जैव विविधता और पर्यावरण
भारत को जैव विविधता चैंपियन बनाना
यह एडिटोरियल 23/02/2023 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “India can become a biodiversity champion” लेख पर आधारित है। इसमें जैव विविधता के संरक्षण के लिये उठाए गए कदमों और संरक्षण के प्रयासों को आगे और बढ़ाने के लिये आवश्यक कदमों के बारे में चर्चा की गई है।
संदर्भ
जैव विविधता (Biodiversity), जिसमें हमारे ग्रह पर जीवन की कुल मात्रा और विविधता शामिल है, पृथ्वी के भविष्य के लिये महत्त्वपूर्ण है। मॉन्ट्रियल, कनाडा (2022) में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता सम्मेलन ने में इस जैविक संपदा के महत्त्व पर बल दिया गया।
- इसी सम्मेलन में 188 देशों के प्रतिनिधियों ने वर्ष 2030 तक विश्व की 30% भूमि और विश्व के 30% महासागरों को संरक्षित कर जैव विविधता की हानि को ‘रोकने और व्युत्क्रमित करने’ (Halt And Reverse) के लिये एक समझौता भी संपन्न किया जिसे ‘30×30 प्रतिज्ञा’ (30×30 pledge) के रूप में जाना जाता है।
- भारत वर्तमान में विश्व की मानव जनसंख्या का 17% और जैव विविधता हॉटस्पॉट (Biodiversity Hotspots) में वैश्विक क्षेत्र का 17% रखता है, जो इसे जैव विविधता चैंपियन बनने में पृथ्वी का मार्गदर्शन करने के मामले में शीर्ष स्थिति प्रदान करता है। 30% के लक्ष्य की प्राप्ति के लिये भारत को जैव विविधता अनुकूल प्रबंधन (Biodiversity Friendly Management) की आवश्यकता है।
जैव विविधता संरक्षण से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ
- पर्यावास हानि और विखंडन:
- वनों की कटाई, कृषि, शहरीकरण और अवसंरचना विकास जैसी मानवीय गतिविधियाँ प्राकृतिक पर्यावासों की हानि एवं विखंडन की ओर ले जा रही हैं, जिससे कई प्रजातियों के लिये जीवित रहना और प्रजनन करना कठिन हो गया है।
- जलवायु परिवर्तन:
- बढ़ता तापमान, वर्षा के बदलते पैटर्न और चरम मौसमी घटनाएँ पारिस्थितिक तंत्र को प्रभावित कर रही हैं तथा कई प्रजातियों के वितरण एवं व्यवहार को बदल रही हैं।
- आक्रामक प्रजातियाँ:
- मनुष्यों द्वारा पेश की गई गैर-स्थानीय प्रजातियाँ देशी या स्थानीय प्रजातियों के साथ प्रतिस्पर्द्धा कर सकती हैं और उन्हें विस्थापित कर सकती हैं। वे पारिस्थितिकी तंत्र के कार्यकरण को बाधित कर सकती हैं और बीमारियाँ फैला सकती हैं।
- अतिदोहन:
- अत्यधिक मत्स्यग्रहण, शिकार और लकड़ी एवं अन्य वन उत्पादों की प्राप्ति के रूप में प्राकृतिक संसाधनों का निरंतर दोहन प्रजातियों की गिरावट या विलुप्ति का कारण बन सकता है।
- प्रदूषण:
- रसायनों एवं अपशिष्ट उत्पादों से हवा, जल और मृदा का संदूषण वन्यजीवों एवं उनके पर्यावासों को हानि पहुँचा सकता है।
- उदाहरण के लिये, सल्फर जैसे प्रदूषक झीलों एवं नदियों में अम्ल के अत्यधिक स्तर का कारण बन सकते हैं और पेड़ों एवं वन मृदा को क्षति पहुँचा सकते हैं; वायुमंडलीय नाइट्रोजन पादप समुदायों की जैव विविधता को कम कर सकते हैं और मछली एवं अन्य जलीय जीवन को हानि पहुँचा सकते हैं; ओज़ोन पेड़ों की पत्तियों को हानि पहुँचाता है और संरक्षित प्राकृतिक क्षेत्रों में प्राकृतिक दृश्यों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है।
- जागरूकता और महत्त्व समझने की कमी:
- बहुत से लोग जैव विविधता के महत्त्व और मानव कल्याण के समर्थन में इसकी भूमिका के बारे में अनभिज्ञ हैं, जिससे संरक्षण प्रयासों के लिये अपर्याप्त सार्वजनिक समर्थन और धन ही प्राप्त हो पाता है।
- गरीबी और असमानता:
- गरीबी लोगों को अपनी आजीविका के लिये प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर होने के लिये प्रेरित कर सकती है, जिससे अतिदोहन और पर्यावास विनाश की स्थिति बन सकती है। शिक्षा और आर्थिक अवसरों तक पहुँच का अभाव भी जैव विविधता की हानि में योगदान कर सकता है।
