शासन व्यवस्था
फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट का प्रदर्शन
- 28 Aug 2023
- 11 min read
प्रिलिम्स के लिये:फास्ट ट्रैक कोर्ट, यौन अपराध मामलों में न्याय, बलात्कार और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012, भारतीय दंड संहिता (IPC), बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय, 1992 मेन्स के लिये:यौन अपराध मामलों में न्याय के लिये फास्ट ट्रैक कोर्ट |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
कानून और विधि मंत्रालय के न्याय विभाग की केंद्र प्रायोजित योजना के तहत फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट का प्रदर्शन सराहनीय रहा है, जिससे बलात्कार और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (Protection of Children from Sexual Offenses- POCSO) अधिनियम, 2012 से संबंधित मामलों की सुनवाई प्रक्रिया में तेज़ी लाने में काफी प्रगति हुई है।
पृष्ठभूमि:
- परिचय:
- फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट विशेष मामलों में त्वरित न्याय सुनिश्चित करने हेतु समर्पित न्यायालय हैं। त्वरित सुनवाई होने के कारण नियमित न्यायालयों की तुलना में इनकी मामला निपटान दर/क्लीयरेंस दर बेहतर है।
- "आगामी पाँच वर्षों में ज़िला और अधीनस्थ न्यायालयों में लंबित मामलों को खत्म अथवा काफी सीमा तक कम करने के लिये" पहली बार वर्ष 2000 में ग्यारहवें वित्त आयोग द्वारा फास्ट ट्रैक कोर्ट (FTCs) की सिफारिश की गई थी।
- रिपोर्ट आने के बाद केंद्र ने पाँच वर्ष की अवधि के लिये विभिन्न राज्यों में 1,734 अतिरिक्त न्यायालयों की स्थापना की। वर्ष 2011 में केंद्र सरकार ने फास्ट-ट्रैक न्यायालयों को वित्त प्रदान करना बंद कर दिया।
- दिसंबर 2012 के सामूहिक बलात्कार और हत्या के मामले के बाद केंद्र सरकार ने 'निर्भया फंड' की स्थापना की, किशोर न्याय अधिनियम में संशोधन किया तथा फास्ट-ट्रैक महिला न्यायालयों की स्थापना की।
- इसके बाद कुछ अन्य राज्यों जैसे- उत्तर प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, बिहार आदि ने भी बलात्कार के मामलों के लिये फास्ट ट्रैक कोर्ट की स्थापना की।
- फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट विशेष मामलों में त्वरित न्याय सुनिश्चित करने हेतु समर्पित न्यायालय हैं। त्वरित सुनवाई होने के कारण नियमित न्यायालयों की तुलना में इनकी मामला निपटान दर/क्लीयरेंस दर बेहतर है।
- फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालयों के लिये योजना:
- सरकार ने वर्ष 2019 में भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत लंबित बलात्कार के मामलों और POCSO अधिनियम के तहत अपराधों के शीघ्र निपटान के लिये देश भर में 1,023 FTSCs स्थापित करने की योजना को मंज़ूरी प्रदान की।
- यह यौन अपराधियों के लिये निवारक रूपरेखा को भी सशक्त करता है।
- सरकार ने वर्ष 2019 में भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत लंबित बलात्कार के मामलों और POCSO अधिनियम के तहत अपराधों के शीघ्र निपटान के लिये देश भर में 1,023 FTSCs स्थापित करने की योजना को मंज़ूरी प्रदान की।
- प्रदर्शन:
- FTSCs ने जून 2023 तक बलात्कार और POCSO अधिनियम से संबंधित 1.74 लाख से अधिक मामलों का सफलतापूर्वक निपटान किया है।
- यह यौन अपराध के पीड़ितों को त्वरित न्याय प्रदान करने हेतु इन विशेष अदालतों के महत्त्वपूर्ण प्रभाव को दर्शाता है।
