डेली न्यूज़ (21 Jun, 2024)



अपशिष्ट उत्पादकों पर SWM उपकर

प्रिलिम्स के लिये:

ठोस अपशिष्ट प्रबंधन उपकर, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, लैंडफिल, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 

मेन्स के लिये:

ठोस अपशिष्ट प्रबंधन से संबंधित मुद्दे, SWM पर उपकर बढ़ाने की आवश्यकता।

स्रोत:द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में बंगलुरु ने ठोस अपशिष्ट प्रबंधन (SWM) प्रक्रिया में वित्तीय कमी से निपटने हेतु प्रत्येक घर पर ठोस अपशिष्ट प्रबंधन (SWM) उपकर को बढ़ाकर 100 रुपए प्रति माह करने का प्रस्ताव किया है। 

  • वर्तमान में ULBs द्वारा SWM सेवाओं के लिये लगभग 30-50 रुपए प्रतिमाह लिये जाते हैं, जिसका संग्रहण अक्सर संपत्ति कर के साथ किया जाता है।

SWM उपकर: 

  • परिचय:
    • ठोस अपशिष्ट प्रबंधन (SWM) उपकर, भारत में शहरी स्थानीय निकायों (ULBs) द्वारा लगाया जाने वाला एक उपयोगकर्त्ता शुल्क या प्रभार है। 
      • उपकर एक प्रकार का कर या शुल्क है जो सरकारों द्वारा विशिष्ट सेवाओं या उद्देश्यों (जैसे- अपशिष्ट प्रबंधन या बुनियादी ढाँचे के विकास) हेतु लगाया जाता है।
  • विधिक प्रावधान:
    • ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के अनुसार, शहरी स्थानीय निकायों को SWM सेवाओं हेतु उपयोगकर्त्ता शुल्क या उपकर वसूलने का अधिकार है। बढ़ते खर्चों एवं ठोस अपशिष्ट के कुशलतापूर्वक प्रबंधन के क्रम में शहरी स्थानीय निकायों के समक्ष आने वाली कठिनाइयों के संदर्भ में इस शुल्क को बढ़ाने पर विचार किया जाता है।

ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016:

  • इन नियमों द्वारा नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (प्रबंधन एवं हैंडलिंग) नियम, 2000 का स्थान लिया गया। 
  • इसमें स्रोत पर अपशिष्ट के पृथक्करण, सैनिटरी और पैकेजिंग अपशिष्टों के निपटान हेतु उत्पादक के उत्तरदायित्व के साथ अपशिष्ट के संग्रहण, निपटान एवं प्रसंस्करण हेतु उपयोगकर्त्ता शुल्क पर बल दिया गया।
  • प्रमुख विशेषताएँ:
    • अपशिष्ट पृथक्करण और निपटान: लोगों के लिये अपशिष्ट को गीला (बायोडिग्रेडेबल), सूखा (पुनर्नवीनीकरण योग्य) तथा खतरनाक श्रेणियों में पृथक करना चाहिये। पृथक किया गया अपशिष्ट, अधिकृत संग्रहकर्ताओं या स्थानीय निकायों के पास जाएगा।
    • भुगतान: स्थानीय लोगों को अपशिष्ट के संग्रह के बदले में उपयोगकर्त्ता शुल्क का भुगतान करने के साथ अपशिष्ट फैलाने या अलग न करने पर ज़ुर्माना देना होगा।
    • अपशिष्ट प्रसंस्करण: इसमें संभव होने पर SWM नियमों के तहत अपशिष्ट से खाद बनाने या इसके जैव-मीथेनेशन को प्रोत्साहित करने के साथ लैंडफिल, अपशिष्ट-से-ऊर्जा संयंत्र एवं पहाड़ी क्षेत्रों हेतु विशेष हैंडलिंग नियमों जैसे प्रावधान शामिल हैं।
    • स्थानीय प्राधिकरणों के कर्त्तव्य: नगर पालिकाओं को अपशिष्ट को इकट्ठा करने, उचित प्रसंस्करण/निपटान सुनिश्चित करने तथा संबंधित खर्चों हेतु उपयोगकर्त्ता शुल्क लगाने पर बल देना चाहिये।
    • विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व: डिस्पोजेबल (पैकेजिंग) के उत्पादकों की इसके संग्रहण तथा अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों को वित्तीय रूप से समर्थन देने की ज़िम्मेदारी है।

अपशिष्ट प्रबंधन से संबंधित अन्य पहल:

  • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (PWM) नियम, 2016 एवं प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम, 2022
  • जैव-चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016
  • वेस्ट टू वेल्थ पोर्टल: इसका उद्देश्य ऊर्जा उत्पन्न करने, सामग्रियों को पुनः चक्रित करने और मूल्यवान संसाधनों को निकालने के लिये अपशिष्ट का उपचार करने हेतु प्रौद्योगिकियों की पहचान करना है, जिसमें उनका विकास करना और उनका उपयोग करना शामिल है।
  • वेस्ट टू  एनर्जी: वेस्ट टू एनर्जी या अपशिष्ट से ऊर्जा संयंत्र नगरपालिका एवं औद्योगिक ठोस अपशिष्ट को औद्योगिक प्रसंस्करण हेतु विद्युत या ऊष्मा में परिवर्तित करता है।
  • प्रोजेक्ट रिप्लान (REPLAN): इसका उद्देश्य प्रसंस्कृत और उपचारित प्लास्टिक अपशिष्ट को कॉटन फाइबर रैग (Cotton Fibre Rag) के साथ 20:80 के अनुपात में मिलाकर कैरी बैग का निर्माण करना है।

SWM उपकर संग्रह बढ़ाने के पीछे क्या तर्क है?

  • SWM सेवाओं की उच्च लागत: SWM प्रक्रिया अत्यधिक जटिल और संसाधन-गहन है, जो ULB के वार्षिक बजट का 50% तक खर्च करती है।
    • व्यय में पूंजी निवेश के साथ-साथ वेतन, अपशिष्ट संग्रहण और अपशिष्ट प्रबंधन संयंत्रों के संचालन सहित परिचालन लागतें भी शामिल हैं।
  • राजस्व संबंधी चुनौतियाँ: SWM पर उच्च व्यय के बावजूद, इन सेवाओं से प्राप्त राजस्व न्यूनतम है।
    • उदाहरण के लिये, बंगलुरु SWM सेवाओं पर लगभग 1,643 करोड़ रुपए खर्च करता है, जबकि SWM सेवाओं से प्राप्त राजस्व, प्राप्त अनुदान को छोड़कर, लगभग नगण्य अथवा 20 लाख रुपए प्रतिवर्ष है।
  • सीमित पुनर्चक्रणीयता: शुष्क अपशिष्ट का मात्र 1-2% ही पुनर्चक्रणीय है, जबकि अधिकांश अपशिष्ट गैर-पुनर्चक्रणीय और गैर-जैवनिम्नीकरणीय है, जिससे पुनर्चक्रण प्रयासों से नगण्य राजस्व प्राप्त होता है, जिसके परिणामस्वरूप शहरी स्थानीय निकायों के वित्तीय संसाधनों पर और अधिक दबाव पड़ता है।
  • परिचालन संबंधी चुनौतियाँ: स्रोत पर अपशिष्ट का उचित पृथक्करण प्रायः नहीं होता है, जिससे अपशिष्ट का प्रसंस्करण जटिल हो जाता है।
    • अपशिष्ट के प्रसंस्करण से प्राप्त तैयार उत्पादों के लिये सीमित बाज़ार है, जिससे यह वित्तीय रूप से अव्यवहारिक हो जाता है।
  • निपटान लागत: गैर-खाद योग्य और गैर-पुनर्चक्रणीय शुष्क अपशिष्ट का निपटान एक महत्त्वपूर्ण व्यय है, विशेष रूप से परिवहन लागत के कारण, क्योंकि उचित अपशिष्ट निपटान की सुविधाएँ प्रायः शहरी केंद्रों से दूर स्थित होती हैं।

ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के तरीके

  • पुनर्चक्रण: कागज़, प्लास्टिक, धातु और काँच जैसी पुरानी सामग्रियों को नए उत्पादों में परिवर्तित करने से संसाधनों पर निर्भरता कम होती है, साथ ही ऊर्जा की बचत भी होती है।
  • लैंडफिल: इनका उपयोग सभी प्रकार के अपशिष्ट के निपटान के लिये किया जाता है क्योंकि ये उन सामग्रियों के लिये अंतिम गंतव्य के रूप में कार्य करते हैं, जिन्हें पुनर्चक्रित नहीं किया जा सकता है या प्राकृतिक रूप से विघटित नहीं किया जा सकता है। आधुनिक लैंडफिल अपने पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिये लाइनर और अन्य रोकथाम विधियों का उपयोग करते हैं।
  • भस्मीकरण: इसमें उच्च तापमान पर अपशिष्ट का दहन शामिल है, जिससे इसकी मात्रा काफी कम हो जाती है। यह वायु प्रदूषण और हानिकारक प्रदूषकों के उत्सर्जन संबंधी चिंताएँ भी उत्पन्न करता है।
  • खाद निर्माण: यह जैविक अपशिष्ट, जैसे कि खाद्य अपशिष्ट और यार्ड के प्रबंधन के लिये एक प्राकृतिक समाधान प्रदान करता है। खाद निर्माण की प्रक्रिया के माध्यम से, इन सामग्रियों को पोषक तत्त्वों से भरपूर उर्वरक में परिवर्तित कर दिया जाता है, जिसका उपयोग मृदा के स्वास्थ्य को समृद्ध करने के लिये किया जा सकता है।

SWM सेवाओं पर परिचालन व्यय को कम करने के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?

  • स्रोत पर अपशिष्ट पृथक्करण: घरेलू स्तर पर अपशिष्ट पृथक्करण में सुधार करने से खाद निर्माण के कार्य से उपज में वृद्धि हो सकती है और शुष्क अपशिष्ट के पुनर्चक्रण में वृद्धि हो सकती है, जिससे परिचालन लागत कम हो सकती है।
  • एकल-उपयोग प्लास्टिक को कम करना: गैर-पुनर्चक्रणीय एकल-उपयोग प्लास्टिक के बढ़ते प्रचलन से शहरी स्थानीय निकायों के लिये परिवहन और निपटान लागत में वृद्धि होती है। ऐसे प्लास्टिक के उपयोग को कम करने से परिचालन व्यय को कम करने में सहायता मिल सकती है।
  • विकेंद्रीकृत खाद निर्माण: तमिलनाडु और केरल में देखे गए वार्ड स्तर पर माइक्रो खाद केंद्र (MCC) स्थापित करने से तरल अपशिष्ट को स्थानीय स्तर पर संसाधित करने तथा परिवहन लागत को कम करने में सहायता मिल सकती है।
  • थोक अपशिष्ट उत्पादकों द्वारा स्व-अपशिष्ट प्रसंस्करण: बड़े संस्थानों और प्रतिष्ठानों को आंतरिक अपशिष्ट प्रसंस्करण सुविधाएँ स्थापित करने के लिये प्रोत्साहित करने से शहरी स्थानीय निकायों पर बोझ कम करने तथा स्वच्छ परिसर को बढ़ावा देने में मदद मिल सकती है।
  • सूचना, शिक्षा और जागरूकता (IEC): इससे खुले में कूड़ा फेंकने से रोकने में मदद मिलेगी। अनुचित अपशिष्ट निपटान को हतोत्साहित करने के लिये प्रभावी IEC अभियान सड़कों की सफाई तथा नालियों को साफ करने हेतु आवश्यक श्रम को कम कर सकते हैं, जिससे अपशिष्ट प्रसंस्करण एवं मूल्य वसूली के लिये संसाधनों का पुनर्नियोजन हो सकता है।

वैश्विक अपशिष्ट प्रबंधन आउटलुक 2024 रिपोर्ट (GWMO 2024)

  • इसे संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nations Environment Programme- UNEP) द्वारा फरवरी 2024 में जारी किया जाएगा।
  • मुख्य निष्कर्ष:
    • वैश्विक परिदृश्य: विश्व भर में प्रतिवर्ष दो अरब टन से अधिक नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (Municipal Solid Waste- MSW) उत्पन्न होता है।
    • अपशिष्ट संग्रहण: वैश्विक जनसंख्या के एक तिहाई से अधिक लोग, विशेष रूप से दक्षिण और विकासशील क्षेत्रों में, गंभीर अपशिष्ट प्रबंधन समस्याओं का सामना कर रहे हैं तथा 2.7 बिलियन से अधिक लोगों के पास उचित अपशिष्ट संग्रहण सेवाएँ उपलब्ध नहीं हैं।
      • लगभग 540 मिलियन टन MSW, जो वैश्विक कुल का 27% है, एकत्रित नहीं किया जा सका है।
    • भविष्य का अनुमान: अपशिष्ट उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि होने की उम्मीद है, जो वर्ष 2023 में 2.3 बिलियन टन से बढ़कर वर्ष 2050 तक 3.8 बिलियन टन हो जाएगी।
  • अपशिष्ट प्रबंधन में बाधाएँ: इसमें सार्वजनिक जागरूकता और शिक्षा की कमी, निर्णय लेने में समावेश की कमी, मिश्रित अपशिष्ट से पुनर्चक्रण योग्य सामग्री निकालने में तकनीकी बाधाएँ तथा निजी क्षेत्र की भागीदारी में बाधा डालने वाली नौकरशाही बाधाएँ शामिल हैं।

दृष्टि मुख्य प्रश्न: 

प्रश्न: अपशिष्ट प्रबंधन मुद्दों से निपटने और पर्यावरणीय स्थिरता में सुधार करने के लिये ठोस अपशिष्ट प्रबंधन (SWM) उपकर शुरू करने के प्रभाव का मूल्यांकन कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के अनुसार, निम्नलिखित में से कौन-सा एक कथन सही है? (2019)

(a) अपशिष्ट उत्पादक को पाँच कोटियों में अपशिष्ट अलग करना करने होंगे। 
(b) ये नियम केवल अधिसूचित नगरीय स्थानीय निकायों, अधिसूचित नगरों तथा सभी औद्योगिक नगरों पर ही लागू होंगे। 
(c) इन नियमों में अपशिष्ट भराव स्थलों तथा अपशिष्ट प्रसंस्करण सुविधाओं के लिये सटीक और ब्यौरेवार मानदंड उपबंधित हैं। 
(d) अपशिष्ट उत्पादक के लिये यह आज्ञापक होगा कि किसी एक ज़िले में उत्पादित अपशिष्ट, किसी अन्य ज़िले में न ले जाया जाए।

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. निरंतर उत्पन्न किये जा रहे फेंके गए ठोस कचरे की विशाल मात्राओं का निस्तारण करने में क्या-क्या बाधाएँ हैं? हम अपने रहने योग्य परिवेश में जमा होते जा रहे ज़हरीले अपशिष्टों को सुरक्षित रूप से किस प्रकार हटा सकते हैं? (2018)

प्रश्न. “जल, सफाई और स्वच्छता की आवश्यकता को लक्षित करने वाली नीतियों के प्रभावी क्रियान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये लाभार्थी वर्गों की पहचान को प्रत्याशित परिणामों के साथ जोड़ना होगा।” ‘वाश’ योजना के संदर्भ में इस कथन का परीक्षण कीजिये। (2017)

प्रश्न. सामाजिक प्रभाव और समझाना-बुझाना स्वच्छ भारत अभियान की सफलता के लिये किस प्रकार योगदान कर सकते है? (2016)


ग्रेट निकोबार आइलैंड प्रोजेक्ट की समस्या

प्रिलिम्स के लिये:

ग्रेट निकोबार द्वीप, राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT), शोम्पेन, विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह (PVTG), निकोबार मेगापोड पक्षी, लेदरबैक कछुए

