लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली अपडेट्स

सामाजिक न्याय

POCSO अधिनियम

  • 07 Aug 2023
  • 13 min read

प्रिलिम्स के लिये:

POCSO अधिनियम, वर्ष 1992 का बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन, भारतीय दंड संहिता, किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, POCSO न्यायालय

मेन्स के लिये:

POCSO अधिनियम, कार्यान्वयन के मुद्दे और आगे की राह

चर्चा में क्यों?

हाल ही में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने लोकसभा को सूचित किया है कि यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012 बच्चों को यौन शोषण से बचाने के लिये सरकार द्वारा बनाए गए महत्त्वपूर्ण कानूनों में से एक है।

POCSO अधिनियम:

  • परिचय:
    • POCSO अधिनियम 14 नवंबर, 2012 को लागू हुआ, जो वर्ष 1992 में बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के भारत के अनुसमर्थन के परिणामस्वरूप अधिनियमित किया गया था।
    • इस विशेष कानून का उद्देश्य बच्चों के यौन शोषण और यौन उत्पीड़न के अपराधों को संबोधित करना है, जिन्हें या तो विशेष रूप से परिभाषित नहीं किया गया या पर्याप्त रूप से दंड का प्रावधान नहीं किया गया है।
    • यह अधिनियम 18 वर्ष से कम आयु के किसी भी व्यक्ति को बच्चे के रूप में परिभाषित करता है। अधिनियम अपराध की गंभीरता के अनुसार सज़ा का प्रावधान करता है।
      • बच्चों के साथ होने वाले ऐसे अपराधों को रोकने के उद्देश्य से बच्चों के यौन शोषण के मामलों में मृत्युदंड सहित अधिक कठोर दंड का प्रावधान करने की दिशा में वर्ष 2019 में अधिनियम की समीक्षा तथा इसमें संशोधन किया गया।
      • भारत सरकार ने POCSO नियम, 2020 को भी अधिसूचित कर दिया है। 
  • विशेषताएँ:
    • लिंग-निष्पक्ष प्रकृति:
      • अधिनियम के अनुसार, लड़के और लड़कियाँ दोनों यौन शोषण के शिकार हो सकते हैं और पीड़ित के लिंग की परवाह किये बिना ऐसा दुर्व्यवहार एक अपराध है।
        • यह इस सिद्धांत के अनुरूप है कि सभी बच्चों को यौन दुर्व्यवहार और शोषण से सुरक्षा का अधिकार है तथा लिंग के आधार पर कानूनों को भेदभाव नहीं करना चाहिये।
    • मामलों की रिपोर्टिंग में आसानी:
      • न केवल व्यक्तियों द्वारा बल्कि संस्थान भी अब नाबालिगों के साथ यौन दुर्व्यवहार के मामलों की रिपोर्ट करने के लिये पर्याप्त रूप से जागरूक हैं क्योंकि रिपोर्ट न करना POCSO अधिनियम के तहत एक विशिष्ट अपराध बना दिया गया है। इससे बच्चों से संबंधित यौन अपराधों को छिपाना तुलनात्मक रूप से कठिन है।
