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डेली न्यूज़

  • 19 May, 2023
  • 73 min read
शासन व्यवस्था

IT हार्डवेयर के लिये उन्नत उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना

प्रिलिम्स के लिये:

उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना (PLI), कंपाउंडेड एनुअल ग्रोथ रेट (CAGR), केंद्रीय बजट 2021-22

मेन्स के लिये:

PLI के लिये घोषित क्षेत्र, भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण का विकास

चर्चा में क्यों?   

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारत में IT हार्डवेयर निर्माण के लिये उन्नत उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (Production Linked Incentive- PLI) योजना को मंज़ूरी दी है। 

  • यह निर्णय भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण उद्योग में हुई महत्त्वपूर्ण वृद्धि के बाद लिया गया है, जहाँ देश ने उत्पादन में 105 बिलियन अमेरिकी डाॅलर के आँकड़े को पार कर एक प्रमुख उपलब्धि हासिल की है।

IT  हार्डवेयर के लिये अद्यतन PLI योजना संबंधी मुख्य विशेषताएँ:

  • IT हार्डवेयर हेतु PLI योजना में वृद्धि: 
    • IT  हार्डवेयर हेतु PLI योजना को पहली बार मार्च 2021 में अधिसूचित किया गया था। यह योजना पात्र फर्मों के घरेलू विनिर्माण में वृद्धिशील निवेश के लिये 4% तक की प्रोत्साहन राशि का योगदान करती है।
    • इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) ने कहा कि अद्यतन योजना में प्रोत्साहन को बढ़ाकर 5% कर दिया गया है।
      • इसके अतिरिक्त घरेलू रूप से उत्पादित घटकों के उपयोग के लिये एक ‘अतिरिक्त वैकल्पिक प्रोत्साहन’ पेश किया गया है।  
  • संशोधित बजट परिव्यय और अवधि:
    • IT हार्डवेयर के लिये अद्यतन PLI योजना हेतु 17,000 करोड़ रुपए के बजटीय परिव्यय की मंज़ूरी दी गई है। इस योजना का कार्यकाल 6 वर्ष का होगा, जो कंपनियों को भारत में स्थापना, परिचालन और विस्तार करने हेतु दीर्घावधि प्रोत्साहन प्रदान करेगा।
  • भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण का विकास: 
    • पिछले आठ वर्षों में भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्षेत्र ने 17% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) दर्ज की है।
    • भारत ने वर्ष 2023 में 11 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के मोबाइल फोन निर्यात कर  विश्व स्तर पर दूसरे सबसे बड़े मोबाइल हैंडसेट निर्माता के रूप में अपनी स्थिति मज़बूत की है, जबकि पहला स्थान चीन का है।

उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना: 

  • परिचय:  
    • उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना 'आत्मनिर्भर भारत अभियान' (आत्मनिर्भर भारत) पहल के तत्त्वावधान में शुरू किये गए सुधारों की सूची में नवीनतम संकलन है।
    • PLI योजना की रणनीति आधार वर्ष की तुलना में भारत में निर्मित उत्पादों की वृद्धिशील बिक्री पर कंपनियों को प्रोत्साहन प्रदान करना है।
      • यह योजना विदेशी कंपनियों को भारत में इकाइयाँ स्थापित करने के लिये भी आमंत्रित करती है।
  • उद्देश्य:  
    • इस योजना का उद्देश्य घरेलू विनिर्माण को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी बनाकर विनिर्माण के क्षेत्र में भारत को विश्व में अग्रणी बनाना है।
    • इन्हें विशेष रूप से रणनीतिक क्षेत्रों में घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने, सस्ते आयात पर अंकुश लगाने और आयात बिलों को कम करने, घरेलू रूप से विनिर्मित वस्तुओं की लागत प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार करने तथा घरेलू क्षमता एवं निर्यात बढ़ाने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
  • PLI के लिये घोषित क्षेत्र:

स्रोत: द हिंदू


सामाजिक न्याय

हिस्टरेक्टमी

प्रिलिम्स के लिये:

हिस्टरेक्टमी, अनुच्छेद 21

मेन्स के लिये:

महिला स्वास्थ्य के मुद्दे और संबंधित उपाय, मातृ स्वास्थ्य का महत्त्व

चर्चा में क्यों? 

भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने गरीब और कम शिक्षित महिलाओं, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, जो कि अनुचित हिस्टरेक्टमी प्रक्रिया से गुज़रती हैं, के उच्च जोखिम के मुद्दे के समाधान हेतु उपाय शुरू किये हैं।

हिस्टरेक्टमी:  

  • परिचय:  
    • हिस्टरेक्टमी एक सर्जिकल/शल्य प्रक्रिया है, जिसमें गर्भाशय (गर्भ), एक महिला के शरीर का वह अंग जहाँ गर्भावस्था के दौरान एक बच्चा विकसित होता है, को हटाना शामिल है।
  • प्रकार:  
    • जब केवल गर्भाशय को हटाया जाता है, तो इसे आंशिक (Partial) हिस्टरेक्टमी कहा जाता है। जब गर्भाशय और गर्भाशय ग्रीवा को हटा दिया जाता है, तो इसे पूर्ण (Total) हिस्टरेक्टमी कहा जाता है।
    • जब गर्भाशय, गर्भाशय ग्रीवा, योनि का हिस्सा और इन अंगों के आस-पास के स्नायुबंधन एवं ऊतकों का एक विस्तृत क्षेत्र हटा दिया जाता है, तो इसे रेडिकल हिस्टरेक्टमी कहा जाता है।
  • भारत में हिस्टरेक्टमी के संकेतक:
    • फाइब्रॉएड (गर्भ में या गर्भ के आसपास गैर-कैंसर वृद्धि), एंडोमेट्रियोसिस (ऐसी बीमारी जिसमें गर्भाशय की लिंनिंग के समान ऊतक गर्भाशय के बाहर वृद्धि करता है), असामान्य रक्तस्राव और श्रोणि सूजन की बीमारी जैसी स्त्री रोग संबंधी स्थितियों के लिये भारत में हिस्टरेक्टमी प्रक्रिया तब अपनाई जाती है जब अन्य उपचार विफल हो जाते हैं।
    • यह कैंसर के ऊतकों को हटाने के लिये और गंभीर श्रोणि दर्द के मामलों में कैंसर के उपचार के हिस्से के रूप में भी उपयोग किया जाता है।

भारत में हिस्टरेक्टमी से संबंधित मुद्दे:

  • युवा महिलाओं में हिस्टरेक्टमी का बढ़ता प्रचलन:
    • हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि विकसित देशों में हिस्टरेक्टमी के मामलों में आमतौर पर 45 वर्ष और उससे अधिक उम्र की प्रीमेनोपॉज़ल (रजोनिवृत्ति के आसपास) महिलाएँ शामिल होती हैं।
    • हालाँकि भारत में हिस्टरेक्टमी के मामले में समुदाय-आधारित अध्ययनों में 28-36 वर्ष की युवा महिलाओं की बढ़ती संख्या दर्ज की गई है।
  • NFHS डेटा: 
    • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS)-5 के सबसे ताज़ा अनुभवजन्य आँकड़ों के अनुसार, 15-49 वर्ष की 3 प्रतिशत महिलाओं ने हिस्टरेक्टमी प्रक्रिया को अपनाया। 
    • हिस्टरेक्टमी का प्रचलन आंध्र प्रदेश (9 प्रतिशत) में सबसे अधिक है। इसके बाद 15-49 आयु वर्ग की महिलाओं में तेलंगाना (8 प्रतिशत), सिक्किम (0.8 प्रतिशत) और मेघालय (0.7 प्रतिशत) में सबसे कम है।
    • हिस्टरेक्टमी का प्रचलन दक्षिणी क्षेत्र में सबसे अधिक था यानी 4.2 प्रतिशत जो राष्ट्रीय प्रचलन से भी अधिक था। इसके बाद भारत के पूर्वी भाग (3.8 प्रतिशत) का स्थान था। 
    • दूसरी ओर, सबसे कम व्यापकता पूर्वोत्तर क्षेत्र में देखी गई यानी केवल 1.2 प्रतिशत। 
  • अनावश्यक हिस्टरेक्टमी:
    • वर्ष 2013 में दायर एक जनहित याचिका (PIL) ने "अनावश्यक हिस्टरेक्टमी" के मुद्दे पर प्रकाश डाला।
    • जनहित याचिका में खुलासा किया गया कि बिहार, छत्तीसगढ़ और राजस्थान राज्यों में महिलाओं को हिस्टरेक्टमी के अधीन किया गया था, जिसको अनावश्यक माना गया क्योंकि यह उनके स्वास्थ्य को खतरे में डाल रहा था।
      • निजी अस्पताल इन अनावश्यक हिस्टरेक्टमी में संलिप्त रहे थे। दो-तिहाई से अधिक (70%) महिलाएँ, जो हिस्टरेक्टमी से गुज़री जिनका ऑपरेशन निजी स्वास्थ्य सुविधा में किया गया था।
    • प्रक्रिया का दुरुपयोग भी देखा गया था, स्वास्थ्य सेवा संस्थान विभिन्न सरकारी स्वास्थ्य योजनाओं के अंतर्गत उच्च बीमा शुल्क का दावा करने के लिये इसका लाभ उठाते थे।

