प्रौद्योगिकी
लखवार बहुउद्देश्यीय परियोजना
चर्चा में क्यों?
नितिन गडकरी ने देहरादून के नज़दीक यमुना पर लखवार बहुउद्देश्यीय परियोजना के निर्माण के लिये छह राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये।
प्रमुख बिंदु
- इस परियोजना में छह राज्य - उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली शामिल है।
- उक्त सभी छह राज्यों को इस परियोजना से नदी के प्रवाह, पेयजल, सिंचाई और बिजली की सुविधा का लाभ प्राप्त होगा।
- उल्लेखनीय है कि यमुना को प्रदूषण मुक्त करने के लिये स्वच्छ गंगा मिशन के अंतर्गत वर्तमान में यमुना नदी पर 34 परियोजनाएँ चलाई जा रही हैं।
- इस परियोजना के पूरा हो जाने पर इन सभी राज्यों में पानी की कमी की समस्या का समाधान होगा, क्योंकि इससे यमुना नदी में हर वर्ष दिसंबर से मई/जून तक सूखे मौसम में पानी के बहाव में सुधार आएगा।
क्या है लखवार परियोजना?
- लखवार परियोजना को पूर्व में 1976 में मंजूरी दी गई थी, लेकिन इस परियोजना पर कार्य 1992 में रोक दिया गया था।
- लखवार परियोजना के अंतर्गत उत्तराखंड में देहरादून ज़िले के लोहारी गाँव के नज़दीक यमुना नदी पर 204 मीटर ऊँचा कंक्रीट का बांध बनाना प्रस्तावित है।
- उल्लेखनीय है कि बांध की जल संग्रहण क्षमता 330.66 MCM होगी और इससे 33,780 हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई की जा सकेगी तथा यमुना बेसिन क्षेत्र वाले छह राज्यों में घरेलू एवं औद्योगिक इस्तेमाल और पीने के लिये 78.83 MCM पानी उपलब्ध कराया जा सकेगा।
- इस परियोजना से 300 मेगावाट बिजली का उत्पादन होगा।
- इस परियोजना के निर्माण का कार्य उत्तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड द्वारा किया जाएगा।
- स्वच्छ गंगा मिशन के अंतर्गत यमुना नदी में प्रदूषण को दूर करने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है और इस नदी पर 34 परियोजनाओं को प्रारंभ किया जा रहा है, जिनमें से 12 दिल्ली में हैं, जो सुनिश्चित करेंगी कि हरियाणा और राजस्थान को जाने वाला पानी निर्मल हो।
- हालाँकि, लखवार परियोजना सभी छह राज्यों को पर्याप्त पानी प्रदान करेगी किंतु नमामि गंगे कार्यक्रम के अंतर्गत यह सुनिश्चित किया जाएगा कि यमुना में प्रदूषण को दूर करने का दोहरा उद्देश्य पूरा हो सके।
- लखवार परियोजना न केवल पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करेगी, बल्कि इससे सभी छह राज्यों में सिंचाई, बिजली उत्पादन और पेयजल की जरूरतों को पूरा करने में मदद मिलेगी।
- लखवार परियोजना की कुल 3,966.51 करोड़ रुपए की लागत में से उत्तराखंड सरकार बिजली के 1,388.28 करोड़ रुपए का खर्च उठाएगी।
- इस परियोजना के पूरा होने पर बिजली का पूरा फायदा उत्तराखंड को मिलेगा।
- इस परियोजना से जुड़े सिंचाई और पीने के पानी की व्यवस्था वाले हिस्से के कुल 2,578.23 करोड़ रुपए के खर्च का 90 प्रतिशत (2320.41 करोड़ रुपए) केंद्र सरकार वहन करेगी, जबकि शेष 10 प्रतिशत खर्च को छह राज्यों के बीच बाँट दिया जाएगा।
- इसमें हरियाणा को 123.29 करोड़ रुपए (47.83%) उत्तर प्रदेश/ उत्तराखंड को 86.75 करोड़ रुपए (33.65%), राजस्थान को 24.08 करोड़ रुपए (9.34%), दिल्ली को 15.58 करोड़ रुपए (6.04%) तथा हिमाचल प्रदेश को 8.13 करोड़ रुपए (3.15%) देने होंगे।
- लखवार परियोजना के तहत संग्रहीत जल का बँटवारा यमुना के बेसिन क्षेत्र वाले छह राज्यों के बीच 12 मई, 1994 को किये गये समझौता ज्ञापन की व्यवस्थाओं के अनुरूप होगा।
ऊपरी यमुना नदी बोर्ड क्या है?