    • शर्तों की स्पष्ट परिभाषा:
      • बाल पोर्नोग्राफी से संबंधित सामग्री के संग्रहण को एक नया अपराध बना दिया गया है।
      • इसके अलावा 'यौन उत्पीड़न' के अपराध को भारतीय दंड संहिता में 'महिला की लज्जा भंग करने' की अमूर्त परिभाषा के विपरीत स्पष्ट शब्दों में (बढ़ी हुई न्यूनतम सज़ा के साथ) परिभाषित किया गया है। 
  • POCSO नियम 2020:
    • अंतरिम मुआवज़ा और विशेष राहत:
      • POCSO नियमों का नियम-9 विशेष अदालत को FIR दर्ज होने के बाद बच्चे के लिये राहत या पुनर्वास से संबंधित ज़रूरतों हेतु अंतरिम मुआवज़े का आदेश देने की अनुमति देता है। यह मुआवज़ा अंतिम मुआवज़े (यदि कोई हो) के विरुद्ध समायोजित किया जाता है।
    • विशेष राहत का तत्काल भुगतान:
      • POCSO नियमों के अंर्तगत बाल कल्याण समिति (CWC) ज़िला कानूनी सेवा प्राधिकरण (DLSA), ज़िला बाल संरक्षण इकाई (DCPU) या फंड का उपयोग करके भोजन, कपड़े और परिवहन जैसी आवश्यक ज़रूरतों के लिये तत्काल भुगतान की सिफारिश कर सकती है। इसे किशोर न्याय अधिनियम, 2015 के अंतर्गत बनाए रखा गया।
      • भुगतान CWC की अनुशंसा प्राप्त होने के एक सप्ताह के अंदर किया जाना चाहिये।
    • बच्चे के लिये सहायक व्यक्ति:
      • POCSO नियम CWC को जाँच और परीक्षण प्रक्रिया के दौरान बच्चे की सहायता के लिये एक सहायक व्यक्ति प्रदान करने का अधिकार देता है।
      • सहायता करने वाला व्यक्ति बच्चे के सर्वोत्तम हितों को सुनिश्चित करने के लिये ज़िम्मेदार है, जिसमें शारीरिक, भावनात्मक एवं मानसिक कल्याण, चिकित्सा देखभाल, परामर्श तथा शिक्षा तक पहुँच शामिल है। वह बच्चे एवं उसके माता-पिता या अभिभावकों को मामले से संबंधित अदालती कार्यवाही और विकास के बारे में भी सूचित करेगा।
  • नोट: देश में आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2018 को आगे बढ़ाते हुए न्याय विभाग ने अक्तूबर 2019 में देश भर में कुल 1023 फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट (FTSCs) (389 विशिष्ट POCSO अदालतों सहित) की स्थापना के लिये एक केंद्र प्रायोजित योजना प्रारंभ की है। 
  • 31 मई, 2023 तक देश भर के 29 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में 412 विशिष्ट POCSO (e-POCSO) न्यायालयों सहित कुल 758 FTSCs कार्यरत हैं।

