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भारतीय राजनीति

संसद सदस्य की सदस्यता समाप्ति

  • 10 Jul 2023
  • 13 min read

प्रिलिम्स के लिये:

संसद सदस्य, जन प्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1951, चुनाव आचरण नियम 4A, जन प्रतिनिधित्त्व अधिनियम के तहत भ्रष्ट आचरण

मेन्स के लिये:

संसद सदस्य की सदस्यता समाप्त करना

चर्चा में क्यों?  

मद्रास उच्च न्यायालय ने वर्ष 2019 के थेनी संसदीय क्षेत्र के विजेता संसद सदस्य (सांसद) की सदस्यता को शून्य घोषित कर दिया है।

  • हालाँकि, न्यायालय ने अपील के लिये समय प्रदान करने हेतु अपने आदेश को एक महीने के लिये स्थगित कर दिया है।

पृष्ठभूमि: 

  • आरोप: 
    • याचिकाकर्त्ता ने आरोप लगाया कि उक्त सांसद चुनाव संचालन नियम, 1961 के नियम 4A के तहत दायर किये जाने वाले अपने चुनावी हलफनामे के फॉर्म 26 में अपनी वास्तविक संपत्ति और देनदारियों का खुलासा करने में विफल रहा है।
    • इसके अतिरिक्त, यह दावा किया गया कि उस प्रत्याशी ने जनप्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1951 की धारा 123 का उल्लंघन करते हुए वोटों के लिये नकदी के वितरण जैसे भ्रष्ट आचरण का सहारा लिया।
  • न्यायालय की टिप्पणी: 
    • उच्च न्यायालय ने पाया कि नामांकन की जाँच के लिये उत्तरदायी रिटर्निंग अधिकारी द्वारा जनप्रतिनिधित्त्व अधिनियम की धारा 36 और हैंडबुक में उल्लिखित निर्देशों का पालन नहीं किया गया।

चुनाव आचरण नियम, 1961: 

  • परिचय: 
    • चुनाव आचरण नियम, 1961 भारत में जन प्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1951 के तहत स्थापित नियमों का एक समूह है। इनमें देश में चुनावों के संचालन को नियंत्रित करते हैं और प्रत्याशीों, राजनीतिक दलों, चुनाव अधिकारियों तथा मतदाताओं द्वारा पालन किये जाने वाले दिशा-निर्देश तथा प्रक्रियाओं का वर्णन है।
    • इन नियमों में चुनावी प्रक्रिया के विभिन्न पहलु शामिल हैं, जिनमें नामांकन पत्र दाखिल करना, नामांकन की जाँच, चुनाव अभियान नियम, मतदान प्रक्रियाएँ, वोटों की गणना और चुनाव विवाद समाधान शामिल हैं।
  • नियम 4A: 
    • इसके तहत अपना नामांकन पत्र जमा करते समय प्रत्याशीों को उनकी संपत्ति और देनदारियों के बारे में कानूनी विवरण प्रदान करने के लिये एक हलफनामा (फॉर्म 26) रिटर्निंग ऑफिसर को देना अनिवार्य होता है।

जन प्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1951 के तहत भ्रष्ट आचरण: 

  • अधिनियम की धारा 123: 
    • RPA अधिनियम की धारा 123 के अनुसार, "भ्रष्ट आचरण" वह है जिसमें एक प्रत्याशी चुनाव जीतने की अपनी संभावनाओं को बेहतर बनाने के लिये कुछ इस प्रकार की गतिविधियों में शामिल हो जाते हैं, जिसके अंतर्गत रिश्वत, अनुचित प्रभाव, झूठी जानकारी, और धर्म, नस्ल, जाति, समुदाय या भाषा के आधार पर भारतीय नागरिकों के विभिन्न  वर्गों के बीच घृणा, "दुश्मनी की भावनाओं को बढ़ावा देना अथवा ऐसा प्रयास करना शामिल है।"
  • धारा 123(2): 
    • यह धारा 'अनुचित प्रभाव (undue influence)' से संबंधित है, जिसे "किसी भी चुनावी अधिकार के मुक्त अभ्यास के साथ प्रत्याशी (किसी परिस्थिति में प्रत्याशी द्वारा स्वयं अथवा कभी कभी उसके प्रतिनिधित्त्वकर्त्ताओं या संबद्ध व्यक्तियों) द्वारा किसी भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हस्तक्षेप के रूप में परिभाषित किया गया है।"
    • इसमें चोटिल करने/हानि पहुँचाने, सामाजिक अस्थिरता और किसी भी जाति अथवा समुदाय से निष्कासन की धमकी भी शामिल हो सकती है।
  • धारा 123(4):
    • यह चुनाव परिणामों को प्रभावित करने वाली भ्रामक जानकारी के प्रकाशन पर प्रतिबंध लगाने हेतु "भ्रष्ट आचरण" की परिभाषा को और व्यापक बनाता है।
    • अधिनियम के प्रावधानों के तहत एक निर्वाचित प्रतिनिधि को कुछ अपराधों हेतु जैसे- भ्रष्ट आचरण के आधार पर, चुनाव खर्च घोषित करने में विफल रहने पर और सरकारी अनुबंधों या कार्यों में संलग्न होने का दोषी ठहराए जाने पर अयोग्य घोषित किया जा सकता है।