मेन्स के लिये:

ग्रेट निकोबार आइलैंड प्रोजेक्ट का महत्त्व और संबंधित चिंताएँ

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विपक्षी पार्टी ने ग्रेट निकोबार आइलैंड पर प्रस्तावित 72,000 करोड़ रुपए के बुनियादी ढाँचे के उन्नयन को आइलैंड के मूल निवासियों और नाज़ुक पारिस्थितिकी तंत्र के लिये "गंभीर खतरा" बताया है, जिसमें समग्र स्वीकृतियों को तत्काल निलंबित करने और संबंधित संसदीय समितियों सहित प्रस्तावित परियोजना की गहन, निष्पक्ष समीक्षा की मांग की है।

ग्रेट निकोबार आइलैंड

  • ग्रेट निकोबार, निकोबार द्वीपसमूह का सबसे दक्षिणी और सबसे बड़ा द्वीप है, जो बंगाल की खाड़ी के दक्षिण-पूर्वी भाग में, मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय वर्षावन का 910 वर्ग किलोमीटर का एक विरल आबादी वाला क्षेत्र है।
    • इस द्वीप पर इंदिरा प्वाइंट, भारत का सबसे दक्षिणी बिंदु, इंडोनेशियाई द्वीपसमूह के सबसे बड़े द्वीप सुमात्रा के उत्तरी सिरे पर सबांग से 90 समुद्री मील (<170 किमी) की दूरी पर स्थित है।
  • अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह में 836 द्वीप हैं, जिन्हें दो समूहों में विभाजित किया गया है, जिन्हें उत्तर में स्थित अंडमान द्वीप और दक्षिण में स्थित निकोबार द्वीप के रूप में जाना जाता है, यह 10 डिग्री चैनल द्वारा अलग होते हैं जो 150 किलोमीटर चौड़ा है।
  • ग्रेट निकोबार में दो राष्ट्रीय उद्यान, एक बायोस्फीयर रिज़र्व, शोम्पेन, ओंग, अंडमानी और निकोबारी आदिवासी लोगों की लघु आबादी और कुछ हज़ार गैर-आदिवासी निवास करते हैं।

ग्रेट निकोबार आइलैंड प्रोजेक्ट/परियोजना क्या है?

  • परिचय:
    • वर्ष 2021 में प्रारंभ हुआ ग्रेट निकोबार आइलैंड (GNI) प्रोजेक्ट, अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह के दक्षिणी छोर पर लागू किया जाने वाला एक मेगा प्रोजेक्ट है।
      • इसमें द्वीप पर एक ट्रांस-शिपमेंट पोर्ट, एक अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, टाउनशिप विकास और 450 MVA गैस और सौर-आधारित विद्युत संयंत्र विकसित करना शामिल है।
    • इस प्रोजेक्ट को नीति आयोग की रिपोर्ट के बाद लागू किया गया था, जिसमें द्वीप की लाभप्रद स्थिति का उपयोग करने की क्षमता की पहचान की गई थी, जो दक्षिण-पश्चिम में श्रीलंका के कोलंबो और दक्षिण-पूर्व में पोर्ट क्लैंग (मलेशिया) और सिंगापुर से लगभग समान दूरी पर स्थित है।
  • विशेषताएँ:
    • इस मेगा इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट का क्रियान्वयन अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह एकीकृत विकास निगम (ANIIDCO) द्वारा किया जा रहा है, इसमें एक अंतर्राष्ट्रीय कंटेनर ट्राँस-शिपमेंट टर्मिनल (ICTT) और एक ग्रीनफील्ड अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा शामिल करने का प्रस्ताव है।
    • यह मलक्का जलडमरूमध्य के करीब स्थित है, जो हिंद महासागर को प्रशांत महासागर से जोड़ने वाला मुख्य जलमार्ग है और ICTT से ग्रेट निकोबार को कार्गो ट्रांसशिपमेंट में एक प्रमुख अभिकर्त्ता बनकर क्षेत्रीय और वैश्विक समुद्री अर्थव्यवस्था में भाग लेने की अनुमति मिलने की उम्मीद है।
      • प्रस्तावित ICTT और विद्युत संयंत्र के लिये ग्रेट निकोबार द्वीप के दक्षिण-पूर्वी कोने पर गैलाथिया खाड़ी एक स्थल है, जहाँ कोई मानव निवास नहीं है।
  • रणनीतिक महत्त्व: 
    • इस उन्नयन का उद्देश्य अतिरिक्त सैन्य बलों, अधिक बड़े युद्धपोतों, विमानों, मिसाइल बैटरियों तथा सैनिकों की तैनाती को सुविधाजनक बनाना है।
      • द्वीपसमूह के आसपास के संपूर्ण क्षेत्र की कड़ी निगरानी एवं ग्रेट निकोबार में एक सुव्यवस्थित सैन्य निरोधक क्षमता का निर्माण, भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
    • यह द्वीप मलक्का जलडमरूमध्य के निकट है, जो हिंद महासागर को प्रशांत महासागर से जोड़ने वाला मुख्य जलमार्ग है और साथ ही ICTT से यह आशा की जाती है कि यह ग्रेट निकोबार को कार्गो ट्रांसशिपमेंट में एक प्रमुख अभिकर्त्ता बनाकर क्षेत्रीय एवं वैश्विक समुद्री अर्थव्यवस्था में भाग लेने की अनुमति देगा।
    • बंगाल की खाड़ी, हिंद महासागर क्षेत्र में भारत के सामरिक और सुरक्षा हितों के लिये अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। ऐसा इसलिये है क्योंकि चीन की सेना (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नेवी) इस संपूर्ण क्षेत्र में अपने प्रभाव को बढ़ाने की कोशिश कर रही है।
      • भारत विशेष रूप से इस बात से चिंतित है कि चीन, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में मलक्का, सुंडा तथा लोम्बोक जलडमरूमध्य जैसे महत्त्वपूर्ण अवरोधक बिंदुओं पर अपनी नौसेना का विकास कर रहा है
    • इसके अतिरिक्त चीन, कोको द्वीप समूह पर एक सैन्य केंद्र का निर्माण करके इस क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाने का प्रयास कर रहा है, जो भारत के अंडमान और निकोबार द्वीप समूह से केवल 55 किलोमीटर उत्तर में स्थित है।
      • इससे भारत के लिये चिंता उत्पन्न होती है, क्योंकि अंडमान और निकोबार द्वीप समूह इस क्षेत्र में भारत की समुद्री सुरक्षा के लिये रणनीतिक रूप से अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं।

ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?

