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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत की सॉफ्ट पावर डिप्लोमेसी

  • 23 Oct 2021
  • 15 min read

यह एडिटोरियल दिनांक 21/10/2021 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “How to deliver abroad” लेख पर आधारित है। इसमें एक स्वतंत्र विकास साझेदारी एजेंसी के निर्माण की आवश्यकता के संबंध में चर्चा की गई है।

‘सॉफ्ट पॉवर’ किसी देश की वह क्षमता होती है कि जिससे वह बिना बलप्रयोग या दबाव के दूसरे देशों को अपनी इच्छानुसार कार्य पूर्ति के लिये मना सकता है। किसी देश का सॉफ्ट पॉवर उसकी आकर्षणशीलता में निहित होता है और यह आकर्षणशीलता तीन स्रोतों से उत्पन्न होती है: इसकी संस्कृति, इसके राजनीतिक मूल्य और इसकी विदेश नीतियाँ।      

ब्रांड फाइनेंस के ‘ग्लोबल सॉफ्ट पॉवर इंडेक्स’ के अनुसार, भारत सॉफ्ट पॉवर के मामले में विश्व में 27वें स्थान पर है। हालाँकि, भारत की मुख्य चुनौती अंतर्राष्ट्रीय परियोजनाओं, विशेष रूप से आधारभूत संरचना परियोजनाओं को समय पर पूरा करने की रही है। उदाहरण के लिये, ईरान के चाबहार बंदरगाह का विकास।

सॉफ्ट पॉवर के अनुकूल उपयोग की आवश्यकता

  • सद्भावना के निर्माण के लिये: भारतीय लोकाचार और प्रथाओं ने इसे विश्व स्तर पर एक उदार छवि और व्यापक सद्भावना के निर्माण में मदद दी है, लेकिन इसके साथ ही गुणवत्तापूर्ण परियोजना पूर्ति भी नज़र आनी चाहिये।
  • रणनीतिक निवेश के रूप में: व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य और वित्तीय रूप से आकर्षक सार्वजनिक-निजी भागीदारी अवसंरचना परियोजनाओं में एक प्रमुख रणनीतिक निवेशक बनने के लिये भारत को अपने वादों को पूरा करने की आवश्यकता है।  
  • महामारी के बाद के परिवर्तन: सहयोग के बढ़ते दायरे और इस अनुभव के साथ कि वैश्विक समस्याओं के लिये वैश्विक प्रयासों की आवश्यकता है, ‘विश्व के दवाखाना’ (Pharmacy of the World) के रूप में भारत की भूमिका को महत्त्व प्राप्त हुआ है।  
  • व्यापार और निवेश प्रवाह: एक विश्वस्त और भरोसेमंद भागीदार होने की छवि के निर्माण के लिये भारत को अन्य देशों को भरोसा दिलाना होगा कि वह अपनी प्रतिबद्धताओं की पूर्ति में सक्षम है। इसके परिणामस्वरूप फिर भारतीय बाज़ारों में व्यापार और निवेश प्रवाह की वृद्धि होगी।      

भारत का पूर्ति ढाँचा

भारत का विकास सहयोग एक समग्र एकीकृत ढाँचे में अभिसरित हुआ है—एक ऐसा विकास संहत जिसके पाँच रूप या प्रकार हैं:

  • क्षमता निर्माण: 
    • भारत तीन मुख्य घटकों पर ध्यान केंद्रित करता है: भारत में प्रशिक्षण प्रदान करना, विशेषज्ञों की टीमों को भागीदार देशों में भेजना और परियोजना स्थलों के लिये उपकरण प्रदान करना। भारत ने विश्व व्यापार संगठन (WTO) और विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (WIPO) सहित विभिन्न बहुपक्षीय मंचों पर भी बड़े मुद्दों को उठाया है।            
  • रियायती वित्त:
    • रियायती वित्तपोषण भारत के विकास सहयोग पोर्टफोलियो का लगभग 70% है।  
    • भारत सरकार द्वारा भारतीय विकास और आर्थिक सहायता योजना (IDEAS) के तहत भारतीय आयात-निर्यात बैंक के माध्यम से रियायती ऋण सहायता (Lines of Credit- LOCs) के रूप में विकास सहायता प्रदान की जाती है। 30.59 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य की कुल 306 ऋण सहायता (LOCs) 65 देशों को प्रदान की गई है।      
  • प्रौद्योगिकी की साझेदारी:
    • नवाचार और उद्यमिता देश के भीतर और बाहर, दोनों ही दिशाओं में प्रमुख सॉफ्ट पॉवर होनी चाहिये। 
    • उदाहरण के लिये, इथियोपिया में भारतीय इंजीनियरों सिंचाई, बिजली और रेलवे प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में सहायता और प्रशिक्षण प्रदान किया है।
  • अनुदान:
  • व्यापार:
    • भारत अपने बाज़ार में ड्यूटी-फ्री और कोटा-फ्री पहुँच प्रदान करने के माध्यम से सहायता प्रदान करता है। भारत उन कुछ देशों में से एक था जिसने सर्वप्रथम निम्न आय वाले देशों के लिये ड्यूटी-फ्री और कोटा-फ्री पहुँच की घोषणा की थी।   
    • दूरसंचार, आईटी, ऊर्जा और ऑटोमोबाइल क्षेत्रों में बड़े निवेश के साथ विश्व में भारतीय निजी निवेश में समय के साथ वृद्धि हुई है।

चिंताएँ/चुनौतियाँ

  • संस्थागत ढाँचे का अभाव:
    • भारत को एक स्वतंत्र विकास साझेदारी एजेंसी की आवश्यकता है जो दीर्घकालिक और अल्पकालिक रणनीतियाँ विकसित करे, प्राथमिकताओं की पहचान करे, ज्ञान निर्माण करे और सीखने की सुविधा प्रदान करे।   
    • अपने अवसंरचनात्मक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये भारत को नीति-संबंधी और नौकरशाही-संबंधी आंतरिक संस्थागत बाधाओं को दूर करने की ज़रूरत है।   
  • वित्त की कमी:
    • आधारभूत संरचना परियोजनाओं को वित्तपोषित कर सकने की सीमित क्षमता के साथ, भारत को अपने रणनीतिक उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए अपने धन को तर्कसंगत रूप से आवंटित करने की आवश्यकता है।    
    • इसके अलावा, भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार और बाज़ार को खोलने के साथ भारत को अंतर्राष्ट्रीय परियोजनाओं के लिये धन संग्रह करने में मदद मिल सकती है।  
  • पूर्ति-घाटा राष्ट्र (Delivery-Deficit Nation):
    • भारत के पड़ोसी देश प्रायः भारत द्वारा बड़े वादे किये जाने लेकिन पूर्ति में चूक जाने की शिकायत करते रहे हैं। 
    • भारत ने सड़क एवं रेल लाइनों के निर्माण, एकीकृत सीमा चौकियों की स्थापना या जल विद्युत परियोजनाओं आदि के रूप में जिन देशों में भी परियोजनाओं का परिचालन किया है, वहाँ इसकी पूर्ति में देरी जैसी शिकायतें सामने आई हैं।    
  • संरक्षणवाद:
    • संरक्षणवाद आर्थिक कूटनीति पर उल्लेखनीय प्रभाव डाल रहा है। एशियाई विकास बैंक (ADB) की एक रिपोर्ट के अनुसार व्यापार खुलेपन (trade openness) के मामले में भारत एशिया-प्रशांत क्षेत्र के 25 देशों में से 24वें स्थान पर है।
    • सीमाओं पर स्थापित एकीकृत जाँच चौकियों को ट्रकों की अतिरिक्त जाँच एवं कागजी कार्रवाई में देरी जैसी बोझिल प्रक्रियाओं का सामना करना पड़ता है जिसमें समय और लाभ दोनों की खपत होती है।  