- वर्तमान में 29 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में 763 FTSCs कार्यरत हैं।
- इनमें से 412 विशिष्ट POCSO न्यायालय हैं।
- FTSCs ने जून 2023 तक बलात्कार और POCSO अधिनियम से संबंधित 1.74 लाख से अधिक मामलों का सफलतापूर्वक निपटान किया है।
फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट से संबंधित चुनौतियाँ:
- अपर्याप्त मूलभूत व्यवस्था और निम्न निपटान दर:
- भारत में स्पेशल कोर्ट को अक्सर नियमित न्यायालयों की तरह ही चुनौतियों से जूझना पड़ता है, क्योंकि उन्हें आमतौर पर नई मूलभूत व्यवस्था के रूप में स्थापित करने की बजाय नामित किया जाता है।
- इससे न्यायाधीशों पर कार्य का बोझ अत्यधिक बढ़ जाता है, उन्हें आवश्यक सहायक कर्मचारियों या बुनियादी ढाँचे के बिना मौजूदा कार्यभार के अलावा अन्य श्रेणियों से संबंधित मामले भी सौंपे जाते हैं।
- परिणामस्वरूप इन स्पेशल कोर्ट में मामलों के निपटान की दर धीमी हो जाती है।
- कानून और न्याय मंत्रालय के मई 2023 तक के आँकड़ों के अनुसार, दिल्ली के फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट की निपटान दर केवल 19% है, जो देश में सबसे न्यूनतम है।
- कानून और न्याय मंत्रालय के मई 2023 तक के आँकड़ों के अनुसार, दिल्ली के फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट की निपटान दर केवल 19% है, जो देश में सबसे न्यूनतम है।
- भारत में स्पेशल कोर्ट को अक्सर नियमित न्यायालयों की तरह ही चुनौतियों से जूझना पड़ता है, क्योंकि उन्हें आमतौर पर नई मूलभूत व्यवस्था के रूप में स्थापित करने की बजाय नामित किया जाता है।
- सीमित क्षेत्राधिकार:
- ये न्यायालय एक विशिष्ट क्षेत्राधिकार के साथ स्थापित किये जाते हैं, जो संबंधित मामलों से निपटने की उनकी क्षमता को सीमित कर सकते हैं। इससे न्याय मिलने में देरी के साथ ही कानूनों के कार्यान्वयन की निरंतरता में कमी की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
- आदर्श रूप से इन विशेष अदालतों में मामलों का निपटारा एक वर्ष के भीतर किया जाना चाहिये। हालाँकि मई 2023 तक दिल्ली ने कुल 4,369 लंबित मामलों में से केवल 1,049 मामलों का ही निपटान किया था। यह लंबित मामलों के निपटान में हो रही देरी को दर्शाता है।
- आदर्श रूप से इन विशेष अदालतों में मामलों का निपटारा एक वर्ष के भीतर किया जाना चाहिये। हालाँकि मई 2023 तक दिल्ली ने कुल 4,369 लंबित मामलों में से केवल 1,049 मामलों का ही निपटान किया था। यह लंबित मामलों के निपटान में हो रही देरी को दर्शाता है।
- ये न्यायालय एक विशिष्ट क्षेत्राधिकार के साथ स्थापित किये जाते हैं, जो संबंधित मामलों से निपटने की उनकी क्षमता को सीमित कर सकते हैं। इससे न्याय मिलने में देरी के साथ ही कानूनों के कार्यान्वयन की निरंतरता में कमी की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
- रिक्तियाँ और प्रशिक्षण का अभाव:
- न्यायाधीशों की कमी मामलों को प्रभावी ढंग से निपटाने की अदालतों की क्षमता को प्रभावित करती है।
- वर्ष 2022 तक संपूर्ण भारत की निचली अदालतों में रिक्ति दर 23% थी।
- वर्ष 2022 तक संपूर्ण भारत की निचली अदालतों में रिक्ति दर 23% थी।
- सामान्य अदालतों के नियमित न्यायाधीशों को अक्सर FTSCs में काम करने के लिये प्रतिनियुक्त किया जाता है।
- हालाँकि इन अदालतों को मामलों को जल्दी और प्रभावी ढंग से निपटाने के लिये विशेष प्रशिक्षण प्राप्त न्यायाधीशों की आवश्यकता होती है।
- न्यायाधीशों की कमी मामलों को प्रभावी ढंग से निपटाने की अदालतों की क्षमता को प्रभावित करती है।
