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डेली न्यूज़

  • 02 Jan, 2025
  • 54 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत की बुनियादी ढाँचे के विकास की यात्रा

प्रिलिम्स के लिये:

बुनियादी ढाँचा, GPS, गैलेथिया खाड़ी, भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा, सागरमाला, नमो भारत ट्रेन, RRTS कॉरिडोरपर्वतमाला कार्यक्रम, यूक्रेन, गाज़ा, दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे, PM गतिशक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान, डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर, कवच, वैकल्पिक ईंधन, ग्रीन बिल्डिंग, PLI

मेन्स के लिये:

भारत के बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये उपलब्धियाँ, चुनौतियाँ और आगे की राह।

स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड 

चर्चा में क्यों? 

पिछले 25 वर्षों में बढ़ती प्रगति और निजी भागीदारी के साथ भारत का बुनियादी ढाँचा बदल गया है। हालाँकि चुनौतियाँ बनी हुई हैं क्योंकि वर्ष 2047 तक 30 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य तक पहुँचने के लिये आवश्यक बुनियादी ढाँचे का 90% निर्माण अभी भी किया जाना है।

वर्ष 2024 तक बुनियादी ढाँचा क्षेत्र में भारत की उपलब्धियाँ क्या हैं?

  • सड़कें और राजमार्ग: वर्ष 2000 के बाद से सड़क नेटवर्क लगभग तीन गुना बढ़कर 146,000 किमी. हो गया है, जिसमें आधुनिक प्रवेश-नियंत्रित एक्सप्रेसवे और GPS-आधारित टोल प्रणाली शामिल हैं।
    • वर्ष 2014 के बाद से, सरकार ने 3.74 लाख किमी. ग्रामीण सड़कें बनाई हैं, जिससे 99% से अधिक ग्रामीण बस्तियों को जोड़ा गया है और पहुँच में सुधार हुआ है।
    • 25 वर्षों में टोल संग्रह 2.1 ट्रिलियन रुपए तक पहुँच गया, जो निजी क्षेत्र की मज़बूत भागीदारी को दर्शाता है।

  • रेलवे: भारत की पहली बुलेट ट्रेन परियोजना, जिसमें 280 किमी./घंटा की गति से चलने की क्षमता होगी, वर्ष 2026 तक पूरी हो जाएगी।
    • दिसंबर 2023 तक, 93.83% ब्रॉड -गेज ट्रैक (जिसे बड़ी लाइन कहा जाता है और दो पटरियों के बीच की दूरी 5 फीट 6 इंच है) का विद्युतीकरण हो चुका है, जो वर्ष 2014 में 21,801 किमी. से अधिक था।
    • कंचनजंगा एक्सप्रेस दुर्घटना जैसी कई हाई-प्रोफाइल घटनाओं के बावजूद पिछले दशक में दुर्घटनाओं में कमी आई है।
  • समुद्री क्षेत्र: भारत वर्ष 2047 तक शीर्ष पाँच जहा निर्माण राष्ट्र बनने के लिये 54 ट्रिलियन रुपए का निवेश करने की योजना बना रहा है।
  • विमानन: साप्ताहिक घरेलू उड़ानें वर्ष 2000 में 3,568 से बढ़कर वर्ष 2024 में 22,484 हो गई।
    • इंडिगो जैसी कम लागत वाली विमान सेवा कंपनियाँ बाज़ार पर हावी हैं, जिससे लाखों लोगों के लिये हवाई यात्रा सुलभ हो गई है।
    • एयर इंडिया और इंडिगो से 1,000 से अधिक विमानों के ऑर्डर दीर्घकालिक वृद्धि का संकेत देते हैं।
    • वर्ष 2014 और वर्ष 2024 के बीच 84 हवाई अड्डों के निर्माण के साथ परिचालन हवाई अड्डों की कुल संख्या 158 है।

  • शहरी मेट्रो: मेट्रो नेटवर्क वर्ष 2014 में 248 किमी. से बढ़कर वर्ष 2024 तक 945 किमी. हो गया है, जो 21 शहरों और 1 करोड़ दैनिक यात्रियों को सेवा प्रदान करता है। 
  • रोपवे विकास: पर्वतमाला कार्यक्रम के तहत 32 रोपवे परियोजनाएँ शुरू की गई हैं, जिससे दुर्गम इलाकों में कनेक्टिविटी बढ़ी है और शहरी भीड़भाड़ कम हुई है।

नोट: विश्व बैंक के लॉजिस्टिक्स प्रदर्शन सूचकांक (LPI) 2023 में भारत 38 वें स्थान पर है

भारत के बुनियादी ढाँचा क्षेत्र के समक्ष चुनौतियाँ क्या हैं?