आगे की राह 

  • संस्थागत संरचना का निर्माण:
    • समय की आवश्यकता है कि परिणामों के कुशल वितरण के लिये एक विशेष एजेंसी की स्थापना की जाए। उदाहरण के लिये, वर्ष 2018 में चीन ने अपनी अंतर्राष्ट्रीय विकास सहयोग एजेंसी की स्थापना की थी। 
    • एक स्वतंत्र विकास साझेदारी एजेंसी की स्थापना—जो सूचनाओं की साझेदारी की सुविधा प्रदान करे और सरकारी विभागों के बीच नीति समन्वय के लिये एक मंच का निर्माण करे—समन्वित प्रयासों को सुनिश्चित करेगी, जो विकासात्मक लाभों और संसाधनों को शीघ्रता से जुटाने के लिये आवश्यक है।      
    • इस एजेंसी को सरकार, निजी क्षेत्र, शिक्षा क्षेत्र और नागरिक समाज के बीच समन्वय स्थापित करते हुए सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) की पूर्ति की दिशा में कार्य करना होगा।   
  • निजी क्षेत्र और नागरिक समाज की संलग्नता:
    • भारतीय व्यवसायों के साथ अभिनव सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल की संभावनाओं का पता लगाया जाना चाहिये ताकि उनकी विशेषज्ञता का लाभ उठाते हुए भारत के विकास सहयोग लक्ष्यों को साकार किया जा सके।  
  • बहुपक्षीयता:
    • कोविड-19 ने दिखाया है कि वैश्विक स्वास्थ्य संकट के दौरान देशों के बीच सहयोग अलग-अलग देशों और भूभागों में आवश्यक प्रतिक्रिया को तेज़ कर सकता है। इसमें मौजूदा संसाधनों और क्षमताओं का अधिकतम उपयोग करते हुए स्वास्थ्य में सुधार के लिये ज्ञान एवं अनुभवों का निर्माण करना, उन्हें अनुकूलित करना, हस्तांतरित करना और साझा करना शामिल है।    
  • नॉन-सॉवरेन फंड:
    • एशियाई विकास बैंक के प्राइवेट सेक्टर विंडो जैसा एक नॉन-सॉवरेन विंडो वृहत लचीलापन और अवसर प्रदान करेगा।   
    • ग्रीनफील्ड परियोजनाओं के अलावा, यह फंड अधूरी परियोजनाओं को भी अपने हाथ में ले सकता है और उसकी पूर्ति के लिये भविष्य की समय-सीमा तय कर सकता है। 
  • व्यापार खुलापन:
    • भारत को मंज़ूरी प्रक्रियाओं, आयात नीति बाधाओं, परीक्षण और प्रमाणन आवश्यकताओं, एंटी-डंपिंग और काउंटरवेलिंग उपायों को सुगम बनाने की दिशा में भी कार्य करने की आवश्यकता है।  
    • भारत को अपने पड़ोसी देशों के साथ अपने निवेश और व्यापार का विस्तार करना चाहिये ताकि वृहत क्षेत्रीय और आर्थिक एकीकरण का लाभ उठाया जा सके, जहाँ भारत अपनी पड़ोसी अर्थव्यवस्थाओं के लिये बंद के बजाय खुला अधिक हो।

निष्कर्ष

यह उपयुक्त समय है कि भारत गहन और प्रभावी संलग्नता के लिये और तेज़ी से उभर रहे नए प्रतिस्पर्द्धी विकास वित्तपोषण परिदृश्य को संबोधित करने के लिये अपने विकास वित्त तंत्र का पुनर्गठन करे।  

जैम ट्रिनिटीआयुष्मान भारत जैसे कार्यक्रमों और गति शक्ति जैसी अन्य पहलों के साथ भारत का अपना विकास अनुभव भी विकसित हो रहा है, जिसे पोर्टफोलियो में शामिल करते हुए सहयोगी विकासशील देशों के साथ साझा किया जाना चाहिये।

अभ्यास प्रश्न: "यह उपयुक्त समय है कि भारत एक डिलीवरी डेफिसिट वाले राष्ट्र की अपनी छवि का परित्याग करे।" विदेशों में परियोजनाओं को समय पर पूरा करने में भारत के खराब रिकॉर्ड पर टिप्पणी कीजिये।

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