विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
मरीन क्लाउड ब्राइटनिंग
प्रिलिम्स के लिये:मरीन क्लाउड ब्राइटनिंग, प्रवाल विरंजन, ग्लोबल वार्मिंग, ग्रेट बैरियर रीफ, जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल मेन्स के लिये:समुद्री बादलों के चमकने का तंत्र और संबंधित चुनौतियाँ एवं जोखिम, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, संरक्षण |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मरीन क्लाउड ब्राइटनिंग/ समुद्री बादल उज्ज्वलन की अवधारणा ने समुद्री गर्मी के अत्यधिक तापमान से निपटने की रणनीति के साथ-साथ प्रवाल विरंजन को कम करने और समुद्री पारिस्थितिक तंत्र की सुरक्षा करने की तकनीक के रूप में लोकप्रियता हासिल की है।
मरीन क्लाउड ब्राइटनिंग:
- परिचय:
- क्लाउड ब्राइटनिंग की अवधारणा ब्रिटिश क्लाउड भौतिक विज्ञानी जॉन लैथम ने दी है, उन्होंने वर्ष 1990 में पृथ्वी के ऊर्जा संतुलन को बदलकर ग्लोबल वार्मिंग को नियंत्रित करने के साधन के रूप में इस विचार को प्रस्तावित किया था।
- लैथम की गणना से पता चला है कि संवेदनशील समुद्री क्षेत्रों पर चमकते बादल पूर्व-औद्योगिक वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड के दोगुने होने के कारण होने वाली गर्मी का प्रतिकार कर सकते हैं।
- मरीन क्लाउड ब्राइटनिंग की प्रक्रिया:
- स्वच्छ समुद्री वायु में बादल मुख्य रूप से सल्फेट्स और समुद्री लवणीय क्रिस्टल से बनते हैं, जो अपेक्षाकृत दुर्लभ होते हैं, जिससे न्यून प्रकाश परावर्तन वाली बड़ी बूंदें बनती हैं।
- मरीन क्लाउड ब्राइटनिंग (MCB) की प्रक्रिया के लिये समुद्री बादल परावर्तनशीलता (अल्बेडो) में वृद्धि की आवश्यकता होती है, जिससे बादल सफेद और चमकीले हो जाते हैं।
- इसमें समुद्री जल की बारीक बूंदों को वायुमंडल में छोड़ने के लिये वाटर कैनन या विशेष जहाज़ों का उपयोग करना शामिल है।
- बूंदों के वाष्पित होने के बाद लवणीय कणों का अवक्षेप बच जाता हैं, जो बादल संघनन नाभिक के रूप में कार्य करते हैं तथा घने, चमकीले बादलों का निर्माण करते हैं।
नोट: गर्म बादल जल की असंख्य छोटी-छोटी निलंबित बूंदों से बने होते हैं। ये बूंदें सूक्ष्म वायुजनित कणों के आसपास बनती हैं जिन्हें "एयरोसोल" के रूप में जाना जाता है, जो प्राकृतिक (जैसे धूल, समुद्री नमक, पराग, राख और सल्फेट्स) या मानव निर्मित (जीवाश्म ईंधन जलाने तथा विनिर्माण जैसी गतिविधियों से) हो सकती हैं।
- भले ही दोनों बादलों में जल की मात्रा समान है, फिर भी अधिक सूक्ष्म बूंदों वाला बादल अपेक्षाकृत छोटी बूंदों वाले बादल की तुलना में अधिक उज्ज्वलित प्रतीत होगा।
- संभावित लाभ:
- MCB में लक्षित क्षेत्रों में समुद्र की सतह के तापमान को कम करने की क्षमता है, जिससे प्रवाल विरंजन घटनाओं की आवृत्ति और गंभीरता कम हो सकती है।
- विश्व में जीवाश्म ईंधन के प्रयोग में कमी प्रवाल के लिये एक जीवन रेखा प्रदान कर सकती है, जिससे उनके अस्तित्व और पुनर्प्राप्ति को सक्षम किया जा सकता है।
- शोधकर्त्ताओं द्वारा इसकी मॉडलिंग के अध्ययन और छोटे पैमाने के प्रयोगों के माध्यम से ग्रेट बैरियर रीफ के लिये MCB की व्यवहार्यता का पता लगाया जा रहा है।
- ग्रेट बैरियर रीफ, एक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल, विशेष रूप से प्रवाल विरंजन के प्रति संवेदनशील रहा है, हाल के वर्षों में बड़े पैमाने पर प्रवाल विरंजन की घटनाओं का सामना करना पड़ रहा है।
- MCB में लक्षित क्षेत्रों में समुद्र की सतह के तापमान को कम करने की क्षमता है, जिससे प्रवाल विरंजन घटनाओं की आवृत्ति और गंभीरता कम हो सकती है।
नोट: आश्चर्य की बात है कि मानव जनित क्रियाएँ पूर्व काल से ही अज्ञानतावश समुद्री बादलों के उज्ज्वलन का कारण बनी हुई हैं। जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल का अनुमान है कि मानवीय क्रिया कलापों द्वारा अनजाने में मुक्त किये गए एयरोसोल ग्रीनहाउस गैसों के कारण होने वाले वार्मिंग प्रभाव के लगभग 30% के तुल्य होते हैं।
- जहाज़ के एक्ज़हॉस्ट में प्रयुक्त सल्फेट्स, बूंदों के निर्माण के लिये एरोसोल के ऐसे शक्तिशाली स्रोत हैं कि जब जहाज़ गुजरते हैं तो यह बादलों के निशान का कारण बनता है जिन्हें "शिप ट्रैक" के रूप में जाना जाता है।
- MCB से जुड़ी चुनौतियाँ और संकट:
- तकनीकी व्यवहार्यता: MCB में काफी ऊँचाई पर वायुमंडल में समुद्री जल का बड़े पैमाने पर छिड़काव शामिल है, यह छिड़काव उपकरणों के डिज़ाइन, लागत, रखरखाव और संचालन के संदर्भ में इंजीनियरिंग जटिलताओं को प्रस्तुत करता है।
- पर्यावरणीय प्रभाव: MCB के कारण बादलों के पैटर्न और वर्षा में होने वाला परिवर्तन क्षेत्रीय जलवायु एवं जल विज्ञान चक्रों को प्रभावित कर सकता है, जिससे संभावित रूप से सूखे या बाढ़ जैसे अनपेक्षित परिणाम हो सकते हैं।
- नैतिक मुद्दे: MCB प्राकृतिक प्रक्रियाओं में मानवीय हस्तक्षेप और इसके कार्यान्वयन के आसपास शासन एवं निर्णय लेने की प्रक्रियाओं के संदर्भ में नैतिक दुविधाएँ उत्पन्न करता है।
- नैतिक खतरा: MCB के कारण नीति निर्माताओं और जनता में आत्मसंतुष्टि/आत्ममुग्धता हो सकती है, लेकिन इससे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने तथा जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलन की उनकी प्रतिबद्धता कम हो सकती है।
प्रवाल विरंजन:
- प्रवाल विरंजन एक ऐसी घटना है जहाँ आमतौर पर जीवंत एवं रंगीन प्रवाल प्रायः समुद्र के उच्च तापमान से उत्पन्न तनाव के कारण अपना प्राकृतिक रंग खो देते हैं अर्थात् उनका विरंजन हो जाता है और वे सफेद हो जाते हैं।
- ऐसा तब होता है जब मूंगे अर्थात् प्रवाल अपने ऊतकों के भीतर रहने वाले सहजीवी शैवालों को निष्कासित कर देते हैं, जो उन्हें पोषक तत्त्व और रंग प्रदान करते हैं।
- प्रवाल विरंजन, प्रवाल को कमज़ोर कर देता है, जिससे ये रोग के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं, और यदि यह तनाव जारी रहा तो वे नष्ट भी हो सकते हैं।
आगे की राह