- लखवार बांध के जलाशय का नियमन ऊपरी यमुना नदी बोर्ड के ज़रिये किया जाएगा।
- गौरतलब है कि उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली छह ऊपरी यमुना बेसिन राज्य हैं।
- ऊपरी यमुना से तात्पर्य यमुना नदी का उसके उद्भव से दिल्ली में ओखला बैराज तक है।
- छह राज्यों ने यमुना नदी के ऊपरी बहाव के आवंटन के संबंध में 12 मई, 1994 को एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये थे।
- इस समझौते में ऊपरी यमुना बेसिन में जल संग्रहण की सुविधा सृजित करने की आवश्यकता को पहचाना गया है, जिसके परिणामस्वरूप नियंत्रित तरीके से मानसून के दौरान नदी के पानी के बहाव का संरक्षण और उसका इस्तेमाल किया जा सके।
जैव विविधता और पर्यावरण
पोषक तत्त्वों में कमी का कारण कार्बन डाईऑक्साइड
चर्चा में क्यों?
हाल में एक शोध से यह उजागर हुआ है कि कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) के स्तर में वृद्धि होने से चावल और चावल जैसे मुख्य फसलों की पौष्टिकता में कमी आई है। इसके मुताबिक फसलों में पोषक तत्त्वों की कमी के कारण यह सन 2050 तक लाखों भारतीयों के लिये संकट उत्पन्न कर सकता है।
प्रमुख बिंदु:
- शोध के मुताबिक मानव गतिविधियों के कारण कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) के स्तर में वृद्धि होने के परिणामस्वरूप इस शताब्दी के मध्य तक विश्वभर में लगभग 175 मिलियन आबादी जस्ते की कमी और लगभग 122 मिलियन आबादी के प्रोटीन की कमी से ग्रस्त होने की संभावना है।
- अध्ययन में पाया गया है कि एक अरब से भी अधिक महिलाएँ और बच्चों में आहार से प्राप्त होने वाले आयरन की कमी हो सकती है जो एनीमिया और अन्य बीमारियों चलते इन्हें के जोखिम में डाल सकता है।
- यह भी पाया गया है कि भारत लगभग 50 मिलियन लोगों में जिंक की कमी के साथ सबसे बड़ा बोझ उठाएगा। प्रोटीन की कमी की वजह से भारत में 38 मिलियन लोगों पर जोखिम बन हुआ है और 502 मिलियन महिलाएँ और बच्चे आयरन की कमी से होने वाली बीमारियों के प्रति संवेदनशील हैं।
- दक्षिण एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया, अफ्रीका और मध्य पूर्व के अन्य देशों पर भी काफी प्रभाव पड़ने की संभावना है।
- वर्तमान में दुनिया भर में दो अरब से अधिक लोगों में एक या अधिक पोषक तत्त्वों की कमी होने का अनुमान है।
- आमतौर पर मनुष्य को अधिकांश पोषक तत्त्वों की प्राप्ति पौधों से होती है। आहार प्रोटीन का 63 प्रतिशत, जिंक का 68 प्रतिशत और साथ ही 81 प्रतिशत आयरन वनस्पतियों से ही प्राप्त होता है।
- इस तरह से यह देखा गया है कि वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड के उच्च स्तर की वजह से फसलों में पौष्टिक तत्त्वों की मात्रा में कमी आई है।
