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शासन व्यवस्था

भूमि पुनरुद्धार और वनीकरण

  • 10 Aug 2023
  • 16 min read

प्रिलिम्स के लिये:

नगर वन योजना, राष्ट्रीय वन नीति, 1988, हरित भारत के लिये राष्ट्रीय मिशन

मेन्स के लिये:

भारत के जलवायु सुनम्यता लक्ष्यों को प्राप्त करने में वनीकरण और धारणीय भूमि प्रबंधन की भूमिका, भूमि पुनरुद्धार एवं वनीकरण से संबंधित पहलें

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री ने लोकसभा में दिये एक लिखित जवाब में भू-क्षरण से निपटने एवं वनीकरण को बढ़ावा देने के लिये भारत द्वारा की गई महत्त्वपूर्ण पहलों पर प्रकाश डाला।

  • नगर वन योजना (शहरी वन योजना) पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की एक प्रगतिशील पहल है जिसका संचालन काफी तीव्र गति से हो रहा है एवं इसमें हुई प्रगति वाइब्रेंट शहरी हरित क्षेत्रों के निर्माण हेतु भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाती है।

नगर वन योजना (NVY):

  • परिचय:
    • इस योजना की शुरुआत वर्ष 2020 में एक दूरदर्शी उद्देश्य के साथ की गई थी, इसके अंतर्गत नगर निगमों, नगर परिषदों, नगर पालिकाओं और शहरी स्थानीय निकायों वाले शहरों में 1000 नगर वनों (शहरी वन) का निर्माण कार्य शामिल है।
    • यह महत्त्वाकांक्षी पहल न केवल शहरी निवासियों के लिये एक समग्र और स्वस्थ रहने योग्य वातावरण को बढ़ावा देने हेतु डिज़ाइन की गई है, बल्कि इसका उद्देश्य स्वच्छ, हरित तथा अधिक धारणीय शहरी केंद्रों के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देना भी है।
  • मुख्य विशेषताएँ:
    • शहरी क्षेत्र में हरित सौन्दर्यपरक वातावरण का निर्माण करना।
    • पादपों और जैव विविधता के विषय में जागरूकता बढ़ाना और पर्यावरण प्रबंधन सुनिश्चित करना।
    • संबद्ध क्षेत्र की महत्त्वपूर्ण वनस्पतियों के यथास्थान संरक्षण की सुविधा प्रदान करना
    • प्रदूषण में कमी लाना, स्वच्छ वायु प्रदान करना, शोर-कोलाहल में कमी लाना, जल संचयन और ताप द्वीपों/हीट आइलैंड के प्रभाव को कम करके शहरों के पर्यावरण के सुधार में योगदान देना।
    • शहरी निवासियों को स्वास्थ्य लाभ पहुँचाना तथा शहरों के जलवायु अनुकूलन में मदद करना।
  • योजना की प्रगति और प्रभाव:
    • इस योजना की शुरुआत के बाद से देश भर में 385 संबद्ध परियोजनाओं को मंज़ूरी देने में उल्लेखनीय प्रगति देखी गई है।
    • यह शहरों को संपन्न, पर्यावरण के प्रति जागरूक समुदायों में बदलने के भारत के समर्पण को रेखांकित करती है।

भू-क्षरण से निपटने और वनीकरण को बढ़ावा देने के लिये की गई पहलें:

  • वन क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये सरकारी पहल:
    • राष्ट्रीय वन नीति (National Forest Policy- NFP) 1988:
      • इसका राष्ट्रीय लक्ष्य कुल भूमि क्षेत्र के न्यूनतम एक-तिहाई हिस्से में वन अथवा वृक्ष आवरण बनाए रखना है।
      • इसका उद्देश्य पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखना, प्राकृतिक विरासत का संरक्षण करना तथा नदी, झील व जलाशय जलग्रहण क्षेत्रों में मृदा अपरदन को रोकना है।
    • हरित भारत के लिये राष्ट्रीय मिशन (Green India- GIM):
      • यह जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (National Action Plan on Climate Change- NAPCC) के अंतर्गत आता है और इसका उद्देश्य वन एवं वृक्ष आवरण में वृद्धि करना, निम्नीकृत पारिस्थितिकी तंत्र में सुधार करना तथा जैव विविधता को बढ़ाना है।
    • वनाग्नि सुरक्षा एवं प्रबंधन योजना (Forest Fire Protection & Management Scheme- FFPM):
      • यह योजना वनाग्नि को रोकने और प्रबंधित करने, वनों के समग्र स्वास्थ्य में योगदान देने पर केंद्रित है।
    • प्रतिपूरक वनीकरण निधि (Compensatory Afforestation Fund- CAF):
      • सरकारें कई प्रयोजनों से वन भूमि को गैर-वन उद्देश्यों के लिये आवंटित करती हैं, ऐसे में इससे प्राप्त धन का उपयोग वनीकरण और पुनर्वनीकरण परियोजनाओं के माध्यम से वन आवरण में वृद्धि करने हेतु किया जाता है।
        • इसका उपयोग राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा विकासात्मक परियोजनाओं के लिये प्रदान की गई वन भूमि के बदले प्रतिपूरक वनीकरण हेतु किया जाता है।
        • प्रतिपूरक वनीकरण निधि का 90% और 10% हिस्सा क्रमशः राज्यों एवं केंद्र में वितरित किया जाता है।
    • राष्ट्रीय तटीय मिशन कार्यक्रम:
      • 'मैंग्रोव और प्रवाल भित्तियों के संरक्षण एवं प्रबंधन' पर राष्ट्रीय तटीय मिशन कार्यक्रम के तहत सभी तटीय राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों में मैंग्रोव के संरक्षण और प्रबंधन के लिये वार्षिक प्रबंधन कार्य योजना तैयार एवं कार्यान्वित की जाती है।
    • राज्य विशिष्ट पहलें:
      • हरिता हरम मिशन:
        • यह राज्य के हरित आवरण को वर्तमान के 25.16% से बढ़ाकर कुल भौगोलिक क्षेत्र का 33% करने के लिये तेलंगाना सरकार द्वारा शुरू किया गया एक प्रमुख कार्यक्रम है।
      • ग्रीन वाॅल:
        • यह अरावली पर्वतमाला को पुनर्स्थापित और संरक्षित करने के लिये हरियाणा सरकार द्वारा शुरू की गई एक पहल है।
        • यह हरियाणा, राजस्थान, गुजरात और दिल्ली राज्यों को शामिल करते हुए अरावली पर्वत शृंखला के चारों ओर 1,400 किमी. लंबी एवं 5 किमी. चौड़ी हरित बेल्ट बनाने की एक महत्त्वाकांक्षी योजना है।
    • वनीकरण संबंधी उपलब्धियाँ:
      • बीस सूत्रीय कार्यक्रम रिपोर्टिंग (Twenty Point Programme Reporting): 
        • वर्ष 2011-12 से लेकर वर्ष 2021-22 की अवधि में वनीकरण प्रयासों के माध्यम से लगभग 18.94 मिलियन हेक्टेयर भूमि को वनावरित किया गया है।
        • ये उपलब्धियाँ राज्य सरकारों और केंद्र तथा राज्य-विशिष्ट योजनाओं के ठोस प्रयासों का परिणाम हैं।
      • बहु-क्षेत्रीय दृष्टिकोण:
        • वनीकरण गतिविधियाँ विभागों, गैर-सरकारी संगठनों (NGO), नागरिक समाज समूहों तथा कॉर्पोरेट संस्थाओं को शामिल करते हुए विभिन्न क्षेत्रों में सहयोगात्मक रूप से की जाती हैं। यह बहुआयामी दृष्टिकोण भूमि क्षरण की समस्या से निपटने हेतु एक समग्र प्रयास सुनिश्चित करता है।
    • भूमि क्षरण को रोकने हेतु उपाय:
    • ICFRE में उत्कृष्टता केंद्र: 
      • देहरादून में भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (Indian Council for Forestry Research and Education- ICFRE) में उत्कृष्टता केंद्र की स्थापना का उद्देश्य दक्षिण-दक्षिण सहयोग को बढ़ावा देना है।
        • यह स्थायी भूमि प्रबंधन के लिये ज्ञान के आदान-प्रदान, सर्वोत्तम अभ्यास साझा करने और क्षमता निर्माण की सुविधा प्रदान करता है।
    • बॉन चैलेंज प्रतिज्ञा: 
      • भारत स्वैच्छिक बॉन चैलेंज प्रतिज्ञा के हिस्से के रूप में वर्ष 2030 तक 26 मिलियन हेक्टेयर बंजर और वनों की कटाई वाली भूमि को बहाल करने के लिये प्रतिबद्ध है। यह वैश्विक पहल उन्नत पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं एवं जैव विविधता के लिये बंजर भूमि को बहाल करने पर केंद्रित है।
    • UNFCCC COP और UNCCD COP14: 

भूमि क्षरण और वनीकरण संबंधी चुनौतियाँ:

  • भूमि क्षरण संबंधी चुनौतियाँ:
    • मृदा अपरदन:
      • तेज़ वर्षा और वायु भूमि की ऊपरी मृदा को हटा देती है, जिससे मृदा की उर्वरता कम हो जाती है।
      • इस कटाव का कारण अनुचित कृषि पद्धतियाँ और वनों की कटाई है।
      • जलवायु परिवर्तन वर्षा पैटर्न में बदलाव और बढ़ते तापमान के माध्यम से मृदा की गुणवत्ता में गिरावट का कारण बनता है। बदली हुई मौसम की स्थितियाँ (जैसे कि मृदा की अवशोषण क्षमता से अधिक तीव्र वर्षा) कटाव को तेज़ करती हैं जिससे अपवाह व क्षरण होता है।
    • मरुस्थलीकरण:
      • शुष्क और अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में मृदा का क्षरण और वनस्पति आवरण का नुकसान होता है।
      • अत्यधिक चराई और अरक्षणीय भूमि उपयोग मरुस्थलीकरण को बढ़ाते हैं।
    • औद्योगीकरण और शहरीकरण:
      • शहरी विस्तार और औद्योगिक गतिविधियों के कारण मृदा के रंध्र बंद हो जाते है जिससे जल भूमि में प्रवेश नही कर पाता, परिणामस्वरूप पोषक तत्त्वों का चक्र बाधित होता है।
      • उद्योगों से होने वाला प्रदूषण मृदा और जल संसाधनों को दूषित कर सकता है।
    • भूमि प्रदूषण और संदूषण:
      • अपशिष्ट और खतरनाक सामग्रियों के अनुचित निपटान से मृदा प्रदूषित होती है तथा इसकी उत्पादकता कम हो जाती है।
      • भूमि भराव (Landfills) और अनुचित अपशिष्ट प्रबंधन भूमि क्षरण का कारण बनते हैं।
  • वनीकरण संबंधी चुनौतियाँ:
    • प्रजाति चयन:
      • स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र में भी विकसित हो सकने वाली उपयुक्त वृक्ष प्रजातियों का चयन।
      • आक्रामक प्रजातियाँ मूल वनस्पति से प्रतिस्पर्द्धा कर सकती हैं।
    • उत्तरजीविता और विकास:
      • रोपित पौधों का कठोर परिस्थितियों में बढ़ने और विकसित होने में कठिनाई।
      • जल की उपलब्धता, मृदा की गुणवत्ता और जलवायु मौजूद वृक्षों को प्रभावित करते हैं।
    • प्रतिस्पर्द्धी भूमि उपयोग:
      • वनीकरण कृषि, शहरीकरण या अन्य भूमि उपयोगों के साथ प्रतिस्पर्द्धा के चलते  संघर्ष की स्थिति उत्पन्न होती है।
      • संरक्षण लक्ष्यों को आर्थिक गतिविधियों के साथ संतुलित करना चुनौतीपूर्ण।
    • पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलन:
      • देशी प्रजातियों और पारिस्थितिक तंत्र पर विचार किये बिना तेज़ी से किया गया वनीकरण प्राकृतिक संतुलन को बाधित कर सकता है।
      • एकल कृषि रोपण से जैव विविधता का नुकसान हो सकता है।
    • सामाजिक सहभागिता:
      • दीर्घकालिक सफलता के लिये वनीकरण प्रयासों में स्थानीय समुदायों को शामिल करना आवश्यक है।
      • अपर्याप्त सामुदायिक भागीदारी प्रतिरोध या अस्थिर प्रथाओं का कारण बन सकती है।

आगे की राह

  • एकीकृत दृश्यभूमि प्रबंधन:
    • अन्य गतिविधियों के साथ वनीकरण को एकीकृत करते हुए समग्र भूमि-उपयोग योजनाएँ विकसित करना।
    • कटाव और मरुस्थलीकरण को रोकने के लिये स्थायी भूमि प्रबंधन प्रथाओं को लागू करना।
  • विज्ञान आधारित प्रजातियों का चयन और कृषि वानिकी:
    • स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र के लिये उपयुक्त वृक्ष प्रजातियों का चयन करने हेतु अनुसंधान करना।
    • उन्नत जैव विविधता और उत्पादकता के लिये कृषि वानिकी मॉडल को बढ़ावा देना।
  • जैव-इंजीनियरिंग समाधान:
    • भूमि के स्वास्थ्य को बहाल करने और कटाव को रोकने के लिये मृदा जैव-उपचार तथा बायो-फेंसिंग जैसी जैव-इंजीनियरिंग तकनीकों का उपयोग करना।
  • पारंपरिक पारिस्थितिक ज्ञान:
    • पारंपरिक कृषि वानिकी प्रथाओं को पुनर्जीवित करने, आधुनिक बहाली रणनीतियों में स्थानीय ज्ञान को एकीकृत करने के लिये स्वदेशी समुदायों के साथ सहयोग करना।
  • पर्यावरण-उद्यमिता:
    • समुदाय के नेतृत्व वाले वनीकरण उद्यमों को प्रोत्साहित करना, स्थायी आजीविका सुनिश्चित करना और स्वामित्व की भावना विकसित करना।
  • सतत् वित्तपोषण तंत्र:
    • बजट, अंतर्राष्ट्रीय स्रोतों और सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से धन एकत्र करना।
    • वनीकरण परियोजनाओं के लिये पारदर्शी आवंटन सुनिश्चित करना।
  • निगरानी, अनुसंधान एवं नवाचार:
    • प्रगति और प्रभाव के मूल्यांकन के लिये मज़बूत निगरानी प्रणाली विकसित करना।
    • जलवायु-अनुकूल वनीकरण तकनीकों के लिये अनुसंधान एवं नवाचार में निवेश करना।

स्रोत: पी.आई.बी.

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