  • स्थानीय जनजातियों पर प्रभाव: शोम्पेन एवं निकोबारी शिकारी-संग्राहकों का एक विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह (PVTG) है, जिनकी अनुमानित आबादी केवल कुछ सौ व्यक्तियों की है। वे द्वीप पर एक आदिवासी समूह के रूप में रहते हैं।
    • ऐसी गंभीर चिंताएँ हैं कि प्रस्तावित बुनियादी ढाँचे के उन्नयन से शोम्पेन जनजाति और उनके जीवन के तरीके पर संभावित विनाशकारी प्रभाव पड़ सकता है, जो द्वीप के प्राकृतिक वातावरण से निकटता से जुड़ा हुआ है।
    • इसके अतिरिक्त यह परियोजना वन अधिकार अधिनियम (2006) का भी उल्लंघन करती है, जो शोम्पेन को जनजातीय समूह की सुरक्षा, संरक्षण, विनियमन एवं प्रबंधन के लिये एकमात्र कानूनी रूप से सशक्त प्राधिकारी मानता है।
  • द्वीप के पारिस्थितिकी तंत्र के लिये खतरा: इस परियोजना से द्वीप की पारिस्थितिकी पर प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि इसमें करीब दस लाख वृक्ष काटे जाएंगे। आशंका है कि बंदरगाह परियोजना से प्रवाल भित्तियाँ नष्ट हो जाएंगी, जिसका प्रभाव स्थानीय समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ेगा और साथ ही गैलेथिया खाड़ी क्षेत्र में घोंसला बनाने वाले स्थलीय निकोबार मेगापोड पक्षी एवं लेदरबैक कछुओं के लिये भी खतरा उत्पन्न हो जाएगा।
  • द्वीप की पारिस्थितिकी के लिये खतरा: यह परियोजना लगभग दस लाख पेड़ों की कटाई के साथ द्वीप की पारिस्थितिकी को प्रभावित करेगी। यह आशंका है कि बंदरगाह परियोजना स्थानीय समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव डालते हुए प्रवाल भित्तियों को नष्ट कर देगी और गैलेथिया खाड़ी क्षेत्र में घोंसला बनाने वाले स्थलीय निकोबार मेगापोड पक्षी तथा लेदरबैक कछुओं के लिये खतरा पैदा करेगी।
    • यह क्षेत्र GNI के भू-भाग का लगभग 15% है और यह राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर अद्वितीय वर्षावन पारिस्थितिकी तंत्र में देश के सबसे बड़े वन क्षेत्रों में से एक है।
  • भूकंपीय भेद्यता: प्रस्तावित बंदरगाह भूकंपीय रूप से अस्थिर क्षेत्र में स्थित है, जिसने वर्ष 2004 की सुनामी के दौरान लगभग 15 फीट की स्थायी गिरावट का अनुभव किया था। यह उच्च जोखिम वाले, आपदा-प्रवण क्षेत्र में इस तरह के बड़े पैमाने पर बुनियादी ढाँचा परियोजना के निर्माण की सुरक्षा और व्यवहार्यता के बारे में चिंताएँ पैदा करता है।
  • पर्याप्त परामर्श का अभाव: स्थानीय प्रशासन पर कानूनी आवश्यकताओं के अनुसार, ग्रेट और लिटिल निकोबार द्वीप समूह की जनजातीय परिषद से पर्याप्त परामर्श नहीं करने का आरोप है।
    • अप्रैल 2023 में, राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal - NGT)  ने परियोजना को दी गई पर्यावरण और वन मंज़ूरी में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। हालाँकि, ट्रिब्यूनल ने आदेश दिया कि मंज़ूरी पर विचार करने के लिये एक उच्च-शक्ति समिति का गठन किया जाना चाहिये।

आगे की राह

  • जनजातीय परिषदों का समावेश: यह सुनिश्चित किया जाएगा कि ग्रेट और लिटिल निकोबार द्वीप समूह की जनजातीय परिषदें सभी निर्णय लेने की प्रक्रियाओं का अभिन्न अंग हों, तथा वन अधिकार अधिनियम (2006) के तहत उनके पारंपरिक ज्ञान एवं कानूनी अधिकारों का सम्मान किया जाए।
  • उच्च-शक्ति समिति: NGT के आदेश के बाद, पर्यावरण और वन मंज़ूरी की निगरानी के लिये एक उच्च-शक्ति समिति की स्थापना की जाए, जिसमें यह सुनिश्चित किया जाए कि इसमें पर्यावरण समूहों, जनजातीय परिषदों और स्वतंत्र विशेषज्ञों के प्रतिनिधि शामिल हों।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न. निम्नलिखित में से किनमें प्रवाल भित्तियाँ हैं? (2014)

  1. अंडमान और निकोबार द्वीप समूह
  2. कच्छ की खाड़ी
  3. मन्नार की खाड़ी
  4. सुंदरबन

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 2 और 4
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (a)


प्रश्न. निम्नलिखित द्वीपो के युग्मों में से कौन-सा एक ‘दस डिग्री जलमार्ग’ द्वारा आपस में पृथक किया जाता है? (2014)

(a) अंडमान एवं निकोबार
(b) निकोबार एवं सुमात्रा
(c) मालदीव एवं लक्षद्वीप
(d) सुमात्रा एवं जावा

उत्तर: (a)


प्रश्न. निम्नलिखित में से शोम्पेन जनजाति किस स्थान पर पाई जाती है? (2009)

(a) नीलगिरि पहाड़ियाँ
(b) निकोबार द्वीप समूह
(c) स्पीति घाटी
(d) लक्षद्वीप द्वीप समूह

उत्तर: (b)


कंटेनर पोर्ट परफॉर्मेंस इंडेक्स (CPPI) 2023

प्रिलिम्स के लिये:

सागरमाला कार्यक्रम, बड़े और छोटे बंदरगाह, जहाज निर्माण वित्तीय सहायता नीति (SBFAP), प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI), कंटेनर बंदरगाह प्रदर्शन सूचकांक (CPPI)

मेन्स के लिये:

भारत के बंदरगाह पारिस्थितिकी तंत्र का परिदृश्य, भारत में बंदरगाह क्षेत्र के सामने आने वाली चुनौतियाँ, आगे की राह

स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों?

भारत के बंदरगाह विकास कार्यक्रम को एक बड़ा बढ़ावा मिला क्योंकि कंटेनर पोर्ट परफॉर्मेंस इंडेक्स (CPPI), 2023 में पहली बार भारत के 9 बंदरगाहों को ग्लोबल टॉप 100 में शामिल किया गया।

  • इस उपलब्धि का श्रेय  सागरमाला कार्यक्रम को दिया गया है, जिसने बंदरगाहों के आधुनिकीकरण एवं उनकी दक्षता में सुधार पर ध्यान केंद्रित किया है।

CPPI, 2023 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • सूचकांक के बारे में: 
    • यह विश्व बैंक और S&P ग्लोबल मार्केट इंटेलिजेंस द्वारा विकसित एक वैश्विक सूचकांक है। यह दुनिया भर के कंटेनर बंदरगाहों के प्रदर्शन को मापता है और साथ ही उनकी तुलना करता है।
      • यह सूचकांक 405 वैश्विक कंटेनर बंदरगाहों को दक्षता के आधार पर रैंकिंग करता है, तथा कंटेनर जहाज़ों के बंदरगाह पर ठहरने की अवधि पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • इसका प्राथमिक उद्देश्य बंदरगाहों से लेकर शिपिंग लाइनों, राष्ट्रीय सरकारों के साथ-साथ उपभोक्ताओं तक वैश्विक व्यापार प्रणाली और आपूर्ति शृंखलाओं में विभिन्न हितधारकों के लाभ वृद्धि क्षेत्रों की पहचान करना है।
  • ग्लोबल रैंकिंग: 
    • CPPI, 2023 रैंकिंग में चीन का यांगशान बंदरगाह पहले स्थान पर है, उसके बाद ओमान का सलालाह बंदरगाह है। कार्टाजेना बंदरगाह तीसरे तथा टैंजियर-मेडिटेरेनियन बंदरगाह चौथे स्थान पर है।
  • भारत की स्थिति: 
    • विशाखापत्तनम बंदरगाह वर्ष 2022 में 115वें स्थान से वर्ष 2023 की रैंकिंग में 19वें स्थान पर पहुँच गया है और साथ ही यह वैश्विक स्तर पर शीर्ष 20 में पहुँचने वाला पहला भारतीय बंदरगाह बन गया है।
    • मुंद्रा पोर्ट/बंदरगाह ने भी अपनी स्थिति में सुधार किया है, जो पिछले वर्ष के 48वें स्थान से बढ़कर वर्तमान रैंकिंग में 27वें स्थान पर पहुँच गया है।
    • शीर्ष 100 में स्थान प्राप्त करने वाले अन्य सात भारतीय बंदरगाह हैं - पीपावाव (41), कामराज (47), कोचीन (63), हजीरा (68), कृष्णापट्टनम (71), चेन्नई (80) और जवाहरलाल नेहरू (96)।

सागरमाला कार्यक्रम

  • वर्ष 2015 में शुरू किया गया सागरमाला कार्यक्रम, बंदरगाह, जहाजरानी और जलमार्ग मंत्रालय की एक प्रमुख पहल है, जो देश के समुद्री क्षेत्र को बदलने के लिये सरकार द्वारा एक दूरदर्शी दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करता है। 
  • भारत की व्यापक तटरेखा, नौगम्य जलमार्ग एवं रणनीतिक समुद्री व्यापार मार्गों के साथ, सागरमाला का उद्देश्य बंदरगाह-आधारित विकास तथा तटीय समुदाय के उत्थान के लिये इन संसाधनों की अप्रयुक्त क्षमता का उपयोग करना है। 
  • यह घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय व्यापार दोनों के लिये रसद लागत को कम करके के साथ इसके प्रदर्शन को बढ़ाने का भी प्रयास करता है। तटीय एवं जलमार्ग परिवहन का लाभ उठाकर, कार्यक्रम का उद्देश्य व्यापक बुनियादी ढांचे के निवेश की आवश्यकता को कम करना है, 
  • इस प्रकार रसद को अधिक कुशल बनाना और साथ ही भारतीय निर्यात की प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार करना है।

भारत के बंदरगाह पारिस्थितिकी तंत्र का परिदृश्य क्या है?

