंघन करने वालों को कारावास के साथ-साथ दंड का भी सामना करना पड़ सकता है।
- ऐसे जानवर, पक्षी, पौधे या सूक्ष्म जीव, जो अंटार्कटिका के स्थानिक नहीं हैं, को पेश करना भी प्रतिबंधित है।
- भारतीय टूर ऑपरेटरों से संबंधित प्रावधान:
- यह विधेयक भारतीय टूर ऑपरेटर्स को परमिट प्राप्त करने के बाद ही अंटार्कटिक में काम करने में सक्षम होने का भी प्रावधान करता है।
- अंटार्कटिक में कुल 40 स्थायी अनुसंधान केंद्र हैं, जिनमें भारत के ‘मैत्री’ और ‘भारती’ भी शामिल हैं।
विधेयक का उद्देश्य:
- एक सुस्थापित कानूनी तंत्र के माध्यम से भारत की अंटार्कटिक गतिविधियों के लिये एक सामंजस्यपूर्ण नीतिगत ढाँचा प्रदान करना; अंटार्कटिक पर्यटन के प्रबंधन और मत्स्यपालन के सतत् विकास सहित भारतीय अंटार्कटिक कार्यक्रम की गतिविधियों को सुविधाजनक बनाना।
ऐसे कानून की आवश्यकता क्यों?
- अंटार्कटिक संधि के प्रावधानों को पूरा करने हेतु:
- भारत वर्ष 1983 से अंटार्कटिक संधि का एक हस्ताक्षरकर्त्ता है तथा इसने भारत को महाद्वीप के उन हिस्सों के नियंत्रण के लिये कानूनों के एक समूह को निर्दिष्ट करने हेतु बाध्य किया जहाँ इसके अनुसंधान स्टेशन थे।
- संधि ने 54 हस्ताक्षरकर्त्ता देशों के लिये उन क्षेत्रों को नियंत्रित करने वाले कानूनों को निर्दिष्ट करना अनिवार्य कर दिया, जिन क्षेत्रों पर उनके स्टेशन स्थित हैं।
- भारत वर्ष 1983 से अंटार्कटिक संधि का एक हस्ताक्षरकर्त्ता है तथा इसने भारत को महाद्वीप के उन हिस्सों के नियंत्रण के लिये कानूनों के एक समूह को निर्दिष्ट करने हेतु बाध्य किया जहाँ इसके अनुसंधान स्टेशन थे।
- महाद्वीप की प्राचीन प्रकृति का संरक्षण:
- भारत अंटार्कटिक समुद्री जीवित संसाधनों के संरक्षण पर कन्वेंशन और अंटार्कटिक समुद्री जीवित संसाधनों के संरक्षण के लिये आयोग जैसी संधियों का भी हस्ताक्षरकर्त्ता है।
- दोनों सम्मेलन भारत को महाद्वीप की प्राचीन प्रकृति के संरक्षण में मदद का आश्वासन देते हैं।
- भारत अंटार्कटिक समुद्री जीवित संसाधनों के संरक्षण पर कन्वेंशन और अंटार्कटिक समुद्री जीवित संसाधनों के संरक्षण के लिये आयोग जैसी संधियों का भी हस्ताक्षरकर्त्ता है।
अंटार्कटिक की प्रमुख विशेषताएँ:
- वैज्ञानिक अनुसंधान के लिये भारत सहित कई देशों द्वारा स्थापित लगभग 40 स्थायी स्टेशनों को छोड़कर अंटार्कटिक निर्जन है।
- अंटार्कटिक महाद्वीप पर भारत के दो अनुसंधान केंद्र हैं- 'मैत्री' (1989 में स्थापित) शिरमाकर हिल्स में तथा 'भारती' (2012 में स्थापित) लारसेमैन हिल्स में।
- भारत द्वारा अंटार्कटिक कार्यक्रम के तहत अब तक यहाँ 40 वैज्ञानिक अभियान पूरे किये जा चुके हैं। आर्कटिक सर्कल के ऊपर स्वालबार्ड में 'हिमाद्री' स्टेशन के साथ भारत ध्रुवीय क्षेत्रों में शोध करने वाले देशों के एक विशिष्ट समूह में शामिल है।
- अंटार्कटिका पृथ्वी का सबसे दक्षिणतम महाद्वीप है। इसमें भौगोलिक रूप से दक्षिणी ध्रुव शामिल है और यह दक्षिणी गोलार्द्ध के अंटार्कटिक क्षेत्र में स्थित है।
- 14,0 लाख वर्ग किलोमीटर (5,4 लाख वर्ग मील) में विस्तृत यह विश्व का पाँचवाँ सबसे बड़ा महाद्वीप है।
- भारतीय अंटार्कटिक कार्यक्रम एक बहु-अनुशासनात्मक, बहु-संस्थागत कार्यक्रम है, जो पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के ‘नेशनल सेंटर फॉर अंटार्कटिक एंड ओशियन रिसर्च’ (National Centre for Antarctic and Ocean Research) के नियंत्रण में है।
- भारत ने आधिकारिक रूप से अगस्त 1983 में अंटार्कटिक संधि प्रणाली को स्वीकार किया।