  • रुकी हुई और विलंबित परियोजनाएँ: 10 ट्रिलियन रुपए की भारतमाला परियोजना को लालफीताशाही के कारण स्थगित कर दिया गया, जबकि 20 ट्रिलियन रुपए की विज़न 2047 योजना को नीतिगत बदलाव के बाद स्थगित कर दिया गया है। 
    • वित्तीय बाधाएँ और संसाधनों का कम उपयोग दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे तथा भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे जैसी बड़े पैमाने की परियोजनाओं में बाधा उत्पन्न कर रहे हैं।
    • भारत को वर्ष 2047 तक 30 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लिये महत्त्वपूर्ण निवेश की आवश्यकता है, जबकि 90% बुनियादी ढाँचे का निर्माण अभी भी किया जाना है।
  • धीमी प्रगति: रेलवे मार्ग का विस्तार धीमा रहा है, वर्ष 2000 से अब तक औसतन प्रतिवर्ष केवल 231 किमी. नई पटरियाँ जोड़ी गई हैं, जो प्रतिदिन एक किलोमीटर से भी कम है। 
    • राजमार्ग परियोजना अनुबंधों में तीव्र गिरावट आई है, जो अगस्त 2024 तक 1,152 किमी. के ऐतिहासिक निम्नतम स्तर पर पहुँच गई है।
  • निजी क्षेत्र पर निर्भरता: यद्यपि निजी क्षेत्र की भागीदारी में वृद्धि हुई है, फिर भी परियोजनाओं के लिये पूंजी का पुनर्चक्रण एक चुनौती बनी हुई है। 
    • टोल संग्रह ने समानता संबंधी चिंताएँ उत्पन्न कर दी हैं, क्योंकि वर्ष 2000 से अब तक एकत्रित 2.1 ट्रिलियन रुपए में से निजी निगमों को 1.4 ट्रिलियन रुपए ही प्राप्त हुआ हैं।
    • पूंजी का पुनर्चक्रण गैर-प्रमुख या कम प्रदर्शन करने वाली परिसंपत्तियों को बेचने और अधिक लाभदायक अवसरों में पुनर्निवेश करने की रणनीति है।
  • समुद्री व्यवधान: समुद्री क्षेत्र वर्ष 2047 तक शीर्ष 5 जहाज़ निर्माण राष्ट्र बनने के अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिये संघर्ष कर रहा है, यूक्रेन और गाज़ा युद्धों तथा वैश्विक आपूर्ति शृंखला के पतन से इसमें बाधा आ रही है।
  • विमानन क्षेत्र से संबंधित बाधाएँ: तीव्र प्रतिस्पर्द्धा के कारण जेट एयरवेज, किंगफिशर एयरलाइंस और गो फर्स्ट सहित कई एयरलाइनें दिवालिया हो गई हैं।
    • इंडिगो और निजीकृत एयर इंडिया के बीच बाज़ार एकीकरण से प्रतिस्पर्द्धा सीमित हो जाती है और एकाधिकारवादी प्रवृत्तियों का खतरा उत्पन्न हो जाता है।

बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये सरकार की पहल क्या हैं?

आगे की राह:

  • एकीकृत अवसंरचना: यह सुनिश्चित करके कि अवसंरचना विकास एक-दूसरे के पूरक हैं, पीएम गतिशक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान देरी और दोहराव को कम करता है, जबकि उच्च गति संचार को बढ़ाता है।
  • एक्सप्रेसवे, हाई-स्पीड रेल कॉरिडोर, समर्पित वस्तु ढुलाई कॉरिडोर,  उन्नत हवाई अड्डे और मल्टी-मॉडल लॉजिस्टिक्स पार्क जैसे उच्च गति परिवहन नेटवर्क व्यापार एवं आपूर्ति शृंखला के प्रदर्शन को बढ़ावा देते हैं।
  • सुरक्षित एवं लचीला बुनियादी ढाँचा: रेलवे के लिये कवच और उन्नत यातायात प्रबंधन प्रणाली जैसी सरकार की पहलों का उद्देश्य दुर्घटनाओं को कम करना एवं सुरक्षा में सुधार करना है। 
  • वाहनों में उन्नत चालक सहायता प्रणाली (ADAS) जैसी प्रौद्योगिकियों को अपनाने तथा सुरक्षित बुनियादी ढाँचे के निर्माण से नागरिकों की सुरक्षा बढ़ेगी एवं मृत्यु दर में कमी आएगी।
  • हरित प्रौद्योगिकियों को शामिल करना: सार्वजनिक परिवहन में इलेक्ट्रिक वाहनों और वैकल्पिक ईंधनों की ओर बदलाव से परिवहन क्षेत्र के कार्बन उत्सर्जन में कमी आएगी तथा FAME-II एवं  PLI जैसी योजनाएँ इस बदलाव को गति देंगी।
  • हरित भवन, जल संरक्षण, अपशिष्ट प्रबंधन और नवीकरणीय ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित करने से भविष्य की बुनियादी संरचना सतत् एवं जलवायु-अनुकूल बनेगी।
  • तकनीकी एकीकरण: सुगम टोल भुगतान के लिये फास्टैग और हवाईअड्डे पर आसान चेक-इन के लिये डिजीयात्रा ऐप जैसी प्रौद्योगिकी का उपयोग सुविधा में वृद्धि कर यात्रा का समय बचाता है।
  • नीति और विनियामक सुधार: भारत को बुनियादी ढाँचे के लक्ष्यों को पूरा करने के लिये विशेष रूप से बंदरगाहों, रेलवे और विमानन में निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ावा देने के लिये विनियामक सुधार एवं एक स्पष्ट नीति ढाँचे को आगे बढ़ाना चाहिये।
  • सरकार, निजी क्षेत्र और स्थानीय समुदायों को आवश्यक नीतियों तथा निवेशों सहित बहु-वर्षीय राष्ट्रीय परिवहन रणनीति विकसित करने के लिये सहयोग करना चाहिये।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: भारत के बुनियादी ढाँचा क्षेत्र की उपलब्धियों और चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये तथा इसके भविष्य के विकास के लिये उपाय सुझाइये।

   UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न    

प्रश्न.  भारत में ‘पब्लिक की इंफ्रास्ट्रक्चर’ पदबंध किसके प्रसंग में प्रयुक्त किया जाता है? (2020)

(a) डिजिटल सुरक्षा अवसंरचना
(b) खाद्य सुरक्षा अवसंरचना
(c) स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा अवसंरचना
(d) दूरसंचार और परिवहन अवसंरचना

व्याख्या: (a)

प्रश्न: 'राष्ट्रीय निवेश और बुनियादी ढाँचा कोष' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)

  1. यह नीति आयोग का अंग है। 
  2.  वर्तमान में इसके पास 4,00,000 करोड़ रुपए का कोष है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (d)

मेन्स:

प्रश्न1. “अधिक तीव्र और समावेशी आर्थिक विकास के लिये बुनियादी ढाँचे में निवेश आवश्यक है।” भारत के अनुभव के आलोक में चर्चा कीजिये। (2021)


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत में नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का दोहन