MCB अभी भी अनुसंधान और विकास के प्रारंभिक चरण में है, इसकी व्यवहार्यता, प्रभावकारिता, प्रभाव, जोखिम तथा शासन का आकलन करने के लिये अतिरिक्त अध्ययन की आवश्यकता है। यह पहचानना आवश्यक है कि MCB कोई स्टैंडअलोन समाधान नहीं है, बल्कि अल्पावधि में प्रवाल भित्तियों को अत्यधिक गर्मी के तनाव का सामना करने में मदद करने हेतु एक संभावित पूरक उपाय है। MCB को एक व्यापक दृष्टिकोण में एकीकृत किया जाना चाहिये जिसमें जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से प्रवाल भित्तियों की सुरक्षा के लिये संरक्षण, बहाली, अनुकूलन तथा नवाचार शामिल हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. 1 निम्नलिखित स्थितियों में से किस एक में “जैवशैल प्रौद्योगिकी (बायोरॉक टेक्नोलॉजी )” की बातें होती हैं? (a) क्षतिग्रस्त प्रवाल भित्तियों (कोरल रीफ्स) की बहाली उत्तर: (a) प्रश्न. 2 निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) प्रश्न. 3 निम्नलिखित में से किनमें प्रवाल भित्तियाँ पाई जाती हैं? (2014)
नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनें: (a) केवल 1, 2 और 3 उत्तर: (a) मेन्सप्रश्न. उदाहरण के साथ प्रवाल जीवन प्रणाली पर ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव का आकलन कीजिये। (2019) |
भारतीय राजव्यवस्था
संसद में प्रश्न पूछना
प्रिलिम्स के लिये:संसद में प्रश्न पूछना, लोकसभा आचार समिति, केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो, लोकसभा में प्रक्रिया और कार्य संचालन के नियम, संसद सदस्य (सांसद), राज्यसभा। मेन्स के लिये:संसद, संसद और राज्य विधानमंडलों में प्रश्न पूछना। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में एक संसद सदस्य (सांसद) से केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) और लोकसभा आचार समिति द्वारा 'कैश फॉर क्वेरी' आरोपों में उनकी कथित संलिप्तता को लेकर पूछताछ की गई है।
- सदस्य ने किसी विशेष एजेंडे को आगे बढ़ाने या ऐसा करने के लिये मुआवज़ा प्राप्त करने के इरादे से लोकसभा में अपनी ओर से प्रश्न अपलोड करने के लिये एक व्यक्ति को अपने संसदीय लॉगिन और पासवर्ड का उपयोग करने की अनुमति दी थी।
- इन आरोपों ने सांसदों के नैतिक आचरण और व्यक्तिगत लाभ के लिये उनके पदों के संभावित दुरुपयोग के बारे में चिंताएँ बढ़ा दीं।
संसद में प्रश्न उठाने की प्रक्रिया:
- प्रक्रिया:
- लोकसभा में प्रक्रिया और कार्य संचालन के नियम: प्रश्न उठाने की प्रक्रिया "लोकसभा में प्रक्रिया और कार्य संचालन नियमों" के नियम 32-54 तथा लोकसभा अध्यक्ष के निर्देशों के निर्देश 10-18 द्वारा शासित होती है।
- प्रश्न पूछने के लिये एक सांसद को पहले निचले सदन के महासचिव को संबोधित करते हुए एक नोटिस देना होता है, जिसमें प्रश्न पूछने के अपने उद्देश्य की जानकारी देनी होती है।
- नोटिस में आमतौर पर प्रश्न के टेक्स्ट, जिस मंत्री को प्रश्न संबोधित किया गया है उसका आधिकारिक पदनाम, वह तारीख जिस पर उत्तर वांछित है और प्रश्न के संदर्भ में प्राथमिकता का क्रम शामिल होता है जब सांसद एक ही दिन में प्रश्नों के कई नोटिस पेश करता है।
- सांसद एक दिन में प्रश्नों की अधिकतम 5 सूचनाएँ (मौखिक और लिखित दोनों) जमा कर सकते हैं। इस सीमा से अधिक नोटिस पर उसी सत्र के अगले दिनों के लिये विचार किया जाता है।
- नोटिस अवधि: आमतौर पर किसी प्रश्न के लिये नोटिस अवधि 15 दिनों से कम नहीं होती है।
- सांसद अपने नोटिस या तो ऑनलाइन 'सदस्य पोर्टल' के माध्यम से अथवा संसदीय सूचना कार्यालय से मुद्रित प्रपत्रों का उपयोग करके जमा कर सकते हैं।
- लोकसभा अध्यक्ष उन प्राप्त नोटिसों की समीक्षा करते हैं एवं स्थापित नियमों के आधार पर उनकी स्वीकार्यता निर्धारित करते हैं।
- लोकसभा में प्रक्रिया और कार्य संचालन के नियम: प्रश्न उठाने की प्रक्रिया "लोकसभा में प्रक्रिया और कार्य संचालन नियमों" के नियम 32-54 तथा लोकसभा अध्यक्ष के निर्देशों के निर्देश 10-18 द्वारा शासित होती है।
- प्रश्न की स्वीकार्यता के लिये शर्तें:
- प्रश्न 150 शब्दों से अधिक नहीं होने चाहिये तथा तर्क, अनुमान अथवा मानहानिकारक कथन अथवा किसी व्यक्ति की शासकीय अथवा सार्वजनिक स्थिति के अतिरिक्त उसके चरित्र अथवा उच्चारण का उल्लेख करने से बचना चाहिये।
- व्यापक नीतिगत मुद्दों के बारे में प्रश्नों का संक्षिप्त उत्तर देना व्यावहारिक नहीं है, इसलिये विशेष नीतिगत मुद्दों के बारे में प्रश्न स्वीकार्य नहीं हैं।
- प्रश्न न्यायिक विचाराधीन अथवा संसदीय समितियों से जुड़े मामलों से संबंधित नहीं हो सकते। उन्हें ऐसी जानकारी मांगने से भी बचना चाहिये जो राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता को कमज़ोर कर सकती हो।
नोट:
राज्यसभा में प्रश्नों की स्वीकार्यता राज्य परिषद में प्रक्रिया एवं कार्य संचालन नियमों के नियम 47-50 द्वारा नियंत्रित होती है। विभिन्न मानदंडों के बीच प्रश्न "स्पष्ट, विशिष्ट एवं केवल एक मुद्दे तक ही सीमित होना चाहिये"।
प्रश्नों की श्रेणियाँ:
- तारांकित प्रश्न:
- तारांकित प्रश्न एक सांसद द्वारा पूछा जाता है जिसका उत्तर प्रभारी मंत्री द्वारा मौखिक रूप से दिया जाता है। प्रत्येक सांसद को प्रतिदिन एक तारांकित प्रश्न पूछने की अनुमति है। जब प्रश्न का उत्तर मौखिक होता है तो उस पर अनुपूरक प्रश्न पूछे जा सकते हैं।
- अतारांकित प्रश्न:
- अतारांकित प्रश्न वह होता है जिसका सदस्य लिखित उत्तर चाहता है और इसका उत्तर मंत्री द्वारा सभा पटल पर रखा गया माना जाता है। जिस पर कोई अनुपूरक प्रश्न नहीं पूछा जा सकता है।
- अल्प सूचना प्रश्न:
- इस प्रकार के प्रश्नों के अंतर्गत सार्वजनिक महत्त्व और अत्यावश्यक प्रकृति के मामलों पर विचार किया जाता है। ये दस दिनों से कम समय का नोटिस देकर पूछे जाते हैं और इनका मौखिक रूप से उत्तर दिया जाता हैं।
- निजी सदस्यों द्वारा पूछा जाने वाला प्रश्न:
- एक प्रश्न लोकसभा के प्रक्रिया नियमों के नियम 40 के तहत या राज्यसभा के नियमों के नियम 48 के तहत एक निजी सदस्य को संबोधित किया जा सकता है, बशर्ते कि प्रश्न किसी विधेयक, संकल्प या अन्य मामले से जुड़े विषय से संबंधित हो जिसके लिये वह सदस्य ज़िम्मेदार है।
प्रश्न करने का महत्त्व:
- संसदीय अधिकार:
- प्रश्न पूछना सांसदों का एक अंतर्निहित और अप्रतिबंधित संसदीय अधिकार है, जो कार्यकारी कार्यों पर विधायी नियंत्रण के लिये एक उपकरण के रूप में कार्य करता है।
- प्रश्न पूछने का अधिकार:
- यह सांसदों को सरकारी गतिविधियों के बारे में जानकारियाँ प्राप्त करने, नीतियों की आलोचना करने, सरकार की कमियों को उजागर करने और मंत्रियों को भलाई के लिये कदम उठाने की अनुमति देता है।
- सरकार का दृष्टिकोण:
- सरकार के लिये प्रश्न नीतियों और प्रशासन के संबंध में जनता की भावनाओं के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं। वे संसदीय आयोगों के गठन, जाँच या कानून के अधिनियमन का नेतृत्व कर सकते हैं।
आगे की राह
- संविधान के अनुच्छेद 75 के तहत संसद में प्रश्न पूछना सदन के सदस्य का संवैधानिक अधिकार है। इस दृष्टिकोण से देखा जाए तो संसद में प्रश्नकाल एक अलग स्तर पर होता है।
- एक प्रकार से प्रत्येक प्रश्नकाल इस अर्थ में प्रचालन में प्रत्यक्ष प्रकार के लोकतंत्र की अभिव्यक्ति है कि लोगों का प्रतिनिधित्व शासन के मामलों पर सरकार से सीधे सवाल करना है और सरकार सदन में सवालों के जवाब देने के लिये बाध्य है।
- संबंधित अधिकारियों को यह भी बताना चाहिये कि किसी प्रश्न को अस्वीकार क्यों किया जाना चाहिये। सदन के विशेषाधिकार के कारण सूचना का अधिकार (Right to Information- RTI) के माध्यम से भी इसका कारण नहीं पता किया जा सकता है और इसे न्यायालय में ले जाना भी कठिन है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत की संसद किसके/किनके द्वारा मंत्रिपरिषद के कृत्यों के ऊपर नियंत्रण रखती है? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (d)
अत: विकल्प (d) सही उत्तर है। |
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
लार्ज लैंग्वेज मॉडल
प्रिलिम्स के लिये:ChatGPT, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, लार्ज लैंग्वेज मॉडल (LLM), मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार, डीप टेक, उद्योग संवर्द्धन और आंतरिक व्यापार विभाग (DPIIT) मेन्स के लिये:भारत के वैज्ञानिक एवं तकनीकी कौशल पर लार्ज लैंग्वेज मॉडल (LLM) के लाभ और संभावनाएँ। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार के अनुसार, भारत लार्ज लैंग्वेज मॉडल (LLM) के विकास को जानने के लिये एक "उच्चाधिकार प्राप्त समिति" का गठन करेगा, जो मानव की भाषा को समझने और संसाधित करने वाले एप्लीकेशन बनाने के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग करेगा।
लार्ज लैंग्वेज मॉडल (LLM):
- परिचय:
- लार्ज लैंग्वेज मॉडल (LLMs): LLMs जेनरेटिव AI मॉडल का एक विशिष्ट वर्ग हैं जिन्हें मानव की तरह टेक्स्ट की समझ और उसके सृजन के लिये प्रशिक्षित किया जाता है।
- ये मॉडल गहन शिक्षण तकनीकों, विशेष रूप से न्यूरल नेटवर्क का उपयोग करके बनाये गए हैं।
- वे संकेत या इनपुट प्रदान किये जाने पर सुसंगत और सांदर्भिक रूप से प्रासंगिक टेक्स्ट प्रदान कर सकते हैं।
- LLMs के सबसे प्रसिद्ध उदाहरणों में से एक Open AI का GPT (Generative Pre-trained Transformer) है।
- लार्ज लैंग्वेज मॉडल (LLMs): LLMs जेनरेटिव AI मॉडल का एक विशिष्ट वर्ग हैं जिन्हें मानव की तरह टेक्स्ट की समझ और उसके सृजन के लिये प्रशिक्षित किया जाता है।
- जनरेटिव AI:
- जेनरेटिव AI कृत्रिम बुद्धिमत्ता का एक हिस्सा है यह उन प्रणालियों को विकसित करने के लिये समर्पित है जो मानव द्वारा उत्पादित सामग्री के समान गुणों वाली सामग्री का उत्पादन करते हैं।
- ये प्रणालियाँ मौजूदा डेटा के पैटर्न का उपयोग कर नई, रचनात्मक सामग्री उत्पन्न करने में सक्षम हैं।
- यह सामग्री टेक्स्ट, चित्र, संगीत अथवा अन्य मीडिया के रूप में हो सकती हैं।
- अमेरिका-भारत सहयोग:
- भारत व अमेरिका के बीच बहुत अच्छे संबंध हैं, जो गहन प्रौद्योगिकी/डीप टेक सहयोग के लिये बिल्कुल उपयुक्त हैं। डीप टेक पर भारत की मसौदा नीति के अनुसार स्टार्टअप इंडिया के डेटाबेस में विभिन्न डीप टेक क्षेत्रों में 10,000 से अधिक स्टार्टअप सूचीबद्ध हैं जो अमेरिका व भारत के परस्पर सहयोग के अनुरूप है।
डीप टेक:
- परिचय:
- डीप टेक अथवा डीप टेक्नोलॉजी स्टार्टअप्स व्यवसायों के एक वर्ग को संदर्भित करती है जो भौतिक इंजीनियरिंग नवाचार अथवा वैज्ञानिक खोजों व प्रगति के आधार पर नए उत्पाद विकसित करती हैं।
- ये स्टार्टअप्स अमूमन कृषि, जीवन विज्ञान, रसायन विज्ञान, एयरोस्पेस तथा हरित ऊर्जा सहित अन्य क्षेत्रों में कार्य करते हैं।
- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, उन्नत सामग्री, ब्लॉकचेन, जैव-प्रौद्योगिकी, रोबोटिक्स, ड्रोन, फोटोनिक्स तथा क्वांटम कंप्यूटिंग जैसे गहन तकनीकी क्षेत्र प्रारंभिक अनुसंधान से व्यावसायिक अनुप्रयोगों की ओर तेज़ी से आगे बढ़ रहे हैं।
- डीप टेक की विशेषताएँ:
- प्रभाव: डीप टेक नवाचार अत्यधिक मौलिक हैं तथा मौजूदा बाज़ार को बाधित करते हैं। डीप टेक पर आधारित नवाचार अमूमन जीवन, अर्थव्यवस्था व समाज में व्यापक परिवर्तन लाते हैं।
- समयावधि और स्तर: प्रौद्योगिकी को विकसित करने तथा बाज़ार में उपलब्धता के लिये डीप टेक की आवश्यक समयावधि सतही प्रौद्योगिकी विकास (Shallow technology development) (जैसे मोबाइल एप एवं वेबसाइट) से कहीं अधिक है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता को विकसित होने में दशकों लग गए तथा यह अभी भी पूर्ण नहीं है।
- पूँजी: डीप टेक को अमूमन अनुसंधान और विकास, प्रोटोटाइप परिकल्पना को मान्य करने एवं प्रौद्योगिकी विकास के लिये प्रारंभिक चरणों में पर्याप्त पूँजी की आवश्यकता होती है।
- डीप टेक के समक्ष चुनौतियाँ:
- डीप टेक स्टार्टअप्स के लिये फंडिंग सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। 20% से भी कम स्टार्टअप्स को ही वित्तपोषण प्राप्त होता है। इनमें सरकारी धन का कम उपयोग किया गया है और ऐसे स्टार्टअप्स के लिये आवश्यक घरेलू पूँजी का अभाव है।
- प्रतिभा और बाज़ार अभिगम, अनुसंधान मार्गदर्शन तथा गहन तकनीक के बारे में निवेशकों की समझ, ग्राहक अधिग्रहण एवं प्रतिभा की लागत उनके समक्ष आने वाली प्रमुख चुनौतियाँ हैं।
ड्राफ्ट नेशनल डीप टेक स्टार्टअप पॉलिसी (NDTSP), 2023:
- परिचय:
- यह नीति गहन तकनीकी स्टार्टअप्स में अनुसंधान तथा विकास को बढ़ावा देने का प्रयास करती है जो विशिष्ट व्यवसाय मॉडल के साथ प्रौद्योगिकी का मुद्रीकरण करने वाली कंपनियों के विपरीत मौलिक और तकनीकी समस्याओं पर कार्य करते हैं।
