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प्रारंभिक परीक्षा

वस्त्र उद्योग से निकलने वाले अपशिष्ट जल हेतु उपचार संयंत्र

  • 24 Jun 2023
  • 10 min read
  • एक संयुक्त प्रयास में NIT वारंगल, प्राइम टेक्सटाइल्स और IMPRINT ने प्रायोगिक स्तर पर कपड़ा अपशिष्ट उपचार संयंत्र के माध्यम से तेलंगाना के हनुमाकोंडा ज़िले में स्थित कपड़ा और परिधान उद्योग में अपशिष्ट जल को उपचारित करने के लिये पर्यावरण-अनुकूल समाधान विकसित किया है।
  • इस नवोन्मेषी तकनीक में विषैले अपशिष्ट जल को आस-पास के कृषि क्षेत्रों के लिये मूल्यवान सिंचाई स्रोत में बदलने की अपार क्षमता है, साथ ही मौजूदा उपचार विधियों के लिये एक स्थायी विकल्प भी प्रदान करती है।

वस्त्र उद्योग से निकलने वाले अपशिष्ट के प्रबंधन की आवश्यकता:

  • कपड़ा अपशिष्ट प्रदूषित रंगों, घुले हुए ठोस पदार्थों, निलंबित ठोस और ज़हरीली धातुओं जैसे प्रदूषकों से अत्‍यधिक दूषित होता है।
  • पर्यावरण में छोड़े जाने से पहले ऐसे अपशिष्ट को उपचारित करने के लिये कुशल प्रौद्योगिकियों की आवश्यकता होती है। 

तकनीक की कार्यप्रणाली: 

  • कपड़ा अपशिष्ट जल के उपचार के लिये विकसित की गई नवीन तकनीक में बायोसर्फैक्टेंट, कैविटेशन और मेम्ब्रेन प्रौद्योगिकियों का सामूहिक रूप से प्रयोग किया जाता है।
    • बायोसर्फैक्टेंट: 
      • बायोसर्फैक्टेंट सूक्ष्मजीवों द्वारा उत्पादित प्राकृतिक यौगिक हैं  तथा इनमें सतह-सक्रिय गुण होते हैं।
      • कपड़ा अपशिष्ट उपचार संयंत्र में अपशिष्ट जल से डाई को हटाने में सहायता के लिये मूविंग बेड बायोफिल्म रिएक्टर (MBBR) में बायोसर्फैक्टेंट का उपयोग किया जाता है।
        • MBBR में बायोसर्फैक्टेंट्स के उपयोग से न केवल डाई हटाने की दक्षता में सुधार होता है बल्कि अन्य जैविक उपचार विधियों की तुलना में परिचालन समय एवं लागत भी कम हो जाती है।
    • गुहिकायन (Cavitation): 
      • गुहिकायन एक उन्नत ऑक्सीकरण प्रक्रिया (AOP) है, जिसका उपयोग उपचार संयंत्रों में किया जाता है।
      • इसमें एक तरल पदार्थ में दबाव भिन्नता शामिल है, जिससे अनगिनत छोटी गुहाओं का निर्माण होता है।
      • गुहिकायन परिघटना अपशिष्ट जल में विभिन्न प्रदूषकों को नष्ट करने में सहायक है, जिससे ऑक्सीकरण करने वाले कण उत्पन्न होते हैं, जो प्रदूषकों के क्षरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
        • यह प्रक्रिया उपचार संयंत्र की स्थापना लागत और कार्बन फुटप्रिंट को कम करने में योगदान देती है।
    •  मेम्ब्रेन तकनीक: 
      • प्रदूषकों के पृथक्करण और निष्कासन को बढ़ाने के लिये कपड़ा अपशिष्ट उपचार संयंत्र में मेम्ब्रेन तकनीक का उपयोग किया जाता है। 
      • झिल्ली की सतह को बोहेमाइट सोल के साथ सोल-जेल प्रक्रिया का उपयोग करके संशोधित किया जाता है, जो छिद्र के आकार को सूक्ष्म-स्केल से नैनो-स्केल तक कम कर देता है।
        • यह संशोधन प्रदूषकों को प्रभावी ढंग से अलग कर और फँसाकर झिल्ली के कार्य में उल्लेखनीय रूप से सुधार करता है, जिससे स्वच्छ उपचारित पानी प्राप्त होता है।
  • समग्र उपचार प्रक्रिया:
    • समग्र उपचार प्रक्रिया में निलंबित ठोस पदार्थों की गंदगी को दूर करने के लिये जमावट, भारी धातु की कमी और बायोडिग्रेडेबल प्रदूषकों के क्षरण हेतु MBBR में बायोफिल्म वृद्धि, प्रदूषक विनाश तथा ऊर्जा उत्पादन के लिये गुहिकायन एवं कुशल प्रदूषक पृथक्करण के लिये सतह-संशोधित झिल्ली का उपयोग शामिल है।
    • 200 लीटर प्रतिदिन की क्षमता वाला पायलट प्लांट कृषि उपयोग और सफाई उद्देश्यों के लिये अपशिष्ट जल का सफलतापूर्वक उपचार करता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. जैविक ऑक्सीजन मांग (BOD) किसके लिये एक मानक मापदंड है? (2017)