- उल्लेखनीय है कि वर्तमान वायुमंडलीय परिस्थिति जिसमें कार्बन डाइऑक्साइड 400 PPM (parts per million) से कुछ अधिक है की अपेक्षा 550 PPM वाले कार्बन डाईऑक्साइड वाले वातावरण में फसल उगाने से प्रोटीन, लौह और जस्ते की सांद्रता 3-17 फीसदी कम होती है।
निष्कर्ष
इस तरह शोध में यह भी कहा गया है कि वर्तमान में पौष्टिक तत्त्वों की कमी के शिकार लोगों को भविष्य में परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। अतः यह स्पष्ट है कि हम अपने स्वास्थ्य पर अप्रत्याशित प्रभाव डाले बिना लाखों वर्षों से अनुकूलित जैव-भौतिक तंत्र को अव्यवस्थित नहीं कर सकते हैं।
भारतीय राजव्यवस्था
धार्मिक ग्रंथों का अपमान करने पर आजीवन कारावास
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पंजाब विधानसभा ने सर्वसम्मति से सभी धार्मिक ग्रंथों का अपमान करने के खिलाफ आजीवन कारावास की सज़ा का प्रावधान करने के लिये भारतीय दंड संहिता और आपराधिक प्रक्रिया संहिता में संशोधन हेतु विधेयक पारित कर दिया है।
प्रमुख बिंदु
- भारतीय दंड संहिता (पंजाब संशोधन) विधेयक, 2018 के तहत धारा 295 AA को समाहित किया गया है।
- इसके अंतर्गत यदि किसी व्यक्ति द्वारा गुरु ग्रंथ साहब, श्रीमद्भगवद्गीता, पवित्र कुरान, पवित्र बाइबिल या अन्य किसी भी धार्मिक ग्रंथ को जानबूझ कर क्षति, नुकसान और आघात पहुँचाया जाता है जिससे लोगों की धार्मिक भावना आहत होती है तो ऐसे व्यक्ति को आजीवन कारावास की सज़ा से दंडित किया जाएगा।
निवारक कार्रवाई
- पंजाब सरकार ने राज्य में हाल के दिनों में घटित कुछ घटनाओं जिसमें पवित्र धार्मिक ग्रंथों को क्षति पहुँचाकर राज्य की शांति और सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने का प्रयास किया गया, को देखकर यह कदम उठाया है।
- इस तरह पंजाब सरकार का यह कदम राज्य में शांति व सहिष्णुता को कायम करने के मार्ग में एक निवारक कार्रवाई के रूप में है।
प्रौद्योगिकी
गगनयान-भारत का पहला मानव अंतरिक्ष कार्यक्रम
चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री ने अपने स्वतंत्रता दिवस संबोधन के दौरान ‘गगनयान-भारत का पहला मानव अंतरिक्ष कार्यक्रम’ की घोषणा की थी। इसी संदर्भ में इसरो के अध्यक्ष डॉ. के. शिवान ने कहा कि इसरो इस कार्य को तय समयावधि में पूरा करने में सक्षम है।
प्रमुख बिंदु
- इस कार्यक्रम के साथ भारत मानव अंतरिक्ष यान मिशन शुरू करने वाला दुनिया का चौथा देश बन जाएगा। उल्लेखनीय है कि अब तक केवल अमेरिका, रूस और चीन ने मानव अंतरिक्ष यान मिशन शुरू किया है।
- इसरो के अनुसार यह अब तक का काफी महत्त्वाकांक्षी अंतरिक्ष कार्यक्रम है, क्योंकि इससे देश के अंदर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विकास को बढ़ावा मिलेगा।
- यह देश के युवाओं को भी बड़ी चुनौतियाँ लेने के लिये प्रेरित करेगा और देश की प्रतिष्ठा को बढ़ाने में भी सहयोग करेगा।
