कृषि
नीति आयोग की ग्रो रिपोर्ट और पोर्टल
- 02 Mar 2024
- 13 min read
प्रिलिम्स के लिये:ग्रो पोर्टल, भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS), कृषि वानिकी उपयुक्तता सूचकांक, कृषि वानिकी, कृषि वानिकी पर उप-मिशन, राष्ट्रीय कृषि वानिकी नीति (NAP) 2014, भुवन मंच मेन्स के लिये:कृषि वानिकी- महत्त्व और चुनौतियाँ, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप |
स्रोत: पी. आई. बी.
चर्चा में क्यों?
हाल ही में नीति आयोग (नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया) द्वारा एग्रोफोरेस्ट्री (ग्रो) रिपोर्ट और पोर्टल के साथ भारत की बंजर भूमि को हरा-भरा बनाने की शुरुआत गई थी।
ग्रो (GROW) रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- ग्रो रिपोर्ट उद्देश्य:
- GROW रिपोर्ट का लक्ष्य वर्ष 2030 तक 26 मिलियन हेक्टेयर बंजर (परती) भूमि को दोबारा से विकसित करना और 2.5 से 3 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर अतिरिक्त कार्बन सिंक बनाना है।
- भारत में बंजर भूमि का विस्तार:
- रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में लगभग 55.76 मिलियन हेक्टेयर बंजर भूमि है, जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र (Total Geographical Area- TGA) का 16.96% है।
- ये निम्नीकृत भूमि विभिन्न प्राकृतिक और मानव-प्रेरित कारकों के कारण उत्पादकता तथा जैवविविधता में कमी आई है। हालाँकि रिपोर्ट कृषि वानिकी के माध्यम से इन बंजर भूमि को हरा-भरा करने और पुनर्स्थापित करने का सुझाव देती है।
- समाधान के रूप में कृषि वानिकी:
- रिपोर्ट कृषि वानिकी के लिये कम उपयोग वाले क्षेत्रों, विशेष रूप से बंजर भूमि के पुनरुद्धार करने के संभावित लाभों को भी रेखांकित करती है।
- वर्तमान में कृषि वानिकी भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 8.65%, यानी लगभग 28.42 मिलियन हेक्टेयर को कवर करती है और भारत की लगभग 6.18% तथा 4.91% भूमि क्रमशः कृषिवानिकी के लिये अत्यधिक एवं मध्यम रूप से उपयुक्त है।
- भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के अनुसार राजस्थान, मध्य प्रदेश और तेलंगाना कृषि वानिकी उपयुक्तता के लिये शीर्ष बड़े आकार के राज्य हैं, जबकि जम्मू-कश्मीर, मणिपुर तथा नगालैंड मध्यम आकार के राज्यों में सर्वोच्च स्थान पर हैं।
- रिपोर्ट बंजर भूमि में कृषि वानिकी हस्तक्षेप को बढ़ाने के लिये आवश्यक नीति एवं संस्थागत समर्थन की पहचान करती है।
- रिपोर्ट कृषि वानिकी के लिये कम उपयोग वाले क्षेत्रों, विशेष रूप से बंजर भूमि के पुनरुद्धार करने के संभावित लाभों को भी रेखांकित करती है।
- नीतिगत ढाँचा:
- रिपोर्ट भारत की वर्ष 2014 की राष्ट्रीय कृषि वानिकी नीति पर ज़ोर देती है, जिसका उद्देश्य इस कृषि पारिस्थितिक भूमि उपयोग प्रणाली के माध्यम से उत्पादकता, लाभप्रदता के साथ स्थिरता को भी बढ़ाना है।
- यह पेरिस समझौते, बॉन चैलेंज, संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्य, मरुस्थलीकरण से निपटने के लिये संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन, हरित भारत मिशन जैसी अन्य वैश्विक प्रतिबद्धताओं के अनुरूप है।
- रिपोर्ट भारत की वर्ष 2014 की राष्ट्रीय कृषि वानिकी नीति पर ज़ोर देती है, जिसका उद्देश्य इस कृषि पारिस्थितिक भूमि उपयोग प्रणाली के माध्यम से उत्पादकता, लाभप्रदता के साथ स्थिरता को भी बढ़ाना है।
ग्रो (GROW) पोर्टल क्या है?
