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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

भारत का सौर ऊर्जा लक्ष्य

  • 09 Aug 2022
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

अक्षय ऊर्जा, उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन (पीएलआई), घरेलू सामग्री की आवश्यकता (डीसीआर)

मेन्स के लिये:

भारतीय सौर ऊर्जा उद्योग की चुनौतियाँ और उन्हें हल करने के लिये सरकार की पहल, अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में भारत की उपलब्धियाँ, भारत के अक्षय ऊर्जा लक्ष्य।

चर्चा में क्यों?

भारत सरकार ने वर्ष 2030 तक भारत की अक्षय ऊर्जा स्थापित क्षमता को 500 GW तक विस्तारित करने का लक्ष्य रखा है।

  • भारत ने वर्ष 2030 तक देश के कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन को 1 बिलियन टन तक कम करने, दशक के अंत तक देश की अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता को 45% से कम करने, वर्ष 2070 तक नेट-जीरो कार्बन उत्सर्जन प्राप्ति का लक्ष्य निर्धारित किया है।
  • वर्ष 2010 में 10 मेगावाट से भी कम क्षमता के साथ भारत ने पिछले एक दशक में महत्त्वपूर्ण फोटोवोल्टिक क्षमता को प्राप्त किया है, जो वर्ष 2022 में 50 गीगावाट से अधिक है।

भारत में अक्षय ऊर्जा की वर्तमान स्थिति:

  • भारत में अक्षय ऊर्जा की कुल स्थापित क्षमता 151.4 गीगावाट है।
    • अक्षय ऊर्जा के लिये कुल स्थापित क्षमता का विवरण निम्नलिखित है:
      • पवन ऊर्जा: 40.08 गीगावाट
      • सौर ऊर्जा: 49.34 गीगावाट
      • बायोपावर: 10.61 गीगावाट
      • लघु जल विद्युत: 4.83 गीगावाट
      • लार्ज हाइड्रो: 46.51 गीगावाट
    • वर्तमान सौर ऊर्जा क्षमता:
      • भारत में कुल 37 गीगावाट क्षमता के 45 सौर पार्कों को मंज़ूरी दी गई है।
        • पावागढ़ (2 गीगावाट), कुरनूल (1 गीगावाट) और भादला- II (648 मेगावाट) में सौर पार्क देश में 7 GW क्षमता के शीर्ष 5 परिचालित सोलर पार्कों में शामिल हैं।
        • गुजरात में 30 गीगावाट क्षमता वाली सौर-पवन हाइब्रिड परियोजना का दुनिया का सबसे बड़ा अक्षय ऊर्जा पार्क स्थापित किया जा रहा है।

चुनौतियाँ:

  • आयात पर अत्यधिक निर्भरता:
    • भारत के पास पर्याप्त मॉड्यूल और पीवी सेल निर्माण क्षमता नहीं है।
      • वर्तमान सौर मॉड्यूल निर्माण क्षमता प्रतिवर्ष 15 गीगावाट तक सीमित है, जबकि घरेलू उत्पादन केवल 3.5 गीगावाट के आसपास है।
        • इसके अलावा मॉड्यूल निर्माण क्षमता के 15 गीगावाट में से केवल 3-4 गीगावाट मॉड्यूल तकनीकी रूप से प्रतिस्पर्द्धी हैं और ग्रिड-आधारित परियोजनाओं में परिनियोजन के योग्य हैं।
  • आकार और प्रौद्योगिकी:
    • अधिकांश भारतीय उद्योग M2 प्रकार के वफर आकार पर आधारित है, लगभग 156x156 mm2, जबकि वैश्विक उद्योग पहले से ही M10 और M12 आकार की ओर बढ़ रहा है, जो 182x182 mm2 और 210x210 mm2 हैं।
      • बड़े आकार का वफर फायदेमंद है क्योंकि यह लागत प्रभावी है तथा इसमें कम विद्युत की हानि होती है।
  • कच्चे माल की आपूर्ति:
    • सबसे महँगा कच्चा माल सिलिकॉन वेफर का निर्माण भारत में नहीं होता है।
    • यह वर्तमान में 100% सिलिकॉन वेफर्स और लगभग 80% सेल का आयात करता है।
      • इसके अलावा विद्युत से संपर्क स्थापित करने के लिये चांदी और एल्युमीनियम धातु के पेस्ट जैसे अन्य प्रमुख कच्चे माल का भी लगभग 100% आयात किया जाता है।