स्रोत: एलएम

प्रिलिम्स के लिये:

नवीकरणीय ऊर्जा, पवन ऊर्जा, 500-गीगावाट गैर-जीवाश्म, सौर ऊर्जा, ग्रिड कनेक्टेड रूफटॉपसौर, लघु जल विद्युत, बायोमास ऊर्जा, अपशिष्ट से ऊर्जा, खंडित भूमि स्वामित्व, ग्रिड इंफ्रास्ट्रक्चर, ग्रीन हाइड्रोजन, डिजिटाइज्ड भूमि रिकॉर्ड, ट्रांसमिशन लाइनें

मेन्स के लिये:

नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को बढ़ाने का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने राज्यों से पवन ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित करते हुए नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के लिये भूमि उपलब्धता को सुगम बनाने पर ज़ोर दिया है। 

वर्तमान पवन ऊर्जा क्षमता 47.95 गीगावाट है, सरकार का लक्ष्य इसे दोगुना करके 100 गीगावाट करना तथा भूमि तक पहुँच बढ़ाकर वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ऊर्जा लक्ष्य तक पहुँचने के लिये हमारे देश की अटूट प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

नवीकरणीय ऊर्जा क्या है?

  • नवीकरणीय ऊर्जा: नवीकरणीय ऊर्जा प्राकृतिक, पुनःपूर्ति योग्य स्रोतों जैसे सौर, पवन, जल विद्युत, बायोमास, भू-तापीय और ज्वार से प्राप्त ऊर्जा है। 
    • ये स्रोत सतत् और पर्यावरण के अनुकूल हैं, जिससे जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम होती है।
  • प्रकार:
    • सौर ऊर्जा: सौर पैनलों या सौर तापीय प्रणालियों का उपयोग करके सूर्य के विकिरण से प्राप्त की जाती है। 
    • पवन ऊर्जा: पवन टर्बाइनों द्वारा पवन की गतिज ऊर्जा को विद्युत् में परिवर्तित करके उत्पन्न की जाती है । 
    • जलविद्युत: प्रवाहित जल (नदियों, बाँधों, झरनों) की ऊर्जा का उपयोग करके उत्पादित।
    • बायोमास ऊर्जा: हीटिंग, विद्युत् और जैव ईंधन के लिये पौधों के अवशेषों और पशु अपशिष्ट जैसे कार्बनिक पदार्थों से निर्मित।
    • भू-तापीय ऊर्जा: विद्युत उत्पादन और प्रत्यक्ष तापन के लिये पृथ्वी की आंतरिक ऊष्मा (गर्म पानी, भाप) से प्राप्त।
    • ज्वारीय एवं तरंग ऊर्जा: विद्युत उत्पन्न करने के लिये समुद्री जल की गति (गुरुत्वाकर्षण खिंचाव या सतही तरंगें) का उपयोग करती है।

नवीकरणीय ऊर्जा में भारत की क्षमता क्या है?

  • सौर ऊर्जा: राष्ट्रीय सौर ऊर्जा संस्थान (NISE) के अनुसार, वर्ष में 300 से अधिक ग्रीष्म ऋतू में ऊर्जा की क्षमता 748 गीगावाट है तथा सौर पीवी मॉड्यूल बंजर भूमि के 3% हिस्से को कवर करते हैं।
    • राजस्थान, गुजरात और तमिलनाडु जैसे राज्य सौर ऊर्जा विकास में अग्रणी हैं, जहाँ विशाल सौर पार्क राष्ट्रीय ग्रिड में योगदान दे रहे हैं।
  • पवन ऊर्जा: भारत की पवन ऊर्जा क्षमता 300 गीगावाट से अधिक है, जो मुख्य रूप से तमिलनाडु, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में केंद्रित है।
    • गुजरात और तमिलनाडु जैसे राज्य तटीय क्षेत्रों में अपतटीय पवन ऊर्जा परियोजनाएँ क्षमता में महत्त्वपूर्ण रूप से वृद्धि कर सकती हैं।
  • जल विद्युत: भारत में अनुमानतः 148 गीगावाट से अधिक जल विद्युत क्षमता है, जिसमें से 46 गीगावाट का अभी तक दोहन नहीं हुआ है।
    • लघु जलविद्युत संयंत्र, विशेष रूप से हिमालयी और पूर्वोत्तर क्षेत्रों में (<25 मेगावाट) 20 गीगावाट की क्षमता प्रदान करते हैं।
  • भू-तापीय ऊर्जा: लद्दाख, हिमाचल प्रदेश और झारखंड भारत के उल्लेखनीय राज्य हैं जहाँ 10 गीगावाट भू-तापीय ऊर्जा उत्पादन की क्षमता है।
    • पुगा घाटी (लद्दाख) में परियोजनाएँ भूतापीय ऊर्जा की अप्रयुक्त क्षमता को उजागर करती हैं।
  • महासागरीय ऊर्जा: समुद्री जल में ज्वार, लहर और महासागरीय तापीय ऊर्जा संग्रहित होती है। इनमें से, भारत में 40GW तरंग ऊर्जा का दोहन संभव है।

भारत में पवन ऊर्जा सहित नवीकरणीय ऊर्जा के विस्तार में क्या चुनौतियाँ हैं?