  • परिचय: 
    • पोत परिवहन मंत्रालय के अनुसार, भारत का लगभग 95% व्यापार मात्रा के हिसाब से और 70% व्यापार मूल्य के हिसाब से होता है, जिसमें समुद्री परिवहन माध्यम होता है।
    • भारत सरकार बंदरगाह क्षेत्र को समर्थन देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसने बंदरगाह और बंदरगाह निर्माण एवं रखरखाव परियोजनाओं के लिये स्वचालित मार्ग के तहत 100% तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति दी है।
  • प्रमुख पत्तन बनाम लघु पत्तन:
    • भारत में बंदरगाहों को भारतीय पत्तन अधिनियम, 1908 के तहत परिभाषित केंद्र एवं राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र के अनुसार प्रमुख और लघु बंदरगाहों के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
      • सभी 13 प्रमुख बंदरगाहों को प्रमुख बंदरगाह ट्रस्ट अधिनियम, 1963 के तहत शासित किया जाता है, जबकि उनका स्वामित्व और प्रबंधन केंद्र सरकार द्वारा किया जाता है।
      • सभी लघु बंदरगाहों को भारतीय पत्तन अधिनियम, 1908 के तहत शासित किया जाता है और उनका स्वामित्व और प्रबंधन राज्य सरकारों द्वारा किया जाता है।
    • सागरमाला के लिये राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना के तहत, देश में छह नवीन मेगा बंदरगाह विकसित किये जाएँगे।
  • संबंधित आँकड़े: 
    • भारत 7,516.6 किलोमीटर की तटरेखा के साथ विश्व का सोलहवाँ सबसे बड़ा समुद्री देश (Maritime Country) है। भारतीय पत्तन एवं पोत उद्योग देश के व्यापार और वाणिज्य में वृद्धि को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
      • भारत में बंदरगाह क्षेत्र बाहरी व्यापार में उच्च वृद्धि से प्रेरित है।
      • वित्त वर्ष 23 में भारत के प्रमुख बंदरगाहों के द्वारा 783.50 मिलियन टन कार्गो यातायात हुआ, जिसका तात्पर्य वित्त वर्ष 16-23 में 3.26% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) से है।
      • वित्त वर्ष 24 (अप्रैल-जनवरी) में प्रमुख पत्तनों द्वारा किया गया कार्गो यातायात 677.22 मिलियन टन था।
    • घरेलू जलमार्ग माल परिवहन का एक लागत प्रभावी और पर्यावरण की दृष्टि से सतत् तरीका है।
  • प्रमुख पहलें:
    • वर्ष 2023 में पत्‍तन, पोत परिवहन एवं जलमार्ग मंत्रालय ने बंदरगाह शुल्कों में पारदर्शिता बढ़ाने और दंड को अद्यतन करने के उद्देश्य से भारतीय पत्तन विधेयक का प्रस्ताव रखा।
      • यह विधेयक एकीकृत योजना के लिये समुद्री राज्य विकास परिषद (MSDC) को सशक्त बनाता है, जो राज्य समुद्री बोर्डों के बीच संघर्षों के लिये त्रि-स्तरीय विवाद समाधान तंत्र प्रस्तुत करता है।
    • मेक इन इंडिया पहल के तहत जहाज़ निर्माण उद्योग को बढ़ावा देने के लिये, मंत्रालय ने जहाज़ निर्माण वित्तीय सहायता नीति (SBFAP) प्रस्तुत की।
      • मार्च, 2026 तक लागू यह योजना भारतीय शिपयार्ड को वित्तीय सहायता प्रदान करती है, प्रतिस्पर्द्धा को प्रोत्साहित करती है और वैश्विक ऑर्डर हासिल करती है।

नोट:

  • भारत विश्व में सबसे बड़ा शिप ब्रेकिंग फेसिलिटीज़ (Ship Breaking Facilities) का घर है, जिसके तट पर 150 यार्ड से ज़्यादा का स्थान है। औसतन भारत में प्रत्येक वर्ष करीब 6.2 मिलियन GT (सकल टन भार) स्क्रैप किया जाता है, जो विश्व में स्क्रैप किये गए कुल टन भार का 33% है।
  • भारत प्रत्येक वर्ष करीब 70 लाख GT का पुनर्चक्रण करता है, जिसके बाद बाँग्लादेश, पाकिस्तान और चीन का नंबर आता है।
  • गुजरात में अलंग शिप ब्रेकिंग यार्ड विश्व का सबसे बड़ा जहाज़ पुनर्चक्रण सुविधा (Ship Recycling Facility) है।

भारत में बंदरगाह क्षेत्र के समक्ष चुनौतियाँ:

  • वैश्विक नौवहन में भारत की सीमित हिस्सेदारी: विशाल तटरेखा और रणनीतिक भौगोलिक अवस्थिति के बावजूद, वैश्विक नौवहन में भारत की हिस्सेदारी सीमित बनी हुई है। हाल के आँकड़ों के अनुसार, भारतीय जहाज़ो की विश्व के नौवहन में 1% से भी कम की हिस्सेदारी है, जो चीन जैसे देशों (लगभग 19%) से बहुत पीछे है।
    • हालाँकि कुल नाविकों में भारत (वैश्विक नाविकों में लगभग 10% हिस्सेदारी) तीसरे स्थान (केवल चीन और फिलीपींस से पीछे) पर है।
  • भारतीय बंदरगाहों पर उच्च टर्नअराउंड समय: भारतीय बंदरगाहों पर उच्च टर्नअराउंड समय से न केवल दक्षता प्रभावित होती है बल्कि शिपिंग कंपनियों के लिये लागत में वृद्धि होती है। 
    • भारतीय बंदरगाहों का औसतन टर्नअराउंड समय 3-4 दिनों का है जबकि सिंगापुर और शंघाई जैसे प्रमुख बंदरगाहों में यह एक दिन से भी कम का है। इसका कारण पुराना बुनियादी ढाँचा, नौकरशाही की निष्क्रियता तथा बंदरगाह हैंडलिंग की अपर्याप्त सुविधाओं का होना है। 
    • किसी एक बंदरगाह पर खराब प्रदर्शन से आयात/निर्यात लागत बढ़ने एवं प्रतिस्पर्द्धा कम होने के साथ आर्थिक विकास में बाधा आ सकती है। इससे विशेष रूप से भू-आबद्ध विकासशील देशों (LLDCs) के साथ छोटे द्वीपीय विकासशील देशों (SIDS) पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
  • बुनियादी ढाँचा और परिचालन अक्षमताएँ: मौजूदा बंदरगाह क्षेत्र सड़क एवं रेल की सीमित कनेक्टिविटी, कार्गो हैंडलिंग उपकरण तथा मशीनरी के अभाव, निम्न स्तरीय अंतर्देशीय कनेक्टिविटी, अपर्याप्त ड्रेजिंग क्षमता और तकनीकी विशेषज्ञता के अभाव से ग्रस्त है।
    • बुनियादी ढाँचे हेतु सहायक बीमा और वित्तपोषण कंपनियाँ मुख्य रूप से भारत के बाहर स्थित हैं। उदाहरण के लिये समुद्री क्षेत्र से संबंधित अधिकांश बीमा कंपनियों का मुख्यालय लंदन में है, जिससे भारतीय शिपिंग फर्मों के लिये घरेलू स्तर पर लागत प्रभावी एवं विश्वसनीय सेवाओं तक पहुँच सुनिश्चित करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।

