डेली न्यूज़ (16 Jul, 2024)



शासन में शुचिता

Probity in Governance

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नीति आयोग ने जारी किया SDG इंडिया इंडेक्स 2023-24

प्रिलिम्स के लिये:

नीति आयोग, संयुक्त राष्ट्र, सतत् विकास लक्ष्य , एसडीजी इंडिया इंडेक्स, उज्ज्वला योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना, जल जीवन मिशन, प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT), नवीकरणीय ऊर्जा, स्किल इंडिया मिशन, प्रधानमंत्री मुद्रा योजना

मेन्स के लिये:

सतत् विकास लक्ष्य, सरकारी पहल, सतत् विकास लक्ष्यों के प्रति भारत का दृष्टिकोण

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों? 

NITI (नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया) आयोग ने वर्ष 2023-24 के लिये अपना नवीनतम सतत् विकास लक्ष्य (SDG) भारत सूचकांक (इंडिया इंडेक्स) जारी किया है, जो भारत के राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में सतत् विकास में महत्त्वपूर्ण प्रगति दर्शाता है।

SDG इंडिया इंडेक्स क्या है?

  • परिचय: SDG इंडिया इंडेक्स नीति आयोग द्वारा विकसित एक उपकरण है, जो संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित सतत् विकास लक्ष्य के प्रति भारत की प्रगति को मापने और ट्रैक करने के लिये है। 
    • सूचकांक सतत् विकास लक्ष्यों के स्थानीयकरण का समर्थन करता है तथा राज्यों को इन लक्ष्यों को अपनी विकास योजनाओं में एकीकृत करने के लिये प्रोत्साहित करता है।
    • यह नीति निर्माताओं के लिये अंतराल की पहचान करने तथा वर्ष 2030 तक सतत् विकास प्राप्त करने की दिशा में कार्यों को प्राथमिकता देने के लिये एक बेंचमार्क के रूप में कार्य करता है।
  • कार्यप्रणाली: यह सूचकांक राष्ट्रीय प्राथमिकताओं से जुड़े संकेतकों का उपयोग करके 16 सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) के अंतर्गत राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के प्रदर्शन का आकलन करता है।
    • SDG इंडिया इंडेक्स राष्ट्रीय संकेतक ढाँचे (National Indicator Framework) से जुड़े 113 संकेतकों का उपयोग करके राष्ट्रीय प्रगति को मापता है।
    • 16 सतत् विकास लक्ष्यों के लिये लक्ष्य के अनुसार स्कोर की गणना की जाती है तथा प्रत्येक राज्य/संघ राज्य क्षेत्र के लिये समग्र अंक निकाले जाते हैं। सूचकांक के समग्र अंक की गणना में लक्ष्य 14 (जलीय जीवन) को शामिल नहीं किया गया है, क्योंकि यह केवल नौ तटीय राज्यों से संबंधित है।
    • स्कोर 0-100 के बीच होता है तथा उच्च स्कोर सतत् विकास लक्ष्य की दिशा में अधिक प्रगति का संकेत देता है।
      • राज्य/केंद्रशासित प्रदेशों को उनके SDG इंडिया इंडेक्स स्कोर के आधार पर निम्नानुसार वर्गीकृत किया गया है: आकांक्षी: 0-49, प्रदर्शनकर्त्ता: 50-64, अग्रणी: 65-99 और सफल व्यक्ति: 100।
  • विकास पर प्रभाव: यह सूचकांक प्रतिस्पर्धी और सहकारी संघवाद को बढ़ावा देता है और राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों को एक-दूसरे से सीखने एवं परिणाम-आधारित अंतराल को कम करने के लिये प्रोत्साहित करता है।
    • यह प्रगति का व्यापक विश्लेषण प्रदान करता है, उपलब्धियों और सुधार की आवश्यकता वाले क्षेत्रों पर प्रकाश डालता है।
    • भारत ने सतत् विकास लक्ष्यों को अपनी राष्ट्रीय विकास रणनीतियों में पूरी तरह से एकीकृत किया है और संस्थागत स्वामित्व, सहयोगात्मक प्रतिस्पर्द्धा, क्षमता निर्माण तथा समग्र समाज दृष्टिकोण पर आधारित अपने सतत् विकास लक्ष्यों के स्थानीयकरण मॉडल पर गर्व करता है।
    • यह सूचकांक विकसित भारत @ 2047 की दिशा में प्रगति को मापने के लिये एक बैरोमीटर के रूप में कार्य करता है और राष्ट्रीय तथा उप-राष्ट्रीय विकास रणनीतियों को सूचित करता है।

SDG इंडिया इंडेक्स 2023-24 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • समग्र प्रगति: भारत का समग्र SDG स्कोर वर्ष 2023-24 में 71 हो गया, जो वर्ष 2020-21 में 66 और वर्ष 2018 में 57 था। सभी राज्यों ने समग्र स्कोर में सुधार दिखाया है। प्रगति मुख्य रूप से गरीबी उन्मूलन, आर्थिक विकास और जलवायु कार्रवाई में लक्षित सरकारी हस्तक्षेपों से प्रेरित है।
    • शीर्ष प्रदर्शक: केरल और उत्तराखंड सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले राज्य रहे, जिनमें से प्रत्येक को 79 अंक मिले।
    • खराब प्रदर्शक: बिहार 57 अंक के साथ पीछे रहा, जबकि झारखंड 62 अंक के साथ दूसरे स्थान पर रहा।
    • अग्रणी राज्य: 32 राज्य और केंद्रशासित प्रदेश (UT) अग्रणी श्रेणी में हैं, जिनमें अरुणाचल प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़ तथा उत्तर प्रदेश सहित 10 नए प्रवेशक शामिल हैं।

विशिष्ट सतत् विकास लक्ष्य:

सतत् विकास लक्ष्य (SDG)

                                            मुख्य विशेषताएँ

लक्ष्य 1: गरीबी उन्मूलन

  • वर्ष 2020-21 में 60 की तुलना में वर्ष 2023-24 में 72 का उच्च स्कोर रहा और साथ ही वर्ष 2023-2024 में, मनरेगा के अंर्तगत काम का अनुरोध करने वाले 99.7% व्यक्तियों को रोज़गार प्रदान किया गया।

लक्ष्य 2: शून्य  भुखमरी 

  • आकांक्षी से प्रदर्शनकर्त्ता श्रेणी के समग्र स्कोर में सुधार। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013 के अंतर्गत 99.01% लाभार्थी शामिल हैं।

लक्ष्य 3: उत्तम स्वास्थ्य एवं खुशहाली

  • वर्ष 2018 समग्र स्कोर में 52 से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 77 हो गया। 9-11 महीने की उम्र के 93.23% बच्चों को पूर्णटीकाकरण किया गया और साथ ही प्रति 1,00,000 जीवित जन्मों पर मातृ मृत्यु दर 97 है।

लक्ष्य 4: गुणवत्तापूर्ण शिक्षा

  • प्रारंभिक शिक्षा के लिये समायोजित शुद्ध नामांकन दर (ANER), वर्ष 2021-22 के लिये 96.5% है। 88.65% स्कूलों में विद्युत एवं पेयजल दोनों की सुविधा उपलब्ध है।
  • उच्च शिक्षा (18-23 वर्ष) में महिलाओं तथा पुरुषों के बीच 100% समानता।

लक्ष्य 5: लैंगिक समानता

  • वर्ष 2018 समग्र स्कोर में 36 से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 49 हो गया। जन्म के समय लिंगानुपात (प्रति 1,000 पुरुषों पर 929 महिलाएँ) है।

लक्ष्य 6: स्वच्छ जल एवं स्वच्छता

  • वर्ष 2018 में स्कोर 63 से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 89 तक उल्लेखनीय सुधार हुआ। 99.29% ग्रामीण परिवारों ने पेयजल के अपने स्रोत में सुधार किया है।
  • 94.7% स्कूलों में लड़कियों के लिये शौचालय हैं।

लक्ष्य 7: वहनीय एवं स्वच्छ ऊर्जा

  • सभी SDG का उच्चतम स्कोर वर्ष 2018 में 51 से  बढ़कर वर्ष 2023-24 में 96 तक महत्त्वपूर्ण सुधार प्राप्त किये हैं। 
  • सौभाग्य योजना के तहत 100% घरों का विद्युतीकरण हुआ है।
  • खाना पकाने के स्वच्छ ईंधन (LPG + PNG) कनेक्शन वाले घरों में महत्त्वपूर्ण सुधार 92.02% (वर्ष 2020) से 96.35% (वर्ष 2024) हो गया है।

लक्ष्य 8: उत्कृष्ट कार्य और आर्थिक विकास

  • वर्ष 2022-23 में स्थिर मूल्यों पर भारत की प्रति व्यक्ति GDP में 5.88% की वार्षिक वृद्धि दर।
  • बेरोज़गारी दर वर्ष 2018-19 में 6.2% से घटकर वर्ष 2022-23 में 3.40% हो गई।

लक्ष्य 9: उद्योग, नवाचार और बुनियादी सुविधाएँ

  • वर्ष 2018 में स्कोर 41 से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 61 हो गया। पीएम ग्राम सड़क योजना के तहत लक्षित 99.70% बस्तियाँ बारहमासी सड़कों से जुड़ गईं।

लक्ष्य 10: असमानताओं में कमी

  • वर्ष 2020-21 में अंक 67 से घटकर वर्ष 2023-24 में 65 हो गए।
  • पंचायती राज संस्थाओं की 45.61% सीटें महिलाओं के पास हैं। राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति का प्रतिनिधित्व 28.57% है।

लक्ष्य 11: संवहनीय शहर और समुदाय

  • वर्ष 2018 में स्कोर 39 से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 83 तक उल्लेखनीय सुधार हुआ। संसाधित नगरपालिका ठोस अपशिष्ट का प्रतिशत वर्ष 2020 में 68% से बढ़कर वर्ष 2024 में 78.46% हो गया है।
  • 97% वार्डों में 100% घर-घर से कचरा संग्रहण हो रहा है।

लक्ष्य 12: संवहनीय  उपभोग और उत्पादन

  • वर्ष 2022 में उत्पन्न होने वाले 91.5% बायोमेडिकल अपशिष्ट का उपचार किया जाता है।
  • वर्ष 2022-23 में 54.99% खतरनाक अपशिष्ट का पुनर्चक्रण/उपयोग किया गया।