  • भूमि की कमी और उपयोग संबंधी संघर्ष: नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र, विशेष रूप से पवन ऊर्जा क्षेत्र को मुख्यतः सघन आबादी वाले या पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में भूमि और आदर्श पवन ऊर्जा स्थलों तक पहुँचने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
    • किसान और स्थानीय समुदाय पवन ऊर्जा परियोजनाओं के लिये भूमि पुनः आबंटित करने के प्रति प्रतिरोधी हैं।
    • गुजरात, महाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसे राज्यों में उपयुक्त भूमियों का समेकन करना विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण है, जहाँ भूमि प्रायः विभिन्न मालिकों के बीच विभाजित होती है।
  • वित्तपोषण और निवेश संबंधी मुद्दे: पवन ऊर्जा परियोजनाओं के लिये पर्याप्त अग्रिम पूंजी की आवश्यकता होती है। लाभ में अनिश्चितता और लंबी पुनर्भुगतान अवधि निजी निवेशकों को हतोत्साहित करती है।
  • ग्रिड एकीकरण और कटौती: पवन ऊर्जा की अस्थायी प्रकृति और मौसमी पवन प्रतिरूप आपूर्ति अस्थिरता का कारण बनते हैं, तथा पीक सीजन के दौरान ग्रिड कटौती से लाभप्रदता कम हो जाती है।
  • उच्च गुणवत्ता वाली साइटों की कमी: पवन ऊर्जा के दृष्टिकोण से अनुकूलतम स्थान पहले से ही अधिग्रहीत हैं, जिसके कारण नई परियोजनाओं को कम व्यवहार्य क्षेत्रों में स्थापित करने के लिये बाध्य होना पड़ रहा है।
  • अनुमोदन में विलंब और नीतिगत अंतराल: पवन ऊर्जा परियोजनाओं को पर्यावरण, वन्यजीव और वन संबंधी मंजूरी प्राप्त करने में लंबे समय तक विलंब का सामना करना पड़ता है।
    • लगातार वित्तीय प्रोत्साहन या दीर्घकालिक नीतियों का अभाव निवेशकों का विश्वास कम करता है।
  • अपतटीय पवन ऊर्जा की चुनौतियाँ: उच्च स्थापना लागत, उन्नत प्रौद्योगिकी आवश्यकताओं और सीमित सरकारी समर्थन के कारण अपतटीय पवन ऊर्जा की क्षमता का अभी तक दोहन नहीं हो पाया है।

नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिये भारत की पहल क्या है?

आगे की राह

  • भूमि तक पहुँच में सुधार: अप्रयुक्त सरकारी भूमि के अधिग्रहण के लिये पारदर्शी नीतियाँ स्थापित करना तथा डिजिटल भूमि अभिलेखों और नामित नवीकरणीय क्षेत्रों के माध्यम से प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना। 
    • दोहरे उपयोग वाली परियोजनाओं को बढ़ावा देना, जहाँ भूमि उपयोग को अनुकूलतम बनाने के लिये सौर फार्म कृषि या चरागाह के साथ-साथ मौजूद हों।
  • ट्रांसमिशन अवसंरचना को मज़बूत करना: नवीकरणीय परियोजनाओं को मांग केंद्रों से जोड़ने के लिये हरित ऊर्जा गलियारों के विकास में तेज़ी लाना।
    • विद्युत उत्पादन को स्थिर करने और परिवर्तनशीलता को कम करने के लिये ट्रांसमिशन लाइनों की स्थापना में तेज़ी लाना और हाइब्रिड प्रणालियों (सौर+पवन+भंडारण) में निवेश करना।
  • नीतियों में सामंजस्य स्थापित करना: राज्य-स्तरीय असंगतियों को दूर करने के लिये एक एकीकृत राष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा नीति तैयार करना। 
    • निवेश आकर्षित करने के लिये कर छूट, ब्याज सब्सिडी और प्रदर्शन-आधारित पुरस्कार जैसे दीर्घकालिक प्रोत्साहन प्रदान करना।
    • सब्सिडी देकर और आयात पर निर्भरता कम करके "मेक इन इंडिया" के तहत सौर पैनलों और पवन टर्बाइनों के स्थानीय उत्पादन को प्रोत्साहित करना।
  • अपतटीय पवन ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित करना: अपतटीय पवन ऊर्जा परियोजनाओं का संचालन करना तथा विकास को बढ़ावा देने के लिये विशेष उपकरणों पर आयात शुल्क कम करते हुए वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करना।
  • वित्तपोषण और अनुसंधान एवं विकास: किफायती वित्तपोषण उपलब्ध कराने के लिये हरित बैंकों की स्थापना करना तथा कार्यकुशलता में सुधार और लागत कम करने के लिये उन्नत प्रौद्योगिकियों के अनुसंधान में निवेश करना।
  • पर्यावरणीय स्थिरता और कौशल विकास: संपूर्ण पर्यावरणीय आकलन सुनिश्चित करना, ऊर्जा घटकों के पुनर्चक्रण को बढ़ावा देना और सामुदायिक सहभागिता कार्यक्रम आयोजित करना। 

दृष्टि मेन्स प्रश्न

प्रश्न: भारत में नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता के विस्तार में प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं, तथा वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ईंधन लक्ष्य को पूरा करने के लिये इनका समाधान कैसे किया जा सकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रिलिम्स:  

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा सरकार की एक योजना 'उदय'(UDAY) का उद्देश्य है? (2016)
(a) ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों के क्षेत्र में स्टार्टअप उद्यमियों को तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान करना।
(b) वर्ष 2018 तक देश के हर घर में विद्युत पहुँचाना।
(c) कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों को समय के साथ प्राकृतिक गैस, परमाणु, सौर, पवन और ज्वारीय विद्युत संयंत्रों से बदलना।
(d) विद्युत वितरण कंपनियों के बदलाव और पुनरुद्धार के लिये वित्त प्रदान करना।

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. परंपरागत ऊर्जा की कठिनाइयों को कम करने के लिये भारत की ‘हरित ऊर्जा पट्टी’ पर लेख लिखिये।(2013)


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

क्वाड सहयोग के 20 वर्ष पूरे

प्रिलिम्स के लिये:

क्वाड, इंडो-पैसिफिक, मालाबार अभ्यास, सूचना संलयन केंद्र, कैंसर मूनशॉट, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स, ब्लू डॉट नेटवर्क, इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क

मेन्स के लिये:

भारत की विदेश नीति में क्वाड का महत्त्व, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में क्वाड का महत्व, भारत और उसके द्विपक्षीय संबंध

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

क्वाड विदेश मंत्रियों ने क्वाड (Quad) सहयोग की 20वीं वर्षगाँठ मनाई और चीन की बढ़ती आक्रामकता के बीच स्वतंत्र, खुले और शांतिपूर्ण हिंद-प्रशांत के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की।

क्वाड के बारे में मुख्य बिंदु क्या हैं?

