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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

शिमला समझौता 1972

  • 02 Jul 2024
  • 13 min read

प्रिलिम्स के लिये:

शिमला समझौता, 1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध, कश्मीर समस्या, नियंत्रण रेखा (LOC), परमाणु परीक्षण, कारगिल युद्ध, अनुच्छेद 370,

मेन्स के लिये:

भारत-पाकिस्तान संबंध, शिमला समझौते का महत्त्व

स्रोत: लाइव मिंट

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, 2 जुलाई 1972 को भारत और पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री द्वारा हस्ताक्षरित शिमला समझौते की 52वीं वर्षगांठ मनाई गई।

शिमला समझौता क्या है?

  • उत्पत्ति एवं संदर्भ:
    • वर्ष 1971 के युद्ध के बाद की स्थिति: यह समझौता वर्ष 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध का प्रत्यक्ष परिणाम था, जिसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश (पूर्वी पाकिस्तान) स्वतंत्र हुआ।
      • इस संघर्ष में भारत के सैन्य हस्तक्षेप ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, परिणामस्वरूप दक्षिण एशिया का भू-राजनीतिक परिदृश्य में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए।
    • मुख्य वार्ताकार: भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो।
      • इस समझौते का उद्देश्य शत्रुता के बाद दोनों देशों के बीच शांति स्थापित करना और साथ ही आगामी संबंधों को सामान्य बनाना था।
  • शिमला समझौते के उद्देश्य: भारत के शिमला में कई प्रमुख उद्देश्य थे।
    • कश्मीर समस्या का समाधान: भारत ने द्विपक्षीय समाधान की दिशा में कार्य करके पाकिस्तान को कश्मीर विवाद को वैश्विक स्तर का होने से रोका।
    • संबंधों का सामान्यीकरण: नए क्षेत्रीय शक्ति संतुलन के आधार पर पाकिस्तान के साथ संबंधों में सुधार की आशा है।
    • पाकिस्तान को अपमानित होने से बचाना: भारत ने पाकिस्तान में और अधिक असंतोष तथा संभावित प्रतिशोध को रोकने के लिये युद्ध विराम रेखा को स्थायी सीमा में बदलने पर ज़ोर नहीं दिया।
  • प्रमुख प्रावधान:
    • संघर्ष समाधान एवं द्विपक्षीयता: इस समझौते में भारत और पाकिस्तान के बीच सभी मुद्दों को शांतिपूर्ण तरीके से, मुख्य रूप से द्विपक्षीय वार्ता के माध्यम से हल करने पर ज़ोर दिया गया। इसका उद्देश्य संघर्ष एवं टकराव को समाप्त करना था।
    • कश्मीर की स्थिति: सबसे विवादास्पद मुद्दों में से एक कश्मीर में नियंत्रण रेखा (Line of Control- LoC) थी, जिसे वर्ष 1971 के युद्ध के बाद स्थापित किया गया था। 
      • दोनों पक्ष अपने दावों के प्रति पूर्वाग्रह के बिना इस रेखा का सम्मान करने और बिना दोनों पक्षों की सहमति के बिना इसकी स्थिति में परिवर्तन न करने की सहमति जताई। 
    • सेनाओं की वापसी: इसमें सेनाओं को अंतर्राष्ट्रीय सीमा के अपने-अपने पक्षों में वापस जाने का प्रावधान किया गया, जो तनाव कम करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम था जो दोनों देशों के तनाव कम करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम था। 
    • भविष्य की कूटनीति: इस समझौते में दोनों सरकारों के प्रमुखों के बीच आगामी बैठकों और स्थायी शांति स्थापित करने, संबंधों को सामान्य बनाने तथा युद्धबंदियों के प्रत्यावर्तन जैसे मानवीय मुद्दों को संबोधित करने के लिये जारी वार्ताओं के प्रावधान भी निर्धारित किये गए।
  • महत्त्व:
    • भू-राजनीतिक तनाव: जैसा कि कश्मीर का मुद्दा और भारत-पाक व्यापक संबंध, दक्षिण एशियाई भू-राजनीति में एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा बने हुए हैं इसलिये इस समझौते की वर्तमान में भी प्रासंगिकता बनी हुई है।
    • विधिक और कूटनीतिक ढाँचा: यह अपनी सीमाओं और भिन्न व्याख्याओं के बावजूद दोनों देशों के बीच भविष्य की चर्चाओं तथा वार्ताओं के लिये एक कानूनी ढाँचा प्रदान करता है।
  • आलोचना:
    • अप्राप्य क्षमता: शिमला समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच स्थायी शांति तथा सहयोग को बढ़ावा देने के अपने इच्छित लक्ष्यों को पूरा करने में विफल रहा। गहनता से विद्यमान अविश्वास और ऐतिहासिक मुद्दे प्रगति में बाधा बने हुए हैं।
    • परमाणु परीक्षण और रणनीतिक बदलाव: दोनों देशों ने वर्ष 1998 के बाद परमाणु परीक्षण किये, जिससे रणनीतिक स्थिति में महत्त्वपूर्ण बदलाव आया। इस परमाणु क्षमता से आई निवारक-आधारित स्थिरता ने शिमला समझौते के महत्त्व को कम कर दिया है।।
    • दीर्घकालिक प्रभाव: शिमला समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच स्थायी शांति स्थापित करने या इनके संबंधों को सामान्य बनाने में असफल रहा।
    • अंतर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य: अंतर्राष्ट्रीय समुदाय आमतौर पर भारत और पाकिस्तान के बीच मुद्दों को हल करने के लिये शिमला समझौते के द्विपक्षीय दृष्टिकोण का सम्मान करता है।
      • इसका इस्तेमाल प्रायः कश्मीर में अंतर्राष्ट्रीय हस्तक्षेप को रोकने के लिये किया जाता रहा है।