सरकार की पहल:

  • विनिर्माण को समर्थन हेतु पीएलआई योजना:
    • इस योजना में ऐसे सौर पीवी मॉड्यूल की बिक्री पर उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन (पीएलआई) प्रदान करके उच्च दक्षता वाले सौर पीवी मॉड्यूल की एकीकृत विनिर्माण इकाइयों की स्थापना का समर्थन करने के प्रावधान हैं।
  • घरेलू सामग्री की आवश्यकता (DCR):
  • सौर पीवी सेल और मॉड्यूल के आयात पर मूल सीमा शुल्क का अधिरोपण:
    • सरकार ने सोलर पीवी सेल और मॉड्यूल के आयात पर बेसिक कस्टम ड्यूटी (BCD) लगाने की घोषणा की है।
      • इसके अलावा इसने मॉड्यूल के आयात पर 40% और सेल के आयात पर 25% शुल्क लगाया है।
      • मूल सीमा शुल्क एक विशिष्ट दर पर वस्तु के मूल्य पर लगाया गया शुल्क है।
  • संशोधित विशेष प्रोत्साहन पैकेज योजना (एम-एसआईपीएस):

आगे की राह

  • चूँकि भारत सौर PV मॉड्यूल के विकास में महत्त्वपूर्ण प्रगति कर रहा है, लेकिन इसके लिये विनिर्माण केंद्र बनने हेतु इसे अधिक नीतिगत हस्तक्षेप की आवश्यकता होगी, जैसे घरेलू विकसित प्रौद्योगिकियों को विकसित करना जो अल्पावधि में उद्योग के साथ काम कर सकें। उन्हें प्रशिक्षित मानव संसाधन, प्रक्रिया सीखने, सही परीक्षण के माध्यम से मूल-कारण विश्लेषण एवं लंबी अवधि में भारत की अपनी प्रौद्योगिकियों का विकास करना शामिल है।
  • इसके लिये कई समूहों में पर्याप्त निवेश की आवश्यकता होगी जो उद्योग की तरह काम करने और प्रबंधन की स्थितियों, उपयुक्त परिलब्धियों और स्पष्ट वितरण का काम कर सकें।

विगत वर्षों के प्रश्न

प्रश्न: 'घरेलू सामग्री की आवश्यकता' शब्द को कभी-कभी समाचारों में देखा जाता है, यह किस संदर्भ में है? (2017)

(a) हमारे देश में सौर ऊर्जा उत्पादन का विकास करना
(b) हमारे देश में विदेशी टीवी चैनलों को लाइसेंस प्रदान करना
(c) हमारे खाद्य उत्पादों काअन्य देशों में निर्यात करना
(d) विदेशी शिक्षण संस्थानों को हमारे देश में अपने कैंपस स्थापित करने की अनुमति देना

उत्तर: A

व्याख्या:

  • राष्ट्रीय सोलर मिशन 2010 में शुरू किया गया था जिसका उद्देश्य पूरे देश में सौर ऊर्जा का विस्तार करना है और संपूर्ण मूल्य शृंखला में विकास सुनिश्चित करना है। इसलिये मूल्य शृंखला में घरेलू विनिर्माण क्षमता विकसित करना भी मिशन के प्रमुख क्षेत्रों में से एक है।
  • घरेलू विनिर्माण के विकास को सुनिश्चित करने के लिये इस मिशन के तहत 'घरेलू सामग्री की आवश्यकता' का प्रावधान किया गया था।
  • सौर ऊर्जा उत्पादकों को स्थानीय रूप से निर्मित सेल का उपयोग करने के लिये उन डेवलपर्स को सब्सिडी की पेशकश की गई जो घरेलू उपकरणों का उपयोग करेंगे।
  • हालाँकि भारत विश्व व्यापार संगठन में अमेरिका के खिलाफ मामला हार गया क्योंकि निकाय ने फैसला सुनाया कि भारत के घरेलू सामग्री आवश्यकता प्रावधान अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों के साथ असंगत थे।

प्रश्न. भारत में सौर ऊर्जा की प्रचुर संभावनाएँ हैं, हालाँकि इसके विकास में क्षेत्रीय भिन्नताएँँ हैं। विस्तृत वर्णन कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2020)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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