  • क्वाड या चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता अमेरिका, जापान, भारत और ऑस्ट्रेलिया का एक रणनीतिक मंच है जिसका उद्देश्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र में क्षेत्रीय सुरक्षा और आर्थिक सहयोग को बढ़ाना है।
  • उद्देश्य: इसका लक्ष्य चीन के बढ़ते प्रभाव को चुनौती देना, लोकतंत्र, मानवाधिकार और विधि के शासन का समर्थन करना तथा खुले और स्वतंत्र हिंद-प्रशांत क्षेत्र को आगे बढ़ाना है।
  • क्वाड का गठन:
    • वर्ष 2004 की सुनामी: इस समूह की उत्पत्ति वर्ष 2004 की सुनामी के बाद किये गए राहत प्रयासों से जुड़ी हुई है, जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत ने मिलकर बचाव अभियान चलाया था।
    • 2007 गठन: जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे के सुझाव पर वर्ष 2007 में क्वाड की औपचारिक स्थापना की गई।
      • चीनी दबाव और क्षेत्रीय तनाव के कारण वर्ष 2008 में ऑस्ट्रेलिया इस समझौते से बाहर निकल गया।
    • वर्ष 2017 में पुनरुद्धार: अमेरिका-ऑस्ट्रेलिया के बीच सैन्य संबंधों में वृद्धि के कारण ऑस्ट्रेलिया की वापसी हुई। पहली आधिकारिक क्वाड वार्ता 2017 में फिलीपींस में आयोजित की गई थी।
    • वर्ष 2017 में पुनरुद्धार: अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के बीच बेहतर सैन्य संबंधों के परिणामस्वरूप ऑस्ट्रेलिया समझौते से बाहर निकल गया। फिलीपींस ने वर्ष 2017 में पहली औपचारिक क्वाड चर्चा की मेज़बानी की।
    • मालाबार अभ्यास: मालाबार अभ्यास वर्ष 1992 में भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय नौसैनिक अभ्यास के रूप में शुरू किया गया था। जापान वर्ष 2015 में इसमें शामिल हुआ और ऑस्ट्रेलिया वर्ष 2020 में शामिल हुआ।
  • क्वाड की प्रकृति: क्वाड किसी औपचारिक गठबंधन संरचना, सचिवालय या निर्णय लेने वाली संस्था के बिना कार्य करता है।
  • यह मंच नियमित बैठकों के माध्यम से अस्तित्त्व में रहता है, जिसमें मंत्रिस्तरीय और नेता स्तरीय शिखर सम्मेलन, साथ ही सूचना का आदान-प्रदान एवं सैन्य अभ्यास शामिल हैं।
  • क्वाड की प्रमुख पहल:

    • समुद्री क्षेत्र जागरूकता के लिये हिंद भारत-प्रशांत साझेदारी (IPMDA): अवैध मत्स्य संग्रहण और समुद्री गतिविधियों की वास्तविक समय निगरानी को बढ़ाता है।

    • हिंद-प्रशांत क्षेत्र में प्रशिक्षण के लिये समुद्री पहल (मैत्री): समुद्री सुरक्षा और कानून प्रवर्तन प्रशिक्षण के लिये क्षमता निर्माण का समर्थन करता है।
    • इंडो-पैसिफिक लॉजिस्टिक्स नेटवर्क: इसका उद्देश्य क्षेत्र में त्वरित आपदा प्रतिक्रिया के लिये साझा एयरलिफ्ट और लॉजिस्टिक्स क्षमताओं का लाभ उठाना है।
    • क्वाड कैंसर मूनशॉट: इसका लक्ष्य गर्भाशय-ग्रीवा कैंसर की रोकथाम और उपचार है, तथा आने वाले दशकों में लाखों लोगों के जीवन को बचाने की योजना है।
    • भविष्य की साझेदारी के क्वाड बंदरगाह: भारत-प्रशांत क्षेत्र में सतत् और लचीले बंदरगाह बुनियादी ढाँचे का विकास करेगा, जिसमें भारत वर्ष 2025 में क्षेत्रीय बंदरगाह और परिवहन सम्मेलन की मेज़बानी करेगा।
    • ओपन रेडियो एक्सेस नेटवर्क (ओपन RAN): ओपन RAN के साथ क्वाड सुरक्षित और लचीले 5G पारिस्थितिकी तंत्र की सुविधा प्रदान करता है।
  • अगली पीढ़ी के कृषि को सशक्त बनाने के लिये नवाचारों को बढ़ावा देना (AI-ENGAGE): यह भारत-प्रशांत क्षेत्र में कृषि पद्धतियों को बेहतर बनाने और किसानों को सशक्त बनाने के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), रोबोटिक्स और सेंसिंग का उपयोग करता है।
  • बायोएक्सप्लोर पहल: जैविक अनुसंधान के लिये AI का लाभ उठाने हेतु 2 मिलियन अमेरिकी डॉलर की परियोजना, जिसमें स्वास्थ्य सेवा, स्वच्छ ऊर्जा और धारणीय कृषि में अनुप्रयोग शामिल हैं।
  • सेमीकंडक्टर आपूर्ति शृंखला आकस्मिकता नेटवर्क: सेमीकंडक्टर आपूर्ति शृंखलाओं में जोखिम को कम करने के लिये सहयोग को बढ़ाता है।
  • क्वाड फेलोशिप: सदस्य देशों में स्नातक  STEM (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग, गणित) शिक्षा को वित्तपोषित करता है और हाल ही में आसियान छात्रों को शामिल करने के लिये इसका विस्तार किया गया है।
    • भारत का क्वाड छात्रवृत्ति कार्यक्रम प्रतिवर्ष हिंद-प्रशांत क्षेत्र के 50 इंजीनियरिंग छात्रों को सहायता प्रदान करता है।
  • आतंकवाद निरोधी कार्य समूह (CTWG) : यह समूह आतंकवादी उद्देश्यों के लिये मानव रहित हवाई प्रणालियों, रासायनिक, जैविक, रेडियोलॉजिकल और परमाणु खतरों (CBRN) और इंटरनेट के दुरुपयोग का मुकाबला करने पर ध्यान केंद्रित करता है।

भारत के लिये क्वाड का क्या महत्त्व है?

