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जैव विविधता और पर्यावरण

भूजल का ह्रास

  • 30 Nov 2021
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

केंद्रीय भूजल बोर्ड, यूनेस्को, भूजल के कृत्रिम पुनर्भरण के लिये मास्टर प्लान- 2020, राष्ट्रीय जल नीति (2012)

मेन्स के लिये:

भारत में भू-जल संकट 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) द्वारा किये गए जल स्तर के आँकड़ों के विश्लेषण से संकेत मिलता है कि निगरानी किये गए लगभग 33% कुओं के भू-जल स्तर में 0-2 मीटर की गिरावट दर्ज की गई है।

  • इसके अलावा नई दिल्ली, चेन्नई, इंदौर, मदुरै, विजयवाड़ा, गाजियाबाद, कानपुर और लखनऊ आदि जैसे मेट्रो शहरों के कुछ हिस्सों में भी 4.0 मीटर से अधिक की गिरावट देखी गई है।
  • सीजीडब्ल्यूबी समय-समय पर कुओं के नेटवर्क की निगरानी के माध्यम से क्षेत्रीय स्तर पर मेट्रो शहरों सहित पूरे देश में भू-जल स्तर की निगरानी कर रहा है।

प्रमुख बिंदु

  • भारत में भूजल निष्कर्षण:
    • यूनेस्को की विश्व जल विकास रिपोर्ट, 2018 में कहा गया है कि भारत दुनिया में भूजल का सबसे अधिक निष्कर्षण करने वाला देश है।
    • राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद में भूजल के योगदान को कभी भी मापा नहीं जाता है।
    • सीजीडब्ल्यूबी के अनुसार, भारत में कृषि भूमि की सिंचाई के लिये हर साल 230 बिलियन क्यूबिक मीटर भूजल निकाला जाता है, देश के कई हिस्सों में भूजल का तेज़ी से क्षरण हो रहा है।
      • भारत में कुल अनुमानित भूजल की कमी 122-199 बिलियन क्यूबिक मीटर की सीमा में है।
  • भूजल निष्कर्षण का कारण:
    • हरित क्रांति: हरित क्रांति ने सूखा प्रवण/पानी की कमी वाले क्षेत्रों में जल गहन फसलों को उगाने में सक्षम बनाया, जिससे भूजल की अधिक निकासी हुई।
      • इसकी पुनःपूर्ति की प्रतीक्षा किये बिना ज़मीन से जल को बार-बार पंप करने से इसमें त्वरित कमी आई।
      • इसके अलावा बिजली पर सब्सिडी और पानी की अधिक खपत वाली फसलों के लिये उच्च एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य)।
    • उद्योगों की आवश्यकता: लैंडफिल, सेप्टिक टैंक, टपका हुआ भूमिगत गैस टैंक और उर्वरकों एवं कीटनाशकों के अति प्रयोग से होने वाले प्रदूषण के मामले में जल प्रदूषण के कारण भूजल संसाधनों की क्षति और इनमें कमी आती है।
    • अपर्याप्त विनियमन: भूजल का अपर्याप्त विनियमन तथा इसके लिये कोई दंड न होना भूजल संसाधनों की समाप्ति को प्रोत्साहित करता है।
      • भारत में सिंचाई हेतु कुओं के निर्माण के लिये किसी मंज़ूरी की आवश्यकता नहीं होती है और परित्यक्त कुओं का कोई रिकॉर्ड नहीं रखा जाता है।
      • भारत में हर दिन कई सौ कुओं का निर्माण किया जाता है और जब वे सूख जाते हैं तो उन्हें छोड़ दिया जाता है।
    • संघीय मुद्दा: जल एक राज्य का विषय है, जल संरक्षण और जल संचयन सहित जल प्रबंधन पर पहल तथा देश में नागरिकों को पर्याप्त पीने योग्य पानी उपलब्ध कराना मुख्य रूप से राज्यों की ज़िम्मेदारी है।
      • हालाँकि केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न परियोजनाओं के वित्तपोषण सहित महत्त्वपूर्ण उपाय किये जाते हैं।

भूजल नियंत्रण के लिये केंद्र सरकार द्वारा उठाए गए कदम:

  • जल शक्ति अभियान: भारत सरकार ने वर्ष 2019 में जल शक्ति अभियान (JSA) शुरू किया, जिसका उद्देश्य भारत में 256 ज़िलों के पानी की कमी वाले ब्लॉकों में भूजल की स्थिति सहित पानी की उपलब्धता में सुधार करना है।
  • भूजल के कृत्रिम पुनर्भरण के लिये मास्टर प्लान- 2020: CGWB ने राज्य सरकारों के परामर्श से मास्टर प्लान- 2020 तैयार किया है।
    • इसमें 185 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) का दोहन करने के लिये देश में लगभग 1.42 करोड़ वर्षा जल संचयन और कृत्रिम पुनर्भरण संरचनाओं के निर्माण की परिकल्पना की गई है।
    • इसके अलावा सरकार ने वर्षा जल संचयन को बढ़ावा देने के लिये ‘कैच द रेन’ अभियान भी शुरू किया है।
  • राष्ट्रीय जल नीति (2012): यह नीति वर्षा जल संचयन और जल संरक्षण की वकालत करती है तथा वर्षा जल के प्रत्यक्ष उपयोग के माध्यम से पानी की उपलब्धता बढ़ाने की आवश्यकता पर प्रकाश डालती है।
    • यह सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से वैज्ञानिक एवं नियोजित तरीके से नदी, नदी निकायों बुनियादी अवसंरचना के संरक्षण की वकालत करती है।
  • अटल भूजल योजना: अटल भूजल योजना (ABHY) विश्व बैंक द्वारा सह-वित्त पोषित सामुदायिक भागीदारी के साथ भूजल के स्थायी प्रबंधन हेतु चिह्नित अति-शोषित और पानी की कमी वाले क्षेत्रों में लागू की जा रही है।
  • अभिसरण दृष्टिकोण: केंद्र सरकार मुख्य रूप से ‘महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना’ और ‘प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना- वाटरशेड’ विकास घटक के माध्यम से जल संचयन एवं संरक्षण कार्यों के निर्माण का समर्थन करती है।
  • जलभृत मानचित्रण और प्रबंधन कार्यक्रम: CGWB ने जलभृत मानचित्रण और प्रबंधन कार्यक्रम शुरू किया है।
    • कार्यक्रम का उद्देश्य सामुदायिक भागीदारी के साथ जलभृत/क्षेत्र विशिष्ट भूजल प्रबंधन योजना तैयार करने के लिये जलभृतों की स्थिति और उनके लक्षण को चित्रित करना है।
  • कायाकल्प और शहरी परिवर्तन के लिये अटल मिशन (AMRUT): मिशन अमृत शहरों में बुनियादी शहरी अवसंरचना के विकास पर केंद्रित है, जैसे कि पानी की आपूर्ति, सीवेज और सेप्टेज प्रबंधन, जल निकासी, हरित स्थान और पार्क तथा गैर-मोटर चालित शहरी परिवहन।
  • विभिन्न राज्य सरकारों की पहल: कई राज्यों ने जल संसाधनों के सतत् प्रबंधन के लिये जल संरक्षण/संचयन के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया है। उदाहरण के लिये:
    • राजस्थान में ‘मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान’
    • महाराष्ट्र में ‘जलयुक्त शिबर’
    • गुजरात में 'सुजलाम सुफलाम अभियान'
    • तेलंगाना में 'मिशन काकतीय'
    • आंध्र प्रदेश में नीरू चेट्टू
    • बिहार में जल जीवन हरियाली
    • हरियाणा में 'जल ही जीवन'

आगे की राह

  • पानी पंचायतों की अवधारणा: भारत के प्रधानमंत्री ने जल संरक्षण के महत्त्व और जल संरक्षण को एक जन आंदोलन बनाने के लिये उचित उपायों को अपनाने की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए सही दिशा में एक कदम उठाया है।
    • इस संदर्भ में जल संरक्षण का ग्रामीण स्तर पर विकेंद्रीकरण करना या पानी पंचायतों को मज़बूत करना बहुत कारगर हो सकता है।
  • जल निकायों के अवैध अतिक्रमण को प्रतिबंधित करना: जल निकायों और जल निकासी चैनलों के अतिक्रमण की अनुमति नहीं दी जानी चाहिये और जहाँ भी ऐसा हुआ है, उसे यथासंभव बहाल किया जाना चाहिये।
    • इसके अलावा एकत्र किये गए जल का उपयोग भूजल की बहाली के लिये किया जाना चाहिये।
  • सूक्ष्म सिंचाई: सूक्ष्म सिंचाई तकनीकों जैसे स्प्रिंकलर या ड्रिप सिंचाई को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
    • ड्रिप सिंचाई हेतु पानी के पाइपों (उनमें छेद के साथ) को या तो भूमि में दबा दिया जाता है या फसलों के बगल में ज़मीन से थोड़ा ऊपर रखा जाता है ताकि पानी धीरे-धीरे फसल की जड़ों और तनों पर टपकता रहे।
    • स्प्रे सिंचाई के विपरीत वाष्पीकरण में बहुत कम नुकसान होता है और पानी को केवल उन पौधों के लिये उपलब्ध कराया जा सकता है जिन्हें इसकी आवश्यकता होती है, ताकि पानी की बर्बादी कम हो।
  • भू-जल का कृत्रिम पुनर्भरण: यह मिट्टी के माध्यम से घुसपैठ बढ़ाने और जलभृत में प्रवेश करने या कुओं द्वारा सीधे जलभृत में पानी डालने की प्रक्रिया है।
  • भूजल प्रबंधन संयंत्र: स्थानीय स्तर पर भूजल प्रबंधन संयंत्र स्थापित करने से लोगों को अपने क्षेत्र में भूजल की उपलब्धता के बारे में जानने में मदद मिलेगी जिससे वे इसका बुद्धिमानी से उपयोग कर सकेंगे।

स्रोत: पीआईबी

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