लक्ष्य 13: जलवायु परिवर्तन

  • SDG इंडिया इंडेक्स 4 (2023-24) में वर्ष 2020-21 के 54 (परफॉर्मर श्रेणी) से 67 (फ्रंट रनर श्रेणी) में तक का सुधार हुआ।
  • आपदा जोखिम सूचकांक के अनुसार आपदा तैयारी स्कोर 19.20 है।
  • नवीकरणीय ऊर्जा से विद्युत उत्पादन में सुधार वर्ष 2020 में 36.37% से बढ़कर वर्ष 2024 में 43.28% हो गया।
  • 94.86% उद्योग पर्यावरण मानकों का अनुपालन करते हैं।

लक्ष्य 14: जलीय जीवन

  • लक्ष्य 14 को सूचकांक के लिये समग्र स्कोर की गणना में शामिल नहीं किया गया है क्योंकि यह पूरी तरह से नौ तटीय राज्यों से संबंधित है।

लक्ष्य 15: भूमि पर जीवन (थलीय जीवन)

  • वर्ष 2020-21 में स्कोर 66 से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 75 हो गया। भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 25% भाग वनों और वृक्षों से आच्छादित है।

लक्ष्य 16: शांति, न्याय एवं सशक्त संस्थाएँ

  • मार्च 2024 तक 95.5% जनसंख्या आधार कवरेज के अंतर्गत है।
  • NCRB 2022 के अनुसार IPC अपराधों की आरोप-पत्र दर 71.3% है।
  • लक्ष्यों का अवलोकन: "निर्धनता उन्मूलन", "सभ्य कार्य और आर्थिक विकास" और "भूमि पर जीवन" लक्ष्यों में वर्ष 2020-21 के अंकों की अपेक्षा राज्यों के अंकों में सर्वाधिक वृद्धि हुई जबकि "लैंगिक समता" तथा "शांति, न्याय एवं सुदृढ़ संस्थान" में वृद्धि सबसे कम रही।
    • "असमानताओं में कमी" एकमात्र लक्ष्य था जिसका स्कोर वर्ष 2020-21 के 67 से कम होकर वर्ष 2023-24 में 65 हुआ। इसका स्कोर कम होना धन के वितरण को दर्शाता है और सुझाव देता है कि भारत के कई क्षेत्रों, विशेषकर सामाजिक-आर्थिक परिप्रेक्ष्य के निम्न स्तर पर रोज़गार के अवसरों के संबंध में असमानता का स्तर बहुत अधिक है। असमानताओं को कम करने के लक्ष्य में कार्यबल भागीदारी में लैंगिक असमानता को संबोधित करना भी शामिल है।
    • लैंगिक समानता का स्कोर अन्य सभी लक्ष्यों के स्कोर से सबसे कम रहा, जिसमें विगत वर्ष की तुलना में अभूत कम वृद्धि हुई। जन्म के समय लिंगानुपात, भूमि और संपत्ति के स्वामित्व वाली महिलाएँ, रोज़गार तथा श्रम बल भागीदारी दर जैसे मुद्दे प्रमुख ध्यान देने योग्य क्षेत्र हैं, विशेषकर उन राज्यों में जहाँ जन्म के समय लिंग अनुपात 900 से कम है।
    • गुणवत्तापूर्ण शिक्षा लक्ष्य का स्कोर 4 अंक की वृद्धि के साथ 61 हो गया जो इस तथ्य पर प्रकाश डालता है कि कुछ राज्य, विशेषकर मध्य भारत में, वर्तमान में भी चुनौतियों का सामना करते हैं। भारत में मुख्य मुद्दा शिक्षा तक पहुँच नहीं अपितु शिक्षा की गुणवत्ता है जो रोज़गार के अवसरों को प्रभावित करती है।

नीति आयोग 

  • भारत में वर्ष 2015 में नीति आयोग ने योजना आयोग का स्थान लिया, जिसमें 'अधरोर्ध्व' (Bottom-Up) दृष्टिकोण के साथ सहकारी संघवाद पर ज़ोर दिया गया।
  • नीति आयोग में अध्यक्ष के रूप में प्रधानमंत्री, शासी परिषद में सभी राज्यों के मुख्यमंत्री और केंद्रशासित प्रदेशों के उपराज्यपाल तथा प्रधानमंत्री द्वारा नामित विशेष आमंत्रित सदस्यों के रूप में विशेषज्ञ शामिल हैं।
    • मुख्य कार्यकारी अधिकारी को प्रधानमंत्री द्वारा एक विशिष्ट अवधि के लिये नियुक्त किया जाता है जो भारत सरकार के सचिव पद पर होता है।
  • राज्यों की विविध शक्तियों और सुभेद्यताओं को ध्यान में रखते हुए नीति आयोग भारत में आर्थिक नियोजन हेतु अधिक लचीले दृष्टिकोण की आवश्यकता पर ज़ोर देता है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत को अग्रणी  बनाने के लिये यह परिवर्तन आवश्यक है।
  • इसका मुख्य उद्देश्य राज्यों के साथ सहकारी संघवाद को बढ़ावा देना, ग्राम स्तर पर योजनाएँ विकसित करना, आर्थिक रणनीति में राष्ट्रीय सुरक्षा को शामिल करना, समाज के हाशियाई वर्गों पर ध्यान केंद्रित करना, हितधारकों और प्रबुद्ध मंडलों के साथ साझेदारी को प्रोत्साहित करना, ज्ञान तथा नवाचार के लिये एक समर्थन प्रणाली विकसित करना, अंतर-क्षेत्रीय मुद्दों का समाधान करना और सुशासन व सतत् विकास प्रथाओं के लिये एक ज्ञानसाधन केंद्र (Resource Centre) बनाए रखना है।
  • प्रमुख पहल: SDG इंडिया इंडेक्स, सयुंत जल प्रबंधन सूचकांक, अटल नवाचार मिशन, आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम, स्वास्थ्य सूचकांक, भारत नवाचार सूचकांक और सुशासन सूचकांक

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में SDG इंडिया इंडेक्स 2023-24 में दर्शाई गई भारत की समग्र प्रगति का मूल्यांकन कीजिये । इस प्रगति में किन कारकों ने योगदान दिया है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. अटल नवप्रवर्तन (इनोवेशन) मिशन किसके अधीन स्थापित किया गया है? (2019)

(a) विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग
(b) श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय
(c) नीति आयोग
(d) कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय

उत्तर: (c)


प्रश्न. भारत सरकार ने नीति (NITI) आयोग की स्थापना निन्मलिखित में से किसका स्थान लेने के लिये की है? (2015)

(a) मानवाधिकार आयोग
(b) वित्त आयोग
(c) विधि आयोग
(d) योजना आयोग

उत्तर: (d)


प्रश्न. सतत् विकास को उस विकास के रूप में वर्णित किया जाता है जो भविष्य की पीढ़ियों की अपनी ज़रूरतों को पूरा करने की क्षमता से समझौता किये बिना वर्तमान की ज़रूरतों को पूरा करता है। इस परिप्रेक्ष्य में सतत् विकास की अवधारणा निम्नलिखित अवधारणाओं में से किसके साथ जुड़ी हुई है? (2010)

(a) सामाजिक न्याय एवं सशक्तीकरण
(b) समावेशी विकास
(c) वैश्वीकरण
(d) वहन क्षमता

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. भारत के नीति आयोग द्वारा अनुसरण किये जा रहे सिद्धांत इससे पूर्व के योजना आयोग द्वारा अनुसरित सिद्धांतों से किस प्रकार भिन्न हैं? (2018) 

प्रश्न. "वहनीय (ऐफोर्डेबल), विश्वसनीय, धारणीय तथा आधुनिक ऊर्जा तक पहुँच संधारणीय (सस्टेनबल) विकास लक्ष्यों (SDG) को प्राप्त करने के लिये अनिवार्य है”। भारत में इस संबंध में हुई प्रगति पर टिप्पणी कीजिये। (2018)


बफर स्टॉक संबंधी सुधार

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय खाद्य निगम (FCI), बफर स्टॉक, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI), मुद्रास्फीति दर, आवश्यक वस्तुएँ, अकाल, खाद्य सुरक्षा, सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS), न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP), पंचवर्षीय योजना, लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (TPDS), अन्य कल्याणकारी योजनाएँ (OWS), NAFED, SFAC

मेन्स के लिये:

बफर स्टॉक और संबंधित मुद्दे

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में गेहूँ और चना की खुले बाज़ार में बिक्री ने अनाज तथा दालों की कीमतों में होने वाली स्फीति को रोकने में मदद की, जो दर्शाता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण खाद्य आपूर्ति में बढ़ती बाधाओं एवं इनके मूल्य में होने वाले उतार-चढ़ाव को दृष्टिगत रखते हुए अन्य प्रमुख खाद्यान्नों का बफर स्टॉक बनाने की आवश्यकता है

भारत सरकार की बफर स्टॉक नीति क्या है?