POCSO अधिनियम से जुड़े मुद्दे एवं चुनौतियाँ:

  • जाँच से जुड़ा मुद्दा:
    • पुलिस बल में महिलाओं का कम प्रतिनिधित्व:
      • POCSO अधिनियम में बच्चे के निवास या पसंद के स्थान पर एक महिला उप-निरीक्षक द्वारा प्रभावित बच्चे का बयान दर्ज करने का प्रावधान है।
      • ऐसी स्थिति में जब पुलिस बल में महिलाओं की संख्या केवल 10% है, इस प्रावधान का अनुपालन करना व्यावहारिक रूप से असंभव है, साथ ही कई पुलिस स्टेशनों में तो मुश्किल से ही महिला कर्मचारी मौजूद हैं।
    • जाँच में कमियाँ:
      • हालाँकि ऑडियो-वीडियो माध्यमों का उपयोग करके बयान दर्ज करने का प्रावधान है, फिर भी कुछ मामलों में जाँच एवं अपराध के परिदृश्यों के संरक्षण को लेकर  खामियाँ अभी भी मौजूद हैं।
        • शफी मोहम्मद बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य (2018) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि जघन्य अपराधों के मामलों में जाँच अधिकारी का कर्तव्य है कि वह अपराध स्थल की तस्वीर और वीडियोग्राफी करे, साथ ही उसे साक्ष्य के रूप में संरक्षित करे।
    • न्यायिक मजिस्ट्रेटों द्वारा कोई परीक्षा नहीं:
      • अधिनियम का एक अन्य प्रावधान न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा अभियोजक के बयान की रिकॉर्डिंग को अनिवार्य करता है।
      • हालाँकि ऐसे बयान ज़्यादातर मामलों में दर्ज किये जाते हैं, लेकिन न तो न्यायिक मजिस्ट्रेट को मुकदमे के दौरान पूछताछ के लिये बुलाया जाता है और न ही बयान से मुकरने वालों को दंडित किया जाता है। ऐसे में इस तरह के बयान खारिज हो जाते हैं।
  • आयु निर्धारण का मुद्दा:
    • यद्यपि किशोर अपराधी का आयु निर्धारण किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 द्वारा निर्देशित है, किशोर पीड़ितों के लिये POCSO अधिनियम के तहत ऐसा कोई प्रावधान मौजूद नहीं है।
      • जरनैल सिंह बनाम हरियाणा राज्य (वर्ष 2013) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि प्रदत्त वैधानिक प्रावधान को अपराध के शिकार हुए किसी बच्चे के लिये उसकी आयु निर्धारित करने में भी सहयोगी आधार होना चाहिये।
      • हालाँकि कानून में किसी भी बदलाव या विशिष्ट निर्देशों के अभाव में जाँच अधिकारी अभी भी स्कूल प्रवेश-त्याग रजिस्टर में दर्ज जन्मतिथि पर ही भरोसा बनाए हुए हैं।
  • आरोप-पत्र दाखिल करने में देरी:
    • POCSO अधिनियम के अनुसार, अधिनियम के तहत दर्ज मामले की जाँच अपराध होने या अपराध की रिपोर्टिंग की तिथि से एक माह की अवधि के भीतर करना आवश्यक है
    • हालाँकि व्यावहारिक रूप से पर्याप्त संसाधनों की कमी, फोरेंसिक साक्ष्य प्राप्त करने में देरी या मामले की जटिलता जैसे विभिन्न कारणों से जाँच पूरी होने में प्रायः एक माह से अधिक का समय लगता है।
  • हालिया यौन संबंध को साबित करने के लिये शर्त आरोपित नहीं:
    • न्यायालयों को यह विचार करने की आवश्यकता होती है कि अभियुक्त ने POCSO अधिनियम के तहत अपराध किया है।
    • भारतीय साक्ष्य अधिनियम (जहाँ अभियोजन पक्ष को साबित करना होता है कि हाल में यौन संबंध बना और इसमें पीड़ित की सहमति शामिल थी) के विपरीत POCSO अधिनियम अभियोजन पक्ष पर कोई शर्त आरोपित नहीं करता है।
    • हालाँकि यह देखा गया है कि पीड़ित/पीड़िता के नाबालिग साबित होने के बाद भी न्यायालय द्वारा सुनवाई के दौरान ऐसे किसी अनुमान पर विचार नहीं किया जाता है।
      • ऐसे परिदृश्यों में दोषसिद्धि दर में अपेक्षित वृद्धि होने की संभावना नहीं है।

आगे की राह

  • सरकार को POCSO संबंधी मामलों में जाँच एजेंसियों को धन और कर्मियों जैसे पर्याप्त संसाधन उपलब्ध कराने चाहिये। इससे यह सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी कि मामले की जाँच समयबद्ध और कुशल तरीके से की जाए।
  • POCSO मामलों का प्रबंधन करने वाले जाँच अधिकारियों को उचित प्रशिक्षण प्रदान किया जाना चाहिये। इसमें साक्ष्य एकत्र करने एवं संरक्षित करने, बाल पीड़ितों तथा गवाहों के बयान लेने और POCSO अधिनियम की कानूनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने हेतु उचित तकनीकों पर प्रशिक्षण प्रदान करना शामिल हो सकता है।
  • POCSO मामलों के लिये विशेष न्यायालयों की स्थापना से मामलों का निपटारा त्वरित गति और कुशलता से सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है। इससे सुनवाई की प्रक्रिया में तेज़ी लाने में भी मदद मिलेगी, जो पीड़ित एवं उसके परिवार के लिये महत्त्वपूर्ण हो सकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. राष्ट्रीय बाल नीति के मुख्य प्रावधानों का परीक्षण कीजिये तथा इसके कार्यान्वयन की स्थिति पर प्रकाश डालिये।  (2016)

स्रोत: पी.आई.बी.

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2