संबंधित पहलें
- बजट 2023 में हरित विकास प्राथमिकता:
- केंद्रीय बजट 2023 में ‘हरित विकास’ (Green Growth) का उल्लेख सात प्राथमिकताओं या ‘सप्तऋषि’ में से एक के रूप में किया गया है।
- ये हरित विकास प्रयास अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता को कम करने में मदद करेंगे और बड़े पैमाने पर हरित रोज़गार के अवसर प्रदान करेंगे।
- हरित भारत के लिये राष्ट्रीय मिशन (National Mission for a Green India):
- इसका उद्देश्य निम्नीकृत भूमि पर वन आवरण को बढ़ाना और मौजूदा वन भूमि की रक्षा करना है।
- हरित ऋण कार्यक्रम (Green Credit Programme):
- इसका उद्देश्य ‘‘कंपनियों, व्यक्तियों और स्थानीय निकायों द्वारा पर्यावरणीय रूप से संवहनीय एवं उत्तरदायी कार्रवाइयों को प्रोत्साहित करना’’ है।
- ‘मिष्टी’ पहल:
- मैंग्रोव इनिशिएटिव फॉर शोरलाइन हैबिटैट्स एंड टैंजिबल इनकम (Mangrove Initiative for Shoreline Habitats & Tangible Incomes- MISHTI) जलवायु परिवर्तन को कम करने में मैंग्रोव और तटीय पारिस्थितिक तंत्र के असाधारण महत्त्व के कारण विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है।
- पीएम-प्रणाम (PM-PRANAM):
- हमारी कृषि को बनाए रखने के लिये, सिंथेटिक उर्वरकों और कीटनाशकों के आदानों को कम करने के उद्देश्य से कार्यान्वित पीएम-प्रणाम महत्त्वपूर्ण है।
- अमृत धरोहर योजना:
- अमृत धरोहर योजना से अपेक्षा है कि यह ‘‘आर्द्रभूमि के इष्टतम उपयोग को प्रोत्साहित करेगा और जैव विविधता, कार्बन स्टॉक, पर्यावरण-पर्यटन के अवसरों एवं स्थानीय समुदायों के लिये आय सृजन को बढ़ावा’’ देगा को बढ़ाने की उम्मीद है।
आगे की राह
- विज्ञान-आधारित निगरानी कार्यक्रम:
- एक विज्ञान-आधारित और समावेशी निगरानी कार्यक्रम न केवल जैव विविधता संरक्षण से संबंधित कदमों की सफलता के लिये महत्त्वपूर्ण है, बल्कि राष्ट्रीय एवं वैश्विक स्तर पर प्रतिकृति (replication) के लिये सीखे गए पाठों के प्रलेखन एवं आसवन के लिये भी महत्त्वपूर्ण है।
- जैव विविधता संरक्षण के लिये विज्ञान-आधारित निगरानी कार्यक्रमों के कुछ उदाहरणों में शामिल हैं: वैश्विक जैव विविधता सूचना सुविधा (Global Biodiversity Information Facility- GBIF), लिविंग प्लैनेट इंडेक्स (LPI), नेशनल बायोडायवर्सिटी नेटवर्क (NBN) आदि।
- पारिस्थितिक तंत्र की संवहनीयता की आधुनिक अवधारणाओं का प्रभावी ढंग से उपयोग करना:
- नए मिशनों और कार्यक्रमों को पारिस्थितिक तंत्रों की संवहनीयया एवं मूल्यांकन की उन आधुनिक अवधारणाओं का प्रभावी ढंग से उपयोग करना चाहिये जो जैविक संपदा के पारिस्थितिक, सांस्कृतिक एवं समाजशास्त्रीय पहलुओं पर ध्यान देते हों।
- तंत्र के लिये स्पष्ट सीमाओं को परिभाषित कर, संसाधन प्रदाताओं के लिये लाभ को प्राथमिकता देकर और केवल माल के प्रवाह पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय सेवा-आधारित निधियों के माध्यम से मूल्य का निर्माण कर बहु-स्थायी जैव अर्थव्यवस्था प्राप्त की जा सकती है।
- जल संरक्षण:
- हमारे आर्द्रभूमि पारितंत्र का भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि हम कृषि जैसे प्रमुख क्षेत्रों में जल के उपयोग में कमी (मोटे अनाज जैसे कम जल गहन फसलों की ओर आगे बढ़ने के साथ ही ग्रे और नील-हरित अवसंरचना का संयोजन कर शहरी क्षेत्रों में जल पुनर्चक्रण में निवेश को प्रोत्साहित करके) के माध्यम से पारिस्थितिक प्रवाह को बनाए रखने में किस प्रकार सक्षम होते हैं।
- पारिस्थितिक पुनर्बहाली पर ध्यान केंद्रित करना:
- जहाँ तक हरित भारत मिशन का संबंध है, कार्यान्वयन को वृक्षारोपण के बजाय पारिस्थितिक पुनर्बहाली पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये और ऐसी जगहों का चयन करना चाहिये जहाँ यह रैखिक अवसंरचना द्वारा खंडित भूदृश्यों में पारिस्थितिक संपर्क में योगदान दे सके।