  • बफर स्टॉक अथवा सुरक्षित भंडार का तात्पर्य किसी वस्तु के भंडारण से है जिसका उपयोग इसकी कीमत में होने वाले उतार-चढ़ाव और आकस्मिक आपात स्थितियों में किया जाता है। 
  • बफर स्टॉक की संकल्पना प्रथमतः चौथी पंचवर्षीय योजना (1969-74) में प्रस्तुत की गई थी। 
  • भारत सरकार (GOI) द्वारा केंद्रीय पूल में खाद्यान्नों का बफर स्टॉक निम्नलिखित उद्देश्यों के लिये बनाए रखा जाता है:
    • खाद्य सुरक्षा के लिये निर्धारित न्यूनतम भंडारण आवश्यकताओं को पूरा करना।
    • लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (TPDS) और अन्य कल्याणकारी योजनाओं (OWS) के माध्यम से आपूर्ति हेतु खाद्यान्नों का मासिक आवंटन।
    • अनपेक्षित फसल नाश, प्राकृतिक आपदाओं आदि से उत्पन्न आपात स्थितियों से निपटना। 
    • खुले बाज़ार की कीमतों को नियंत्रित करने में मदद के लिये बाज़ार हस्तक्षेप के माध्यम से मूल्य स्थिरीकरण या आपूर्ति में वृद्धि करना।
  • आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति तिमाही आधार पर न्यूनतम भंडारण आवश्यकता हेतु मानदंड  निर्धारित करती है। 
    • बफर स्टॉक के आँकड़ों की समीक्षा प्रायः प्रत्येक पाँच वर्ष के उपरांत की जाती है। 
  • सरकार ने बफर स्टॉक के लिये दालों की खरीद हेतु भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ लिमिटेड (NAFED), लघु कृषक कृषि-व्यवसाय संघ (SFAC) और भारतीय खाद्य निगम (FCI) को नियुक्त किया है। 
  • न्यूनतम भंडारण मानदंडों के अतिरिक्त सरकार ने गेहूँ (वर्ष 2008 से) और चावल (वर्ष 2009 से) का रणनीतिक भंडारण निर्धारित किया है। 
    • वर्ष 2015 में सरकार ने दालों की कीमतों में उतार-चढ़ाव को नियंत्रित करने के लिये 1.5 लाख टन दालों का बफर स्टॉक तैयार किया। 
  • वर्तमान में सरकार द्वारा निर्धारित भंडारण मानदंडों में शामिल हैं: 
    • परिचालन स्टॉक: यह TPDS और OWS के तहत मासिक वितरण आवश्यकताओं को पूरा करने से संबंधित है। 
    • खाद्य सुरक्षा भंडार/रिज़र्व: यह खरीद में होने वाली कमी की पूर्ति करने से संबंधित है। 
  • केंद्रीय पूल में खाद्यान्न भंडार में भारतीय खाद्य निगम (FCI), विकेंद्रीकृत खरीद योजना में भाग लेने वाले राज्यों तथा राज्य सरकार एजेंसियों (SGA) द्वारा बफर और परिचालन दोनों आवश्यकताओं के लिये रखे गए स्टॉक शामिल हैं।

भारतीय खाद्य निगम (FCI)

  • FCI एक सरकारी स्वामित्व वाला निगम है जो भारत में खाद्य सुरक्षा प्रणाली का प्रबंधन करता है। 
    • इसकी स्थापना वर्ष 1965 में खाद्य निगम अधिनियम, 1964 के तहत पूरे देश में खाद्यान्न की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने और बाज़ार में मूल्य स्थिरता बनाए रखने के उद्देश्य से की गई थी।
  • FCI खाद्य संबंधी कमी या संकट के समय खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये खाद्यान्नों के बफर स्टॉक को भी बनाए रखता है।
  • FCI सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिये पूरे देश में खाद्यान्न वितरण हेतु उत्तरदायी है।
  • FCI ई-नीलामी भी आयोजित करता है जो कि अधिशेष खाद्यान्न से निपटने के तरीकों में से एक है।

बफर स्टॉक के लाभ और चुनौतियाँ क्या हैं?

  • लाभ:
    • खाद्य सुरक्षा: सूखा, बाढ़ या अन्य संकट जैसी प्रतिकूल परिस्थितियों के दौरान जनता, विशेषकर कमज़ोर वर्गों के लिये खाद्यान्न की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
    • मूल्य स्थिरीकरण: आपूर्ति को विनियमित करके बाज़ार में आवश्यक खाद्यान्नों की स्थिर कीमतें बनाए रखना।
    • किसानों को समर्थन: किसानों को उनकी उपज के लिये न्यूनतम मूल्य का आश्वासन देता है, जिससे उनकी आय स्थिर होती है और कृषि उत्पादन को निरंतर बढ़ावा मिलता है।
    • आपदा प्रबंधन: प्राकृतिक आपदाओं के दौरान बिना देरी के खाद्यान्न की आपूर्ति करके तत्काल राहत प्रदान करना। जैसे- कोविड-19 के दौरान मुफ्त राशन की आपूर्ति।
  • चुनौतियाँ: 
    • भंडारण संबंधी मुद्दे: भारत को अपर्याप्त भंडारण सुविधाओं के संदर्भ में गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिसके कारण खाद्यान्न की बर्बादी और खराबी होती है।
    • अधिप्राप्ति असंतुलन: विभिन्न अनाजों की खरीद में अक्सर असंतुलन होता है, जिसके कारण कुछ अनाजों का स्टॉक अधिक हो जाता है, जबकि अन्य का कम हो जाता है।
    • वित्तीय भार: बड़े बफर स्टॉक को बनाए रखने के लिये खरीद, भंडारण और वितरण से संबंधित उच्च वित्तीय लागत की आवश्यकता होती है।
    • वितरण में अक्षमताएँ: सार्वजनिक वितरण प्रणाली में अक्सर लीकेज, चोरी और भ्रष्टाचार जैसी समस्याएँ होती हैं, जो बफर स्टॉक के प्रभावी वितरण में बाधा उत्पन्न करती हैं।
    • गुणवत्ता संबंधी चिंताएँ: लंबे समय तक भंडारित खाद्यान्न की गुणवत्ता सुनिश्चित करना एक महत्त्वपूर्ण चुनौती है।

आगे की राह

  • खरीद पद्धतियों में विविधता लाना: सरकारी खरीद फिलहाल चावल, गेहूँ और कुछ दालों तथा तिलहनों तक ही सीमित है। इसमें मुख्य सब्ज़ियों और स्किम्ड मिल्क पाउडर (skimmed milk powder - SMP) जैसी अन्य आवश्यक खाद्य वस्तुओं को शामिल करने से कीमतों को और स्थिर करने में मदद मिल सकती है।
    • केंद्र सरकार प्याज़ के बफर स्टॉक की शेल्फ लाइफ बढ़ाने के लिये विकिरण की एक सुरक्षित, विनियमित खुराक का उपयोग करके प्याज़ के विकिरण को महत्त्वपूर्ण रूप से बढ़ाने की योजना बना रही है, जो अंकुरित होने से रोकता है और खराब होने की संभावना को कम करता है।
  • बफर स्टॉक मानदंडों का वैज्ञानिक मूल्यांकन: दशकीय जनगणना डेटा तथा खाद्यान्न वितरण प्रतिबद्धताओं के आधार पर परिचालन एवं रणनीतिक बफर खाद्यान्न स्टॉक के लिये तार्किक मूल्यांकन एवं मानदंड निर्धारित करने के लिये अर्थमितीय विधियों एवं समय-शृंखला डेटा का उपयोग करना।
  • गतिशील बफर मानदंड: भारत के वर्तमान तिमाही बफर स्टॉक मानदंडों को वास्तविक समय के आँकड़ों के साथ संरेखित करने हेतु अधिक गतिशील दृष्टिकोण पर विचार करना चाहिये।
    • फसल उपज पूर्वानुमान, अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार के रुझान एवं संभावित व्यवधानों जैसे कारकों के आधार पर बफर स्टॉक के स्तर को समायोजित करने के लिये कृषि, सहकारिता और किसान कल्याण विभाग एवं राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय के आँकड़ों का उपयोग करना।
  • तकनीकी समेकन: पारदर्शी एवं सुरक्षित बफर स्टॉक प्रबंधन के लिये ब्लॉकचेन जैसी तकनीक को एकीकृत करने पर विचार करना। इसके अतिरिक्त, उत्पादन को प्रभावित करने वाली संभावित मौसम की घटनाओं के आधार पर बफर स्टॉक को पहले से समायोजित करने के लिये भारत मौसम विज्ञान विभाग के मौसम पूर्वानुमान डेटा का उपयोग करने पर भी विचार करना।
  • विवेकपूर्ण वित्तीय व्यवस्था: यह सुनिश्चित करना कि बफर स्टॉक बनाए रखने का वित्तीय बोझ बेहतर बजटिंग एवं क्रय अक्षमताओं को कम करके प्रबंधित किया जाता है।
  • निजी क्षेत्र की सहभागिता: FCI के बफर स्टॉक के प्रबंधन के साथ-साथ भंडारण सुविधाओं, रसद अथवा जोखिम प्रबंधन रणनीतियों जैसे क्षेत्रों में अपनी विशेषज्ञता का लाभ उठाने के लिये निजी अभिकर्त्ताओं के साथ सहयोग स्थापित करना।
  • प्रतिस्पर्द्धी उद्देश्यों को अलग करना: बफर-स्टॉकिंग परिचालन में टकराव तथा अकुशलता से बचने के लिये मूल्य स्थिरीकरण, खाद्य सुरक्षा एवं उत्पादन प्रोत्साहन के लक्ष्यों को अलग-अलग करना।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत में बफर स्टॉक को विविधतापूर्ण बनाने की आवश्यकता पर चर्चा कीजिये। इस विविधीकरण से जुड़ी मुख्य चुनौतियाँ क्या हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. जलवायु-अनुकूल कृषि (क्लाइमेट-स्मार्ट एग्रीकल्चर) के लिये भारत की तैयारी के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये। (2021)

  1. भारत में ‘जलवायु-स्मार्ट ग्राम (क्लाइमेट-स्मार्ट विलेज)’ दृष्टिकोण, अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान कार्यक्रम-जलवायु परिवर्तन, कृषि एवं खाद्य सुरक्षा (सी.सी.ए.एफ.एस.) द्वारा संचालित परियोजना का एक भाग है।  
  2. सी.सी.ए.एफ.एस. परियोजना, अंतर्राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान हेतु परामर्शदात्री समूह (सी.जी.आई.ए.आर.) के अधीन संचालित किया जाता है, जिसका मुख्यालय फ्राँस में है।  
  3. भारत में स्थित अंतर्राष्ट्रीय अर्धशुष्क उष्णकटिबंधीय फसल अनुसंधान संस्थान (आई.सी.आर.आई.एस.ए.टी.), सी.जी.आई.ए.आर. के अनुसंधान केंद्रों में से एक है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?

