भारतीय अर्थव्यवस्था
प्रमुख बंदरगाह प्राधिकरण विधेयक, 2020
- 16 Feb 2021
- 7 min read
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संसद ने प्रमुख बंदरगाह प्राधिकरण विधेयक (Major Port Authorities Bill), 2020 पारित किया है। इस बिल में देश के 12 प्रमुख बंदरगाहों को निर्णय लेने में अधिक स्वायत्तता प्रदान करने और बोर्ड स्थापित कर उनके शासन का व्यवसायीकरण करने का प्रयास किया गया है।
- यह विधेयक प्रमुख पोर्ट ट्रस्ट अधिनियम (Major Port Trusts Act), 1963 की जगह लेगा।
- भारत के 12 प्रमुख बंदरगाह दीनदयाल (तत्कालीन कांडला), मुंबई, जेएनपीटी, मर्मुगाओ, न्यू मंगलौर, कोचीन, चेन्नई, कामराजार (पहले एन्नोर), वी. ओ. चिदंबरनार, विशाखापट्टनम, पारादीप और कोलकाता (हल्दिया सहित) हैं।
प्रमुख बिंदु
मुख्य विशेषताएँ:
- प्रमुख पोर्ट प्राधिकरण बोर्ड:
- प्राधिकरण के विषय में: इस विधेयक में प्रत्येक प्रमुख बंदरगाह के लिये एक प्रमुख बंदरगाह प्राधिकरण बोर्ड (Board of Major Port Authority) के निर्माण का प्रावधान है। ये बोर्ड मौजूदा पोर्ट ट्रस्ट की जगह लेंगे।
- सभी प्रमुख बंदरगाहों का प्रबंधन वर्ष 1963 के अधिनियम के अंतर्गत संबंधित पोर्ट ट्रस्ट द्वारा किया जाता है, जिसमें केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त सदस्य शामिल होते हैं।
- रचना:
- विधेयक के अंतर्गत रेल मंत्रालय, रक्षा और सीमा शुल्क मंत्रालय, राजस्व विभाग के साथ-साथ जिन राज्यों में प्रमुख बंदरगाह हैं, उन राज्यों के प्रतिनिधियों को भी इस बोर्ड में शामिल करने का प्रावधान किया गया है।
- इसमें एक सरकारी नामांकित सदस्य और प्रमुख पोर्ट प्राधिकरण के कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करने वाला एक सदस्य शामिल होगा।
- शक्तियाँ:
- यह विधेयक बोर्ड को प्रमुख बंदरगाहों के विकास के लिये अपनी संपत्ति और धन का उपयोग करने की अनुमति देता है।
- बंदरगाह प्राधिकरण बोर्ड को भूमि सहित बंदरगाह से जुड़ी अन्य सेवाओं और परिसंपत्तियों के लिये शुल्क तय करने का अधिकार होगा।
- बाज़ार की परिस्थितियों के आधार पर सार्वजनिक–निजी साझेदार (Public Private Partner) तटकर तय करने के लिये स्वतंत्र होंगे।
- पोर्ट प्राधिकरण द्वारा कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (CSR) और बुनियादी ढाँचे के विकास के प्रावधान किये गए हैं।
- प्राधिकरण के विषय में: इस विधेयक में प्रत्येक प्रमुख बंदरगाह के लिये एक प्रमुख बंदरगाह प्राधिकरण बोर्ड (Board of Major Port Authority) के निर्माण का प्रावधान है। ये बोर्ड मौजूदा पोर्ट ट्रस्ट की जगह लेंगे।
- न्यायिक बोर्ड:
- एक न्यायिक बोर्ड का गठन किया जाएगा जो तत्कालीन प्रमुख बंदरगाहों हेतु टैरिफ प्राधिकरण (Tariff Authority for Major Port) के शेष कार्यों, बंदरगाहों और पीपीपी के बीच उत्पन्न विवादों आदि को देखेगा।
