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भारतीय अर्थव्यवस्था

चरणबद्ध विनिर्माण नीति

  • 20 Oct 2020
  • 18 min read

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में चरणबद्ध विनिर्माण नीति की आवश्यकता से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ:

हाल ही में इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) ने भारत को एक प्रमुख मोबाइल विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित करने हेतु उत्पादन से संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना (1 अप्रैल, 2020 को अधिसूचित बड़े पैमाने पर विनिर्माण के लिये) के लिये मोबाइल विनिर्माण क्षेत्र में 16 फर्मों को मंज़ूरी दी। इनमें पाँच घरेलू तथा पाँच विदेशी मोबाइल फोन निर्माता और छह घटक निर्माता कंपनियाँ शामिल हैं। PLI, चरणबद्ध विनिर्माण कार्यक्रम (PMP) की तर्ज पर तैयार किया गया है जो वर्ष 2016-17 से वर्ष  2019-20 के लिये शुरू हुआ था।

उत्‍पादन से संबद्ध प्रोत्‍साहन योजना:

(production-linked incentive-PLI) 

  • इस योजना में उत्‍पादन से संबद्ध प्रोत्‍साहन देने का प्रस्‍ताव किया गया है, ताकि घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा दिया जा सके और मोबाइल फोन के विनिर्माण तथा संयोजन , परीक्षण, मार्किंग एवं पैकेजिंग सहित विशिष्‍ट इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स कलपुर्जों के क्षेत्र में व्‍यापक निवेश आकर्षित किया जा सके।
  • इस योजना के तहत भारत में निर्मित वस्‍तुओं की वृद्धिशील बिक्री (Incremental Sales) पर पात्र कंपनियों को आधार वर्ष के बाद के पाँच वर्षों की अवधि के दौरान 4 से 6 प्रतिशत प्रोत्‍साहन राशि दी जाएगी।
  • प्रस्‍तावित योजना से मोबाइल फोन के विनिर्माण और विशिष्‍ट इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स कलपुर्जों के क्षेत्र में कार्यरत कंपनियों को काफी लाभ प्राप्त होगा जिससे देश में बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रॉनिक उत्पादन संभव हो सकेगा।
  • सरकार ने इस योजना पर लगभग 41000 करोड़ रुपए खर्च करने का प्रस्ताव किया है।
  • यह भारत में निर्माण के लिये वैश्विक बहुराष्ट्रीय कंपनियों जैसे कि एप्पल, सैमसंग, ओप्पो आदि को आकर्षित करेगा। घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देगी तथा मेक इन इंडिया के साथ एकीकृत होने के लिये इन कंपनियों को प्रोत्साहित करेगी ।

चरणबद्ध विनिर्माण कार्यक्रम (PMP) के बारे में:

  • PLI चरणबद्ध विनिर्माण कार्यक्रम (PMP) का अनुसरण करता है जिसे वर्ष 2016-17 में शुरू किया गया था।
  • इस चरणबद्ध निर्माण कार्यक्रम का उद्देश्य देश के भीतर मूल्य संवर्द्धन और क्षमता निर्माण में तीव्र वृद्धि करना है।
  • PMP का लक्ष्य भारत में "मज़बूत स्वदेशी मोबाइल विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र" की स्थापना के लिये अग्रणी मोबाइल फोन के निर्माण में स्थानीय रूप से खरीदे गए घटकों की हिस्सेदारी को बढ़ाना है।
  • यह इन सामान या घटकों के आयात पर मूल सीमा शुल्क को बढ़ाकर किया गया था। PMP को देश में मूल्यवर्द्धन में सुधार के उद्देश्य से लागू किया गया था।
  • इलेक्ट्रिक वाहनों के विनिर्माण में प्रयुक्त होने वाली बैटरी के आयात शुल्क में बढ़ोतरी करते हुए अप्रैल 2021 के बाद 5 से 15 प्रतिशत कर दिया जाएगा।
  • केंद्र सरकार FAME-II जैसी योजनाओं के माध्यम से इलेक्ट्रिक वाहनों के बड़े पैमाने पर अंगीकरण को भी बढ़ावा दे रही है।
  • PMP ने शुरू में कम मूल्य के सामान के निर्माण को प्रोत्साहित किया, और फिर उच्च मूल्य के घटकों के निर्माण को प्रोत्साहित किया।