- ग्रो पोर्टल को भुवन प्लेटफॉर्म पर शुरू किया गया है, जो कृषि-वानिकी उपयुक्तता से संबंधित राज्य और ज़िला-स्तरीय डेटा तक सार्वभौमिक पहुँच सुनिश्चित करता है।
- पोर्टल के माध्यम से, उपयोगकर्त्ता भारत के विभिन्न क्षेत्रों में कृषि वानिकी उपयुक्तता के विस्तृत मानचित्र तथा आकलन करने की सुविधा प्राप्त करते हैं।
- पोर्टल रिमोट सेंसिंग एवं भौगोलिक सूचना प्रणाली तकनीक से प्राप्त विषयगत डेटासेट का उपयोग करता है, जो कृषि वानिकी उपयुक्तता को प्रभावित करने वाले कारकों पर व्यापक जानकारी प्रदान करता है।
- पोर्टल की प्रमुख विशेषताओं में से एक कृषि वानिकी उपयुक्तता सूचकांक (ASI) है, जो राष्ट्रीय स्तर पर कृषि वानिकी हस्तक्षेपों को प्राथमिकता हेतु एक मानकीकृत सूचकांक प्रदर्शित करता है।
- यह पोर्टल भारत में कृषिवानिकी की वर्तमान सीमा के बारे में जानकारी प्रदान करता है और साथ ही इसके भौगोलिक विस्तार एवं कुल आच्छादन पर प्रकाश भी डालता है।
कृषि-वानिकी क्या है?
- परिचय:
- कृषि-वानिकी भूमि उपयोग के प्रबंधन की एक विधि है जिसमें वृक्षों एवं पौधों के साथ-साथ खाद्यान्न के साथ-साथ पशुधन को बढ़ाना भी शामिल है। यह वानिकी को कृषि प्रौद्योगिकी से अंतर-संबंधित कर अधिक धारणीय भूमि-उपयोग प्रणाली बनाता है।
- कृषि-वानिकी भारतीय कृषि का एक अभिन्न अंग रही है, जो लकड़ी की मांग, ईंधन, चारा के साथ अन्य निर्वाह आवश्यकताओं को पूरा करती है।
- हालाँकि भिन्न-भिन्न अनुपातों में कृषि वानिकी का प्रयोग बड़े किसानों द्वारा सिंचित परिस्थितियों एवं छोटे और सीमांत किसानों द्वारा वर्षा आधारित परिस्थितियों में किया जाता है।
- कृषिवानिकी नीतियों एवं पहलों का विकास:
- वर्ष 1983 में कृषि-वानिकी पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (AICRP) की शुरुआत ने कृषि एवं वानिकी अनुसंधान एजेंडा में कृषि-वानिकी के औपचारिक एकीकरण को प्रदर्शित किया हैं।
- भारत की प्रमुख नीतिगत पहलें, जिनमें राष्ट्रीय वन नीति 1988, राष्ट्रीय कृषि नीति 2000, राष्ट्रीय बाँस मिशन 2002, राष्ट्रीय किसान नीति 2007 और ग्रीन इंडिया मिशन 2010 हैं, निरंतर रूप से कृषि-वानिकी के महत्त्व पर प्रकाश डालती हैं।
- भारत द्वारा राष्ट्रीय कृषि-वानिकी नीति (NAP), 2014 अपनाई गई जिसके बाद कृषि-वानिकी के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई।
- NAP एक नीतिगत ढाँचा है जिसका उद्देश्य कृषि आजीविका में सुधार करने के लिये फसलों और पशुधन के साथ पूरक तथा एकीकृत तरीके से वृक्षारोपण को प्रोत्साहित करना है। इस नीति की अभिकल्पना फरवरी 2014 में दिल्ली में आयोजित कृषि-वानिकी पर विश्व कॉन्ग्रेस के दौरान की गई थी।
