सामाजिक न्याय
अलीवा: बाल विवाह के उन्मूलन हेतु डेटा संचालित दृष्टिकोण
- 24 Sep 2022
- 10 min read
प्रिलिम्स के लिये:बाल विवाह, हिंदू विवाह अधिनियम 1955, विशेष विवाह अधिनियम 1954, बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006, 1993 में महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर अभिसमय। मेन्स के लिये:भारत में बाल विवाह को समाप्त करने की पहल। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ओडिशा के एक ज़िले नयागढ़ ने बाल विवाह को मिटाने के लिये एक अनूठी पहल- अलीवा को अपनाया है।
- ओडिशा की बाल विवाह रोकथाम रणनीति के अनुसार, राज्य का लक्ष्य 2030 तक बाल विवाह को समाप्त करना है।
पहल के प्रमुख बिंदु:
- विषय:
- यह कार्यक्रम जनवरी 2022 में शुरू किया गया था।
- आंँगनबाड़ी कार्यकर्त्ताओं से कहा गया है कि वे अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाली हर किशोरी की पहचान करें और उन पर नज़र रखें।
- ज़िले के आंँगनबाडी केंद्रों में उपलब्ध अलीवा नाम के रजिस्टरों में किशोरियों की जन्म पंजीकरण तिथि, आधार, परिवार का विवरण, कौशल प्रशिक्षण आदि का विवरण दर्ज होता है।
- लड़की की उम्र को स्थानीय स्कूल के प्रधानाध्यापक, पिता, पर्यवेक्षक और बाल विवाह निषेध अधिकारी (CMPO) द्वारा अनुमोदित किया जाता है।
- अब तक ज़िले में 48,642 किशोरियों की जानकारी अलीवा रजिस्टर में दर्ज है।
- बाल विवाह के बारे में सूचना मिलने पर ज़िला प्रशासन और पुलिस लड़कियों की उम्र के प्रमाण का पता लगाने के लिये रजिस्टर का सहारा लेते हैं।
- ज़िले ने 10 वर्ष यानी 2020 से 2030 तक की अवधि के लिये रिकॉर्ड बनाए रखने का निर्णय लिया है।
- महत्त्व:
- अलीवा रजिस्टर अब तक सबसे विस्तारपूर्ण है जो 10 साल तक लड़कियों के जीवन की जानकारी रखता है।
- कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिये यह रजिस्टर उपयोगी रहा है, क्योंकि माता-पिता सज़ा से बचने के लिये अपनी लड़कियों की उम्र के बारे में झूठ बोलने का प्रयास करते हैं।
- पिछले आठ महीनों में ज़िला प्रशासन ने 61 बाल विवाह रोकने में कामयाबी हासिल की है।
- यद्यपि रजिस्टर की संकल्पना बाल विवाह को रोकने के लिये की गई थी, लेकिन यह लड़कियों के स्वास्थ्य पर नज़र रखने के लिये बहुत उपयोगी रही है, खासकर यदि वे एनीमिक(रक्त की कमी से पीड़ित) हों।
- अलीवा रजिस्टर अब तक सबसे विस्तारपूर्ण है जो 10 साल तक लड़कियों के जीवन की जानकारी रखता है।
भारत में बाल विवाह की वर्तमान स्थिति:
- संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (United Nations Children’s Fund- UNICEF) के आकलन से पता चलता है कि भारत में प्रत्येक वर्ष 18 वर्ष से कम उम्र की कम-से-कम 15 लाख लड़कियों की शादी हो जाती है, जो वैश्विक संख्या का एक-तिहाई है और इस प्रकार अन्य देशों की तुलना में भारत में बाल वधुओं की सर्वाधिक संख्या मौजूद है।
- NFHS-5 के अनुसार, सर्वेक्षण में शामिल3% महिलाओं की शादी 18 वर्ष की कानूनी आयु प्राप्त करने से पहले हो गई, जो NFHS-4 में रिपोर्ट किये गए 26.8% से कम है। पुरुषों में कम उम्र में विवाह का आँकड़ा 17.7% (NFHS-5) और 20.3% (NFHS-4) है।
- पश्चिम बंगाल और बिहार में लगभग 41% ऐसी महिलाओं के साथ बालिका विवाह का प्रचलन सबसे अधिक था।
- NHFS-5 के अनुसार, जम्मू-कश्मीर, लक्षद्वीप, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, गोवा, नगालैंड, केरल, पुद्दुचेरी और तमिलनाडु में कम उम्र में शादियाँ सबसे कम हुई हैं।
- 20-24 वर्ष की आयु की महिलाओं की हिस्सेदारी जिन्होंने 18 वर्ष की आयु से पहले शादी की थी, पिछले पाँच वर्षों में 27% से घटकर 23% हो गई है।