आगे की राह:

  • डिजिटलीकरण: डिजिटल और भौतिक संपर्क एक दूसरे के पूरक हैं। जिस तरह कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) और ब्लॉकचेन जैसी नवीनतम तकनीकों से व्यापार को लाभ होता है, उसी तरह बंदरगाह और शिपिंग संचालन को भी डिजिटलीकरण से उत्पन्न अवसरों का लाभ उठाने से लाभ होगा।
  • बंदरगाह आधुनिकीकरण: शिपिंग लाइनों और व्यापारियों को जहाज़ों और कार्गो के लिये तेज़, विश्वसनीय तथा लागत-कुशल सेवाओं की आवश्यकता होती है। बंदरगाहों को अपनी तकनीकी, संस्थागत एवं मानवीय क्षमताओं में लगातार निवेश करने की आवश्यकता है। इस संबंध में सार्वजनिक व निजी सहयोग महत्त्वपूर्ण है।
  • आंतरिक क्षेत्र का विस्तार: बंदरगाहों को पड़ोसी देशों और घरेलू उत्पादन केंद्रों से वस्तुओं को आकर्षित करने का लक्ष्य रखना चाहिये।
    • पड़ोसी देशों (खास तौर पर भूमि से घिरे देशों के कई बंदरगाहों और व्यापारियों) के बीच एक साझा हित है। गलियारों, क्षेत्रीय ट्रकिंग बाज़ारों तथा सीमा पार व्यापार एवं पारगमन सुविधा में निवेश से बंदरगाहों के अंदरूनी इलाकों का विस्तार करने में मदद मिल सकती है।
  • स्थिरता को बढ़ावा देना: बंदरगाह के हितधारक विविध हैं और इसमें शिपिंग लाइनें तथा व्यापारी साथ ही सामाजिक साझेदार एवं बंदरगाह-शहर समुदाय शामिल हो सकते हैं। हितधारक तेज़ी से मांग कर रहे हैं कि बंदरगाह अपने सामाजिक, आर्थिक व पर्यावरणीय स्थिरता दायित्वों को पूरा करें।

दृष्टि मेन्स प्रश्न

प्रश्न. भारतीय बंदरगाह पारिस्थितिकी तंत्र के वर्तमान परिदृश्य का विश्लेषण कीजिये। साथ ही भारत में बंदरगाह क्षेत्र के समक्ष आने वाली प्रमुख चुनौतियों पर प्रकाश डालिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रश्न. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2023)

पत्तन (पोर्ट)

विशेषताएँ

1. कामराज पोर्ट

भारत में एक कंपनी के रूप में पंजीकृत सबसे पहला प्रमुख पत्तन

2. मुंद्रा पोर्ट

भारत में निजी स्वामित्व वाला सबसे बड़ा पत्तन

3. विशाखापत्तनम पोर्ट

भारत का सबसे बड़ा कंटेनर पोर्ट

उपर्युक्त युग्मों में से कितने युग्म सही सुमेलित हैं?

(a) केवल एक युग्म 
(b) केवल दो युग्म 
(c) सभी तीन युग्म 
(d) कोई भी युग्म नहीं

उत्तर: (b)


प्रश्न. भारत में बंदरगाहों को प्रमुख और गैर-प्रमुख बंदरगाहों के रूप में वर्गीकृत किया गया है। निम्नलिखित में से कौन एक गैर-प्रमुख बंदरगाह है? (2009)

(a) कोच्चि (कोचीन)  
(b) दाहेज
(c) पारादीप
(d) न्यू मैंगलोर

उत्तर: (b)


परमाणु शस्त्रागार पर SIPRI की रिपोर्ट

प्रिलिम्स:

SIPRI रिपोर्ट, परमाणु अप्रसार संधि (NPT), व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (CTBT), परमाणु शस्त्रों के निषेध पर संधि (TPNW), परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (NSG), मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (MTCR), बैलिस्टिक मिसाइल प्रसार के विरुद्ध हेग कोड ऑफ कंडक्ट, वासेनार अरेंजमेंट, नो-फर्स्ट-यूज पॉलिसी 

मेन्स:

नो-फर्स्ट-यूज़ पॉलिसी, परमाणु शस्त्रागार, परमाणु कूटनीति, निरस्त्रीकरण

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) की रिपोर्ट जारी की गई, जिसमें विश्व भर में परमाणु शस्त्रागार के चल रहे आधुनिकीकरण और विस्तार से संबंधित बढ़ते जोखिम तथा अस्थिरता पर प्रकाश डाला गया।

रिपोर्ट की मुख्य बातें क्या हैं?

  • वैश्विक परमाणु शस्त्र:
    • सभी नौ परमाणु-सशस्त्र देश (अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्राँस, चीन, भारत, पाकिस्तान, उत्तर कोरिया और इज़रायल) अपने परमाणु शस्त्रागार का आधुनिकीकरण जारी रखे हुए हैं।
    • जनवरी, 2024 तक परमाणु शस्त्रों की वैश्विक सूची में लगभग 12,121 शस्त्र शामिल थे, जिसमें से लगभग 9,585 सैन्य भंडारण में थे।
    • लगभग 2,100 शस्त्रों को मुख्य रूप से रूस और अमेरिका द्वारा उच्च परिचालन अलर्ट पर रखा गया था, हालाँकि इसमें चीन के पास कुछ अधिक शस्त्र होने की संभावना हैं।
  • देश-विशिष्ट विकास:
    • रूस और अमेरिका: दोनों के पास कुल परमाणु शस्त्रों का लगभग 90% हिस्सा है।
    • चीन: चीन ने जनवरी, 2024 तक अपने परमाणु शस्त्रागार को 410 से बढ़ाकर 500 कर दिया है और वह किसी भी अन्य देश की तुलना में अपने परमाणु शस्त्रागार का तीव्र विस्तार कर रहा है।
    • उत्तर कोरिया के पास लगभग 50 वारहेड, जबकि उसकी सामग्री को मिलाकर यह संख्या 90 तक है।
    • इज़रायल अपने शस्त्रागार का आधुनिकीकरण कर रहा है साथ ही प्लूटोनियम उत्पादन क्षमताओं को भी बढ़ा रहा है (हालाँकि आधिकारिक तौर पर यह स्वीकार्य नहीं है)।
    •  भारत और पाकिस्तान:
      • जनवरी, 2024 तक भारत के पास 172 परमाणु शस्त्रागार हैं, जो विश्व स्तर पर पाकिस्तान (170) से अधिक छठे स्थान पर है, वह चीन पर निशाना साधने वाले लंबी दूरी के शस्त्रों पर ज़ोर दे रहा है।
  • परमाणु कूटनीति की चुनौतियाँ:
  • वैश्विक सुरक्षा संबंधी चिंताएँ:
    • इसमें सैन्य व्यय, हथियारों के हस्तांतरण और संघर्षों में निजी सैन्य कंपनियों की भूमिका जैसे मुद्दों पर भी प्रकाश डाला गया ।
    • इसमें कृत्रिम बुद्धिमत्ता, बाह्य अंतरिक्ष, साइबरस्पेस एवं युद्ध क्षेत्रों में नागरिकों की सुरक्षा से संबंधित जोखिमों पर भी प्रकाश डाला गया।

स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI)

  • यह एक स्वतंत्र अंतर्राष्ट्रीय संस्थान है जो संघर्ष, युद्धक सामग्रियों, हथियार नियंत्रण तथा निरस्त्रीकरण पर अनुसंधान के लिये समर्पित है।
  • SIPRI एक स्वतंत्र अंतर्राष्ट्रीय संस्थान है जिसकी स्थापना वर्ष 1966 में हुई थी।
  • यह नीति निर्माताओं, शोधकर्त्ताओं, मीडिया एवं इच्छुक लोगों को आँकड़ों का विश्लेषण और सुझाव उपलब्ध कराती है।

भारत के परमाणु कार्यक्रम से संबंधित चुनौतियाँ तथा आगे की राह क्या हैं?