RPA, 1951 के अंतर्गत  सांसद की अयोग्यता के अन्य प्रावधान 

  • उसे किसी भी अपराध जिसमें  दो या अधिक वर्षों की कारावास की सज़ा हो, के लिये दोषी नहीं ठहराया गया होगा। लेकिन निवारक निरोध कानून के अंतर्गत किसी व्यक्ति की हिरासत अयोग्यता नहीं है।
  • उसकी  सरकारी ठेकों, कार्यों या सेवाओं में कोई रुचि नहीं होनी चाहिये।
  • वह निदेशक या प्रबंध एजेंट नहीं होना चाहिये और न ही उसे किसी ऐसे निगम में लाभ का पद धारण करना चाहिये जिसमें सरकार की कम से कम 25% हिस्सेदारी हो।
  • उसे भ्रष्टाचार या राज्य के प्रति विश्वासघात के लिये सरकारी सेवा से बर्खास्त नहीं किया गया होगा।
  • उसे विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देने या रिश्वतखोरी के अपराध के लिये दोषी नहीं ठहराया गया होगा।
  • ऐसा व्यक्ति जिसे अस्पृश्यता, दहेज और सती जैसे सामाजिक अपराधों का प्रचार करने तथा उसकी वकालत करने के लिये दंडित नहीं होना चाहिये।. 

अतीत में न्यायालय ने जिन प्रथाओं को भ्रष्ट आचरण के रूप में माना: 

  • अभिराम सिंह बनाम सी.डी. कॉमाचेन केस: 
    • वर्ष 2017 में सर्वोच्च न्यायालय ने 'अभिराम सिंह बनाम सी.डी. कॉमाचेन मामले में माना कि धारा 123 (3) के अनुसार (जो इसे प्रतिबंधित करता है) अगर प्रत्याशी के धर्म, जाति, वंश, समुदाय या भाषा के नाम पर वोट मांगे जाते हैं तो चुनाव रद्द कर दिया जाएगा।
  • एस.आर बोम्मई बनाम भारत संघ (1994): 
    • सर्वोच्च न्यायालय ने RPA, 1951 की धारा 123 की उपधारा (3) का हवाला देते हुए निर्णय सुनाया कि धर्मनिरपेक्ष गतिविधियों में धर्म का अतिक्रमण कठोरता से प्रतिबंधित है।
  • एस. सुब्रमण्यम बालाजी बनाम तमिलनाडु राज्य (2022): 
    • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि मुफ्त सुविधाओं के वादे को भ्रष्ट आचरण नहीं कहा जा सकता।
    • हालाँकि, इस मामले पर अभी भी निर्णय होना शेष है।