- यह नीति महत्त्वपूर्ण क्षणों में, जैसे कि अपने उत्पादों या विचारों के साथ बाज़ार में पहुँचने से पूर्व, गहन तकनीकी स्टार्टअप्स को वित्तपोषण प्रदान करने के लिये दृष्टिकोण तलाशने का भी प्रयास करती है।
- स्टार्टअप्स को सुविधा प्रदान करना:
- यह नीति ऐसे स्टार्टअप्स के लिये बौद्धिक संपदा व्यवस्था तथा नियामक आवश्यकताओं को सरल बनाने और इन फर्मों को बढ़ावा देने के लिये कई उपायों का प्रस्ताव रखती है।
- NDTSP का सुझाव है कि भारतीय डीप टेक स्टार्टअप्स के लिये विदेशी बाज़ारों में प्रवेश की बाधाओं को कम करने हेतु एक निर्यात संवर्धन बोर्ड का गठन किया जाए और ऐसे बाज़ार अभिगम को सरल बनाने के लिये विदेशी व्यापार समझौतों में प्रावधान सम्मिलित किये जाएँ।
- अनुशंसाएँ:
- नीति में डीप टेक पारिस्थितिकी तंत्र को बेहतर ढंग से कार्य करने में सक्षम बनाने की आवश्यकताओं की नियमित समीक्षा करने हेतु एक "अंतर मंत्रालयी डीप टेक समिति" के निर्माण का सुझाव दिया गया है।
- यह नीति अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के प्रति सरकार की निराशा को दोहराती है जिसके विषय में उसका तर्क है कि इसने भारत को विनिर्माण और विकास के संदर्भ में बैकफुट पर छोड़ दिया है।
- भारतीय डीप टेक इकोसिस्टम को आगे बढ़ाने के लिये अंतर्राष्ट्रीय साझेदारों और बहुपक्षीय संस्थानों के साथ बेहतर ढंग से जुड़ने के लिये एक समन्वित, व्यापक प्रयास वर्तमान समय की मांग हैं।
भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार (PSA) का कार्यालय:
- भारत में वर्ष 1999 से एक प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार (PSA) है। डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम वर्ष 1999-2001 तक देश के पहले PSA रहे थे।
- PSA के कार्यालय का उद्देश्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के मामलों में प्रधानमंत्री और कैबिनेट को व्यावहारिक एवं उद्देश्यपूर्ण सलाह प्रदान करना है। PSA कार्यालय को वर्ष 2018 में कैबिनेट सचिवालय के अधीन रखा गया था।
- प्रधानमंत्री विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार सलाहकार परिषद (PM-STIAC) एक व्यापक संस्था है जो PSA के कार्यालय को विशिष्ट विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी डोमेन में स्थिति का आकलन करने, चुनौतियों को समझने, विशिष्ट हस्तक्षेप तैयार करने, भविष्य के रोडमैप विकसित करने और तद्नुसार प्रधानमंत्री को सलाह देने की सुविधा प्रदान करती है।
- PM-STIAC के तहत सभी नौ राष्ट्रीय मिशनों की डिलीवरी और उन्नति को PSA कार्यालय द्वारा इन्वेस्ट इंडिया की परियोजना प्रबंधन टीम की सहायता से सुविधा प्रदान की जा रही है। नौ मिशनों में से चार, डीप ओशन मिशन, प्राकृतिक भाषा अनुवाद मिशन, AI मिशन और क्वांटम फ्रंटियर मिशन को मंज़ूरी दे दी गई है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. विकास की वर्तमान स्थिति में कृत्रिम बुद्धिमत्ता निम्नलिखित में से किस कार्य को प्रभावी रूप से कर सकती है? (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2, 3 और 5 उत्तर: (b) प्रश्न. "चौथी औद्योगिक क्रांति (डिजिटल क्रांति) के उद्भव ने सरकार के अभिन्न अंग के रूप में ई-गवर्नेंस की शुरुआत की है"। विचार-विमर्श कीजिये। (वर्ष 2020) |
भारतीय अर्थव्यवस्था
दूरसंचार कंपनियों पर पूंजी कराधान
प्रिलिम्स के लिये:पूंजीगत व्यय और राजस्व व्यय, दूरसंचार विभाग, दूरसंचार लाइसेंस शुल्क, परिशोधन मेन्स के लिये:पूंजी और राजस्व व्यय के बीच अंतर, संसाधनों का संग्रहण |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने माना है कि टेलीकॉम कंपनियों द्वारा प्रवेश शुल्क के साथ-साथ परिवर्तनीय वार्षिक लाइसेंस शुल्क के भुगतान को राजस्व व्यय न मानकर पूंजीगत व्यय माना जाएगा और इस पर तद्नुसार कर लगाया जाएगा।
सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से टेलीकॉम लाइसेंस शुल्क पर प्रभाव:
- निर्णय:
- सर्वोच्च न्यायालय के फैसले में कहा गया है कि (नई दूरसंचार) नीति 1999 के तहत प्रवेश शुल्क और वार्षिक लाइसेंस शुल्क के रूप में दूरसंचार कंपनियों द्वारा दूरसंचार विभाग को किये गए भुगतान को अब पूंजीगत व्यय के रूप में वर्गीकृत किया गया है तथा इसे (आयकर) अधिनियम की धारा 35ABB के अनुसार परिशोधित किया जा सकता है।
- इसका तात्पर्य यह है कि पूरे खर्च में एक साथ कटौती करने के बजाय कंपनी को कर उद्देश्यों के लिये प्रत्येक वर्ष कुल शुल्क के एक हिस्से में कटौती करने की आवश्यकता होगी।
- सर्वोच्च न्यायालय के फैसले में कहा गया है कि (नई दूरसंचार) नीति 1999 के तहत प्रवेश शुल्क और वार्षिक लाइसेंस शुल्क के रूप में दूरसंचार कंपनियों द्वारा दूरसंचार विभाग को किये गए भुगतान को अब पूंजीगत व्यय के रूप में वर्गीकृत किया गया है तथा इसे (आयकर) अधिनियम की धारा 35ABB के अनुसार परिशोधित किया जा सकता है।
- प्रभाव:
- लेखांकन व्यवहार में परिवर्तन: दूरसंचार कंपनियों ने परंपरागत रूप से लाइसेंस शुल्क को खर्च के रूप में माना है, जिससे उन्हें कर (Tax) गणना के लिये वर्ष-दर-वर्ष आधार पर कटौती का दावा करने की अनुमति मिलती है।
- हालाँकि यह निर्णय लेखांकन व्यवहार में बदलाव को अनिवार्य करता है, जिसके लिये लाइसेंस शुल्क को पूंजीगत व्यय के रूप में माना जाना आवश्यक है।
- इन खर्चों का परिशोधन लाइसेंस की धारण अवधि के दौरान किया जाना चाहिये।
- नकदी प्रवाह पर प्रारंभिक प्रभाव: लेखांकन व्यवहार में बदलाव के प्रत्यक्ष परिणाम के रूप में दूरसंचार कंपनियों को नकदी प्रवाह में अस्थायी कमी का अनुभव हो सकता है।
- उच्च EBITDA (ब्याज, कर, मूल्यह्रास व परिशोधन से पहले की आमदनी) और PBT (कर से पहले लाभ) इस बदलाव के परिणामस्वरूप हो सकते हैं, लेकिन लाइसेंस की अवधि के दौरान इसकी भरपाई होने की संभावना है।
- वित्तीय तनाव (Financial Strain): इस फैसले से उन कंपनियों पर प्रभाव पड़ने का अनुमान है जिन्होंने दूरसंचार लाइसेंस प्राप्त करने के लिये पर्याप्त खर्च व्यय किया है, खासकर वे कंपनियाँ जो पहले से ही वित्तीय घाटे का सामना कर रही हैं।
- पूर्वव्यापी अनुप्रयोग के बारे में अनिश्चितता: सर्वोच्च न्यायालय के आदेश में यह स्पष्ट नहीं किया गया था कि नई लेखांकन संरचना को पूर्वव्यापी रूप से लागू किया जाना चाहिये अथवा नहीं।