  • चुनौतियाँ:
    • सीमा पर तनाव एवं आतंकवादी मुद्दों के कारण भारत को मुख्य रूप से पाकिस्तान तथा चीन से परमाणु खतरे का सामना करना पड़ रहा है।
    • साइबर हमलों के बढ़ते खतरों के कारण परमाणु प्रणालियों की सुरक्षा सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है क्योंकि किसी भी शिथिलता के परिणामस्वरूप भारत के कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र पर वर्ष 2019 में हुए कथित साइबर हमले जैसे परिणाम हो सकते हैं।
    • हाइपरसोनिक मिसाइलों, स्वायत्त हथियारों तथा AI की तीव्र प्रगति द्वारा परमाणु निवारण रणनीतियों के लिये नई चुनौतियाँ प्रस्तुत की हैं।
    • भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम को रेडियोधर्मी संदूषण, पर्यावरण एवं स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

आगे की राह

  • विश्वसनीय न्यूनतम निवारण को बनाए रखते हुए, भारत को उन्नत वितरण प्रणाली विकसित करके अपने परमाणु शस्त्रागार का ज़िम्मेदारी से आधुनिकीकरण करना चाहिये और साथ ही  थोरियम-आधारित रिएक्टरों जैसी उन्नत परमाणु प्रौद्योगिकियों में निवेश करना चाहिये। 
  • भारत को परमाणु सुरक्षा शिखर सम्मेलन तथा परमाणु आतंकवाद से निपटने के लिये वैश्विक पहल (GICNT) जैसी वैश्विक परमाणु शासन पहलों में शामिल होना चाहिये और विश्वास निर्माण उपायों के माध्यम से पाकिस्तान तथा चीन के साथ परमाणु जोखिमों को कम करने पर कार्य करना चाहिये।

परमाणु कार्यक्रमों के लिये अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ

भारत का परमाणु कार्यक्रम

  • भारत ने मई 1974 में अपना पहला परमाणु परीक्षण किया था तथा वह परमाणु अप्रसार संधि (NPT) और व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (CTBT) दोनों से बाहर है।
  • हालाँकि भारत ने अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के साथ सुविधा-विशिष्ट सुरक्षा समझौता किया है और परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (NSG) से छूट प्राप्त की है, जो उसे वैश्विक असैन्य परमाणु प्रौद्योगिकी वाणिज्य में भाग लेने की अनुमति देती है।
  • इसे वर्ष 2016 में मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (MTCR), वर्ष 2017 में वासेनार अरेंजमेंट तथा वर्ष 2018 में ऑस्ट्रेलिया समूह का सदस्य बनाया गया।
  • वर्ष 2024 में, भारत ने तमिलनाडु के कलपक्कम में भारत के प्रोटोटाइप फास्ट ब्रीडर रिएक्टर (PFBR) की कोर लोडिंग शुरू की, जो भारत के परमाणु कार्यक्रम में एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर होगा।
  • भारत परमाणु हथियारों का नो-फर्स्ट-यूज पॉलिसी की अपनी आधिकारिक प्रतिबद्धता पर कायम है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत के परमाणु शस्त्रागार की वर्तमान स्थिति पर चर्चा कीजिये और क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा गतिशीलता के संदर्भ में इसके सामने आने वाली चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत में क्यों कुछ परमाणु रिएक्टर "आई. ए. ई. ए. सुरक्षा उपायों" के अधीन रखे जाते है जबकि अन्य इस सुरक्षा के अधीन नहीं रखे जाते? (2020)

(a) कुछ यूरेनियम का प्रयोग करते हैं और अन्य थोरियम का
(b) कुछ आयातित यूरेनियम का प्रयोग करते हैं और अन्य घरेलू आपूर्ति का 
(c) कुछ विदेशी उद्यमों द्वारा संचालित होते हैं और अन्य घरेलू उद्यमों द्वारा 
(d) कुछ सरकारी स्वामित्व वाले होते हैं और अन्य निजी स्वामित्व वाले 

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. ऊर्जा की बढ़ती हुई जरूरतों के परिपेक्ष्य में भारत को अपने नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम का विस्तार करना जारी रखना चाहिये? नाभिकीय ऊर्जा से संबंधित तथ्यों और भयों की विवेचना कीजिये। (2018)


बॉन जलवायु सम्मेलन 2024

प्रिलिम्स के लिये:

लॉस एंड डैमेज फंड, कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ (COP 28), नया सामूहिक परिमाणित लक्ष्य, जीवाश्म ईंधन

मेन्स के लिये:

जलवायु वित्त एवं उसका महत्त्व, पर्यावरण प्रदूषण एवं क्षरण

स्रोत: इडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जर्मनी के बॉन में आयोजित जलवायु बैठक में नए जलवायु वित्त लक्ष्य को परिभाषित करने में कोई महत्त्वपूर्ण प्रगति नहीं हुई।

  • जलवायु संकट से निपटने के लिये आवश्यक वित्तपोषण से संबंधित मुद्दों पर देशों को अभी भी प्रगति करनी शेष है।

जलवायु वित्तपोषण क्या है?

  • परिचय:
    • यह जलवायु परिवर्तन को कम करने अथवा उसके अनुकूल कार्रवाई के लिये बड़े पैमाने पर आवश्यक निवेश को संदर्भित करता है।
      • शमन में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना शामिल है, जैसे नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ाना एवं वन क्षेत्र का विस्तार करना।
      • अनुकूलन में जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से होने वाली क्षति को रोकने अथवा न्यूनतम करने की कार्रवाई करना शामिल है, जैसे समुद्र-स्तर में वृद्धि से तटीय समुदायों की रक्षा के लिये बुनियादी ढाँचे का निर्माण करना।
  • वर्तमान जलवायु वित्तपोषण राशि पर सहमति:
    • वर्ष 1992 में स्थापित जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन  (UNFCCC) द्वारा उच्च आय वाले देशों को विकासशील देशों को जलवायु वित्त प्रदान करने का निर्देश दिया।
    • कोपेनहेगन प्रतिबद्धता, 2009 के अनुसार, विकसित देश वर्ष 2020 तक विकासशील देशों को प्रतिवर्ष 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर उपलब्ध कराने पर सहमत हुए थे।
    • हरित जलवायु कोष की स्थापना वर्ष 2010 में जलवायु वित्त प्रदान करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण तंत्र के रूप में की गई थी।
    • वर्ष 2015 के पेरिस समझौते में 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर के लक्ष्य निर्धारित किया और साथ ही इसे वर्ष 2025 तक बढ़ा दिया गया।
  • राशि में वृद्धि की आवश्यकता:
    • UNFCCC, 2021 रिपोर्ट के अनुसार, विकासशील देशों को जलवायु कार्य योजनाओं को लागू करने के लिये वर्ष 2021 से वर्ष 2030 तक प्रतिवर्ष लगभग 6 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता होगी और साथ ही वैश्विक निम्न-कार्बन अर्थव्यवस्था संक्रमण के लिये वर्ष 2050 तक प्रतिवर्ष लगभग 4-6 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता होगी।
    • अंतर्राष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा एजेंसी (IRENA) के अनुसार, दुबई में हुई सहमति के अनुसार, अक्षय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करने के लिये वर्ष 2030 तक 30 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की लागत आने का अनुमान है।
    • इन अनुमानों से अनुमान लगाया गया है कि यह वार्षिक आवश्यकता 5-7 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर होगी, जो वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 5-7% के बराबर है, जो निष्क्रियता की बढ़ती लागत को उजागर करता है।
    • भारत द्वारा अनुदान तथा रियायती वित्त पर ध्यान केंद्रित करते हुए प्रतिवर्ष कम-से-कम 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का एक नया सामूहिक परिमाणित लक्ष्य (NCQG) प्रस्तावित किया गया है।