(a) केवल 1 और 2            
(b)  केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3 
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


प्रश्न. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत किये गए प्रावधानों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. केवल 'गरीबी रेखा से नीचे (BPL) की श्रेणी में आने वाले परिवार ही सब्सिडी वाले खाद्यान्न प्राप्त करने के पात्र हैं। 
  2. परिवार में 18 वर्ष या उससे अधिक उम्र की सबसे अधिक उम्र वाली महिला ही राशन कार्ड निर्गत किये जाने के प्रयोजन से परिवार की मुखिया होगी। 
  3. गर्भवती महिलाएँ एवं दुग्ध पिलाने वाली माताएँ गर्भावस्था के दौरान और उसके छ: महीने बाद तक प्रतिदिन 1600 कैलोरी वाला राशन घर ले जाने की हकदार हैं।

उपर्युत्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) 1 और 2
(b) केवल 2
(c) 1 और 3
(d) केवल 3

उत्तर: (b)


मेन्स

प्रश्न. प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डी.बी.टी.) के द्वारा कीमत सहायिकी का प्रतिस्थापन भारत में सहायिकियों के परिदृश्य का किस प्रकार परिवर्तन कर सकता है? चर्चा कीजिये। (2015)


भारत का डीप ड्रिल मिशन

प्रिलिम्स के लिये:

भारत का डीप ड्रिल मिशन, भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत, भू-विज्ञान, ज्वालामुखी, पृथ्वी की संरचना, प्लेट विवर्तनिक 

मेन्स के लिये:

डीप ड्रिल मिशन का महत्त्व, पृथ्वी की संरचना में विभिन्न परतें, प्लेट विवर्तनिक की गति के प्रभाव, महत्त्वपूर्ण भू-भौतिकीय घटनाएँ

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने महाराष्ट्र के कराड में बोरहोल जियोफिज़िक्स रिसर्च लेबोरेटरी (Borehole Geophysics Research Laboratory- BGRL) नामक एक विशेष संस्थान की मदद से पृथ्वी की भू-पर्पटी की 6 किलोमीटर गहराई तक वैज्ञानिक ड्रिलिंग का कार्य शुरू किया है।

  • इसके द्वारा पहले ही 3 किलोमीटर की गहराई तक ड्रिलिंग पूरी कर ली गई।

कोयना भारत के डीप ड्रिलिंग मिशन के लिये क्यों उपयुक्त है?

  • भूकंपीय उत्प्रेरकता (Triggered Seismicity): प्लेट विवर्तनिक (tectonic plate) सीमाओं पर होने वाले अधिकांश भूकंपों के विपरीत, कोयना में वर्ष 1962 में कोयना बाँध के निर्माण के बाद कई भूकंप आए। यह घटना, जहाँ मानवीय गतिविधि (जलाशय को भरने) के कारण भूकंप आते हैं, उसे जलाशय-प्रेरित भूकंपीयता (Reservoir-Induced Seismicity - RIS) कहा जाता है।
    • वैज्ञानिकों का लक्ष्य गहरी ड्रिलिंग के माध्यम से इन भूकंपों के स्रोत पर पृथ्वी की संरचना और दबाव का प्रत्यक्ष अध्ययन करना है।
  • सक्रिय भ्रंश क्षेत्र: कोयना-वार्ना क्षेत्र भूगर्भीय भ्रंश रेखा पर स्थित है, जिसके कारण यह स्वाभाविक रूप से भूकंप के प्रति संवेदनशील है।
  • हालाँकि यहाँ होने वाली घटनाएँ प्लेट सीमाओं पर होने वाली घटनाओं से भिन्न हैं।
  • पृथक गतिविधि: कोयना बाँध के 50 किलोमीटर के दायरे में भूकंपीय गतिविधि का कोई अन्य महत्त्वपूर्ण स्रोत नहीं है। यह अलगाव कोयना को केंद्रित अनुसंधान के लिये एक आदर्श स्थान बनाता है।

साइंटिफिक डीप ड्रिलिंग क्या है?

  • परिचय: 
    • साइंटिफिक डीप ड्रिलिंग से तात्पर्य है कि पृथ्वी की संरचना और प्रक्रियाओं का अध्ययन करने के लिये पृथ्वी की भू-पर्पटी में डीप ड्रिलिंग करना शामिल है।
    • यह शोध भू-वैज्ञानिक संरचनाओं, प्राकृतिक संसाधनों और पृथ्वी के इतिहास के बारे में जानकारी प्रदान कर सकता है।
    • डीप ड्रिलिंग परियोजनाओं का उद्देश्य अक्सर विवर्तनिक, भूकंप तंत्र और भूतापीय ऊर्जा क्षमता के बारे में हमारी समझ को आगे बढ़ाना होता है।
  • तकनीक और विधियाँ:
    • रोटरी ड्रिलिंग: इस विधि में चट्टानों को काटने के लिये एक घूमने वाली ड्रिल बिट का उपयोग किया जाता है। ड्रिल बिट को एक ड्रिल स्ट्रिंग से जोड़ा जाता है, जिसे एक रिग द्वारा घुमाया जाता है। बिट को ठंडा करने और चट्टानों को सतह पर ले जाने के लिये ड्रिलिंग मिट्टी को प्रसारित किया जाता है।
    • पर्कशन ड्रिलिंग (एयर हैमरिंग): यह हथौड़े को चलाने के लिये उच्च वायुदाब का उपयोग करता है जो ड्रिल बिट पर तेज़ी से प्रहार करता है, कुशलतापूर्वक चट्टान को तोड़ता है और कटिंग को बाहर निकालता है। यह खनिज अन्वेषण, पानी के कुओं और भूतापीय ऊर्जा जैसे कठोर चट्टान अनुप्रयोगों के लिये तेज़, लागत
      • कोयना ड्रिलिंग तकनीक में मड रोटरी ड्रिलिंग और पर्क्यूशन ड्रिलिंग (एयर हैमरिंग) का संयोजन किया जाता है।प्रभावी तथा बहुमुखी है, हालाँकि यह तेज आवाज़ कर सकता है और उथली गहराई के लिये सबसे उपयुक्त है।
    • हाइड्रोलिक फ्रैक्चरिंग (फ्रैकिंग): फ्रैकिंग, जिसे हाइड्रोलिक फ्रैक्चरिंग के रूप में भी जाना जाता है, एक तकनीक है जिसका उपयोग कभी-कभी चट्टानों को विभाजित करने के लिये किया जाता है जिसका उद्देश्य नमूने के लिये द्रव प्रवाह में सुधार करना या संसाधन निष्कर्षण के दौरान बेहतर परिणाम पाना होता है।
    • भू-भौतिकीय सर्वेक्षण: इसमें भूमिगत संरचनाओं का मानचित्रण करने तथा ड्रिलिंग कार्यों से पहले और उसके दौरान ड्रिलिंग लक्ष्यों की पहचान करने के लिये भूकंपीय, चुंबकीय एवं गुरुत्वाकर्षण विधियों का उपयोग किया जाता है।

पृथ्वी की आंतरिक संरचना का अध्ययन करने की अन्य विधियाँ क्या हैं?

  • पृथ्वी की आंतरिक संरचना का अध्ययन प्रत्यक्ष विधियों जैसे ड्रिलिंग और गहरे बोरहोल के माध्यम से शैल का नमूना प्राप्त करने तथा अप्रत्यक्ष विधियों जैसे भूकंपीय तरंग विश्लेषण, गुरुत्वाकर्षण माप एवं पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का अध्ययन करके किया जाता है।
    • भूकंपीय तरंगें: भूकंप से उत्पन्न भूकंपीय तरंगों का अध्ययन पृथ्वी की आंतरिक संरचना के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्रदान करता है।
      • भूकंपीय तरंगें पृथ्वी के आंतरिक भाग से होकर परिवहित होती हैं और उनकी अपवर्तन (Refraction) और परावर्तन (Reflection) जैसी गतिविधियाँ वैज्ञानिकों को विभिन्न परतों की संरचना और इनके गुणों का अनुमान लगाने में मदद करती हैं।
    • गुरुत्वाकर्षण और चुंबकीय क्षेत्र माप: पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण और चुंबकीय क्षेत्रों में होने वाले परिवर्तन आंतरिक घनत्व तथा इसकी संरचना में परिवर्तन का संकेत देती हैं। ये माप पृथ्वी के क्रोड, मेंटल और क्रस्ट के बीच की सीमाओं की पहचान करने में मदद करते हैं।
    • ऊष्मा के प्रवाह का माप: पृथ्वी के आंतरिक भाग से बाहर निकलने वाली ऊष्मा विभिन्न परतों के ताप और ऊष्मीय गुणधर्मों के बारे में जानकारी प्रदान करती है। यह जानकारी पृथ्वी की आंतरिक प्रक्रियाओं और गतिशीलता को समझने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • उल्कापिंड की संरचना: उल्कापिंडों का अध्ययन, जिन्हें प्रारंभिक सौर मंडल के अवशेष माना जाता है, पृथ्वी के आंतरिक भाग की संरचना और निर्माण के बारे में जानकारी प्रदान कर सकता है।

विश्व की अन्य डीप ड्रिलिंग परियोजनाएँ

  • अमेरिका का प्रोजेक्ट मोहोल: 1960 के दशक में अमेरिका ने पृथ्वी की पर्पटी और मेंटल के बीच की सीमा से नमूने प्राप्त करने के लिये दुनिया का सबसे गहरा प्रवेधन (Drill) करने का प्रयास किया, जिसे मोहो डिसकंटिन्यूटी के नाम से जाना जाता है।
    • इसे वर्ष 1966 में रोक दिया गया लेकिन इसने ग्रह के संबंध में नवीन भू-वैज्ञानिक जानकारी प्राप्त करने के लिये गहरे समुद्र में प्रवेधन करने की क्षमता को प्रदर्शित किया।
  • कोला सुपरडीप बोरहोल: यह रूस में मानव द्वारा किया गया विश्व का सबसे गहरा रंध्र (Hole) है, जिसे 1970 के दशक में शुरू किया गया था जिसकी गहराई 12,262 मीटर थी।    
    • इस दौरान "कॉनराड डिसकंटिन्यूटी" के लोप, अत्यंत गहराई पर तरल पदार्थ की मौजूदगी और 2 अरब वर्ष प्राचीन सूक्ष्म जीवाश्मों जैसी अप्रत्याशित खोज हुई।
    • इसे वर्ष 1992 में रोक दिया गया और वर्ष 2005 में रंध्र को सील कर दिया गया। 
  • चीन की डीप होल परियोजना: चीन पृथ्वी की सतह के ऊपर और नीचे नई सीमाओं का पता लगाने के लिये शिंजियांग में 10,000 मीटर गहरा प्रवेधन कर रहा है। 
    • इसका उद्देश्य 10 से अधिक महाद्वीपीय परतों में प्रवेश करना और 145 मिलियन वर्ष प्राचीन क्रेटेशियस सिस्टम तक पहुँच सुनिश्चित करना है।
  • डीप सी ड्रिलिंग प्रोजेक्ट (DSDP): इसकी शुरुआत वर्ष 1966 में हुई थी, जिसमें विभिन्न महासागरों में ड्रिलिंग और कोरिंग शामिल थी, जिससे महत्त्वपूर्ण वैज्ञानिक खोज हुईं, जिसमें नमक के गुंबदों की पहचान तथा तेल की खोज के लिये उनकी क्षमता शामिल थी। इसे वर्ष 1972 में समाप्त कर दिया गया था।
  • एकीकृत महासागर ड्रिलिंग परियोजना (IODP): यह एक अंतर्राष्ट्रीय पहल है जो समुद्री अनुसंधान प्लेटफॉर्मों का उपयोग करके समुद्र तल के नमूनों के माध्यम से पृथ्वी के इतिहास और प्रक्रियाओं का अध्ययन करती है।
    • इसके लक्ष्यों में पृथ्वी की दीर्घकालिक प्रक्रियाओं को समझना, गहन जीवमंडल की खोज करना, जलवायु इतिहास का अध्ययन करना तथा भूपर्पटी और मेंटल की जाँच करना शामिल है।
    • IODP वैश्विक अभियानों के लिये जापान, अमेरिका और अन्य साझेदारों के अनुसंधान जहाज़ों को नियुक्त करता है, जिससे ग्रह संबंधी ज्ञान में वृद्धि होती है।

कोयना में डीप ड्रिलिंग मिशन के प्रमुख निष्कर्ष क्या हैं?