पिछले कुछ वर्षों में भारत-पाकिस्तान संबंध कैसे रहे हैं?

  • विभाजन और आज़ादी (1947):
    • वर्ष 1947 में ब्रिटिश भारत का भारत और पाकिस्तान में विभाजन एक निर्णायक क्षण था, जिसके परिणामस्वरूप दो अलग-अलग राष्ट्रों का निर्माण हुआ, भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र और पाकिस्तान एक धर्मशासित राष्ट्र।
      • कश्मीर के महाराजा ने शुरू में स्वतंत्रता की मांग की, लेकिन अंततः पाकिस्तान द्वारा कश्मीर पर हमले के कारण भारत में विलय हो गया, जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 1947-48 में प्रथम भारत-पाक युद्ध हुआ।
  • युद्ध, समझौते और आतंक:
    • 1965 और 1971 के युद्ध: वर्ष 1965 का युद्ध सीमा पर झड़पों से शुरू हुआ और एक बड़े पैमाने पर संघर्ष में बदल गया। यह संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता वाले युद्ध विराम और किसी बड़े क्षेत्रीय परिवर्तन के बिना समाप्त हुआ।
      • वर्ष 1971 में भारत ने पूर्वी पाकिस्तान के स्वतंत्रता संघर्ष में हस्तक्षेप किया, जिसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश का निर्माण हुआ।
    • शिमला समझौता (1972): वर्ष 1971 के युद्ध के बाद हस्ताक्षरित इस समझौते ने भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर में नियंत्रण रेखा (LOC) स्थापित कर दी।
    • कश्मीर में उग्रवाद (1989): पाकिस्तान ने कश्मीर में उग्रवादी विद्रोह को समर्थन दिया, जिसके परिणामस्वरूप व्यापक हिंसा और मानवाधिकारों का हनन हुआ।
    • कारगिल युद्ध (1999): पाकिस्तान समर्थित सेना ने कारगिल में भारतीय-नियंत्रित क्षेत्र में घुसपैठ की, जिससे युद्ध छिड़ गया, जो भारतीय सैन्य विजय के साथ समाप्त हुआ, लेकिन इससे संबंध और भी तनावपूर्ण हो गए।
    • मुंबई हमला (2008): पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादियों ने मुंबई में समन्वित हमले किये, जिसमें 166 लोग मारे गए। इस घटना ने संबंधों को गंभीर रूप से प्रभावित किया और आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई करने के लिये पाकिस्तान पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव बढ़ा।
    • पुलवामा हमले (2019) और उसके बाद की सैन्य मुठभेड़ों जैसी घटनाओं के कारण समय-समय पर वार्ता तथा विश्वास-निर्माण के प्रयासों में बाधा उत्पन्न हुई है, जिससे शांति संबंधी प्रयासों की विफलता उजागर हुई है।
  • वर्तमान स्थिति (2023-2024):
    • पाकिस्तान में जारी राजनीतिक अस्थिरता, साथ ही चल रही आतंकवादी गतिविधियाँ और सीमा पार तनाव, दोनों देशों के बीच हिंसा तथा अविश्वास के चक्र को कायम रखते हैं।
    • भू-राजनीतिक आयाम: क्षेत्र में चीन का बढ़ता प्रभाव, जिसमें पाकिस्तान के साथ उसकी रणनीतिक साझेदारी और भारत के साथ क्षेत्रीय विवाद शामिल हैं, भारत-पाकिस्तान संबंधों में जटिलता की एक ओर परत जोड़ता है।

