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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी)

  • 26 Jul 2022
  • 13 min read

प्रिलिम्स के लिये:

चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC), वन बेल्ट वन रोड (OBOR), ब्लू डॉट नेटवर्क।

मेन्स के लिये:

चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) और भारत पर इसके प्रभाव।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पाकिस्तान और चीन ने मल्टी-मिलियन डॉलर के चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) में शामिल होने वाले किसी तीसरे देश का स्वागत करने का निर्णय लिया है।

  • अफगानिस्तान के संदर्भ में इसने अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय संपर्क को मज़बूत करने में नवीन आयामों को नज़रअंदाज किया है।
  • इससे पहले पाकिस्तान ने 60 बिलियन अमेरिकी डॉलर के चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) के दूसरे चरण की शुरुआत के लिये चीन के साथ एक नए समझौते पर हस्ताक्षर किये।

Gwadar

चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC):

  • CPEC चीन के उत्तर-पश्चिमी झिंजियांग उइगुर स्वायत्त क्षेत्र और पाकिस्तान के पश्चिमी प्रांत बलूचिस्तान में ग्वादर बंदरगाह को जोड़ने वाली बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं का 3,000 किलोमीटर लंबा मार्ग है।
  • यह पाकिस्तान और चीन के बीच एक द्विपक्षीय परियोजना है, जिसका उद्देश्य ऊर्जा, औद्योगिक और अन्य बुनियादी ढाँचा विकास परियोजनाओं के साथ राजमार्गों, रेलवे एवं पाइपलाइन्स के नेटवर्क द्वारा पूरे पाकिस्तान में कनेक्टिविटी को बढ़ावा देना है।
  • यह चीन के लिये ग्वादर बंदरगाह से मध्य-पूर्व और अफ्रीका तक पहुँचने का मार्ग प्रशस्त करेगा ताकि चीन हिंद महासागर तक पहुँच प्राप्त कर सके तथा चीन बदले में पाकिस्तान के ऊर्जा संकट को दूर करने और लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था को स्थिर करने के लिये पाकिस्तान में विकास परियोजनाओं का समर्थन करेगा।
  • CPEC, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का एक हिस्सा है।
    • वर्ष 2013 में शुरू किये गए ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ का उद्देश्य दक्षिण-पूर्व एशिया, मध्य एशिया, खाड़ी क्षेत्र, अफ्रीका और यूरोप को भूमि एवं समुद्री मार्गों के नेटवर्क से जोड़ना है।

CPEC का भारत हेतु निहितार्थ:

  • भारत की संप्रभुता: भारत CPEC की लगातार आलोचना करता रहा है, क्योंकि यह पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के गिलगित-बाल्टिस्तान से होकर गुज़रता है, जो भारत और पाकिस्तान के बीच एक विवादित क्षेत्र है।
    • कॉरिडोर को भारत की सीमा पर स्थित कश्मीर घाटी के लिये वैकल्पिक आर्थिक सड़क संपर्क के रूप में भी माना जाता है।
    • भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर के अधिकांश प्रमुख अभिकर्त्ताओं ने परियोजना को लेकर आशा व्यक्त की है।
    • स्थानीय व्यापारियों और राजनेताओं द्वारा नियंत्रण रेखा (LoC) के दोनों ओर कश्मीर को 'विशेष आर्थिक क्षेत्र' घोषित करने का आह्वान किया गया है।
    • हालाँकि गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र, जो औद्योगिक विकास और विदेशी निवेश को आकर्षित करता है, अगर CPEC सफल साबित होता है, तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त पाकिस्तानी क्षेत्र के रूप में क्षेत्र की धारणा को और मज़बूत करेगा, जिससे 73,000 वर्ग किमी. भूमि पर भारत का दावा कम हो जाएगा जो 1.8 मिलियन से अधिक लोगों का घर है।
  • सागर के माध्यम से व्यापार पर चीनी नियंत्रण: पूर्वी तट पर प्रमुख अमेरिकी बंदरगाह चीन के साथ व्यापार करने के लिये पनामा नहर पर निर्भर हैं।
    • एक बार CPEC के पूरी तरह कार्यात्मक हो जाने के बाद चीन अधिकांश उत्तरी और लैटिन अमेरिकी उद्यमों के लिये एक 'छोटा और अधिक किफायती' व्यापार मार्ग की पेशकश करने की स्थिति में होगा।
    • यह चीन को उन शर्तों को निर्धारित करने की शक्ति देगा जिनके द्वारा अटलांटिक और प्रशांत महासागरों के बीच माल की अंतर्राष्ट्रीय आवाजाही होगी।
  • स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स: चीन ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ की नीति द्वारा हिंद महासागर में अपनी उपस्थिति बढ़ा रहा है। ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ अमेरिका द्वारा गढ़ा गया एक शब्द  है जो अक्सर भारतीय रक्षा विश्लेषकों द्वारा हवाई क्षेत्रों और बंदरगाहों के नेटवर्क के माध्यम से भारत को घेरने की चीनी रणनीति का उल्लेख करने के लिये उपयोग किया जाता है।
    • चटगांव (बांग्लादेश), हंबनटोटा (श्रीलंका) और सूडान बंदरगाह, मालदीव, सोमालिया तथा सेशेल्स में उपस्थिति के साथ ग्वादर बंदरगाह का चीन द्वारा नियंत्रण करना हिंद महासागर पर उसके पूर्ण प्रभुत्व की महत्त्वाकांक्षा को व्यक्त करता है।
  • एक आउटसोर्सिंग गंतव्य के रूप में पाकिस्तान का उदय: यह पाकिस्तान की आर्थिक प्रगति को गति देने के लिये तैयार है।
    • मुख्य रूप से कपड़ा और निर्माण सामग्री उद्योग में पाकिस्तानी निर्यात, दोनों देशों के शीर्ष तीन व्यापारिक भागीदारों में से दो (अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात) भारत के साथ सीधे प्रतिस्पर्द्धा करते हैं।
    • चीन से कच्चे माल की आपूर्ति आसान होने के साथ पाकिस्तान को इन क्षेत्रों में मुख्य रूप से भारतीय निर्यात मात्रा की कीमत पर एक क्षेत्रीय बाज़ार का अग्रणी बनने के लिये उपयुक्त रूप से देखा जा सकता है।
  • BRI द्वारा मज़बूत व्यापार और चीन का प्रभुत्व: चीन की बीआरआई परियोजना जो बंदरगाहों, सड़कों और रेलवे के नेटवर्क के माध्यम से चीन तथा शेष यूरेशिया के बीच व्यापार संपर्क पर केंद्रित है, को अक्सर इस क्षेत्र में राजनीतिक रूप से हावी होने की चीन की योजना के रूप में देखा जाता है। CPEC इसी दिशा में एक और बड़ा कदम है।
    • चीन जो कि बाकी वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं द्वारा समर्थित और अधिक एकीकृत है, संयुक्त राष्ट्र एवं अलग-अलग राष्ट्रों के साथ बेहतर स्थिति में होगा, जो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सीट हासिल करने की योजना को प्रभावित कर सकता है।

वन बेल्ट वन रोड (OBOR):

  • परिचय:
    • यह 2013 में शुरू की गई एक मल्टी-मिलियन डॉलर की पहल है।
    • इसका उद्देश्य दक्षिण-पूर्व एशिया, मध्य एशिया, खाड़ी क्षेत्र, अफ्रीका और यूरोप को भूमि एवं समुद्री मार्गों के नेटवर्क से जोड़ना है।
    • इसका उद्देश्य विश्व में बड़ी बुनियादी ढांँचा परियोजनाओं को शुरू करना है जो बदले में चीन के वैश्विक प्रभाव को बढ़ाएगी।
  • संरचना:
    • इनमें निम्नलिखित छह आर्थिक गलियारे शामिल हैं:
      • न्यू यूरेशियन लैंड ब्रिज, जो पश्चिमी चीन को पश्चिमी रूस से जोड़ता है
      • चीन-मंगोलिया-रूस गलियारा, जो मंगोलिया के माध्यम से उत्तरी चीन को पूर्वी रूस से जोड़ता है
      • चीन-मध्य एशिया-पश्चिम एशिया गलियारा, जो मध्य और पश्चिम एशिया के माध्यम से पश्चिमी चीन को तुर्की से जोड़ता है
      • चीन-इंडोचीन प्रायद्वीप गलियारा, जो भारत-चीन के माध्यम से दक्षिणी चीन को सिंगापुर से जोड़ता है
      • चीन-पाकिस्तान गलियारा, जो दक्षिण-पश्चिमी चीन को पाकिस्तान के माध्यम से अरब सागर के मार्गों से जोड़ता है
      • बांग्लादेश-चीन-भारत-म्याँमार गलियारा, जो बांग्लादेश और म्याँमार के रास्ते दक्षिणी चीन को भारत से जोड़ता है
    • इसके अतिरिक्त समुद्री सिल्क रोड सिंगापुर-मलेशिया, हिंद महासागर, अरब सागर और होर्मुज़ जलडमरूमध्य के माध्यम से तटीय चीन को भूमध्य सागर से जोड़ता है।