- कुछ अपराधों को अन्य अपराधों से अधिक प्राथमिकता देना:
- भारत में विशेष न्यायालयों की स्थापना अक्सर सरकार की दोनों शाखाओं; न्यायिक और कार्यकारी द्वारा लिये गए तदर्थ/अस्थायी निर्णयों द्वारा निर्धारित की जाती है।
- इस दृष्टिकोण का अर्थ है कि अपराधों की कुछ श्रेणियों को दूसरे अपराधों की तुलना में तेज़ी से निपटाने के लिये प्राथमिकता दी जाती है।
- भारत में विशेष न्यायालयों की स्थापना अक्सर सरकार की दोनों शाखाओं; न्यायिक और कार्यकारी द्वारा लिये गए तदर्थ/अस्थायी निर्णयों द्वारा निर्धारित की जाती है।
POCSO अधिनियम:
- परिचय:
- POCSO अधिनियम 14 नवंबर, 2012 को लागू हुआ, जिसे बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन, 1992 के भारत के अनुसमर्थन के परिणामस्वरूप अधिनियमित किया गया था।
- इस विशेष कानून का उद्देश्य बच्चों का यौन शोषण और उन यौन शोषण के अपराधों को संबोधित करना है, जिन्हें या तो स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया या जिनके लिये पर्याप्त दंड का प्रावधान नहीं किया गया था।
- यह अधिनियम 18 वर्ष से कम आयु के किसी भी व्यक्ति को बच्चे के रूप में परिभाषित करता है। अधिनियम अपराध की गंभीरता के अनुसार सज़ा का प्रावधान करता है।
- विशेषताएँ:
- लिंग-तटस्थ प्रकृति: यह अधिनियम मानता है कि लड़कियाँ और लड़के दोनों यौन शोषण के शिकार हो सकते हैं तथा पीड़ित के लिंग की परवाह किये बिना ऐसा दुर्व्यवहार एक अपराध है।
- यह इस सिद्धांत के अनुरूप है कि सभी बच्चों को यौन दुर्व्यवहार और शोषण से सुरक्षा प्राप्ति का अधिकार है और कानूनों को लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं करना चाहिये।
- मामलों की रिपोर्ट करने में सुविधा: अब न केवल व्यक्तियों बल्कि संस्थानों में भी बच्चों के यौन शोषण के मामलों की रिपोर्ट करने के लिये पर्याप्त सामान्य जागरूकता है क्योंकि रिपोर्टिंग न करने को POCSO अधिनियम के तहत एक विशिष्ट अपराध बना दिया गया है।
- इससे बच्चों के खिलाफ अपराधों को छिपाना तुलनात्मक रूप से कठिन हो गया है।
- शर्तों की स्पष्ट परिभाषा: बाल पोर्नोग्राफी सामग्री के भंडारण को एक नया अपराध बना दिया गया है।
- इसके अलावा 'यौन उत्पीड़न' के अपराध को भारतीय दंड संहिता में 'महिला की लज्जा भंग करने' की अमूर्त परिभाषा के विपरीत स्पष्ट शब्दों में (बढ़ी हुई न्यूनतम सज़ा के साथ) परिभाषित किया गया है।
- लिंग-तटस्थ प्रकृति: यह अधिनियम मानता है कि लड़कियाँ और लड़के दोनों यौन शोषण के शिकार हो सकते हैं तथा पीड़ित के लिंग की परवाह किये बिना ऐसा दुर्व्यवहार एक अपराध है।
महिला एवं बाल दुर्व्यवहार को रोकने के लिये पहल:
- बाल दुर्व्यवहार रोकथाम और जाँच इकाई
- बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
- किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015
- बाल विवाह निषेध अधिनियम (2006)
- बाल श्रम निषेध एवं विनियमन अधिनियम, 2016
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्स:प्रश्न. राष्ट्रीय बाल नीति के मुख्य प्रावधानों का परीक्षण कीजिये तथा इसके कार्यान्वयन की स्थिति पर प्रकाश डालिये। (2016) प्रश्न. हमें देश में महिलाओं के प्रति यौन-उत्पीड़न के बढ़ते हुए दृष्टांत दिखाई दे रहे हैं। इस कुकृत्य के विरुद्ध विद्यमान विधिक उपबंधों के होते हुए भी ऐसी घटनाओं की संख्या बढ़ रही है। इस संकट से निपटने के लिये कुछ नवाचारी उपाय सुझाइये। (2014) |