सामाजिक न्याय
बाल यौन शोषण एवं दुर्व्यवहार: कारण एवं विश्लेषण
- 27 Oct 2018
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चर्चा में क्यों?
- अभी कुछ समय पहले महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने बच्चों के शोषण एवं ऑनलाइन यौन दुर्व्यवहार के विरुद्ध राष्ट्रीय स्तर पर एक गठबंधन बनाने की घोषणा की।
- मंत्रालय का उद्देश्य राष्ट्रीय स्तर पर एक ऐसी व्यापक प्रणाली का विकास करना है, जिसमें बच्चों के माता-पिता, स्कूलों, समुदायों, गैर-सरकारी संगठनों, स्थानीय सरकारों के साथ-साथ पुलिस व वकीलों को भी शामिल किया जाना है।
- ऐसी व्यापक प्रणाली की आवश्यकता इसलिये है ताकि बच्चों की सुरक्षा एवं अधिकार के संबंध में निर्मित सभी वैधानिक नियामकों, नीतियों, राष्ट्रीय रणनीतियों एवं मानकों के सटीक क्रियान्वयन को सुनिश्चित करना संभव हो सके।
बाल दुर्व्यवहार (Child abuse) क्या है?
- बच्चों के साथ शारीरिक, मानसिक, यौनिक अथवा भावनात्मक स्तर पर किया जाने वाला दुर्व्यवहार बाल दुर्व्यवहार कहलाता है। हालाँकि हम बाल दुर्व्यवहार में सामान्यतः यौनिक एवं शारीरिक शोषण को ही शोषण समझाते हैं, जबकि मानसिक तथा भावनात्मक स्तर पर होने वाला शोषण भी बच्चों के मानस पर दीर्घकालिक प्रभाव डालता है।
- बाल यौन शोषण का दायरा केवल बलात्कार या गंभीर यौन आघात तक ही सिमटा नहीं है बल्कि बच्चों को इरादतन यौनिक कृत्य दिखाना, अनुचित कामुक बातें करना, गलत तरीके से छूना, जबरन यौन कृत्य के लिये मजबूर करना, भोलेपन का फायदा उठाने के लिये चॉकलेट, पैसे आदि का प्रलोभन देना चाइल्ड पोर्नोग्राफी बनाना आदि बाल यौन शोषण के अंतर्गत आते हैं।
कौन करते हैं बाल दुर्व्यवहार?
- अक्सर इसमें शामिल व्यक्ति हमारे आस-पास के रिश्तेदार, मित्र, पड़ोसी होते हैं, जिनकी हरकतों से उनके कृत्य का पता लगाना कठिन होता है।
- कई बार बाल दुर्व्यवहार मजाक करते-करते कर लिया जाता है, तो कई बार अनुशासन व सुधार के नाम पर दुर्व्यवहार होता है। जिसमें कई बार माता-पिता, अभिवावक, शिक्षक, सहपाठी व कोच भी संलिप्त रहते हैं।
बाल दुर्व्यवहार क्यों होता है?
- कई बार व्यक्ति अपनी दबी यौन कुंठा एवं मनोविकार से ग्रस्त होने के कारण ऐसा करता है।
- तो कई बार पारिवारिक कलह, पुत्र प्राप्ति का अवसाद, पीढ़ीगत दूरी के कारण भी बच्चों के स्वास्थ, शरीर व गरिमा को क्षति पहुँचाया जाती है। जिसमें बेवजह बच्चों को पीटना, तेजी से झकझोरना, खिल्ली उड़ाना, उपेक्षा करना शामिल है।
- बच्चे न तो मजबूत प्रतिरोध कर पाते हैं और न हीं उनमें यौन चेतना का विकास होता है। जिससे वे ऐसे अपराधियों के लिये ‘सॉफ्ट टारगेट्स’ बन जाते हैं।
- हालाँकि ऐसे पीडि़त बच्चों में लड़के एवं लड़कियाँ दोनों निशाना बनते हैं, लेकिन सामान्यतः इसमें लड़कियों का अनुपात अधिक होता है।
बाल दुर्व्यवहार की स्थिति क्या है?
