भारतीय राजनीति
जम्मू और कश्मीर का विभाजन
- 11 Nov 2019
- 10 min read
प्रीलिम्स के लिये
जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम
मेन्स के लिये:
जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के प्रावधान, विभाजन से संबंधित मुद्दे
चर्चा में क्यों?
31 अक्तूबर 2019 से जम्मू और कश्मीर राज्य को जम्मू कश्मीर और लद्दाख केंद्रशासित प्रदेशों (Union Territories-UT) में आधिकारिक रूप से विभाजित कर दिया गया।
- सरदार वल्लभभाई पटेल की जयंती होने के कारण 31 अक्तूबर को का प्रतीकात्मक महत्व है, इसलिये इस दिन को दोनों नवगठित संघशासित प्रदेशों में नौकरशाही के स्तर पर कामकाज की शुरुआत के लिये चुना गया।
- 5 अगस्त से 31 अक्तूबर के बीच की अवधि का उपयोग जम्मू-कश्मीर के राज्य के प्रशासन तथा गृह मंत्रालय द्वारा जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम (J&K Reorganization Act) को लागू करने के लिये नौकरशाही के बुनियादी ढांचे को स्थापित करने हेतु किया गया।
विभाजन के बाद परिवर्तन
31 अक्तूबर को क्या हुआ?
- दोनो केंद्रशासित प्रदेशों के उप-राज्यपालों को जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय (Jammu and Kashmir High Court) के मुख्य न्यायाधीश द्वारा पद की शपथ दिलवाई गई।
- केंद्र सरकार द्वारा गुजरात कैडर के सेवारत IAS अधिकारी गिरीश चंद्र मुर्मू को जम्मू-कश्मीर तथा त्रिपुरा कैडर के सेवानिवृत्त नौकरशाह राधा कृष्ण माथुर को लद्दाख का उप-राज्यपाल (Lt. Governors) नियुक्त किया गया है।
- दोनों केंद्रशासित प्रदेशों में मुख्य सचिव, अन्य शीर्ष नौकरशाह, पुलिस प्रमुख तथा प्रमुख पर्यवेक्षक अधिकारी नियुक्त किये जायेंगे।
- दिलबाग सिंह जम्मू-कश्मीर पुलिस के महानिदेशक होंगे जबकि एक आई.जी. स्तर का अधिकारी लद्दाख में पुलिस का प्रमुख होगा। दोनों UT की पुलिस जम्मू और कश्मीर कैडर का हिस्सा बनी रहेंगी एवं इनका विलय अंततः AUGMET कैडर में हो जाएगा।
- पूर्ण रूप से विभाजन के लिये जम्मू और कश्मीर राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 2019 में एक वर्ष की अवधि का प्रावधान है।
- राज्यों का पुनर्गठन एक धीमी प्रक्रिया है जिसमें कई वर्षों का समय लग जाता हैं। वर्ष 2013 में तत्कालीन आंध्र प्रदेश का आंध्रप्रदेश और तेलंगाना में विभाजन किया गया जिसके पुनर्गठन से संबंधित मुद्दे अभी भी केंद्रीय गृह मंत्रालय के समक्ष समाधान के लिये विचाराधीन है।
अविभाजित राज्य में पहले से ही तैनात अन्य अधिकारियों का क्या होगा?
- दोनों केंद्रशासित प्रदेशों में पदों की संख्या का विभाजन किया जा चुका है। जबकि राज्य प्रशासन के कर्मचारियों को विभाजित किया जाना अभी शेष है।
- सरकार ने सभी कर्मचारियों को दोनो केंद्रशासित प्रदेशों में से किसी एक में अपनी नियुक्ति लिये आवेदन भेजने को कहा था, यह प्रक्रिया अभी जारी है।
- कर्मचारियों की नियुक्ति में बुनियादी विचार यह है कि दोनों केंद्रशासित प्रदेशों के मध्य न्यूनतम विस्थापन हो एवं क्षेत्रीय घनिष्ठता को प्राथमिकता दी जाये।
- सरकारी सेवा में कार्यरत लद्दाख के मूल निवासी इस क्षेत्र में तैनात रहना पसंद करते हैं जबकि कश्मीर और जम्मू के मूलनिवासी इस क्षेत्र में तैनात रहना चाहते हैं।
- लद्दाख क्षेत्र के सभी पदों को भरने के लिये लद्दाख के स्थानीय कर्मचारी पर्याप्त संख्या में नहीं हैं। इसलिये जम्मू-कश्मीर के कुछ लोगों को वहाँ नियुक्त करने पर विचार किया जा सकता है।
जम्मू-कश्मीर राज्य को नियंत्रित करने वाले कानूनों का क्या होगा?