(a) रक्त में ऑक्सीजन स्तर मापने के लिये
(b) वन पारिस्थितिक तंत्र में ऑक्सीजन स्तरों के अभिकलन के लिये
(c) जलीय पारिस्थितिक तंत्रों में प्रदूषण के आमापन के लिये
(d) उच्च तुंगता क्षेत्रों में ऑक्सीजन स्तरों के आकलन के लिये

उत्तर: (c)

  • जैविक ऑक्सीजन मांग (BOD) एक निश्चित समय अवधि में एक निश्चित तापमान पर जल के दिये गए नमूने में कार्बनिक पदार्थ को विघटित करने के लिये वायुजीवी (एरोबिक) जीवों द्वारा आवश्यक घुलित ऑक्सीजन की मात्रा है।
  • BOD जल में प्रदूषित जैविक सामग्री के लिये सबसे आम उपायों में से एक है। BOD जल में मौजूद सड़ने योग्य कार्बनिक पदार्थ की मात्रा को इंगित करती है। इसलिये कम BOD अच्छी गुणवत्ता वाले जल का सूचक है, जबकि उच्च BOD प्रदूषित जल को इंगित करता है।
  • सीवेज और अनुपचारित जल के निर्वहन के परिणामस्वरूप घुलित ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है क्योंकि उपलब्ध घुलित ऑक्सीजन की अधिकता अवक्रमण प्रक्रिया में वायुजीवी (एरोबिक) बैक्टीरिया द्वारा उपभोग की जाती है, ऑक्सीजन पर निर्भर अन्य जलीय जीवों को ऑक्सीजन से वंचित करके ही वे जीवित रह सकते हैं।

अतः विकल्प (c) सही है।


प्रश्न. प्रदूषण की समस्याओं का समाधान करने के संदर्भ में जैवोपचारण (बायोरेमीडिएशन) तकनीक का/के कौन-सा/से लाभ है/हैं? (2017)

  1. यह प्रकृति में घटित होने वाली जैवनिम्नीकरण प्रक्रिया का ही संवर्द्धन कर प्रदूषण को स्वच्छ करने की तकनीक है। 
  2. कैडमियम और लेड जैसी भारी धातुओं से युक्त किसी भी संदूषक को सूक्ष्मजीवों के प्रयोग से जैवोपचारण द्वारा सहज ही पूरी तरह उपचारित किया जा सकता है। 
  3. जैवोपचारण के लिये विशेषतः अभिकल्पित सूक्ष्मजीवों को सृजित करने के लिये आनुवंशिक इंजीनियरीग (जेनेटिक इंजीनियरिंग) का उपयोग किया जा सकता है।

नीचे दिये गए कूट का उपयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर:(c)

व्याख्या:

  • जैवोपचारण एक उपचार प्रक्रिया है जो प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले सूक्ष्मजीवों (खमीर, कवक या बैक्टीरिया) का उपयोग खतरनाक पदार्थों को कम विषाक्त या गैर-विषैले पदार्थों में विखंडित करने, निम्नीकरण करने के लिये करती है।
  • सूक्ष्मजीव कार्बनिक प्रदूषकों को अहानिकर उत्पादों मुख्य रूप से कार्बन डाइऑक्साइड और पानी में विखंडित कर देते हैं। यह एक लागत प्रभावी, प्राकृतिक प्रक्रिया है जो कई सामान्य जैविक कचरे पर लागू होती है। उत्सर्जन स्रोत पर ही कई जैवोपचारण तकनीकों का संचालन किया जा सकता है। अतः कथन 1 सही है।
  • सूक्ष्मजीवों का उपयोग करके सभी संदूषकों को जैवोपचारण द्वारा आसानी से उपचारित नहीं किया जा सकता है। उदाहरण के लिये कैडमियम और लेड जैसी भारी धातुओं से युक्त किसी भी संदूषक को सूक्ष्मजीवों के प्रयोग से जैवोपचारण द्वारा सहज ही और पूरी तरह उपचारित नहीं किया जा सकता है। अतः कथन 2 सही नहीं है।
  • जैवोपचारण के विशिष्ट उद्देश्यों के लिये डिज़ाइन किये गए सूक्ष्मजीवों को बनाने हेतु जेनेटिक इंजीनियरिंग का उपयोग किया जा सकता है। उदाहरण के लिये जैवोपचारण के लिये विशेषतः अभिकल्पित सूक्ष्मजीवों को सृजित करने हेतु आनुवंशिक इंजीनियरीग (जेनेटिक इंजीनियरिंग) का उपयोग किया जा सकता है। अतः कथन 3 सही है। 

अतः विकल्प (c) सही है।

स्रोत: पी.आई.बी.

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