- इसरो के अध्यक्ष ने चन्द्रयान-2 के लॉन्च के विषय में कहा कि अब इसे जनवरी 2019 में लॉन्च किया जाएगा।
- इसरो का लक्ष्य मार्च, 2019 तक 19 मिशन लॉन्च करना है।
- उल्लेखनीय है कि इन मिशनों में डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के लिये भी 4 उपग्रह लॉन्च करना शामिल है।
इसरो द्वारा प्रस्तुत विवरण
- इसरो ने इस कार्यक्रम के लिये आवश्यक पुन: प्रवेश मिशन क्षमता, क्रू एस्केप सिस्टम, क्रू मॉड्यूल कॉन्फ़िगरेशन, तापीय संरक्षण व्यवस्था, मंदन एवं प्रवर्तन व्यवस्था, जीवन रक्षक व्यवस्था की उप-प्रणाली इत्यादि जैसी कुछ महत्त्वपूर्ण तकनीकों का विकास कर लिया है।
- इन प्रौद्योगिकियों में से कुछ को अंतरिक्ष कैप्सूल रिकवरी प्रयोग (SRE-2007), क्रू मॉड्यूल वायुमंडलीय पुन: प्रवेश प्रयोग (CARE-2014) और पैड एबॉर्ट टेस्ट (2018) के माध्यम से सफलतापूर्वक प्रदर्शित किया गया है।
- ये प्रौद्योगिकियाँ इसरो को 4 साल की छोटी अवधि में कार्यक्रम के उद्देश्यों को पूरा करने में सक्षम बनाएगी।
- गगनयान को लॉन्च करने के लिये GSLVMK-3 लॉन्च व्हिकल का उपयोग किया जाएगा, जो इस मिशन के लिये आवश्यक पेलोड क्षमता से परिपूर्ण है।
- अंतरिक्ष में मानव भेजने से पहले दो मानव रहित गगनयान मिशन को भेजा जाएगा।
- 30 महीने के भीतर पहली मानव रहित उड़ान के साथ ही कुल कार्यक्रम के 2022 से पहले पूरा होने की उम्मीद है।
- मिशन का उद्देश्य पाँच से सात वर्षों के लिये अंतरिक्ष में तीन सदस्यों का एक दल भेजना है।
- इस अंतरिक्ष यान को 300-400 किलोमीटर की निम्न पृथ्वी कक्षा (Low Earth Orbit) में रखा जाएगा।
- कुल कार्यक्रम की लागत 10,000 करोड़ रुपए से कम होगी।
गगनयान
- इसमें एक चालक दल मॉड्यूल, सेवा मॉड्यूल और कक्षीय मॉड्यूल शामिल होगा जिसका वज़न लगभग 7 टन होगा और इसे एक रॉकेट द्वारा भेजा जाएगा।
- चालक दल मॉड्यूल का आकार 3.7 मीटर x 7 मीटर होगा।
गगनयान मिशन के उद्देश्य
- इससे देश में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के स्तर में वृद्धि होगी।
- यह एक राष्ट्रीय परियोजना है, जिसमें कई संस्थान, अकादमिक और उद्योग शामिल हैं।
- यह औद्योगिक विकास में सुधार तथा युवाओं के लिये प्रेरणास्रोत साबित होगा।
- इससे सामाजिक लाभ के लिये प्रौद्योगिकी का विकास तथा अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में सुधार होगा।
प्रारंभिक परीक्षा
प्रीलिम्स फैक्ट्स : 29 अगस्त, 2018
हस्तसाल मीनार
- हस्तसाल की लाट या मीनार का निर्माण मुगल सम्राट शाहजहाँ द्वारा 17वीं शताब्दी में बनवाया गया था।
- यह मीनार दिल्ली के निकट हस्तसाल गाँव में स्थित है।
- इस मीनार का उपयोग शिकारखाना के रूप किया जाता था।