One-belt-one-road

आगे की राह

  • भारत को अपनी रणनीतिक स्थिति का लाभ उठाना चाहिये और बहुपक्षीय पहलों में भाग लेने के लिये समान विचारधारा वाले देशों के साथ आगे काम करना चाहिये, जैसे,
    • एशिया-अफ्रीका विकास गलियारा तथा भारत-जापान आर्थिक सहयोग समझौता भारत को बड़ा रणनीतिक लाभ प्रदान कर सकता है और चीन का मुकाबला कर सकता है।
    • ब्लू डॉट नेटवर्क, जिसे USA द्वारा बढ़ावा दिया जा रहा है।
      • यह वैश्विक अवसंरचना विकास हेतु उच्च-गुणवत्ता एवं विश्वसनीय मानकों को बढ़ावा देने के लिये सरकारों, निजी क्षेत्र और नागरिक समाज को एक साथ लाने की एक बहु-हितधारक पहल है।
      • यह इंडो-पैसिफिक क्षेत्र पर ध्यान देने के साथ-साथ विश्व स्तर पर सड़क, बंदरगाह एवं पुलों के लिये मान्यता प्राप्त मूल्यांकन एवं प्रमाणन प्रणाली के रूप में काम करेगा।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न:

प्रिलिम्स:

Q कभी-कभी समाचारों में देखा जाने वाला बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (2016) का उल्लेख किसके संदर्भ में किया जाता है?

(a) अफ्रीकी संघ
(b) ब्राज़ील
(c) यूरोपीय संघ
(d) चीन

उत्तर: D

व्याख्या:

  • वर्ष 2013 में प्रस्तावित 'बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) भूमि और समुद्री नेटवर्क के माध्यम से एशिया को अफ्रीका तथा यूरोप से जोड़ने के लिये चीन का एक महत्त्वाकांक्षी कार्यक्रम है।
  • BRI को 'सिल्क रोड इकोनॉमिक बेल्ट’ और 21वीं सदी की सामुद्रिक सिल्क रोड के रूप में भी जाना जाता है। BRI एक अंतर-महाद्वीपीय मार्ग है जो चीन को दक्षिण-पूर्व एशिया, दक्षिण एशिया, मध्य एशिया, रूस और यूरोप से भूमि के माध्यम से जोड़ता है, यह चीन के तटीय क्षेत्रों को दक्षिण-पूर्व तथा दक्षिण एशिया, दक्षिण प्रशांत, मध्य-पूर्व और पूर्वी अफ्रीका से जोड़ने वाला एक समुद्री मार्ग है जो पूरे यूरोप तक जाता है। अतः विकल्प (d) सही उत्तर है

मेन्स:

Q चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) को चीन की बड़ी 'वन बेल्ट वन रोड' पहल के मुख्य उपसमुच्चय के रूप में देखा जाता है। CPEC का संक्षिप्त विवरण दीजिये और उन कारणों का उल्लेख कीजिये जिनकी वजह से भारत ने खुद को इससे दूर किया है। (2018)

Q चीन और पाकिस्तान ने आर्थिक गलियारे के विकास हेतु एक समझौता किया है। यह भारत की सुरक्षा के लिये क्या खतरा है? समालोचनात्मक चर्चा कीजिये। (2014)

Q "चीन एशिया में संभावित सैन्य शक्ति की स्थिति विकसित करने के लिये अपने आर्थिक संबंधों और सकारात्मक व्यापार अधिशेष का उपयोग उपकरण के रूप में कर रहा है"। इस कथन के आलोक में भारत पर पड़ोसी देश के रूप में इसके प्रभाव की चर्चा कीजिये। (2017)

स्रोत: द हिंदू

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