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जैव विविधता और पर्यावरण

प्रवाल भित्तियों का पुनर्स्थापन

  • 28 Jan 2020
  • 5 min read

प्रीलिम्स के लिये:

भारतीय प्राणी विज्ञान सर्वेक्षण, भारत में प्रवाल भितियाँ, कच्छ की खाड़ी

मेन्स के लिये:

प्रवाल भित्तियों का पुनर्स्थापन

चर्चा में क्यों?

भारतीय प्राणी विज्ञान सर्वेक्षण (Zoological Survey of India-ZSI) ने वन विभाग (गुजरात) के साथ मिलकर पहली बार कच्छ की खाड़ी में प्रवाल भित्तियों को पुनर्स्थापित करने का प्रयास किया है।

मुख्य बिंदु:

  • प्रवाल भित्तियों को पुनर्स्थापित करने के लिये बायोरॉक या खनिज अभिवृद्धि तकनीक (Biorock or Mineral Accretion Technology) का उपयोग किया जा रहा है।

बायोरॉक या खनिज अभिवृद्धि तकनीक

(Biorock or Mineral Accretion Technology)

  • बायोरॉक, इस्पात संरचनाओं पर निर्मित समुद्री जल में विलेय खनिजों के विद्युत संचय से बनने वाला पदार्थ है। इन इस्पात संरचनाओं को समुद्र के तल पर उतारा जाता है और सौर पैनलों की सहायता से इनको ऊर्जा प्रदान की जाती है जो समुद्र की सतह पर तैरते रहते हैं।
  • यह प्रौद्योगिकी पानी में इलेक्ट्रोड के माध्यम से विद्युत की एक छोटी मात्रा को प्रवाहित करने का काम करती है।
  • जब एक धनावेशित एनोड और ऋणावेशित कैथोड को समुद्र के तल पर रखकर उनके बीच विद्युत प्रवाहित की जाती है तो कैल्शियम आयन और कार्बोनेट आयन आपस में संयोजन करते हैं जिससे कैल्शियम कार्बोनेट का निर्माण होता है, कोरल लार्वा कैल्शियम कार्बोनेट की उपस्थिति में तेज़ी से बढ़ते हैं।
  • वैज्ञानिक बताते हैं कि टूटे हुए कोरल के टुकड़े बायोरॉक संरचना से बंधे होते हैं जहाँ वे अपनी वास्तविक वृद्धि की तुलना में कम-से-कम चार से छह गुना तेज़ी से बढ़ने में सक्षम होते हैं क्योंकि उन्हें स्वयं के कैल्शियम कार्बोनेट कंकाल के निर्माण में अपनी ऊर्जा खर्च करने की आवश्यकता नहीं होती है।

कच्छ की खाड़ी को ही क्यों चुना गया?

  • कच्छ की खाड़ी में गुजरात के मीठापुर तट से एक नॉटिकल मील की दूरी पर बायोरॉक संरचना स्थापित की गई है।
  • कच्छ की खाड़ी में उच्च ज्वार के आयाम को ध्यान में रखते हुए बायोरॉक को स्थापित करने के लिये चुना गया था।
  • निम्न ज्वार संभावित जगह जहाँ बायोरॉक स्थापित किया गया है, की गहराई 4 मीटर है और उच्च ज्वार वाली जगह की गहराई 8 मीटर है।

प्रवाल विरंजन का प्रमुख कारण:

भारत में प्रवाल भितियाँ:

  • भारत में प्रवाल भितियाँ 3,062 वर्ग किमी. क्षेत्रफल में विस्तृत हैं।
  • कई प्रवाल प्रजातियों को बाघों के समान ही वन्यजीव संरक्षण अधिनियम,1972 की अनुसूची-I में शामिल कर संरक्षण प्रदान किया गया हैं।
  • लक्षद्वीप में ये चक्रवातों के लिये अवरोधक का कार्य कर तटीय कटाव की रोकथाम में भी सहायता करते हैं।
  • भारत में चार प्रमुख प्रवाल भित्ति क्षेत्र हैं: अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप, मन्नार की खाड़ी और कच्छ की खाड़ी।

पहले भी किया गया है ऐसा प्रयोग:

  • वर्ष 2015 में गुजरात वन विभाग के साथ मिलकर भारतीय प्राणी विज्ञान सर्वेक्षण के वैज्ञानिकों ने एक्रोपोरिडे परिवार (एक्रोपोरा फॉर्मोसा, एक्रोपोरा ह्यूमिलिस, मोंटीपोरा डिजिटाटा) से संबंधित प्रजातियों (स्टैग्नोर्न कोरल) को सफलतापूर्वक पुनर्स्थापित किया था जो लगभग 10,000 साल पहले कच्छ की खाड़ी से विलुप्त हो गए थे।
  • शोधकर्त्ताओं का दावा है कि इन मूंगों को फिर से बनाने के लिये प्रवाल के नमूनों को मन्नार की खाड़ी से लाया गया था।

स्रोत- द हिंदू

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