  • क्षेत्र का गंभीर तनाव: कोयना क्षेत्र अत्यधिक तनावग्रस्त है, जिससे यह छोटे तनाव संबंधी विक्षोभों के प्रति संवेदनशील है, जिससे बार-बार छोटे-तीव्रता वाले भूकंप आ सकते हैं।
  • 3 किमी. तक जल की उपस्थिति: 3 किमी. नीचे पाया जाने वाला जल उल्कापिंड या वर्षा आधारित है, जो गहरे रिसाव और परिसंचरण का संकेत देता है।
  • जलाशय से उत्पन्न भूकंपों के संबंध में जानकारी: इस मिशन से ज्ञात हुआ कि 65 मिलियन वर्ष पुराने डेक्कन ट्रैप लावा प्रवाह का 1.2 किमी. हिस्सा 2,500-2,700 मिलियन वर्ष पुराने ग्रेनाइट बेसमेंट चट्टानों के ऊपर स्थित है।
  • चट्टान संबंधी जानकारी: 3 किमी. गहराई से लिये गए कोर नमूनों से चट्टानों के भौतिक और यांत्रिक गुणों, निर्माण तरल पदार्थ तथा गैसों की रासायनिक एवं समस्थानिक संरचना, तापमान व तनाव व्यवस्था तथा फ्रैक्चर अभिविन्यासों के बारे में नई जानकारी मिली।
  • डेटा सत्यापन: ध्वनिक और सूक्ष्म-प्रतिरोधकता तकनीकों का उपयोग करके बोरहोल दीवार की उच्च-रिज़ॉल्यूशन छवियाँ वैश्विक वैज्ञानिकों को अन्य कोर से डेटा को सत्यापित करने की अनुमति देती हैं।
  • हाइड्रोलिक फ्रैक्चरिंग एंड फॉल्ट डिटेक्शन: टीम ने चट्टानों के स्व-स्थानिक तनाव शासन को मापने के लिये हाइड्रोलिक फ्रैक्चरिंग प्रयोग किये। विभिन्न डेटासेट तथा उन्नत विश्लेषण को एकीकृत करके, उन्होंने दबे हुए फॉल्ट ज़ोन का पता लगाया एवं उनका अध्ययन किया।

डीप ड्रिलिंग मिशन का महत्त्व क्या है?

  • भूकंप की बेहतर समझ और भू-खतरा प्रबंधन: इसे गहरे बोरहोलों में सेंसर लगाकर प्राप्त किया जा सकता है, ताकि दोष रेखाओं की निगरानी की जा सके, जिससे बेहतर पूर्वानुमान मॉडल एवं जोखिम न्यूनीकरण संभव हो सके।
    • इसके अतिरिक्त, गहरी ड्रिलिंग से पृथ्वी की पपड़ी पर सटीक डेटा मिलता है, जो भू-खतरों के प्रबंधन और खनिजों और हाइड्रोकार्बन जैसे भू-संसाधनों की खोज के लिये आवश्यक है।
  • भू-वैज्ञानिक मॉडलों का सत्यापन: ड्रिलिंग से प्रत्यक्ष अवलोकन और नमूनाकरण, भू-वैज्ञानिक मॉडलों की पुष्टि या खंडन करने तथा टेक्टोनिक प्रक्रियाओं और भूपर्पटी की गतिशीलता के बारे में हमारी समझ को बढ़ाने की सुविधा मिलती है। 
  • तकनीकी नवाचार और आत्मनिर्भरता: गहरी ड्रिलिंग में निवेश से भूकंप विज्ञान, ड्रिलिंग तकनीक, सेंसर विकास तथा डेटा विश्लेषण में प्रगति को बढ़ावा मिलता है, जिससे भारत में तकनीकी आत्मनिर्भरता को बढ़ावा मिलता है।
  • वैश्विक वैज्ञानिक योगदान: भारत में गहन ड्रिलिंग परियोजनाओं से प्राप्त निष्कर्ष वैश्विक भू-विज्ञान ज्ञान में योगदान देते हैं, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देते हैं और पृथ्वी की प्रणालियों की समग्र समझ को बढ़ाते हैं।                        

डीप ड्रिलिंग मिशन के साथ चुनौतियाँ क्या हैं?

  • रिग क्षमता: जैसे-जैसे गहराई बढ़ती है, ड्रिलिंग रिग की हुक लोड क्षमता एक महत्त्वपूर्ण बाधा बन जाती है, जिससे 3 किलोमीटर के लिये 100 टन के रिग की तुलना में 6 किलोमीटर के पायलट के लिये कहीं अधिक शक्तिशाली रिग की आवश्यकता होती है।
  • ड्रिलिंग जटिलता: अधिक गहराई पर खंडित एवं भूकंपीय रूप से सक्रिय चट्टान संरचनाओं के माध्यम से ड्रिलिंग करना अधिक जटिल हो जाता है, जिससे उपकरणों के फँसने का जोखिम बढ़ जाता है और साथ ही सीमित पहुँच के कारण समस्या निवारण में जटिलताएँ उत्पन्न होती हैं।
  • कोर हैंडलिंग: 3 किलोमीटर से अधिक गहराई से लंबे और भारी चट्टान कोर को निकालना तथा उठाने पर विशेष तकनीकी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
  • बोरहोल की स्थिरता:  गहरे बोरहोल में फॉल्ट लाइन एवं फ्रैक्चर ज़ोन का सामना करने की अधिक संभावना होती है, जो बोरहोल स्थिरता से समझौता कर सकता है और साथ ही ड्रिल को चलाने के लिये  विशेष उपकरण की आवश्यकता होती है।
  • मानव संसाधन: गहरी ड्रिलिंग प्रचालनों की विस्तारित अवधि, जो 3 किलोमीटर के लिये 6-8 महीने तथा 6 किलोमीटर के लिये 12-14 महीने तक चलती है, अत्यधिक कुशल तकनीकी कर्मिकों पर भारी बोझ डालती है, जिन्हें कठोर परिस्थितियों में 24/7 साइट पर कार्य करना पड़ता है।

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निष्कर्ष

3 किलोमीटर पायलट ड्रिलिंग डेटा भविष्य की 6 किमी. योजनाओं का मार्गदर्शन करेगा, जिसमें 110-130 डिग्री सेल्सियस के तापमान के लिये उपकरण एवं सेंसर डिज़ाइन शामिल हैं। कोयना के निष्कर्ष औद्योगिक क्षमता के साथ दोष क्षेत्रों से लेकर गहरे उपसतह सूक्ष्मजीवों तक विविध शोध को सक्षम बनाते हैं। अंतर्राष्ट्रीय रुचि में गहरे डेक्कन ट्रैप में कार्बन कैप्चर पर परियोजनाएँ शामिल हैं। यह प्रयास भारत की वैज्ञानिक ड्रिलिंग क्षमता को मज़बूत करता है और साथ ही अंतःविषय ज्ञान को भी विस्तृत करता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. साइंटिफिक डीप ड्रिलिंग क्या है? इसके महत्त्व एवं चुनौतियों पर चर्चा कीजिये?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न: निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2013)

  1. विद्युत चुंबकीय विकिरण 
  2. भू-तापीय ऊर्जा 
  3. गुरुत्वाकर्षण बल 
  4. प्लेट संचलन 
  5. पृथ्वी का घूर्णन 
  6. पृथ्वी की परिक्रमा

उपर्युक्त में से कौन पृथ्वी की सतह पर गतिशील परिवर्तन लाने के लिये ज़िम्मेदार हैं?

(a) केवल 1, 2, 3 और 4
(b) केवल 1, 3, 5 और 6
(c) केवल 2, 4, 5 और 6
(d) 1, 2, 3, 4, 5 और 6

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. भारतीय उपमहाद्वीप में भूकंपों की आवृत्ति बढ़ती हुई प्रतीत होती है। फिर भी इनके प्रभाव के न्यूनीकरण हेतु भारत की तैयारी (तत्परता) में महत्त्वपूर्ण कमियाँ है। विभिन्न पहलुओं पर चर्चा कीजिये। (2015)

प्रश्न. भूकंप से संबंधित संकटों के लिये भारत की भेद्यता की विवेचना कीजिये। पिछले तीन दशकों में भारत के विभिन्न भागों में भूकंपों द्वारा उत्पन्न बड़ी आपदाओं के उदाहरण प्रमुख विशेषताओं के साथ कीजिये। (2021)


ग्राम न्यायालय

प्रिलिम्स के लिये:

भारत का सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय, ग्राम न्यायालय, भारत का विधि आयोग, ई-कोर्ट मिशन मोड परियोजना, टेली-लॉ कार्यक्रम, फास्ट ट्रैक कोर्ट, न्याय बंधु मंच

मेन्स के लिये:

भारत में ग्राम न्यायालयों की चुनौतियाँ, न्यायिक प्रणाली में रुकावटें दूर करना।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

भारत के सर्वोच्च न्यायालय, ने राज्यों और उच्च न्यायालयों को ग्राम न्यायालयों की स्थापना तथा कार्यप्रणाली पर व्यापक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।

  • यह निर्देश इन ग्रामीण अदालतों के धीमे कार्यान्वयन के संबंध में चिंताओं के बीच आया है।

ग्राम न्यायालयों के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय की चिंताएँ क्या हैं?