समस्या का समाधान करने के लिये प्रयास:

  • सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश:
    • जनहित याचिका के प्रत्युत्तर में सर्वोच्च न्यायालय ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को निर्देश दिया कि वे केंद्र द्वारा तैयार किये गए स्वास्थ्य दिशा-निर्देशों को लागू करें ताकि अनावश्यक हिस्टरेक्टमी की निगरानी और रोकथाम की जा सके। इन दिशा-निर्देशों के कार्यान्वयन में तीन महीने की समय-सीमा में अनिवार्य किया गया था।
    • अनावश्यक हिस्टरेक्टमी कराने वाली महिलाओं के मौलिक अधिकारों का गंभीर उल्लंघन हुआ।
    • इस निर्णय में यह स्वीकार किया गया कि स्वास्थ्य का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का एक आंतरिक हिस्सा है। सभी पहलुओं की सराहना करने के लिये जीवन, अच्छी स्वास्थ्य स्थितियों पर आधारित होना चाहिये।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने समस्या से निपटने के लिये एक कार्ययोजना का भी अनुरोध किया है, जिसमें राष्ट्रीय, राज्य और ज़िला-स्तरीय हिस्टरेक्टमी निगरानी समिति बनाने तथा एक शिकायत पोर्टल की शुरुआत करने के सुझाव शामिल हैं।
  • स्वास्थ्य मंत्रालय के दिशा-निर्देश: 
    • वर्ष 2022 में स्वास्थ्य मंत्रालय ने अनावश्यक हिस्टरेक्टमी को रोकने के उद्देश्य से दिशा-निर्देश जारी किये। इस प्रक्रिया का उचित उपयोग सुनिश्चित करने के लिये राज्यों को इन दिशा-निर्देशों का पालन करने का निर्देश दिया गया था।
      • हाल ही में मंत्रालय ने राज्यों को निर्देश दिया है कि वे चिकित्सा संस्थानों द्वारा की जाने वाली हिस्टरेक्टमी पर डेटा साझा करें।
      • मातृ मृत्यु दर के लिये किये गए मौजूदा ऑडिट के समान सभी हिस्टरेक्टमी प्रक्रिया के लिये अनिवार्य ऑडिट की भी सलाह दी गई थी। 

स्रोत: द हिंदू  


भारतीय अर्थव्यवस्था

थोक मूल्य सूचकांक

चर्चा में क्यों?  

वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा जारी किये गए नवीनतम आँकड़ों से पता चलता है कि भारत में थोक मूल्य सूचकांक (WPI) अप्रैल में (-) 0.92 प्रतिशत की अवस्फीति दर के साथ तीन साल के निचले स्तर पर आ गया है जो 33 महीने के बाद नकारात्मकता की ओर इंगित करता है।   

  • अप्रैल 2023 में मुद्रास्फीति की दर में गिरावट मुख्य रूप से बुनियादी धातुओं, खाद्य उत्पादों, खनिज तेलों, कपड़ा, गैर-खाद्य वस्तुओं, रासायनिक एवं रासायनिक उत्पादों, रबर तथा प्लास्टिक उत्पादों एवं कागज़ तथा कागज़ उत्पादों की कीमतों में गिरावट के कारण हुई है। 

थोक मूल्य सूचकांक:

  • परिचय: 
    • यह थोक व्यवसायों द्वारा अन्य व्यवसायों को थोक में बेची और व्यापार की जाने वाली वस्तुओं की कीमतों में परिवर्तन को मापता है।
    • इसे आर्थिक सलाहकार कार्यालय, वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा प्रकाशित किया जाता है।
    • यह भारत में सबसे व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाने वाला मुद्रास्फीति सूचक है।
    • इस सूचकांक की प्रमुख आलोचना यह की जाती है कि आम जनता उत्पादों को थोक मूल्य पर नहीं खरीदती है।
    • अखिल भारतीय थोक मूल्य सूचकांक के आधार वर्ष को 2004-05 से वर्ष 2017 में 2011-12 के रूप में संशोधित किया गया है।
  • WPI का भाराँक:

सभी वस्तुएँ/प्रमुख समूह 

भाराँक (%) 

सामग्री

100 

 

1. प्राथमिक सामग्री

22.6 

खाद्य सामग्री: 

अनाज, धान, गेहूँ, दालें, सब्जियाँ,आलू, प्याज, फल, दूध, अंडे, मांस और मछली

 गैर-खाद्य सामग्री:   

तिलहन

खनिज पदार्थ

कच्चा पेट्रोलियम

2. ईंधन और शक्ति

13.2 

  एलपीजी, पेट्रोल, हाई स्पीड डीज़ल

3. विनिर्मित उत्पाद

64.2 

खाद्य उत्पाद: सब्जी, पशु तेल और वसा

 पेय पदार्थ

 तंबाकू उत्पाद, परिधान, फार्मास्यूटिकल्स, औषधीय ररसायन और वनस्पति उत्पाद, अन्य गैर-धात्विक खनिज उत्पाद आदि

4. खाद्य सूचकांक

24.4 

खाद्य सूचकांक में प्राथमिक वस्तु समूह के 'खाद्य पदार्थ' और निर्मित उत्पाद समूह के 'खाद्य उत्पाद' शामिल हैं 

  • WPI मुद्रास्फीति को प्रभावित करने वाले कारक: 
    • उच्च आधार प्रभाव:  
      • विशेषज्ञों का सुझाव है कि उच्च आधार प्रभाव के कारण WPI मुद्रास्फीति के सामान्य रहने की संभावना है।
    • वैश्विक वस्तुओं की कीमतों में कमी:  
      • वैश्विक वस्तुओं की कीमतों में गिरावट से विनिर्मित उत्पादों से मुद्रास्फीति को निचले स्तर पर रखने में मदद मिलने का अनुमान है।
    • खाद्य मुद्रास्फीति और मानसून की संभावनाएँ:  
      • बाज़ार की स्थितियों से प्रभावित गेहूँ की कीमतों पर निगरानी रखने की ज़रूरत है।
      • इस बात को लेकर भी चिंता जताई गई है कि मानसून खरीफ फसलों की कीमत को कैसे प्रभावित कर सकता है।

WPI एवं CPI में अंतर: 

  • WPI उत्पादक स्तर पर मुद्रास्फीति का आकलन करता है, जबकि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index- CPI) उपभोक्ता स्तर पर कीमतों के स्तर में बदलाव का आकलन करता है।
    • दोनों बास्केट व्यापक अर्थव्यवस्था के भीतर मुद्रास्फीति के रुझान (मूल्य में उतार-चढ़ाव) को मापते हैं, हालाँकि दोनों सूचकांक में भोजन, ईंधन और निर्मित वस्तुओं को अलग-अलग भार दिया जाता है।
  • WPI में सेवाओं की कीमतों में परिवर्तन का मापन नहीं किया जाता है, जबकि CPI में किया जाता है।
  • WPI में विनिर्मित वस्तुओं को अधिक महत्त्व दिया जाता है, जबकि CPI में खाद्य पदार्थों को अधिक महत्त्व दिया जाता है।
  • WPI का आधार वर्ष 2011-2012 है, जबकि CPI का आधार वर्ष 2012 है।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में मांग-प्रेरित मुद्रास्फीति या उसमें वृद्धि निम्नलिखित किन कारणों से होती है? 