- इससे दूरसंचार उद्योग में चिंताएँ बढ़ गई हैं, साथ ही पिछली अवधि की कर देनदारियों को लेकर भी सवाल खड़े हो गए हैं।
- लेखांकन व्यवहार में परिवर्तन: दूरसंचार कंपनियों ने परंपरागत रूप से लाइसेंस शुल्क को खर्च के रूप में माना है, जिससे उन्हें कर (Tax) गणना के लिये वर्ष-दर-वर्ष आधार पर कटौती का दावा करने की अनुमति मिलती है।
परिशोधन:
- यह लेखांकन की एक विधि है जिसका उपयोग परिसंपत्ति की उपयोग अवधि के दौरान पूंजीगत व्यय या अमूर्त संपत्ति की लागत को बढ़ाने के लिये किया जाता है।
- व्यय का यह क्रमिक आवंटन परिसंपत्ति के प्रारंभिक व्यय को समय के साथ उत्पन्न होने वाले राजस्व के साथ संतुलित करने में सहायता करता है।
- सरल शब्दों में इसका अर्थ है एक व्यय को छोटे भागों में विभाजित करना और उन भागों को एक विशिष्ट अवधि में वित्तीय विवरणों पर व्यय के रूप में पहचानना।
- यह अभ्यास समय के साथ कंपनी के वित्तीय विवरणों और कर देनदारी पर परिसंपत्ति के प्रभाव का अधिक सटीक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करता है।
पूंजीगत और राजस्व व्यय के बीच अंतर:
पहलू |
पूंजीगत व्यय |
राजस्व व्यय |
व्यय की प्रकृति |
दीर्घकालिक परिसंपत्तियों या निवेशों को प्राप्त करने, सुधारने या विस्तारित करने से संबंधित व्यय, जिनसे एक वित्तीय वर्ष से अधिक के लिये लाभ मिलने की उम्मीद है। |
मौजूदा परिसंपत्तियों या सेवाओं के रखरखाव और समर्थन के लिये किये गए दैनिक परिचालन व्यय। |
लेखांकन व्यवहार |
बैलेंस शीट पर पूंजीकृत करने के उपरांत समय से परिशोधन या मूल्यह्रास के माध्यम से मान्यता प्राप्त है। |
आय विवरण पर वर्ष में किये गए व्यय के रूप में पूरी तरह से मान्यता प्राप्त है। |
कर व्यवहार |
मूल्यह्रास या परिशोधन के अधीन, जिससे कर प्रभाव में देरी होती है और प्रायः खरीद के वर्ष में कर योग्य आय कम हो जाती है। |
कर योग्य आय से तुरंत कटौती योग्य, कर दायित्व में तत्काल कमी प्रदान करता है। |
लाभप्रदता पर प्रभाव |
आम तौर पर अल्पकालिक लाभप्रदता पर बड़ा प्रभाव नहीं पड़ता क्योंकि लागत कई वर्षों के लिये होती है। |
इसका लाभप्रदता पर तत्काल प्रभाव पड़ता है, क्योंकि व्यय का आकलन निर्दिष्ट वर्ष में व्यय के आधार पर की जाती है। |
उदाहरण |
एक नई विनिर्माण सुविधा प्राप्त करना, एक नए उत्पाद, दीर्घकालिक लाइसेंस या फ्रेंचाइज़ी के लिये अनुसंधान और विकास। |
नियमित मशीनरी रखरखाव, कर्मचारी वेतन, विज्ञापन लागत, उपयोगिता बिल। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित में से किसको/किनको भारत सरकार के पूंजी बजट में शामिल किया जाता है?(2016)
नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. पूंजी बजट तथा राजस्व बजट के मध्य अंतर स्पष्ट कीजिये। इन दोनों बजटों के संघटकों को समझाइये। (2021) |
भारतीय अर्थव्यवस्था
वैश्विक आर्थिक विकास में भारत की स्थिति
प्रिलिम्स के लिये:अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF), भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI), प्रमुख मुद्रास्फीति, मनरेगा, सकल घरेलू उत्पाद (GDP), राजकोषीय घाटा मेन्स के लिये:राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को प्राप्त करते हुए इसकी संभावित वृद्धि को प्राप्त करने में मुद्दे और चिंताएँ। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ( International Monetary Fund- IMF) के अनुसार, वैश्विक आर्थिक विकास में भारत के योगदान में 2% की वृद्धि होने की उम्मीद है क्योंकि भारत की तेज़ आर्थिक वृद्धि के कारण अगले पाँच वर्षों में यह योगदान 16% से बढ़कर 18% हो जाएगा।
भारत की अनुमानित वृद्धि में योगदान देने वाले कारक:
- मानसून
- जबकि मानसून के मौसम के दौरान कुल वर्षा उम्मीद से 6% कम रही (अगस्त में 36% कम वर्षा के कारण), लेकिन इनका स्थानिक वितरण व्यापक रूप से समान रहा। 36 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में से 29 में सामान्य या सामान्य से अधिक बारिश हुई।
- SBI मानसून प्रभाव सूचकांक, जो स्थानिक वितरण पर विचार करता है, का मूल्य 89.5 रहा, जो वर्ष 2022 में पूर्ण मौसम सूचकांक मूल्य 60.2 से व्यापक रूप से बेहतर है।
- पूंजीगत व्यय पर निरंतर बल:
- चालू वर्ष (2023) के पहले पाँच माह के दौरान, बजटीय लक्ष्य के प्रतिशत के रूप में राज्यों का पूंजीगत व्यय 25% रहा, जबकि केंद्र के लिये यह 37% था, जो पिछले वर्षों की तुलना में अधिक है और नवीनीकृत पूंजी सृजन को दर्शाता है
- नई कंपनियों का पंजीकरण
- देश में नई कंपनियों का सुदृढ़ पंजीकरण विकास के मज़बूत इरादों को दर्शाता है। वर्ष 2023-24 की पहली छमाही में लगभग 93,000 कंपनियाँ पंजीकृत हुईं, जबकि इससे पूर्व पाँच वर्ष तक यह संख्या केवल 59,000 रही थी।
- साथ ही यह भी दिलचस्प है कि नई कंपनियों का औसत दैनिक पंजीकरण वर्ष 2018-19 में 395 से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 622 (58% की वृद्धि के साथ) हो गया।
- ऋण वृद्धि:
- वर्ष 2022 की शुरुआत से सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (SCB) की ऋण वृद्धि (वर्ष-दर-वर्ष) बढ़ रही है, सितंबर माह तक कुल जमा में 13.2% और ऋण में 20% की वृद्धि हुई। सरकार को उम्मीद है कि आने वाले महीनों में त्योहारों के दौरान ऋण मांग मज़बूत बनी रहेगी।
- अर्थव्यवस्था का औपचारिकीकरण:
- ऋण में हुई इस वृद्धि का श्रेय पिछले दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था के औपचारिकीकरण को दिया जाता है। बिना किसी पूर्व क्रेडिट इतिहास वाले लोग तेज़ी से बैंकिंग प्रणाली के साथ संलग्न हो रहे हैं।
- पिछले नौ वर्षों में जोड़े गए नए क्रेडिट खातों में से लगभग 40% ऐसे व्यक्तियों के हैं जिनका कोई पूर्व क्रेडिट इतिहास नहीं था। यह समूह वृद्धिशील ऋण वृद्धि में कम से कम 10% का योगदान देते है।
अनुमानित वृद्धि हासिल करने में भारत के समक्ष चुनौतियाँ:
- मांग में कमी:
- कम आय वृद्धि, उच्च मुद्रास्फीति, बेरोज़गारी और कोविड-19 महामारी के प्रभाव जैसे विभिन्न कारकों के कारण भारत में वस्तुओं तथा सेवाओं की मांग या तो स्थिर रही है या कम हो रही है।
- इससे अर्थव्यवस्था में उपभोग और निवेश का स्तर प्रभावित हुआ है तथा सरकार के लिये कर संप्राप्ति कम हो गई है।
