एजेंडा-2030 और भारत
गौरतलब है कि भारत सरकार ने पहली बार, न्यूयार्क में जुलाई, 2017 में आयोजित होने वाले उच्च स्तरीय राजनीतिक मंच (High-level Political Forum) पर अपनी स्वैच्छिक राष्ट्रीय समीक्षा (वीएनआर) प्रस्तुत करने का निर्णय लिया है। यह वह मंच है जहाँ एजेंडा 2030 के अंतर्गत तय लक्ष्यों के सन्दर्भ में विभिन्न देशों द्वारा की गई प्रगति का आकलन किया जाता है। इस वर्ष भारत सहित 44 राष्ट्र इन लक्ष्यों के संबंध में की गई प्रगति की समीक्षा प्रस्तुत करेंगे। यह एजेंडा 2030 और इस संबंध में भारत द्वारा की गई प्रगति को समझने का एक उपयुक्त अवसर है।
क्या है एजेंडा 2030
- विदित हो कि वर्ष 2015 से शुरू संयुक्त राष्ट्र महासभा की 70वीं बैठक में अगले 15 वर्षों के लिये सतत विकास लक्ष्य (sustainable development goals-SDG) निर्धारित किये गए थे।
- उल्लेखनीय है कि 2000-2015 तक की अवधि के लिये सहस्त्राब्दि विकास लक्ष्यों (millennium development goals-MDG) की प्राप्ति की योजना बनाई गई थी जिनकी समयावधि वर्ष 2015 में पूरी हो चुकी थी।
- तत्पश्चात, आने वाले वर्षों के लिये एक नया एजेंडा (SDG-2030) को औपचारिक तौर पर सभी सदस्य राष्ट्रों ने अंगीकृत किया था। सतत विकास लक्ष्यों की बात करने से पहले यह जानना भी महत्त्वपूर्ण होगा कि सहस्त्राब्दि विकास लक्ष्य क्या थे?
सहस्त्राब्दि विकास लक्ष्य (millennium development goals-MDG)
1. भुखमरी तथा गरीबी को ख़त्म करना।
2. सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा हासिल करना।
3. लिंग समानता तथा महिला सशक्तिकरण को प्रचारित करना।
4. शिशु-मृत्यु दर घटाना।
5. मातृत्व स्वास्थ्य को बढ़ावा देना।
6. एचआईवी/एड्स, मलेरिया तथा अन्य बीमारियों से निजात पाना।
7. पर्यावरण सततता।
8. वैश्विक विकास के लिये संबंध स्थापित करना।
गौरतलब है कि भारत ने लक्षित लक्ष्यों में से एचआईवी/एड्स, गरीबी, सार्वभौमिक शिक्षा तथा शिशु मृत्युदर में निर्धारित मानकों को 2015 तक प्राप्त कर लिया है। जबकि अन्य लक्ष्यों की प्राप्ति में भारत अभी भी बहुत पीछे है। हालाँकि सहस्त्राब्दि विकास लक्ष्यों को एजेंडा 2030 में निहित लक्ष्यों के अंतर्गत ही शामिल कर लिया गया है।
सतत विकास लक्ष्य (sustainable development goals-SDG)
- 'ट्रांस्फॉर्मिंग आवर वर्ल्ड: द 2030 एजेंडा फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट' के संकल्प को, जिसे सतत विकास लक्ष्यों के नाम से भी जाना जाता है।
- भारत सहित 193 देशों ने सितंबर, 2015 में संयुक्त राष्ट्र महासभा की उच्च स्तरीय पूर्ण बैठक में इसे स्वीकार किया था और एक जनवरी, 2016 को यह लागू किया गया।
- इसके तहत 17 लक्ष्य तथा 169 उपलक्ष्य निर्धारित किये गए थे जिन्हें 2016-2030 की अवधि में प्राप्त करना है। उल्लेखनीय है कि इसमें से 8 लक्ष्य सहस्त्राब्दि विकास लक्ष्यों से लिये गए है, जिन्हें और व्यापक बनाते हुए अपनाया गया है।
संयुक्त राष्ट्र के एजेंडा 2030, में कुल 17 लक्ष्यों का निर्धारण किया गया था जो इस प्रकार से हैं:
- गरीबी के सभी रूपों की पूरे विश्व से समाप्ति।
- भूख समाप्ति, खाद्य सुरक्षा और बेहतर पोषण और टिकाऊ कृषि को बढ़ावा।
- सभी उम्र के लोगों में स्वास्थ्य सुरक्षा और स्वस्थ जीवन को बढ़ावा।
- समावेशी और न्यायसंगत गुणवत्ता युक्त शिक्षा सुनिश्चित करने के साथ ही सभी को सीखने का अवसर देना।