  1. विस्तारित नीतियाँ 
  2. राजकोषीय प्रोत्साहन 
  3. मुद्रास्फीति सूचकांकन मज़दूरी 
  4. उच्च क्रय शक्ति 
  5. बढ़ती ब्याज दर 

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: 

(a) केवल 1, 2 और 4
(b) केवल 3, 4 और 5
(c) केवल 1, 2, 3 और 5
(d) 1, 2, 3, 4 और 5 

उत्तर: (a) 


प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020) 

  1. खाद्य वस्तुओं का ‘उपभोक्ता मूल्य सूचकांक’ (CPI) भार (Wegitage) उनके ‘थोक मूल्य सूचकांक’ (WPI) में दिये गए भार से अधिक है।
  2. WPI, सेवाओं के मूल्यों में होने वाले परिवर्तनों को नहीं पकड़ता, जैसा कि CPI करता है।
  3. भारतीय रिज़र्व बैंक ने अब मुद्रास्फीति के मुख्य मान तथा प्रमुख नीतिगत दरों के निर्धारण हेतु WPI को अपना लिया है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 
(c) केवल 3 
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (a) 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

भू-जल निष्कर्षण और भूमि अवतलन

प्रीलिम्स के लिये:

भू-जल निष्कर्षण, भूमि अवतलन, शहरीकरण, भारत में गतिशील भू-जल संसाधनों का राष्ट्रीय संकलन, केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB)

मेन्स के लिये:

भारत में भू-जल निष्कर्षण की स्थिति, भू-जल निष्कर्षण के कारण, भूमि अवतलन।

चर्चा में क्यों?  

 उत्तराखंड के जोशीमठ शहर में इमारतों में दरारें और भूमि अवतलन की घटना वर्ष 2023 की शुरुआत में चर्चा में रही।

  • इसी तरह की घटनाएँ  पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और फरीदाबाद के मैदानी इलाकों में वर्षों से देखी जा रही हैं। केंद्रीय भू-जल बोर्ड (CGWB) द्वारा वर्षों से एकत्र किये गए आँकड़ों के अनुसार, इन खतरनाक घटनाओं का कारण अत्यधिक भू-जल निष्कर्षण को माना जा रहा है। 

भू-अवतलन क्या है?  

  •  विषय:
    • भूमि अवतलन का तात्पर्य पृथ्वी की सतह के क्रमिक डूबने या धँसने से है, सामान्य रूप से यह मृदा, चट्टान या अन्य सामग्रियों की भूमिगत परतों के संघनन के कारण होता है।
    • यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब भूमि के नीचे सहायक संरचनाएँ जैसे-जलभृत, भूमिगत खदानें या प्राकृतिक गैस निष्कर्षण आदि समाप्त हो जाते हैं या जब कुछ भूगर्भीय प्रक्रियाएँ होती हैं।
  • प्रभाव:
    • शहरी इलाकों में यह सड़कों, इमारतों और भूमिगत उपयोगिताओं सहित बुनियादी ढांँचे को हानि पहुंँचा सकता है।
    • यह समुद्र तल के सापेक्ष भूमि की ऊँचाई कम करके तटीय क्षेत्रों में बाढ़ के खतरे को भी बढ़ा सकता है।
    • अवतलन कृषि क्षेत्रों में सिंचाई प्रणाली को प्रभावित कर सकता है, नदियों और नहरों में जल के प्रवाह को बाधित कर सकता है तथा  कृषि भूमि को स्थायी रूप से नुकसान पहुँचा सकता है।

CGWB द्वारा भूजल निष्कर्षण और भूमि अवतलन की पहचान:

  • भूजल निकासी के कारण भूमि अवतलन: 
    • खनन गतिविधियों हेतु किये गए खुदाई कार्यों के कारण  "मृदा संतुलन" या खनन से उत्पन्न कंपन की वजह से अवतलन की घटनाएँ देखी गई हैं। शोधकर्त्ता यह पता लगा रहे हैं कि भूजल निष्कर्षण भारत में मृदा के अवतलन में कैसे योगदान देता है।
  • विभिन्न क्षेत्रों में भूमि अवतलन के साक्ष्य: 
    • भूस्खलन या भूकंप के कारण भूमि संचलन के विपरीत भूजल निकासी से अवतलन धीरे-धीरे होता है एवं ऐसी घटनाएँ वर्षों तक नहीं देखी जाती हैं।
      • भू-संचलन के उपग्रह-आधारित विश्लेषण का उपयोग कर किये गए अध्ययनों में भूजल निकासी के परिणामस्वरूप भवनों के विकृत होने की जानकारी मिली है।
    • सेंटिनल-1 उपग्रह के डेटा का उपयोग करने से पता चला है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (National Capital Region- NCR) वर्ष 2011-2017 तक प्रतिवर्ष औसतन 15 मिमी. तक अवतलित हो गया है।
      • शहरीकरण और अनियोजित विकास ने भूजल निकासी को बढ़ा दिया और NCR में अवतलन जैसी घटना को को बढ़ावा दिया। 
    • कोलकाता और पूर्वी भारत के कुछ हिस्सों में भी भूजल ब्लॉकों तथा भूमि का अत्यधिक दोहन हुआ है।

भारत में भूजल निकासी की स्थिति:  

  • परिचय:  
    • वर्तमान में 85% ग्रामीण और 50% शहरी आबादी जीविका हेतु भूजल पर निर्भर है, जिससे भारत विश्व स्तर पर भूजल का सबसे बड़ा उपयोगकर्त्ता है।
    • भारत में गतिशील भूजल संसाधनों की राष्ट्रीय संकलन रिपोर्ट के अनुसार, भारत का भूजल निष्कर्षण का चरण, जो भूजल बनाम पुनर्भरण के उपयोग का प्रतिशत है, वर्ष 2020 के 61.6% से घटकर 2022 में 60.08% हो गया है।
  • उत्तर पश्चिमी भारत में भूजल की कमी:
    • उत्तर पश्चिमी भारत में सीमित मानसून वर्षा के कारण कृषि पद्धतियाँ मुख्य रूप से भूजल निष्कर्षण पर निर्भर हैं।
    • CGWB के डेटा से भूजल दोहन के संकटग्रस्त स्तर का पता चलता है:
      • पंजाब: 76% भूजल ब्लॉक का 'अतिदोहन' हुआ है। 
      • चंडीगढ़: 64% भूजल ब्लॉक का 'अतिदोहन' हुआ है। 
      • दिल्ली: लगभग 50% भूजल ब्लॉक का 'अतिदोहन' हुआ है।
  • संबंधित मुद्दे:  
    • अनियमित निकासी: भूजल की कमी से प्रभावित कई राज्य कृषि सिंचाई के लिये भूजल निष्कर्षण हेतु निशुल्क या अत्यधिक सब्सिडी वाली विद्युत ऊर्जा (सौर पंप सहित) प्रदान करते हैं। 
      • यह दुर्लभ भूजल संसाधनों के अतिदोहन और उनके स्तर में कमी को प्रेरित करता है।
    • जल-गहन फसलों की खेती: गेहूँ और चावल के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) ने गेहूँ और धान जैसी जल-गहन फसलों (जो अपने विकास के लिये भूजल पर बहुत अधिक निर्भर करती हैं) के पक्ष में अत्यधिक विषम प्रोत्साहन संरचनाओं का निर्माण किया है।
      • यह भूजल को इन फसलों की खेती के लिये एक अत्यंत आवश्यक संसाधन बनाता है।
    • खारे जल का समावेश: तटीय क्षेत्रों में अत्यधिक भूजल निष्कर्षण से खारे जल का समावेश हो सकता है।  
      • जैसे ही शुद्ध भूजल का स्तर गिरता या समाप्त हो जाता है, तो जलभृतों में समुद्री जल प्रवेश कर जाता है, जिससे जल विभिन्न उपयोगों के लिये अनुपयुक्त हो जाता है और जिसका कृषि एवं पारिस्थितिक तंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। 
    • पारिस्थितिक प्रभाव: भूजल की कमी नदियों, झीलों और आर्द्रभूमि में पानी के प्रवाह को न्यून कर पारिस्थितिक तंत्र को प्रभावित करती है। 
      • इससे प्राकृतिक संतुलन बिगड़ता है, जलीय जीवन और जैवविविधता को नुकसान पहुँचता है। यह भूजल स्रोतों पर निर्भर पौधों एवं जानवरों के लिये जल की उपलब्धता को भी प्रभावित करता है। 