- इसके अलावा, प्रजातियों और घनत्व के चयन को उभरते जलवायु परिवर्तन तथा जल-विज्ञान सेवाओं के संबंध में तालमेल एवं समंजन के तहत प्रत्यास्थता पर उपलब्ध ज्ञान एवं सक्ष्य से सूचित किया जाना चाहिये।
- मैंग्रोव पहल के लिये स्थल का सावधानीपूर्वक चयन करना:
- मैंग्रोव पहल के लिये स्थल/साइट के चयन पर भी सावधानी से विचार किया जाना चाहिये, जहाँ मैंग्रोव प्रजातियों की विविधता पर अधिक बल हो और साथ ही तटीय पंक-भूमि (mud-flats) एवं लवण बेसिन (salt pans) की अखंडता को बनाए रखा जाए, क्योंकि वे भी जैव विविधता के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- स्थानीय समुदाय को संलग्न करना:
- जैव विविधता संरक्षण के संबंध में इनमें से प्रत्येक प्रयास में उस क्षेत्र के स्थानीय और खानाबदोश समुदायों को शामिल किया जाना चाहिये जहाँ इन पहलों को लागू किया जाना है।
- इन समुदायों के पारंपरिक ज्ञान और प्रथाओं को कार्यान्वयन योजनाओं में एकीकृत किया जाना चाहिये।
- इनमें से प्रत्येक कार्यक्रम में जैव विविधता की स्थिति में व्यापक सुधार ला सकने की क्षमता है यदि उनका कार्यान्वयन नवीनतम वैज्ञानिक एवं पारिस्थितिक ज्ञान पर आधारित हो।
- शैक्षिक और अनुसंधान वित्तपोषण:
- भारत की जैविक संपदा का आलोचनात्मक मूल्यांकन करने और इसे आम लोगों के ध्यान में लाने के लिये प्रत्येक कार्यक्रम में उल्लेखनीय शैक्षिक एवं अनुसंधान वित्तपोषण शामिल होना चाहिये।
- प्रधानमंत्री विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार सलाहकार परिषद (Prime Minister's Science, Technology, and Innovation Advisory Council- PM-STIAC)के बीच पहले से ही एक सहमति मौजूद है तथा सरकार से अपेक्षा है कि वह तत्काल जैव विविधता एवं मानव कल्याण पर राष्ट्रीय मिशन (National Mission on Biodiversity and Human Wellbeing) की शुरुआत करे।
- यह मिशन भारत एवं इसकी अर्थव्यवस्था को हरित करने, लोगों की भलाई के लिये प्राकृतिक पूंजी को बहाल एवं समृद्ध करने और अनुप्रयुक्त जैव विविधता विज्ञान में भारत को एक वैश्विक नेता के रूप में स्थापित करने के लिये अंतःविषयक ज्ञान की शक्ति का दोहन करने का लक्ष्य रखता है।
- भारत की जैविक संपदा का आलोचनात्मक मूल्यांकन करने और इसे आम लोगों के ध्यान में लाने के लिये प्रत्येक कार्यक्रम में उल्लेखनीय शैक्षिक एवं अनुसंधान वित्तपोषण शामिल होना चाहिये।
अभ्यास प्रश्न: जैव विविधता संरक्षण और संसाधनों के सतत उपयोग में वैश्विक चैंपियन बनने के लिये भारत कौन-से कदम उठा सकता है? इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिये जिन चुनौतियों को दूर करने की आवश्यकता है, उनकी भी चर्चा करें।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रारंभिक परीक्षाप्रश्न. निम्नलिखित में से कौन सा भौगोलिक क्षेत्र की जैवविविधता के लिये खतरा हो सकता है? (वर्ष 2012)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग करे सही उत्तर का चयन कीजिये: (a) केवल 1, 2 और 3 उत्तर: (a) व्याख्या:
प्रश्न. जैवविविधता निम्नलिखित तरीकों से मानव अस्तित्व के लिये आधार बनाती है: (वर्ष 2011)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर का चयन कीजिये: (a) केवल 1, 2 और 3 उत्तर: d व्याख्या:
प्रश्न. निम्नलिखित क्षेत्रों पर विचार कीजिये: (वर्ष 2009)
उपर्युक्त में से कौन-सा/से जैव विविधता हॉटस्पॉट है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b)
मुख्य परीक्षाप्र. भारत में जैव विविधता किस प्रकार भिन्न है? जैव विविधता अधिनियम, 2002 वनस्पतियों और जीवों के संरक्षण में किस प्रकार सहायक है? (वर्ष 2018) |