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जैव विविधता और पर्यावरण

ग्रेट बैरियर रीफ को क्षति पहुँचा सकता है बाढ़ का पानी

  • 16 Feb 2019
  • 9 min read

चर्चा में क्यों?

उत्तरी ऑस्ट्रेलिया में हाल ही में आई बाढ़ का पानी बैरियर रीफ के कुछ हिस्सों में बहने के कारण ग्रेट बैरियर रीफ (Great Barrier Reef) को काफी नुकसान हो सकता है।

प्रमुख बिंदु

  • उत्तरी क्वींसलैंड के कुछ हिस्सों में लगभग दो सप्ताह की अभूतपूर्व बारिश के बाद ऐसी स्थिति पैदा हो गई की सड़कों पर पानी भर गया और बाढ़ का पानी सैकड़ों घरों में घुस गया। अब बाढ़ का यह पानी बैरियर रीफ के कुछ हिस्सों में पहुँच गया है जिसके चलते बैरियर रीफ को काफी क्षति हो सकती है।
  • जेम्स कुक यूनिवर्सिटी (James Cook University) के वैज्ञानिकों के अनुसार, बाढ़ के पानी ने सैकड़ों किलोमीटर की तटरेखा के साथ कई नदियों के साथ बहते हुए उनकी तलछट (sediments) को बैरियर रीफ तक पहुँचा दिया है जिसे वहाँ पानी की गुणवत्ता ख़राब होने के साथ ही इन प्रवाल भित्त्यों को आवश्यक धूप भी कम मात्रा में मिल पा रही है।
  • कोरल रीफ और समुद्री घास के विकास तथा उनके स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए प्रकाश की आवश्यकता होती है लेकिन बाढ़ के पानी के साथ पहुँचे तलछट से ढक जाने के कारण इन्हें पर्याप्त मात्रा में प्रकाश नहीं मिल पा रहा है।
  • उत्तरी क्वींसलैंड की बर्देकिन (Burdekin) नदी के मुहाने जैसे सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में प्रवाल भित्तियाँ समाप्ति की कगार पर पहुँच सकती हैं, क्योंकि बाढ़ का पानी लगभग 100 किलोमीटर की दूरी तक फैला हुआ है।
  • यदि यह पानी वहाँ बहुत अधिक समय तक रहा तो इन प्रवाल भित्तियों में से कुछ को समाप्त होने में बहुत अधिक समय नहीं लगेगा।
  • उल्लेख्नीत है कि 2,300 किलोमीटर (1,400 मील) की यह रीफ पहले ही 2016 और 2017 में कोरल ब्लीचिंग से पीड़ित हो चुकी हैं।

कोरल ब्लीचिंग क्या है?

  • जब तापमान, प्रकाश या पोषण में किसी भी परिवर्तन के कारण प्रवालों पर तनाव बढ़ता है तो वे अपने ऊतकों में निवास करने वाले सहजीवी शैवाल जूजैंथिली को निष्कासित कर देते हैं जिस कारण प्रवाल सफेद रंग में परिवर्तित हो जाते हैं। इस घटना को कोरल ब्लीचिंग या प्रवाल विरंजन कहते हैं।

(टीम दृष्टि इनपुट)

  • क्राउन ऑफ थॉर्न्स स्टारफिश (crown-of-thorns starfish) या कोट्स, जो इन प्रवाल भित्तियों/कोरल रीफ्स को खाती है, की संख्या में भी प्रदूषण और कृषिगत अपवाह के कारण वृद्धि हुई है।

दुनिया का सबसे बड़ा कोरल रीफ सिस्टम है ग्रेट बैरियर रीफ

  • ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट पर स्थित ग्रेट बैरियर रीफ दुनिया की सबसे बड़ी और प्रमुख अवरोधक प्रवाल भित्ति है।
  • यह ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड के उत्तर-पूर्वी तट में मरीन पार्क के समानांतर 1400 मील तक फैली हुई है।
  • इसकी चौड़ाई 10 मील से 90 मील तक है। महाद्वीपीय तट से इसकी दूरी 10 से 150 मील है।

कोरल रीफ क्या होते हैं?

