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शत्रु एजेंट अध्यादेश

  • 28 Jun 2024
  • 6 min read

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पुलिस महानिदेशक (DGP) ने आतंकवादी समर्थकों पर मुकदमा चलाने के लिये विधिविरुद्ध क्रिया-कलाप निवारण अधिनियम (Unlawful Activities Prevention Act- UAPA) के स्थान पर शत्रु एजेंट अध्यादेश (Enemy Agents Ordinance), 2005 का उपयोग करने का प्रस्ताव रखा, जिसमें आजीवन कारावास अथवा मृत्युदंड जैसी सज़ा का प्रावधान है।

शत्रु एजेंट अध्यादेश क्या है?

  • परिचय:
    • यह सर्वप्रथम वर्ष 1917 में जम्मू-कश्मीर (J&K) के डोगरा महाराजा द्वारा जारी किया गया था।
      • इसे 'अध्यादेश' इसलिये कहा जाता था क्योंकि डोगरा शासन के दौरान बनाए गए कानूनों को अध्यादेश कहा जाता था।
    • विभाजन के बाद का विकास: इस अध्यादेश को वर्ष 1948 में महाराजा द्वारा कश्मीर संविधान अधिनियम, 1939 की धारा 5 के अंतर्गत अपनी विधि निर्माण की शक्तियों का प्रयोग करते हुए कानून के रूप में पुनः अधिनियमित किया गया।
    • कानूनी आधार: शत्रु एजेंट अध्यादेश को बाद में जम्मू-कश्मीर संविधान, 1957 की धारा 157 के तहत शामिल करके इसका संरक्षण किया गया।
  • अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद हुए संवैधानिक परिवर्तन: 
  • शत्रु अध्यादेश के प्रमुख प्रावधान:
    • शत्रु एजेंट की परिभाषा: 
      • शत्रु एजेंट अध्यादेश स्वयं शत्रु के स्थान पर उसके (शत्रु) के एजेंटों अथवा मित्रों को लक्षित करता है। यह कश्मीर पर वर्ष 1947 में हुए कबायली आक्रमण के संदर्भ में “शत्रु” को परिभाषित करता है।
      • कोई व्यक्ति जो षड्यंत्र कर किसी अन्य व्यक्ति के साथ मिलकर शत्रु की सहायता करने के आशय से कार्य करता है, उसे शत्रु एजेंट की संज्ञा दी जाती है।
    • दंड: 
      • शत्रु एजेंटों को मृत्युदंड अथवा आजीवन कारावास अथवा 10 वर्ष तक संभव विस्तार वाले कठोर कारावास से दंडित किया जाएगा और ज़ुर्माने का भी दायी होगा
    • न्यायिक सत्यापन और विचारण:
      • रहमान शागू बनाम जम्मू और कश्मीर राज्य, 1959 मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने शत्रु एजेंट अध्यादेश को बरकरार रखा।
      • शत्रु एजेंट अध्यादेश के तहत उच्च न्यायालय के परामर्श से सरकार द्वारा नियुक्त विशेष न्यायाधीश द्वारा मुकदमा चलाया जाता है।
        • अध्यादेश के तहत अभियुक्त न्यायालय की अनुमति के बिना वकील नहीं रख सकता है और निर्णय के विरुद्ध अपील करने का कोई प्रावधान नहीं है।

विधिविरुद्ध क्रिया-कलाप निवारण अधिनियम (UAPA) क्या है?

  • विधिविरुद्ध क्रिया-कलाप निवारण अधिनियम (UAPA) 1967 में लागू किया गया था और इसका प्रारंभिक उद्देश्य अलगाववादी आंदोलनों और राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों से निपटना था।
  • आतंकवादी वित्तपोषण, साइबर-आतंकवाद, व्यक्तिगत पदनाम और संपत्ति की ज़ब्ती से संबंधित प्रावधानों को शामिल करने के लिये इसमें कई बार संशोधन किया गया, जिसमें नवीनतम संशोधन वर्ष 2019 में देखा गया। 
  • यह राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (National Investigation Agency- NIA) को देश भर में UAPA के तहत दर्ज मामलों की जाँच करने और मुकदमा चलाने का अधिकार देता है। यह आतंकवादी कृत्यों के लिये उच्चतम दंड के रूप में मृत्युदंड और आजीवन कारावास का प्रावधान करता है। 
  • यह संदिग्धों को बिना किसी आरोप या ट्रायल के 180 दिनों तक हिरासत में रखने और आरोपियों को ज़मानत देने से इनकार करने की अनुमति देता है, जब तक कि न्यायालय संतुष्ट न हो जाए कि वे दोषी नहीं हैं। 
  • यह आतंकवाद को ऐसे किसी भी कृत्य के रूप में परिभाषित करता है जो किसी व्यक्ति की मृत्यु या आघात का कारण बनता है या इसकी मंशा रखता है, या किसी संपत्ति को क्षति पहुँचाता है या नष्ट करता करता है, या जो भारत या किसी अन्य देश की एकता, सुरक्षा या आर्थिक स्थिरता को खतरे में डालता है। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा सबसे बड़ा (क्षेत्रफल के अनुसार) लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र है? (2008)

(a) कांगड़ा
(b) लद्दाख
(c) कच्छ
(d) भीलवाड़ा

उत्तर: (b)

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