भारत में मोबाइल निर्यात और आयात की स्थिति:

  • आँकड़े बताते हैं कि भारत के कुल इलेक्ट्रॉनिक्स आयात में चीन का कुल 45 प्रतिशत हिस्सा है। 
  • इनमें से कई उत्पाद भारतीय निर्माताओं द्वारा तैयार माल के उत्पादन में उपयोग किये जाते हैं, इस प्रकार चीन भारत की विनिर्माण आपूर्ति श्रृंखला में पूरी तरह से एकीकृत है।
    • उदाहरण के लिये, भारत में बनने वाले कुछ मोबाइल फोन के कुछ हिस्से ऐसे भी हैं, जिन्हें लगभग 90 प्रतिशत चीन से आयात किया जाता है।
  • हाल ही में, इंडिया सेल्युलर एंड इलेक्ट्रॉनिक्स एसोसिएशन के लिये अर्नस्ट एंड यंग द्वारा किये गए एक अध्ययन से पता चला है कि अगर मोबाइल फोन के उत्पादन की लागत 100 (बिना सब्सिडी के) मानी जाए तो मोबाइल फोन के निर्माण में प्रभावी लागत (सब्सिडी और अन्य लाभों के साथ) चीन में 79.55, वियतनाम  में 89.05 और भारत में (PLI सहित), 92.51 है।
  • इससे पता चलता है कि PLI नीति के तहत प्रोत्साहन एक परिवर्तनकारी  कदम नहीं हो सकता है और यह मोबाइल विनिर्माण के एक बड़े हिस्से को चीन से भारत में स्थानांतरित करने में भी सफल नहीं हो पाएगा।
  • यह भी उपयोगी है कि वर्ष 2005 के आसपास होने वाले मोबाइल फोन से संबंधित उद्योगों में होने वाले निवेश ने अपेक्षाकृत स्थानीय और कम मूल्य के निर्यात बाज़ारों को लक्षित किया, जो किसी प्रांत में आश्रयी मोबाइल निर्माताओं द्वारा भी अनुसरित किया जा रहा है।
  • आँकड़े बताते हैं कि यद्यपि भारत का मोबाइल निर्यात वर्ष 2018-19 में 1.6 बिलियन डॉलर से बढ़कर वर्ष 2019-20 में $ 3.8 बिलियन हो गया, किंतु प्रति यूनिट मूल्य क्रमशः 91.1 डॉलर से घटकर 87 डॉलर हो गया।
  • इस प्रकार, हमारी निर्यात प्रतिस्पर्द्धा में वृद्धि मोबाइलों के बिक्री मूल्य में कमी द्वारा होती है।
  • यह स्पष्ट है कि PLI नीति मोबाइल फोन के क्षेत्र में हमारी मौजूदा निर्यात प्रतिस्पर्द्धा को मज़बूत नहीं करती है और उच्च औसत बिक्री मूल्य वाले बाज़ारों से कम मात्रा में हैं।

भारत में आयात में वृद्धि और पीएमपी नीति में सीमा:

  • Apple, Xiaomi, Oppo और OnePlus जैसी फर्मों ने भारत में निवेश किया है, लेकिन ज्यादातर ने अपने अनुबंध निर्माताओं के माध्यम से निवेश किया है।
  • परिणामस्वरूप, उत्पादन 2016-17 में $ 13.4 बिलियन से बढ़कर 2019-20 में $ 31.7 बिलियन हो गया।
  • हालाँकि, उद्योग के वार्षिक सर्वेक्षण (एएसआई) के फैक्ट्री-स्तर के उत्पादन के आँकड़ों का विश्लेषण बताता है कि वर्ष 2017-18 में सर्वेक्षण की गई फर्मों के लिये मूल्यवर्द्धन (दो आउटलेयर को छोड़कर) 1.6% से 17.4% तक था, जिनमें से अधिकांश कंपनियां 10% से नीचे थीं। 
  • जिन फर्मों का सर्वेक्षण किया गया था उनमें से अधिकांश में 85% से अधिक निवेशित वस्तुएँ आयात की गई थीं।
  • भारत, चीन, वियतनाम, कोरिया और सिंगापुर (2017-2019) के लिये संयुक्त राष्ट्र के आँकडों से पता चलता है कि भारत को छोड़कर सभी देशों ने आयात की तुलना में अधिक मोबाइल के भागों का निर्यात किया, जो उन सुविधाओं की उपस्थिति को इंगित करता है जो इन भागों के निर्यात करने से पहले इनमें मूल्यवर्द्धन करते हैं।
  • वर्ष 2019 में उसके मोबाइल के पुर्जों का आयात, निर्यात का 25 गुना था।
  • इसलिये, जबकि PMP नीति ने घरेलू उत्पादन के मूल्य में वृद्धि की, स्थानीय मूल्यवर्द्धन में भी सुधार देखा गया है।