आगे की राह

  • फसल विविधीकरण और कुशल सिंचाई: फसल विविधीकरण को बढ़ावा देने और अधिक जल-कुशल सिंचाई तकनीकों जैसे- ड्रिप सिंचाई और स्प्रिंकलर सिस्टम को अपनाने की आवश्यकता है।
  • नदी जलग्रहण प्रबंधन: ग्रीन कॉरिडोर का निर्माण, वर्षा जल संचयन क्षेत्र, बाढ़ के पानी को स्टोर करने हेतु संभावित रिचार्ज ज़ोन के लिये चैनलों की मैपिंग तथा शहरी क्षेत्रों में कृत्रिम भूजल पुनर्भरण संरचनाएँ (जहाँ भूजल सतह से पाँच-छह मीटर नीचे है) आदि से भूजल में गिरावट को रोकने में मदद मिलेगी।
  • प्रौद्योगिकी और निगरानी: रिमोट सेंसिंग, IoT डिवाइस तथा डेटा एनालिटिक्स जैसे भूजल स्तर की वास्तविक समय की निगरानी के लिये उपयुक्त तकनीक सूचित निर्णय लेने में मदद कर सकती है और भूजल की कमी को कम करने के लिये त्वरित कार्रवाई को सक्षम कर सकती है।
  • अपशिष्ट जल का पुनर्चक्रण और पुन: उपयोग: ताज़े जल के स्रोतों पर निर्भरता कम करने और भूजल निकासी पर दबाव कम करने हेतु औद्योगिक प्रक्रियाओं जैसे- गैर-पीने योग्य उद्देश्यों के लिये उपचारित अपशिष्ट जल के उपयोग को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा प्राचीन नगर अपने उन्नत जल संचयन और प्रबंधन प्रणाली के लिये सुप्रसिद्ध है, जहाँ बाँधों की शृंखला का निर्माण किया गया है और संबद्ध जलाशयों में नहर के माध्यम से जल को प्रवाहित किया जाता है? (2021)

(a) धौलावीरा
(b) कालीबंगा
(c) राखीगढ़ी
(d) रोपड़

उत्तर: (a) 


प्रश्न. 'वाटर क्रेडिट' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021) 

  1. यह जल एवं स्वच्छता क्षेत्र में कार्य के लिये सूक्ष्म  वित्त साधनों (माइक्रोफाइनेंस टूल) को लागू करता है।
  2. यह एक वैश्विक पहल है जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन और विश्व बैंक के तत्त्वावधान में प्रारंभ किया गया है।
  3. इसका उद्देश्य निर्धन लोगों को सहायिकी के बिना अपनी जल संबंधी ज़रूरतों को पूरा करने के लिये समर्थ बनाना है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन से सही हैं?

(a) केवल 1 और 2 
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (c) 


मेन्स:

प्रश्न. जल संरक्षण एवं जल सुरक्षा हेतु भारत सरकार द्वारा प्रवर्तित जल शक्ति अभियान की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं? (2020

प्रश्न. रिक्तीकरण परिदृश्य में जल के विवेकपूर्ण उपयोग के लिये जल भंडारण और सिंचाई प्रणाली में सुधार के उपाय सुझाइये। (2020) 

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

रश्त-अस्तारा रेलवे एवं INSTC

प्रिलिम्स के लिये:

रश्त-अस्तारा रेलवे, मध्य एशिया, CPEC, बाल्टिक, चाबहार बंदरगाह, JCPOA

मेन्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा, महत्त्व और चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में रूस और ईरान ने अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर (International North–South Transport Corridor- INSTC) के हिस्से के रूप में ईरानी रेलवे लाइन रश्त-अस्तारा रेलवे के निर्माण हेतु समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।

  • रश्त-अस्तारा रेलवे को गलियारे में महत्त्वपूर्ण कड़ी माना जाता है, जिसका उद्देश्य रूस, ईरान, अज़रबैजान, भारत और अन्य देशों को रेल एवं जल मार्ग से जोड़ना है। रूस के अनुसार, यह मार्ग स्वेज़ नहर के साथ महत्त्वपूर्ण वैश्विक आर्थिक मार्ग के रूप में प्रतिस्पर्द्धा कर सकता है।

रश्त-अस्तारा रेलवे: 

  • यह 162 किलोमीटर का रेलवे मार्ग है जो कैस्पियन सागर के पास रश्त (ईरान) शहर को अज़रबैजान की सीमा पर अस्तारा (अज़रबैजान) से जोड़ेगा। इसके कारण यात्रा समय-सीमा में पूर्व की तुलना में चार दिन का कम समय लगेगा।
  • रश्त-अस्तारा रेलवे विशेष उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा/कॉरिडोर का एक घटक होगा, जो विश्व के ट्रैफिक प्रतिरूप में काफी विविधता लाएगा। नए कॉरिडोर के साथ यात्रा करने से लागत एवं समय की काफी बचत होगी, जो नई लॉजिस्टिक चेन के निर्माण में भी योगदान देगा।
  • यह रेलवे कैस्पियन सागर तट के साथ बाल्टिक सागर पर रूसी बंदरगाहों को हिंद महासागर एवं खाड़ी में ईरानी बंदरगाहों से जोड़ने में मदद करेगा।

अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा:

  • परिचय: 
    • यह 7,200 किलोमीटर का मल्टी-मोड ट्रांज़िट सिस्टम है जो भारत, ईरान, अज़रबैजान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप के बीच कार्गो ले जाने के लिये नौवहन, रेलवे और सड़क मार्गों को जोड़ता है। 
    • इसे सदस्य देशों के बीच परिवहन सहयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से ईरान, रूस और भारत द्वारा सेंट पीटर्सबर्ग में 12 सितंबर, 2000 को शुरू किया गया था।
    • तब से INSTC सदस्यता का विस्तार 10 और देशों- अज़रबैजान, आर्मेनिया, कज़ाखस्तान, किर्गिज़स्तान, ताजिकिस्तान, तुर्की, यूक्रेन, सीरिया, बेलारूस और ओमान को शामिल करने के लिये किया गया है।
      • बुल्गारिया को एक पर्यवेक्षक राज्य के रूप में शामिल किया गया है। लातविया और एस्टोनिया जैसे बाल्टिक देशों ने भी इसमें शामिल होने की इच्छा जताई है। 
  • मार्ग और साधन: 
    • केंद्रीय गलियारा: यह मुंबई में जवाहरलाल नेहरू बंदरगाह से शुरू होता है और होर्मुज़ जलडमरूमध्य पर बंदर अब्बास बंदरगाह (ईरान) से जुड़ता है। इसके बाद यह नौशहर, अमीराबाद और बंदर-ए-अंज़ाली के माध्यम से ईरानी क्षेत्र से गुज़रता है, रूस में ओयला और अस्त्रखान बंदरगाहों तक पहुँचने के लिये कैस्पियन सागर से होकर गुज़रता है। 
    • पश्चिमी गलियारा: यह अज़रबैजान के रेलवे नेटवर्क को समुद्री मार्ग से ईरान के अस्तारा (अज़रबैजान) एवं अस्तारा (ईरान) के क्रॉस-बॉर्डर नोडल बिंदुओं तथा भारत में जवाहरलाल नेहरू बंदरगाह से जोड़ता है।
    • पूर्वी गलियारा: यह कज़ाखस्तान, उज़्बेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान के मध्य एशियाई देशों के माध्यम से रूस को भारत से जोड़ता है। 

भारत के लिये INSTC का महत्त्व: 