- बेरोज़गारी:
- तीव्र आर्थिक विकास के बावज़ूद, ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में बेरोज़गारी एक गंभीर समस्या बनी हुई है। कोविड-19 महामारी ने स्थिति को और खराब कर दिया है, क्योंकि कई व्यवसाय बंद हो गए या उन्होंने अपना परिचालन कम कर दिया है, जिससे नौकरियाँ कम हुई हैं।
- वर्ष 2021-22 में राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) की आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) रिपोर्ट के अनुसार, 2021-22 में बेरोज़गारी दर 4.1% थी।
- तीव्र आर्थिक विकास के बावज़ूद, ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में बेरोज़गारी एक गंभीर समस्या बनी हुई है। कोविड-19 महामारी ने स्थिति को और खराब कर दिया है, क्योंकि कई व्यवसाय बंद हो गए या उन्होंने अपना परिचालन कम कर दिया है, जिससे नौकरियाँ कम हुई हैं।
- अव्यवस्थित बुनियादी ढाँचा:
- भारत में सड़क, रेलवे, बंदरगाह, विद्युत, जल और स्वच्छता जैसे व्यवस्थित बुनियादी ढाँचे का अभाव है, जो इसके आर्थिक विकास एवं प्रतिस्पर्धात्मकता में बाधा डालता है।
- विश्व बैंक के अनुसार भारत का बुनियादी ढाँचा अंतर लगभग 1.5 ट्रिलियन डॉलर होने का अनुमान है। लचीला बुनियादी ढाँचा लोगों के विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन की गुणवत्ता और स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है
- भुगतान संतुलन का अव्यवस्थित होना:
- भारत लगातार चालू खाता घाटे से जूझ रहा है, जिसका अर्थ है कि इसका आयात इसके निर्यात से अधिक है। यह विदेशी वस्तुओं एवं सेवाओं, विशेषकर तेल और सोने पर इसकी निर्भरता तथा निर्यात की न्यून प्रतिस्पर्द्धात्मकता को दर्शाता है।
- वर्ष 2021 की तुलना में वर्ष 2022 के दौरान भारत के निर्यात एवं आयात में क्रमशः 6.59% और 3.63% की कमी आई। इस गति को देखते हुए वर्ष 2030 तक 2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के निर्यात लक्ष्य तक पहुँचना मुश्किल होगा।
- भू-राजनीतिक तनाव: सीमा विवादों सहित भारत के भू-राजनीतिक संबंध, क्षेत्रीय स्थिरता को प्रभावित कर सकते हैं और संभावित रूप से आर्थिक संभावनाओं को प्रभावित कर सकते हैं।
- भारत लगातार चल रहे युद्धों और संघर्षों सहित वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं के प्रति संवेदनशील है, जिससे कच्चे तेल की मुद्रास्फीति तथा आपूर्ति में कमी हो सकती है।
- व्यापार असंतुलन: भारत को अपने कुछ प्रमुख व्यापारिक साझेदारों के साथ व्यापार असंतुलन का सामना करना पड़ता है, जो इसके आर्थिक विकास और स्थिरता को प्रभावित कर सकता है।
- भारत लगातार चल रहे युद्धों और संघर्षों सहित वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं के प्रति संवेदनशील है, जिससे कच्चे तेल की मुद्रास्फीति तथा आपूर्ति में कमी हो सकती है।
आगे की राह
- निजी निवेश को बढ़ावा देना: निजी निवेश आर्थिक विकास का एक प्रमुख चालक है क्योंकि यह उत्पादकता, नवाचार और प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाता है। सरकार ने व्यापार सुगमता को बेहतर बनाने, कॉर्पोरेट टैक्स को कम करने, क्रेडिट गारंटी प्रदान करने और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिये कई पहलें शुरू की हैं।
- हालाँकि भारत में व्यापार करने की लागत एवं जोखिम को कम करने के लिये भूमि, श्रम तथा लॉजिस्टिक्स जैसे क्षेत्रों में और अधिक सुधार करने की आवश्यकता है।
- बढ़ती प्रतिस्पर्द्धात्मकता: भारत को अपने निर्यात में विविधता लाकर, अपने बुनियादी ढाँचे में सुधार करके, नवाचार और डिजिटलीकरण को बढ़ावा देकर तथा क्षेत्रीय एवं वैश्विक मूल्य शृंखलाओं के साथ एकीकरण करके वैश्विक बाज़ार में अपनी प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने की ज़रूरत है।
- सरकार ने विनिर्माण को समर्थन देने के लिये कई योजनाओं की घोषणा की है, जैसे उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन (PLI), चरणबद्ध विनिर्माण कार्यक्रम (PMP) और मेक इन इंडिया।
- घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय दोनों व्यवसायों के लिये निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा की गारंटी हेतु, व्यापार उदारीकरण तथा नियामक सरलीकरण को इन कार्यक्रमों के साथ मिलकर लागू किया जाना चाहिये।
- हरित विकास को बढ़ावा देना: भारत ने अपने जलवायु परिवर्तन लक्ष्यों के हिस्से के रूप में अपनी कार्बन तीव्रता को कम करने और अपनी नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को बढ़ाने के लिये प्रतिबद्ध किया है। सरकार ने हरित बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं को वित्तपोषित करने के लिये हरित बॉण्ड भी पेश किया है।
- हालाँकि भारत के विकास एवं कल्याण को खतरे में डालने वाले पर्यावरणीय मुद्दों, जैसे वायु प्रदूषण, जल की कमी, अपशिष्ट प्रबंधन तथा जैव-विविधता ह्रास की चुनौतियों से निपटने के लिये और अधिक प्रयत्नशील होने की आवश्यकता है।
- अर्थव्यवस्था में स्थिरता बनाए रखें: भारत एक स्थिर और निम्न मुद्रास्फीति दर बनाए रख सकता है, जिससे निवेश तथा विश्वास को प्रोत्साहन मिलेगा। इसके अतिरिक्त, भारत उत्पादक क्षेत्रों, विशेषकर छोटे और मध्यम आकार के व्यवसायों के लिए पर्याप्त ऋण उपलब्धता व तरलता
- की गारंटी दे सकता है। बचत एवं निवेश को प्रोत्साहित करने के लिये भारत अपने वित्तीय संस्थानों और बाज़ारों का भी विस्तार कर सकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न 1. किसी देश की, कर से GDP के अनुपात में कमी क्या सूचित करती है? (2015)
(a) केवल 1 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न 2. क्या आप इस मत से सहमत हैं कि सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी) की स्थायी संवृद्धि तथा निम्न मुद्रास्फीति के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था अच्छी स्थिति में है? अपने तर्कों के समर्थन में कारण दीजिये। (2019) प्रश्न 3. क्या आप सहमत हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था ने हाल ही में V-आकार के पुरुत्थान का अनुभव किया है? कारण सहित अपने उत्तर की पुष्टि कीजिये। (2021) |