भारत की PMP नीति और विश्व व्यापार संगठन (WTO) में टैरिफ का मुद्दा:

  • सितंबर 2019 में, चीनी ताइपे ने PMP के तहत शुल्कों में वृद्धि का विरोध किया।
  • यदि PMP को WTO द्वारा गैर-अनुपालन योग्य पाया जाता है, तो हमारे देश में मोबाइल फोन के आयात की बाढ़ आ सकती है जो मोबाइल फोन के स्थानीय संयोजन को अनाकर्षक बना सकता है।
  • यह PMP के तहत किये गए मोबाइल निवेश के संचालन को भी प्रभावित कर सकता है।
  • बीते वर्ष मई माह में, जापान और ताइवान ने विश्व व्यापार संगठन (WTO) में भारत के विरुद्ध कुछ इलेक्ट्रॉनिक सामानों पर लगाए गए आयात शुल्क को लेकर एक मामला दर्ज कराया था और परामर्श (Consultations) की मांग की थी।
    • इन देशों द्वारा जिन उत्पादों के संबंध में मामला दर्ज किया गया था, उनमें टेलीफोन; ट्रांसमिशन मशीनें और टेलीफोन आदि के कुछ कलपुर्जे शामिल हैं।
  • इन देशों ने आरोप लगाया है कि भारत द्वारा इन उत्पादों पर आयात शुल्क लगाने से विश्व व्यापार संगठन के मानदंडों का उल्लंघन होता है क्योंकि भारत ने इन उत्पादों पर शून्य प्रतिशत बाध्य शुल्क (Bound Tariffs) की प्रतिबद्धता व्यक्त की है।
    • बाध्य शुल्क (Bound Tariffs) का अभिप्राय उस अधिकतम शुल्क सीमा से होता है, जिससे अधिक आयात शुल्क विश्व व्यापार संगठन (WTO) के सदस्यों द्वारा नहीं लगाया जा सकता है।

भारत में आयात में वृद्धि से संबंधित समस्याएँ :

ग्लोबल वैल्यू चेन (GVC) में भागीदारी का निम्न स्तर: पूर्व और दक्षिण पूर्व एशिया के प्रमुख निर्यातक देशों की तुलना में GVC में भारत की भागीदारी कम रही है।

  • इसके विपरीत, चीन से पूंजी गहन उत्पादों के निर्यात में वृद्धि मुख्य रूप से GVC में इसकी भागीदारी से प्रेरित है।
  • 1990 के दशक के बाद से चीन की निर्यात प्रोत्साहन नीतियों ने GVC के भीतर अपने घरेलू उद्योगों को एकीकृत करने की रणनीति पर बहुत अधिक कार्य किया है।
  • GVC में कम भागीदारी के कारण भारत के निर्यात की भौगोलिक दिशा में अनुपातहीन बदलाव हुआ है, जो पारंपरिक रूप से समृद्ध देश के बाजारों से अफ्रीकी देशों में स्थानांतरित हो गया है।

चीन से मोबाइल उद्योग के स्थानांतरण की संभावना नहीं है: 

भारतीय बाज़ार पर हावी होने वाली चीनी कंपनियाँ PLI नीति का हिस्सा नहीं है।

  • इस प्रकार, उनका क्षमता विस्तार, यदि कोई हो, इसके अतिरिक्त होगा। भारत ने वर्ष 2018-19 के लिये लगभग 29 करोड़ यूनिट मोबाइल फोन का उत्पादन किया; इनमें से 94% घरेलू बाज़ार में बेचे गए, शेष निर्यात किये गए।

भारत द्वारा स्थिति में सुधार हेतु किये गए अन्य प्रयास 

केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा देश में इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्लस्टरों को प्रोत्साहन देने से संबंधित योजना  को मंज़ूरी दी गई है।