- लैंगिक समानता प्राप्त करने के साथ ही महिलाओं और लड़कियों को सशक्त करना।
- सभी के लिये स्वच्छता और पानी के सतत प्रबंधन की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
- सस्ती, विश्वसनीय, टिकाऊ और आधुनिक ऊर्जा तक पहुँच सुनिश्चित करना।
- सभी के लिये निरंतर समावेशी और सतत आर्थिक विकास, पूर्ण और उत्पादक रोज़गार, और सभ्य काम को बढ़ावा देना।
- लचीली बुनियादी ढांचे, समावेशी और सतत औद्योगीकरण को बढ़ावा।
- देशों के बीच और भीतर असमानता को कम करना।
- सुरक्षित, लचीला और टिकाऊ शहर और मानव बस्तियों का निर्माण।
- स्थायी खपत और उत्पादन पैटर्न को सुनिश्चित करना।
- जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभावों से निपटने के लिये तत्काल कार्रवाई करना।
- स्थायी सतत विकास के लिये महासागरों, समुद्र और समुद्री संसाधनों का संरक्षण और उपयोग।
- सतत उपयोग को बढ़ावा देने वाले स्थलीय पारिस्थितिकी प्रणालियों, सुरक्षित जंगलों और जैव विविधता के बढ़ते नुकसान को रोकने का प्रयास करना।
- सतत विकास के लिये शांतिपूर्ण और समावेशी समितियों को बढ़ावा देने के साथ ही सभी स्तरों पर इन्हें प्रभावी, जवाबदेही बनाना ताकि सभी के लिये न्याय सुनिश्चित हो सके।
- सतत विकास के लिये वैश्विक भागीदारी को पुनर्जीवित करने के अतिरिक्ति कार्यान्वयन के साधनों को मज़बूत बनाना।
(टीम दृष्टि इनपुट)
एजेंडा 2030 में निहित उम्मीदें
सतत विकास से हमारा अभिप्राय ऐसे विकास से है, जो हमारी भावी पीढ़ियों की अपनी ज़रूरतें पूरी करने की योग्यता को प्रभावित किये बिना वर्तमान समय की आवश्यकताएँ पूरी करे।
सतत विकास लक्ष्यों का उद्देश्य सबके लिये समान, न्यायसंगत, सुरक्षित, शांतिपूर्ण, समृद्ध और रहने योग्य विश्व का निर्माण करना और विकास के तीनों पहलुओं, अर्थात सामाजिक समावेश, आर्थिक विकास और पर्यावरण संरक्षण को व्यापक रूप से समाविष्ट करना है।
सहस्त्राब्दि विकास लक्ष्य के बाद (जो 2000 से 2015 तक के लिये निर्धारित किये गए थे) विकसित इन नए लक्ष्यों का उद्देश्य विकास के अधूरे कार्य को पूरा करना और ऐसे विश्व की संकल्पना को मूर्त रूप देना है, जिसमें चुनौतियाँकम और आशाएँ अधिक हों।
एजेंडा 2030 के सन्दर्भ में भारत की प्रगति
- भारत लंबे अरसे से सतत विकास के पथ पर आगे बढ़ने का प्रयास कर रहा है और इसके मूलभूत सिद्धांतों को अपनी विभिन्न विकास नीतियों में शामिल करता आ रहा है।
- भारत सरकार की विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत एजेंडा 2030 के एक महत्त्वपूर्ण लक्ष्य गरीबी दूर करने के उद्देश्यपूर्ति के लिये सबसे निर्धन वर्ग के कल्याण को प्रमुखता दी गई है।
- सरकार द्वारा कार्यान्वित किये जा रहे अनेक कार्यक्रम सतत विकास लक्ष्यों के अनुरूप हैं, जिनमें मेक इन इंडिया, स्वच्छ भारत अभियान, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण और शहरी दोनों, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, डिजिटल इंडिया, दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना, स्किल इंडिया और प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना शामिल हैं।
- इसके अलावा अधिक बजट आवंटनों से बुनियादी सुविधाओं के विकास और गरीबी समाप्त करने से जुड़े कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया जा रहा है।
कैसे होगा भारत की प्रगति का आकलन?