  • समुद्री सुरक्षा: नौवहन की स्वतंत्रता को बढ़ावा देने तथा समुद्री डकैती और अवैध मत्स्यन का मुकाबला करके भारत के समुद्री हितों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाती है।
    • संयुक्त नौसैनिक अभ्यास अंतर-संचालन और समुद्री क्षेत्र जागरूकता को बढ़ाते हैं।
  • सामरिक महत्त्व: क्वाड विशेष रूप से "स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स" जैसी चीन की आक्रामक नीतियों का मुकाबला करने के लिये हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चुनौतियों का समाधान करने के लिये एक मंच प्रदान करता है।
  • आर्थिक अवसर: ब्लू डॉट नेटवर्क और आपूर्ति शृंखला लचीलापन पहल जैसी पहलों के माध्यम से आर्थिक सहयोग को प्रोत्साहित करता है ।
    • कोविड के बाद, भारत के पास चीन से स्थानांतरित होने वाली विनिर्माण इकाइयों को आकर्षित करने और वैश्विक अर्थव्यवस्था में आपूर्ति शृंखला लचीलापन बढ़ाने का अवसर है।
  • वैज्ञानिक सहयोग: क्वाड फेलोशिप STEM क्षेत्रों में शैक्षणिक और वैज्ञानिक अनुसंधान को प्रोत्साहित करती है।
  • लोगों के बीच संबंध: सांस्कृतिक और अकादमिक आदान-प्रदान को बढ़ाता है, भारत की सॉफ्ट पॉवर कूटनीति को बढ़ावा देता है।

समकालीन वैश्विक संदर्भ में क्वाड की प्रासंगिकता क्या है?

  • क्वाड की निरंतर प्रासंगिकता
  • विविध एजेंडा: यह क्वाड सुरक्षा से परे स्वास्थ्य, प्रौद्योगिकी, बुनियादी ढाँचे और जलवायु परिवर्तन जैसे विभिन्न मुद्दों पर ध्यान देता है, जो इसकी अनुकूलनशीलता और बहुआयामी दृष्टिकोण को दर्शाता है।
    • क्वाड कैंसर मूनशॉट, महामारी संबंधी तैयारी पहल और जलवायु अनुकूलन उपाय जैसे कार्यक्रम क्षेत्रीय स्थिरता में इसके व्यावहारिक योगदान को प्रदर्शित करते हैं।
  • संस्थागत सुदृढ़ीकरण: नियमित शिखर सम्मेलनों, मंत्रिस्तरीय संवादों ने क्वाड को संस्थागत रूप दिया है, जिससे इसकी स्थिरता और विकास की क्षमता सुनिश्चित हुई है।
    • जन-केंद्रित पहल: फैलोशिप, छात्रवृत्ति और लोगों के बीच संबंध क्वाड की सॉफ्ट पॉवर को सुदृढ़ करते हैं और क्षेत्र में विश्वास का निर्माण करते हैं।
  • क्वाड की प्रासंगिकता के लिये चुनौतियाँ:
  • औपचारिक संरचना का अभाव: क्वाड में सचिवालय या स्थायी निर्णय लेने वाली संस्था का अभाव है, जिससे महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर समन्वित कार्रवाई और आम सहमति सीमित हो जाती है, जिससे वैश्विक चुनौतियों का प्रभावी ढंग से समाधान करने की इसकी क्षमता बाधित होती है।
    • अलग-अलग प्राथमिकताएँ: क्वाड के सदस्यों के राष्ट्रीय हित भिन्न हैं। उदाहरण के लिये भारत की गुटनिरपेक्ष नीति और औपचारिक सैन्य गठबंधनों में शामिल होने की अनिच्छा समूह की रणनीतिक एकजुटता को सीमित कर सकती है।
    • सुरक्षा बनाम विकास: अमेरिका और जापान चीन का मुकाबला करने पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
    • भारत और ऑस्ट्रेलिया मुख्य रूप से विकासोन्मुख लक्ष्यों पर ज़ोर देते हैं, जिसके कारण उनके दृष्टिकोण भिन्न-भिन्न हैं।
  • चीन का बढ़ता प्रभाव: क्वाड प्रयासों के बावज़ूद हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन का प्रभाव बढ़ता जा रहा है, विशेष रूप से बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) और प्रशांत द्वीप देशों में निवेश के माध्यम से।
  • संसाधन संबंधी बाधाएँ: विभिन्न क्वाड पहलों के लिये पर्याप्त वित्तपोषण और संस्थागत समर्थन की आवश्यकता होती है। 
  • विलंब या अपर्याप्त संसाधन आवंटन इनके कार्यान्वयन और प्रभाव में बाधा उत्पन्न कर सकता है।

  • अन्य समूहों के साथ समावेश: क्वाड के उद्देश्य प्रायः अन्य बहुपक्षीय मंचों जैसे आसियान, ऑस्ट्रेलिया, यूके और यूएस (AUKUS), और इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क (IPEF) के साथ ओवरलैप होते हैं, जिससे इनके दृष्टिकोण में कमी और कमज़ोरियाँ देखने को मिलती हैं।