- भारत वर्ष 2014 में व्यापक कृषि-वानिकी नीति का अंगीकरण करने वाला विश्व का पहला देश बना।
- उक्त नीति के अनुवर्ती के रूप में, वर्ष 2016-17 में राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन के तहत “हर मेड़ पर पेड़” आदर्श वाक्य के साथ कृषि-वानिकी पर उप-मिशन का शुभारंभ किया गया जिसका उद्देश्य कृषि भूमि पर वृक्षारोपण को प्रोत्साहित करना और साथ ही सस्य/सस्यन प्राणाली में विस्तार करना था।
- कृषि-वानिकी के प्रभाव:
- आर्थिक प्रभाव:
- कृषि-वानिकी प्रणालियाँ फलों, लकड़ी और फसलों के लिये सकारात्मक उपज वृद्धि दर्शाती हैं, जिससे कृषि उत्पादकता में वृद्धि होती है।
- कृषि-वानिकी आर्थिक रूप से व्यवहार्य है जो लकड़ी, ईंधन के लिये लकड़ी और चारे सहित विविध आजीविका स्रोतों से अतिरिक्त आय स्रोत प्रदान करती है।
- सामाजिक प्रभाव:
- कृषि-वानिकी प्रणालियाँ, विशेष रूप से फलों की फसलों पर ज़ोर देने वाली प्रणालियाँ, समुदायों के पोषण में सुधार और बेहतर स्वास्थ्य में योगदान करती हैं।
- कृषि-वानिकी में महिलाओं की भागीदारी महत्त्वपूर्ण है किंतु लैंगिक गतिकी और महिला सशक्तीकरण पर कृषिवानिकी के प्रभाव को समझने के लिये और अधिक शोध की आवश्यकता है।
- पर्यावरणीय प्रभाव:
- कृषि-वानिकी मृदा की उर्वरता, पोषक चक्र और मृदा के जैविक कार्बन में वृद्धि करती है जिससे सतत् भूमि प्रबंधन प्रथाओं को बढ़ावा मिलता है।
- कृषि-वानिकी प्रणालियाँ जल-उपयोग दक्षता में सुधार करती हैं, मृदा के कटाव की रोकथाम करती हैं और वाटरशेड प्रबंधन तथा संरक्षण प्रयासों में योगदान करती हैं।
- कृषि-वानिकी बायोमास ऊर्जा के एक महत्त्वपूर्ण स्रोत के रूप में कार्य करती है और साथ ही कार्बन को अलग कर जलवायु परिवर्तन शमन प्रयासों में सहायता करती है।
- कृषिवानिकी प्रजातियों को आवास प्रदान करके, आवागमन का समर्थन करके और निर्वनीकरण की दर को कम करके जैवविविधता संरक्षण को बढ़ावा देती है।
- आर्थिक प्रभाव:
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:Q. स्थायी कृषि (पर्माकल्चर), पारंपरिक रासायनिक खेती से किस तरह भिन्न है?
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) 1 और 3 उत्तर: (b) Q.2 निम्नलिखित में से कौन-सी 'मिश्रित खेती' की प्रमुख विशेषता है? (2012) (a) नकदी और खाद्य दोनों शस्यों की साथ-साथ खेती उत्तर: (c) Q. भारत सरकार ने नीति (NITI) आयोग की स्थापना निम्नलिखित में से किसका स्थान लेने के लिये की है? (2015) (a) मानव अधिकार आयोग उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न.1 फसल विविधता के समक्ष मौजूदा चुनौतियाँ क्या हैं? उभरती प्रौद्योगिकियाँ फसल विविधता के लिये किस प्रकार अवसर प्रदान करती है? (2021) |