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भारतीय अर्थव्यवस्था

भारतीय रुपए का मूल्यह्रास

  • 02 Jan 2023
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय रुपए का अवमूल्यन , मुद्रा मूल्यह्रास, मुद्रास्फीति, मूल्यह्रास बनाम अवमूल्यन, अभिमूल्यन बनाम मूल्यह्रास

मेन्स के लिये:

अर्थव्यवस्था पर भारतीय रुपए के मूल्यह्रास का प्रभाव

चर्चा में क्यों? 

अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपए में लगभग 10% की गिरावट आई और रुपया वर्ष 2022 में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली एशियाई मुद्रा थी।

वर्ष 2022 में रुपए का प्रदर्शन:

  • वर्ष  के दौरान डॉलर के मुकाबले रुपया 83.2 के सर्वकालिक निचले स्तर पर आ गया। रुपए की तुलना में अन्य एशियाई मुद्राओं का मूल्यह्रास कुछ हद तक कम रहा। 
    • वर्ष के दौरान चीनी युआन, फिलीपीन पेसो और इंडोनेशियाई रुपिया में लगभग 9% गिरावट आई। दक्षिण कोरियाई वाॅन और मलेशियाई रिंगिट में क्रमशः लगभग 7% और 6% की गिरावट आई।
  • हालाँकि भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने रुपए का बचाव करने के लिये विदेशी मुद्रा बाज़ार में बड़ा हस्तक्षेप किया। वर्ष 2022 की शुरुआत से देश के विदेशी मुद्रा भंडार में 70 अरब डॉलर की गिरावट आई है। 23 दिसंबर, 2022 तक यह 562.81 अरब डॉलर था।
  • भंडार में थोड़ी कमी देखी गई है, लेकिन केंद्रीय बैंक अब फिर से अपने भंडार को बढ़ाना शुरू कर रहा है जो अनिश्चितता के समय में बफर के रूप में कार्य करेगा।

पूंजी बहिर्वाह का कारण:

  • अमेरिकी फेडरल रिज़र्व ने मुद्रास्फीति के खिलाफ अपनी लड़ाई में वर्ष 2022 में आक्रामक रूप से ब्याज़ दरों में 425 आधार अंक (BPS) की वृद्धि की। इससे अमेरिका एवं भारत के बीच ब्याज़ दरों में अंतर बढ़ गया तथा निवेशकों ने घरेलू बाज़ार से पैसा निकाल लिया और उच्च ब्याज़ दरों का लाभ प्राप्त करने के लिये अमेरिकी बाज़ार में निवेश करना शुरू कर दिया।
  • वर्ष 2022 में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) ने भारतीय बाज़ारों से 1.34 लाख करोड़ रुपए निकाले जो अब तक का सबसे अधिक वार्षिक शुद्ध बहिर्वाह है।
    • उन्होंने रुपए पर दबाव डालते हुए वर्ष 2022 में शेयर बाज़ारों से 1.21 लाख करोड़ रुपए और ऋण बाज़ार से 16,682 करोड़ रुपए निकाले।
  • रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण के कारण FPI निकासी में काफी बढ़ोतरी हुई, जबकि वैश्विक आर्थिक मंदी के कारण अंतर्वाह और कठिन हो गया। 

भारतीय रुपए के अवमूल्यन का प्रभाव:

  • सकारात्मक प्रभाव:  
    • सैद्धांतिक रूप से कमज़ोर रुपए को भारत के निर्यात को बढ़ावा देना चाहिये लेकिन अनिश्चितता और कमज़ोर वैश्विक मांग के माहौल में रुपए के मूल्य में बाहरी गिरावट उच्च निर्यात में परिवर्तित नहीं हो सकती है।  
  • नकारात्मक प्रभाव:   
    • यह आयातित मुद्रास्फीति का जोखिम उत्पन्न करता है और केंद्रीय बैंक के लिये ब्याज़ दरों को रिकॉर्ड स्तर पर लंबे समय तक बनाए रखना मुश्किल बना सकता है। 
    • भारत अपनी घरेलू तेल आवश्यकता के दो-तिहाई से अधिक की पूर्ति आयात के माध्यम से करता है। 
    • भारत खाद्य तेलों के शीर्ष आयातक देशों में से एक है। एक कमज़ोर मुद्रा आयातित खाद्य तेल की कीमतों को और अधिक बढ़ाएगी तथा उच्च खाद्य मुद्रास्फीति को बढ़ावा देगी।  

वर्ष 2023 हेतु रुपए का परिदृश्य:

  • भले ही निकट भविष्य में रुपए का परिदृश्य कमज़ोर रहने वाला है, स्थानीय मुद्रा में मूल्यह्रास लंबे समय के लिये नहीं रहने वाला है क्योंकि भारत सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के रुप में उभर रहा है।
  • हालाँकि यूएस फेड की टर्मिनल ब्याज़ दर का अनुमान लगाया गया था,  लेकिन उनकी मौद्रिक नीति के संबंध में सख्ती को अनिश्चितकाल तक नहीं रखा जा सकता है।
  • (यूएस फेड) सख्ती खत्म होने के साथ परिस्थितियों में बदलाव निश्चित रूप से अपेक्षित है

मुद्रा का अधिमूल्यन और अवमूल्यन: 

  • लचीली विनिमय दर प्रणाली (Floating Exchange Rate System) में बाज़ार की ताकतें (मुद्रा की मांग और आपूर्ति) मुद्रा का मूल्य निर्धारित करती हैं। 
  • मुद्रा अधिमूल्यन: यह किसी अन्य मुद्रा की तुलना में एक मुद्रा के मूल्य में वृद्धि है।
    • सरकार की नीति, ब्याज़ दर, व्यापार संतुलन और व्यापार चक्र सहित कई कारणों से मुद्रा के मूल्य में वृद्धि होती है।
    • मुद्रा अधिमूल्यन किसी देश की निर्यात गतिविधि को हतोत्साहित करता है क्योंकि विदेशों से वस्तुएँ खरीदना सस्ता हो जाता है, जबकि विदेशी व्यापारियों द्वारा खरीदी जाने वाली देश की वस्तुएँ महँगी हो जाती हैं।
  • मुद्रा अवमूल्यन: यह एक लचीली विनिमय दर प्रणाली में मुद्रा के मूल्य में गिरावट है। 
    • आर्थिक बुनियादी संरचना, राजनीतिक अस्थिरता या जोखिम से बचने के कारण मुद्रा अवमूल्यन हो सकता है। 
    • मुद्रा मूल्यह्रास देश की निर्यात गतिविधि को प्रोत्साहित करता है क्योंकि इससे वस्तु और सेवाएँ खरीदना सस्ता हो जाता है।

अवमूल्यन और मूल्यह्रास:

  • हालाँकि इन्हें लागू करने के तरीके में अंतर है।
  • सामान्य तौर पर अवमूल्यन और मूल्यह्रास प्रायः एक-दूसरे के स्थान पर उपयोग किये जाते हैं।
  • इन दोनों का एक ही प्रभाव है- मुद्रा के मूल्य में गिरावट जो आयात को अधिक महँगा बनाती है, और निर्यात को अधिक प्रतिस्पर्द्धी बनाती है।
  • अवमूल्यन तब होता है जब किसी देश का केंद्रीय बैंक अपनी विनिमय दर को एक निश्चित या अर्द्ध-स्थिर विनिमय दर के रूप में कम करने का निर्णय लेता है।
  • मूल्यह्रास तब होता है जब एक मुद्रा के मूल्य में अस्थायी विनिमय दर के कारण गिरावट होती है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रश्न. भारतीय रुपए के अवमूल्यन को रोकने के लिये सरकार/RBI द्वारा निम्नलिखित में से कौन सा सबसे संभावित उपाय नहीं है? (2019)

(a) गैर-आवश्यक वस्तुओं के आयात पर अंकुश लगाना और निर्यात को बढ़ावा देना।
(b) भारतीय उधारकर्त्ताओं को रुपया मूल्यवर्ग मसाला बॉण्ड जारी करने के लिये प्रोत्साहित करना।
(c) बाहरी वाणिज्यिक उधार से संबंधित शर्तों को आसान बनाना।
(d) विस्तारवादी मौद्रिक नीति का अनुसरण।

उत्तर: (d) 


प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

किसी मुद्रा के अवमूल्यन का प्रभाव यह होता है कि वह आवश्यक रूप से:

  1. विदेशी बाज़ारों में घरेलू निर्यात की प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार करता है। 
  2. घरेलू मुद्रा के विदेशी मूल्य को बढ़ाता है। 
  3. व्यापार संतुलन में सुधार करता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 3
(d) केवल 2 और 3

उत्तर: (a)  


प्रश्न. विश्व व्यापार में संरक्षणवाद और मुद्रा चालबाज़ियों की हाल की घटनाएँ भारत की समष्टि आर्थिक स्थिरता को किस प्रकार से प्रभावित करेंगी? (मुख्य परीक्षा, 2018)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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