  • वैकल्पिक मार्ग: 
    • भारत के लिये INSTC, मध्य एशिया से जुड़ने का एक वैकल्पिक साधन है, जो हाइड्रोकार्बन में समृद्ध है और जिसका सामरिक महत्त्व है। 
    • यह पाकिस्तान के माध्यम से सीधी पहुँच वाले मार्ग में आने वाली बाधाओं को देखते हुए अफगानिस्तान और मध्य एशिया के बीच व्यापार के लिये एक स्थायी वैकल्पिक मार्ग बनाता है।
  • समय और माल ढुलाई लागत को कम करना: 
    • INSTC में समुद्री मार्ग, रेल संपर्क और सड़क संपर्क शामिल हैं, जो भारत के मुंबई शहर को रूस में सेंट पीटर्सबर्ग से जोड़ता है, यह चाबहार से होकर गुज़रता है।
    • INSTC से पारगमन समय 40% तक कम होने का अनुमान है और  इससे परिवहन में लगने वाली अवधि 45-60 दिनों से घटकर 25-30 दिन हो जाएगी इसके अतिरिक्त स्वेज नहर मार्ग की तुलना में माल ढुलाई लागत में 30% की कमी आने की उम्मीद है।
  • चाबहार बंदरगाह:
    • भारत ने सिस्तान-बलूचिस्तान के ईरानी प्रांत में स्थित चाबहार बंदरगाह में निवेश किया है और INSTC के लिये एक अंतर-सरकारी समझौते पर भी हस्ताक्षर किये हैं।
    • चाबहार बंदरगाह को मध्य एशियाई देशों के साथ व्यापार करने हेतु भारत, ईरान और अफगानिस्तान के लिये सुनहरे अवसरों का द्वार माना जाता है।
      • चाबहार ओमान की खाड़ी पर दक्षिण-पश्चिमी ईरान में एक बंदरगाह है। यह समुद्र तक सीधी पहुँच वाला ईरान का एकमात्र बंदरगाह है। यह ईरान के ऊर्जा संपन्न सिस्तान-बलूचिस्तान क्षेत्र के दक्षिणी तट पर स्थित है। 
  • स्वेज़ नहर का विकल्प:
    • स्वेज़ नहर जिसके वर्ष  2021 में बाधित होने के कारण  विश्व वाणिज्य का 12% और प्रतिदिन 9 बिलियन अमेरिकी डॉलर के व्यापार का नुकसान हुआ, अतः INSTC का अधिक किफायती एवं समयबद्ध मल्टीमॉडल ट्रांज़िट मार्ग के रूप में महत्त्व है।
  • बाल्टिक से जोड़ने की क्षमता: 
    • INSTC भारत को मध्य एशिया, रूस से जोड़ता है और इसमें बाल्टिक, नॉर्डिक तथा आर्कटिक क्षेत्रों तक विस्तार करने की क्षमता है।
    • यह कनेक्टिविटी पहल इसके अंतर्निहित व्यावसायिक लाभों चलते इस क्षेत्र में परिवर्तनकारी विकास कर सकती है, जिससे न केवल पारगमन बल्कि मानवीय सहायता के साथ-साथ समग्र आर्थिक विकास भी हो सकता है।
  • यूरेशिया भर में क्षेत्रीय आपूर्ति शृंखला निर्माण:
    • यूरेशिया में विविध आपूर्ति शृंखलाओं का निर्माण निश्चित रूप से पूर्व के निर्माता और पश्चिम के उपभोक्ता के रूप में रूढ़िवादी दृष्टिकोण को बदल सकता है।

चुनौतियाँ:

  •  INSTC के सामने प्रमुख चुनौती यह है कि INSTC से जुड़ी अधिकांश परियोजनाओं को विश्व बैंक, ADB (एशियाई विकास बैंक), यूरोपीय निवेश बैंक और इस्लामी विकास बैंक जैसे मुख्य अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों से वित्तीय सहायता नहीं मिली है।
  • यह प्रमुख रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा ईरान पर लगाए गए एकतरफा प्रतिबंधों के कारण है जिससे संभावित "द्वितीयक प्रतिबंधों" के बारे में चिंताएँ उत्पन्न हुई हैं।
  • वर्ष 2018 में JCPOA (संयुक्त व्यापक कार्ययोजना) से अमेरिका की वापसी के बाद ईरान पर लगाए गए कठोर प्रतिबंधों के परिणामस्वरूप कई वैश्विक कंपनियाँ ईरान में बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं से हट गईं।

आगे की राह

  • INSTC में विभिन्न हितधारकों के लिये काफी संभावनाएँ हैं, लेकिन इसके पूर्ण लाभों को प्राप्त करने के लिये अधिक वित्तपोषण, सहयोग, राजनीतिक इच्छाशक्ति और रणनीतिक योजना की आवश्यकता है।
  • वित्तपोषण  एक बड़ी चुनौती है और क्षेत्र में सुरक्षा खतरों तथा राजनीतिक अस्थिरता के कारण निजी क्षेत्र की भागीदारी सीमित है। कॉरिडोर की सफलता के लिये टैरिफ और सीमा शुल्क का सामंजस्य भी महत्त्वपूर्ण है।
  • व्यापार की मात्रा बढ़ाने के लिये सूचनात्मक संपर्क में सुधार करना और मांग पैदा करना महत्त्वपूर्ण है। वर्तमान में स्वेज नहर मार्ग के माध्यम से दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया से यूरोप में होने वाले वस्तुओं का निर्यात अपर्याप्त है। एक महत्त्वपूर्ण परियोजना अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर (INSTC) के सफल कार्यान्वयन से इस कमी को दूर करना आवश्यक है।
  • इसके अतिरिक्त INSTC सदस्य देशों को सहयोग करने और आर्थिक एकीकरण बढ़ाने का अवसर प्रदान करता है। फार्मास्यूटिकल्स तथा कृषि जैसे पारस्परिक हित के क्षेत्रों पर केंद्रित औद्योगिक पार्कों एवं विशेष आर्थिक क्षेत्रों की स्थापना, इस कनेक्टिविटी कॉरिडोर के विकास और वाणिज्यिक मूल्य में अधिक योगदान दे सकती है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. भारत द्वारा चाबहार बंदरगाह को विकसित करने का क्या महत्त्व है? (2017)

(a) अफ्रीकी देशों के साथ भारत के व्यापार में भारी वृद्धि होगी।
(b) भारत के तेल उत्पादक अरब देशों के साथ संबंध मज़बूत होंगे।
(c) अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुँच के लिये भारत, पाकिस्तान पर निर्भर नहीं रहेगा।
(d) पाकिस्तान, इराक और भारत के बीच गैस पाइपलाइन की स्थापना की सुविधा और सुरक्षा करेगा।

उत्तर: (c)

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-यूरोपीय संघ व्यापार और प्रौद्योगिकी परिषद

प्रिलिम्स के लिये:

हरित एवं स्वच्छ ऊर्जा तकनीक, विश्व व्यापार संगठन, मुक्त व्यापार संधियाँ, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ईएफटीए

मेन्स के लिये:

भारत-यूरोपीय संघ व्यापार एवं प्रौद्योगिकी परिषद

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारत-यूरोपीय संघ व्यापार और प्रौद्योगिकी परिषद (TTC) की पहली मंत्रिस्तरीय बैठक ब्रूसेल्स, बेल्जियम में हुई।  

  • भारत-यूरोपीय संघ व्यापार और प्रौद्योगिकी परिषद यूरोपीय संघ के लिये दूसरा द्विपक्षीय मंच तथा भारत के लिये किसी भी साझेदार के साथ स्थापित पहला मंच है। यूरोपीय संघ और अमेरिका ने जून 2021 में एक TTC का गठन किया।

बैठक की मुख्य विशेषताएँ: 

  • बैठक में तीन कार्यकारी समूहों के तहत भविष्य के सहयोग के रोडमैप पर चर्चा हुई: 
  • बैठक का उद्देश्य दिशा प्रदान करना और दोनों पक्षों के बीच सहयोग सुनिश्चित करना था:
  • भारत और यूरोपीय संगठन भी अपने व्यापार संबंधों में उभरते मुद्दे - यूरोपीय संगठन की कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (CBAM) को हल करने के लिये कार्य कर रहे हैं।  
    • यूरोपीय संघ CBAM को एक "ऐतिहासिक उपकरण" के रूप में वर्णित करता है जो यूरोपीय संघ में प्रवेश करने वाली वस्तुओं के उत्पादन के दौरान उत्सर्जित कार्बन को लेकर "उचित मूल्य" निर्धारित करता है और यूरोपीय संघ के बाहर औद्योगिक" उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिये एक तंत्र है।