- TAMP, केंद्र और निजी टर्मिनलों के नियंत्रण वाले प्रमुख बंदरगाह ट्रस्टों द्वारा लगाए गए टैरिफ को ठीक करने का एक बहु-सदस्यीय वैधानिक निकाय रहा है।
- एक न्यायिक बोर्ड का गठन किया जाएगा जो तत्कालीन प्रमुख बंदरगाहों हेतु टैरिफ प्राधिकरण (Tariff Authority for Major Port) के शेष कार्यों, बंदरगाहों और पीपीपी के बीच उत्पन्न विवादों आदि को देखेगा।
- जुर्माना:
- कोई भी व्यक्ति जो विधेयक के किसी प्रावधान या नियमों का उल्लंघन करता है, उसे एक लाख रुपए तक के जुर्माने से दंडित किया जाएगा।
लक्ष्य:
- विकेंद्रीकरण: निर्णय लेने की प्रक्रिया को विकेंद्रीकृत करना और प्रमुख बंदरगाहों के प्रशासन में व्यावसायिकता को बढ़ावा देना।
- व्यापार और वाणिज्य: बंदरगाह के बुनियादी ढाँचे के विस्तार को बढ़ावा देना और व्यापार तथा वाणिज्य को सुविधाजनक बनाना।
- निर्णय लेना: यह सभी हितधारकों को लाभान्वित करने के उद्देश्य से परियोजना निष्पादन क्षमता को बेहतर करते हुए तेज़ तथा पारदर्शी निर्णय प्रदान करता है।
- रीओरिएंटिंग मॉडल: वैश्विक अभ्यास के अनुरूप केंद्रीय बंदरगाहों में शासन मॉडल को भू-स्वामी बंदरगाह मॉडल हेतु पुन: पेश करना।
महत्त्व:
- लेवल-प्लेयिंग फील्ड:
- यह विधेयक न केवल प्रमुख और निजी बंदरगाहों के बीच बल्कि प्रमुख बंदरगाह टर्मिनलों और पीपीपी टर्मिनलों के बीच एक लेवल-प्लेयिंग फील्ड (Level-Playing Field) बनाने जा रहा है।
- प्रमुख बंदरगाहों के अंदर पीपीपी टर्मिनल प्लेयरों को भी TAMP से टैरिफ अनुमोदन लेना पड़ा है। यह विधेयक इस निकाय से अनुमोदन लेना समाप्त कर देता है।
- इसके कारण आने वाले वर्षों में पीपीपी के अंतर्गत बड़े बंदरगाहों में निवेश किये जाने की उम्मीद है।
- आत्मनिर्भर भारत अभियान के अनुरूप:
- यह कदम निश्चित रूप से देश के आत्मनिर्भर भारत (Aatmanirbhar Bharat) के दृष्टिकोण के अनुरूप है और यह भारत को वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनाने का मार्ग प्रशस्त करेगा।
- कुल कार्गो आवाजाही का 70% और मूल्य का 90% बंदरगाहों के माध्यम से होता है।
आलोचना:
- इस विधेयक की आलोचना की जा रही है कि इसका उद्देश्य बंदरगाहों का निजीकरण और भूमि उपयोग पर राज्यों की शक्तियों को कम करना है।
आगे की राह
- इस विधेयक को काफी बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन निजी बंदरगाहों की तुलना में सार्वजनिक बंदरगाहों पर गुणवत्तापूर्ण सेवा और विपणन की कमी है।
- तंत्र का निर्माण कर लेना ही पर्याप्त नहीं है। प्रस्तावित भू-स्वामी बंदरगाह मॉडल के तहत जो बोर्ड बनाया गया है, उसे दी गई स्वायत्तता का उपयोग किया जाना चाहिये। बोर्ड को स्वतंत्रता के साथ काम कर गुणवत्तापूर्ण सेवा, दक्षता, भूमि उपयोग, परिसंपत्ति-मुद्रीकरण, विवाद समाधान आदि में सुधार करने के लिये निर्णय लेना होगा।