- हस्तसाल मीनार के निर्माण में लखोरी ईंट का प्रयोग किया गया है। यह एक ऊपर उठे हुए मंच पर 16.87 मीटर ऊँची तीन मंजिला मीनार है। प्रत्यके मीनार का व्यास निचले मंज़िल से कम है, जहाँ तक संकीर्ण सीढ़ियों के माध्यम से पहुँचा जा सकता है।
- कुतुबमीनार की भाँति ही मीनार का प्रत्येक मंज़िल अष्टकोणीय अंगूठी से घिरा है साथ ही लाल बलुआ पत्थर से निर्मित छज्जा भी लगा हुआ है।
- उल्लेखनीय है कि इसे ‘मिनी क़ुतुब मीनार’ भी कहा जाता है।
- कला एवं सांस्कृतिक विरासत के लिये भारतीय राष्ट्रीय ट्रस्ट (INTACH) द्वारा मीनार की पुनर्स्थापना के लिये विस्तृत योजना तैयार की गई है।
कला एवं सांस्कृतिक विरासत के लिये भारतीय राष्ट्रीय ट्रस्ट (INTACH)
- यह सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत पंजीकृत एक गैर-लाभकारी धर्मार्थ संगठन है।
- इसे भारत में विरासत जागरूकता और संरक्षण का नेतृत्व करने के दृष्टिकोण से 1 9 84 में नई दिल्ली में स्थापित किया गया था।
- वर्ष 2007 में, संयुक्त राष्ट्र ने इसे संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद के साथ एक विशेष सलाहकार दर्जे से सम्मानित किया था।
- रूस सितंबर माह (11-15 सितंबर) में पिछले चार दशकों में सबसे बड़े युद्धाभ्यास आयोजित करने की योजना बना रहा है। इस युद्धाभ्यास में चीनी और मंगोलियाई सेनाएँ भी शामिल होंगी।
- वोस्टोक – 2018 या पूर्व – 2018 नामक यह युद्धाभ्यास केंद्रीय और पूर्वी रूसी सैन्य ज़िलों में आयोजित होगा और इस अभ्यास में लगभग 300,000 सैनिक, 1000 से अधिक सैन्य विमान, दो रूसी नौसेना बेड़े और इसके सभी हवाई फौज इकाइयाँ शामिल होगी।
- उल्लेखनीय है कि सोवियत संघ द्वारा सन 1981 में ‘जापद- 81’ नामक अभ्यास आयोजित किया गया था। यह सोवियत संघ का सबसे बड़ा युद्धाभ्यास था जिसमें लगभग 100,000 से 150,000 सैनिकों से भाग लिया था।
- यह फसल कटाई के दौरान मनाया जाने वाला त्योहार है जो असम राज्य में प्रत्येक पाँच साल की अवधि में एक बार मनाया जाता है।
- इस त्योहर में विभिन्न समुदाय के लोग समाज की समृद्धि एवं कल्याण तथा अच्छी फसल की कामना के लिये एकत्रित होते हैं।
- संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन (FAO) चीन से दक्षिण पूर्व एशिया या कोरियाई प्रायद्वीप तक अफ्रीकी स्वाइन फीवर के फैलने की चेतावनी ज़ारी किया है।
- चीन ने एक महीने से भी कम समय में अपने चार प्रांतों में अत्यधिक संक्रामक बीमारी के प्रसार की सूचना दी है।
- अफ्रीकी स्वाइन बुखार घरेलू सूअरों की एक बेहद संक्रामक तीव्र रक्तस्राव वाली बीमारी है।
- यह बीमारी टिक द्वारा प्रसारित होती है।
- इस बीमारी के प्रसार को रोकने के लिये कोई औषधि या टीका नहीं है, इसके लिए एकमात्र ज्ञात विधि संक्रमित पशुधन को बड़े पैमाने पर मारना है।
- अफ्रीकी स्वाइन बुखार मनुष्यों के लिए कोई प्रत्यक्ष खतरा उत्पन्न नहीं करता है।