भारत-यूरोपीय संघ व्यापार और प्रौद्योगिकी परिषद (TTC):

  • परिचय: 
    • TTC के गठन की घोषणा भारतीय प्रधानमंत्री और यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष द्वारा 2022 में व्यापार, विश्वसनीय प्रौद्योगिकी एवं सुरक्षा गठजोड़ के साथ रणनीतिक चुनौतियों से निपटने के लिये एक उच्च स्तरीय समन्वय मंच बनाने के उद्देश्य से की गई थी।
  • बैठक: 
    • भारत और यूरोपीय संघ के बीच नियमित उच्च स्तरीय जुड़ाव सुनिश्चित करने के लिये TTC की मंत्रिस्तरीय बैठकें वार्षिक तौर पर आयोजित की जमती हैं।
      • संतुलित भागीदारी को बढ़ावा देने और द्विपक्षीय सहयोग को मज़बूत करने हेतु ये बैठकें वैकल्पिक रूप से भारत या यूरोपीय संघ में हो रही हैं।
  • कार्यकारी समूह: TTC में तीन कार्यकारी समूह (WG) शामिल हैं जो भविष्य के सहयोग के रोडमैप पर रिपोर्ट करते हैं:
    • सामरिक प्रौद्योगिकियों, डिजिटल शासन और डिजिटल कनेक्टिविटी पर कार्यकारी समूह:
    • ग्रीन एंड क्लीन एनर्जी टेक्नोलॉजीज़ पर कार्यकारी समूह:
      • यह अनुसंधान और नवाचार पर ज़ोर देने के साथ निवेश तथा मानकों सहित हरित प्रौद्योगिकियों पर ध्यान केंद्रित करेगा।
      • अनुसंधान क्षेत्रों में स्वच्छ ऊर्जा, चक्रीय अर्थव्यवस्था, अपशिष्ट प्रबंधन, समुद्र में प्लास्टिक और अपशिष्ट, हाइड्रोजन के लिये अपशिष्ट तथा ई-वाहनों हेतु बैटरी का पुनर्चक्रण हो सकता है।  
        • यह यूरोपीय संघ और भारतीय इन्क्यूबेटरों, SME और स्टार्ट-अप के बीच सहयोग को भी बढ़ावा देगा। 
    • व्यापार, निवेश और लचीली मूल्य शृंखलाओं पर कार्यकारी समूह: 
      • यह आपूर्ति शृंखलाओं के लचीलेपन और महत्त्वपूर्ण घटकों, ऊर्जा तथा कच्चे माल तक पहुँच पर काम करेगा।
      • यह बहुपक्षीय मंचों में सहयोग को बढ़ावा देकर चिह्नित व्यापार बाधाओं और वैश्विक व्यापार चुनौतियों को हल करने के लिये भी काम करेगा। यह अंतर्राष्ट्रीय मानकों को बढ़ावा देने तथा वैश्विक भू-राजनीतिक चुनौतियों को दूर करने के लिये सहयोग की दिशा में काम करेगा।
  • महत्त्व: 
    • बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य को स्वीकार करते हुए भारत और यूरोपीय संघ दोनों एक मज़बूत सहयोगात्मक ढाँचा स्थापित करने के महत्त्व को स्वीकार करते हैं। 
    • TTC न केवल राजनीतिक मार्गदर्शन प्रदान करेगा बल्कि राजनीतिक निर्णयों को प्रभावी तरीके से लागू करने, तकनीकी प्रयासों का समन्वय करने और राजनीतिक स्तर पर जवाबदेही सुनिश्चित करने हेतु आवश्यक संरचना भी प्रदान करेगा।
    • TTC भारत-यूरोपीय संघ द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ाने में मदद करेगा, जो वर्ष 2022 में 120 बिलियन यूरो मूल्य की वस्तुओं के साथ ऐतिहासिक उच्च स्तर पर है। वर्ष 2022 में 17 बिलियन यूरो के डिजिटल उत्पादों और सेवाओं का व्यापार किया गया था।

भारत के लिये यूरोपीय संघ का महत्त्व: 

  • रोज़गार: यूरोपीय संघ शांति को बढ़ावा देने, रोज़गार सृजित करने, आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और पूरे देश में सतत्  विकास को बढ़ावा देने हेतु भारत के साथ मिलकर काम करता है।
  • वित्तीय सहायता: चूँकि भारत एक निम्न से मध्यम आय वाले देश (OECD 2014) से आगे बढ़ा है, भारत-यूरोपीय संघ सहयोग भी सामान्य प्राथमिकताओं पर ध्यान देने के साथ एक पारंपरिक वित्तीय साझेदारी सहायता की ओर विकसित हो रहा है।
  • व्यापार: यूरोपीय संघ भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार (अमेरिका के बाद) और भारत का दूसरा सबसे बड़ा निर्यात बाज़ार है। भारत यूरोपीय संघ का 10वाँ सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है, जिसका वस्तु व्यापार में यूरोपीय संघ के कुल व्यापार का 2 प्रतिशत हिस्सा है।
    • यूरोपीय संघ और भारत के बीच सेवाओं का व्यापार वर्ष 2021 में 40 बिलियन यूरो तक पहुँच गया था।
  • निर्यात: वर्ष 2021-22 में यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के लिये भारत का व्यापारिक निर्यात लगभग 65 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जबकि आयात 51.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
    • वर्ष 2022-23 के लिये निर्यात 67 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जबकि आयात में 54.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
  • अन्य द्विपक्षीय तंत्र:  

 यूरोपीय संघ क्या है?

  • यूरोपीय संघ 27 देशों का एक समूह है जो एक सामंजस्यपूर्ण आर्थिक और राजनीतिक ब्लॉक के रूप में कार्य करता है।
  • इनमें से 19 देश अपनी आधिकारिक मुद्रा के रूप में यूरो (€) का उपयोग करते हैं।
  • 8 यूरोपीय संघ के सदस्य (बुल्गारिया, क्रोएशिया, चेक गणराज्य, डेनमार्क, हंगरी, पोलैंड, रोमानिया और स्वीडन) यूरो का उपयोग नहीं करते हैं।
  • यूरोपीय संघ यूरोपीय देशों के बीच सदियों से चल रहे युद्ध को समाप्त करने के लिये एकल यूरोपीय राजनीतिक इकाई बनाने की इच्छा से विकसित हुआ जिसकी परिणति द्वितीय विश्व युद्ध के साथ हुई और महाद्वीप का अधिकांश भाग नष्ट हो गया।
  • यूरोपीय संघ ने कानूनों की एक मानकीकृत प्रणाली के माध्यम से एक आंतरिक एकल बाज़ार विकसित किया है जो सभी सदस्य देशों में उन मामलों में लागू होता है जहाँ सदस्य एक-साथ कार्य करने के लिये सहमत हुए हैं।     

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रारंभिक परीक्षा:

प्रश्न. ‘व्यापक-आधारयुक्त व्यापार और निवेश करार (ब्रॉड-बेस्ड ट्रेड एंड इन्वेस्टमेंट ऐग्रीमेंट/BTIA)’ कभी-कभी समाचारों में भारत और निम्नलिखित में से किस एक के बीच बातचीत के संदर्भ में दिखाई पड़ता है? (2017) 

(a) यूरोपीय संघ
(b) खाड़ी सहयोग परिषद
(c) आर्थिक सहयोग और विकास संगठन
(d) शंघाई सहयोग संगठन

उत्तर: (a) 


प्रश्न. भारत और यूरोपीय संघ के बीच द्विपक्षीय व्यापार वार्ता के संदर्भ में यूरोपीय आयोग और यूरोपीय परिषद के बीच क्या अंतर है? (2010)

  1. यूरोपीय आयोग व्यापार वार्ता में यूरोपीय संघ का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि यूरोपीय परिषद यूरोपीय संघ की आर्थिक नीतियों से संबंधित मामलों में भाग लेती है।
  2. यूरोपीय आयोग में सदस्य देशों के राज्य या सरकार के प्रमुख शामिल होते हैं, जबकि यूरोपीय परिषद में यूरोपीय संसद द्वारा नामित व्यक्ति शामिल होते हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (d)

स्रोत: पी.आई.बी.