- राजस्थान, मध्य प्रदेश और हरियाणा में कम उम्र के विवाहों के अनुपात में सबसे अधिक कमी देखी गई।
- NFHS-5 के अनुसार, सर्वेक्षण में शामिल3% महिलाओं की शादी 18 वर्ष की कानूनी आयु प्राप्त करने से पहले हो गई, जो NFHS-4 में रिपोर्ट किये गए 26.8% से कम है। पुरुषों में कम उम्र में विवाह का आँकड़ा 17.7% (NFHS-5) और 20.3% (NFHS-4) है।
बाल विवाह को रोकने हेतु सरकारी कानून और पहल:
- शादी के लिये न्यूनतम आयु:
- हिंदुओं के लिये हिंदू विवाह अधिनियम, 1955, महिला के लिये विवाह की न्यूनतम आयु 18 वर्ष और पुरुष के लिये न्यूनतम आयु 21 वर्ष निर्धारित करता है।
- इस्लाम में युवावस्था प्राप्त कर चुके नाबालिग की शादी को वैध माना जाता है।
- विशेष विवाह अधिनियम, 1954 भी महिलाओं और पुरुषों के लिये विवाह हेतु सहमति की न्यूनतम आयु के रूप में क्रमशः 18 और 21 वर्ष निर्धारित करता है।
- हिंदुओं के लिये हिंदू विवाह अधिनियम, 1955, महिला के लिये विवाह की न्यूनतम आयु 18 वर्ष और पुरुष के लिये न्यूनतम आयु 21 वर्ष निर्धारित करता है।
- बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 ने बाल विवाह निरोधक अधिनियम, 1929 का स्थान लिया, जो ब्रिटिश काल के दौरान अधिनियमित किया गया था।
- यह एक बच्चे को 21 साल से कम उम्र के पुरुष और 18 साल से कम उम्र की महिला के रूप में परिभाषित करता है।
- "नाबालिग" को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है जिसने अधिनियम के अनुसार, वयस्कता की आयु प्राप्त नहीं की है।
- किसी एक पक्ष द्वारा वांछित होने पर बाल विवाह की कानूनी स्थिति शून्य हो जाती है।
- हालाँकि यदि सहमति धोखाधड़ी या छल से प्राप्त की जाती है या फिर बच्चे को उसके वैध अभिभावकों द्वारा बहकाया जाता है और यदि एकमात्र उद्देश्य बच्चे को तस्करी या अन्य अनैतिक उद्देश्यों के लिये उपयोग करना है, तो विवाह अमान्य होगा।
- बालिकाओं के भरण-पोषण का भी प्रावधान है। यदि पति बालिग है तो गुजारा भत्ता देने के लिये उत्तरदायी है।
- यदि पति भी अवयस्क है तो उसके माता-पिता को भरण-पोषण का भुगतान करना होगा।
- बाल विवाह करने वाले वयस्क पुरुष या बाल विवाह को संपन्न कराने वालों को इस अधिनियम के तहत दो वर्ष के कठोर कारावास या 1 लाख रूपए का जुर्माना या दोनों सज़ा से दंडित किया जा सकता है।
- अधिनियम में CPMO की नियुक्ति का भी प्रावधान है जिसका कर्तव्य बाल विवाह को रोकना और इसके बारे में जागरूकता फैलाना है।
- यह एक बच्चे को 21 साल से कम उम्र के पुरुष और 18 साल से कम उम्र की महिला के रूप में परिभाषित करता है।
- लिंग अंतराल को कम करने हेतु भारत के प्रयास:
- भारत ने वर्ष 1993 में ‘महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर अभिसमय (CEDAW) की पुष्टि की थी।
- इस अभिसमय का अनुच्छेद-16 बाल विवाह का कठोरता से निषेध करता है और सरकारों से महिलाओं के लिये न्यूनतम विवाह योग्य आयु का निर्धारण करने एवं उन्हें लागू करने की अपेक्षा करता है।
- वर्ष 1998 से भारत ने विशेष रूप से मानव अधिकारों की सुरक्षा पर राष्ट्रीय कानून का प्रवर्तन किया है, जिसे मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा, 1948 जैसे अंतर्राष्ट्रीय साधनों के अनुरूप तैयार किया गया है।
- भारत ने वर्ष 1993 में ‘महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर अभिसमय (CEDAW) की पुष्टि की थी।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न. भारतीय इतिहास के संदर्भ में 1884 का रखमाबाई मुकदमा किस पर केंद्रित था?
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये- (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) व्याख्या:
अतः विकल्प (b) सही है। |