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
क्रू एस्केप सिस्टम पर परीक्षण
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO), क्रू एस्केप सिस्टम, ह्यूमन स्पेस फ्लाइट मिशन, फ्लाइट टेस्ट व्हीकल एबॉर्ट मिशन-1 (TV-D1), LVM3 रॉकेट, GSLV Mk III रॉकेट, क्रू मॉड्यूल एटमॉस्फेरिक री-एंट्री एक्सपेरिमेंट (CARE) , अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS)। मेन्स के लिये:भारत के गगनयान मिशन पर क्रू एस्केप सिस्टम के हालिया परीक्षणों का प्रभाव, विज्ञान और प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने संभवत: 2025 तक गगनयान मिशन के उद्देश्यों को पूरा करने के उद्देश्य से फ्लाइट टेस्ट व्हीकल एबॉर्ट मिशन-1 (टी.वी.-डी.1) नामक सिस्टम और प्रक्रियाओं की शृंखला का पहला परीक्षण किया।
TV-D1 टेस्ट:
- परिचय:
- फ्लाइट टेस्ट व्हीकल एबॉर्ट मिशन-1 (TV-D1) गगनयान परियोजना के क्रू एस्केप सिस्टम को प्रदर्शित करता है।
- यह फ्लाइट सुरक्षा तंत्र का परीक्षण करने वाले दो अबॉर्ट मिशनों में से एक है जो गगनयान चालक दल को आपातकालीन स्थिति में अंतरिक्ष यान छोड़ने की अनुमति देगा।
- टेस्ट व्हीकल एक सिंगल-स्टेज लिक्विड रॉकेट है जिसे इस अबॉर्ट मिशन के लिये विकसित किया गया है। पेलोड में क्रू मॉड्यूल (CM) और क्रू एस्केप सिस्टम (CES) के साथ उनके तेज़ी से काम करने वाले ठोस मोटर, CM फेयरिंग (CMF) तथा इंटरफेस एडेप्टर भी शामिल हैं।
- कार्य प्रणाली:
- परीक्षण अभ्यास में रॉकेट को अबॉर्ट सिग्नल ट्रिगर होने से पूर्व लगभग 17 किमी की ऊँचाई तक देखा जाएगा, जिससे क्रू मॉड्यूल अलग हो जाएगा, जो बंगाल की खाड़ी में स्पलैशडाउन के लिये पैराशूट का उपयोग करके उतरेगा।
- रॉकेट ISRO का नया, कम लागत वाला परीक्षण व्हीकल, उड़ान के दौरान 363 मीटर/सेकंड (लगभग 1307 किमी/घंटा) के चरम सापेक्ष वेग तक पहुँच जाएगा और परीक्षण के लिये चालक दल का मॉड्यूल रिक्त हो जाएगा।
- कम लागत वाले परीक्षण वाहन का क्रू मॉड्यूल उड़ान के दौरान खाली रहेगा और यह 363 मीटर प्रति सेकंड की अधिकतम सापेक्ष गति प्राप्त करेगा।
- प्रासंगिकता मानदंड:
- यह क्रू मॉड्यूल के एक मूल संस्करण प्रदर्शित करेगा जिसमें गगनयान मानव अंतरिक्ष उड़ान के दौरान अंतरिक्ष यात्रियों को बैठाया जाएगा।
- यह परीक्षण मध्य-उड़ान आपातकालीन स्थिति (निरस्त मिशन) और अंतरिक्ष यात्रियों के पलायन की स्थिति में रॉकेट से क्रू मॉड्यूल को अलग करने हेतु सिस्टम की कार्यप्रणाली की जाँच करेगा।
TV-D1 में उपयोग किया जाने वाला नया परीक्षण व्हीकल:
- नये परीक्षण व्हीकल का परिचय:
- ISRO ने वर्ष 2024 में मानव-रेटेड LVM3 रॉकेट का उपयोग करके एक पूर्ण क्रू मॉड्यूल परीक्षण उड़ान आयोजित करने की योजना बनाई है। हालाँकि TV-D1 मिशन के लिये ISRO ने एक कम लागत वाला परीक्षण वाहन विकसित किया है जो विशेष रूप से विभिन्न प्रणालियों के मूल्यांकन हेतु डिज़ाइन किया गया है।
- परीक्षण व्हीकल की विशेषताएँ:
- परीक्षण व्हीकल में मौजूदा तरल प्रणोदन तकनीक शामिल है।
- उल्लेखनीय नवाचारों में थ्रॉटलेबल और पुनः आरंभ करने योग्य L110 विकास इंजन शामिल है, जो LVM3 रॉकेट के दूसरे चरण का एक मुख्य घटक है तथा प्रणोदक उपयोग पर बेहतर नियंत्रण प्रदान करता है।
- परीक्षण व्हीकल में मौजूदा तरल प्रणोदन तकनीक शामिल है।
- GSLV Mk III का लागत प्रभावी विकल्प:
- वर्ष 2014 में क्रू मॉड्यूल वायुमंडलीय पुन: प्रवेश प्रयोग (CARE) जैसी पिछली क्रू मॉड्यूल परीक्षण उड़ानों में महँगे GSLV Mk III रॉकेट का उपयोग किया गया था, जिनमें से प्रत्येक की लागत 300-400 करोड़ रुपए थी। लागत संबंधी चिंताओं के जवाब में ISRO ने अधिक किफायती परीक्षण व्हीकल पेश किया है।
- विभिन्न अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों के लिये टेस्ट व्हीकल का उपयोग:
- टेस्ट व्हीकल पुन: प्रयोज्य अंतरिक्ष प्रक्षेपण यानों के लिये स्क्रैमजेट इंजन टेक्नोलॉजी सहित कई अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों के परीक्षण एवं विकास के लिये एक मंच के रूप में कार्य करेगा।
- यह टेस्ट व्हीकल भविष्य की अंतरिक्ष परियोजनाओं के लिये एक महत्त्वपूर्ण उपकरण है। ISRO ने भारी लागत का भुगतान किये बिना गगनयान मिशन के क्रू एस्केप सिस्टम का बार-बार परीक्षण करने के महत्त्व को पहचाना है।
गगनयान मिशन का क्रू एस्केप सिस्टम (CES):
- रूसी सोयुज़ रॉकेट की विफलता से सीख:
- वर्ष 2018 में अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) के अभियान 57 के दौरान सोयुज़ FG रॉकेट की विफलता के कारण चालक दल को आपातकालीन निकास करना पड़ा। 50 कि.मी. की ऊँचाई पर क्रू मॉड्यूल रॉकेट से अलग हो गया, जिससे अंतरिक्ष यात्रियों की सुरक्षित वापसी सुनिश्चित हुई। यह 55 मिशनों में पहली सोयुज़ FG विफलता एवं वर्ष 1975 के बाद सोयुज़ रॉकेट की पहली मध्य-उड़ान विफलता थी।
- गगनयान में चालक दल/क्रू की सुरक्षा सुनिश्चित करना:
- गगनयान परियोजना में ISRO चालक दल की सुरक्षा को प्राथमिकता देता है और इसीलिये मिशन को सुरक्षित बनाने के लिये निर्धारित समय सीमा को वर्ष 2022 से आगे बढ़ाया गया। आपात स्थिति के लिये एक विश्वसनीय निकासी व्यवस्था के अतिरिक्त, चालक दल मॉड्यूल को अत्यधिक ऊष्मा एवं दबाव सहन करने में सक्षम होना चाहिये।
- अंतरिक्ष यात्रियों को खतरे में डालने वाली विसंगतियों की पहचान करने व मिशन को अबॉर्ट करने के लिये ISRO एकीकृत स्वास्थ्य प्रबंधन प्रणाली व जीवन समर्थन प्रणाली विकसित कर रहा है।
- TV-D1 मिशन चरण:
- TV-D1 उड़ान में क्रू एस्केप सिस्टम लगभग 11.7 किमी की ऊँचाई पर परीक्षण वाहन से अलग हो जाता है। लगभग 90 सेकंड के बाद क्रू मॉड्यूल अलग हो जाता है, पैराशूट तैयार करता है और सात मिनट में धीरे-धीरे नीचे उतरता है।
- भारतीय नौसेना, बंगाल की खाड़ी में उतारने के बाद इसे पुनर्प्राप्त करेगी, जो गगनयान कार्यक्रम के विकास में एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि साबित होगा।
- गगनयान मिशन की स्थिति:
- गगनयान मिशन की समय सीमा फिलहाल 2024 या उसके बाद है, जिसमें जल्दबाज़ी से अधिक सुरक्षा पर ज़ोर दिया गया है। अगले वर्ष की शुरुआत में एक मानवरहित मिशन की योजना बनाई गई है और उसी वर्ष उसे निरस्त करने की भी योजना बनाई गई है।