आगे की राह

  • संस्थागतकरण: कार्यकुशलता और जवाबदेही में सुधार हेतु निर्णय लेने तथा कार्यान्वयन के लिये तंत्र को औपचारिक बनाना।
    • आसियान जैसे क्षेत्रीय संगठनों के साथ संबंधों को मज़बूत करना अर्थात् प्रतिस्पर्द्धात्मक तो नहीं लेकिन पूरक प्रयास सुनिश्चित करना।
    • क्वाड प्लस: दक्षिण कोरिया, न्यूज़ीलैंड, वियतनाम, आसियान और अन्य क्षेत्रों को शामिल करने के लिये क्वाड का विस्तार करने से समावेशिता बढ़ेगी। 
      • जलवायु परिवर्तन, स्वास्थ्य सेवा और आपदा लचीलेपन पर ध्यान केंद्रित करने के साथ-साथ संस्थागत तंत्र को मज़बूत करने से क्षेत्रीय समर्थन और प्रभावशीलता को बढ़ावा मिलेगा।
  • उन्नत संसाधन प्रतिबद्धता: दीर्घकालिक प्रभाव सुनिश्चित करने के लिये बुनियादी ढाँचे, डिजिटल कनेक्टिविटी और नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं जैसी पहलों के लिये मज़बूत वित्तपोषण सुनिश्चित करना।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: भारत के लिये क्वाड के रणनीतिक महत्त्व पर चर्चा कीजिये। यह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव से निपटने में किस प्रकार सहायक है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न   

मेन्स

प्रश्न. भारत-प्रशांत महासागर क्षेत्र में चीन की महत्त्वाकांक्षाओं का मुकाबला करना नई त्रि-राष्ट्र साझेदारी AUKUS का उद्देश्य है। क्या यह इस क्षेत्र में मौज़ूदा साझेदारी का स्थान लेने जा रहा है? वर्तमान परिदृश्य में AUKUS की शक्ति और प्रभाव की विवेचना कीजिये। (वर्ष 2021)

प्रश्न. ‘चतुर्भुजीय सुरक्षा संवाद (क्वाड)’ वर्तमान समय में स्वयं को सैन्य गठबंधन से एक व्यापारिक गुट में रूपांतरित कर रहा है - विवेचना कीजिये। (वर्ष 2020)


जैव विविधता और पर्यावरण

भूजल प्रदूषण पर CGWB की रिपोर्ट

प्रिलिम्स के लिये:

केंद्रीय भूजल बोर्ड, फ्लोराइड, यूरेनियम, केंद्रीय भूजल प्राधिकरण, जल जनित रोग, ब्लू बेबी सिंड्रोम, जल शक्ति अभियान (JSA), राष्ट्रीय जलभृत मानचित्रण और प्रबंधन कार्यक्रम (NAQUIM), अटल भूजल योजना (ABHY)।

मेन्स के लिये:

पर्यावरण प्रदूषण और प्रबंधन, जल संसाधन प्रबंधन, जल गुणवत्ता

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) के शोध के अनुसार, पूरे भारत में भूजल प्रदूषण चिंताजनक रूप से बढ़ गया है, जहाँ अधिकतर क्षेत्रों में नाइट्रेट का स्तर बहुत अधिक है।

  • यह रासायनिक प्रदूषक पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न करता है तथा विशेष रूप से छोटे बच्चों के लिये गंभीर स्वास्थ्य खतरा उत्पन्न करता है।

CGWB रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?

  • नाइट्रेट संदूषण में वृद्धि: वर्ष 2017 में 359 ज़िलों से बढ़कर वर्ष 2023 तक 440 ज़िलों में भूजल में अत्यधिक नाइट्रेट का स्तर दर्ज किया गया।
    • भारत के 56% ज़िलों में नाइट्रेट की सांद्रता 45 मिलीग्राम प्रति लीटर की सुरक्षित सीमा से अधिक है।
  • क्षेत्रीय हॉटस्पॉट: राजस्थान (49%), कर्नाटक (48%), और तमिलनाडु (37%) में नाइट्रेट संदूषण का उच्चतम स्तर दर्ज किया गया।
    • महाराष्ट्र , तेलंगाना , आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश में नाइट्रेट संदूषण का स्तर उल्लेखनीय रूप से बढ़ रहा है, जिसके साथ मध्य एवं दक्षिणी भारत में चिंताएँ बढ़ रही हैं।
  • मानसून का प्रभाव: मानसून के बाद नाइट्रेट प्रदूषण में वृद्धि हो जाती है, मानसून के मौसम में 32.66% नमूने सुरक्षित स्तर को पार कर गए, जबकि मानसून से पहले यह स्तर 30.77% था।
  • अन्य भूजल प्रदूषक: फ्लोराइड संदूषण राजस्थान, हरियाणा, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में एक प्रमुख मुद्दा बना हुआ है।
    • राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, गुजरात, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में यूरेनियम संदूषण सुरक्षित स्तर से अधिक है , विशेष रूप से अति-शोषित भूजल क्षेत्रों में।
  • भूजल निष्कर्षण: वर्ष 2009 से भारत में भूजल निष्कर्षण की दर 60.4% पर स्थिर रही है।
    • हालाँकि, भूजल की उपलब्धता में सुधार हुआ है, 73% ब्लॉकों को 'सुरक्षित' क्षेत्र के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जो वर्ष 2022 में 67.4% से उल्लेखनीय वृद्धि है।

केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB)

  • जल संसाधन मंत्रालय, भारत सरकार के तहत CGWB भारत में भूजल संसाधनों के  प्रबंधन, अन्वेषण, निगरानी, ​​मूल्याँकन और विनियमन के लिये सर्वोच्च निकाय है।
  • प्रमुख कार्य और ज़िम्मेदारियाँ: CGWB भूजल प्रबंधन के लिये वैज्ञानिक विशेषज्ञता प्रदान करता है, जिसमें अन्वेषण, निगरानी और जल गुणवत्ता आकलन शामिल हैं। 
  • वैज्ञानिक रिपोर्ट: CGWB राज्य और ज़िला जल-भूवैज्ञानिक रिपोर्ट, भूजल वर्ष पुस्तकें और एटलस जारी करता है।

भूजल प्रदूषण के स्रोत क्या हैं?