  • धीमी गति से क्रियान्वयन: ग्राम न्यायालय अधिनियम 2008 का उद्देश्य न्यायालयों में भीड़भाड़ कम करना तथा प्रशासन का विकेंद्रीकरण करना था। इस बात पर ज़ोर दिया गया कि ग्राम न्यायालयों का उद्देश्य न्याय तक पहुँच को बेहतर बनाना है, लेकिन वर्तमान में आवश्यक 16,000 में से केवल 450 ही स्थापित हैं, जिनमें से केवल 300 ही काम कर रहे हैं। 
  • लंबित मामले: निचले न्यायालयों में चार करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं, कार्यात्मक ग्राम न्यायालयों की कमी के कारण लंबित मामलों की संख्या बढ़ रही है, जिससे न्यायिक प्रणाली में व्यवधान उत्पन्न हो रहा है।
  • न्याय तक पहुँच: सर्वोच्च न्यायालय इस बात से चिंतित है कि ग्राम न्यायालयों की धीमी स्थापना ग्रामीण नागरिकों को शीघ्र और किफायती न्याय प्रदान करने के लक्ष्य में बाधा उत्पन्न करती है।
  • रिपोर्टिंग का अभाव: राज्य और उच्च न्यायालय ग्राम न्यायालयों की स्थिति का विवरण देने वाले आवश्यक हलफनामे प्रस्तुत करने में विफल रहे हैं, जो अनुपालन तथा प्रतिबद्धता की कमी को दर्शाता है।
  • जनजातीय क्षेत्रों में प्रतिरोध: झारखंड और बिहार जैसे कुछ राज्यों ने स्थानीय या पारंपरिक कानूनों के साथ टकराव का हवाला देते हुए जनजातीय या अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम न्यायालय स्थापित करने का विरोध किया है।

अन्य संबंधित मुद्दे: ग्राम न्यायालय अधिनियम, 2008 की धारा 3 के अनुसार, राज्य सरकारें संबंधित उच्च न्यायालयों के परामर्श से ग्राम न्यायालयों की स्थापना के लिये ज़िम्मेदार हैं। हालाँकि अधिनियम ग्राम न्यायालयों की स्थापना को अनिवार्य नहीं बनाता है।

  • राज्यों द्वारा, विशेषकर जनजातीय क्षेत्रों में, स्थानीय कानूनों के साथ टकराव का हवाला देते हुए प्रतिरोध किया गया।
  • परिवार और श्रम न्यायालयों जैसी अन्य विशेष अदालतों के साथ ओवरलैप के कारण उनके अधिदेश के बारे में भ्रम की स्थिति पैदा हो गई है।
    • तालुका स्तर पर नियमित न्यायालयों की स्थापना से ग्राम न्यायालयों की आवश्यकता कम हो गई है।
  • हितधारकों के बीच कम जागरूकता तथा पुलिस अधिकारियों, वकीलों और अन्य पदाधिकारियों में ग्राम न्यायालयों का उपयोग करने के प्रति अनिच्छा।
  • प्रत्येक न्यायालय के लिये 18 लाख रुपए का प्रारंभिक बजट तथा केंद्र सरकार से तीन वर्षों हेतु 50% आवर्ती व्यय सहायता अपर्याप्त रही है।

ग्राम न्यायालय क्या हैं?

  • परिचय: ग्राम न्यायालय की संकल्पना का प्रस्ताव भारतीय विधि आयोग ने अपनी 114वीं रिपोर्ट में ग्रामीण क्षेत्रों में नागरिकों को न्याय की वहनीय और त्वरित पहुँच प्रदान करने के लिये किया था।
    • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 39A विधि प्रणाली द्वारा न्याय को बढ़ावा देने और आर्थिक या अन्य अक्षमताओं की परवाह किये बिना सभी नागरिकों के लिये समान अवसर प्रदान करने हेतु निशुल्क विधिक सहायता सुनिश्चित करता है।
    • यह विज़न वर्ष 2008 में ग्राम न्यायालय विधेयक के पारित होने और उसके पश्चात् वर्ष 2009 में ग्राम न्यायालय अधिनियम के कार्यान्वयन के साथ अस्तित्व में आया।
    • ग्राम न्यायालय को प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट का न्यायालय माना जाता है जिसके पास ग्राम स्तर पर लघु विवादों को निपटाने के लिये दीवानी और आपराधिक दोनों प्रकार की अधिकारिता होती है।
    • यह अधिनियम नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम और असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम के विशिष्ट जनजातीय क्षेत्रों के अतिरिक्त समग्र भारत में क्रियान्वित है।
  • प्रमुख विशेषताएँ:
    • स्थापना मानदंड: ये न्यायालय मध्यवर्ती स्तर पर प्रत्येक पंचायत या समीपवर्ती ग्राम पंचायतों के समूह के लिये स्थापित किये जाते हैं। किसी ग्राम न्यायालय का मुख्यालय उसके मध्यवर्ती पंचायत स्तर पर अवस्थित होता है। 
    • पीठासीन अधिकारी: पीठासीन अधिकारी, जिसे न्यायाधिकारी के रूप में जाना जाता है, को राज्य सरकार द्वारा उच्च न्यायालय के परामर्श से नियुक्त किया जाता है। 
      • न्यायाधिकारी का तात्पर्य न्यायिक अधिकारी से है जिनका वेतन और शक्तियाँ उच्च न्यायालयों के तहत कार्यरत प्रथम वर्ग के मजिस्ट्रेट के समान होती हैं। 
    • क्षेत्राधिकार: ग्राम न्यायालय उक्त अधिनियम की पहली और दूसरी अनुसूची में सूचीबद्ध आपराधिक मामलों, दीवानी मुकदमों, दावों तथा विवादों को आपराधिक मुकदमों के लिये संक्षिप्त विचारण प्रक्रियाओं का पालन करते हुए संभालते हैं। 
      • किसी अपराध के आरोपी व्यक्ति के पास सौदा अभिवाक् (Plea Bargaining) के लिये आवेदन दायर करने का विकल्प होता है जिससे आरोप या दंड को कम करने पर वार्ता की जा सकती है। 
    • सुलह के प्रयास: ये न्यायालय विवादों को निपटाने के लिये पक्षों के बीच सुलह करने पर ज़ोर देते हैं और इस उद्देश्य के लिये नियुक्त मध्यस्थों का उपयोग करते हैं। 
    • नैसर्गिक न्याय द्वारा निर्देशित: ये न्यायालय भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (जिसका स्थान भारतीय साक्ष्य अधिनियम ने ले लिया है) के तहत साक्ष्य के नियमों से आबद्ध नहीं हैं और उच्च न्यायालय के नियमों द्वारा निर्देशित नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करते हैं।
  • परिचालन की शर्तें: आरंभ में ग्राम न्यायालयों को मध्यवर्ती पंचायत स्तर पर स्थापित करने का प्रस्ताव किया गया था जिसमें अनावर्ती व्यय के लिये 18 लाख रुपए का एकमुश्त बजट शामिल था। केंद्र सरकार द्वारा प्रथम तीन वर्षों के लिये कुल आवर्ती व्यय के 50% का वहन करने की भी सुविधा दी गई।
    • 50 करोड़ रुपए के बजट के साथ इस योजना को 31 मार्च 2026 तक बढ़ा दिया गया है। वर्तमान में ग्राम न्यायालयों के संचालित होने और न्यायाधिकारियों की नियुक्ति के पश्चात् ही धनराशि आवंटित की जाती है।
      • ग्रामीण क्षेत्रों में हाशियाई वर्ग के नागरिकों को वहनीय और त्वरित न्याय प्रदान करने में प्रभावशीलता का आकलन करने के लिये एक वर्ष के उपरांत इनके प्रदर्शन की समीक्षा की जाती है।

भारत में लंबित मामलों को संबोधित करने के लिये भारत की पहल क्या हैं?

  • न्यायालय कक्ष: न्यायालय कक्षों की संख्या वर्ष 2014 में 15,818 से बढ़कर वर्ष 2023 में 21,295 हो गई है। इसके अतिरिक्त, 2,488 न्यायालय कक्ष वर्तमान में निर्माणाधीन हैं।
  • सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (ICT) समेकन: ई-कोर्ट मिशन मोड परियोजना के अंर्तगत 18,735 ज़िलों एवं अधीनस्थ न्यायालयों को कंप्यूटरीकृत किया गया है।
    • ई-कोर्ट के अंर्तगत WAN परियोजना का लक्ष्य देश भर के सभी ज़िलों और अधीनस्थ न्यायालय परिसरों को जोड़ना है। वर्तमान में 99.4% न्यायालय परिसरों WAN कनेक्टिविटी है।
    • 3,240 न्यायालय परिसरों एवं 1,272 कारागारों के बीच वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सक्षम बनाया गया है, जिससे दूरस्थ कानूनी कार्यवाही में भी वृद्धि हुई है।
    • टेली-लॉ कार्यक्रम, वर्ष 2017 में प्रारंभ किया गया, जो ग्राम पंचायतों में कॉमन सर्विस सेंटर (CSC) पर उपलब्ध वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, टेलीफोन एवं चैट सुविधाओं के साथ-साथ टेली-लॉ मोबाइल एप के माध्यम से वंचित वर्गों को वकीलों के पैनल से जोड़ता है।
  • राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड (NJDG): यह प्लेटफॉर्म न्यायिक अधिकारियों सहित सभी हितधारकों के लिये न्यायिक कार्यवाही एवं निर्णयों से संबंधित जानकारी तक पहुँच की अनुमति प्रदान करता है।
  • वर्चुअल कोर्ट (आभासी न्यायालय): 17 राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों में स्थित, वे 2.53 मिलियन से अधिक मामलों को संभालेंगे और जनवरी 2023 तक 359 करोड़ रुपए का ज़ुर्माना भी वसूलेंगे।
  • नियुक्तियाँ:
    • सर्वोच्च न्यायालय में नियुक्तियाँ: मई 2014 से मार्च 2023 तक 54 न्यायाधीशों की नियुक्ति की गई।
    • उच्च न्यायालयों में नियुक्तियाँ: 887 नए न्यायाधीश तथा 646 अतिरिक्त न्यायाधीशों को स्थायी बनाया गया; न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या 906 से बढ़ाकर 1114 की गई।
    • ज़िला एवं अधीनस्थ न्यायालय: स्वीकृत संख्या वर्ष 2013 में 19,500 से बढ़कर वर्ष 2023 में 25,000 से अधिक हो गई।
  • फास्ट ट्रैक कोर्ट की स्थापना: जघन्य अपराधों तथा महिलाओं एवं बच्चों के विरुद्ध अपराधों के लिये 843 फास्ट ट्रैक न्यायालय कार्यरत हैं।
  • फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट (FTSC): यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण करने संबंधी (POCSO) अधिनियम, 2012 के तहत बलात्कार के मामलों और अपराधों के शीघ्र निपटान के लिये 28 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के इस योजना में शामिल होने को मंज़ूरी दी गई।
  • विधायी सुधार: लंबित मामलों को कम करने के लिये विभिन्न कानूनों में संशोधन किया गया, जिनमें शामिल हैं:
  • लोक अदालतें एवं निःशुल्क सेवाएँ: 
    • विधिक सेवा प्राधिकरण (LSA) अधिनियम 1987 द्वारा स्थापित लोक अदालतों का उद्देश्य बाध्यकारी निर्णय लेना है जिन्हें चुनौती नहीं दी जा सकती है।
    • न्याय बंधु मंच के माध्यम से प्रो बोनो (सार्वजनिक कल्याण हेतु) कल्चर को संस्थागत बनाया गया, जिसमें प्रो बोनो अधिवक्ताओं को पंजीकृत किया गया और साथ ही 69 विधि विद्यालयों में प्रो बोनो क्लबों की स्थापना की गई।