  • जलवायु वित्तपोषण के पक्ष में तर्क:
    • विकासशील देशों का तर्क है कि विकसित देशों को वित्तीय सहायता प्रदान करनी चाहिये, क्योंकि पिछले 150 वर्षों में विकसित देशों द्वारा किये गए उत्सर्जन के कारण ही जलवायु समस्या उत्पन्न हुई है।
    • उच्च आय वाले देशों ने जलवायु वित्त के लिये अपनी वित्तीय प्रतिज्ञाओं को अभी तक पूरा नहीं किया है, क्योंकि प्रदान किया गया अधिकांश वित्त ऋण के रूप में है।
      • आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD) की एक हालिया जारी रिपोर्ट में विकसित देशों द्वारा वर्ष 2022 तक प्रतिवर्ष 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर देने का अपना वादा पूरा कर लिया है। हालाँकि इसका 69% हिस्सा ऋण के रूप में प्रदान किया गया।

जलवायु वित्त से संबंधित मुद्दे क्या हैं?

  • विकसित और विकासशील देशों के बीच विवाद:
    • योगदान पर बहस: UNFCCC और पेरिस समझौते के तहत, UNFCCC के अनुलग्नक 2 में सूचीबद्ध केवल 25 देश, यूरोपीय आर्थिक समुदाय के साथ, विकासशील देशों को जलवायु वित्त प्रदान करने के लिये बाध्य हैं।
      • कई अन्य देश अब 1990 के दशक की तुलना में आर्थिक रूप से बेहतर स्थिति में हैं, जैसे चीन (विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था), तेल समृद्ध खाड़ी देश तथा दक्षिण कोरिया जैसे अन्य देश अनुलग्नक 2 का हिस्सा नहीं हैं।
    • जबकि विकासशील देश पेरिस समझौते के अनुच्छेद 9 का हवाला देते हैं, जो जलवायु वित्त को विकसित देशों से विकासशील देशों की ओर प्रवाहित करने का आदेश देता है।
      • प्राप्तकर्त्ता को प्राथमिकता देना: विकसित देश जलवायु वित्त के लिये सबसे कमज़ोर देशों, जैसे कि सबसे कम विकसित देश और छोटे द्वीपीय विकासशील राज्यों को प्राथमिकता देने की वकालत करते हैं, जबकि विकासशील देशों का दावा है कि सभी विकासशील देशों को सहायता हेतु पात्र होना चाहिये
  • जलवायु वित्त की परिभाषा और प्रकृति:
    • विकासशील देश जलवायु वित्त की परिभाषा पर स्पष्टता की मांग कर रहे हैं, उनका कहना है कि इसमें विकास वित्त को शामिल नहीं किया जाना चाहिये तथा दोहरी गणना के प्रति आगाह किया जाना चाहिये।
  • शमन और अनुकूलन के मुद्दे:
    • शमन (उत्सर्जन में कमी) और अनुकूलन (जलवायु प्रभावों के अनुसार समायोजन) के लिये वित्तपोषण के बीच संतुलन विवाद का एक प्रमुख मुद्दा है।
    • वर्तमान में जलवायु वित्त का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा नवीकरणीय ऊर्जा जैसी शमन परियोजनाओं पर खर्च किया जाता है।
      • हालाँकि विकासशील देशों का तर्क है कि समुद्र के बढ़ते स्तर और चरम मौसम की घटनाओं जैसे मौजूदा प्रभावों को देखते हुए, अनुकूलन उनके तत्काल अस्तित्त्व के लिये महत्त्वपूर्ण है।

नया सामूहिक परिमाणित लक्ष्य (NCQG) क्या है?

  • यह वर्ष 2015 में COP21 में प्रस्तावित एक नया वार्षिक वित्तीय लक्ष्य है, जिसका लक्ष्य वर्ष 2025 के बाद जलवायु वित्त लक्ष्य निर्धारित करना है, जिसे विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों को जलवायु वित्त प्रदान करने के लिये वर्ष 2025 से पूरा करना होगा।
  • NCQG की राशि नवंबर 2024 में बाकू, अज़रबैजान में आयोजित होने वाले COP29 शिखर सम्मेलन में एक महत्त्वपूर्ण वार्ता बिंदु होगी।
    • NCQG वार्ता का उद्देश्य एक सामूहिक राशि निर्धारित करना है, जिसे अमीर देशों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति संवेदनशील गरीब देशों में शमन, अनुकूलन और अन्य जलवायु कार्रवाई प्रयासों के लिये वार्षिक रूप से एकत्रित करना होगा।
  • विकासशील देशों के लिये पर्याप्त NCQG आँकड़ा हासिल करना बेहद महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि पर्याप्त जलवायु वित्त की कमी प्रभावी जलवायु योजनाओं को लागू करने और ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों के विरुद्ध लचीलेपन के निर्माण में एक बड़ी बाधा रही है।

 जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) 

  • यह पृथ्वी की जलवायु प्रणाली में हानिकारक मानव-प्रेरित व्यवधानों को रोकने के लिये ग्रीनहाउस गैस सांद्रता को कम करने के लिये एक वैश्विक पर्यावरण संधि है।
  • इसे आधिकारिक तौर पर वर्ष 1992 में अनुमोदित किया गया था। इसे पृथ्वी शिखर सम्मेलन, रियो शिखर सम्मेलन या रियो सम्मेलन के रूप में भी जाना जाता है।
  • UNFCCC का सर्वोच्च निर्णय लेने वाला निकाय, पक्षकारों का सम्मेलन (COP)है, जो वार्षिक बैठकें आयोजित करता है और जलवायु परिवर्तन से निपटने में प्रगति का आकलन करने के लिये सभी 197 दलों के प्रतिनिधियों का आवाहन करता है।
  • वर्ष 1993 में भारत UNFCCC का एक पक्षकार बन गया, जिसमें पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) इसकी नोडल एजेंसी के रूप में कार्य कर रहा था।

CLIMATE_FINANCE

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: जलवायु परिवर्तन विकासशील देशों पर असमान रूप से प्रभाव डालता है, भले ही ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में उसका ऐतिहासिक योगदान कम रहा हो। जलवायु संबंधी कमियों को दूर करने में अनुकूलन वित्त के महत्त्व पर चर्चा कीजिये और इसकी प्रभावशीलता सुनिश्चित करने के तरीके सुझाइये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. वर्ष 2015 में पेरिस में UNFCCC बैठक में हुए समझौते के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2016)

  1. इस समझौते पर संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों ने हस्ताक्षर किये और यह वर्ष 2017 से  लागू होगा।
  2. यह समझौता ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन को सीमित करने का लक्ष्य रखता है, जिससे इस सदी के अंत तक औसत वैश्विक तापमान की वृद्धि उद्योग-पूर्व स्तर से 2ºC या कोशिश करें कि  1.5ºC से भी अधिक न होने पाए।
  3. विकसित देशों ने वैश्विक तापन में अपनी ऐतिहासिक ज़िम्मेदारी को स्वीकारा और जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिये विकासशील देशों की सहायता के लिये वर्ष 2020 से प्रतिवर्ष 1000 अरब डॉलर देने की प्रतिबद्धता जताई।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: B


मेन्स:

प्रश्न. संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन (UNFCCC) के COP के 26वें सत्र के प्रमुख परिणामों का वर्णन कीजिये। इस सम्मेलन में भारत द्वारा की गई वचनबद्धताएँ क्या हैं? (2021)

प्रश्न. नवंबर, 2021 में ग्लासगो में विश्व के नेताओं के शिखर सम्मेलन COP26 संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में आरंभ की गई हरित ग्रिड पहल का प्रयोजन स्पष्ट कीजिये। अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) में यह विचार पहली बार कब दिया गया था? (2021)