- 2002 में जारी विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व में 18 वर्ष से कम उम्र के 7.9 प्रतिशत लड़के एवं 19.7 प्रतिशत लड़कियाँ यौन हिंसा की शिकार हैं।
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आँकड़ों के अनुसार 2011 में बाल यौन शोषण के 33,098 मामले दर्ज किये गए। भारत में प्रत्येक 155 मिनट पर 16 से कम उम्र के एक बच्चे तथा प्रत्येक 13 घंटे पर10 से कम उम्र के एक बच्चे का बलात्कार होता है।
- यूनिसेफ द्वारा 2005 से 2013 के बीच किशोरियों पर किये गए अध्ययन के आँकड़े बताते हैं कि भारत की 10 प्रतिशत लड़कियों को जहाँ 10 से 14 वर्ष से कम उम्र में यौन दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ा, वहीं 30 प्रतिशत ने 15 - 19 वर्ष के दौरान यौन दुर्व्यवहार झेला।
- 2007 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा भारत के 13 राज्यों पर किये गए अध्ययन में 21 प्रतिशत लोगों ने बचपन में गंभीर यौन शोषण की बात स्वीकारी। वैसे बाल शोषण करने वाले अपराधियों में केवल पुरुष ही नहीं, बल्कि कम अनुपात के साथ महिलाएँ भी शामिल होती हैं।
बाल यौन शोषण एवं दुर्व्यवहार के परिणाम
- निःसंदेह बाल यौन शोषण एक जघन्य कृत्य है। इससे बच्चे के अवचेतन मन में अनजाना सा डर घर कर जाता है और वे अवसाद, बुरे सपने, आत्मग्लानि, आत्मविश्वास की कमी, बिस्तर गीला करना, अनिद्रा जैसे मनोविकारों से ग्रस्त हो जाते हैं।
- मानसिक तथा भावनात्मक स्तर पर किया जाने वाला यह शोषण बच्चे के अंतःमन मेें गहरा बैठ जाता है, जो धीरे-धीरे समय के साथ कुंठा बनकर दूसरों के साथ यौन शोषण करने के लिये प्रेरित भी करता है। यह मनोविकार उसके जीवन का हिस्सा बनकर एक अपराधबोध का बोझ बन जाता है। जिस कारण बच्चे कई बार बड़े होने पर भी इस मानसिक ग्लानि से उबर नहीं पाते।
बाल यौन शोषण के विरुद्ध कानून
- बाल अधिकारों की रक्षा के लिये ‘संयुक्त राष्ट्र का बाल अधिकार कन्वेंशन (CRC)’ एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है, जो सदस्य देशों को कानूनी रूप से बाल अधिकारों की रक्षा के लिये बाध्य करता है।
- भारत में बाल यौन शोषण एवं दुर्व्यवहार के खि़लाफ सबसे प्रमुख कानून 2012 में पारित यौन अपराध के खि़लाफ बच्चों का संरक्षण कानून (POCSO) है। इसमें अपराधों को चिह्नित कर उनके लिये सख्त सजा निर्धारित की गई है। साथ ही त्वरित सुनवाई के लिये स्पेशल कोर्ट का भी प्रावधान है।
- यह कानून बाल यौन शोषण के इरादों को भी अपराध के रूप में चिह्नित करता है तथा ऐसे किसी अपराध के संदर्भ में पुलिस, मीडिया एवं डॉक्टर को भी दिशानिर्देश देता है।
- वैसे भारतीय दंड संहिता की धारा 375 (बलात्कार), 372 (वेशयावृत्ति के लिये लड़कियों की बिक्री), 373 (वेश्यावृत्ति के लिये लड़कियों की खरीद) तथा 377 (अप्राकृतिक कृत्य) के अंतर्गत यौन अपराधों पर अंकुश लगाने हेतु सख्त कानून का प्रावधान है।
बाल यौन शोषण के विरुद्ध वैधानिक प्रावधानों की सीमाएँ
- धारा 375 में बलात्कार को आपराधिक कृत्यों के अंतर्गत परिभाषित किया गया है। किंतु इस धारा के कुछ प्रावधान व व्याख्या संकीर्ण है। इसमें छेड़-छाड़, गलत तरीकों से छूना, देर तक घूरना तथा उत्पीड़न आदि के संदर्भ में स्पष्ट प्रावधानों की कमी नजर आती है। जबकि इस प्रकार के कृत्यों पीडि़त को मानसिक तथा भावनात्मक रूप से गहरे आघात पहुँचाते हैं।
- भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अंतर्गत ऐसे संबंध जिनमें यदि व्यक्ति 15 वर्षीय पत्नी के साथ यौन संबंध बनाता है तो उसे अपराध के दायरे से बाहर रखा गया है, जबकि हमारा कानून (बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006) बाल विवाह का प्रतिषेध करता है।
आगे की राह
- वैसे तो भारत में बाल यौन शोषण एवं दुर्व्यवहार के खि़लाफ व्यापक कानूनी ढाँचा है। कितु इतने कानूनों एवं योजनाओं के बावजूद इनकी तकनीकी चूक तथा इनके कार्यान्वयन में अनियमितता, त्वरित कार्रवाई न होने के कारण ये घटनाएँ होती हैं।
- इसके लिये जरूरी है सजगता एवं जागरूकता। ऐसे में जरूरी है कि प्राथमिक स्तर पर घर-परिवार, माता-पिता एवं परिजन बच्चों से मिलने वालों एवं उनके साथ खेलने वालों के प्रति सजग रहे वहीं बच्चों को भी असामान्य ‘व्यवहार’ के प्रति सजग रहने के लिये प्रेरित करना चाहिये।
- स्कूलों में जहाँ अनिवार्य मनोवैज्ञानिक कैंप होने चाहिये, तो वहीं डॉक्टर, मीडिया व पुलिस को भी इन घटनाओं के प्रति संवेदनशील होना चाहिये।
- इंटरनेट, मोबाइल, सोशल मीडिया के अश्लील सामग्री पर अविलंब रोक लगनी चाहिये। वही इंटरनेट साइट्स पर पैरेंटल कंट्रोलन के विकल्प को मजबूत करना चाहिये।