- विभिन्न परिदृश्यों के आधार पर मानवयुक्त मिशन की शुरुआत वर्ष 2024 के अंत तक या या वर्ष 2025 के आरंभ तक हो सकती है।
- इसरो ने पहले ही महत्त्वपूर्ण रॉकेट घटकों के लिये मानव सुरक्षा रेटिंग हासिल कर ली है और क्रू एस्केप सिस्टम डिज़ाइन समय सीमा के भीतर अंतरिक्ष यात्रियों व सुरक्षा तंत्र सुनिश्चित करने हेतु बाध्य है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत के उपग्रह प्रक्षेपण यान के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. भारत का अपना अंतरिक्ष स्टेशन बनाने की क्या योजना है और इससे हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम को क्या लाभ होगा? (2019) |
शासन व्यवस्था
अग्निवीर हेतु ड्यूटी मुआवजे की सीमा
प्रिलिम्स के लिये:अग्निवीर को मुआवज़ा, अग्निपथ योजना, सेवा निधि, तीन सेवाएँ (सेना, नौसेना और वायु सेना), सशस्त्र बल युद्ध हताहत कोष। मेन्स के लिये:ड्यूटी के दौरान मृत्यु के बाद अग्निवीर को मुआवज़ा, केंद्र और राज्यों द्वारा आबादी के कमज़ोर वर्गों के लिये कल्याण योजनाएँ एवं इन योजनाओं का प्रदर्शन। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सियाचिन ग्लेशियर में ड्यूटी के दौरान एक अग्निवीर की मृत्यु हो गई, जिससे अग्निवीरों के परिवारों के लिये पेंशन और मुआवज़े की पात्रता को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया।
- वर्ष 2022 में सरकार ने तीनों सेवाओं (सेना, नौसेना और वायु सेना) में सैनिकों (अग्निवीरों) की भर्ती के लिये अग्निपथ योजना का अनावरण किया था।
अग्निवीर की मृत्यु के बाद मुआवज़े का वादा:
- सेवा निधि:
- अग्निवीर का परिवार कई प्रकार के मुआवज़ो का हकदार है जिसमें 48 लाख रुपए की गैर-अंशदायी बीमा राशि, मुआवज़े के रूप में 44 लाख रुपए और अग्निवीर द्वारा योगदान की गई सेवा निधि का 30% तथा सरकार द्वारा योगदान शामिल है।
- साथ ही इन रकमों पर ब्याज भी मिलता है।
- सशस्त्र बल युद्ध हताहत निधि:
- परिवार को मृत्यु की तारीख से शेष कार्यकाल के लिये 13 लाख रुपए से अधिक का भुगतान भी मिलता है, साथ ही सशस्त्र बल युद्ध हताहत कोष (Armed Forces Battle Casualty Fund) से 8 लाख रुपए का योगदान भी मिलता है।
- आर्मी वाइव्स वेलफेयर एसोसिएशन:
- तत्काल वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिये आर्मी वाइव्स वेलफेयर एसोसिएशन निकटतम परिजनों को 30,000 रुपए की पेशकश करता है।
अग्निपथ योजना:
- परिचय:
- यह देशभक्त व प्रेरित युवाओं को चार वर्ष की अवधि के लिये सशस्त्र बलों में सेवा करने की अनुमति देता है। इसके तहत युवा कम अवधि के लिये सेना में भर्ती हो सकेंगे।
- नई योजना के तहत लगभग 45,000 से 50,000 सैनिकों की वार्षिक भर्ती की जाएगी तथा अधिकांश केवल चार वर्षों में सेवा त्याग देंगे।
- पात्रता मापदंड:
- यह योजना केवल अधिकारी रैंक से नीचे के कर्मियों के लिये है (वे जो अधिकृत अधिकारियों के रूप में सेना में शामिल नहीं होते हैं)।
- सेना में सर्वोच्च पद कमीशन अधिकारी का होता है। वह भारतीय सशस्त्र बलों में एक विशेष रैंक रखते हैं। वे अक्सर राष्ट्रपति की संप्रभु शक्ति के अधीन आयोग में कार्य करते हैं तथा उन्हें आधिकारिक तौर पर देश की रक्षा करने का निर्देश दिया जाता है।
- इस योजना में 17.5 से 23 वर्ष के बीच के उम्मीदवार आवेदन करने के पात्र होंगे।
- यह योजना केवल अधिकारी रैंक से नीचे के कर्मियों के लिये है (वे जो अधिकृत अधिकारियों के रूप में सेना में शामिल नहीं होते हैं)।
- उद्देश्य:
- इसका उद्देश्य देशभक्त और प्रेरित युवाओं को 'जोश' और 'जज़्बे' के साथ सशस्त्र बलों में शामिल होने का अवसर प्रदान करना है।
- इससे भारतीय सशस्त्र बलों की औसत आयु में लगभग 4 से 5 वर्ष की कमी आने की उम्मीद है।
- इस योजना में परिकल्पना की गई है कि वर्तमान में सुरक्षा बलों के लिये औसत आयु 32 वर्ष है, जो अगले छह से सात वर्षों में घटकर 26 वर्ष हो जाएगी।
- अग्निवीरों के लिये लाभ:
- 4 वर्ष की सेवा पूरी होने पर अग्निवीरों को 11.71 लाख रुपए की एकत्रित 'सेवा निधि' प्रदान की जाएगी, जिसमें उनका अर्जित ब्याज भी शामिल होगा।
- साथ ही उन्हें चार वर्ष के लिये 48 लाख रुपए की जीवन बीमा सुरक्षा भी मिलेगी।
- मृत्यु के मामले में भुगतान 1 करोड़ रुपए से अधिक होगा, जिसमें सेवा की शेष अवधि का भी वेतन शामिल होगा।
- चार साल बाद नौकरी छोड़ने वाले सैनिकों के पुनर्वास में सरकार मदद करेगी।
अग्निवीरों से संबंधित चिंताएँ:
- दूसरी नौकरी मिलने में समस्याएँ:
- 'अग्निपथ' पहल अपने उद्घाटन वर्ष में सेना, नौसेना और वायु सेना में लगभग 45,000 कर्मियों की भर्ती का मार्ग प्रशस्त करती है।
- हालाँकि ये भर्तियाँ चार साल के अस्थायी अनुबंध पर काम करेंगी। अनुबंध के पूर्ण होने पर उनमें से 25% को नौकरी पर बरकरार रखा जाएगा, जबकि शेष सशस्त्र बलों से बाहर हो जाएंगे।
- कोई पेंशन लाभ नहीं:
- 'अग्निपथ' योजना के तहत कार्य पर रखे गए लोगों को चार साल का कार्यकाल समाप्त होने पर 11 लाख रुपए से कुछ अधिक की एकत्रित 'सेवा निधि’ दी जाएगी।
- हालाँकि उन्हें कोई पेंशन लाभ नहीं मिलेगा। अधिकांश लोगों के लिये अपने और अपने परिवार के भरण-पोषण हेतु दूसरी नौकरी की तलाश करना आवश्यक है।
- प्रशिक्षण अप्रयुक्त रह सकता है:
- सेनाएँ अनुभवी सैनिकों को खो देंगी।
- सेना, नौसेना और वायु सेना में शामिल होने वाले जवानों को तकनीकी प्रशिक्षण दिया जाएगा ताकि वे चल रहे ऑपरेशनों में सहयोग कर सकें।
- इस योजना के तहत अभी तक महिलाओं को शामिल नहीं किया गया है।
आगे की राह:
- सरकार को अग्निवीरों के लिये अनिवार्य लाइसेंसिंग नियमों में छूट पर विचार करना चाहिये ताकि उनमें से अधिक लोगों को व्यवसायिक इकाई शुरू करने में निवेश के लिये आकर्षित किया जा सके।
- इससे उद्यमशीलता के अवसर और आर्थिक विस्तार के दोहरे लाभ प्राप्त हो सकेंगे।
- अग्निवीरों के लिये जमा पर आकर्षक ब्याज दरें बचत को प्रोत्साहित करेंगी और बैंकों को लाभ पहुँचाएंगी।
- उन अग्निवीरों के लिये जो उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहते हैं, प्रवेश मानदंड में छूट (कट ऑफ आदि में छूट) एक प्रमुख आकर्षण साबित होगी।
- उच्च योग्य और अनुशासित अग्निवीरों के पास उपलब्ध पर्याप्त अवसरों का लाभ उठाने की क्षमता होगी।