आगे की राह

  • लक्ष्य निर्धारण: जनसंख्या घनत्व और केसों के भार के आधार पर ग्राम न्यायालय की स्थापना के लिये स्पष्ट तथा समयबद्ध लक्ष्य निर्धारित करें।
    • न्यायाधिकारियों, मध्यस्थों और अन्य हितधारकों के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करें।
    • केंद्र सरकार के वित्तपोषण को ग्राम न्यायालयों के सफल कार्यान्वयन से जोड़ें, राज्यों को इन न्यायालयों को प्राथमिकता देने के लिये प्रोत्साहित करें।
  • जनजातीय क्षेत्रों में प्रतिरोध का समाधान: आदिवासी समुदायों के साथ मिलकर ग्राम न्यायालयों के लिये चिंताओं का समाधान और सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील प्रक्रियाएँ विकसित करें तथा यह सुनिश्चित करें कि ग्राम न्यायालय पारंपरिक न्याय प्रणालियों के पूरक हों न कि उनकी जगह लें।
  • सीमाओं को स्पष्ट करना: ग्राम न्यायालयों और विशेष न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र को स्पष्ट रूप से परिभाषित करें। इससे भ्रम की स्थिति दूर होगी और मामलों का कुशल आवंटन सुनिश्चित होगा।
  • निगरानी और मूल्यांकन: ग्राम न्यायालय के प्रदर्शन पर नज़र रखने और सुधार के क्षेत्रों की पहचान करने के लिये एक मज़बूत डेटा संग्रह प्रणाली विकसित करना। पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये समय-समय पर प्रदर्शन मूल्यांकन तथा सार्वजनिक रिपोर्टिंग करना।
  • ग्रामीण संपर्क अभियान: ग्रामीण क्षेत्रों में लक्षित जन जागरूकता अभियान शुरू करें। नागरिकों को ग्राम न्यायालयों और उनके लाभों के बारे में शिक्षित करने के लिये स्थानीय मीडिया तथा सामुदायिक नेताओं का उपयोग करें।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत में ग्राम न्यायालयों के सामने आने वाली कार्यान्वयन चुनौतियों की आलोचनात्मक जाँच कीजिये। ये चुनौतियाँ ग्रामीण क्षेत्रों में न्याय तक पहुँच को कैसे प्रभावित करती हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. भारतीय न्यायपालिका के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)

  1. भारत के सर्वोच्च न्यायालय के किसी भी सेवानिवृत्त न्यायाधीश को भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा भारत के राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति से वापस बैठने और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में कार्य करने के लिये बुलाया जा सकता है।
  2. भारत में उच्च न्यायालय के पास अपने निर्णय की समीक्षा करने की शक्ति है जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय करता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (c)


जम्मू में उग्रवाद

प्रारंभिक परीक्षा के लिये:

नियंत्रण रेखा (LoC), शिमला समझौता, उफा घोषणा, परवाज़ योजना, हिमायत कार्यक्रम, उड़ान पहल, नई मंज़िल कार्यक्रम, उस्ताद योजना

मुख्य परीक्षा के लिये:

कश्मीर में उग्रवाद बढ़ने के कारण

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

जम्मू-कश्मीर (J&K) के जम्मू क्षेत्र में वर्ष 2021 के मध्य से आतंकवादी हमलों में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, जिसमें कठुआ ज़िले में सेना के वाहनों पर घात लगाकर हमला और अन्य क्षेत्रों में किये गए लक्षित हमले शामिल हैं।

  • हमले की घटनाओं में पुनः वृद्धि पूर्व के रुझानों में हुए परिवर्तन को दर्शाता है तथा सुरक्षा संबंधी सुभेद्यता  और क्षेत्रीय स्थिरता पर इसके प्रभावों को लेकर चिंता उत्पन्न करता है।

जम्मू में उग्रवाद बढ़ने के क्या कारण हैं?

  • रणनीतिक बदलाव: कश्मीर में ज़ीरो टेरर नीति के अनुसरण ने आतंकवादियों को जम्मू में हमले करने के लिये अवसर प्रदान किया।
    • वर्ष 2020 में जम्मू में कम उग्रवाद की घटनाओं में कथित कमी के कारण सेना की आवाजाही लद्दाख (गलवान दुर्घटना के बाद LAC के साथ) में हो गई, जिससे संभावित रूप से आतंकवादियों को स्थानांतरित होने का अवसर प्रदान हुआ।
  • जम्मू का सामरिक महत्त्व: जम्मू शेष भारत में एक महत्त्वपूर्ण प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है जो इसे सामान्य स्थिति को भंग करने और भय उत्पन्न करने के उद्देश्य से आतंकवादियों के लिये एक आकर्षक क्षेत्र बनाता है।
  • भू-रणनीतिक तत्त्व: जम्मू की नियंत्रण रेखा (LoC) से निकटता आतंकवादियों को पाक अधिकृत कश्मीर से आसानी से प्रवेश प्रदान करती है, जिससे घुसपैठ और रसद सहायता में सुविधा होती है।
    • हाल की घटनाएँ राजौरी, पुंछ और रियासी जैसे ज़िलों में पहाड़ी एवं वनाच्छादित क्षेत्रों में प्रभुत्व स्थापित करने के लिये किये गए प्रयासों का संकेत देती हैं।
  • आर्थिक असमानताएँ: जम्मू के दूरदराज़ और सीमावर्ती क्षेत्रों में आर्थिक अवसर और विकास की कमी आतंकवादी समूहों द्वारा स्थानीय युवाओं को अपने संगठन में शामिल करने के लिये अवसर प्रदान करती है।
  • राजनीतिक अलगाव: कुछ समुदायों के बीच राजनीतिक अलगाव की भावना, जो ऐतिहासिक असमानताओं और प्रशासनिक चुनौतियों से और बढ़ जाती है, आतंकवादी विचारधाराओं के लिये सहानुभूति या समर्थन को बढ़ावा दे सकती है।
  • ह्यूमन इंटेलिजेंस का अभाव: दशकों पहले आसूचना देने वाले स्थानीय लोग अब अपने 60 या 70 की आयु में हैं और सुरक्षा बलों ने युवा पीढ़ी के साथ संबंधों को बढ़ावा नहीं दिया है जो ह्यूमन इंटेलिजेंस को जारी रखने में आई कमी को उजागर करता है।

नोट

  • आतंकवाद: विधि-विरुद्ध क्रियाकलाप (निवारण) संशोधन अधिनियम, 2012 के तहत आतंकवाद में राजनीतिक, वैचारिक या चरमपंथी उद्देश्यों के लिये भय पैदा करने हेतु हिंसा या धमकियों का उपयोग करना शामिल है, जिसका राष्ट्रीय या वैश्विक सुरक्षा पर प्रभाव पड़ता है।
  • उग्रवाद: उग्रवाद से तात्पर्य हिंसा या लड़ाकूपन का प्रयोग करने की तत्परता से है, जिसमें सशस्त्र धार्मिक गुटों सहित विभिन्न समूह या व्यक्ति शामिल होते हैं, जिसे अक्सर आतंकवाद के साथ एक दूसरे के स्थान पर प्रयोग किया जाता है, लेकिन यह आतंकवाद की तुलना में हिंसक अभिव्यक्ति के संभावित रूप से कम चरम स्तर का संकेत देता है।

जम्मू और कश्मीर में उग्रवाद के ऐतिहासिक कारण क्या हैं?

  • राजनीतिक दलों की विश्वसनीयता में गिरावट: अप्रभावी प्रशासन, भ्रष्टाचार और खराब विकासात्मक परिणामों के कारण राजनीतिक दलों की विश्वसनीयता कम हो गई है।
  • बढ़ता विश्वास-घाटा: सुरक्षाकर्मियों द्वारा अत्यधिक बल प्रयोग की घटनाओं ने जनता के बीच अविश्वास को और गहरा कर दिया है।
  • पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से समर्थन: पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज़ इंटेलिजेंस (Inter-Services Intelligence- ISI) लश्कर-ए-तैयबा (Lashkar-e-Taiba- LeT) और जैश-ए-मोहम्मद (Jaish-e-Mohammed- JeM) जैसे भारत विरोधी समूहों को वित्तीय तथा वैचारिक समर्थन प्रदान करती है।
  • वर्ष 1987 के चुनाव में धाँधली पर विवाद: मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट (Muslim United Front- MUF), जो शरिया कानून को लागू करने और केंद्रीय राजनीतिक हस्तक्षेप का विरोध करने के उद्देश्य से कट्टरपंथी समूहों का गठबंधन था, ने दावा किया कि चुनाव में धाँधली के कारण उग्रवाद बढ़ा।
  • बेरोज़गारी: बेरोज़गारी का बढ़ता स्तर और सीमित अवसर युवाओं को उग्रवाद की ओर धकेलते हैं।
  • कट्टरपंथ: बढ़ता धार्मिक कट्टरपंथ और सांप्रदायिक प्रचार अस्थिरता को बढ़ाता है।
  • बंदूक संस्कृति की प्रशंसा: तत्काल प्रसिद्धि, पहचान और सम्मान पाने वाले उग्रवादियों की प्रशंसा उग्रवादी संस्कृति को बढ़ावा देता है। सोशल मीडिया तथा मुख्यधारा का मीडिया भी इस प्रशंसा में योगदान देता है।

उग्रवाद में वृद्धि से निपटने में क्या चुनौतियाँ हैं?