- केंद्र सरकार ने सतत विकास लक्ष्यों के कार्यान्वयन पर निगरानी रखने तथा इसके समन्वय की ज़िम्मेदारी, नीति आयोग को सौंपी है। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय को संबंधित राष्ट्रीय संकेतक तैयार करने का कार्य सौंपा गया है।
- सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद द्वारा प्रस्तावित संकेतकों की वैश्विक सूची से उन संकेतकों की पहचान करना, जो हमारे राष्ट्रीय संकेतक ढांचे के अंतर्गत अपनाए जा सकते हैं।
- इससे जो परिणाम प्राप्त होंगे उससे स्वैछिक राष्ट्रीय समीक्षा प्रक्रिया में उपयोग किया जाएगा। यह विचारणीय है कि भारत इसकी प्रमुख उपलब्धियों जैसे-स्वच्छ भारत, वित्तीय समावेशन आदि को उजागर करेगा।
- सरकार पहले ही मौजूदा कार्यक्रमों और नीतियों की पहचान कर चुकी है जिन्हें सतत विकास लक्ष्यों के अंतर्गत विभिन्न लक्ष्यों से सम्बद्ध किया गया है। सरकार ने स्वैच्छिक राष्ट्रीय समीक्षा के लिये नागरिक समाज से भी सुझाव मांगे हैं।
- परन्तु यह स्पष्ट नहीं है कि नागरिक समाज संगठनों(CSO) के ये सुझाव सरकार की रिपोर्ट का हिस्सा होंगे अथवा नहीं।
- स्वैच्छिक राष्ट्रीय समीक्षा प्रक्रिया एक ओर सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति के संबंध में की गई प्रगति के आकलन का एक उपयुक्त मंच है लेकिन वर्ष 2016 की समीक्षा में सरकार ने यह बढ़ा-चढ़ाकर दर्शाने का प्रयास किया था।
और अधिक प्रगति की अपेक्षा
- उल्लेखनीय प्रयासों के बावजूद एजेंडा 2030 में तय लक्ष्यों के संबंध में भारत की प्रगति संतोषजनक नहीं कही जा सकती और इसके लिये भारत को निम्न बातों पर ध्यान देना होगा:
- सतत विकास लक्ष्यों को विकास नीतियों में शामिल करने के लिये हमें अनेक मोर्चों पर कार्य करना होगा ताकि पर्यावरण और हमारी पृथ्वी के अनुकूल एक बेहतर जीवन जीने की हमारे देशवासियों की वैध इच्छाओं को पूरा किया जा सके।
- हमारे संघीय ढाँचे में सतत विकास लक्ष्यों की संपूर्ण सफलता में राज्यों की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण है। राज्यों में विभिन्न राज्य स्तरीय विकास योजनाएँ कार्यान्वित की जा रही हैं। इन योजनाओं का सतत विकास लक्ष्यों के साथ तालमेल होना चाहिये।
- केंद्र और राज्य सरकारों को सतत विकास लक्ष्यों के कार्यान्वयन में आनेवाली विभिन्न चुनौतियों का मुकाबला करने के लिये मिलकर काम करने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
- भारत को यदि एजेंडा 2030 में तय लक्ष्यों को प्राप्त करना है, तो इस तरह की नीति बनानी पड़ेगी जो सभी क्षेत्रों में क्रियान्वित नीतियों से सामंजस्य स्थापित करती हो।
- साथ ही प्रशासनिक एवं छोटे स्तर पर इन नीतियों के क्रियान्वयन हेतु सामंजस्य तथा भागीदारी पर ध्यान देना होगा।
- गौरतलब है कि हम सहस्त्राब्दि विकास लक्ष्यों को वर्ष 2015 तक नहीं प्राप्त कर सके थे तो इसका मुख्य कारण यह था कि इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिये तय नीतियों का क्रियान्वयन सशक्त नहीं था।
- सतत विकास के लक्ष्यों को यदि हम 2030 तक प्राप्त कर लेते हैं तो भारत एक विकसित तथा समृद्ध राष्ट्र बन सकता है।