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जैव विविधता और पर्यावरण

भारतीय जीव प्रजातियों का दसवाँ हिस्सा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में

  • 26 Nov 2018
  • 7 min read

चर्चा में क्यों?


हाल ही में जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ZSI) द्वारा जारी किये गए एक प्रकाशन, ‘फौनल डाइवर्सिटी ऑफ़ बायोजिओग्राफिक ज़ोंस: आईलैंड्स ऑफ़ इंडिया’ नामक शीर्षक में पहली बार अंडमान निकोबार द्वीप समूह पर पाए गए सभी जीवित प्रजातियों के डेटाबेस को एकत्र किया गया है, जिसमें समस्त प्रजातियों की संख्या 11,009 दर्ज की गई है।

प्रमुख बिंदु

  • यह दस्तावेज़ साबित करता है कि यह द्वीप समूह, जिसमें भारत के भौगोलिक क्षेत्र का केवल 0.25% हिस्सा शामिल है, देश के जीवों की प्रजातियों के 10% से अधिक का आवास है।
  • नारकॉन्डम हॉर्नबिल, इसका आवास एक अकेले द्वीप तक ही सीमित है; निकोबार मेगापोड, एक पक्षी जो ज़मीन पर घोंसला बनाता है; निकोबार ट्रेशू, छछूंदर जैसा एक छोटा स्तनपायी; लांग-टेल निकोबार मकाक और अंडमान डे गेको, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह पर पाए गए उन 1,067 स्थानिक प्रजातियों में से हैं जो कहीं और नहीं पाए जाते।
  • हालाँकि यह प्रकाशन चेतावनी देता है कि पर्यटन, अवैध निर्माण और खनन द्वीपों की जैव विविधता के लिये खतरा पैदा कर रहे हैं, जो अस्थिर जलवायु कारकों के प्रति पहले से ही सुभेद्य है।
  • अंडमान और निकोबार द्वीप समूह का कुल क्षेत्रफल लगभग 8,249 वर्ग किमी. है, जिसमें 572 द्वीप, छोटे टापू और चट्टानी उभार शामिल हैं। इस द्वीप समूह की कुल आबादी 4 लाख से अधिक नहीं हैं, जिसमें विशेष रूप से छह कमज़ोर जनजातीय समूह (PVTG)- ग्रेट अंडमानी, ओंग, जारवा, सेंटिनेलिस, निकोबारी और शोम्पेन्स शामिल हैं।
  • नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, 4.87 लाख पर्यटक सालाना इन द्वीपों की यात्रा करते हैं जो कि इन द्वीपों पर रहने वाले लोगों की संख्या से अधिक है।
  • ज्ञातव्य है कि हाल ही में भारत सरकार ने विदेशी (प्रतिबंधित क्षेत्र) आदेश, 1963 के तहत अधिसूचित कुछ विदेशी नागरिकों के लिये प्रतिबंधित क्षेत्र परमिट (RAP) मानदंडों में 31 दिसंबर, 2022 तक अपने 29 आवासित द्वीपों की यात्रा के लिये ढील दी है। इसने द्वीपों के पारिस्थितिक तंत्र पर बढ़े हुए मानवजनित दबावों से संबंधित चिंताओं को जन्म दिया है।