  • इस योजना का उद्देश्‍य इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स विनिर्माण क्‍लस्‍टरों के माध्यम से विश्‍वस्‍तरीय अवसंरचना के साथ-साथ साझा सुविधाओं को विकसित करना है। 
  • इस योजना के तहत मैदानी इलाकों में न्यूनतम 200 एकड़ क्षेत्र में फैले हुए इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्लस्टर्स और पहाड़ियों एवं पूर्वोत्तर क्षेत्रों में न्यूनतम 100 एकड़ में फैले हुए इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्लस्टर्स को 70 करोड़ रुपए प्रति 100 एकड़ की दर से वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी।
  • इसके अलावा इस योजना में साझा सुविधा केंद्र (Common Facility Centre) के लिये उनकी परियोजना लागत का 75 प्रतिशत तक वित्त पोषण करने का प्रावधान है, जो कि 75 करोड़ रुपए से अधिक नहीं होगा।
  • इस योजना का कुल परिव्‍यय 8 वर्ष की अवधि के दौरान 3762.25 करोड़ रुपए है।

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इलेक्ट्रॉनिक घटकों और सेमीकंडक्टरों के विनिर्माण के संवर्द्धन योजना के तहत इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद की आपूर्ति श्रृंखला का गठन करने वाली वस्तुओं के विनिर्माण हेतु पूंजीगत व्यय का 25 प्रतिशत वित्तीय प्रोत्साहन देने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दी है।

  • इस योजना से इलेक्ट्रॉनिक घटकों और सेमीकंडक्टरों की घरेलू विनिर्माण के लिये अक्षमता को दूर करने के अलावा देश में इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण पारिस्थितिकी को मज़बूत बनाने में भी मदद मिलेगी।
  • इस योजना की कुल लागत लगभग 3,285 करोड़ रुपए है।

निष्कर्ष :

  • वर्ष 2016-17 से PMP नीति, उद्योग में घरेलू मूल्यसंवर्द्धन को बढ़ाने में मददगार रही है, हालाँकि  उत्पादन के मूल्य में काफी विस्तार हुआ है।
  • चूँकि टैरिफ सुरक्षा के डब्ल्यूटीओ के नियमों से विरोध की स्थिति में हो सकते हैं, इसलिये नए PLI का लक्ष्य घरेलू उत्पादन की वृद्धि पर है, न कि मूल्यवर्द्धन पर।
  • PLI नीति ने घरेलू विनिर्माण शुरू करने के लिये छह घटक निर्माताओं को अलग से लाइसेंस दिया है। लेकिन यह सफल नहीं हो सकता है क्योंकि संयोजक और घटक निर्माता एक साथ चलते हैं।
  • इस दिशा में पहला कदम PLI नीति के तहत चुनी गई विदेशी कंपनियों को देश में अपनी आपूर्ति पारिस्थितिकी तंत्र को स्थापित करने के लिये प्रोत्साहित करना हो सकता है।
  • नई PLI नीति, वृद्धिशील निवेश और निर्मित वस्तुओं की बिक्री की सीमा के लिये प्रोत्साहन प्रदान करती है; यह सीमा विदेशी और घरेलू मोबाइल फर्मों के लिये अलग-अलग हैं।
  • इस प्रकार, घरेलू उत्पादन के बढ़ते मूल्य पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, न कि स्थानीय मूल्य संवर्द्धन पर।

आगे की राह:  इलेक्ट्रोनिक वस्तुओं के लगातार बढ़ते हुए आयात के चलते भारत व्यापार घाटे की स्थिति में जा रहा है और चालू खाता घाटे में भी लगातार वृद्धि हो रही है। चूँकि मोबाइल फोन की मांग लगातार बढ़ रही है अतः सरकार को ऐसी नीतियों को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है जो भारत में ही उच्च गुणवत्ता के मोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं के निर्माण को प्रोत्साहन दें ताकि स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा मिले और भारत का बाज़ार चीन जैसे देशों के प्रभाव में न रहे।

अभ्यास प्रश्न:  प्रायः लोग चीनी कंपनी से खरीदे गए अपने किसी फोन द्वारा चीनी वस्तुओं के बहिष्कार का संदेश प्रसारित करते हैं। इसकी औचित्यता पर विचार करते हुए मोबाइल विनिर्माण के क्षेत्र में भारत की स्थिति स्पष्ट कीजिये।

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