जन-प्रतिनिधित्त्व अधिनियम:1951 

  • प्रावधान: 
    • यह चुनाव के संचालन को विनियमित करता है।
    • यह सदनों की सदस्यता के लिये योग्यताओं और अयोग्यताओं को निर्दिष्ट करता है,
    • यह भ्रष्ट आचरण और अन्य अपराधों पर अंकुश लगाने के प्रावधान प्रदान करता है।
    • यह चुनावों से उत्पन्न होने वाले संदेहों और विवादों को निपटाने की प्रक्रिया निर्धारित करता है।
  • महत्त्व: 
    • यह अधिनियम भारतीय लोकतंत्र के सुचारू कार्यप्रणाली के लिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों के प्रतिनिधि निकायों में प्रवेश पर रोक लगाता है, इस प्रकार भारतीय राजनीति को अपराधमुक्त कर देता है।
    • अधिनियम के अनुसार प्रत्येक प्रत्याशी को अपनी संपत्ति और देनदारियों की घोषणा करने के साथ ही चुनावीं व्यय का लेखा-जोखा रखना होगा। यह प्रावधान सार्वजनिक धन के उपयोग या व्यक्तिगत लाभ के लिये शक्ति के दुरुपयोग में प्रत्याशी की जवाबदेही और पारदर्शिता को भी सुनिश्चित करता है।
    • यह बूथ कैप्चरिंग, रिश्वतखोरी या दुश्मनी को बढ़ावा देने आदि जैसी भ्रष्ट प्रथाओं पर रोक लगाता है, जो चुनावों की वैधता एवं स्वतंत्र और निष्पक्ष आचरण सुनिश्चित करता है जो किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था की सफलता के लिये आवश्यक है।
    • अधिनियम में यह प्रावधान है कि केवल वे राजनीतिक दल जो  RPA अधिनियम, 1951 की धारा 29 A के अंर्तगत पंजीकृत हैं, चुनावी बाॅण्ड प्राप्त करने के पात्र हैं, इस प्रकार राजनीतिक फंडिंग के स्रोत का पता लगाने और चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये एक तंत्र प्रदान किया जाता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  d

प्रिलिम्स:

प्रश्न .1 निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021) 

  1. भारत में, ऐसा कोई कानून नहीं है जो प्रत्याशियों को किसी एक लोकसभा चुनाव में तीन निर्वाचन क्षेत्रों से लड़ने से रोकता है।
  2. 1991 के लोकसभा चुनाव में श्री देवीलाल ने तीन लोकसभा क्षेत्रों से चुनाव लड़ा था। 
  3. वर्तमान नियमों के अनुसार, यदि कोई प्रत्याशी किसी एक लोकसभा चुनाव में कई निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ता है, तो उसकी पार्टी को उन निर्वाचन क्षेत्रों के उप-चुनाव का खर्चा उठाना चाहिये जिन्हें उसने खाली किया है बशर्ते वह सभी निर्वाचन क्षेत्रों से विजयी हुआ हो ।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? 

(a) केवल 1 
(b) केवल 2
(c) 1 और 3
(d) 2 और 3 

उत्तर:(b) 

व्याख्या: 

  • वर्ष 1996 में लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम-1951 में संशोधन करके लोकसभा और विधानसभा चुनावों में एक प्रत्याशी द्वारा लड़ी जा सकने वाली सीटों की संख्या को 'तीन' के स्थान पर 'दो' तक सीमित कर दिया गया।अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • वर्ष 1991 में श्री देवीलाल ने लोकसभा की तीन- सीकर, रोहतक और फ़िरोज़पुर सीटों से चुनाव लड़ा। अतः कथन 2 सही है।
  • जब भी कोई प्रत्याशी एक से अधिक सीटों से चुनाव लड़ता है तथा एक से अधिक जीतता है, तो प्रत्याशी को केवल एक ही सीट बनाये रखनी होती है, जिससे बाकी सीटों पर उपचुनाव कराना पड़ता है। इसका परिणाम यह होता है,कि
  • परिणामी रिक्ति के विरुद्ध उपचुनाव कराने के लिये सरकारी व्यय, सरकारी कर्मचारीयों और अन्य संसाधनों पर एक अपरिहार्य वित्तीय बोझ पड़ता। अतः कथन 3 सही नहीं है।

अत: विकल्प (B) सही उत्तर है।


मेन्स:

प्रश्न. लोक प्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1951 के अंतर्गत संसद अथवा राज्य विधायिका के सदस्यों के चुनाव से उभरे विवादों के निर्णय की प्रक्रिया का विवेचन कीजिये। किन आधारों पर किसी निर्वाचित घोषित प्रत्याशी के निर्वाचन को शून्य घोषित किया जा सकता है? इस निर्णय के विरुद्ध पीड़ित पक्ष को कौन-सा उपचार उपलब्ध है? वाद विधियों का संदर्भ दीजिये। (2022) 

स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया

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