शासन व्यवस्था

विश्व दूरसंचार दिवस 2023

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व दूरसंचार दिवस, संचार साथी पोर्टल, केंद्रीय उपकरण पहचान रजिस्टर, अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (ITU)

मेन्स के लिये:

भारत के दूरसंचार क्षेत्र की उपलब्धियाँ, धोखाधड़ी गतिविधियों को संबोधित करने में संचार साथी पोर्टल की भूमिका, भारत को वैश्विक दूरसंचार शक्ति के रूप में स्थापित करना

चर्चा में क्यों?  

17 मई, 2023 को भारत ने दूरसंचार क्षेत्र में प्रगति और उपलब्धियों का उत्सव मनाते हुए विश्व दूरसंचार दिवस मनाया। 

  • दूरसंचार उद्योग में पारदर्शिता, सुरक्षा और जवाबदेही बढ़ाने के लिये संचार साथी पोर्टल इसी दिन लॉन्च किया गया था।
  • वर्ष 2023 में यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फंड (USOF) के 20 वर्ष पूरे होने का भी प्रतीक है।

विश्व दूरसंचार दिवस:

  • परिचय: 
    • अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (ITU) की स्थापना और 1865 में पहले अंतर्राष्ट्रीय टेलीग्राफ कन्वेंशन पर हस्ताक्षर करने के चलते 1969 से प्रतिवर्ष विश्व दूरसंचार दिवस मनाया जाता है।
      • इसका उद्देश्य दूरसंचार के महत्त्व और सामाजिक एवं आर्थिक विकास में इसके योगदान के बारे में जागरूकता बढ़ाना है।
    • वर्ल्ड समिट ऑफ इंफॉर्मेशन सोसाइटी (WSIS) ने 17 मई को विश्व सूचना समाज दिवस के रूप में घोषित करने का आह्वान किया।
    • वर्ष 2006 में ITU ने दोनों को मिला दिया और 17 मई को विश्व दूरसंचार और सूचना समाज दिवस (WTISD) के रूप में मनाया।
  • थीम: 
    • विश्व दूरसंचार दिवस 2023 की थीम "सूचना और संचार प्रौद्योगिकियों के माध्यम से सबसे कम विकसित देशों को सशक्त बनाना" है।
  • मुख्य विशेषताएँ: 
    • स्टार्ट-अप द्वारा दूरसंचार क्षेत्र में नवाचारों को प्रदर्शित करने वाली प्रदर्शनी लगाना।
    • लास्ट माइल कनेक्टिविटी सुनिश्चित करने में शीर्ष प्रदर्शन करने वाले भारतीय उद्यमियों को मान्यता देना।
      • ‘उद्यमी भारत’ सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) क्षेत्र को सशक्त बनाने के लिये भारत सरकार द्वारा शुरू किया गया एक कार्यक्रम है।
    • प्रथम अंतर्राष्ट्रीय क्वांटम कम्युनिकेशन कॉन्क्लेव पर एक रिपोर्ट जारी करना।
      • क्वांटम प्रौद्योगिकियों में रोडमैप एवं विकास और विभिन्न क्षेत्रों में उनके संभावित प्रभाव पर राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों द्वारा साझा की गई अंतर्दृष्टि।
    • USOF और BharatNet द्वारा डिजिटल डिवाइड को पाटने और कम सेवा वाले क्षेत्रों को कनेक्टिविटी प्रदान करने में निभाई गई महत्त्वपूर्ण भूमिका पर ध्यान केंद्रित करना।

संचार साथी पोर्टल: 

  • परिचय: 
    • दूरसंचार विभाग (DoT) के तहत टेलीमैटिक्स के विकास केंद्र (C-DOT) द्वारा विकसित संचार साथी पोर्टल, भारत में दूरसंचार क्षेत्र में क्रांति ला रहा है।
  • उद्देश्य: 
    • संचार साथी पोर्टल का प्राथमिक उद्देश्य दूरसंचार उद्योग में प्रचलित विभिन्न धोखाधड़ी गतिविधियाँ जैसे- पहचान की चोरी, जाली KYC और बैंकिंग धोखाधड़ी को संबोधित करना है।
    • पोर्टल के माध्यम से उन्नत तकनीकों और रूपरेखाओं का लाभ उठाने के उद्देश्य से उपयोगकर्त्ताओं को एक सुरक्षित और भरोसेमंद दूरसंचार अनुभव प्रदान करना है।
    • सुधार:
      • CEIR (केंद्रीय उपकरण पहचान रज़िस्टर):
        • चोरी या खोए हुए मोबाइल फोन को ब्लॉक करने के लिये लागू किया गया।
        • उपयोगकर्त्ता चोरी हुए उपकरणों को सत्यापित करने और उन्हें ब्लॉक करने के लिये पुलिस शिकायत की एक प्रति के साथ IMEI नंबर जमा कर सकते हैं।
        • दूरसंचार सेवा प्रदाताओं और कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ एकीकृत किया गया।
        • चोरी हुए उपकरणों को भारतीय नेटवर्क में प्रयोग करने से रोकता है तथा आवश्यकता पड़ने पर कानून प्रवर्तन द्वारा पता लगाने की अनुमति देता है।
      • अपने मोबाइल कनेक्शन को जानें:
        • उपयोगकर्त्ताओं को उनके नाम पर पंजीकृत मोबाइल कनेक्शन की जाँच करने की अनुमति देता है।
        • अनधिकृत या कपटपूर्ण कनेक्शनों की पहचान करने में सक्षम बनाता है।
        • उपयोगकर्त्ता धोखाधड़ी या अनावश्यक कनेक्शन की रिपोर्ट कर सकते हैं, पुन: सत्यापन को ट्रिगर कर सकते हैं और रिपोर्ट किये गए कनेक्शन को समाप्त कर सकते हैं।
      • ASTR (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और फेशियल रिकग्निशन पावर्ड सॉल्यूशन फॉर टेलीकॉम सिम सब्सक्राइबर वेरिफिकेशन):
        • कपटपूर्ण या ज़ाली दस्तावेज़ों का उपयोग करके कनेक्शन प्राप्त करने वाले ग्राहकों की पहचान करने के लिये विकसित किया गया।
        • चेहरे की पहचान और डेटा विश्लेषण तकनीकों का उपयोग करता है।
        • कागज़ आधारित KYC दस्तावेज़ों के माध्यम से प्राप्त कनेक्शनों का विश्लेषण करता है।
  • प्रभाव: 
    • इसके तहत 40 लाख से अधिक फर्जी कनेक्शनों की पहचान की गई, साथ ही 36 लाख से अधिक को पोर्टल का उपयोग करके कनेक्शन समाप्त कर दिया गया है।
    • उपयोगकर्त्ताओं हेतु एक सुरक्षित और भरोसेमंद दूरसंचार अनुभव प्रदान करता है।
    • यह पहचान की चोरी, जाली KYC, मोबाइल उपकरण की चोरी और बैंकिंग धोखाधड़ी से सुरक्षा करता है।
    • यह उपयोगकर्त्ता के संदर्भ में  सुरक्षित है और टेलीकॉम बिल के मसौदे का समर्थन करता है।

भारत के दूरसंचार क्षेत्र का परिदृश्य: 