प्रतिबंधित क्षेत्र परमिट

  • RAP सूची से हटाए गए कुछ द्वीपों में उत्तरी सेंटीनेल द्वीप के मामले में सेंटिनेलिस जैसे पीवीटीजी को छोड़कर कोई आवास नहीं है और नारकोंडम द्वीप पर पुलिस चौकी के अलावा कुछ भी नहीं है।
  • इस जगह पर सूक्ष्म स्तर पर किये जाने वाले विकास के प्रतिमान जो अंतरिक्ष, निर्माण और सैन्य विकास के क्षेत्र में हो रहे हैं, को पारिस्थितिकीय नाजुकता (स्थानिकता), भूगर्भीय अस्थिरता (भूकंप और सुनामी) और स्थानीय समुदायों पर उनके प्रभाव के असर को ध्यान में रखकर नहीं किया जा रहा है।
  • 49 अध्यायों और 500 पृष्ठों में जारी किया गया यह प्रकाशन, न केवल जानवरों की विशेष श्रेणी में पाए जाने वाले प्रजातियों का डेटाबेस तैयार करता है, बल्कि उनमें से सबसे सुभेद्य का भी उल्लेख करता है।
  • यहाँ पाई जाने वाली 46 स्थलीय स्तनधारी प्रजातियों में से तीन प्रजातियों- अंडमान श्रेव (Crocidura andamanensis), जेनकिन श्रेव (C. jenkinsi) और निकोबार श्रेव (C. nicobarica) को गंभीर रूप से लुप्तप्राय श्रेणी के रूप में वर्गीकृत किया गया है। IUCN के मुताबिक, पाँच प्रजातियों को लुप्तप्राय, नौ प्रजातियों को सुभेद्य और एक प्रजाति को संकट के निकट श्रेणी के अंतर्गत सूचीबद्ध किया गया है।
  • इन द्वीपों पर पाए जाने वाले समुद्री जीवों की दस प्रजातियों में से ड्युगोंग/समुद्री गाय और भारत-प्रशांत क्षेत्र की हंपबैक डॉल्फिन, दोनों को IUCN (इंटरनेशनल यूनियन फॉर कन्ज़र्वेशन ऑफ़ नेचर) के तहत संकटग्रस्त प्रजातियों की रेड लिस्ट के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
  • यहाँ पाए जाने वाले पक्षियों में स्थानिकता काफी अधिक है, जहाँ 364 प्रजातियों में से 36 प्रजातियाँ केवल इन्हीं द्वीपों पर पाई जाती हैं। वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (WPA) के तहत संकटग्रस्त प्रजातियों की IUCN रेड लिस्ट में इन पक्षी प्रजातियों में से कई को रखा गया है।

समुद्री विविधता

  • इसी प्रकार, उभयचर की आठ प्रजातियाँ और सरीसृप की 23 प्रजातियाँ जो इन द्वीपों के लिये स्थानिक हैं, पर संकटग्रस्त होने का उच्च जोखिम है। द्वीपों के पारिस्थितिक तंत्र की एक और अनोखी विशेषता इसकी समुद्री जीव विविधता है, जिसमें प्रवाल चट्टानें और इससे संबंधित जीव शामिल हैं।
  • कुल मिलाकर, इस द्वीप समूह के पारिस्थितिक तंत्र में स्क्लेरैक्टिनियन कोरल (कठोर या चट्टानी प्रवाल) की 555 प्रजातियाँ पाई जाती हैं और वे सभी WPA की अनुसूची 1 के तहत रखी जाती हैं। इसी प्रकार, गोरगोनियन (सी फैन्स) और कैल्सरस स्पंज की सभी प्रजातियाँ WPA के विभिन्न अनुसूचियों के तहत सूचीबद्ध हैं।
  • लंबे समय तक मुख्य भूमि से अलगाव के कारण ये द्वीप कई प्रजातियों के उद्भव (नई और विशिष्ट प्रजातियों का गठन) के लिये हॉटस्पॉट बने जिसके परिणामस्वरूप सैकड़ों स्थानिक प्रजातियाँ और उप-प्रजातियाँ यहाँ विकसित हुईं।
  • इस प्रकाशन के लेखकों ने रेखांकित किया है कि किसी भी संकट का द्वीपों की जैव विविधता पर दीर्घकालिक प्रभाव हो सकता है, जो कि किसी भी स्थानिक जीव की आबादी के आकार को नष्ट करते हुए, इसके बाद सीमित समयावधि में उसे विलुप्तता तक पहुँचा सकता है।


स्रोत : द हिंदू

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