  • प्रवाल भित्तियाँ या मूंगे की चट्टानें (Coral Reefs) समुद्र के भीतर स्थित प्रवाल जीवों द्वारा छोड़े गए कैल्शियम कार्बोनेट से बनी होती हैं।
  • प्रवाल कठोर संरचना वाले चूना प्रधान जीव (सिलेन्ट्रेटा पोलिप्स) होते हैं। इन प्रवालों की कठोर सतह के अंदर सहजीवी संबंध से रंगीन शैवाल जूजैंथिली (Zooxanthellae) पाए जाते हैं।
  • प्रवाल भित्तियों को विश्व के सागरीय जैव विविधता का उष्ण स्थल (Hotspot) माना जाता है तथा इन्हें समुद्रीय वर्षावन भी कहा जाता है।
  • प्रायः बैरियर रीफ (प्रवाल-रोधिकाएँ) उष्णकटिबंधीय या उपोष्णकटिबंधीय समुद्रों में मिलती हैं, जहाँ तापमान 20-30 डिग्री सेल्सियस रहता है।
  • ये शैल-भित्तियाँ समुद्र तट से थोड़ी दूर हटकर पाई जाती हैं, जिससे इनके बीच छिछले लैगून बन जाते हैं।
  • प्रवाल कम गहराई पर पाए जाते हैं, क्योंकि अधिक गहराई पर सूर्य के प्रकाश व ऑक्सीजन की कमी होती है।
  • प्रवालों के विकास के लिये स्वच्छ एवं अवसादरहित जल आवश्यक है, क्योंकि अवसादों के कारण प्रवालों का मुख बंद हो जाता है और वे मर जाते हैं।
  • प्रवाल भितियों का निर्माण कोरल पॉलिप्स नामक जीवों के कैल्शियम कार्बोनेट से निर्मित अस्थि-पंजरों के अलावा, कार्बोनेट तलछट से भी होता है जो इन जीवों के ऊपर हज़ारों वर्षों से जमा हो रही है।

प्रवालों का वितरण

  • विश्व के सर्वाधिक प्रवाल हिंद-प्रशांत क्षेत्र में पाए जाते हैं।
  • ये भूमध्य रेखा के 30 डिग्री तक के क्षेत्र में पाए जाते हैं।
  • विश्व में पाए जाने वाले कुल प्रवाल का लगभग 30% हिस्सा दक्षिण-पूर्वी एशिया क्षेत्र में पाया जाता है। यहाँ प्रवाल दक्षिणी फिलिपींस से पूर्वी इंडोनेशिया और पश्चिमी न्यू गिनी तक पाए जाते हैं।
  • प्रशांत महासागर में स्थित माइक्रोनेशिया, वानुआतु, पापुआ न्यू गिनी में भी प्रवाल पाए जाते हैं।
  • ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट पर स्थित ग्रेट बैरियर रीफ दुनिया की सबसे बड़ी और प्रमुख अवरोधक प्रवाल भित्ति है।
  • भारतीय समुद्री क्षेत्र में मन्नार की खाड़ी, लक्षद्वीप और अंडमान निकोबार आदि द्वीप भी प्रवालों से निर्मित हैं।
  • ये प्रवाल लाल सागर और फारस की खाड़ी में भी पाए जाते हैं।

प्रवाल भित्तियों के प्रकार

प्रवाल भित्तियाँ मूल रूप से तीन प्रकार की होती हैं: तटीय या झालरदार, अवरोधक तथा एटॉल।

1. तटीय प्रवाल भित्तियाँ प्रवालों की ऐसी सरंचनाएँ होती हैं, जो समुद्र तल पर मुख्य भूमि के निकट के किनारों पर पाई जाती हैं।

♦ ये चट्टानों के टुकड़ों, मृत प्रवालों और मिट्टी से निर्मित होती हैं।
♦ जीवित प्रवाल बाहरी किनारों एवं ढलानों पर पाए जाते हैं।
♦ ये उन स्थलों पर पाई जाती हैं, जहाँ तापमान 20 डिग्री सेल्सियस से अधिक, लवणता 35 प्रतिशत और पंकिलता न्यून होती है।
♦ भारत में ये मन्नार की खाड़ी तथा अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह में पाई जाती हैं।

2. अवरोधक प्रवाल भित्तियाँ किनारे से दूर पाई जाती हैं।

♦ इनके तथा किनारे के बीच सैकड़ों किलोमीटर चौड़ा लैगून होता है।
♦ बाहरी वृद्धि केंद्रों पर सबसे अधिक प्रवाल भित्तियाँ पाई जाती हैं।
♦ संसार की सबसे बड़ी अवरोधक प्रवाल भित्ति ऑस्ट्रेलिययाई ‘ग्रेट बैरियर रीफ’ इसी प्रकार की प्रवाल भित्ति है।

3. एटॉल, किसी लैगून के चारों ओर प्रवाल भित्तियों की एक पट्टी से निर्मित होता है।

♦ ये भित्तियाँ उथले लैगूनों के किनारों पर अवस्थित होती हैं।

(टीम दृष्टि इनपुट)

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