  • भौगोलिक स्थिति: जम्मू में 192 किलोमीटर लंबी अंतर्राष्ट्रीय सीमा (International Border- IB) और कश्मीर में 740 किलोमीटर लंबी नियंत्रण रेखा (Line of Control- LoC) संभावित घुसपैठ बिंदु हैं।
    • सुरक्षा उपायों के बावजूद, आतंकवादियों ने घुसपैठ के लिये इन सीमाओं पर दुर्गम इलाकों और जंगली क्षेत्रों का लाभ उठा सकते है। कठुआ में हुए हालिया हमले पुराने घुसपैठ मार्गों के फिर से सक्रिय होने का संकेत देते हैं।
  • सामुदायिक संबंध: सुरक्षा बलों और स्थानीय समुदायों के बीच विश्वास का निर्माण तथा उसे बनाए रखना, जो खुफिया जानकारी एकत्रित करने के लिये आवश्यक है, ऐतिहासिक शिकायतों एवं जनसांख्यिकीय विविधता के बीच एक सतत् चुनौती बनी हुई है।
    • यद्यपि उग्रवादी खतरों से निपटने के लिये ग्राम रक्षा गार्ड (Village Defence Guards- VDG) को पुनर्जीवित करने के प्रयास चल रहे हैं, लेकिन VDG सदस्यों द्वारा पूर्व में किये गए अपराधों के आरोपों के कारण ये प्रयास जटिल हो गए हैं।
  • खुफिया जानकारी एकत्र करना: स्थानीय समर्थकों की उपस्थिति और आतंकवादियों द्वारा अत्याधुनिक संचार प्रौद्योगिकियों के उपयोग के कारण सटीक तथा समय पर खुफिया जानकारी एकत्र करना कठिन है
    • चुनौती हाई-टेक, अच्छी तरह से प्रशिक्षित आतंकवादियों का सामना करने में है, जो पुलिस और सुरक्षा बलों की पकड़ से बचने के लिये स्थानीय लोगों के फोन तथा टेलीग्राम जैसे एप का उपयोग करके अपने ट्रैक को कवर करते हैं।
  • बाह्य समर्थन: ड्रोन के माध्यम से हथियारों की आपूर्ति सहित पाकिस्तान से सीमा पार समर्थन के आरोप स्थानीय उग्रवाद की गतिशीलता को प्रभावित करने वाले बाहरी आयामों को रेखांकित करते हैं।
  • सांप्रदायिक तनाव: जम्मू की जनसांख्यिकीय विविधता, जिसमें हिंदू, मुस्लिम और अन्य समुदाय शामिल है, जो ऐतिहासिक रूप से तीव्र हिंसा के दौरान सांप्रदायिक तनाव के प्रति संवेदनशील रही है।
    • हाल की घटनाएँ, जैसे कि डांगरी गाँव में हुई हत्याएँ और विशिष्ट समुदायों पर लक्षित हमले, सांप्रदायिक भय और विभाजन को भड़काने की एक जानबूझकर बनाई गई रणनीति की ओर संकेत करते हैं।

जम्मू एवं कश्मीर में आतंकवाद से निपटने हेतु सरकार द्वारा उठाए गए कदम

पहल 

उद्देश्य

विशेष दर्जे का निरसन

भारत के साथ घनिष्ठ एकीकरण के लिये जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति और विशेषाधिकारों को हटा दिया गया।

शिमला समझौता (1972)

भारत-पाकिस्तान ने मतभेदों को शांतिपूर्ण तरीके से हल करने की प्रतिबद्धता जताई।

विश्वास-निर्माण उपाय

बस सेवाओं और व्यापार मार्गों जैसे संबंधों को बेहतर बनाने के प्रयास।

वर्ष 2015 की उफा घोषणा

भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत की बहाली।

परवाज़ योजना

जम्मू-कश्मीर से खराब होने वाले वस्तुओं के हवाई माल परिवहन के लिये सब्सिडी।

हिमायत

जम्मू-कश्मीर में बेरोज़गार युवाओं के लिये प्रशिक्षण और प्लेसमेंट कार्यक्रम।

उड़ान

जम्मू-कश्मीर में युवाओं के कौशल विकास और प्रशिक्षण के लिये उद्योग पहल

नई मंज़िल

स्कूल छोड़ने वाले या मदरसा-शिक्षित युवाओं के लिये मुख्यधारा की शिक्षा और रोज़गार के लिये कार्यक्रम।

उस्ताद योजना

पारंपरिक कला और शिल्प में अल्पसंख्यक समुदायों के कौशल और प्रशिक्षण को उन्नत करना।

पंचायत-स्तरीय युवा क्लब

आतंकवाद को कम करने के लिये युवाओं को विकास और मनोरंजन में शामिल करना।

आगे की राह 

  • सीमा सुरक्षा उपाय: सीमा पार से घुसपैठ पर अंकुश लगाने के लिये नियंत्रण रेखा (LOC) और अंतर्राष्ट्रीय सीमा (IB) पर सीमा निगरानी बढ़ाना और संवेदनशील बिंदुओं को मज़बूत करना आवश्यक है।
    • निगरानी प्रणालियों के माध्यम से एकत्रित जानकारी की बेहतर करने और घुसपैठ प्रणाली की पहचान करने के लिये डेटा विश्लेषण सॉफ्टवेयर में निवेश करना।
  • तकनीकी प्रगति: उन्नत निगरानी तकनीकों, ड्रोन के साथ-साथ रात्रि दृष्टि उपकरणों की तैनाती से परिचालन प्रभावशीलता तथा आतंकवादी गतिविधियों की वास्तविक समय पर निगरानी में वृद्धि होती है। 
  • कानूनी और राजनीतिक ढाँचे: आतंकवाद के वित्तपोषण के खिलाफ कानूनी ढाँचे को मज़बूत करना, तथा संदिग्धों पर मुकदमा चलाने के लिये मज़बूत तंत्र सुनिश्चित करना प्रभावी आतंकवाद विरोधी अभियानों के लिये आवश्यक है
  • सामुदायिक व्यस्तता: सामाजिक-आर्थिक विकास, युवा सशक्तीकरण और अंतर-सामुदायिक संवाद को बढ़ावा देने के उद्देश्य से की जाने वाली पहल, चरमपंथी विचारधाराओं के लिये स्थानीय समर्थन को कम करने के लिये आवश्यक हैं।
    • उदाहरण के लिये, सहिष्णुता को बढ़ावा देने और चरमपंथी आख्यानों का मुकाबला करने वाली शिक्षा पहलों में निवेश करना, साथ ही सामाजिक सामंजस्य को बढ़ावा देने और चरमपंथी समूहों द्वारा शोषण की जाने वाली शिकायतों को दूर करने के लिये अंतर-धार्मिक संवाद तथा सामुदायिक सहभागिता कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करना।
  • कूटनीतिक पहुँच: आतंकवाद के सीमापारीय प्रभावों से निपटने के लिये कूटनीतिक प्रयास, आतंकवाद-निरोध पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के साथ मिलकर, बाह्य सहायता नेटवर्क को बाधित करने में मदद कर सकते हैं।
    • उदाहरण के लिये, आतंकवाद से निपटने के लिये सामूहिक दृष्टिकोण अपनाने हेतु शंघाई सहयोग संगठन (Shanghai Cooperation Organisation - SCO) जैसे क्षेत्रीय सुरक्षा संगठनों के साथ साझेदारी का निर्माण करना।
  • नीति समीक्षा: सक्रिय सुरक्षा उपायों को बनाए रखने और नागरिक हताहतों को न्यूनतम करने के लिये सुरक्षा नीतियों की निरंतर समीक्षा तथा उभरती हुई आतंकवादी रणनीतियों के साथ अनुकूलन आवश्यक है।
    • सुरक्षा बलों और आतंकवाद-रोधी विशेषज्ञों के बीच सूचना साझाकरण तथा सर्वोत्तम अभ्यास के आदान-प्रदान को बढ़ावा देना, साथ ही मानकीकृत संचालन प्रक्रियाओं (standardised operating procedures - SOPs) को अपनाकर नागरिक सुरक्षा सुनिश्चित करना, जिससे संपार्श्विक क्षति को न्यूनतम किया जा सके।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. जम्मू और कश्मीर के जम्मू क्षेत्र में उग्रवाद के फिर से उभरने में योगदान देने वाले कारकों की जाँच कीजिये। इस फिर से उभरने के क्षेत्रीय स्थिरता पर पड़ने वाले प्रभावों पर चर्चा कीजिये और इन चुनौतियों से निपटने के उपाय सुझाइए।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा,विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये: (2022) 

  1. अज़रबैजान
  2.  किर्गिज़स्तान
  3.  ताजिकिस्तान
  4.  तुर्कमेनिस्तान
  5.  उज़्बेकिस्तान 

उपर्युक्त में से किन देशों की सीमाएँ अफगानिस्तान से लगती हैं? 

(a) केवल 1, 2 और 5
(b) केवल 1, 2, 3 और 4
(c) केवल 3, 4 और 5
(d) 1, 2, 3, 4 और 5 

उत्तर: C  


प्रश्न. भारत में बौद्ध इतिहास, परंपरा और संस्कृति के संदर्भ में निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2014)

       प्रसिद्ध तीर्थ                     स्थल अवस्थान

  1. टाबो मठ और मंदिर, संकुल     : स्पीति घाटी
  2. लहोत्सव लाखांग मंदिर, नाको   : जास्कर घाटी
  3. अलची मंदिर संकुल              : लद्दाख

उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से युग्म सही सुमेलित है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370, जिसके साथ हाशिया नोट ‘’ जम्मू-कश्मीर राज्य के संबंध में अस्थायी उपबंध’’ लगा हुआ है, किस सीमा तक अस्थाई है? भारतीय राज्य-व्यवस्था के संदर्भ में इस उपबंध की भावी संभावनाओं पर चर्चा कीजिये? (2016)

प्रश्न.उन परिस्थितियों का विश्लेषण कीजिये जिनके कारण वर्ष 1966 में ताशकंद समझौता हुआ। समझौते की विशिष्टताओं की विवेचना कीजिये। (2013)