निष्कर्ष

  • कुल मिलाकर, भारत-पाकिस्तान संघर्ष एक जटिल और अस्थिर मुद्दा बना हुआ है, जिसकी गहरी ऐतिहासिक जड़ें हैं, जो भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता, घरेलू राजनीति तथा क्षेत्रीय प्रभुत्व की आकांक्षाओं से जुड़ा हुआ है। हिंसा, आतंकवादी गतिविधियों और आपसी अविश्वास की बार-बार होने वाली घटनाओं के बीच स्थायी शांति की दिशा में प्रयासों को महत्त्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
  • वर्ष 1972 का शिमला समझौता 1971 के युद्ध के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच शांति की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण प्रयास था, लेकिन इसकी सीमाएँ तथा विवाद भारत-पाकिस्तान संबंधों की जटिल एवं स्थायी प्रकृति को रेखांकित करते हैं। दक्षिण एशियाई कूटनीति व सुरक्षा की गतिशीलता और चुनौतियों को समझने में इसकी विरासत महत्त्वपूर्ण बनी हुई है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. समकालीन भारत-पाकिस्तान संबंधों को आकार देने में वर्ष 1972 के शिमला समझौते की प्रासंगिकता पर चर्चा कीजिये।

और पढ़ें: कारगिल विजय दिवस

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न 1.  सिंधु नदी प्रणाली के संदर्भ में निम्नलिखित चार नदियों में से तीन नदियाँ इनमें से किसी एक नदी में मिलती है, जो सीधे सिंधु नदी से मिलती हैं। निम्नलिखित में से वह नदी कौन-सी है, जो सिंधु नदी से सीधे मिलती है?

(a) चिनाब
(b) झेलम
(c) रावी
(d) सतलुज

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. "भारत में बढ़ते सीमापारीय आतंकी हमले और अनेक सदस्य-राज्यों के आंतरिक मामलों में पकिस्तान द्वारा बढ़ता हुआ हस्तक्षेप सार्क (दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन) के भविष्य के लिये सहायक नहीं है।" उपयुक्त उदाहरणों के साथ स्पष्ट कीजिये। (2016)

प्रश्न. आतंकवादी गतिविधियों और परस्पर अविश्वास ने भारत-पाकिस्तान संबंधों को धूमिल कर दिया है। खेलों और सांस्कृतिक आदान-प्रदानों जैसी मृदु शक्ति किस सीमा तक दोनों देशों के बीच सद्भाव उत्पन्न करने में सहायक हो सकती है? उपयुक्त उदाहरणों के साथ चर्चा कीजिये। (2015)

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