  • परिचय: 
    • वर्ष 2020-2021 में दूरसंचार उद्योग ने भारत के सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP) में 6% का योगदान दिया एवं वर्ष 2020 से 2025 तक 9.4% की CAGR से बढ़ने की उम्मीद है। भारत वैश्विक स्तर पर डेटा के सबसे बड़े उपभोक्ताओं में से एक है।
    • केंद्रीय मंत्रिमंडल ने दूरसंचार विभाग के तहत दूरसंचार और नेटवर्किंग उत्पादों हेतु 12,195 करोड़ रुपए की उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (Production Linked Incentive- PLI) योजना को मंज़ूरी दी।
    • 5G-केंद्रित प्रौद्योगिकियों में कुशल श्रमिकों की बढ़ती मांग: भारत को वर्ष 2025 तक इंटरनेट ऑफ थिंग और कृत्रिम बुद्धिमत्ता कंप्यूटिंग जैसे क्षेत्रों में लगभग 22 मिलियन कुशल श्रमिकों की आवश्यकता होगी।
  • दूरसंचार क्षेत्र में हालिया विकास: 
    • 5G लॉन्च: 
      • विभिन्न शहरों में परीक्षण किये गए।
      • वर्ष 2026 तक अपेक्षित वैश्विक 5G सब्सक्रिप्शन 3.5 बिलियन तक पहुँच जाएगा।
    • भारतनेट
      • ग्राम पंचायतों को ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी प्रदान करने की परियोजना।
      • 180,000 से अधिक ग्राम पंचायतों को ऑप्टिकल फाइबर से जोड़ा गया है।
      • अगस्त 2023 तक सभी आबादी वाले गाँवों को कवर करने हेतु 7.8 बिलियन डॉलर के परिव्यय के साथ संशोधित कार्यान्वयन रणनीति।
    • यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फंड (USOF): 
      • USOF यह सुनिश्चित करता है कि ग्रामीण और दूर-दराज़ के क्षेत्रों में लोगों हेतु आर्थिक रूप से कुशल कीमतों पर गुणवत्तापूर्ण सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (Information and Communications Technology- ICT) सेवाओं तक सार्वभौमिक गैर-भेदभावपूर्ण पहुँच हो।
      • यह ग्रामीण क्षेत्रों में दूरसंचार सेवाओं का विस्तार करने हेतु सांविधिक निधि की व्यवस्था करता है।
      • यह भारतनेट, मोबाइल कनेक्टिविटी, सार्वजनिक वाई-फाई हॉटस्पॉट आदि जैसी योजनाओं का समर्थन करता है।
    • भारतीय दूरसंचार विधेयक प्रस्ताव 2022:
      • दूरसंचार विभाग ने इंटरनेट-आधारित ओवर-द-टॉप (OTT) दूरसंचार सेवाओं को विनियमित करने हेतु भारतीय दूरसंचार विधेयक प्रस्ताव 2022 जारी किया।
    • दूरसंचार क्षेत्र में सुधार: 
      • समायोजित सकल राजस्व (Adjusted Gross Revenue- AGR) की परिभाषा का युक्तिकरण।
      • स्पेक्ट्रम बकाए पर रोक और कार्यकाल में वृद्धि।
      • स्पेक्ट्रम शेयरिंग, सरेंडर और ट्रेडिंग की अनुमति।
      • बैंक गारंटी का युक्तिकरण और विदेशी निवेश की सीमा में वृद्धि।
      • लाइसेंसिंग और विनियामक अनुपालन को सहज  बनाने के उपाय।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा/से भारत सरकार के ‘डिजिटल इंडिया’ योजना का/के उद्देश्य है/हैं?  (2018) 

  1. भारत की अपनी इंटरनेट कंपनियों का गठन, जैसा कि चीन ने किया। 
  2. एक नीतिगत ढाँचे की स्थापना जिससे बड़े आँकड़े एकत्रित करने वाली समुद्रपारीय बहु-राष्ट्रीय कंपनियों को प्रोत्साहित किया जा सके कि वे हमारी राष्ट्रीय भौगोलिक सीमाओं के अंदर अपने बड़े डेटा केंद्रों की स्थापना करें। 
  3. हमारे अनेक गाँवों को इंटरनेट से जोड़ना तथा हमारे बहुत से विद्यालयों, सार्वजनिक स्थलों एवं प्रमुख पर्यटक केंद्रों में वाई-फाई की सुविधा प्रदान करना। 

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: 

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3  
(c) केवल 2 और 3 
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (b) 

स्रोत: पी.आई.बी.


शासन व्यवस्था

हरित उर्जा ओपन एक्सेस नियम, 2022

प्रिलिम्स के लिये:

नवीकरणीय ऊर्जा, हरित ऊर्जा,NDC, हरित हाइड्रोजन 

मेन्स के लिये:

हरित उर्जा ओपन एक्सेस नियम, 2022

चर्चा में क्यों? 

ऊर्जा मंत्रालय और NRE (नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा), भारत सरकार ने हरित ऊर्जा ओपन एक्सेस नियम 2022 पर एक बैठक की अध्यक्षता की।

हरित ऊर्जा ओपन एक्सेस नियम 2022:

  • परिचय: 
    • वर्ष 2022 में भारत सरकार ने सभी के लिये सस्ती, विश्वसनीय, सतत् एवं हरित ऊर्जा तक पहुँच को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से नवीकरणीय ऊर्जा के महत्त्वाकांक्षी कार्यक्रमों को और तीव्र करने के लिये विद्युत (हरित ऊर्जा ओपन एक्सेस के माध्यम से नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देना) नियम, 2022 को अधिसूचित किया था।
    • इसका लक्ष्य वर्ष 2030 के लिये भारत के अद्यतन NDC (राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान) लक्ष्य के अनुरूप उत्सर्जन में 45% की कटौती करना है।
    • ये नियम अपशिष्ट से उर्जा संयंत्रों सहित हरित उर्जा उत्पादन, खरीद और खपत को बढ़ावा देने के लिये अधिसूचित किये गए हैं।
  • प्रमुख विशेषताएँ: 
    • इसके तहत एक समान नवीकरणीय खरीद दायित्व (RPO) होगा। आरपीओ पूर्ति के लिये हरित हाइड्रोजन/हरित अमोनिया को भी शामिल कर लिया गया है।
    • किसी भी ओपन एक्सेस उपभोक्ता को हरित ओपन एक्सेस की अनुमति होगी।
    • हरित खुली पहुँच की सभी उपभोक्ताओं के लिये अनुमति है, इसके तहत लेन-देन सीमा को एक मेगावाट से घटाकर 100 किलोवाट कर दिया गया है ताकि छोटे उपभोक्ता भी खुली पहुँच सुविधा के तहत नवीकरणीय उर्जा की खरीद-फरोख्त कर सकें।
    • गैर-कैप्टिव उपभोक्ताओं के लिये लेन-देन की सीमा न्यूनतम 100 किलोवाट होगी, लेकिन कैप्टिव उपभोक्ताओं के लिये ओपन-एक्सेस लेन-देन की कोई सीमा नहीं है।
      • कैप्टिव उपभोक्ता ऐसे व्यक्ति होते हैं जिनके पास बाज़ार स्थिति, विकल्पों की कमी या संविदात्मक दायित्वों जैसे विभिन्न कारकों के कारण किसी विशेष उत्पाद या सेवा को खरीदने के अतिरिक्त कोई और विकल्प नहीं होता है।
    • उपभोक्ता वितरण कंपनियों से हरित उर्जा आपूर्ति की मांग कर सकते हैं। वितरण कंपनियाँ हरित उर्जा की खरीद कर उसे पात्र उपभोक्ता को आपूर्ति करने को बाध्य होंगी।
    • हरित ओपन एक्सेस वाले उपभोक्ता को हरित ऊर्जा के लिये 15 दिनों में स्वीकृति प्रदान दी जाएगी।
    • वाणिज्यिक और औद्योगिक उपभोक्ताओं को स्वैच्छिक आधार पर हरित विद्युत खरीदने की अनुमति दी गई है।
    • उपभोक्ताओं को हरित शक्ति का उपभोग करने पर ग्रीन सर्टिफिकेट की सुविधा प्रदान की जाएगी।
  • महत्त्व: 
    • इस कदम से लघु उद्योगों, वाणिज्यिक उपभोक्ताओं और बड़े परिवारों के हरित ऊर्जा की ओर अग्रसर होने का अनुमान है।
    • भारत ने वर्ष 2021 में 1.2 GW सोलर ओपन एक्सेस स्थापित किया, जिसमें जनवरी-मार्च, 2022 के दौरान अतिरिक्त 513 MW अर्थात् 22% ऊर्जा क्षमता की वृद्धि हुई।
    • हरित ओपन एक्सेस नियम, 2022 को वर्ष 2030 तक भारत के 500 GW गैर-जीवाश्म ईंधन ऊर्जा के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।

हरित ऊर्जा संक्रमण से संबंधित अन्य पहलें:

स्रोत: पी.आई.बी.


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