  • कृषि पद्धतियाँ: कृषि में उर्वरकों और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग से नाइट्रेट और फॉस्फेट मृदा में रिस जाते हैं, जिससे भूजल दूषित हो जाता है।
    • अनुचित सिंचाई और जल का अत्यधिक दोहन इस समस्या को और भी गंभीर बना देता है।
  • भंडारण टैंक: संक्षारक टैंकों से भूजल में गैसोलीन, तेल या रसायन का रिसाव हो सकता है।
  • खतरनाक अपशिष्ट स्थल: रिसाव वाले परित्यक्त स्थल भूजल के लिये खतरा उत्पन्न करते हैं।
  • लैंडफिल: यदि सुरक्षात्मक परतें क्षतिग्रस्त हो जाती हैं तो लैंडफिल से प्रदूषक भूजल में रिस सकते हैं।
  • सेप्टिक सिस्टम: खराब रखरखाव वाली प्रणालियों से अपशिष्ट और रसायनों का रिसाव हो सकता है, जिससे भूजल प्रदूषित हो सकता है।
  • वायुमंडलीय प्रदूषक: वायुमंडल या सतही जल से प्रदूषक अंततः भूजल तक पहुँच सकते हैं।
  • वनोन्मूलन: मृदा में प्राकृतिक निस्पंदन की प्रक्रिया बाधित होती है, जिससे अपवाह बढ़ जाता है और प्रदूषक भूजल प्रणालियों में प्रवेश कर जाते है।

भूजल प्रदूषण के निहितार्थ क्या हैं?

  • स्वास्थ्य जोखिम: फ्लोराइड, नाइट्रेट और भारी धातु जैसे प्रदूषक गंभीर स्वास्थ्य जोखिम पैदा करते हैं और जलजनित रोगों का कारण बनते हैं।  
    • अत्यधिक नाइट्रेट संदूषण, विशेष रूप से शिशुओं और छोटे बच्चों के लिये, मेथेमोग्लोबिनेमिया का कारण बन सकता है, जिसे "ब्लू बेबी सिंड्रोमभी कहा जाता है।
  • खाद्य उत्पादन: सिंचाई के लिये प्रयुक्त भारी धातुओं और प्रदूषकों से भूजल संदूषित होने से फसलों में विषाक्त पदार्थ जमा हो सकते हैं, जिससे खाद्य सुरक्षा और मानव स्वास्थ्य को खतरा हो सकता है।
  • पर्यावरणीय प्रभाव: नाइट्रेट प्रदूषण स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित कर सकता है, तथा पौधों और जलीय जीवन पर प्रभाव डाल सकता है।
  • भूजल में प्रदूषक मृदा संदूषण और लवणीकरण का कारण बन सकते हैं।
  • लागत में वृद्धि: दूषित भूजल को उपभोग हेतु सुरक्षित बनाने के लिये महंगी उपचार प्रक्रियाओं की आवश्यकता होती है।
  • भूजल संदूषण सतही जल तक फैल सकता है, जिससे जल की गुणवत्ता खराब हो सकती है। लगातार संदूषण से स्वच्छ जल की उपलब्धता कम हो जाती है, जिससे जल की कमी और संभावित सामाजिक आर्थिक संकट उत्पन्न हो सकता है।

भूजल प्रदूषण को रोकने के लिये क्या उपाय किए गए हैं?

आगे की राह

  • उर्वरक उपयोग को विनियमित करना: कृषि में नाइट्रोजन उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिये। धारणीय कृषि के तरीकों को लागू करने से इस समस्या को कम करने में मदद मिल सकती है।
  • वर्षा जल संचयन: वर्षा जल संचयन को प्रोत्साहित करने एवं प्राकृतिक प्रक्रियाओं के माध्यम से भूजल की पुनःपूर्ति से अतिशोषित जलभृतों पर निर्भरता को कम करने में मदद मिल सकती है।
  • बेहतर अपशिष्ट प्रबंधन: शहरी क्षेत्रों में कुशल अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों को अपनाने से भूजल प्रदूषण को कम किया जा सकता है।
  • बेहतर निगरानी और नीतियाँ: भूजल की गुणवत्ता की निगरानी बढ़ाने एवं रासायनिक प्रदूषकों के संबंध में सख्त नियम बनाने से प्रदूषण को रोकने में मदद मिल सकती है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: भारत में भूजल प्रदूषण के क्या प्रभाव हैं? भूजल का बेहतर प्रबंधन किस प्रकार किया जा सकता है?

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा प्राचीन नगर अपने उन्नत जल संचयन और प्रबंधन प्रणाली के लिये सुप्रसिद्ध है, जहाँ बाँधों की शृंखला का निर्माण किया गया था और संबद्ध जलाशयों में नहर के माध्यम से जल को प्रवाहित किया जाता था? (2021)

(a) धौलावीरा
(b) कालीबंगा
(c) राखीगढ़ी
(d) रोपड़

उत्तर: (a)

प्रश्न. 'वॉटर क्रेडिट' के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)

  1. यह जल एवं स्वच्छता क्षेत्र में कार्य के लिये सूक्ष्म वित्त साधनों (माइक्रोफाइनेंस टूल्स) को लागू करता है।
  2.   यह एक वैश्विक पहल है जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन और विश्व बैंक के तत्त्वावधान में प्रारंभ किया गया है।
  3.   इसका उद्देश्य निर्धन व्यक्तियों को सहायिकी के बिना अपनी जल-संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये समर्थ बनाना है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?   

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. रिक्तीकरण परिदृश्य में विवेकी जल उपयोग के लिये जल भंडारण और सिंचाई प्रणाली में सुधार के उपायों को सुझाइए। (2020)


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