- राज्य के विधायी पुनर्गठन का कार्य किया जा रहा है। इसके साथ ही राज्य के 153 कानूनों को निरस्त किया गया है और 166 कानूनों को यथावत रखा गया है।
- इसके बाद ऐसे अधिनियमों को निरस्त करने का कार्य किया जायेगा जो संपूर्ण भारत में तो लागू होते है लेकिन जम्मू-कश्मीर राज्य में लागू नहीं होते थे।
- राज्य प्रशासन ने राज्य पुनर्गठन अधिनियम में उल्लेखित सभी कानूनों को यथावत लागू कर दिया है।
- लेकिन 108 केंद्रीय कानूनों में राज्य के विशिष्ट मुद्दों को शामिल करना बड़े पैमाने पर विधायी प्रक्रिया होगी जबकि ये कानून दोनो केंद्रशासित प्रदेशों पर लागू होंगे।
नए कानून
- राज्य का अपनी आपराधिक प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code-CrPC) था जिसे अब केंद्रीय आपराधिक प्रक्रिया संहिता (Central CrPC) द्वारा प्रतिस्थापित किया जाएगा।
- कश्मीर के CrPC में कई प्रावधान केंद्रीय CrPC से अलग हैं।
- CrPC में संशोधन राज्य की आवश्यकता के अनुरूप किया जायेगा है लेकिन इन सभी पहलुओं पर अंतिम निर्णय केंद्र सरकार द्वारा लिया जायेगा।
- केंद्र के यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम द्वारा (Protection of Children from Sexual Offences (POCSO) Act) प्रतिस्थापित महिलाओं और बच्चों के संरक्षण से संबंधित कानून में राज्य-विशिष्ट मुद्दों को शामिल किया जा सकता है।
- यदपि आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिये आरक्षण के प्रावधान को पहले ही एक संशोधन के माध्यम से जोड़ा गया है परंतु केंद्र सरकार केंद्रीय अधिनियम से कुछ प्रावधान इसमें जोड़ सकता है।
वे कानून जो राज्य की विशिष्टता के आधार पर शामिल किये जा सकते है।
- केंद्र और राज्य के किशोर न्याय अधिनियमों में किशोरों की उम्र सीमा का निर्धारण विवाद का प्रमुख बिंदु है।
- केंद्रीय अधिनियम 16 वर्ष से अधिक आयु के किशोर को वयस्क मानता है जबकि राज्य अधिनियम में यह आयु सीमा 18 वर्ष है।
- यह तर्क दिया गया है कि जम्मू-कश्मीर में विशेष स्थिति को देखते हुए जहाँ किशोरों को अक्सर हिंसक विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लेते पाया जाता है इस स्थिति में केंद्रीय अधिनियम को जम्मू-कश्मीर में लागू करने पर वहां के बहुत से किशोरों का भविष्य ख़राब हो सकता है।
- राज्य के आरक्षण कानून जाति के आधार पर आरक्षण को मान्यता नहीं देते हैं।
- राज्य ने नियंत्रण रेखा (Line of Control-LoC) और अंतर्राष्ट्रीय सीमा के निकट रहने वाले तथा पिछड़े क्षेत्रों के नागरिकों के लिये क्षेत्र-वार आधार पर आरक्षण का प्रावधान किया है।
- हालाँकि राज्य की आबादी में 8% अनुसूचित जाति और 10% अनुसूचित जनजाति शामिल हैं परंतु राज्य में क्षेत्रीय विभिन्नता विद्यमान है जैसे लद्दाख में अनुसूचित जाति की संख्या शून्य है परन्तु अनुसूचित जनजाति की आबादी अधिक है।
संपत्ति कैसे साझा की जाएगी?
- राज्य की परिसंपत्तियों के बँटवारे की तुलना में राज्य का वित्तीय पुनर्गठन करना कहीं अधिक जटिल कार्य है।
- अगस्त, 2019 में राज्य के विभाजन को संसद की अनुमति मिलने के कारण प्रशासन वर्ष के मध्य में वित्तीय पुनर्गठन की कार्यवाई में व्यस्त है जो कि एक जटिल प्रशासनिक गतिविधि है।
- सरकार ने पूर्व रक्षा सचिव संजय मित्रा की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय सलाहकार समिति का गठन किया है जो राज्य की संपत्तियों और देनदारियों को दो केंद्रशासित प्रदेशों के बीच विभाजित करने के लिये सुझाव देगी। इस समिति ने अभी अपनी रिपोर्ट नहीं सौंपी है।
- पुनर्गठन के उद्देश्य से राज्य स्तर पर तीन और समितियों का गठन किया गया है जो राज्य के कर्मियों, वित्त एवं प्रशासनिक मामलों पर सुझाव देंगी।
- तीन समितियों ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है लेकिन उनकी सिफारिशों को अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया है।
- विशेष रूप से जबकि केंद्रशासित प्रदेशों के लिये कुल केंद्रीय बजट 7,500 करोड़ रुपए है, जम्मू और कश्मीर के लिये बजट 90,000 करोड़ रुपए से अधिक है।
उपरोक्त स्थितियों में गृह मंत्रालय कश्मीर के विभाजन की प्रक्रिया को लंबे समय से जारी रख सकता है।